लखनऊ के रूमी दरवाजा पर इन दिनों अवैध पार्किंग हो रही है। यहां पहुंचने वाले पर्यटक परेशान हैं। पार्किंग के कारण रूमी दरवाजे का रेनोवेशन अधूरा है। साल 2022 के दिसंबर से 2024 नवंबर तक इस दरवाजे के बनाने में लगभग डेढ़ करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। फिर भी काम आधा अधूरा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की लखनऊ शाखा इसे लगातार ठीक करने की कवायद कर रही है। स्ट्रक्चर को मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया और इंडिया गेट की तर्ज पर विकसित किया जा रहा। हूबहू ताजमहल की तरह यहां भी दरवाजे के सामने बेंच बनाई जा रही। इसमें बैठकर अट्रैक्टिव सेल्फी क्लिक की जा सकती है, लेकिन पार्किंग की वजह से पर्यटकों का यह सपना पूरा नहीं हो पा रहा। यहां आने वाले पर्यटकों को होने वाली समस्या…। वाहन न आएं इसलिए डिवाइडर बनाया
धरोहर की सुरक्षा के लिए पिछले दिनों प्रशासन द्वारा जब से रेनोवेट कार्य शुरू हुआ। आने-जाने वाले भारी वाहनों को बंद कर दिया गया। दोनों तरफ से वाहन न आ सकें डिवाइडर लगाकर घेर दिया गया है। प्रशासन ने आवाजाही के लिए नए रास्ते का इंतजाम करवाया है। ये व्यवस्था आज भी लागू है। 50 हजार महीने में ठेका लेने का दावा, दिखाया रशीद
पार्किंग संचालक कैमरे पर तो नहीं आया लेकिन उसके द्वारा ठेके दिखाए गए कागज कैमरे में कैद हो गए। इस दौरान उसने दावा किया कि यह पार्किंग हुसैनाबाद ट्रस्ट की तरफ से कराई गई है। इसके एवज में 50 हजार रुपए महीना ठेकेदार दाऊद रजा द्वारा ट्रस्ट को दिया जाता है। स्टैंड संचालक उर्दू में लिखी कान्ट्रेक्ट की रशीद भी दिखाया। हालांकि पार्किंग रशीद में ट्रस्ट का जिक्र नहीं है। इसमें सबसे ऊपर रूमी दरवाजे पर ही पार्किंग का जिक्र है। पर्यटक बोले- सेल्फी क्लिक करने में होती है परेशानी रूमी दरवाजे पर कोई भी पार्किंग नहीं- हुसैनाबाद ट्रस्ट
मामले को लेकर हुसैनाबाद ट्रस्ट के सुपरिटेडेंट अहमद मेंहदी से दैनिक भास्कर ने बात की। इस दौरान वह अंजान नजर आए। उन्होंने कहा- रूमी गेट पर कैसे वाहन पार्क किए जा रहे इसकी हमें किसी तरह से जानकारी नहीं है। हालांकि मैं इसकी जांच करा रहा हूं। डीएम के संरक्षण में है हुसैनाबाद ट्रस्ट
काफी विवादों से घिरे होने के कारण वर्तमान में ट्रस्ट के संरक्षक की भूमिका में जिलाधिकारी हैं। वर्तमान में प्रशासन की तरफ से पूरा काम एडीएम पूर्वी अमीत कुमार की देख-रेख में हो रहा है। इस अवैध पार्किंग की वजह से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण शाखा भी परेशान है। लखनऊ के नवाब की सलाह
शहर के नवाब मसूद अब्दुल्लाह ने पार्किंग की समस्या को गंभीर बताया। उन्होंने कहा- रूमी गेट के पास नो ह्वीकल जोन होना चाहिए। जो वाहन यहां पार्क किए जाते हैं उनको नीबू पार्क जाने वाली रोड पर शिफ्ट करना सही रहेगा। क्योंकि पार्किंग के कारण गेट की खूबसूरती खत्म हो रही है। अब जानिए इस दरवाजे को बनाने के पीछे की वजह
पहले के अवध कहे जाने वाले लखनऊ में 1783 में भयंकर अकाल पड़ा था। उस दौरान चौथे नवाब आसफ़ुद्दौला लोगों को दैनिक जीवन की जरूरतमंद चीजों के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा था। तब नवाब ने इमामबाड़ा के विस्तार के रूप में रूमी दरवाजे का निर्माण कराना शुरू किया। इसको बनवाने की मुख्य वजह लोगों को रोजगार देना था। कहा जाता है कि इस दरवाजे को बनाने के लिए 22 हजार लोग दिन रात मेहनत किए थे। मेहराब पर चिकनकारी और पान के पत्ते की डिजाइन से तैयार रूमी दरवाजे को विश्व के पर्यटन स्थलों में बिल्कुल ही अलग नजरिए से देखा जाता है। आज इसी स्थान पर आने वाले पर्यटक जब आते हैं तो उनको गेट के दोनों तरफ अवैध पार्किंग से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अब जान लीजिए लखनऊ के रूमी दरवाजे का इतिहास
इतिहासकार डॉ. रवि भट्ट ने बताया कि रूमी गेट का निर्माण लखनऊ के चौथे नवाब आसफउद्दौला ने सन 1784 में कराया था। इस रूमी गेट को तुर्की गेट भी कहा जाता है, जिसे बनाने में दो साल लगे थे। यह इस्तांबुल में बाब-ए-हुमायूं नामक एक पुराने गेट के समान है। यह प्रसिद्ध इमारत लखनऊ की आज भी पहचान है। इमारत में की गई अनूठी वास्तुकला शहर की अन्य इमारतों को टक्कर भी देती है। रूमी दरवाजा,साठ फीट लंबा है। इस्तांबुल में सब्लाइम पोर्टे (बाब-ए-हुमायूं) के बाद (1784) बनाया गया था। यह असफी इमामबाड़ा के पास है। यहां से रात का नजारा काफी अच्छा लगता है। यह अवधी वास्तुकला का प्रतीक है। रूमी दरवाजा का आर्काइव खूबसूरती से नक्काशीदार फूलों की कलियों और डिजाइनों से सजाया गया है। कुल मिलाकर यह दरवाजा इतना खूबसूरत है कि इसको नवाबों की दुनिया का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। लखनऊ के रूमी दरवाजा पर इन दिनों अवैध पार्किंग हो रही है। यहां पहुंचने वाले पर्यटक परेशान हैं। पार्किंग के कारण रूमी दरवाजे का रेनोवेशन अधूरा है। साल 2022 के दिसंबर से 2024 नवंबर तक इस दरवाजे के बनाने में लगभग डेढ़ करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। फिर भी काम आधा अधूरा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की लखनऊ शाखा इसे लगातार ठीक करने की कवायद कर रही है। स्ट्रक्चर को मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया और इंडिया गेट की तर्ज पर विकसित किया जा रहा। हूबहू ताजमहल की तरह यहां भी दरवाजे के सामने बेंच बनाई जा रही। इसमें बैठकर अट्रैक्टिव सेल्फी क्लिक की जा सकती है, लेकिन पार्किंग की वजह से पर्यटकों का यह सपना पूरा नहीं हो पा रहा। यहां आने वाले पर्यटकों को होने वाली समस्या…। वाहन न आएं इसलिए डिवाइडर बनाया
धरोहर की सुरक्षा के लिए पिछले दिनों प्रशासन द्वारा जब से रेनोवेट कार्य शुरू हुआ। आने-जाने वाले भारी वाहनों को बंद कर दिया गया। दोनों तरफ से वाहन न आ सकें डिवाइडर लगाकर घेर दिया गया है। प्रशासन ने आवाजाही के लिए नए रास्ते का इंतजाम करवाया है। ये व्यवस्था आज भी लागू है। 50 हजार महीने में ठेका लेने का दावा, दिखाया रशीद
पार्किंग संचालक कैमरे पर तो नहीं आया लेकिन उसके द्वारा ठेके दिखाए गए कागज कैमरे में कैद हो गए। इस दौरान उसने दावा किया कि यह पार्किंग हुसैनाबाद ट्रस्ट की तरफ से कराई गई है। इसके एवज में 50 हजार रुपए महीना ठेकेदार दाऊद रजा द्वारा ट्रस्ट को दिया जाता है। स्टैंड संचालक उर्दू में लिखी कान्ट्रेक्ट की रशीद भी दिखाया। हालांकि पार्किंग रशीद में ट्रस्ट का जिक्र नहीं है। इसमें सबसे ऊपर रूमी दरवाजे पर ही पार्किंग का जिक्र है। पर्यटक बोले- सेल्फी क्लिक करने में होती है परेशानी रूमी दरवाजे पर कोई भी पार्किंग नहीं- हुसैनाबाद ट्रस्ट
मामले को लेकर हुसैनाबाद ट्रस्ट के सुपरिटेडेंट अहमद मेंहदी से दैनिक भास्कर ने बात की। इस दौरान वह अंजान नजर आए। उन्होंने कहा- रूमी गेट पर कैसे वाहन पार्क किए जा रहे इसकी हमें किसी तरह से जानकारी नहीं है। हालांकि मैं इसकी जांच करा रहा हूं। डीएम के संरक्षण में है हुसैनाबाद ट्रस्ट
काफी विवादों से घिरे होने के कारण वर्तमान में ट्रस्ट के संरक्षक की भूमिका में जिलाधिकारी हैं। वर्तमान में प्रशासन की तरफ से पूरा काम एडीएम पूर्वी अमीत कुमार की देख-रेख में हो रहा है। इस अवैध पार्किंग की वजह से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण शाखा भी परेशान है। लखनऊ के नवाब की सलाह
शहर के नवाब मसूद अब्दुल्लाह ने पार्किंग की समस्या को गंभीर बताया। उन्होंने कहा- रूमी गेट के पास नो ह्वीकल जोन होना चाहिए। जो वाहन यहां पार्क किए जाते हैं उनको नीबू पार्क जाने वाली रोड पर शिफ्ट करना सही रहेगा। क्योंकि पार्किंग के कारण गेट की खूबसूरती खत्म हो रही है। अब जानिए इस दरवाजे को बनाने के पीछे की वजह
पहले के अवध कहे जाने वाले लखनऊ में 1783 में भयंकर अकाल पड़ा था। उस दौरान चौथे नवाब आसफ़ुद्दौला लोगों को दैनिक जीवन की जरूरतमंद चीजों के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा था। तब नवाब ने इमामबाड़ा के विस्तार के रूप में रूमी दरवाजे का निर्माण कराना शुरू किया। इसको बनवाने की मुख्य वजह लोगों को रोजगार देना था। कहा जाता है कि इस दरवाजे को बनाने के लिए 22 हजार लोग दिन रात मेहनत किए थे। मेहराब पर चिकनकारी और पान के पत्ते की डिजाइन से तैयार रूमी दरवाजे को विश्व के पर्यटन स्थलों में बिल्कुल ही अलग नजरिए से देखा जाता है। आज इसी स्थान पर आने वाले पर्यटक जब आते हैं तो उनको गेट के दोनों तरफ अवैध पार्किंग से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अब जान लीजिए लखनऊ के रूमी दरवाजे का इतिहास
इतिहासकार डॉ. रवि भट्ट ने बताया कि रूमी गेट का निर्माण लखनऊ के चौथे नवाब आसफउद्दौला ने सन 1784 में कराया था। इस रूमी गेट को तुर्की गेट भी कहा जाता है, जिसे बनाने में दो साल लगे थे। यह इस्तांबुल में बाब-ए-हुमायूं नामक एक पुराने गेट के समान है। यह प्रसिद्ध इमारत लखनऊ की आज भी पहचान है। इमारत में की गई अनूठी वास्तुकला शहर की अन्य इमारतों को टक्कर भी देती है। रूमी दरवाजा,साठ फीट लंबा है। इस्तांबुल में सब्लाइम पोर्टे (बाब-ए-हुमायूं) के बाद (1784) बनाया गया था। यह असफी इमामबाड़ा के पास है। यहां से रात का नजारा काफी अच्छा लगता है। यह अवधी वास्तुकला का प्रतीक है। रूमी दरवाजा का आर्काइव खूबसूरती से नक्काशीदार फूलों की कलियों और डिजाइनों से सजाया गया है। कुल मिलाकर यह दरवाजा इतना खूबसूरत है कि इसको नवाबों की दुनिया का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
अवैध पार्किंग ने छीन ली रूमी दरवाजे की खूबसूरती:लखनऊ DM के जिम्मे धरोहर, बिना अनुमति के चल रहा ठेका, संचालक बोला- 50 हजार देते हैं
