<p style=”text-align: justify;”><strong>Sambhal Bulldozer Action:</strong> संभल में हिंसा हुए करीब दस दिन हो गए हैं. इस हिंसा के बाद जांच जारी है. लेकिन अब जिले में बुलडोजर एक्शन भी शुरू हो चुका है. मंगलवार को चंदौसी के संभल गेट पर BMG इंटर कॉलेज के सामने बनी अवैध दुकानों को नगर निगम की टीम ने बुलडोजर से ढहा दिया. जिला प्रशासन द्वारा अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया.</p>
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<blockquote class=”twitter-tweet” data-media-max-width=”560″>
<p dir=”ltr” lang=”hi”><a href=”https://twitter.com/hashtag/WATCH?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw”>#WATCH</a> संभल, उत्तर प्रदेश: चंदौसी के संभल गेट पर BMG इंटर कॉलेज के सामने बनी अवैध दुकानों को नगर निगम की टीम ने बुलडोजर से ढहा दिया। जिला प्रशासन द्वारा अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया। <a href=”https://t.co/YlFgOueTlZ”>pic.twitter.com/YlFgOueTlZ</a></p>
— ANI_HindiNews (@AHindinews) <a href=”https://twitter.com/AHindinews/status/1863934165638648158?ref_src=twsrc%5Etfw”>December 3, 2024</a></blockquote>
<script src=”https://platform.twitter.com/widgets.js” async=”” charset=”utf-8″></script> <p style=”text-align: justify;”><strong>Sambhal Bulldozer Action:</strong> संभल में हिंसा हुए करीब दस दिन हो गए हैं. इस हिंसा के बाद जांच जारी है. लेकिन अब जिले में बुलडोजर एक्शन भी शुरू हो चुका है. मंगलवार को चंदौसी के संभल गेट पर BMG इंटर कॉलेज के सामने बनी अवैध दुकानों को नगर निगम की टीम ने बुलडोजर से ढहा दिया. जिला प्रशासन द्वारा अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया.</p>
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<p dir=”ltr” lang=”hi”><a href=”https://twitter.com/hashtag/WATCH?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw”>#WATCH</a> संभल, उत्तर प्रदेश: चंदौसी के संभल गेट पर BMG इंटर कॉलेज के सामने बनी अवैध दुकानों को नगर निगम की टीम ने बुलडोजर से ढहा दिया। जिला प्रशासन द्वारा अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया। <a href=”https://t.co/YlFgOueTlZ”>pic.twitter.com/YlFgOueTlZ</a></p>
— ANI_HindiNews (@AHindinews) <a href=”https://twitter.com/AHindinews/status/1863934165638648158?ref_src=twsrc%5Etfw”>December 3, 2024</a></blockquote>
<script src=”https://platform.twitter.com/widgets.js” async=”” charset=”utf-8″></script> उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यपाल, 7 कैबिनेट मंत्री, दो राज्यमंत्री, एक केंद्र में मंत्री, अजित पवार की मांग पर बड़ा खुलासा
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दिल्ली चुनाव: बदल जाएगी मनीष सिसोदिया की सीट? AAP की दूसरी लिस्ट में हो सकता है इन नेताओं का नाम <p style=”text-align: justify;”><strong>AAP Candidates List for Delhi Election:</strong> दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए आम आदमी पार्टी की दूसरी उम्मीदवार सूची भी जल्द जारी होने वाली है. पार्टी आलाकमान इस लिस्ट में बड़े नेताओं के नाम शामिल कर सकता है. इसके लिए थोड़ी देर में पार्टी की पीएसी बैठक होगी. </p>
<p style=”text-align: justify;”>सूत्रों की मानें तो पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया की पारंपरिक पटपड़गंज इस बार बदल सकती है. हाल ही में शामिल हुए शिक्षक अवध ओझा को इस सीट से टिकट मिल सकता है तो वहीं, मनीष सिसोदिया को जंगपुरा भेजा जा सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>प्रवेश रतन को पटेल नगर से मिल सकता है टिकट</strong><br />वहीं, संभावना जताई जा रही है कि आप में शामिल हुए नए नेताओं को बड़ी सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा. सुरेंद्र पाल सिंह बिट्टू को तिमारपुर से तो जितेंद्र सिंह शंटी शाहदरा आप के टिकट पर चुनावी मैदान में उतर सकते हैं. इसके अलावा, पटेल नगर सीट से प्रवेश रतन के नाम पर मुहर लग सकती है. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>AAP की पहली लिस्ट में 11 नाम</strong><br />आप की पहली लिस्ट में 11 उम्मीदवारों का नाम शामिल था, जिनमें से 6 नाम बीजेपी-कांग्रेस से आए नेताओं के हैं. इनमें सुमेश शौकीन से लेकर. इनमें सुमेश शौकीन से लेकर ब्रह्म सिंह तंवर तक का नाम शामिल हैं. सभी नेताओंं को खुद अरविंद केजरीवाल ने आप में शामिल कराया था. ब्रह्म सिंह तंवर को छत्तरपुर से तो अनिल झा को किराड़ी से टिकट दिया गया है. इसके अलावा, दीपक सिंघला को विश्वास नगर से चुनावी मैदान में उतारा गया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कांग्रेस और बीजेपी के नेता AAP में हुए शामिल</strong><br />गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी और कांग्रेस के कई नेता आम आदमी पार्टी में शामिल हो रहे हैं. कांग्रेस से वीर सिंह धींगान और सुमेश शौकीन, बीजेपी से ब्रह्म सिंह तंवर, सुरेंद्र पाल सिंह बिट्टू और अनिल झा जैसे नेताओं ने हाल ही में आप का दामन थाम लिया है. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>यह भी पढ़ें: <a href=”https://www.abplive.com/states/delhi-ncr/delhi-schools-bomb-threat-email-demands-30-thousand-dollars-ransom-2838850″>’बम बहुत छोटे हैं दिखेंगे नहीं’, दिल्ली के स्कूलों को आया धमकी भरा ईमेल, 30 हजार डॉलर की मांग</a></strong></p>
बिहार को नीतीश सरकार नहीं कोई और चला रहा? RJD ने तंज कसते हुए लिया इस ‘शक्ति’ का नाम
बिहार को नीतीश सरकार नहीं कोई और चला रहा? RJD ने तंज कसते हुए लिया इस ‘शक्ति’ का नाम <p style=”text-align: justify;”><strong>RJD Attack on Nitish Kumar Government: </strong>बिहार में हो रही आपराधिक घटनाओं को लेकर विपक्ष नीतीश सरकार पर हमलावर है. विपक्ष के नेताओं ने यहां तक कह दिया है कि सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) से बिहार नहीं संभल रहा है. अब आरजेडी के एमएलसी सुनील कुमार (RJD MLC Sunil Kumar) ने सोमवार (22 जुलाई) को सदन के बाहर पत्रकारों से बातचीत में कहा कि बिहार के 13 करोड़ लोगों से पूछिए, आज अदृश्य शक्ति सरकार चला रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>'</strong><strong>कब किसकी हत्या हो जाए यह कोई नहीं जानता</strong><strong>'</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>सुनील कुमार ने कहा कि जिस तरह से लगातार हत्या हो रही है, बलात्कार हो रहा है, डकैती हो रही है, कानून-व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है, कोई देखने वाला नहीं है. ये समझिए कि परमात्मा सरकार चला रहे हैं. ये बहुत ही वीभत्स स्थिति है. कब किसकी हत्या हो जाए यह कोई नहीं जानता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कांवड़ यात्रा पर मचे सियासी बवाल पर क्या बोले</strong><strong>?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>वहीं दूसरी ओर यूपी में कांवड़िया पथ पर दुकानदारों को नेम प्लेट लगाने का आदेश जारी हुआ है. दुकानदारों ने लगाया भी है. अब बीजेपी के नेता इसको बिहार में भी लागू करने की मांग कर रहे हैं. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सुनील कुमार ने कहा कि इन लोगों का एजेंडा गाय, गोबर और गंगाजल तक ही सीमित है. इससे ऊपर वो लोग बढ़ नहीं पाते हैं. वो लोग कभी शंकर भगवान तो कभी हनुमान तो कभी <a title=”राम मंदिर” href=”https://www.abplive.com/topic/ram-mandir” data-type=”interlinkingkeywords”>राम मंदिर</a> के नाम पर ये लोग चुनाव लड़ते हैं. ये क्या बोलते हैं इनका अपना एजेंडा है. इस विषय पर हमको कोई प्रतिक्रिया नहीं देनी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>उधर आज से बिहार विधानमंडल के सत्र की शुरुआत हुई है. सदन में तेजस्वी यादव की अनुपस्थिति को लेकर सुनील कुमार से सवाल किया गया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. आरजेडी एमएलसी ने इस पर चुप्पी साध ली. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>यह भी पढ़ें- <a href=”https://www.abplive.com/states/bihar/lalu-prasad-yadav-raised-questions-on-law-and-order-in-bihar-targeted-cm-nitish-kumar-government-2742841″>Bihar Law and Order: प्रदेश में बढ़ते अपराध पर लालू यादव ने CM नीतीश को घेरा, कहा- ‘बिहार में सरकार…'</a></strong></p>
28 साल पहले भेड़िया खा गया था 38 बच्चे:हर 5वें दिन एक बच्चे का शिकार करता; एक्सपर्ट बोले- बहराइच वाला हो सकता है बूढ़ा
28 साल पहले भेड़िया खा गया था 38 बच्चे:हर 5वें दिन एक बच्चे का शिकार करता; एक्सपर्ट बोले- बहराइच वाला हो सकता है बूढ़ा बहराइच में इस वक्त भेड़ियों का आतंक है। 9 बच्चों और एक महिला को शिकार बना चुके हैं। इन हमलों में करीब 40 लोग घायल हुए हैं। वन विभाग हमलावर 4 भेड़ियों को पकड़ चुका है। जिले के करीब 50 गांवों में गली-गली पुलिस और वन विभाग की टीमें तैनात कर दी गई हैं। बच्चों की मां लाठी लेकर रात भर उनके सिरहाने बैठकर हिफाजत कर रही हैं। पुरुष दिन-रात पुलिस-प्रशासन के साथ खेतों से लेकर घर तक की रखवाली में लगे हैं। लेकिन, हमले बंद नहीं हुए हैं। सवाल उठता है, क्या यह पहली बार है कि प्रदेश का एक हिस्सा भेड़ियों के खौफ में है? क्या यह पहली बार है, जब इंसान और भेड़िए आमने-सामने आ गए हैं? पहले कब और कौन से हिस्से भेड़ियों के हमलों के शिकार हुए हैं? इन सवालों के जवाब संडे बिग स्टोरी में जानिए- सबसे पहले प्रदेश में भेड़ियों के दो बड़े हमलों की कहानी 1996 में भेड़ियों ने 38 बच्चों का किया शिकार
साल 1996 यानी आज से करीब 28 साल पहले। यूपी के पूर्वी हिस्से के तीन जिले प्रतापगढ़, जौनपुर और सुल्तानपुर में एक के बाद एक बच्चों की हत्या होने लगी। हर बच्चे की लाश क्षत-विक्षत मिलती। सिर्फ 6 महीने के अंदर 38 बच्चों की छत-विक्षत लाशें मिलीं। बच्चों के शवों से बाहरी अंग गायब मिलते। शरीर पर लंबे नुकीले दांतों और नाखूनों के निशान मिलते थे। बच्चों के अलावा इन हमलों में 78 लोग घायल हुए थे। तब खौफ का आलम ऐसा था कि कोई इसे भेड़िए का काम कहता तो कोई शैतान मानने लगा, तो कोई इच्छाधारी भेड़िया बताने लगा। डर के साए में ऐसा अंधविश्वास फैला कि लोगों ने गांव में आने वाले भिखारियों और फेरी लगाकर सामान बेचने वालों को शक में पीटकर मार डाला। हालांकि, लोगों को जल्द ही इस बात का अंदाजा लग गया कि कोई जंगली जानवर है, जो बच्चों के पीछे पड़ा है। लोग दिन के उजाले में जंगली जानवर को खोजते, लेकिन वह नहीं मिलता। रात में वह अपने बच्चों को बचाने की कोशिश करते, लेकिन हर दो-तीन दिन में कोई न कोई बच्चा गायब हो जाता। फिर अगले दिन उसका शव मिलता। उस दौर में हमलों से बच निकलने वाले लोगों ने बताया कि हमला करने वाला जानवर भेड़िया जैसा था। तब तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी नहीं थे कि एक-दूसरे को जल्दी सचेत कर दिया जाता। पहरा कैसे देना है, इसके लिए सब लोग एक जगह पर इकट्ठा होते। यहीं सारी रणनीति तय होती। भेड़िए मारने के लिए वन विभाग को उतारने पड़े शार्प शूटर्स
भेड़ियों के इन हमलों से सुल्तानपुर, जौनपुर और प्रतापगढ़ के 35 गांव डर के साए में जीने लगे थे। 6 महीने में मरने वाले बच्चों की संख्या 38 पहुंच गई। इसके अलावा 40 लोग हमले में किसी तरह बच गए थे। इसमें भी 20 से ज्यादा बच्चे थे। वन विभाग और पुलिस प्रशासन की कई टीमें उतारी गईं। कुछ टीमों का काम लोगों को जागरूक करना और अफवाहों से बचाने का था। क्योंकि, इस वक्त तक इस बात की पुष्टि हो गई थी कि मारने वाला भेड़िया ही है। आखिर में भेड़ियों को कंट्रोल करने के लिए बड़ी संख्या में वन विभाग के शूटर्स और पुलिस की टीम लगी। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट लगे, तब जाकर आदमखोर भेड़िए को मारा गया था। इस पूरी घटना को लेकर 1997 में प्रसिद्ध वाइल्ड लाइफ साइंटिस्ट और वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून में तब डीन रहे वाईवी झाला ने रिसर्च किया था। झाला कहते हैं- लगातार बच्चों के गायब होने और फिर मिल रही लाश के बीच यह आदेश आ गया कि भेड़िया जिंदा पकड़ में आए तो ठीक, वरना मार दिया जाए। वन विभाग की तरफ से कई शॉर्प शूटर बुलाए गए। भेड़िए का कहर 1300 स्क्वायर किलोमीटर में था। इसलिए हर हिस्से की रेकी की गई। अपने शोधपत्र में वाईवी झाला इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह हमला भेड़ियों के झुंड का नहीं, सिर्फ एक भेड़िए ने किया था। इच्छाधारी भेड़िया समझ भिखारी और फेरी वालों को मार दिया
झाला कहते हैं- उस वक्त जागरूकता की कमी थी। लोगों में यह चर्चा फैल गई कि यह सब किसी इच्छाधारी आदमी का काम है। वह दोपहर में आता है। इंसान जैसा ही दिखता है। उसके बड़े-बड़े बाल और नाखून हैं। दिन में इंसान रहता है और रात में भेड़िया बन जाता है। दिन में जिस गांव में वह जाता है, रात में उसी गांव में बच्चों की हत्या करता है। इसका नुकसान यह हुआ कि फेरी वालों को लोग शक की नजर से देखने लगे। भिखारी आते, तो उन पर भी गांव वाले शक करे लगे। उन्हें वेयरवूल्फ समझकर मारा जाने लगा। सिर्फ फेरीवाले ही नहीं, कई ऐसे लोगों की भी हत्या की गई जिनकी पड़ोसी गांव के किसी व्यक्ति से दुश्मनी थी। उस वक्त अफवाह का फैक्ट चेक नहीं होता था। इसलिए अफवाह को लगातार हकीकत माना जाने लगा। 2002 से 2005 के बीच भेड़ियों ने 130 बच्चों को अपना निवाला बनाया
1996 की घटना के बाद प्रदेश नवंबर 2002 से जून 2005 तक एक बार फिर भेड़ियों के हमलों को लेकर चर्चा में आ गया था। इस बार जगह थी बहराइच से लगा बलरामपुर जिला। यहां ढाई साल के अंदर भेड़ियों ने 130 बच्चों को मार डाला। 150 से ज्यादा बच्चे घायल हुए थे। बलरामपुर के सोहेलदेव वाइल्ड लाइफ सेंचुरी से लगे 125 गांव तब भेड़ियों के हमलों से सहम गए थे। 2003 में सिर्फ फरवरी और अगस्त के बीच भेड़ियों ने 10 बच्चों को अपना शिकार बनाया था। कहा जाता है, तब खौफ का आलम कुछ ऐसा था कि बच्चों के रोने पर मां कहती थी- चुप हो जा, नहीं तो भेड़िया आ जाएगा। वन विभाग को आखिरकार भेड़ियों का मारना पड़ा
उस वक्त भी वन विभाग ने भेड़ियों का आतंक खत्म करने के लिए शार्प शूटरों की एक लंबी फौज तराई इलाके में उतार दी थी। वन विभाग के शूटर भेड़ियों की खोज में क्षेत्र में दिन-रात गश्त करते थे। आखिरकार जून, 2005 में शार्प शूटरों की फौज को अपने मकसद में कामयाबी मिली। शार्प शूटरों ने आदमखोर भेड़ियों के एक कुनबे मार गिराया था। भारत- नेपाल सीमा से सटे हर्रैया, ललिया, महाराजगंज तराई और तुलसीपुर थाना क्षेत्र के 125 गांव आज भी तब के भेड़ियों के आतंक से प्रभावित परिवारों की कहानी बताते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश में ही इंसानों पर हमला करते हैं भेड़िए
भेड़ियों को लेकर ब्रिटिश रिकॉर्ड से पता चलता है कि पंजाब, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे दक्कन क्षेत्र में भी भेड़िए पाए जाते हैं। लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से यहां इंसानों पर हमले का रिकॉर्ड नहीं मिलता। इन क्षेत्रों में वो बड़ी संख्या में पालतू जनवरों को अपना शिकार बनाते थे। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश समेत बिहार, मध्य प्रदेश और बंगाल में ब्रिटिश राज के समय से ही इंसानों पर भेड़िए के हमले का रिकॉर्ड मिलता है। इसका ताजा उदाहरण है, बीते 6 सितंबर को मध्यप्रदेश के आष्टा में एक ही परिवार के 5 लोगों पर भेड़ियों के हमले की खबर। हमले में ये सभी लोग घायल हुए। 1985-86 के बीच आष्टा में ही 4 वयस्क भेड़ियों ने 17 बच्चों को शिकार बनाया था। तब चारों भेड़ियों को मार गिराया गया था। उनके दो बच्चों के पालन-पोषण का जिम्मा गांव के ही आदिवासियों ने उठाया। पूर्व सिविल सेवक अजय सिंह ने साल, 2000 में इस पूरे घटनाक्रम का डॉक्यूमेंटेशन किया। बात बिहार की करें तो अप्रैल 1993 से अप्रैल 1995 के बीच अविभाजित बिहार में हजारीबाग पश्चिम, कोडरमा और लातेहार वन मंडल में छह भेड़ियों ने 60 बच्चों का शिकार किया था। शोधकर्ता केएस राजपुरोहित ने 1999 में इस घटना को ‘चाइल्ड लिफ्टिंग: वूल्फ्स इन हजारीबाग’ प्रकाशित किया। सवाल उठता है कि आखिर बहराइच समेत कई जिलों में 1996 और 2002-2005 के बीच भेड़ियों ने इंसानों का शिकार करना क्यों चुना? इसके जवाब में वाइल्ड लाइफ साइंटिस्ट डॉ. वीईवी झाला 2 पॉइंट में बताते हैं कि भेड़िए अपना मूल भोजन छोड़कर कैसे आदमखोर बन जाते हैं… 1: जहां भेड़िए का आतंक, वहां उनका मूल भोजन खत्म झाला कहते हैं- बहराइच के जिन हिस्सों में इस वक्त भेड़िए का आतंक है, वहां मैं काम कर चुका हूं। पहले इस तरफ हिरण और खरगोश चारों तरफ दिख जाते थे, लेकिन अब नहीं दिखाई देते। यह दोनों भेड़िए के मूल भोजन का हिस्सा रहे हैं। अब अगर इसकी कमी होगी तो स्वाभाविक है कि वह अपने भोजन की तलाश कहीं और करेंगे। बकरी के बच्चों पर हमला नहीं करने के सवाल पर वह कहते हैं कि यहां बकरी और उसके बच्चों को बहुत ज्यादा सुरक्षा दी जाती है। कई स्थानों पर तो लोग अपने बच्चों से भी ज्यादा सुरक्षित बकरी के बच्चों को रखते हैं। आपने देखा होगा कि घर के बच्चे बाहर सो रहे और बकरी घर में किसी सुरक्षित जगह पर बंधी है। इसकी वजह यह है कि यहां गरीबी ज्यादा है। मजदूरी और बकरी पालन ही जीवन जीने का जरिया है। ऐसे में भेड़िए को बकरी या खरगोश से ज्यादा आसानी से इंसानी बच्चे मिल जा रहे हैं। 2: भेड़िया बूढ़ा, दांत टूटा हुआ या विकलांग हो सकता है बहराइच को लेकर वाईवी झाला अपने अनुभव के आधार पर कहते कि हो सकता है हमला करने वाला भेड़िया बूढ़ा हो गया हो या पैर से विकलांग हो। वह जंगल में शिकार करने की स्थिति में नहीं हो। जानवरों को पकड़ पाने के लिए दौड़ न लगा पा रहा हो। या फिर उसका दांत टूटा हो। जानवरों को न खा पा रहा हो, इसलिए वह इंसानी बच्चों को अपना शिकार बना रहा है। समूह से निकाले जाने पर भेड़िए हिंसक हो जाते, यह सच नहीं
हमने झाला से पूछा कि तमाम जगहों पर कहा गया कि भेड़िए को समूह से बहिष्कृत कर देने पर वह हिंसक हो जाते हैं। इसके जवाब में वह कहते हैं- यह सच है कि भेड़िए समूह में रहते हैं। इनके मां-बाप होते हैं। बच्चे होते हैं। मजबूत भेड़िए शिकार करते हैं और इनके खाने की भी व्यवस्था करते हैं। लेकिन, यह कहना कि किसी को समूह से निकाल दिया गया इसलिए वह अब हिंसक हो गया, इसे मैं नहीं मानता। भेड़िया पकड़ना है तो आसानी से भोजन उपलब्ध कराना होगा
एक्सपर्ट्स कहते हैं- अगर आदमखोर भेड़िए को पकड़ना है तो हर संभावित जगह पर उसके लिए आसान भोजन उपलब्ध कराना होगा। यानी बकरी के बच्चों को इनके संभावित ठिकानों के आसपास रखना होगा। कैमरे या फिर छिपकर निगरानी करनी होगी। ऐसा करके इसे पकड़ा भी जा सकता है और इन्हें इंसानी बस्ती में आने से भी रोका जा सकता है। वन विभाग ने आदमखोर को पकड़ने के लिए झोंकी पूरी ताकत
वन विभाग की 9 टीमों के 200 कर्मचारी भेड़ियों को पकड़ने में लगे हैं। इसके अलावा 3 DFO (बाराबंकी, कतर्निया घाट, बहराइच) को भी लगाया गया है। आदमखोर जानवरों की तलाश में वन विभाग CCTV और ड्रोन कैमरों के जरिए भी निगरानी कर रहा है। पुलिस और राजस्व विभाग की भी टीमों को लगाया गया है। 4 भेड़ियों को पकड़ा भी गया है, जिसमें से एक की मौत भी हो चुकी है। ये भी पढ़ें… बहराइच में भेड़िया ज्यादातर के हाथ-पैर खा गया:पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर बोले-किसी लाश पर दांतों की संख्या 8 तो किसी पर 20 जंगली जानवर ने बहुत ही निर्ममता से मारा था साहब ! ज्यादातर मरने वालों के हाथ-पैर खा गया। सभी की गर्दन पर गहरे निशान थे। कुछ के तो सीने और पेट का हिस्सा भी खा गया। लेकिन, हर लाश पर दांतों की संख्या अलग-अलग थी। लग रहा था, शिकार अलग-अलग भेड़िए ने किया है। पूरी खबर पढ़ें