यमुनानगर जिले के कस्बा छछरौली में स्कूल जा रही छात्राओं से छेड़छाड़ का मामला आया सामने है। छेड़छाड़ के आरोपी युवक की लोगों ने जमकर की धुनाई। जिसकी वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। महिला थाना पुलिस ने आरोपी सचिन व बंटी नाम के युवकों पर केस दर्ज किया है। काफी समय से दोनों करते है पीछा जानकारी के अनुसार यमुनानगर के छछरौली क्षेत्र की छात्राएं स्कूल में जा रही थी। जहां पर एक किशोरी के साथ बाइक पर आए सचिन व बंटी नामक युवक ने छेड़छाड़ की, उनका रास्ता रोका। किशोरी ने बताया कि काफी समय से दोनों युवक उसका पीछा कर रहे हैं। कई बार उनका विरोध किया, तो वह उनसे अभद्रता करने लगते। आज वह अपनी सहेलियों के साथ स्कूल जा रही थी। तभी आरोपियों ने उसका रास्ता रोका और छेडछाड़ की। वहीं जानकारी पाकर छात्राओं के परिजन भी मौके पर पहुंचे। पुलिस ने केस दर्ज कर जांच की शुरू मौके पर पहुंचे परिजनों ने दोनों युवकों में से एक युवक को पकड़ लिया, जबकि दूसरा भाग निकला। पकड़े गए युवक की भरे बाजार में जमकर पिटाई की गई। छात्राओं ने भी युवक को पीटा। एक महिला ने चप्पलों से युवक की पीटाई की। जिसके बाद महिला थाना पुलिस को शिकायत दी गई। महिला थाना पुलिस ने दोनों आरोपियों पर केस दर्ज किया है और आगामी करवाई शुरू कर दी है। यमुनानगर जिले के कस्बा छछरौली में स्कूल जा रही छात्राओं से छेड़छाड़ का मामला आया सामने है। छेड़छाड़ के आरोपी युवक की लोगों ने जमकर की धुनाई। जिसकी वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। महिला थाना पुलिस ने आरोपी सचिन व बंटी नाम के युवकों पर केस दर्ज किया है। काफी समय से दोनों करते है पीछा जानकारी के अनुसार यमुनानगर के छछरौली क्षेत्र की छात्राएं स्कूल में जा रही थी। जहां पर एक किशोरी के साथ बाइक पर आए सचिन व बंटी नामक युवक ने छेड़छाड़ की, उनका रास्ता रोका। किशोरी ने बताया कि काफी समय से दोनों युवक उसका पीछा कर रहे हैं। कई बार उनका विरोध किया, तो वह उनसे अभद्रता करने लगते। आज वह अपनी सहेलियों के साथ स्कूल जा रही थी। तभी आरोपियों ने उसका रास्ता रोका और छेडछाड़ की। वहीं जानकारी पाकर छात्राओं के परिजन भी मौके पर पहुंचे। पुलिस ने केस दर्ज कर जांच की शुरू मौके पर पहुंचे परिजनों ने दोनों युवकों में से एक युवक को पकड़ लिया, जबकि दूसरा भाग निकला। पकड़े गए युवक की भरे बाजार में जमकर पिटाई की गई। छात्राओं ने भी युवक को पीटा। एक महिला ने चप्पलों से युवक की पीटाई की। जिसके बाद महिला थाना पुलिस को शिकायत दी गई। महिला थाना पुलिस ने दोनों आरोपियों पर केस दर्ज किया है और आगामी करवाई शुरू कर दी है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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रोजाना 30 सिगरेट पीते थे भूपेंद्र हुड्डा:डिप्टी PM देवीलाल को हराया; CM बने तो बेटे को अमेरिका से बुलाकर सांसद बनवाया 27 फरवरी 2005, हरियाणा विधानसभा चुनाव के वोट गिने गए। कांग्रेस ने 90 में 67 सीटें जीत लीं। ओमप्रकाश चौटाला की सत्ताधारी पार्टी इनेलो 9 सीटों पर सिमट गई। 9 साल बाद कांग्रेस की वापसी हुई। अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चार बड़े दावेदार थे- तीन बार मुख्यमंत्री रहे चौधरी भजनलाल, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मुख्यमंत्री चौटाला को हराने वाले रणदीप सुरजेवाला और उचाना कलां से विधायक बीरेंद्र सिंह। वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1 मार्च 2005 को सीएम के नाम पर रायशुमारी के लिए दिल्ली से तीन ऑब्जर्वर- कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी, राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री पीएम सईद हरियाणा पहुंचे। चंड़ीगढ़ में बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के विधायकों और प्रदेश के सांसदों से नए मुख्यमंत्री को लेकर वन टु वन सवाल-जवाब हुए। बैठक में भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन और कुलदीप भी मौजूद थे। तब चंद्रमोहन विधायक और कुलदीप सांसद थे। बैठक के बाद ऑब्जर्वर्स ने कहा- ‘कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुख्यमंत्री पर अंतिम फैसला लेंगी।’ अगले दिन यानी, 2 मार्च को सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंपी गई। 3 मार्च को सोनिया और ऑब्जर्वर्स के बीच लंबी बैठक हुई। 4 मार्च 2005, दिल्ली के पार्लियामेंट अनेक्सी में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के 67 विधायकों में से 47 बैठक में शामिल हुए। भजनलाल सहित उनके समर्थक 20 विधायक नहीं पहुंचे। 90 मिनट चली बैठक के बाद जर्नादन द्विवेदी ने ऐलान किया- कल शाम 5:30 बजे भूपेंद्र हुड्डा राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।’ 5 मार्च 2005 को हुड्डा हरियाणा के 9वें मुख्यमंत्री बन गए। हुड्डा लगातार 2 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री और 4 बार सांसद रहे। उनके पिता रणबीर हुड्डा 3 बार सांसद और एक बार हरियाणा सरकार में मंत्री रहे। भूपेंद्र के बेटे दीपेंद्र हुड्डा चौथी बार लोकसभा पहुंचे हैं। आज हुड्डा परिवार की तीसरी पीढ़ी राजनीति में है। हरियाणा के ताकतवर राजनीतिक परिवारों की सीरीज ‘परिवार राज’ के छठे एपिसोड में पढ़िए हुड्डा कुनबे की कहानी… जुलाई 1947, आजादी की तारीख तय हो चुकी थी। अलग-अलग जेलों में बंद नेताओं को छोड़ा जा रहा था। इस दौरान दिल्ली से 81 किलोमीटर दूर रोहतक के सांघी गांव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक संदेश आया- ‘गांधीवादी नेता रणबीर सिंह को देश की संविधान सभा में भेजा जा रहा है।’ 26 नवंबर 1914, को रोहतक में जन्मे रणबीर सिंह माता-पिता की तीसरी संतान थे। पिता चौधरी मातूराम राजनीति में सक्रिय थे। वे रोहतक में कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे आर्य समाज में शामिल होने वाले शुरुआती लोगों में शामिल थे। रणबीर के बचपन और शिक्षा पर भी आर्य समाज का प्रभाव था। 1937 में दिल्ली के रामजस कॉलेज से बीए पास करने के बाद वे सोच में पड़ गए कि नौकरी करें, वकालत करें या फिर खेती-बाड़ी। फिर सबकुछ छोड़कर वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। महात्मा गांधी का संयुक्त पंजाब में दौरा हुआ तो रणबीर उनसे जुड़ गए। उन्हें तीन साल जेल की सजा हुई। दो साल तक नजरबंद रखा गया। वे रोहतक, अंबाला, हिसार, फिरोजपुर, लाहौर, मुल्तान और सियालकोट की जेलों में कैद रहे। आजादी के बाद हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात यानी मेव बाहुल्य इलाकों में दंगे शुरू हो गए। बताया जाता है कि मेव जाति के लोग मूल रूप से राजपूत, जाट, अहीर और मीणा जाति के थे, लेकिन 12वीं सदी के बीच उन्होंने इस्लाम अपना लिया। दंगों की वजह से मेव समुदाय के लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया। पंजाब विधानसभा के सदस्य और मेवात के रहने वाले चौधरी यासीन खान मेवातियों के इस फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने इसकी जानकारी चौधरी रणबीर सिंह को दी। रणबीर सिंह, यासीन को लेकर महात्मा गांधी के पास पहुंचे। 19 दिसंबर 1947 को गांधी उनके साथ मेवात पहुंचे। गांधी ने कहा- ‘मेव कौम हिंदुस्तान के रीढ़ की हड्डी है। किसी से डरना नहीं है। आज से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।’ गांधी की अपील का असर हुआ और लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला बदल लिया। हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात एरिया में आज भी मेव समुदाय की बड़ी आबादी है। इन इलाकों में रणबीर सिंह का मजबूत प्रभाव था। 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। रणबीर रोहतक से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1957 में वे दूसरी बार रोहतक से चुने गए। इसके बाद 1962 में वे संयुक्त पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए। उन्हें प्रताप सिंह कैरों सरकार में बिजली, सिंचाई, पीडब्ल्यूडी और स्वास्थ्य जैसे महकमों की जिम्मेदारी दी गई। भाखड़ा-नांगल पावर प्रोजेक्ट में उनका अहम योगदान रहा। इंदिरा की पसंद होने के बाद भी सीएम नहीं बन पाए रणबीर सिंह 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। मुख्यमंत्री पद के लिए तीन दावेदार थे- रणबीर सिंह, भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंद्र सिंह। रणबीर सिंह अपनी आत्मकथा ‘स्वराज के स्वर’ में लिखते हैं- ‘लोग मेरे पास आए और कहने लगे, ‘आप कैसे बैठे हैं? आप सबसे ज्यादा तर्जुबेकार हैं। पंजाब में सीनियर मंत्री रहे हैं। आपसे ज्यादा योग्य यहां कौन है? मैंने जवाब दिया- सब योग्य हैं। मैंने आज-तक सत्ता के लिए भागदौड़ नहीं की। अब क्यों करूं?’ रणबीर लिखते हैं- ‘मैं सब कुछ तटस्थ भाव से देखता रहा। इंदिरा गांधी मेरी वरिष्ठता और देश के लिए जो कुछ भी मैंने किया था, उसे देखते हुए मुझे मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं। उस वक्त गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे। वह पंजाब-हरियाणा के मामलों को देख रहे थे। इंदिरा उनकी बात सुन लेती थीं। उन्होंने भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बनाने में पूरा जोर लगा दिया।’ इस तरह भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले सीएम बने और रणबीर सिंह कैबिनेट मंत्री। तब रणबीर सिंह 52 साल के थे। उन्हें लगने लगा था कि वे ज्यादा दिन राजनीति नहीं कर पाएंगे। बड़े बेटे को चुनाव में उतारा, लेकिन जीत नहीं दिला सके साल 1972, कांग्रेस में दो फाड़ हो चुका था। कांग्रेस (आर) यानी इंदिरा का गुट और कांग्रेस (ओ) यानी सिंडिकेट नेताओं का गुट। तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। रणबीर ने बड़े बेटे प्रताप सिंह को कांग्रेस (आर) के टिकट पर रोहतक जिले की किलोई सीट से चुनाव में उतारा, लेकिन वे हार गए। कुछ ही सालों बाद उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। इधर, छोटे बेटे भूपेंद्र वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहतक कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे थे। वे कॉलेज के वक्त ही कांग्रेस से जुड़ गए थे। राजीव गांधी ने लिस्ट में भूपेंद्र हुड्डा का नाम लिखा, भजनलाल ने कटवा दिया साल 1982, भारत एशियाई खेलों की मेजबानी कर रहा था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी जिम्मेदारी राजीव गांधी को सौंपी थी। उसी साल हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होने थे। सूबे की कमान चौधरी भजनलाल के हाथों में थी। राजीव गांधी ने हरियाणा से 10-12 युवा नेताओं की लिस्ट तैयार की। इसमें भूपेंद्र हुड्डा का भी नाम था। इसके बारे में भजनलाल को पता चला, तो उन्होंने कांग्रेस नेता सीताराम केसरी से कहकर लिस्ट से हुड्डा का नाम हटवा दिया। राजीव के पास दोबारा लिस्ट आई। उन्होंने फिर से हुड्डा का नाम जुड़वा दिया। विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा किलोई सीट से उतरे। राजीव ने उनके समर्थन में रैली की, लेकिन वे हार गए। 1987 में उन्हें दोबारा किलोई से टिकट मिला। फिर से हुड्डा हार गए। हुड्डा एक इंटरव्यू में बताते हैं- ‘चौधरी भजनलाल को मेरे पिता के सपोर्ट से पहली बार टिकट मिला था, लेकिन मेरी बारी आई तो मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अड़चनें खड़ी कीं। पॉलिटिकल बैकग्राउंड का मुझे फायदा मिला। दादा और पिता की गांधी परिवार से नजदीकियां रहीं। इसलिए 1982 में हारने के बाद भी 1987 मुझे टिकट दिया गया।’ 1991 में पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल को हराकर जायंट किलर बने भूपेंद्र हुड्डा वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1991 में लोकसभा के साथ ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। भूपेंद्र हुड्डा लगातार तीसरी बार किलोई से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। इस सीट पर भजनलाल के करीबी कृष्णमूर्ति हुड्डा भी दावेदारी जता रहे थे। भूपेंद्र हुड्डा के ममेरे भाई और राजीव गांधी के करीबी बीरेंद्र सिंह तब टिकट वितरण में अहम भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने हुड्डा को विधानसभा की बजाय लोकसभा चुनाव लड़ने की सलाह दी। उन्हें रोहतक से टिकट मिला। यहां उनका मुकाबला पूर्व उप प्रधानमंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके चौधरी देवीलाल से था। हुड्डा करीब 30 हजार वोटों से चुनाव जीत गए। देवीलाल को हराना बहुत बड़ी बात थी। इसके बाद हुड्डा जाइंट किलर कहलाने लगे। इसके बाद 1996 और 1998 में भी हुड्डा ने देवीलाल को हराकर हैट्रिक लगाई, लेकिन 1999 में वे देवीलाल की पार्टी INLD के उम्मीदवार इंदर सिंह से हार गए। उस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हरियाणा में खाता नहीं खोल पाई थी। भजनलाल की रैली में हुड्डा के साथ धक्का-मुक्की, कुर्ता भी फट गया साल 1997, प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद भूपेंद्र हुड्डा ने गोहाना में जनसभा की। उसमें भजनलाल भी शामिल हुए, लेकिन उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया। भजनलाल को काफी ठेस पहुंची। इसके बाद दोनों के अनबन की खबरें खुलकर सामने आने लगीं। कांग्रेस आलाकमान ने फरमान जारी किया कि प्रदेश में कांग्रेस के कार्यक्रमों की अध्यक्षता हुड्डा ही करेंगे। भजनलाल को भी पार्टी के कार्यक्रमों में हुड्डा को अध्यक्षता करने के लिए बुलाना होगा। साथ ही एक पर्यवेक्षक भी रखना होगा, ताकि कोई गड़बड़ी नहीं हो। करीब चार साल बाद। साल 2001, भजनलाल ने भिवानी के किरोड़ीमल पार्क में चौटाला सरकार के खिलाफ एक रैली रखी। भूपेंद्र हुड्डा को इस रैली की अध्यक्षता करनी थी। सुनियोजित तरीके से आगे की 300-400 कुर्सियों पर भजनलाल खेमे के कार्यकर्ताओं को बैठाया गया। थोड़ी देर बाद हुड्डा अपने समर्थकों के साथ मंच पर पहुंचे। हुड्डा ने जैसे ही बोलना शुरू किया भजनलाल समर्थक नारेबाजी करने लगे। जबरदस्त हूटिंग शुरू हो गई। हुड्डा का बोलना मुश्किल हो गया। उनके साथ धक्का-मुक्की भी हुई, जिसमें उनका कुर्ता फट गया। बड़ी मुश्किल से वे रैली से बचकर निकले। चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया, मुख्यमंत्री बने हुड्डा 2005 विधानसभा चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया। भूपेंद्र टिकट बंटवारे की स्क्रीनिंग कमेटी में भी नहीं थे। भजनलाल ने अपने करीबियों को टिकट दिलवाए। कांग्रेस ने 67 सीटें जीतीं। भजनलाल को उम्मीद थी कि वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे। विधायकों को साधने के लिए उन्होंने अपने बेटे कुलदीप को लगा रखा था, लेकिन विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर आम सहमति नहीं बन पाई। तय हुआ कि आलाकमान मुख्यमंत्री पद का फैसला करेगा। यहां भूपेंद्र हुड्डा के सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल से संबंध बहुत काम आए। 3 मार्च को भजनलाल को संदेश मिला कि आलाकमान ने भूपेंद्र हुड्डा को सीएम बनाने का फैसला किया है। बदले में उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनने, छोटे बेटे को केंद्रीय मंत्री और बड़े बेटे को डिप्टी सीएम बनाने का ऑफर दिया गया। भजनलाल अड़ गए। उन्होंने दावा किया कि 37 विधायक उनके साथ हैं। अगर किसी और को सीएम बनाया जाता है, तो तीन महीने के अंदर वे सरकार गिरा देंगे। उनके समर्थकों ने दिल्ली में हंगामा भी किया, लेकिन अहमद पटेल सोनिया गांधी को ये समझाने में कामयाब रहे कि अगर इस समय वे झुक गईं तो पार्टी पर उनकी पकड़ कमजोर हो जाएगी। बाकी राज्यों में भी बगावत हो सकती है। इधर चौधरी भजनलाल सारे दांवपेच आजमा चुके थे। आखिर में उन्होंने भी इस फैसले को मान लिया। उनके बड़े बेटे चंद्रमोहन को डिप्टी सीएम बनाया गया। कभी चेन स्मोकर थे हुड्डा, रोज 30 सिगरेट पी जाते थे 2023 में एक मीडिया इंटरव्यू में हुड्डा ने बताया- ‘कॉलेज के दिनों की बात है। मुझे सिगरेट पीने की लत लगी। एक पैकेट में 20 सिगरेट आती थीं। मैं रोज के डेढ़ पैकेट पीता था। एक दिन मैं चंडीगढ़ जा रहा था। तब मैं सीएम था। उस दिन पिता सैर करके वापस आ रहे थे। उन्होंने मुझे देखा तो मेरी गाड़ी रुकवाई। मैंने उन्हें नमस्ते किया, पैर छुए। उन्होंने मुझसे एक ही बात कही कि ‘भूपेंद्र सिगरेट छोड़ दे, नहीं तो मैं सत्याग्रह कर दूंगा। उनकी बात सुनकर मुझे काफी तकलीफ हुई। मेरे बड़े भाई भी स्मोक करते थे। उन्हें गले में कैंसर हो गया था। उसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई। पिता के दिमाग में यही बात चलती थी कि कहीं मेरे साथ ऐसा ना हो जाए। उस दिन के बाद मैंने कभी सिगरेट नहीं पी।’ मुख्यमंत्री बनते ही हुड्डा ने इकलौते बेटे को सौंपी विरासत भूपेंद्र हुड्डा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद बेटे दीपेंद्र हुड्डा को अमेरिका में मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छुड़वाकर रोहतक लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़वाया। दीपेंद्र आसानी से चुनाव जीत गए। इसके बाद भूपेंद्र हुड्डा ने अपने विरोधी नेताओं को एक-एक कर निपटाना शुरू कर दिया। 2007 में भजनलाल और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई को पार्टी से निकाल दिया गया। हालांकि, भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन 2008 तक डिप्टी सीएम बने रहे। भजनलाल के अलग होते ही हुड्डा की कांग्रेस हाईकमान पर पकड़ और मजबूत हो गई। उस वक्त कांग्रेस आलाकमान के दरबार में अहमद पटेल, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, अशोक गहलोत जैसे नेताओं की तूती बोलती थी। 2010 में राहुल गांधी ने युवा नेताओं की एक अलग टीम बनाई, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता शामिल थे। 2014 के बाद सीनियर नेता साइड लाइन होते चले गए। ऐसे में भूपेंद्र हुड्डा ने सांसद बेटे दीपेंद्र के जरिए गांधी परिवार में अपना दबदबा बरकरार रखा। दीपेंद्र राहुल गांधी ही नहीं, बल्कि प्रियंका गांधी के भी भरोसेमंद बन गए। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी लहर के बावजूद वे अपनी रोहतक सीट को बचाने में कामयाब रहे। राजस्थान के बड़े राजनीतिक घराने की बेटी हैं दीपेंद्र की पत्नी श्वेता दीपेंद्र हुड्डा की पहली शादी गीता ग्रेवाल से हुई थी, 2005 में उनका तलाक हो गया। उसके बाद हुड्डा ने राजस्थान के दिग्गज जाट नेता और पांच बार सांसद रहे नाथूराम मिर्धा की पोती श्वेता से शादी की। श्वेता राजनीति से दूर हैं, लेकिन उनकी बहन ज्योति मिर्धा राजस्थान की नागौर सीट से सांसद रह चुकी हैं। उन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव नागौर सीट से बीजेपी के टिकट पर लड़ा, लेकिन हार गईं। उनके दादा इसी सीट से पांच बार सांसद रहे थे। किरण चौधरी का टिकट कटा, आरोप लगा हुड्डा पर पूर्व सीएम बंसीलाल चौधरी की बहू किरण चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से अपनी बेटी श्रुति चौधरी के लिए टिकट मांग रही थीं। उनकी बेटी इस सीट पर सांसद भी रह चुकी हैं, लेकिन पार्टी ने श्रुति का टिकट काटकर हुड्डा के खास महेंद्रगढ़ से विधायक राव दान सिंह को दे दिया। किरण नाराज हो गईं और चुनाव प्रचार से दूरी बना लीं। राव दान सिंह चुनाव हार गए। कुछ ही दिनों बाद किरण, बेटी के साथ बीजेपी में शामिल हो गईं। ‘परिवार राज सीरीज’ की ये स्टोरीज भी पढ़िए… 1. देवीलाल ने राज्यपाल को तमाचा जड़ दिया था:खुद डिप्टी PM, बेटा 5 बार CM; बोले-अपनों को न बनाऊं, तो क्या 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हरियाणा में सबसे ऊंचा रावण पंचकूला में जलेगा:155 फीट ऊंचाई; बराड़ा का रावण 5 बार लिम्का बुक रिकॉर्ड में नाम दर्ज करा चुका
हरियाणा में सबसे ऊंचा रावण पंचकूला में जलेगा:155 फीट ऊंचाई; बराड़ा का रावण 5 बार लिम्का बुक रिकॉर्ड में नाम दर्ज करा चुका हरियाणा का सबसे ऊंचा पुतला पंचकूला के सेक्टर 5 स्थित शालीमार ग्राउंड में खड़ा किया गया है। पुतले को बनाने वाले कारीगर तेजिंदर सिंह राणा ने इसकी ऊंचाई 180 फीट रखी थी। पिछले दिनों तेज आंधी में पुतले का हिस्सा गिरकर क्षतिग्रस्त हो गया। जिस वजह से पुतले की ऊंचाई 180 से घटाकर 155 फीट की गई। शालीमार ग्राउंड में कार्यवाहक मुख्यमंत्री नायब सैनी मुख्य अतिथि होंगे। वहीं, अंबाला के बराड़ा में इस बार 120 फीट ऊंचे रावण का दहन किया जाएगा। इसे तैयार करने के लिए 25 कारीगरों ने 2 महीने दिन-रात मेहनत की। 10 मुख वाले रावण को 2 क्रेन की मदद से खड़ा किया गया। बराड़ा में जलने वाला रावण विश्व के 210 फीट के पुतले के लिए प्रसिद्ध है। यहां का रावण ऊंचाई के मामले में 5 बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवा चुका है। विजयादशमी के दिन पूजन का शुभ समय दोपहर 2:02 से 2:48 बजे और पुतलों के दहन का शुभ मुहूर्त सूर्यास्त के समय शाम 5:54 से रात 7:28 तक है। रेवाड़ी में 125 फीट के पुतले का दहन होगा रेवाड़ी जिले के बेरली कलां गांव में सर छोटेलाल रामलीला क्लब द्वारा 125 फीट के रावण के पुतले का दहन किया जाएगा। शाम साढ़े 5 बजे दहन का समय रखा गया है। इसके अलावा, शहर के हुडा ग्राउंड में 60-60 फीट ऊंचे रावण और मेघनाद के पुतले खड़े किए गए हैं। शहर में रावण दहन का कार्यक्रम श्री घंटेश्वर महादेव मंदिर आदर्श रामलील कमेटी और मक्खन लाल धर्मशाला रामलीला कमेटी द्वारा किया जाएगा। भगवान राम-लक्ष्मण अपनी सेना के साथ रावण से युद्ध करते हुए शहर के बाजार से होते हुए हुडा ग्राउंड तक पहुंचेंगे। उसके बाद भगवान राम की तरफ से रावण की नाभि में तीर मारा जाएगा और बुराई के प्रतीक रावण का अंत होगा। करनाल में 70 फीट के रावण का दहन होगा करनाल में सेक्टर-4 स्थित ग्राउंड में 70 फुट ऊंचे रावण का पुतला खड़ा किया गया है। कुंभकर्ण 60 फीट और मेघनाद की ऊंचाई 65 फीट है। यहां केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचेंगे। इससे पहले शहर में शोभायात्रा निकाली जाएगी, जो पूरे शहर से होते हुए शाम को दशहरा ग्राउंड में पहुंचेगी। शोभायात्रा और दशहरा के आयोजन को देखते हुए प्रशासन द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। भीड़ को कंट्रोल करने के लिए पुलिस बल तैनात रहेगा और यातायात को सुचारू रूप से चलाने के लिए मार्गों पर विशेष व्यवस्था की गई है। सोनीपत में 52 फीट के पुतले का दहन होगा सोनीपत में कामी रोड स्थित रामलीला मैदान में 52 फुट ऊंचा रावण का पुतला बनाया गया है। साथ ही यहां 45 फुट के मेघनाद व कुंभकर्ण के पुतले भी जलाए जाएंगे। सोनीपत में ऐतिहासिक और प्राचीन रामलीला मैदान ने 30-35 सालों से लगातार इसी जगह पर रावण परिवार के पुतलों का दहन होता रहा है। इस बार प्रदूषण कम करने को लेकर ग्रीन पटाखे का पुतलो में प्रयोग किया गया है। वहीं पुलिस प्रशासन द्वारा सुरक्षा को लेकर पूरी तरह तैयारी कर ली गई है। कामी रोड के अलावा सेक्टर 15 ग्राउंड और तुडा मंडी में भी दशहरा मनाया जाएगा। इसको लेकर पुलिस की तैनाती की गई है।
हरियाणा में छात्राओं की 6 लाख फीस लेकर प्रिंसिपल फरार:3 दिन से गायब, मोबाइल स्विच ऑफ, 12वीं की 600 छात्राओं की परीक्षा पर संकट गहराया
हरियाणा में छात्राओं की 6 लाख फीस लेकर प्रिंसिपल फरार:3 दिन से गायब, मोबाइल स्विच ऑफ, 12वीं की 600 छात्राओं की परीक्षा पर संकट गहराया हरियाणा के फरीदाबाद में सरकारी स्कूल का प्रिंसिपल 12वीं क्लास की 600 छात्राओं की 6 लाख रुपए फीस लेकर फरार हो गया। प्रिंसिपल छत्रपाल का पिछले 3 दिन से कोई अता-पता नहीं है। प्रिंसिपल ने किसी अधिकारी या टीचर को इसकी सूचना तक नहीं दी। उसके 2 मोबाइल भी स्विच ऑफ हैं। ऐसे में फीस जमा न होने से स्कूल की छात्राओं की बोर्ड परीक्षा पर संकट आ गया है। इसका खुलासा होने पर शिक्षा विभाग में भी हड़कंप मचा हुआ है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि प्रिंसिपल जानबूझकर गायब हुआ या उसके साथ कोई वारदात हुई है। छात्राओं से जुर्माने समेत वसूली थी फीस
यह मामला फरीदाबाद में बल्लभगढ़ स्थित राजकीय आदर्श कन्या वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल का है। यहां करीब 12वीं क्लास 609 छात्राएं हैं। इनकी फीस 4 लाख 57 हजार 100 रुपए फीस बनती थी। हालांकि जिन छात्राओं ने देरी से फीस भरी, उनसे जुर्माना भी वसूला गया। ऐसे में प्रिंसिपल के पास 6 लाख से ज्यादा रुपए जमा हो गए। प्रिंसिपल ने किसी को कुछ नहीं बताया
फीस जमा होने के बाद 3 दिन से प्रिंसिपल स्कूल नहीं आ रहा। प्रिंसिपल के बारे में स्कूल के बाकी टीचरों, स्टाफ और शिक्षा अधिकारियों के पास भी कोई सूचना नहीं है। जब प्रिंसिपल लगातार स्कूल नहीं आए तो टीचरों ने उनके 2 मोबाइल पर कॉल की लेकिन वह भी स्विच ऑफ मिले। टीचरों ने अधिकारियों को सूचना दी
इसके बाद परेशान होकर टीचरों ने बल्लभगढ़ के खंड शिक्षा अधिकारी, फरीदाबाद के जिला शिक्षा अधिकारी और हरियाणा बोर्ड के अधिकारियों को इसकी सूचना दी। अधिकारियों ने अपने स्तर पर भी प्रिंसिपल के बारे में छानबीन की लेकिन उसका कोई पता नहीं चला। जिसके बाद हरियाणा बोर्ड ने प्रिंसिपल के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उससे फीस की रिकवरी के आदेश जारी कर दिए हैं। स्कूल इंचार्ज बोलीं- छात्राओं को दिक्कत नहीं होगी
प्रिंसिपल के गायब होने के बाद स्कूल इंचार्ज बनाई गईं टीचर पुष्पा ने पुष्टि की कि प्रिंसिपल बच्चों की फीस लेकर गायब हो गए हैं। उनका कोई पता भी नहीं चल रहा। पुष्पा ने कहा कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने उन्हें कहा है कि छात्राओं को परीक्षा देने में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए। उनकी फीस विभाग के पास जमा न होने की वजह से उन्हें परीक्षा देने से न रोका जाए।