महाकुंभ: 100 देशों के मेहमानों को देंगे अक्षयवट की पत्तियां:मुगलकाल में काटने-जलाने की कोशिश हुई; रामायण से लेकर पुराणों तक में जिक्र

महाकुंभ: 100 देशों के मेहमानों को देंगे अक्षयवट की पत्तियां:मुगलकाल में काटने-जलाने की कोशिश हुई; रामायण से लेकर पुराणों तक में जिक्र

प्रयागराज में पुराने किले के अंदर गंगा-यमुना नदी के किनारे पर खड़े पवित्र अक्षयवट वृक्ष की पत्तियां महाकुंभ में आने वाले 100 देशों के अति विशिष्ट अतिथियों (VVIP) को गिफ्ट दी जाएंगी। इसके पीछे मंशा है कि इस अक्षयवट की पत्तियां दुनिया के 100 देशों में पहुंचें। एक समय ऐसा था, जब इस वृक्ष के दर्शन तक पर रोक थी। 2018 में पीएम मोदी की पहल पर इसे फिर से आम लोगों के लिए खोला गया। अब इस वृक्ष की पत्तियां इन देशों से आने वाले अतिथियों को भारत की संस्कृति की पहचान के रूप में दी जाएंगी। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन इसे बाकायदा गिफ्ट के रूप में स्वयं सहायता समूहों (NGO) से पैक करा रहा है। आखिर क्यों इतना खास है अक्षयवट वृक्ष? इसे लेकर क्या मान्यताएं हैं? इस वृक्ष की पूरी कहानी भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए- अकबर के किले में खड़ा पेड़ राज्य सरकार की विरासत सूची का हिस्सा
अक्षयवट वृक्ष बरगद का प्राचीन पेड़ है। यह प्रयागराज में अकबर के किले (पुराना किला) के अंदर है। लेकिन, यह कोई आम पेड़ नहीं है। इसे लेकर कई कहानियां और मान्यताएं हैं। करोड़ों लोगों की आस्था इस पेड़ से जुड़ी है। आस्था और मान्यताओं को देखते हुए यह प्रदेश सरकार की विरासत सूची का भी हिस्सा है। सरकारें उन इमारतों या वस्तुओं को विरासत सूची में रखती हैं, जो किसी ना किसी तरह प्राचीन धरोहर को दर्शाती हैं। अक्षयवट वृक्ष की कहानी सबसे पहले रामायण में अक्षयवट वृक्ष का जिक्र
अक्षयवट वृक्ष की पवित्रता और उसकी महिमा की कहानी सबसे पहले रामायण में मिलती है। मत्स्य पुराण और पद्म पुराण में भी इस वृक्ष से जुड़ी कहानी है। मान्यताओं के मुताबिक, आज से करीब 3 से 4 हजार पहले से यहां अक्षयवट वृक्ष रहा है। इस वृक्ष के नाम को देखें तो अक्षय का मतलब होता है अविनाशी यानी कभी नष्ट न होने वाला। यानी ऐसा वृक्ष जिसका कभी क्षय ना हुआ हो। रामायण में इस वृक्ष से जुड़ी कहानी है कि भगवान राम वन जाते समय इसी वृक्ष के नीचे रुके थे। यहीं अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था। इस जगह पर भगवान राम और सीता ने वनगमन के दौरान तीन रातों तक विश्राम किया था। इस वृक्ष के नीचे भगवान राम के रुकने की वजह से लोगों की आस्था है। मत्स्य और पद्म पुराण में अक्षयवट वृक्ष, जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर का ज्ञान पाने का स्थल
मत्स्य पुराण में इस वृक्ष को लेकर जिक्र मिलता है कि यह सृष्टि के प्रलय और विकास का साक्षी रहा है। मान्यता यह भी है कि माता सीता ने ही इस वृक्ष को आशीर्वाद दिया था कि जब सब कुछ नष्ट हो जाएगा, तब भी अक्षयवट हरा-भरा रहेगा। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक ऋषि ने भगवान नारायण (विष्णु) से ईश्वरी शक्ति को दिखाने के लिए कहा। तब उन्होंने क्षण भर के लिए पूरे संसार को जलमग्न कर दिया। फिर इस पानी को गायब भी कर दिया। इस दौरान जब सारी चीजें पानी में समा गई थीं, तब सिर्फ अक्षय वट का ऊपरी भाग दिखाई दे रहा था। एक मान्यता यह भी है कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने इस वृक्ष के नीचे ही ज्ञान प्राप्त किया था। अक्षयवट वृक्ष में स्नान को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं
प्रयागराज में गंगा-यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान के बाद इस अक्षयवट वृक्ष की पूजा करने की मान्यता है। ऐसा करने को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। ये अक्षयवट वृक्ष करीब 400 साल पुराना
प्रयागराज में त्रिवेणी घाट पर अकबर के किले में खड़ा अक्षयवट वृक्ष करीब 400 साल पुराना है। जबकि इससे जुड़ी कहानियां हजारों साल पीछे तक जाती हैं। तो सवाल उठता है कि आखिर कब-कब इस पेड़ को नुकसान पहुंचा या पहुंचाया गया। इसका स्पष्ट और प्रमाणिक जवाब हमें मुगल काल में मिलता है। कई लिखित स्रोतों से पता चलता है कि मुगल काल में अकबर से लेकर जहांगीर तक के शासनकाल में इसे नष्ट करने की कोशिश की गई। कहा जाता है, धार्मिक रूप से उदार रहे अकबर तक ने इसे नष्ट करने की कोशिशें कीं। इसमें इसे काटने से लेकर जलाने तक की बात कही जाती है। इसके बाद जहांगीर के समय में भी इसे क्षति पहुंचाए जाने का उल्लेख मिलता है। मुगलकाल में अक्षयवट वृक्ष के दर्शन पर भी लगा प्रतिबंध
मुगलकाल में ही इसके दर्शन पर प्रतिबंध लगा था। ब्रिटिश काल और आजाद भारत में भी किला सेना के आधिपत्य में रहने की वजह से तीर्थ यात्रियों के लिए इस वृक्ष का दर्शन करना मुश्किल था। किले में पीछे की ओर पातालपुरी मंदिर में स्थित एक वट वृक्ष के दर्शन करके लोग लौट जाते थे। लेकिन, केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2018 में अक्षयवट का दर्शन और पूजन सभी के लिए उपलब्ध करने का फैसला किया। इसके बाद से ही लोग किले में स्थित अक्षयवट का दर्शन पाने लगे। अक्षयवट वृक्ष के अलावा 3 और पवित्र वट वृक्ष
अक्षयवट वृक्ष के अलावा 3 और पवित्र वट वृक्षों से पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हैं। उन्हें हजारों साल पुराना बताया जाता है। ———————— ये भी पढ़ें… UP में 2-3 लाख में बिक रहीं सरकारी नौकरियां, आउटसोर्सिंग कंपनियों के कर्मचारी बोले- मंत्री लेते हैं पैसा; VIDEO में पूरा खुलासा यूपी के सरकारी विभागों में नौकरियां बेची जा रही हैं। 5 से 6 महीने की सैलरी, या 2 से 3 लाख रुपए देने के बाद ही नियुक्ति दी जा रही है। कमाई वाली पोस्ट के लिए साढ़े 5 लाख रुपए तक मांगे जा रहे हैं। आउटसोर्सिंग कंपनियां दलाल और कर्मचारियों से मिलकर यह काम कर रही हैं। दैनिक भास्कर की टीम ने सरकारी विभागों में मैनपावर आउटसोर्स कर रही कंपनियों का इन्वेस्टिगेशन किया। पढ़ें पूरी खबर… प्रयागराज में पुराने किले के अंदर गंगा-यमुना नदी के किनारे पर खड़े पवित्र अक्षयवट वृक्ष की पत्तियां महाकुंभ में आने वाले 100 देशों के अति विशिष्ट अतिथियों (VVIP) को गिफ्ट दी जाएंगी। इसके पीछे मंशा है कि इस अक्षयवट की पत्तियां दुनिया के 100 देशों में पहुंचें। एक समय ऐसा था, जब इस वृक्ष के दर्शन तक पर रोक थी। 2018 में पीएम मोदी की पहल पर इसे फिर से आम लोगों के लिए खोला गया। अब इस वृक्ष की पत्तियां इन देशों से आने वाले अतिथियों को भारत की संस्कृति की पहचान के रूप में दी जाएंगी। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन इसे बाकायदा गिफ्ट के रूप में स्वयं सहायता समूहों (NGO) से पैक करा रहा है। आखिर क्यों इतना खास है अक्षयवट वृक्ष? इसे लेकर क्या मान्यताएं हैं? इस वृक्ष की पूरी कहानी भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए- अकबर के किले में खड़ा पेड़ राज्य सरकार की विरासत सूची का हिस्सा
अक्षयवट वृक्ष बरगद का प्राचीन पेड़ है। यह प्रयागराज में अकबर के किले (पुराना किला) के अंदर है। लेकिन, यह कोई आम पेड़ नहीं है। इसे लेकर कई कहानियां और मान्यताएं हैं। करोड़ों लोगों की आस्था इस पेड़ से जुड़ी है। आस्था और मान्यताओं को देखते हुए यह प्रदेश सरकार की विरासत सूची का भी हिस्सा है। सरकारें उन इमारतों या वस्तुओं को विरासत सूची में रखती हैं, जो किसी ना किसी तरह प्राचीन धरोहर को दर्शाती हैं। अक्षयवट वृक्ष की कहानी सबसे पहले रामायण में अक्षयवट वृक्ष का जिक्र
अक्षयवट वृक्ष की पवित्रता और उसकी महिमा की कहानी सबसे पहले रामायण में मिलती है। मत्स्य पुराण और पद्म पुराण में भी इस वृक्ष से जुड़ी कहानी है। मान्यताओं के मुताबिक, आज से करीब 3 से 4 हजार पहले से यहां अक्षयवट वृक्ष रहा है। इस वृक्ष के नाम को देखें तो अक्षय का मतलब होता है अविनाशी यानी कभी नष्ट न होने वाला। यानी ऐसा वृक्ष जिसका कभी क्षय ना हुआ हो। रामायण में इस वृक्ष से जुड़ी कहानी है कि भगवान राम वन जाते समय इसी वृक्ष के नीचे रुके थे। यहीं अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था। इस जगह पर भगवान राम और सीता ने वनगमन के दौरान तीन रातों तक विश्राम किया था। इस वृक्ष के नीचे भगवान राम के रुकने की वजह से लोगों की आस्था है। मत्स्य और पद्म पुराण में अक्षयवट वृक्ष, जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर का ज्ञान पाने का स्थल
मत्स्य पुराण में इस वृक्ष को लेकर जिक्र मिलता है कि यह सृष्टि के प्रलय और विकास का साक्षी रहा है। मान्यता यह भी है कि माता सीता ने ही इस वृक्ष को आशीर्वाद दिया था कि जब सब कुछ नष्ट हो जाएगा, तब भी अक्षयवट हरा-भरा रहेगा। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक ऋषि ने भगवान नारायण (विष्णु) से ईश्वरी शक्ति को दिखाने के लिए कहा। तब उन्होंने क्षण भर के लिए पूरे संसार को जलमग्न कर दिया। फिर इस पानी को गायब भी कर दिया। इस दौरान जब सारी चीजें पानी में समा गई थीं, तब सिर्फ अक्षय वट का ऊपरी भाग दिखाई दे रहा था। एक मान्यता यह भी है कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने इस वृक्ष के नीचे ही ज्ञान प्राप्त किया था। अक्षयवट वृक्ष में स्नान को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं
प्रयागराज में गंगा-यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान के बाद इस अक्षयवट वृक्ष की पूजा करने की मान्यता है। ऐसा करने को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। ये अक्षयवट वृक्ष करीब 400 साल पुराना
प्रयागराज में त्रिवेणी घाट पर अकबर के किले में खड़ा अक्षयवट वृक्ष करीब 400 साल पुराना है। जबकि इससे जुड़ी कहानियां हजारों साल पीछे तक जाती हैं। तो सवाल उठता है कि आखिर कब-कब इस पेड़ को नुकसान पहुंचा या पहुंचाया गया। इसका स्पष्ट और प्रमाणिक जवाब हमें मुगल काल में मिलता है। कई लिखित स्रोतों से पता चलता है कि मुगल काल में अकबर से लेकर जहांगीर तक के शासनकाल में इसे नष्ट करने की कोशिश की गई। कहा जाता है, धार्मिक रूप से उदार रहे अकबर तक ने इसे नष्ट करने की कोशिशें कीं। इसमें इसे काटने से लेकर जलाने तक की बात कही जाती है। इसके बाद जहांगीर के समय में भी इसे क्षति पहुंचाए जाने का उल्लेख मिलता है। मुगलकाल में अक्षयवट वृक्ष के दर्शन पर भी लगा प्रतिबंध
मुगलकाल में ही इसके दर्शन पर प्रतिबंध लगा था। ब्रिटिश काल और आजाद भारत में भी किला सेना के आधिपत्य में रहने की वजह से तीर्थ यात्रियों के लिए इस वृक्ष का दर्शन करना मुश्किल था। किले में पीछे की ओर पातालपुरी मंदिर में स्थित एक वट वृक्ष के दर्शन करके लोग लौट जाते थे। लेकिन, केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2018 में अक्षयवट का दर्शन और पूजन सभी के लिए उपलब्ध करने का फैसला किया। इसके बाद से ही लोग किले में स्थित अक्षयवट का दर्शन पाने लगे। अक्षयवट वृक्ष के अलावा 3 और पवित्र वट वृक्ष
अक्षयवट वृक्ष के अलावा 3 और पवित्र वट वृक्षों से पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हैं। उन्हें हजारों साल पुराना बताया जाता है। ———————— ये भी पढ़ें… UP में 2-3 लाख में बिक रहीं सरकारी नौकरियां, आउटसोर्सिंग कंपनियों के कर्मचारी बोले- मंत्री लेते हैं पैसा; VIDEO में पूरा खुलासा यूपी के सरकारी विभागों में नौकरियां बेची जा रही हैं। 5 से 6 महीने की सैलरी, या 2 से 3 लाख रुपए देने के बाद ही नियुक्ति दी जा रही है। कमाई वाली पोस्ट के लिए साढ़े 5 लाख रुपए तक मांगे जा रहे हैं। आउटसोर्सिंग कंपनियां दलाल और कर्मचारियों से मिलकर यह काम कर रही हैं। दैनिक भास्कर की टीम ने सरकारी विभागों में मैनपावर आउटसोर्स कर रही कंपनियों का इन्वेस्टिगेशन किया। पढ़ें पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर