कुछ चुटकुले ऐसे हैं, जिन्हें मैं कवि-सम्मेलनों में अपने शुरुआती दिनों से सुनता आया हूं। और इनमें से भी कुछ तो ऐसे हैं, जो तब भी वयोवृद्ध चुटकुले कहे जाते थे। ‘मोहनलाल जहां कहीं भी हो, घर चला जाए’ और ‘मैं तो उसे ढूंढ रहा हूं जिसने तुम्हें बुलाया है’ जैसे जुमले तब भी ठहाके की गारंटी थे और आज भी हैं। कवि-सम्मेलनों में चुटकुलों के अस्तित्व पर अलग-अलग विद्वानों के अलग-अलग विचार हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि चुटकुले अनाथ बच्चों की तरह होते हैं। ये यहां-वहां लावारिस घूमते रहते हैं। जब कोई कवि इन्हें कविता की शक्ल में ढालता है तो उसे उतना ही पुण्य मिलता है, जितना किसी अनाथ बच्चे को गोद लेकर पालने वाले पिता को मिलता है। लावारिस घूमते चुटकुले को कविता बनाकर संरक्षित करने वाले कवि को लानत नहीं प्रशंसा मिलनी चाहिए। कुछ कवियों की तो चुटकुलों पर लिखी गई कविताओं की किताबें भी प्रकाशित हुईं। इन महान कवियों के परोपकार भरे कार्य को आज के कुंठित आलोचक हिकारत की नजर से देखते हैं। चुटकुलों की तरह ही कविताओं की चोरी को लेकर भी खूब हंगामा मचता है। अरे भाई, मैंने एक कवि को किसी कवि-सम्मेलन में बुलाया। कविता-पाठ के एवज में उसे उचित मानदेय दिया। इससे प्रभावित होकर उसने कविता-पाठ करते समय अपनी कविता मुझे समर्पित की। मैंने उसके समर्पण भाव से भाव-विभोर होकर उसकी कविता को सहर्ष स्वीकार कर लिया। जब उसने अपनी कविता मुझे समर्पित कर दी, तो फिर तो वो मेरी हो गई ना। अब मैं उसे चाहे जैसे प्रयोग करूं। या तो वह उस दिन मंच से समर्पण का ढोंग कर रहा था। अन्यथा समर्पित करने के बाद कोई किसी वस्तु पर अपना हक कैसे जता सकता है। हक जताना तो दूर, वह स्वयं उसे सुनाने की सोच भी कैसे सकता है। एक बार समर्पित करने के बाद उसे अपना कहने वाला कवि, अपराधी है। मैंने तो नहीं कहा था कि वह मुझे कविता समर्पित करे। या तो वह अपनी कविता का अर्थ समझता नहीं था, या उसे बेकार समझता था। और अगर ये दोनों ही स्थितियां नहीं थीं, और उसने कवि-सम्मेलन में बुलाए जाने के बदले मुझे कविता समर्पित की थी तो भी यह बार्टर सिस्टम कहलाएगा। इसे चोरी कैसे कहा जा सकता है? कोई बड़ा कवि यदि किसी गुमनाम कवि की कविता को बड़े मंच पर सुना रहा है, तो छोटे कवि को उत्पात नहीं मचाना चाहिए। बल्कि उसे उस बड़े कवि का एहसान मानना चाहिए, छोटा कवि बिना पारिश्रमिक लिए पढ़ता रहता अपनी ‘श्रेष्ठ’ कविता को गली-मुहल्लों की गोष्ठियों में। तब उसे कविता का अपमान महसूस नहीं होता। लेकिन एक बेचारे बड़े कवि ने उसका सिंगार करके उसे भव्य अंतरराष्ट्रीय मंच पर सुना दिया तो वह बड़े कवि पर लानत फेंकने लगा। जिस कविता पर एक ताली तक नहीं बजती थी, उसी पर बड़े कवि ने म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बजवा दिए। हजारों की भीड़ उसी दबी-कुचली कविता पर झूम-झूमकर तालियों से ताल देने लगी, तो यह छोटे कवि को बर्दाश्त नहीं होता। कवि का दिल बड़ा होना चाहिए। उसकी कविता किसी ने चुरा ली तो उसे चोरी नहीं कहना चाहिए, बल्कि अपनी कविता चुराने के बदले उसका धन्यवाद करना चाहिए। सोशल मीडिया पर उसे कोसने से भी आप उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाओगे। क्योंकि जिन आयोजनों में वह बड़ा कवि आपकी कविता सुनाकर ‘सुपरहिट’ हो रहा है, उन आयोजनों में एंट्री करने का टिकट भी आप नहीं जुटा सकते, क्योंकि आप कवि हो! ’ ———————— ये कॉलम भी पढ़ें… राजनीतिक लड़ाकों का युग फिर से लौटेगा:सभी राजनैतिक पार्टियां पहलवानों को टिकट देंगी! लुप्तप्राय दंगल लौटकर आएंगे कुछ चुटकुले ऐसे हैं, जिन्हें मैं कवि-सम्मेलनों में अपने शुरुआती दिनों से सुनता आया हूं। और इनमें से भी कुछ तो ऐसे हैं, जो तब भी वयोवृद्ध चुटकुले कहे जाते थे। ‘मोहनलाल जहां कहीं भी हो, घर चला जाए’ और ‘मैं तो उसे ढूंढ रहा हूं जिसने तुम्हें बुलाया है’ जैसे जुमले तब भी ठहाके की गारंटी थे और आज भी हैं। कवि-सम्मेलनों में चुटकुलों के अस्तित्व पर अलग-अलग विद्वानों के अलग-अलग विचार हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि चुटकुले अनाथ बच्चों की तरह होते हैं। ये यहां-वहां लावारिस घूमते रहते हैं। जब कोई कवि इन्हें कविता की शक्ल में ढालता है तो उसे उतना ही पुण्य मिलता है, जितना किसी अनाथ बच्चे को गोद लेकर पालने वाले पिता को मिलता है। लावारिस घूमते चुटकुले को कविता बनाकर संरक्षित करने वाले कवि को लानत नहीं प्रशंसा मिलनी चाहिए। कुछ कवियों की तो चुटकुलों पर लिखी गई कविताओं की किताबें भी प्रकाशित हुईं। इन महान कवियों के परोपकार भरे कार्य को आज के कुंठित आलोचक हिकारत की नजर से देखते हैं। चुटकुलों की तरह ही कविताओं की चोरी को लेकर भी खूब हंगामा मचता है। अरे भाई, मैंने एक कवि को किसी कवि-सम्मेलन में बुलाया। कविता-पाठ के एवज में उसे उचित मानदेय दिया। इससे प्रभावित होकर उसने कविता-पाठ करते समय अपनी कविता मुझे समर्पित की। मैंने उसके समर्पण भाव से भाव-विभोर होकर उसकी कविता को सहर्ष स्वीकार कर लिया। जब उसने अपनी कविता मुझे समर्पित कर दी, तो फिर तो वो मेरी हो गई ना। अब मैं उसे चाहे जैसे प्रयोग करूं। या तो वह उस दिन मंच से समर्पण का ढोंग कर रहा था। अन्यथा समर्पित करने के बाद कोई किसी वस्तु पर अपना हक कैसे जता सकता है। हक जताना तो दूर, वह स्वयं उसे सुनाने की सोच भी कैसे सकता है। एक बार समर्पित करने के बाद उसे अपना कहने वाला कवि, अपराधी है। मैंने तो नहीं कहा था कि वह मुझे कविता समर्पित करे। या तो वह अपनी कविता का अर्थ समझता नहीं था, या उसे बेकार समझता था। और अगर ये दोनों ही स्थितियां नहीं थीं, और उसने कवि-सम्मेलन में बुलाए जाने के बदले मुझे कविता समर्पित की थी तो भी यह बार्टर सिस्टम कहलाएगा। इसे चोरी कैसे कहा जा सकता है? कोई बड़ा कवि यदि किसी गुमनाम कवि की कविता को बड़े मंच पर सुना रहा है, तो छोटे कवि को उत्पात नहीं मचाना चाहिए। बल्कि उसे उस बड़े कवि का एहसान मानना चाहिए, छोटा कवि बिना पारिश्रमिक लिए पढ़ता रहता अपनी ‘श्रेष्ठ’ कविता को गली-मुहल्लों की गोष्ठियों में। तब उसे कविता का अपमान महसूस नहीं होता। लेकिन एक बेचारे बड़े कवि ने उसका सिंगार करके उसे भव्य अंतरराष्ट्रीय मंच पर सुना दिया तो वह बड़े कवि पर लानत फेंकने लगा। जिस कविता पर एक ताली तक नहीं बजती थी, उसी पर बड़े कवि ने म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बजवा दिए। हजारों की भीड़ उसी दबी-कुचली कविता पर झूम-झूमकर तालियों से ताल देने लगी, तो यह छोटे कवि को बर्दाश्त नहीं होता। कवि का दिल बड़ा होना चाहिए। उसकी कविता किसी ने चुरा ली तो उसे चोरी नहीं कहना चाहिए, बल्कि अपनी कविता चुराने के बदले उसका धन्यवाद करना चाहिए। सोशल मीडिया पर उसे कोसने से भी आप उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाओगे। क्योंकि जिन आयोजनों में वह बड़ा कवि आपकी कविता सुनाकर ‘सुपरहिट’ हो रहा है, उन आयोजनों में एंट्री करने का टिकट भी आप नहीं जुटा सकते, क्योंकि आप कवि हो! ’ ———————— ये कॉलम भी पढ़ें… राजनीतिक लड़ाकों का युग फिर से लौटेगा:सभी राजनैतिक पार्टियां पहलवानों को टिकट देंगी! लुप्तप्राय दंगल लौटकर आएंगे उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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