पंजाब में फर्जी एनकाउंटर केस में आज होगी सजा:1992 में आतंकी बताकर नाबालिग और आर्मी जवान को मारा था, 1999 में चार्जशीट हुई

पंजाब में फर्जी एनकाउंटर केस में आज होगी सजा:1992 में आतंकी बताकर नाबालिग और आर्मी जवान को मारा था, 1999 में चार्जशीट हुई

अमृतसर में 32 साल पहले (1992) हुए बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा और कुलवंत सिंह के फर्जी एनकाउंटर मामले में मोहाली की विशेष सीबीआई अदालत आज (4 फरवरी) दो पूर्व पुलिसकर्मियों को सजा सुनाएगी। हालांकि, अदालत ने इन लोगों को चार दिन पहले ही दोषी करार दिया है। दोषियों में तत्कालीन एसएचओ मजीठा पुरुषोत्तम सिंह और एएसआई गुरभिंदर सिंह शामिल हैं। इन्हें हत्या और साजिश के आरोप में दोषी करार दिया गया है। जबकि इंस्पेक्टर चमन लाल और डीएसपी एसएस सिद्धू को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। हालांकि, फर्जी एनकाउंटर के समय वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने दावा किया था कि उक्त दोनों कट्टर आतंकवादी थे, जिन पर इनाम घोषित किया गया था। वे हत्या, जबरन वसूली, डकैती आदि के सैकड़ों मामलों में शामिल थे। हरभजन सिंह उर्फ ​​शिंदी यानी पंजाब की बेअंत सिंह सरकार में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री गुरमीत सिंह के बेटे की हत्या में भी शामिल था। हालांकि, हकीकत में उनमें से एक सेना का जवान था और दूसरा 16 साल का नाबालिग था। इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जंग लड़ी इस मामले की जांच सीबीआई ने 1995 ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शुरू की थी। सीबीआई की जांच में सामने आया कि बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा को 6 अगस्त 1992 एसआई मोहिंदर सिंह और हरभजन सिंह, तत्कालीन एसएचओ पीएस छहरटा के नेतृत्व वाली पुलिस पार्टी ने गांव बसेरके भैनी में उसके घर से उठाया था। इसी तरह लखविंदर सिंह उर्फ ​​लक्खा फोर्ड निवासी गांव सुल्तानविंड को भी 12 सितंबर 1992 को प्रीत नगर अमृतसर में उसके किराए के घर से कुलवंत सिंह नामक एक व्यक्ति के साथ पकड़ा गया था, जिसका नेतृत्व एसआई गुरभिंदर सिंह, तत्कालीन एसएचओ पीएस मजीठा के नेतृत्व वाली पुलिस पार्टी ने किया था, लेकिन बाद में कुलवंत सिंह को छोड़ दिया गया था। पुलिस ने फर्जी मुकाबला दिखाकर की थी हत्या जानकारी के मुताबिक अमृतसर जिले के भैणी बासकरे के फौजी जवान बलदेव सिंह देवा को जब वह छुट्‌टी आया हुआ था। पुलिस ने उसे अपनी हिरासत में ले लिया था। इसके बाद झूठा पुलिस मुकाबला दिखाकर उसकी हत्या कर दी थी। दूसरा मामला 16 साल के नाबालिग लखविदंर सिंह की हत्या से जुड़ा हुआ था। उसे भी इसी भी तरह घर से उठाकर मारा था। लेकिन इसके बाद उसका कोई सुराग नहीं लग पाया था। काफी समय तक परिवार वाले उनकी तलाश करते रहे। उन्होंने इस मामले में अदालत तक जंग लड़ी। इसके बाद इन मामलों की जांच पर पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। CBI जांच में पुलिस की कहानी पड़ गई झूठी जांच के दौरान, सीबीआई ने पाया कि पुलिस स्टेशन छेहरटा की पुलिस ने मंत्री के बेटे की हत्या के मामले में देबा और लक्खा को झूठा फंसाया। जिसकी हत्या 23.7.1992 को हुई थी और उसके बाद 12.9.1992 को छेहरटा पुलिस ने उस हत्या के मामले में बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा की गिरफ्तारी दिखाई थी और 13.9.1992 को दोनों मारे गए और पुलिस ने कहानी गढ़ी कि हथियार और गोला-बारूद की बरामदगी के लिए बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा को गांव संसारा के पास ले जाते समय आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ हुई। इसमें बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा और एक हमलावर मारा गया, जिसकी बाद में पहचान लखविंदर सिंह उर्फ ​​लक्खा उर्फ ​​फोर्ड के रूप में हुई। सीबीआई ने निष्कर्ष निकाला कि दोनों को उठाया गया, अवैध हिरासत में रखा गया और फिर फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया। पोस्टमार्टम में खुली पुलिस की पोल सीबीआई ने यह भी पाया कि पुलिस द्वारा दिखाए गई मुठभेड़ की कथित घटना पर पुलिस वाहनों के दौरे के बारे में लॉग बुक में कोई प्रविष्टि नहीं थी। यहां तक ​​कि पुलिस ने यह भी दिखाया कि मुठभेड़ के दौरान मारे गए अज्ञात हमलावर आतंकवादी की पहचान घायल बलदेव सिंह देबा ने की थी,। हालांकि देबा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसकी तुरंत मृत्यु हो गई थी, इसलिए उसके द्वारा पहचान की दलील नहीं उठती। 19 गवाहों की हो चुकी है मौत 30.8.1999 को सीबीआई ने एसएस सिद्धू, हरभजन सिंह, मोहिंदर सिंह, पुरुषोत्तम लाल, चमन लाल, गुरभिंदर सिंह, मोहन सिंह, पुरुषोत्तम सिंह और जस्सा सिंह के खिलाफ अपहरण, आपराधिक साजिश, हत्या, झूठे रिकॉर्ड तैयार करने के लिए चार्जशीट दायर की। लेकिन गवाहों के बयान 2022 के बाद दर्ज किए गए। क्योंकि इस अवधि के दौरान उच्च न्यायालयों के आदेशों पर मामला स्थगित रहा। पीड़ित परिवार के वकील सरबजीत सिंह वेरका ने कहा कि हालांकि सीबीआई ने इस मामले में 37 गवाहों का हवाला दिया था, लेकिन मुकदमे के दौरान केवल 19 गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं क्योंकि सीबीआई द्वारा बनाए अधिकांश गवाहों की देरी से सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई थी और अंत में घटना के 32 साल बाद न्याय मिला है। इसी तरह इस विलंबित मुकदमे के दौरान, आरोपी हरभजन सिंह, मोहिंदर सिंह, पुरुषोत्तम लाल, मोहन सिंह और जस्सा सिंह की भी मृत्यु हो गई थी और आरोपी एसएस सिद्धू तत्कालीन डीएसपी, अमृतसर, चमन लाल तत्कालीन सीआईए इंचार्ज, अमृतसर, गुरभिंदर सिंह तत्कालीन एसएचओ पीएस मजीठा और एएसआई पुरुषोत्तम सिंह ने इस मामले में मुकदमे का सामना किया। अमृतसर में 32 साल पहले (1992) हुए बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा और कुलवंत सिंह के फर्जी एनकाउंटर मामले में मोहाली की विशेष सीबीआई अदालत आज (4 फरवरी) दो पूर्व पुलिसकर्मियों को सजा सुनाएगी। हालांकि, अदालत ने इन लोगों को चार दिन पहले ही दोषी करार दिया है। दोषियों में तत्कालीन एसएचओ मजीठा पुरुषोत्तम सिंह और एएसआई गुरभिंदर सिंह शामिल हैं। इन्हें हत्या और साजिश के आरोप में दोषी करार दिया गया है। जबकि इंस्पेक्टर चमन लाल और डीएसपी एसएस सिद्धू को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। हालांकि, फर्जी एनकाउंटर के समय वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने दावा किया था कि उक्त दोनों कट्टर आतंकवादी थे, जिन पर इनाम घोषित किया गया था। वे हत्या, जबरन वसूली, डकैती आदि के सैकड़ों मामलों में शामिल थे। हरभजन सिंह उर्फ ​​शिंदी यानी पंजाब की बेअंत सिंह सरकार में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री गुरमीत सिंह के बेटे की हत्या में भी शामिल था। हालांकि, हकीकत में उनमें से एक सेना का जवान था और दूसरा 16 साल का नाबालिग था। इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जंग लड़ी इस मामले की जांच सीबीआई ने 1995 ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शुरू की थी। सीबीआई की जांच में सामने आया कि बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा को 6 अगस्त 1992 एसआई मोहिंदर सिंह और हरभजन सिंह, तत्कालीन एसएचओ पीएस छहरटा के नेतृत्व वाली पुलिस पार्टी ने गांव बसेरके भैनी में उसके घर से उठाया था। इसी तरह लखविंदर सिंह उर्फ ​​लक्खा फोर्ड निवासी गांव सुल्तानविंड को भी 12 सितंबर 1992 को प्रीत नगर अमृतसर में उसके किराए के घर से कुलवंत सिंह नामक एक व्यक्ति के साथ पकड़ा गया था, जिसका नेतृत्व एसआई गुरभिंदर सिंह, तत्कालीन एसएचओ पीएस मजीठा के नेतृत्व वाली पुलिस पार्टी ने किया था, लेकिन बाद में कुलवंत सिंह को छोड़ दिया गया था। पुलिस ने फर्जी मुकाबला दिखाकर की थी हत्या जानकारी के मुताबिक अमृतसर जिले के भैणी बासकरे के फौजी जवान बलदेव सिंह देवा को जब वह छुट्‌टी आया हुआ था। पुलिस ने उसे अपनी हिरासत में ले लिया था। इसके बाद झूठा पुलिस मुकाबला दिखाकर उसकी हत्या कर दी थी। दूसरा मामला 16 साल के नाबालिग लखविदंर सिंह की हत्या से जुड़ा हुआ था। उसे भी इसी भी तरह घर से उठाकर मारा था। लेकिन इसके बाद उसका कोई सुराग नहीं लग पाया था। काफी समय तक परिवार वाले उनकी तलाश करते रहे। उन्होंने इस मामले में अदालत तक जंग लड़ी। इसके बाद इन मामलों की जांच पर पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। CBI जांच में पुलिस की कहानी पड़ गई झूठी जांच के दौरान, सीबीआई ने पाया कि पुलिस स्टेशन छेहरटा की पुलिस ने मंत्री के बेटे की हत्या के मामले में देबा और लक्खा को झूठा फंसाया। जिसकी हत्या 23.7.1992 को हुई थी और उसके बाद 12.9.1992 को छेहरटा पुलिस ने उस हत्या के मामले में बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा की गिरफ्तारी दिखाई थी और 13.9.1992 को दोनों मारे गए और पुलिस ने कहानी गढ़ी कि हथियार और गोला-बारूद की बरामदगी के लिए बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा को गांव संसारा के पास ले जाते समय आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ हुई। इसमें बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा और एक हमलावर मारा गया, जिसकी बाद में पहचान लखविंदर सिंह उर्फ ​​लक्खा उर्फ ​​फोर्ड के रूप में हुई। सीबीआई ने निष्कर्ष निकाला कि दोनों को उठाया गया, अवैध हिरासत में रखा गया और फिर फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया। पोस्टमार्टम में खुली पुलिस की पोल सीबीआई ने यह भी पाया कि पुलिस द्वारा दिखाए गई मुठभेड़ की कथित घटना पर पुलिस वाहनों के दौरे के बारे में लॉग बुक में कोई प्रविष्टि नहीं थी। यहां तक ​​कि पुलिस ने यह भी दिखाया कि मुठभेड़ के दौरान मारे गए अज्ञात हमलावर आतंकवादी की पहचान घायल बलदेव सिंह देबा ने की थी,। हालांकि देबा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसकी तुरंत मृत्यु हो गई थी, इसलिए उसके द्वारा पहचान की दलील नहीं उठती। 19 गवाहों की हो चुकी है मौत 30.8.1999 को सीबीआई ने एसएस सिद्धू, हरभजन सिंह, मोहिंदर सिंह, पुरुषोत्तम लाल, चमन लाल, गुरभिंदर सिंह, मोहन सिंह, पुरुषोत्तम सिंह और जस्सा सिंह के खिलाफ अपहरण, आपराधिक साजिश, हत्या, झूठे रिकॉर्ड तैयार करने के लिए चार्जशीट दायर की। लेकिन गवाहों के बयान 2022 के बाद दर्ज किए गए। क्योंकि इस अवधि के दौरान उच्च न्यायालयों के आदेशों पर मामला स्थगित रहा। पीड़ित परिवार के वकील सरबजीत सिंह वेरका ने कहा कि हालांकि सीबीआई ने इस मामले में 37 गवाहों का हवाला दिया था, लेकिन मुकदमे के दौरान केवल 19 गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं क्योंकि सीबीआई द्वारा बनाए अधिकांश गवाहों की देरी से सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई थी और अंत में घटना के 32 साल बाद न्याय मिला है। इसी तरह इस विलंबित मुकदमे के दौरान, आरोपी हरभजन सिंह, मोहिंदर सिंह, पुरुषोत्तम लाल, मोहन सिंह और जस्सा सिंह की भी मृत्यु हो गई थी और आरोपी एसएस सिद्धू तत्कालीन डीएसपी, अमृतसर, चमन लाल तत्कालीन सीआईए इंचार्ज, अमृतसर, गुरभिंदर सिंह तत्कालीन एसएचओ पीएस मजीठा और एएसआई पुरुषोत्तम सिंह ने इस मामले में मुकदमे का सामना किया।   पंजाब | दैनिक भास्कर