साढ़े 3 साल की उम्र में अनाथ, रिश्तेदारों ने निकाला:लंबी जटा और हाथ में तलवार महामंडलेश्वर की पहचान

साढ़े 3 साल की उम्र में अनाथ, रिश्तेदारों ने निकाला:लंबी जटा और हाथ में तलवार महामंडलेश्वर की पहचान

लंबी जटा, हाथ में तलवार। महामंडलेश्वर ईश्वरीनंद गिरि की यही पहचान है। प्रयागराज महाकुंभ में देश भर के साधु-संत आए हैं। किन्नर संत भी महाकुंभ के साक्षी बन रहे हैं। महाकुंभ क्षेत्र के सेक्टर-16 स्थित किन्नर अखाड़े में बड़ी संख्या में लोग किन्नर संतों का आशीर्वाद लेने उमड़ रहे हैं। सबसे ज्यादा भीड़ आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के शिविर के बाहर दिख रही है। लोग उनके आशीर्वाद के लिए जद्दोजहद करते दिखे। यहीं हमें हाथों में तलवार और माथे पर त्रिपुंड लगाए सिंहासन पर विराजमान एक किन्नर संत दिखीं। चारों तरफ बाउंसर उनकी सुरक्षा में लगे थे। लोग उनके पैर छूकर आशीर्वाद ले रहे थे। पूछने पर पता चला साध्वी ईश्वरीनंद गिरि महाराज हैं, जो मेवाड़ से हैं। 2 दिन पहले यह किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनाई गई हैं। हम उनके बारे में जानने को सीधे उन्हीं के पास पहुंचे। बातचीत के दौरान वह भावुक हो जाती हैं। उन्होंने बताया कि जन्म मेवाड़ के कोमलगढ़ में हुआ था। जिस उम्र में मां की गोद में लेटकर अपनेपन का एहसास करना था, पिता की उंगली पकड़कर चलना सीखना था, उस उम्र में मां-बाप का साथ छूट गया। जब उनकी डेथ हुई तो मेरी उम्र साढ़े 3 साल रही होगी। मेरी दुनिया ही उजड़ गई थी, बचपन खत्म हो चुका था, मैं अनाथ हो चुकी थी। रिश्तेदारों ने मुझे बड़ा किया, लेकिन जब मेरी उम्र करीब 13 साल थी, तो रिश्तेदारों के लिए भी मैं बोझ बनने लगी। बहू-बेटे के चक्कर में घर से निकाल दिया
जिन रिश्तेदार के यहां रहती थी, उन्हें भी लोग ताने मारते थे, क्योंकि मैं किन्नर थी। उनके बेटे की शादी हुई और घर में बहू आई तो उसके बाद मेरा रहना मुश्किल हो गया। आखिरकार मुझे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। मैं सड़क पर आ चुकी थी, मेरी पढ़ाई भी छूट चुकी थी। कोई विकल्प नहीं था। जीवन यापन के लिए कुछ दिन मजदूरी की, खेतों में मजदूरी करती, गाय-भैंस की देखभाल करती थी, लेकिन वह समाज हमारे लिए नहीं था। हर जगह लोग गंदी नजरों से देखते थे। फिर मैं किन्नरों के ही बीच पहुंची और वहां भी संघर्ष करती रही। 2015 में किन्नर अखाड़े के गठन के बाद मैं यहां से जुड़ गई, पहली महंत बनी और आज महामंडलेश्वर बन चुकी हूंं। संत कौन बनेगा?… सवाल पर मेरा हाथ पहले उठता
महामंडलेश्वर ईश्वरीनंद ने बताया कि धर्म-अध्यात्म के प्रति मेरी रुचि और श्रद्धा शुरू से ही रही। मैं जिस गांव में पली-बढ़ी, वह जैनियों का गांव था। वहां चौमासा करने के लिए जैन मुनि आया करते थे, मैं भी उनकी ज्ञानशाला में जाया करती थी। उस ज्ञानशाला मैं मैंने बहुत ज्ञान भी अर्जित किया। वहां वो लोग पूछते थे इसमें संत कौन बनेगा? इस सवाल पर सबसे पहले मेरा हाथ उठता था। मैंने भगवान शिव, हनुमान की भी खूब पूजा की, इसके बाद कृष्ण की भक्ति शुरू कर दी। उदयपुर के मंदिर में कृष्ण बनी थी। सनातन धर्म के लिए 415 दिन भारत यात्रा की
वह कहती हैं कि जब किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से मिली तो अखाड़े के प्रचार-प्रसार में जुट गई। 17 नवंबर 2023 से हमने ‘संपूर्ण भारत यात्रा’ शुरू कर दी थी जो महाकुंभ तक जारी रही। यह यात्रा करीब 415 दिन की थी और इसका उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करना और लोगों को सनातन से जोड़ना था। यह कार्य मेरे गुरु डॉ. लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी को बहुत अच्छा लगा। उन्होंने मुझे महामंडलेश्वर बनाया। 3 हजार से ज्यादा लोगों को सिखाई तलवारबाजी महामंडलेश्वर ईश्वरीनंद बताती हैं कि आज हर किसी के हाथों में आईफोन, मोबाइल है, लेकिन मैं मोबाइल नहीं, हाथ में तलवार लेकर चलना पसंद करती हूं। खुद की सुरक्षा के लिए भी यह जरूरी है। दरअसल, इन्होंने तलवारबाजी भी अच्छे तरीके से सीखी है। जब भारत यात्रा पर थीं तो 3 हजार से ज्यादा महिला और पुरुषों को तलवारबाजी भी सिखाई। उनका कहना है कि ‘मेरा प्रयास ज्यादा से ज्यादा लोगों को तलवारबाजी सिखाना है, ताकि वह खुद के साथ-साथ भारत की रक्षा कर सकें और यहां यूक्रेन जैसी स्थिति कभी न होने दें।’ ———————- ये खबर भी पढ़ें… 49, 61 या 100, भगदड़ में मौतों का आंकड़ा क्या:महाकुंभ में एक नहीं 3 जगह भगदड़ हुई, GT रोड पर भी 5 मरे महाकुंभ में 28 जनवरी की देर रात करीब 1:30 बजे संगम नोज इलाके में भगदड़ हुई। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 30 लोगों की मौत हुई है और 60 लोग घायल हैं। भगदड़ सिर्फ एक जगह हुई और मरने वालों की संख्या सिर्फ 30 है, ये दोनों ही बातें सवालों के घेरे में है। पढ़ें पूरी खबर लंबी जटा, हाथ में तलवार। महामंडलेश्वर ईश्वरीनंद गिरि की यही पहचान है। प्रयागराज महाकुंभ में देश भर के साधु-संत आए हैं। किन्नर संत भी महाकुंभ के साक्षी बन रहे हैं। महाकुंभ क्षेत्र के सेक्टर-16 स्थित किन्नर अखाड़े में बड़ी संख्या में लोग किन्नर संतों का आशीर्वाद लेने उमड़ रहे हैं। सबसे ज्यादा भीड़ आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के शिविर के बाहर दिख रही है। लोग उनके आशीर्वाद के लिए जद्दोजहद करते दिखे। यहीं हमें हाथों में तलवार और माथे पर त्रिपुंड लगाए सिंहासन पर विराजमान एक किन्नर संत दिखीं। चारों तरफ बाउंसर उनकी सुरक्षा में लगे थे। लोग उनके पैर छूकर आशीर्वाद ले रहे थे। पूछने पर पता चला साध्वी ईश्वरीनंद गिरि महाराज हैं, जो मेवाड़ से हैं। 2 दिन पहले यह किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनाई गई हैं। हम उनके बारे में जानने को सीधे उन्हीं के पास पहुंचे। बातचीत के दौरान वह भावुक हो जाती हैं। उन्होंने बताया कि जन्म मेवाड़ के कोमलगढ़ में हुआ था। जिस उम्र में मां की गोद में लेटकर अपनेपन का एहसास करना था, पिता की उंगली पकड़कर चलना सीखना था, उस उम्र में मां-बाप का साथ छूट गया। जब उनकी डेथ हुई तो मेरी उम्र साढ़े 3 साल रही होगी। मेरी दुनिया ही उजड़ गई थी, बचपन खत्म हो चुका था, मैं अनाथ हो चुकी थी। रिश्तेदारों ने मुझे बड़ा किया, लेकिन जब मेरी उम्र करीब 13 साल थी, तो रिश्तेदारों के लिए भी मैं बोझ बनने लगी। बहू-बेटे के चक्कर में घर से निकाल दिया
जिन रिश्तेदार के यहां रहती थी, उन्हें भी लोग ताने मारते थे, क्योंकि मैं किन्नर थी। उनके बेटे की शादी हुई और घर में बहू आई तो उसके बाद मेरा रहना मुश्किल हो गया। आखिरकार मुझे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। मैं सड़क पर आ चुकी थी, मेरी पढ़ाई भी छूट चुकी थी। कोई विकल्प नहीं था। जीवन यापन के लिए कुछ दिन मजदूरी की, खेतों में मजदूरी करती, गाय-भैंस की देखभाल करती थी, लेकिन वह समाज हमारे लिए नहीं था। हर जगह लोग गंदी नजरों से देखते थे। फिर मैं किन्नरों के ही बीच पहुंची और वहां भी संघर्ष करती रही। 2015 में किन्नर अखाड़े के गठन के बाद मैं यहां से जुड़ गई, पहली महंत बनी और आज महामंडलेश्वर बन चुकी हूंं। संत कौन बनेगा?… सवाल पर मेरा हाथ पहले उठता
महामंडलेश्वर ईश्वरीनंद ने बताया कि धर्म-अध्यात्म के प्रति मेरी रुचि और श्रद्धा शुरू से ही रही। मैं जिस गांव में पली-बढ़ी, वह जैनियों का गांव था। वहां चौमासा करने के लिए जैन मुनि आया करते थे, मैं भी उनकी ज्ञानशाला में जाया करती थी। उस ज्ञानशाला मैं मैंने बहुत ज्ञान भी अर्जित किया। वहां वो लोग पूछते थे इसमें संत कौन बनेगा? इस सवाल पर सबसे पहले मेरा हाथ उठता था। मैंने भगवान शिव, हनुमान की भी खूब पूजा की, इसके बाद कृष्ण की भक्ति शुरू कर दी। उदयपुर के मंदिर में कृष्ण बनी थी। सनातन धर्म के लिए 415 दिन भारत यात्रा की
वह कहती हैं कि जब किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से मिली तो अखाड़े के प्रचार-प्रसार में जुट गई। 17 नवंबर 2023 से हमने ‘संपूर्ण भारत यात्रा’ शुरू कर दी थी जो महाकुंभ तक जारी रही। यह यात्रा करीब 415 दिन की थी और इसका उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करना और लोगों को सनातन से जोड़ना था। यह कार्य मेरे गुरु डॉ. लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी को बहुत अच्छा लगा। उन्होंने मुझे महामंडलेश्वर बनाया। 3 हजार से ज्यादा लोगों को सिखाई तलवारबाजी महामंडलेश्वर ईश्वरीनंद बताती हैं कि आज हर किसी के हाथों में आईफोन, मोबाइल है, लेकिन मैं मोबाइल नहीं, हाथ में तलवार लेकर चलना पसंद करती हूं। खुद की सुरक्षा के लिए भी यह जरूरी है। दरअसल, इन्होंने तलवारबाजी भी अच्छे तरीके से सीखी है। जब भारत यात्रा पर थीं तो 3 हजार से ज्यादा महिला और पुरुषों को तलवारबाजी भी सिखाई। उनका कहना है कि ‘मेरा प्रयास ज्यादा से ज्यादा लोगों को तलवारबाजी सिखाना है, ताकि वह खुद के साथ-साथ भारत की रक्षा कर सकें और यहां यूक्रेन जैसी स्थिति कभी न होने दें।’ ———————- ये खबर भी पढ़ें… 49, 61 या 100, भगदड़ में मौतों का आंकड़ा क्या:महाकुंभ में एक नहीं 3 जगह भगदड़ हुई, GT रोड पर भी 5 मरे महाकुंभ में 28 जनवरी की देर रात करीब 1:30 बजे संगम नोज इलाके में भगदड़ हुई। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 30 लोगों की मौत हुई है और 60 लोग घायल हैं। भगदड़ सिर्फ एक जगह हुई और मरने वालों की संख्या सिर्फ 30 है, ये दोनों ही बातें सवालों के घेरे में है। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर