सड़कें बनी नहीं, तेज प्रताप मिलते नहीं…टूट गए यादव:करहल में 186 बूथ पर पिछड़ी सपा; लोग बोले- घोसी-कमरिया वोट बंट गया

सड़कें बनी नहीं, तेज प्रताप मिलते नहीं…टूट गए यादव:करहल में 186 बूथ पर पिछड़ी सपा; लोग बोले- घोसी-कमरिया वोट बंट गया

‘हमारा पूरा गांव यादवों का है। 1985 से अब तक सब सपा में ही थे। लेकिन, अब भेदभाव की राजनीति हो रही। आसपास के गांव में सड़कें बन गईं, लेकिन यहां नहीं बनीं। सपा के नेता सड़क तक आते हैं, फिर लौट जाते हैं। लोग नाराज हैं, इसलिए सब बीजेपी में चले गए। हालांकि यह सही है कि बीजेपी से यादव के अलावा कोई और आता तो हम लोग नहीं जाते।’ करहल विधानसभा के नगला गांव के सतीश बाबू यादव यह बात कहते हैं। सपा का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर उपचुनाव हुआ। सपा अपनी परंपरागत सीट जीतने में कामयाब रही। लेकिन, मुकाबला बेहद कड़ा हुआ। जिस सीट पर 2022 में अखिलेश यादव 67 हजार 504 वोट से जीते, 2024 के लोकसभा में डिंपल यादव करहल से 57 हजार 540 वोटों से आगे रहीं, उस विधानसभा सीट पर तेज प्रताप को महज 14 हजार 725 वोटों से जीत मिली है। 186 बूथ पर सपा भाजपा से पीछे रह गई। दैनिक भास्कर की टीम करहल पहुंची। हमारे सामने तीन सवाल थे। पहला- क्या करहल में सपा की जमीन दरक रही? दूसरा- क्या बीजेपी की तरफ से यादव प्रत्याशी आने से सपा का कोर वोटर भाजपा की तरफ चला जाता है? तीसरा- 2027 में अगर यादव बनाम यादव हुआ तो क्या बीजेपी फतह कर सकती है? पढ़िए पूरी ग्राउंड रिपोर्ट… 43 हजार वोट सपा को कम मिले
मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट। यह समाजवादी की सबसे खास और सेफ सीट मानी जाती है। 2022 के चुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव यहां से मैदान में उतरे। जनता ने एकतरफा वोट किया। उन्हें कुल 1,48,196 वोट मिले। भाजपा की तरफ से केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल मैदान में थे, उन्हें 80 हजार 692 वोट मिले। इस तरह अखिलेश 60.12% वोट के साथ 67,504 वोटों से जीत गए। 2024 के लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव को अकेले करहल विधानसभा सीट पर 57 हजार 540 वोट की लीड मिली थी। भाजपा को यहां 76 हजार वोट मिले थे। अखिलेश कन्नौज के सांसद बन गए, इसलिए यह सीट खाली हुई। 20 नवंबर को उपचुनाव हुआ। सपा प्रत्याशी तेज प्रताप यादव 14,725 वोट से जीत गए। उन्हें 1 लाख 4 हजार 304 वोट मिला। 2022 में अखिलेश यादव को मिले कुल वोट से यह 43 हजार वोट कम है। दूसरी तरफ, बीजेपी प्रत्याशी अनुजेश यादव को 89 हजार 579 वोट मिले। 2022 में भाजपा को यहां 80 हजार 692 वोट मिले थे। 2022 में 66% वोट पड़े थे, इस बार 54% वोट पड़े। 12% वोट कम पड़ने के बावजूद भाजपा को 9 हजार वोट ज्यादा मिले। जहां भाजपा को खाता नहीं खुलता, वहां सैकड़ों वोट मिले
हम करहल विधानसभा के कई गांवों में गए। सबसे पहले कंचनपुर पहुंचे। यहां करीब 500 वोट हैं। अक्सर सारे वोट सपा को जाते रहे हैं। लेकिन, इस बार करीब ढाई सौ वोट बीजेपी को मिले हैं। यहां हमें फौरन सिंह यादव मिले। वह कहते हैं- हमने तो बीजेपी को वोट दिया। दिमाग में आ गया, इसलिए दे दिया। पहले तो सपा को ही वोट देते आए हैं। हार-जीत तो भाग्य की बात है। 2027 में भी अगर दोनों आमने-सामने हुए तो बीजेपी जीत सकती है, क्योंकि बहुत थोड़े अंतर से ही तो हारे हैं। हम इसी गांव में आगे बढ़े। 8 लोग साथ बैठे मिले। इनमें 4 महिलाएं थीं। यहां बैठे रमेश चंद्र यादव कहते हैं- जनता के मन की बात है, भाजपा में जाने का मन किया तो चली गई। 2002 में सोबरन सिंह यादव बीजेपी से प्रत्याशी थे, तो यादव लोगों ने उन्हें वोट देकर जिताया था। जब दोनों तरफ से यादव प्रत्याशी आ जाते हैं तो यादव बंट जाते हैं। यहां बैठने पर कई बातें पता चलीं। यादवों में दो वर्ग घोसी और कमरिया हैं। अनुजेश घोसी थे और तेज प्रताप कमरिया। भाजपा ने इसका प्रचार भी किया। इसका असर भी पड़ा। यादवों में जो घोसी थे, वे भाजपा की तरफ चले गए। हालांकि, घोसी यादवों की संख्या 1 लाख है। लोगों से बात करने पर पता चलता है कि करीब 50% घोसी यादव ही भाजपा की तरफ गए। कमरिया यादवों की संख्या करीब 30 हजार है, लगभग सारे लोग सपा में ही रहे। 186 बूथ पर सपा पीछे, कहीं तो सिर्फ 5-5 वोट मिले
कंचनपुर से निकलकर हम नगला नयां, सकरी, भागपुर, जुला, कलंदनपुर इलाके में गए। यहां की स्थिति एकदम अलग दिखी। नगला में भाजपा को 562 वोट मिले, जबकि सपा को सिर्फ 5 वोट। इसी तरह पडरिया में 776 वोट भाजपा को और 5 वोट सपा को मिले। औडेण्य पडरिया के ही एक बूथ पर बीजेपी को 864 वोट मिले और सपा को महज 2 वोट मिले। 444 बूथों में 186 बूथ ऐसे रहे, जहां भाजपा को सपा के मुकाबले ज्यादा वोट मिले। 2022 में करीब 30 ही बूथ ऐसे थे, जहां सपा पिछड़ी थी। हमें नगला नयां के सतीश बाबू मिले। उन्होंने इस साल भाजपा को वोट दिया है। कहते हैं- हम तो 1985 से सपा को वोट देते आए हैं। पूरा गांव यादवों का है। सपा के नेता अब यहां नजरअंदाज करने लगे हैं। हमारे गांव की सड़क देखिए। बहुत दिन से टूटी है। सपा नेता गांव के बाहर सड़क तक आते हैं और फिर चले जाते हैं। मंदिर तक जाने का रास्ता नहीं बन पाया। अनुजेश जी ने वादा किया, सड़क भी बनवाई। इसलिए गांव के लोग इस बार उनकी तरफ चले गए। हम जिन गांव में थे, वहां कभी भाजपा का बस्ता नहीं लगता था। एजेंट भी नहीं बनते थे, क्योंकि एकतरफा वोट सपा को जाता रहा है। हमने सतीश बाबू से पूछा कि क्या भाजपा से यादव प्रत्याशी लड़ा, इसलिए चले गए? सतीश कहते हैं- यह सच है कि अनुजेश यादव आए, इसलिए हम सभी उनकी तरफ चले गए। अगर कोई दूसरी जाति का प्रत्याशी बीजेपी से आता, तो हम लोग उन्हें वोट नहीं करते। यह सपा की सीट, बीजेपी नहीं जीत सकती
करहल की राजनीति को लंबे वक्त से करीब से देख रहे अनुभव यादव मिले। सपा-भाजपा के बीच तगड़ी टक्कर को लेकर कहते हैं- इस बार वोट प्रतिशत कम रहा। ऐसे वक्त में चुनाव करवाया गया, जब 6-7% लोग नौकरी करने के लिए बाहर निकल गए थे। वे लोग वापस नहीं आए। घिरोर वाले बेल्ट में सपा के खिलाफ परिणाम आया। अनुजेश को जो वोट मिले, उनके व्यक्तिगत संबंध के चलते मिले। उनकी मां उर्मिला यादव दो बार विधायक रही हैं। इसलिए उनका व्यक्तिगत संबंध बना हुआ है। अनुभव आगे कहते हैं- यहां एक नरेटिव सेट हो चुका है कि भाजपा चुनाव नहीं जीत सकती। इस बार उन्होंने यादवों में घोसी-कमरिया को मुद्दा बनाने की कोशिश की। घोसी उनकी तरफ गए भी, लेकिन पूरे नहीं गए। 2027 में सब सपा में आ जाएंगे। बाकी पार्टी को समीक्षा करनी चाहिए। आखिर जिस पडरिया बूथ पर पिछली बार 88 वोट मिले वहां इस बार सिर्फ 2 वोट कैसे मिले? इसी तरह से कई बूथ हैं। मौजूदा विधायक से नाराजगी भी एक वजह
सपा को कम वोट मिलने के पीछे एक वजह तेज प्रताप को लेकर भी थी। कई इलाकों में जनता उनसे नाराज दिखी। ओम प्रकाश यादव कहते हैं- हमारे गांव में एक लड़के की मौत हुई। तेज प्रताप आए। किसी से कोई बात नहीं की। मोबाइल चलाते रहे। इसके बाद उठे और चल दिए। वह कहते हैं- हम कई बार उनसे मिलने जाते हैं तो इंतजार करते रहते हैं, लेकिन मुलाकात नहीं हो पाती। वह निकलते हैं और गाड़ी में बैठकर चल देते हैं। इसी तरह से कई और लोग ऑफ कैमरा बताते हैं। तेज प्रताप जब सांसद थे, तब भी जनता के बीच बहुत कम जाते थे। कोई जनता दरबार जैसी चीज नहीं रही। उनसे मिलना मुश्किल होता था। इसलिए बहुत सारे लोग अनुजेश की तरफ चले गए। अब अगर 2 साल में खुद को नहीं बदलते और 2027 में दोनों के बीच लड़ाई होती है तो अनुजेश आगे हो सकते हैं। अनुजेश की मां की भावनात्मक अपील से भाजपा को वोट मिला
हमने यहां की सपा नेत्री डॉ. ज्योति यादव से बात की। वह कहती हैं- उपचुनाव सत्ता का चुनाव माना जाता है। भाजपा प्रत्याशी अनुजेश की मां उर्मिला देवी दो बार विधायक रही हैं। वह किसी विकास कार्य को लेकर वोट नहीं मांग रही थीं। वह भावनात्मक अपील कर रही थीं। लोगों से कह रही थीं कि इस चुनाव से न सरकार बन रही न बिगड़ रही। इसलिए आप मेरे बेटे को वोट दीजिए। लोग उनकी बातों में आ गए और वोट दे दिया। बसपा का वोटर जिधर जाएगा, वह मजबूत होगा
हमने मैनपुरी में लंबे वक्त से पत्रकारिता कर रहे कृष्णकांत मिश्रा से बात की। चुनाव में इतनी तगड़ी फाइट को लेकर वह कहते हैं- यह उपचुनाव था, इसलिए ऐसा हुआ। बाकी यहां असली लड़ाई अब बसपा के वोटर्स को लेकर है। कौन इन्हें अपने पाले में कर पाता। जिसके साथ ये जाएंगे, वह मजबूत होगा। अभी फिलहाल ये वोटर्स सपा के साथ दिखते हैं। कृष्णकांत आगे कहते हैं- इस बार मुश्किल तो हुई। मौजूदा सांसद डिंपल यादव उन गांव में भी गईं, जहां सपा के नेता नहीं जाते। लोग परिवार की बहू समझकर स्वागत करते थे। उन्होंने वोट भी किया। हालांकि यह कहना कि 2027 में भी भाजपा इतनी मजबूती से लड़ेगी, ठीक नहीं होगा। जो यादव अभी भाजपा की तरफ गए हैं, वे सपा में आ जाएंगे। क्योंकि, वह चुनाव सत्ता हासिल करने का होगा। ————————– यह खबर भी पढ़ें भाजपा का यादव बनाम यादव कार्ड काम नहीं आया, सपा के वोट बैंक में बीजेपी की सेंध; तेज प्रताप यादव के जीतने की पांच वजह मैनपुरी की करहल सीटी प्रदेश की सबसे हॉट सीट है। यादव बाहुल्य क्षेत्र है। समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जाता है। यहां पर ​​​​सपा प्रत्याशी तेज प्रताप सिंह को ​​​कुल 1,04,207 मत मिले हैं। भाजपा के अनुजेश यादव को 89,503 वोट मिले। पढ़ें पूरी खबर ‘हमारा पूरा गांव यादवों का है। 1985 से अब तक सब सपा में ही थे। लेकिन, अब भेदभाव की राजनीति हो रही। आसपास के गांव में सड़कें बन गईं, लेकिन यहां नहीं बनीं। सपा के नेता सड़क तक आते हैं, फिर लौट जाते हैं। लोग नाराज हैं, इसलिए सब बीजेपी में चले गए। हालांकि यह सही है कि बीजेपी से यादव के अलावा कोई और आता तो हम लोग नहीं जाते।’ करहल विधानसभा के नगला गांव के सतीश बाबू यादव यह बात कहते हैं। सपा का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर उपचुनाव हुआ। सपा अपनी परंपरागत सीट जीतने में कामयाब रही। लेकिन, मुकाबला बेहद कड़ा हुआ। जिस सीट पर 2022 में अखिलेश यादव 67 हजार 504 वोट से जीते, 2024 के लोकसभा में डिंपल यादव करहल से 57 हजार 540 वोटों से आगे रहीं, उस विधानसभा सीट पर तेज प्रताप को महज 14 हजार 725 वोटों से जीत मिली है। 186 बूथ पर सपा भाजपा से पीछे रह गई। दैनिक भास्कर की टीम करहल पहुंची। हमारे सामने तीन सवाल थे। पहला- क्या करहल में सपा की जमीन दरक रही? दूसरा- क्या बीजेपी की तरफ से यादव प्रत्याशी आने से सपा का कोर वोटर भाजपा की तरफ चला जाता है? तीसरा- 2027 में अगर यादव बनाम यादव हुआ तो क्या बीजेपी फतह कर सकती है? पढ़िए पूरी ग्राउंड रिपोर्ट… 43 हजार वोट सपा को कम मिले
मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट। यह समाजवादी की सबसे खास और सेफ सीट मानी जाती है। 2022 के चुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव यहां से मैदान में उतरे। जनता ने एकतरफा वोट किया। उन्हें कुल 1,48,196 वोट मिले। भाजपा की तरफ से केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल मैदान में थे, उन्हें 80 हजार 692 वोट मिले। इस तरह अखिलेश 60.12% वोट के साथ 67,504 वोटों से जीत गए। 2024 के लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव को अकेले करहल विधानसभा सीट पर 57 हजार 540 वोट की लीड मिली थी। भाजपा को यहां 76 हजार वोट मिले थे। अखिलेश कन्नौज के सांसद बन गए, इसलिए यह सीट खाली हुई। 20 नवंबर को उपचुनाव हुआ। सपा प्रत्याशी तेज प्रताप यादव 14,725 वोट से जीत गए। उन्हें 1 लाख 4 हजार 304 वोट मिला। 2022 में अखिलेश यादव को मिले कुल वोट से यह 43 हजार वोट कम है। दूसरी तरफ, बीजेपी प्रत्याशी अनुजेश यादव को 89 हजार 579 वोट मिले। 2022 में भाजपा को यहां 80 हजार 692 वोट मिले थे। 2022 में 66% वोट पड़े थे, इस बार 54% वोट पड़े। 12% वोट कम पड़ने के बावजूद भाजपा को 9 हजार वोट ज्यादा मिले। जहां भाजपा को खाता नहीं खुलता, वहां सैकड़ों वोट मिले
हम करहल विधानसभा के कई गांवों में गए। सबसे पहले कंचनपुर पहुंचे। यहां करीब 500 वोट हैं। अक्सर सारे वोट सपा को जाते रहे हैं। लेकिन, इस बार करीब ढाई सौ वोट बीजेपी को मिले हैं। यहां हमें फौरन सिंह यादव मिले। वह कहते हैं- हमने तो बीजेपी को वोट दिया। दिमाग में आ गया, इसलिए दे दिया। पहले तो सपा को ही वोट देते आए हैं। हार-जीत तो भाग्य की बात है। 2027 में भी अगर दोनों आमने-सामने हुए तो बीजेपी जीत सकती है, क्योंकि बहुत थोड़े अंतर से ही तो हारे हैं। हम इसी गांव में आगे बढ़े। 8 लोग साथ बैठे मिले। इनमें 4 महिलाएं थीं। यहां बैठे रमेश चंद्र यादव कहते हैं- जनता के मन की बात है, भाजपा में जाने का मन किया तो चली गई। 2002 में सोबरन सिंह यादव बीजेपी से प्रत्याशी थे, तो यादव लोगों ने उन्हें वोट देकर जिताया था। जब दोनों तरफ से यादव प्रत्याशी आ जाते हैं तो यादव बंट जाते हैं। यहां बैठने पर कई बातें पता चलीं। यादवों में दो वर्ग घोसी और कमरिया हैं। अनुजेश घोसी थे और तेज प्रताप कमरिया। भाजपा ने इसका प्रचार भी किया। इसका असर भी पड़ा। यादवों में जो घोसी थे, वे भाजपा की तरफ चले गए। हालांकि, घोसी यादवों की संख्या 1 लाख है। लोगों से बात करने पर पता चलता है कि करीब 50% घोसी यादव ही भाजपा की तरफ गए। कमरिया यादवों की संख्या करीब 30 हजार है, लगभग सारे लोग सपा में ही रहे। 186 बूथ पर सपा पीछे, कहीं तो सिर्फ 5-5 वोट मिले
कंचनपुर से निकलकर हम नगला नयां, सकरी, भागपुर, जुला, कलंदनपुर इलाके में गए। यहां की स्थिति एकदम अलग दिखी। नगला में भाजपा को 562 वोट मिले, जबकि सपा को सिर्फ 5 वोट। इसी तरह पडरिया में 776 वोट भाजपा को और 5 वोट सपा को मिले। औडेण्य पडरिया के ही एक बूथ पर बीजेपी को 864 वोट मिले और सपा को महज 2 वोट मिले। 444 बूथों में 186 बूथ ऐसे रहे, जहां भाजपा को सपा के मुकाबले ज्यादा वोट मिले। 2022 में करीब 30 ही बूथ ऐसे थे, जहां सपा पिछड़ी थी। हमें नगला नयां के सतीश बाबू मिले। उन्होंने इस साल भाजपा को वोट दिया है। कहते हैं- हम तो 1985 से सपा को वोट देते आए हैं। पूरा गांव यादवों का है। सपा के नेता अब यहां नजरअंदाज करने लगे हैं। हमारे गांव की सड़क देखिए। बहुत दिन से टूटी है। सपा नेता गांव के बाहर सड़क तक आते हैं और फिर चले जाते हैं। मंदिर तक जाने का रास्ता नहीं बन पाया। अनुजेश जी ने वादा किया, सड़क भी बनवाई। इसलिए गांव के लोग इस बार उनकी तरफ चले गए। हम जिन गांव में थे, वहां कभी भाजपा का बस्ता नहीं लगता था। एजेंट भी नहीं बनते थे, क्योंकि एकतरफा वोट सपा को जाता रहा है। हमने सतीश बाबू से पूछा कि क्या भाजपा से यादव प्रत्याशी लड़ा, इसलिए चले गए? सतीश कहते हैं- यह सच है कि अनुजेश यादव आए, इसलिए हम सभी उनकी तरफ चले गए। अगर कोई दूसरी जाति का प्रत्याशी बीजेपी से आता, तो हम लोग उन्हें वोट नहीं करते। यह सपा की सीट, बीजेपी नहीं जीत सकती
करहल की राजनीति को लंबे वक्त से करीब से देख रहे अनुभव यादव मिले। सपा-भाजपा के बीच तगड़ी टक्कर को लेकर कहते हैं- इस बार वोट प्रतिशत कम रहा। ऐसे वक्त में चुनाव करवाया गया, जब 6-7% लोग नौकरी करने के लिए बाहर निकल गए थे। वे लोग वापस नहीं आए। घिरोर वाले बेल्ट में सपा के खिलाफ परिणाम आया। अनुजेश को जो वोट मिले, उनके व्यक्तिगत संबंध के चलते मिले। उनकी मां उर्मिला यादव दो बार विधायक रही हैं। इसलिए उनका व्यक्तिगत संबंध बना हुआ है। अनुभव आगे कहते हैं- यहां एक नरेटिव सेट हो चुका है कि भाजपा चुनाव नहीं जीत सकती। इस बार उन्होंने यादवों में घोसी-कमरिया को मुद्दा बनाने की कोशिश की। घोसी उनकी तरफ गए भी, लेकिन पूरे नहीं गए। 2027 में सब सपा में आ जाएंगे। बाकी पार्टी को समीक्षा करनी चाहिए। आखिर जिस पडरिया बूथ पर पिछली बार 88 वोट मिले वहां इस बार सिर्फ 2 वोट कैसे मिले? इसी तरह से कई बूथ हैं। मौजूदा विधायक से नाराजगी भी एक वजह
सपा को कम वोट मिलने के पीछे एक वजह तेज प्रताप को लेकर भी थी। कई इलाकों में जनता उनसे नाराज दिखी। ओम प्रकाश यादव कहते हैं- हमारे गांव में एक लड़के की मौत हुई। तेज प्रताप आए। किसी से कोई बात नहीं की। मोबाइल चलाते रहे। इसके बाद उठे और चल दिए। वह कहते हैं- हम कई बार उनसे मिलने जाते हैं तो इंतजार करते रहते हैं, लेकिन मुलाकात नहीं हो पाती। वह निकलते हैं और गाड़ी में बैठकर चल देते हैं। इसी तरह से कई और लोग ऑफ कैमरा बताते हैं। तेज प्रताप जब सांसद थे, तब भी जनता के बीच बहुत कम जाते थे। कोई जनता दरबार जैसी चीज नहीं रही। उनसे मिलना मुश्किल होता था। इसलिए बहुत सारे लोग अनुजेश की तरफ चले गए। अब अगर 2 साल में खुद को नहीं बदलते और 2027 में दोनों के बीच लड़ाई होती है तो अनुजेश आगे हो सकते हैं। अनुजेश की मां की भावनात्मक अपील से भाजपा को वोट मिला
हमने यहां की सपा नेत्री डॉ. ज्योति यादव से बात की। वह कहती हैं- उपचुनाव सत्ता का चुनाव माना जाता है। भाजपा प्रत्याशी अनुजेश की मां उर्मिला देवी दो बार विधायक रही हैं। वह किसी विकास कार्य को लेकर वोट नहीं मांग रही थीं। वह भावनात्मक अपील कर रही थीं। लोगों से कह रही थीं कि इस चुनाव से न सरकार बन रही न बिगड़ रही। इसलिए आप मेरे बेटे को वोट दीजिए। लोग उनकी बातों में आ गए और वोट दे दिया। बसपा का वोटर जिधर जाएगा, वह मजबूत होगा
हमने मैनपुरी में लंबे वक्त से पत्रकारिता कर रहे कृष्णकांत मिश्रा से बात की। चुनाव में इतनी तगड़ी फाइट को लेकर वह कहते हैं- यह उपचुनाव था, इसलिए ऐसा हुआ। बाकी यहां असली लड़ाई अब बसपा के वोटर्स को लेकर है। कौन इन्हें अपने पाले में कर पाता। जिसके साथ ये जाएंगे, वह मजबूत होगा। अभी फिलहाल ये वोटर्स सपा के साथ दिखते हैं। कृष्णकांत आगे कहते हैं- इस बार मुश्किल तो हुई। मौजूदा सांसद डिंपल यादव उन गांव में भी गईं, जहां सपा के नेता नहीं जाते। लोग परिवार की बहू समझकर स्वागत करते थे। उन्होंने वोट भी किया। हालांकि यह कहना कि 2027 में भी भाजपा इतनी मजबूती से लड़ेगी, ठीक नहीं होगा। जो यादव अभी भाजपा की तरफ गए हैं, वे सपा में आ जाएंगे। क्योंकि, वह चुनाव सत्ता हासिल करने का होगा। ————————– यह खबर भी पढ़ें भाजपा का यादव बनाम यादव कार्ड काम नहीं आया, सपा के वोट बैंक में बीजेपी की सेंध; तेज प्रताप यादव के जीतने की पांच वजह मैनपुरी की करहल सीटी प्रदेश की सबसे हॉट सीट है। यादव बाहुल्य क्षेत्र है। समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जाता है। यहां पर ​​​​सपा प्रत्याशी तेज प्रताप सिंह को ​​​कुल 1,04,207 मत मिले हैं। भाजपा के अनुजेश यादव को 89,503 वोट मिले। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर