हरियाणा में किचन गार्डनिंग से कामयाबी:100-200 गज के प्लॉट से 3-4 हजार की कमाई, सरकारी मदद के लिए देसी गाय की शर्त

हरियाणा में किचन गार्डनिंग से कामयाबी:100-200 गज के प्लॉट से 3-4 हजार की कमाई, सरकारी मदद के लिए देसी गाय की शर्त

हरियाणा के 52 लोगों ने किचन गार्डनिंग कर न केवल खुद को सेहतमंद बना रखा है बल्कि कमाई भी कर रहे हैं। 100 से 200 गज जमीन में गार्डनिंग कर वे हर महीने 3 से 4 हजार की कमाई भी कर रही हैं। वहीं इससे उन्हें खुद भी बिना पेस्टीसाइड और कैमिकल के शुद्ध सब्जियां खाने को मिल रही हैं। यह लोग तब सुर्खियों में आए, जब इन्हें भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम में दिल्ली बुलाया गया। जहां न्यूट्रिटिव किचन गार्डनिंग (ऐसा बगीचा जहां घर में उपयोग के लिए पोषण से भरपूर फल, सब्जियां और जड़ी-बूटियां उगाई जाती हैं।) करने वाले इन लोगों को गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत ने गुरुवार (9 जनवरी) को सम्मानित भी किया। इसको लेकर हरियाणा सरकार भी मदद देती है। मगर, उसके लिए देसी गाय खरीदनी जरूरी होती है। सिलसिलेवार ढंग से पढ़िए, किचन गार्डनिंग से कमाई की कहानी 1. 100 गज में किचन गार्डन, महीने की 4 हजार कमाई
करनाल के औंगद गांव की रीना ने घर में 100 गज के प्लॉट में प्राकृतिक खेती कर रखी है। इस किचन गार्डन में वह हल्दी और दूसरी सब्जियां लगाती हैं। रीना बताती हैं कि 2 साल से वह इसमें जुड़ी हुई हैं। सब्जियां घर में ही खा लेते हैं जबकि हल्दी को प्रोसेस कर बेच देते हैं। एक पौधे की जड़ में पौने किलो हल्दी निकलती है। जिससे उन्हें 3 से 4 हजार की इनकम हो जाती है। रीना कहती हैं कि हम इसे कोई पेस्टीसाइड या कैमिकल यूज नहीं करते। हमने केंचुआ खाद की ट्रेनिंग ले रखी है। उसी को इसमें डालते हैं। 2. सब्जी का 2 हजार का खर्च बचा, 600 रुपए किलो हल्दी बेच रहे
बसताड़ा के रहने वाले सुरेंद्र कुमार ने बताते हैं कि वह 4 साल से 200 गज के प्लॉट में किचन गार्डनिंग कर रहे हैं। उनका हर महीने का 2 हजार का सब्जी का खर्च बचा हुआ है। उनका कहना है कि मैंने यहां हल्दी भी लगाई है। कच्ची हल्दी 120 रुपए किलो बिकती है। वहीं पिसाई के बाद यह 600 रुपए किलो आसानी से बिक जाती है। यह हल्दी 3 साल तक खराब नहीं होती। हम इसमें कोई कीटनाशक यूज नहीं करते। सिर्फ जीवमृत यानी गोबर, पानी, वहां की मिट्‌टी आदि से मिलाकर खाद बनाकर उसे यूज करते हैं। गांव में इसकी 14 यूनिट लगी हुई हैं। 3. बाजार से सब्जियां खरीदनी बंद की
बड़ौता गांव की शांता देवी बताती हैं कि मैं 4–5 साल से जैविक खेती कर रही हूं। करीब 150 गज के प्लाट में हल्दी, धनिया, मैथी, पालक, गोभी व अन्य प्रकार की सब्जियां लगाते हैं। इसमें कीटनाशक की जगह जीवमृत की खाद बनाते हैं। मैंने यह काम घर में सब्जियां खाने के लिए किया है क्योंकि बाजार वाली सब्जियों में पेस्टीसाइड का इस्तेमाल होता है, इसलिए उन्हें खरीदना बंद ही कर दिया है। 4. बाजार में 250 की हल्दी, हम 600 रुपए किलो बेच रहे
हसनपुर गांव की बाला देवी ने बताती हैं कि मैंने प्राकृतिक खेती के तरीके से हल्दी तैयार की है। बाजार में तो हल्दी की कीमत 250 रुपए किलो है लेकिन मैं इसे घर में ही 600 रुपए किलो बेच रही हूं। इसी गांव की कौशल और रीना देवी ने किचन गार्डनिंग के साथ टमाटर की खेती भी की है। दोनों महिलाओं ने दिसंबर 2024 में मशरूम की खेती की भी ट्रेनिंग ली। अब उसका भी उत्पादन शुरू कर दिया है। किचन गार्डनिंग के लिए सरकार देती है मदद
​​​​​हरियाणा के पूर्व कृषि अधिकारी डॉ. राजेंद्र सिंह बताते हैं कि सरकार की प्राकृतिक खेती की योजना है। जिसके तहत किचन गार्डन करने के लिए देसी गाय की खरीद जरूरी है। सरकार इसके लिए 25 हजार की मदद देती है। इसके अलावा खाद के लिए 4 ड्रम खरीदने पर भी 3 हजार रुपए की मदद देती है। उन्होंने कहा कि कोई भी आदमी 50 गज से किचन गार्डन शुरू कर सकता है। इसके अलावा प्राकृतिक खेती करने पर उनके उत्पाद की ब्रांडिंग-पैकेजिंग पर भी प्रोत्साहन राशि देनी पड़ती है। बड़े पैमाने पर इसके लिए मार्केटिंग जरूरी
डॉ. राजेंद्र सिंह कहते है कि प्रदेश सरकार हरियाणा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन चला रही है। जिसके जरिए ज्यादातर महिलाओं ने न्यूट्रिटिव किचन गार्डनिंग को अपनाया है। हालांकि बड़े पैमाने पर इसके लिए मार्केटिंग की जरूरत है। जिसके जरिए इन्हें सीधे बाजार से जोड़ा जा सके। हरियाणा के 52 लोगों ने किचन गार्डनिंग कर न केवल खुद को सेहतमंद बना रखा है बल्कि कमाई भी कर रहे हैं। 100 से 200 गज जमीन में गार्डनिंग कर वे हर महीने 3 से 4 हजार की कमाई भी कर रही हैं। वहीं इससे उन्हें खुद भी बिना पेस्टीसाइड और कैमिकल के शुद्ध सब्जियां खाने को मिल रही हैं। यह लोग तब सुर्खियों में आए, जब इन्हें भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम में दिल्ली बुलाया गया। जहां न्यूट्रिटिव किचन गार्डनिंग (ऐसा बगीचा जहां घर में उपयोग के लिए पोषण से भरपूर फल, सब्जियां और जड़ी-बूटियां उगाई जाती हैं।) करने वाले इन लोगों को गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत ने गुरुवार (9 जनवरी) को सम्मानित भी किया। इसको लेकर हरियाणा सरकार भी मदद देती है। मगर, उसके लिए देसी गाय खरीदनी जरूरी होती है। सिलसिलेवार ढंग से पढ़िए, किचन गार्डनिंग से कमाई की कहानी 1. 100 गज में किचन गार्डन, महीने की 4 हजार कमाई
करनाल के औंगद गांव की रीना ने घर में 100 गज के प्लॉट में प्राकृतिक खेती कर रखी है। इस किचन गार्डन में वह हल्दी और दूसरी सब्जियां लगाती हैं। रीना बताती हैं कि 2 साल से वह इसमें जुड़ी हुई हैं। सब्जियां घर में ही खा लेते हैं जबकि हल्दी को प्रोसेस कर बेच देते हैं। एक पौधे की जड़ में पौने किलो हल्दी निकलती है। जिससे उन्हें 3 से 4 हजार की इनकम हो जाती है। रीना कहती हैं कि हम इसे कोई पेस्टीसाइड या कैमिकल यूज नहीं करते। हमने केंचुआ खाद की ट्रेनिंग ले रखी है। उसी को इसमें डालते हैं। 2. सब्जी का 2 हजार का खर्च बचा, 600 रुपए किलो हल्दी बेच रहे
बसताड़ा के रहने वाले सुरेंद्र कुमार ने बताते हैं कि वह 4 साल से 200 गज के प्लॉट में किचन गार्डनिंग कर रहे हैं। उनका हर महीने का 2 हजार का सब्जी का खर्च बचा हुआ है। उनका कहना है कि मैंने यहां हल्दी भी लगाई है। कच्ची हल्दी 120 रुपए किलो बिकती है। वहीं पिसाई के बाद यह 600 रुपए किलो आसानी से बिक जाती है। यह हल्दी 3 साल तक खराब नहीं होती। हम इसमें कोई कीटनाशक यूज नहीं करते। सिर्फ जीवमृत यानी गोबर, पानी, वहां की मिट्‌टी आदि से मिलाकर खाद बनाकर उसे यूज करते हैं। गांव में इसकी 14 यूनिट लगी हुई हैं। 3. बाजार से सब्जियां खरीदनी बंद की
बड़ौता गांव की शांता देवी बताती हैं कि मैं 4–5 साल से जैविक खेती कर रही हूं। करीब 150 गज के प्लाट में हल्दी, धनिया, मैथी, पालक, गोभी व अन्य प्रकार की सब्जियां लगाते हैं। इसमें कीटनाशक की जगह जीवमृत की खाद बनाते हैं। मैंने यह काम घर में सब्जियां खाने के लिए किया है क्योंकि बाजार वाली सब्जियों में पेस्टीसाइड का इस्तेमाल होता है, इसलिए उन्हें खरीदना बंद ही कर दिया है। 4. बाजार में 250 की हल्दी, हम 600 रुपए किलो बेच रहे
हसनपुर गांव की बाला देवी ने बताती हैं कि मैंने प्राकृतिक खेती के तरीके से हल्दी तैयार की है। बाजार में तो हल्दी की कीमत 250 रुपए किलो है लेकिन मैं इसे घर में ही 600 रुपए किलो बेच रही हूं। इसी गांव की कौशल और रीना देवी ने किचन गार्डनिंग के साथ टमाटर की खेती भी की है। दोनों महिलाओं ने दिसंबर 2024 में मशरूम की खेती की भी ट्रेनिंग ली। अब उसका भी उत्पादन शुरू कर दिया है। किचन गार्डनिंग के लिए सरकार देती है मदद
​​​​​हरियाणा के पूर्व कृषि अधिकारी डॉ. राजेंद्र सिंह बताते हैं कि सरकार की प्राकृतिक खेती की योजना है। जिसके तहत किचन गार्डन करने के लिए देसी गाय की खरीद जरूरी है। सरकार इसके लिए 25 हजार की मदद देती है। इसके अलावा खाद के लिए 4 ड्रम खरीदने पर भी 3 हजार रुपए की मदद देती है। उन्होंने कहा कि कोई भी आदमी 50 गज से किचन गार्डन शुरू कर सकता है। इसके अलावा प्राकृतिक खेती करने पर उनके उत्पाद की ब्रांडिंग-पैकेजिंग पर भी प्रोत्साहन राशि देनी पड़ती है। बड़े पैमाने पर इसके लिए मार्केटिंग जरूरी
डॉ. राजेंद्र सिंह कहते है कि प्रदेश सरकार हरियाणा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन चला रही है। जिसके जरिए ज्यादातर महिलाओं ने न्यूट्रिटिव किचन गार्डनिंग को अपनाया है। हालांकि बड़े पैमाने पर इसके लिए मार्केटिंग की जरूरत है। जिसके जरिए इन्हें सीधे बाजार से जोड़ा जा सके।   हरियाणा | दैनिक भास्कर