यह सिंध सरकार की सफलता की कहानी है:जब हिंदू परिवार के घर को म्यूजियम में बदल दिया गया

यह सिंध सरकार की सफलता की कहानी है:जब हिंदू परिवार के घर को म्यूजियम में बदल दिया गया

यह कहानी एक सिंधी हिंदू परिवार की है, जो अब पाकिस्तान में नहीं रहता है, लेकिन सिंध सरकार ने उनके घर को एक संग्रहालय में बदलकर उनकी पुरानी यादों को संजोया है। इस हिंदू परिवार के कुछ सदस्य 1947 में मुंबई चले गए थे और जो बच गए थे, वे स्थानीय सामंतों की धमकियों से तंग आकर 1957 में अमेरिका। लेकिन अब इस परिवार की अगली पीढ़ी के लोग बिना किसी डर या हिचक के अपने पूर्वजों के घर को कभी भी देखने आ सकते हैं। अगर आपको भी पाकिस्तानी सिंध प्रांत के हैदराबाद जाने का मौका मिले तो मुखी महल देखने जरूर जाना चाहिए, जिसे अब मुखी संग्रहालय कहा जाता है।
मुखी महल को 1920 में दो हिंदू भाइयों मुखी जेठानंद और मुखी गोबिंदराम ने हैदराबाद के पुराने पक्का किला के पास बनवाया था। यह महल वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना था। इसकी फर्श का काम जोधपुर और पत्थर का काम जयपुर से आए विशेषज्ञों द्वारा किया गया था। जेठानंद का 1927 में निधन हो गया, जिसके बाद इस महल का स्वामित्व उनके छोटे भाई गोबिंदराम को मिल गया। उन्होंने अपने दिवंगत भाई के परिवार का भी अच्छी तरह खयाल रखा। मुखी गोबिंदराम कांग्रेस पार्टी में बहुत सक्रिय थे और जवाहरलाल नेहरू (जो बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने) ने इस महल में कई पार्टी बैठकों की अध्यक्षता की थी। मुखी महल की दीवारों पर आज भी नेहरू के साथ उनकी कई तस्वीरें टंगी हुई हैं। संग्रहालय में बदले गए इस महल के ग्राउंड फ्लोर पर पुराने फर्नीचर, राइफल्स, मिट्टी के बर्तन और तस्वीरें प्रदर्शित की गई हैं। महल की दीवारों पर गोबिंदराम मुखी की बेटी धरम मुखी की भी कई तस्वीरें देखी जा सकती हैं। धरम मुखी कांग्रेस की महिला शाखा में बहुत सक्रिय थीं और उन्होंने इस महल में कई राजनीतिक सभाओं का आयोजन किया था। धरम मुखी और उनके परिवार के कुछ सदस्य 1947 में पाकिस्तान में ही रह गए थे। उन्हें स्थानीय मुसलमानों ने उनकी रक्षा करने का आश्वासन दिया था। लेकिन 1957 में कुछ स्थानीय सामंतों ने मुखी परिवार की कृषि भूमि पर कब्जा करने की कोशिश की और उन्हें धमकाया। इसके बाद यह परिवार अमेरिका चला गया और मुखी महल पर राजस्व विभाग ने कब्जा कर लिया। कुछ वर्षों बाद इस इमारत को गर्ल्स स्कूल में बदल दिया गया, लेकिन सिंध सरकार के सांस्कृतिक विभाग ने इस पर आपत्ति जताई। वह इसे एक हेरिटेज साइट घोषित करना चाहता था। रेंजर्स ने भी इस महल पर कब्जा कर अपने मुख्यालय के रूप में उपयोग करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गई। आखिरकार पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की अगुवाई वाली सिंध सरकार ने 2009 में इसे एक संग्रहालय में बदलने का फैसला किया और इसकी मरम्मत एवं साज-सज्जा के लिए कुछ धनराशि आवंटित की। इस बीच, सिंध सरकार ने मुखी गोबिंदराम की अमेरिका में रह रहीं बेटी इंद्रु वातुमल को खोज निकाला। उन्हें सिंध सूबे की सरकार को मुखी संग्रहालय स्थापित करने में मदद करने के लिए पाकिस्तान आमंत्रित किया गया। इंद्रु ने भारत और अमेरिका में रह रहे परिवार के 27 सदस्यों से लिखित अनुमति लेकर सरकार की मदद की, ताकि मुखी महल को संग्रहालय में बदला जा सके। इस बुजुर्ग महिला ने अपने परिवार की कई पुरानी तस्वीरें भी मुहैया कराईं, जो संग्रहालय का हिस्सा बनीं। उनकी बड़ी बहन धरम मुखी अभी भी जीवित हैं, लेकिन अपनी वृद्धावस्था के कारण यात्रा नहीं कर सकतीं। इंद्रु ने हाल ही में मुखी संग्रहालय में परिवार का पुनर्मिलन आयोजित किया और उनके पुराने पारिवारिक घर को संरक्षित करने के लिए सिंध सरकार को शुक्रिया कहा। मैंने सिंध सरकार के कई अधिकारियों से पूछा कि उन्होंने मुखी महल को संग्रहालय में बदलने के लिए इतनी मशक्कत क्यों की? सिंध के सांस्कृतिक मंत्री जुल्फिकार अली शाह ने बताया कि हम एक खूबसूरत ऐतिहासिक इमारत को भू-माफिया से बचाना चाहते थे, जिनका इरादा इसे तोड़कर यहां एक शॉपिंग प्लाजा बनाना था। दूसरा मकसद सिंध के हिंदू समुदाय को यह सद्भावना संदेश देना था कि उनकी धरोहर सुरक्षित है। यह सिंध सरकार की सफलता की कहानी है, लेकिन खैबर पख्तूनख्वा (केपीके) सरकार की असफलता की भी एक दास्तान है। केपीके सरकार ने पेशावर में दिलीप कुमार और राज कपूर के पुराने पारिवारिक घरों को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित करने की घोषणा की थी, लेकिन वे इसके लिए धन ही मुहैया नहीं करवा पाई। ये दोनों घर ऐतिहासिक किस्सा ख्वानी बाजार के बीचो-बीच स्थित हैं। अब विश्व बैंक आगे आया है और इनके संरक्षण के लिए केपीके सरकार को कुछ धनराशि प्रदान की है। उल्लेखनीय है कि 2014 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने दिलीप कुमार के घर को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया था, लेकिन इसे संरक्षित करने में विफल रहे। 2013 से केपीके पर शासन कर रही इमरान खान की पीटीआई सरकार ने भी इसके लिए कभी कोई पैसा नहीं दिया। उम्मीद है कि केपीके सरकार सिंध सरकार के नक्शेकदम पर चलेगी और जल्दी ही दिलीप कुमार और राज कपूर के घरों को संरक्षित करेगी। ———— ये कॉलम भी पढ़ें… आइए, पाकिस्तान में करें ‘भारत की खोज’!:कराची में दिल्ली और बिहार कॉलोनी मिलेगी; लखनऊ सोसाइटी और बनारस टाउन भी यह कहानी एक सिंधी हिंदू परिवार की है, जो अब पाकिस्तान में नहीं रहता है, लेकिन सिंध सरकार ने उनके घर को एक संग्रहालय में बदलकर उनकी पुरानी यादों को संजोया है। इस हिंदू परिवार के कुछ सदस्य 1947 में मुंबई चले गए थे और जो बच गए थे, वे स्थानीय सामंतों की धमकियों से तंग आकर 1957 में अमेरिका। लेकिन अब इस परिवार की अगली पीढ़ी के लोग बिना किसी डर या हिचक के अपने पूर्वजों के घर को कभी भी देखने आ सकते हैं। अगर आपको भी पाकिस्तानी सिंध प्रांत के हैदराबाद जाने का मौका मिले तो मुखी महल देखने जरूर जाना चाहिए, जिसे अब मुखी संग्रहालय कहा जाता है।
मुखी महल को 1920 में दो हिंदू भाइयों मुखी जेठानंद और मुखी गोबिंदराम ने हैदराबाद के पुराने पक्का किला के पास बनवाया था। यह महल वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना था। इसकी फर्श का काम जोधपुर और पत्थर का काम जयपुर से आए विशेषज्ञों द्वारा किया गया था। जेठानंद का 1927 में निधन हो गया, जिसके बाद इस महल का स्वामित्व उनके छोटे भाई गोबिंदराम को मिल गया। उन्होंने अपने दिवंगत भाई के परिवार का भी अच्छी तरह खयाल रखा। मुखी गोबिंदराम कांग्रेस पार्टी में बहुत सक्रिय थे और जवाहरलाल नेहरू (जो बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने) ने इस महल में कई पार्टी बैठकों की अध्यक्षता की थी। मुखी महल की दीवारों पर आज भी नेहरू के साथ उनकी कई तस्वीरें टंगी हुई हैं। संग्रहालय में बदले गए इस महल के ग्राउंड फ्लोर पर पुराने फर्नीचर, राइफल्स, मिट्टी के बर्तन और तस्वीरें प्रदर्शित की गई हैं। महल की दीवारों पर गोबिंदराम मुखी की बेटी धरम मुखी की भी कई तस्वीरें देखी जा सकती हैं। धरम मुखी कांग्रेस की महिला शाखा में बहुत सक्रिय थीं और उन्होंने इस महल में कई राजनीतिक सभाओं का आयोजन किया था। धरम मुखी और उनके परिवार के कुछ सदस्य 1947 में पाकिस्तान में ही रह गए थे। उन्हें स्थानीय मुसलमानों ने उनकी रक्षा करने का आश्वासन दिया था। लेकिन 1957 में कुछ स्थानीय सामंतों ने मुखी परिवार की कृषि भूमि पर कब्जा करने की कोशिश की और उन्हें धमकाया। इसके बाद यह परिवार अमेरिका चला गया और मुखी महल पर राजस्व विभाग ने कब्जा कर लिया। कुछ वर्षों बाद इस इमारत को गर्ल्स स्कूल में बदल दिया गया, लेकिन सिंध सरकार के सांस्कृतिक विभाग ने इस पर आपत्ति जताई। वह इसे एक हेरिटेज साइट घोषित करना चाहता था। रेंजर्स ने भी इस महल पर कब्जा कर अपने मुख्यालय के रूप में उपयोग करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गई। आखिरकार पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की अगुवाई वाली सिंध सरकार ने 2009 में इसे एक संग्रहालय में बदलने का फैसला किया और इसकी मरम्मत एवं साज-सज्जा के लिए कुछ धनराशि आवंटित की। इस बीच, सिंध सरकार ने मुखी गोबिंदराम की अमेरिका में रह रहीं बेटी इंद्रु वातुमल को खोज निकाला। उन्हें सिंध सूबे की सरकार को मुखी संग्रहालय स्थापित करने में मदद करने के लिए पाकिस्तान आमंत्रित किया गया। इंद्रु ने भारत और अमेरिका में रह रहे परिवार के 27 सदस्यों से लिखित अनुमति लेकर सरकार की मदद की, ताकि मुखी महल को संग्रहालय में बदला जा सके। इस बुजुर्ग महिला ने अपने परिवार की कई पुरानी तस्वीरें भी मुहैया कराईं, जो संग्रहालय का हिस्सा बनीं। उनकी बड़ी बहन धरम मुखी अभी भी जीवित हैं, लेकिन अपनी वृद्धावस्था के कारण यात्रा नहीं कर सकतीं। इंद्रु ने हाल ही में मुखी संग्रहालय में परिवार का पुनर्मिलन आयोजित किया और उनके पुराने पारिवारिक घर को संरक्षित करने के लिए सिंध सरकार को शुक्रिया कहा। मैंने सिंध सरकार के कई अधिकारियों से पूछा कि उन्होंने मुखी महल को संग्रहालय में बदलने के लिए इतनी मशक्कत क्यों की? सिंध के सांस्कृतिक मंत्री जुल्फिकार अली शाह ने बताया कि हम एक खूबसूरत ऐतिहासिक इमारत को भू-माफिया से बचाना चाहते थे, जिनका इरादा इसे तोड़कर यहां एक शॉपिंग प्लाजा बनाना था। दूसरा मकसद सिंध के हिंदू समुदाय को यह सद्भावना संदेश देना था कि उनकी धरोहर सुरक्षित है। यह सिंध सरकार की सफलता की कहानी है, लेकिन खैबर पख्तूनख्वा (केपीके) सरकार की असफलता की भी एक दास्तान है। केपीके सरकार ने पेशावर में दिलीप कुमार और राज कपूर के पुराने पारिवारिक घरों को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित करने की घोषणा की थी, लेकिन वे इसके लिए धन ही मुहैया नहीं करवा पाई। ये दोनों घर ऐतिहासिक किस्सा ख्वानी बाजार के बीचो-बीच स्थित हैं। अब विश्व बैंक आगे आया है और इनके संरक्षण के लिए केपीके सरकार को कुछ धनराशि प्रदान की है। उल्लेखनीय है कि 2014 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने दिलीप कुमार के घर को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया था, लेकिन इसे संरक्षित करने में विफल रहे। 2013 से केपीके पर शासन कर रही इमरान खान की पीटीआई सरकार ने भी इसके लिए कभी कोई पैसा नहीं दिया। उम्मीद है कि केपीके सरकार सिंध सरकार के नक्शेकदम पर चलेगी और जल्दी ही दिलीप कुमार और राज कपूर के घरों को संरक्षित करेगी। ———— ये कॉलम भी पढ़ें… आइए, पाकिस्तान में करें ‘भारत की खोज’!:कराची में दिल्ली और बिहार कॉलोनी मिलेगी; लखनऊ सोसाइटी और बनारस टाउन भी   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर