Snowfall In Uttarakhand: नवंबर के अंत तक भी उत्तराखंड के ऊंचे पहाड़ों पर नहीं हुई बर्फबारी, विशेषज्ञों ने जताई चिंता

Snowfall In Uttarakhand: नवंबर के अंत तक भी उत्तराखंड के ऊंचे पहाड़ों पर नहीं हुई बर्फबारी, विशेषज्ञों ने जताई चिंता

<p style=”text-align: justify;”><strong>Uttarakhand Weather Update:</strong> इस साल नवंबर के अंत तक भी उत्तराखंड की ऊंची चोटियों और बुग्याल क्षेत्रों में बर्फबारी नहीं होने के कारण मौसम की असामान्य स्थिति स्पष्ट दिखाई दे रही है. दयारा बुग्याल, हर्षिल घाटी और गंगोत्री जैसे क्षेत्रों का निरीक्षण करने वाले वन विभाग के अधिकारियों ने जलवायु परिवर्तन और मौसम की बेरुखी पर गहरी चिंता व्यक्त की. यह स्थिति जलस्रोतों, नदियों और स्थानीय पर्यावरणीय संतुलन के लिए गंभीर परिणाम उत्पन्न कर सकती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री जैसी धार्मिक और पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण चोटियां, जो हर साल नवंबर में बर्फ से ढकी रहती थीं, इस बार लगभग बर्फ विहीन हैं. गंगोत्री घाटी और वासुकी ताल जैसे ऊंचाई वाले स्थान, जो आमतौर पर नवंबर में बर्फ से भर जाते थे, अब तक बर्फ से वंचित हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते सर्दियों का समय छोटा हो गया है. समय पर बर्फ न गिरने से हिमालयी ग्लेशियरों के रिचार्ज होने की प्रक्रिया बाधित हो रही है, जो नदियों और कृषि पर निर्भर क्षेत्रों के लिए गंभीर चुनौती पैदा कर सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वन विभाग के मुताबिक, हिमालयी क्षेत्र में बुग्यालों (घास के मैदानों) पर भी जलवायु परिवर्तन का असर दिख रहा है. कई स्थानों पर इको-फ्रेंडली तकनीकों का उपयोग कर इन क्षेत्रों के संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं. अब तक 83 हेक्टेयर बुग्यालों में पुनर्स्थापन का कार्य पूरा हो चुका है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>जलवायु पर पड़ेगा बर्फबारी का असर</strong><br />बर्फबारी में लगातार कमी का प्रभाव न केवल जलवायु संतुलन पर पड़ेगा, बल्कि यह पर्यटन, ऊर्जा उत्पादन, और स्थानीय समुदायों की आजीविका पर भी गहरा असर डालेगा. इस क्षेत्र में जल्द से जल्द सटीक समाधान और पर्यावरणीय नीतियों की आवश्यकता है. यह स्थिति न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय बदलावों का प्रमाण है, जिसे समय रहते गंभीरता से लेना आवश्यक है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>ये भी पढ़ें: <a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/chandrashekhar-azad-statement-on-sambhal-violence-said-it-is-failure-of-police-administration-and-government-2830095″><strong>’सर्वें के दौरान धार्मिक नारे क्यों, देश की छवि हो रही खराब..’, संभल हिंसा पर बोले चंद्रशेखर आजाद</strong></a></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Uttarakhand Weather Update:</strong> इस साल नवंबर के अंत तक भी उत्तराखंड की ऊंची चोटियों और बुग्याल क्षेत्रों में बर्फबारी नहीं होने के कारण मौसम की असामान्य स्थिति स्पष्ट दिखाई दे रही है. दयारा बुग्याल, हर्षिल घाटी और गंगोत्री जैसे क्षेत्रों का निरीक्षण करने वाले वन विभाग के अधिकारियों ने जलवायु परिवर्तन और मौसम की बेरुखी पर गहरी चिंता व्यक्त की. यह स्थिति जलस्रोतों, नदियों और स्थानीय पर्यावरणीय संतुलन के लिए गंभीर परिणाम उत्पन्न कर सकती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री जैसी धार्मिक और पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण चोटियां, जो हर साल नवंबर में बर्फ से ढकी रहती थीं, इस बार लगभग बर्फ विहीन हैं. गंगोत्री घाटी और वासुकी ताल जैसे ऊंचाई वाले स्थान, जो आमतौर पर नवंबर में बर्फ से भर जाते थे, अब तक बर्फ से वंचित हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते सर्दियों का समय छोटा हो गया है. समय पर बर्फ न गिरने से हिमालयी ग्लेशियरों के रिचार्ज होने की प्रक्रिया बाधित हो रही है, जो नदियों और कृषि पर निर्भर क्षेत्रों के लिए गंभीर चुनौती पैदा कर सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वन विभाग के मुताबिक, हिमालयी क्षेत्र में बुग्यालों (घास के मैदानों) पर भी जलवायु परिवर्तन का असर दिख रहा है. कई स्थानों पर इको-फ्रेंडली तकनीकों का उपयोग कर इन क्षेत्रों के संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं. अब तक 83 हेक्टेयर बुग्यालों में पुनर्स्थापन का कार्य पूरा हो चुका है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>जलवायु पर पड़ेगा बर्फबारी का असर</strong><br />बर्फबारी में लगातार कमी का प्रभाव न केवल जलवायु संतुलन पर पड़ेगा, बल्कि यह पर्यटन, ऊर्जा उत्पादन, और स्थानीय समुदायों की आजीविका पर भी गहरा असर डालेगा. इस क्षेत्र में जल्द से जल्द सटीक समाधान और पर्यावरणीय नीतियों की आवश्यकता है. यह स्थिति न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय बदलावों का प्रमाण है, जिसे समय रहते गंभीरता से लेना आवश्यक है.</p>
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