यूपी के बिजनौर में तेंदुए के खौफ से लोग सिर के पीछे की तरफ मुखौटा लगाकर निकल रहे हैं, लेकिन हमले नहीं रुक रहे। मुखौटा बांटने के बाद भी एक महिला को तेंदुए ने मार दिया। इसकी वजह से लोगों में खौफ और बढ़ गया है। जिले में पिछले 3 साल में तेंदुए 27 लोगों को जिंदा खा चुके हैं। 100 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं। वहीं, एक हजार लोगों को हमले में हल्की चोटें आईं। यहां के धामपुर, चांदपुर और सदर तहसील में इनका आतंक सबसे ज्यादा है। इससे पहले यूपी में भेड़ियों और बाघ का आतंक था। उनके हमलों में कई जानें गई थीं। बाघ, भेड़िए और तेंदुए से यूपी के कौन-से जिले प्रभावित हैं? कितनी मौतें हो चुकी हैं? बिजनौर में क्या स्थिति है? मुखौटा पहनने की क्या वजह है? इस रिपोर्ट में पढ़िए- सबसे पहले तेंदुए के खौफ की 2 तस्वीरें यूपी के पीलीभीत और लखीमपुर खीरी में बाघों का आतंक
उत्तर प्रदेश के हिमालय से सटे जिलों में बाघ से लेकर भेड़ियों और तेंदुओं का आतंक है। इनमें मुख्य रूप से लखीमपुर, बहराइच, बिजनौर, पीलीभीत, बलरामपुर और श्रावस्ती शामिल हैं। बाघ से प्रभावित जिलों में पीलीभीत और लखीमपुर का नाम सबसे ऊपर आता है। इसकी वजह है, यहां पीलीभीत टाइगर रिजर्व है। साल-दर-साल बाघों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल नहीं बढ़ा। फिलहाल पीलीभीत टाइगर रिजर्व 620 वर्ग किलोमीटर में फैला है। मानक के मुताबिक इतनी जगह में 20 से 24 बाघों को रखा जा सकता है। जबकि 2022 की गणना के मुताबिक इस टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 73 है। सीतापुर, लखीमपुर खीरी और बहराइच भेड़ियों के खौफ में रहता है
साल 2024 के जुलाई और अगस्त महीने में सीतापुर, बहराइच और लखीमपुर खीरी जिलों भेड़ियों का आतंक था। तब बहराइच जिले की महसी तहसील के हरदी इलाके के 50 गांवों को भेड़ियों ने अपना इलाका बना लिया था। ये बच्चों को टारगेट बना रहे थे। भेड़ियों को पकड़ने के लिए वन विभाग को 50 से ज्यादा टीमें बनानी पड़ी थीं। ये दिन-रात लाठी-डंडों और बंदूक से लैस होकर पहरा देती थीं। ड्रोन से उनके मूवमेंट पर नजर रखी जा रही थी। पिछले 3 साल में बिजनौर में तेंदुओं का खौफ बढ़ा
हिमालय के निचले हिस्से से सटे तराई क्षेत्रों में बिजनौर भी एक है। यहां पिछले 3 साल से तेंदुओं के हमलों के मामले बढ़े हैं। तेंदुआ 27 लोगों को मार चुका है। 100 से ज्यादा गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं। एक हजार लोगों को हल्की चोटें आईं। इस साल जनवरी से तेंदुओं के हमले फिर तेज हो गए हैं। साल 2023 में सिर्फ बिजनौर में तेंदुओं ने 17 लोगों को मार दिया था। 2024 में ही हमले जारी रहे। फिलहाल यहां का धामपुर, चांदपुर और सदर तहसील सबसे ज्यादा संवेदनशील इलाका है। यहां वन विभाग ने तेंदुओं को पकड़ने के लिए 100 पिंजरे लगाए हैं। बिजनौर में क्यों बढ़ा तेंदुओं का हमला?
बिजनौर में हमेशा से तेंदुओं का खतरा नहीं रहा है। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट डॉ विकास श्रीवास्तव कहते हैं कि पिछले कुछ साल में बिजनौर का शहर के रूप में विकास हुआ है। इससे यहां जो वाइल्ड हैबिटेट यानी जंगली जानवरों के आश्रय की जगहें थीं, कम हुई हैं। पहले यह इलाका वाइल्ड लाइफ का ही हिस्सा था। यहां जंगल थे। वो आगे कहते हैं कि बिजनौर के बगल से गोमती नदी निकलती है। जब सर्दियां होती हैं तो तेंदुए कोहरे में नदी का किनारा पकड़ कर दुधवा और कतर्निया घाट से निकल आते हैं। कोहरे की वजह से तब इंसानों से इनका सामना न के बराबर होता है। फिर जब कोहरा छंटता है, तो तेंदुए वापस निकलना चाहते हैं। लेकिन, तब आबादी वालों क्षेत्रों में फंस जाते हैं। तब ये जहां-जहां वो मूव करते हैं, वहां के जिले के आसपास चले जाते हैं। डॉ विकास बताते हैं कि लखनऊ के रहमान खेड़ा के उदाहरण से भी इसे समझा जा सकता है। यहां भी नदी का किनारा है। इससे अक्सर बाघ आ जाते हैं। अब पढ़िए बिजनौर के लोगों में तेंदुए के खौफ की कहानी
दैनिक भास्कर की टीम बिजनौर मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर चांदपुर तहसील के चौधेड़ी गांव पहुंची। यहां पता चला कि 26 फरवरी को तेंदुआ एक महिला को खा गया था। सुमन खेत पर काम करके घर लौट रही थी, तभी तेंदुए ने उस पर हमला कर दिया। महिला का आधा शव घरवालों को मिला था। तेंदुआ पेट, गर्दन और चेहरे का मांस खा गया था। गांव में हमारी टीम की मुलाकात महिला के बेटे योगेश से हुई। उन्होंने बताया- मैं मां को खोजते हुए खेत में पहुंचा। वहां देखा, तेंदुआ मां को खा रहा था। उसके मुंह में मां की गर्दन थी। वो उनके दोनों पैर खा चुका था। मुझे देखते ही तेंदुआ भाग गया। ये हालात धामपुर, चांदपुर और सदर तहसील के दर्जनों गांवों के हैं। यहां ग्रामीणों का हर पल डर में बीत रहा है। चौधेड़ी गांव के पूर्व प्रधान नैन सिंह ने बताया- गांव में तेंदुए का आतंक है। स्कूल, खेत, रास्ते सब खाली पड़े हैं। हालत यह है कि ज्यादा पैसे लेकर भी मजदूर काम करने को तैयार नहीं। इस पूरे मामले में वन विभाग सही से काम नहीं कर रहा। बस 3 पिंजरे लगाए गए हैं। 1 पिंजरा और लगना है। बहुत ज्यादा डर का माहौल है। सबकी जान को खतरा है। सबसे ज्यादा मादा तेंदुआ हैं। वही बच्चों को जन्म दे रही हैं। तभी तेंदुए की संख्या लगातार बढ़ रही है। वन विभाग या तो तेंदुआ पकड़े या फिर उसको मार दे। 2023 में बाघ के हमले से राज्य में 25 मौतें हुईं
यूपी में 2018 से 2023, यानी इन 6 सालों में बाघ के हमले में मरने वालों की कुल संख्या 59 रही। इसमें भी सबसे ज्यादा साल 2023 में 25 मौतें हुईं। 2021 और 2022 में 11-11 मौतें हुईं। पिछले साल जुलाई में राज्यसभा में सांसद मुकुल वासनिक और वी. सिवादसन के सवाल के जवाब में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कृतिवर्धन सिंह ने यह जानकारी दी थी। इस तरह इन 6 सालों में राज्य में बाघ के हमले में मरने वालों की संख्या में 127% की बढ़ोतरी देखी जा सकती है। हालांकि, भेड़िए और तेंदुओं के हमले में मरने वालों की आधिकारिक रूप से संख्या नहीं जारी की गई। पिछले साल जुलाई से सितंबर के बीच बहराइच और लखीमपुर खीरी में भेड़ियों के हमले में करीब 11 लोगों की मौत हो गई थी। इनमें 9 बच्चे थे। इससे पहले 1996 में प्रतापगढ़, जौनपुर और सुल्तानपुर में भेड़ियों ने 38 बच्चों को अपना शिकार बनाया था। तेंदुओं से बचने के लिए सिर के पीछे मुखौटा पहनने के पीछे का तर्क
बिजनौर में तेंदुओं के बढ़ते हमलों को देखकर वन विभाग ने गांव वालों से सिर पर पीछे मुखौटा लगाने को कहा था। जब भी लोग घर से बाहर जा रहे हों या खेतों में काम कर रहे हों, मुखौटा लगाए रखने की सलाह दी गई। इसके पीछे की वजह को लेकर वन विभाग के अधिकारी ज्ञान सिंह कहते हैं- ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि तेंदुआ जब इंसानों को सामने से देखता है और दोनों की आंखें मिलती हैं वो हमला नहीं करता। इस वजह से लोगों को सिर के पीछे मुखौटा लगाने की सलाह दी गई। इससे तेंदुए को भ्रम रहेगा कि कोई उन्हें देख रहा है। वो आगे बताते हैं- ऐसा कोई प्रमाणिक नियम नहीं है कि तेंदुआ इंसानों पर सामने से हमला नहीं करता। 15 जनवरी को 5 हजार से ज्यादा मुखौटे वन विभाग ने बांटे हैं। हालांकि इसके बाद भी तेंदुए के हमले नहीं रुक रहे। मुखौटे का पहला इस्तेमाल सुंदरवन में किया गया था
देश में सबसे पहले इस तरह के मुखौटों का इस्तेमाल सुंदरवन के रिजर्व फॉरेस्ट में साल 1989 में किया गया था। इसमें बाघ के हमलों से बचने के लिए स्थानीय लोगों को मुखौटा दिया गया था। वहां इसका कितना फायदा हुआ, इस पर कोई रिपोर्ट नहीं है। बिजनौर वन विभाग के मुताबिक, वहां इसका प्रयोग सफल रहा है। इसी को देखते हुए प्रयोग को तौर पर तेंदुए के हमले से बचने के लिए बिजनौर में यह शुरुआत की गई है। ————————– यह खबर भी पढ़ें जो हमारा, हमें मिलना चाहिए…इसके इतर कुछ नहीं, विधानसभा में योगी बोले-संभल में 68 तीर्थ मिटाने की कोशिश हुई, 54 को ढूंढ निकाला उत्तर प्रदेश विधानसभा में मंगलवार को सीएम योगी ने विपक्ष के सवालों के जवाब दिए। कहा- एक शरारत के तहत संभल के 68 तीर्थों और 19 कूपों की निशानी मिटाने की कोशिश की गई। उनको खोजना हमारा काम था। हमने 54 तीर्थ खोजे और 19 कूपों को भी ढूंढ निकाला। जो हमारा है, हमें मिल जाना चाहिए। इससे इतर कुछ नहीं है। यहां पढ़ें पूरी खबर यूपी के बिजनौर में तेंदुए के खौफ से लोग सिर के पीछे की तरफ मुखौटा लगाकर निकल रहे हैं, लेकिन हमले नहीं रुक रहे। मुखौटा बांटने के बाद भी एक महिला को तेंदुए ने मार दिया। इसकी वजह से लोगों में खौफ और बढ़ गया है। जिले में पिछले 3 साल में तेंदुए 27 लोगों को जिंदा खा चुके हैं। 100 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं। वहीं, एक हजार लोगों को हमले में हल्की चोटें आईं। यहां के धामपुर, चांदपुर और सदर तहसील में इनका आतंक सबसे ज्यादा है। इससे पहले यूपी में भेड़ियों और बाघ का आतंक था। उनके हमलों में कई जानें गई थीं। बाघ, भेड़िए और तेंदुए से यूपी के कौन-से जिले प्रभावित हैं? कितनी मौतें हो चुकी हैं? बिजनौर में क्या स्थिति है? मुखौटा पहनने की क्या वजह है? इस रिपोर्ट में पढ़िए- सबसे पहले तेंदुए के खौफ की 2 तस्वीरें यूपी के पीलीभीत और लखीमपुर खीरी में बाघों का आतंक
उत्तर प्रदेश के हिमालय से सटे जिलों में बाघ से लेकर भेड़ियों और तेंदुओं का आतंक है। इनमें मुख्य रूप से लखीमपुर, बहराइच, बिजनौर, पीलीभीत, बलरामपुर और श्रावस्ती शामिल हैं। बाघ से प्रभावित जिलों में पीलीभीत और लखीमपुर का नाम सबसे ऊपर आता है। इसकी वजह है, यहां पीलीभीत टाइगर रिजर्व है। साल-दर-साल बाघों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल नहीं बढ़ा। फिलहाल पीलीभीत टाइगर रिजर्व 620 वर्ग किलोमीटर में फैला है। मानक के मुताबिक इतनी जगह में 20 से 24 बाघों को रखा जा सकता है। जबकि 2022 की गणना के मुताबिक इस टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 73 है। सीतापुर, लखीमपुर खीरी और बहराइच भेड़ियों के खौफ में रहता है
साल 2024 के जुलाई और अगस्त महीने में सीतापुर, बहराइच और लखीमपुर खीरी जिलों भेड़ियों का आतंक था। तब बहराइच जिले की महसी तहसील के हरदी इलाके के 50 गांवों को भेड़ियों ने अपना इलाका बना लिया था। ये बच्चों को टारगेट बना रहे थे। भेड़ियों को पकड़ने के लिए वन विभाग को 50 से ज्यादा टीमें बनानी पड़ी थीं। ये दिन-रात लाठी-डंडों और बंदूक से लैस होकर पहरा देती थीं। ड्रोन से उनके मूवमेंट पर नजर रखी जा रही थी। पिछले 3 साल में बिजनौर में तेंदुओं का खौफ बढ़ा
हिमालय के निचले हिस्से से सटे तराई क्षेत्रों में बिजनौर भी एक है। यहां पिछले 3 साल से तेंदुओं के हमलों के मामले बढ़े हैं। तेंदुआ 27 लोगों को मार चुका है। 100 से ज्यादा गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं। एक हजार लोगों को हल्की चोटें आईं। इस साल जनवरी से तेंदुओं के हमले फिर तेज हो गए हैं। साल 2023 में सिर्फ बिजनौर में तेंदुओं ने 17 लोगों को मार दिया था। 2024 में ही हमले जारी रहे। फिलहाल यहां का धामपुर, चांदपुर और सदर तहसील सबसे ज्यादा संवेदनशील इलाका है। यहां वन विभाग ने तेंदुओं को पकड़ने के लिए 100 पिंजरे लगाए हैं। बिजनौर में क्यों बढ़ा तेंदुओं का हमला?
बिजनौर में हमेशा से तेंदुओं का खतरा नहीं रहा है। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट डॉ विकास श्रीवास्तव कहते हैं कि पिछले कुछ साल में बिजनौर का शहर के रूप में विकास हुआ है। इससे यहां जो वाइल्ड हैबिटेट यानी जंगली जानवरों के आश्रय की जगहें थीं, कम हुई हैं। पहले यह इलाका वाइल्ड लाइफ का ही हिस्सा था। यहां जंगल थे। वो आगे कहते हैं कि बिजनौर के बगल से गोमती नदी निकलती है। जब सर्दियां होती हैं तो तेंदुए कोहरे में नदी का किनारा पकड़ कर दुधवा और कतर्निया घाट से निकल आते हैं। कोहरे की वजह से तब इंसानों से इनका सामना न के बराबर होता है। फिर जब कोहरा छंटता है, तो तेंदुए वापस निकलना चाहते हैं। लेकिन, तब आबादी वालों क्षेत्रों में फंस जाते हैं। तब ये जहां-जहां वो मूव करते हैं, वहां के जिले के आसपास चले जाते हैं। डॉ विकास बताते हैं कि लखनऊ के रहमान खेड़ा के उदाहरण से भी इसे समझा जा सकता है। यहां भी नदी का किनारा है। इससे अक्सर बाघ आ जाते हैं। अब पढ़िए बिजनौर के लोगों में तेंदुए के खौफ की कहानी
दैनिक भास्कर की टीम बिजनौर मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर चांदपुर तहसील के चौधेड़ी गांव पहुंची। यहां पता चला कि 26 फरवरी को तेंदुआ एक महिला को खा गया था। सुमन खेत पर काम करके घर लौट रही थी, तभी तेंदुए ने उस पर हमला कर दिया। महिला का आधा शव घरवालों को मिला था। तेंदुआ पेट, गर्दन और चेहरे का मांस खा गया था। गांव में हमारी टीम की मुलाकात महिला के बेटे योगेश से हुई। उन्होंने बताया- मैं मां को खोजते हुए खेत में पहुंचा। वहां देखा, तेंदुआ मां को खा रहा था। उसके मुंह में मां की गर्दन थी। वो उनके दोनों पैर खा चुका था। मुझे देखते ही तेंदुआ भाग गया। ये हालात धामपुर, चांदपुर और सदर तहसील के दर्जनों गांवों के हैं। यहां ग्रामीणों का हर पल डर में बीत रहा है। चौधेड़ी गांव के पूर्व प्रधान नैन सिंह ने बताया- गांव में तेंदुए का आतंक है। स्कूल, खेत, रास्ते सब खाली पड़े हैं। हालत यह है कि ज्यादा पैसे लेकर भी मजदूर काम करने को तैयार नहीं। इस पूरे मामले में वन विभाग सही से काम नहीं कर रहा। बस 3 पिंजरे लगाए गए हैं। 1 पिंजरा और लगना है। बहुत ज्यादा डर का माहौल है। सबकी जान को खतरा है। सबसे ज्यादा मादा तेंदुआ हैं। वही बच्चों को जन्म दे रही हैं। तभी तेंदुए की संख्या लगातार बढ़ रही है। वन विभाग या तो तेंदुआ पकड़े या फिर उसको मार दे। 2023 में बाघ के हमले से राज्य में 25 मौतें हुईं
यूपी में 2018 से 2023, यानी इन 6 सालों में बाघ के हमले में मरने वालों की कुल संख्या 59 रही। इसमें भी सबसे ज्यादा साल 2023 में 25 मौतें हुईं। 2021 और 2022 में 11-11 मौतें हुईं। पिछले साल जुलाई में राज्यसभा में सांसद मुकुल वासनिक और वी. सिवादसन के सवाल के जवाब में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कृतिवर्धन सिंह ने यह जानकारी दी थी। इस तरह इन 6 सालों में राज्य में बाघ के हमले में मरने वालों की संख्या में 127% की बढ़ोतरी देखी जा सकती है। हालांकि, भेड़िए और तेंदुओं के हमले में मरने वालों की आधिकारिक रूप से संख्या नहीं जारी की गई। पिछले साल जुलाई से सितंबर के बीच बहराइच और लखीमपुर खीरी में भेड़ियों के हमले में करीब 11 लोगों की मौत हो गई थी। इनमें 9 बच्चे थे। इससे पहले 1996 में प्रतापगढ़, जौनपुर और सुल्तानपुर में भेड़ियों ने 38 बच्चों को अपना शिकार बनाया था। तेंदुओं से बचने के लिए सिर के पीछे मुखौटा पहनने के पीछे का तर्क
बिजनौर में तेंदुओं के बढ़ते हमलों को देखकर वन विभाग ने गांव वालों से सिर पर पीछे मुखौटा लगाने को कहा था। जब भी लोग घर से बाहर जा रहे हों या खेतों में काम कर रहे हों, मुखौटा लगाए रखने की सलाह दी गई। इसके पीछे की वजह को लेकर वन विभाग के अधिकारी ज्ञान सिंह कहते हैं- ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि तेंदुआ जब इंसानों को सामने से देखता है और दोनों की आंखें मिलती हैं वो हमला नहीं करता। इस वजह से लोगों को सिर के पीछे मुखौटा लगाने की सलाह दी गई। इससे तेंदुए को भ्रम रहेगा कि कोई उन्हें देख रहा है। वो आगे बताते हैं- ऐसा कोई प्रमाणिक नियम नहीं है कि तेंदुआ इंसानों पर सामने से हमला नहीं करता। 15 जनवरी को 5 हजार से ज्यादा मुखौटे वन विभाग ने बांटे हैं। हालांकि इसके बाद भी तेंदुए के हमले नहीं रुक रहे। मुखौटे का पहला इस्तेमाल सुंदरवन में किया गया था
देश में सबसे पहले इस तरह के मुखौटों का इस्तेमाल सुंदरवन के रिजर्व फॉरेस्ट में साल 1989 में किया गया था। इसमें बाघ के हमलों से बचने के लिए स्थानीय लोगों को मुखौटा दिया गया था। वहां इसका कितना फायदा हुआ, इस पर कोई रिपोर्ट नहीं है। बिजनौर वन विभाग के मुताबिक, वहां इसका प्रयोग सफल रहा है। इसी को देखते हुए प्रयोग को तौर पर तेंदुए के हमले से बचने के लिए बिजनौर में यह शुरुआत की गई है। ————————– यह खबर भी पढ़ें जो हमारा, हमें मिलना चाहिए…इसके इतर कुछ नहीं, विधानसभा में योगी बोले-संभल में 68 तीर्थ मिटाने की कोशिश हुई, 54 को ढूंढ निकाला उत्तर प्रदेश विधानसभा में मंगलवार को सीएम योगी ने विपक्ष के सवालों के जवाब दिए। कहा- एक शरारत के तहत संभल के 68 तीर्थों और 19 कूपों की निशानी मिटाने की कोशिश की गई। उनको खोजना हमारा काम था। हमने 54 तीर्थ खोजे और 19 कूपों को भी ढूंढ निकाला। जो हमारा है, हमें मिल जाना चाहिए। इससे इतर कुछ नहीं है। यहां पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
यूपी में मुखौटे भी तेंदुए से नहीं बचा पाए:स्कूल, खेत सब खाली पड़े; 6 साल में 59 को बाघ ने बनाया शिकार
