‘साल 2023 में अपने कोच चंद्रभान यादव के निर्देशन में शिखा यादव ने लालपुर स्टेडियम में नवंबर में होने वाली 38वीं नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के लिए तैयारी शुरू की थी। लेकिन अगस्त के महीने में उसे डेंगू ने अपनी चपेट में ले लिया। प्लेटलेट्स 48 हजार से नीचे चली गई और बेटी को चार दिन गांव के ही अस्पताल में एडमिट कराया। तब उसने सोच लिया था कि अब ट्रैक से दूर हो जाना है। यह बात मुझे पता चली तो मैंने उससे बात की और उसे हौसला दिया। बिस्तर उठने में और पूरी तरह स्वस्थ होने पर उसे दो महीने हो गए। वो नेशनल में हिस्सा नहीं ले पाई उससे टूट गई थी। इसपर कोच चंद्रभान ने भी हौसला दिया और 39वीं नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप जो उड़ीसा के भुवनेश्वर स्थित कलिंगा स्टेडियम में हुई उसमे 14 मिनट 13 सेकेंड का समय निकालकर स्वर्ण पदक जीत लिया। इससे ज्यादा खुशी का पल क्या होगा।’ ये कहकर शिखा यादव के पिता उमाकांत यादव जो किसान हैं। उनकी आवाज भर्रा गई और फोन कट गया। शिखा के पिता का सिर गर्व से पूरे गांव और समाज में ऊंचा हो गया है। लोग अब उन्हें शिखा के नाम से जानते हैं। दैनिक भास्कर ने शिखा के रेस वॉक के शौक, उपलब्धियों और गेम में आए उतार चढ़ाव के बारे में शिखा से बात की। पेश है खास रिपोर्ट… शिखा यादव से दैनिक भास्कर ने लालपुर स्पोर्ट्स स्टेडियम में बातचीत की। शिखा ने बताया- वो अजगरा के धर्मपुर गांव की रहने वाली हैं। वहां के एक इंटर कलज की स्टूडेंट थी। वहां के अध्यापक प्रेमशंकर तिवारी ने मुझसे दौड़ने के लिए कहा और फिर गांव में ही बने हुए 200 मीटर ग्राउंड पर रेस वॉक की प्रेक्टिस शुरू करवा दी। इसपर वहां के अध्यापक ने चंद्रभान यादव को जिसपर वो राजी हो गए और फिर मैंने 35 किलोमीटर दूर अपने घर से स्टेडियम आना शुरू कर दिया। तीन साल से कर रही प्रैक्टिस
शिखा ने बताया- मुझे तीन साल हुए रेस वॉक की प्रतियोगिता खेलते हुए और प्रैक्टिस करते हुए। चंद्रभान सर ने जब देखा कि मै 35 किलोमीटर साईकिल से आती हूं तो उन्होंने यहां रूम लेने के लिए कहा। पर उस वक्त मेरे पास पैसे नहीं थे। जिसपर मै करीब साल भर साईकिल से आयी और उसके बाद यहां रूम रेंट पर लिया। अब रोजाना सुबह और शाम प्रैक्टिस कर रही हूं। डेंगू ने तोड़ दिया था हौसला
शिखा ने कहा- मै साल 2023 में 38वीं नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की तैयारी कर रही थी। इस दौरान अचानक से मुझे फीवर आने लगा। कभी सुबह तो कभी रात में फीवर रहने लगा। इसपर मैंने चेक करवाया तो मुझे डेंगू हो गया था। इसपर मै गांव चली गई और वहीं इलाज होने लगा। एक दिन तबियत खराब हुई ज्यादा तो घरवालों से एडमिट करवाया था। इस दौरान प्लेटलेट्स लगातार घट रहा था और मेरे दिल में प्रतियोगिता में कैसे पदक जीतना था उसकी तैयारी चल रही है। डॉक्टर ने डेंगू बताया तो टूट गया हौसला
शिखा ने बताया- डॉक्टर ने डेंगू डिक्लियर किया तो मैंने उससे सबसे पहले पूछा की ठीक कब तक हो जाऊंगी। तो उसने कहा ठीक होने के दो महीने तक कमजोरी रहगी बहुत प्रैक्टिस नहीं करना है। इस बात से मनोबल टूट गया। ऐसे में मेरे पिता उमाशंकर मिश्रा ने हमेशा साथ दिया और मुझे हौसला देते रहे कोई नहीं सही होकर फिर ठीक हो जाओगी और अब मै बिलकुल फिट हूं। पिता के हौसले से जीता 39वीं नेशनल प्रतियोगिता में स्वर्ण
शिखा अजगरा विधानसभा की रहने वाली हैं। ऐसे में शिखा ने बताया – जब 38वीं नेशनल प्रतियोगिता में नहीं जा सकी तो मेरे घर वाले परेशान हुए और मुझे हौसला दिया क्योंकि मै पूरे दिन गुमसुम रहती थी और पिता जी माता जी से मैच छोड़ने का मन बना लिया था। लेकिन पिता और माता ने मुझे हौसला दिया और 39वीं प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल पर कब्जा जमा लिया। अब जानिए कोच की जुबानी शिखा की मेहनत
शिखा के कोच चंद्रभान यादव मंटू ने बताया- शिखा काफी मेहनती धावक है। उनकी रेस में क्वालिटी है। आज हम सभी कके मार्गदर्शन में उसने नेशनल पदक जीता है। हमें बहुत ख़ुशी है। वह पिछले साल इस खेल को अलविदा कहने का मन बना चुकी शिखा ने गोल्ड मैडल जीता है जो गर्व की बात है।
जानिए कौन हैं पारुल चौधरी
बता दें कि मेरठ के इकलौता गांव की रहने वाली पारुल चौधरी रेस वॉक (स्टीपलचेज) में दो बार की एशियाई खेलों की पदक विजेता हैं। वो पेरिस ओलिंपिक में अपने सीजन का महिलाओं की 3000 मीटर स्टीपलचेज हीट में 9:23.39 के सर्वश्रेष्ठ समय के साथ आठवें स्थान पर रहीं। पारुल 5000 मीटर और 3000 मीटर स्टीपलचेज़ में माहिर हैं। वह महिलाओं की 3000 मीटर दौड़ में 9 मिनट से कम समय में दौड़ने वाली पहली भारतीय धावक हैं। पारुल शिखा यादव की पहली पसंद है जिन्हे वो अपना आदर्श मानती हैं और उन देख कर अपने खेल को निखार रही हैं। ‘साल 2023 में अपने कोच चंद्रभान यादव के निर्देशन में शिखा यादव ने लालपुर स्टेडियम में नवंबर में होने वाली 38वीं नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के लिए तैयारी शुरू की थी। लेकिन अगस्त के महीने में उसे डेंगू ने अपनी चपेट में ले लिया। प्लेटलेट्स 48 हजार से नीचे चली गई और बेटी को चार दिन गांव के ही अस्पताल में एडमिट कराया। तब उसने सोच लिया था कि अब ट्रैक से दूर हो जाना है। यह बात मुझे पता चली तो मैंने उससे बात की और उसे हौसला दिया। बिस्तर उठने में और पूरी तरह स्वस्थ होने पर उसे दो महीने हो गए। वो नेशनल में हिस्सा नहीं ले पाई उससे टूट गई थी। इसपर कोच चंद्रभान ने भी हौसला दिया और 39वीं नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप जो उड़ीसा के भुवनेश्वर स्थित कलिंगा स्टेडियम में हुई उसमे 14 मिनट 13 सेकेंड का समय निकालकर स्वर्ण पदक जीत लिया। इससे ज्यादा खुशी का पल क्या होगा।’ ये कहकर शिखा यादव के पिता उमाकांत यादव जो किसान हैं। उनकी आवाज भर्रा गई और फोन कट गया। शिखा के पिता का सिर गर्व से पूरे गांव और समाज में ऊंचा हो गया है। लोग अब उन्हें शिखा के नाम से जानते हैं। दैनिक भास्कर ने शिखा के रेस वॉक के शौक, उपलब्धियों और गेम में आए उतार चढ़ाव के बारे में शिखा से बात की। पेश है खास रिपोर्ट… शिखा यादव से दैनिक भास्कर ने लालपुर स्पोर्ट्स स्टेडियम में बातचीत की। शिखा ने बताया- वो अजगरा के धर्मपुर गांव की रहने वाली हैं। वहां के एक इंटर कलज की स्टूडेंट थी। वहां के अध्यापक प्रेमशंकर तिवारी ने मुझसे दौड़ने के लिए कहा और फिर गांव में ही बने हुए 200 मीटर ग्राउंड पर रेस वॉक की प्रेक्टिस शुरू करवा दी। इसपर वहां के अध्यापक ने चंद्रभान यादव को जिसपर वो राजी हो गए और फिर मैंने 35 किलोमीटर दूर अपने घर से स्टेडियम आना शुरू कर दिया। तीन साल से कर रही प्रैक्टिस
शिखा ने बताया- मुझे तीन साल हुए रेस वॉक की प्रतियोगिता खेलते हुए और प्रैक्टिस करते हुए। चंद्रभान सर ने जब देखा कि मै 35 किलोमीटर साईकिल से आती हूं तो उन्होंने यहां रूम लेने के लिए कहा। पर उस वक्त मेरे पास पैसे नहीं थे। जिसपर मै करीब साल भर साईकिल से आयी और उसके बाद यहां रूम रेंट पर लिया। अब रोजाना सुबह और शाम प्रैक्टिस कर रही हूं। डेंगू ने तोड़ दिया था हौसला
शिखा ने कहा- मै साल 2023 में 38वीं नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की तैयारी कर रही थी। इस दौरान अचानक से मुझे फीवर आने लगा। कभी सुबह तो कभी रात में फीवर रहने लगा। इसपर मैंने चेक करवाया तो मुझे डेंगू हो गया था। इसपर मै गांव चली गई और वहीं इलाज होने लगा। एक दिन तबियत खराब हुई ज्यादा तो घरवालों से एडमिट करवाया था। इस दौरान प्लेटलेट्स लगातार घट रहा था और मेरे दिल में प्रतियोगिता में कैसे पदक जीतना था उसकी तैयारी चल रही है। डॉक्टर ने डेंगू बताया तो टूट गया हौसला
शिखा ने बताया- डॉक्टर ने डेंगू डिक्लियर किया तो मैंने उससे सबसे पहले पूछा की ठीक कब तक हो जाऊंगी। तो उसने कहा ठीक होने के दो महीने तक कमजोरी रहगी बहुत प्रैक्टिस नहीं करना है। इस बात से मनोबल टूट गया। ऐसे में मेरे पिता उमाशंकर मिश्रा ने हमेशा साथ दिया और मुझे हौसला देते रहे कोई नहीं सही होकर फिर ठीक हो जाओगी और अब मै बिलकुल फिट हूं। पिता के हौसले से जीता 39वीं नेशनल प्रतियोगिता में स्वर्ण
शिखा अजगरा विधानसभा की रहने वाली हैं। ऐसे में शिखा ने बताया – जब 38वीं नेशनल प्रतियोगिता में नहीं जा सकी तो मेरे घर वाले परेशान हुए और मुझे हौसला दिया क्योंकि मै पूरे दिन गुमसुम रहती थी और पिता जी माता जी से मैच छोड़ने का मन बना लिया था। लेकिन पिता और माता ने मुझे हौसला दिया और 39वीं प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल पर कब्जा जमा लिया। अब जानिए कोच की जुबानी शिखा की मेहनत
शिखा के कोच चंद्रभान यादव मंटू ने बताया- शिखा काफी मेहनती धावक है। उनकी रेस में क्वालिटी है। आज हम सभी कके मार्गदर्शन में उसने नेशनल पदक जीता है। हमें बहुत ख़ुशी है। वह पिछले साल इस खेल को अलविदा कहने का मन बना चुकी शिखा ने गोल्ड मैडल जीता है जो गर्व की बात है।
जानिए कौन हैं पारुल चौधरी
बता दें कि मेरठ के इकलौता गांव की रहने वाली पारुल चौधरी रेस वॉक (स्टीपलचेज) में दो बार की एशियाई खेलों की पदक विजेता हैं। वो पेरिस ओलिंपिक में अपने सीजन का महिलाओं की 3000 मीटर स्टीपलचेज हीट में 9:23.39 के सर्वश्रेष्ठ समय के साथ आठवें स्थान पर रहीं। पारुल 5000 मीटर और 3000 मीटर स्टीपलचेज़ में माहिर हैं। वह महिलाओं की 3000 मीटर दौड़ में 9 मिनट से कम समय में दौड़ने वाली पहली भारतीय धावक हैं। पारुल शिखा यादव की पहली पसंद है जिन्हे वो अपना आदर्श मानती हैं और उन देख कर अपने खेल को निखार रही हैं। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर