बुलंदशहर के बुलंद परांठों का 100 साल पुराना स्वाद:तवा नहीं तदूंर पर बनाते हैं, 50 वैरायटी के स्वाद ने बनाया लोगों को दीवाना

बुलंदशहर के बुलंद परांठों का 100 साल पुराना स्वाद:तवा नहीं तदूंर पर बनाते हैं, 50 वैरायटी के स्वाद ने बनाया लोगों को दीवाना

बुलंदशहर के बुलंद परांठे…जिसकी महक लोगों को अपनी ओर खींच लाती है। इनकी खास बात है कि ये तवे में नहीं सेंके जाते। बल्कि, इसे तंदूर में बनाया जाता है। 100 सालों के परांठा बनाने के इस अंदाज से यहां के लोग भलि-भांति परिचित हैं। यहां के परांठों की खुशबू अब यूपी के बाहर अलग-अलग स्टेट में पहुंच चुकी है। स्वाद ऐसा कि जो इसे खाता है, वही गुणगान करता है। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज जायका में चखेंगे बुलंदशहर के परांठों का स्वाद… बुलंदशहर में जिला मुख्यालय से करीब 2 किमी दूर वलीपुरा नहर है। यहां करीब एक दर्जन ढाबे हैं, जो सिर्फ परांठों के लिए फेमस हैं। इन ढाबों में सबसे पुराना और प्रसिद्ध है सचिन का ढाबा। सचिन ढाबा के संचालक सुकेन्द्र पाल सिंह उर्फ गुड्डू भैया कहते हैं, हमारा ढाबा आजादी से पहले से चल रहा है। करीब 100 साल हो गए। आज चौथी पीढ़ी इस ढाबे को संभाल रही है। हमने आज तक अपनी क्वालिटी से समझौता नहीं किया। यही कारण है कि लोग दूर-दूर से परांठा खाने आते हैं। तंदूर पर परांठे बनाने के पीछे की वजह
इस सवाल के जवाब में सुकेन्द्र पाल सिंह मुस्कुराकर बोलते हैं- यही हमारे परांठों के स्वाद का असल राज है। मिट्टी की खुशबू जिस व्यंजन में लग जाए, वही स्वादिष्ट हो जाता है। वह कहते हैं- हमारा मानना है कि तवे में परांठे सही से पकते नहीं हैं, जबकि तंदूर में कोयले और लकड़ी की आंच बराबर से लगती है। हमारा तंदूर नियमित साफ होता है, इसमें मिट्टी का लेप लगाया जाता है। टेस्ट में इसका असर भी होता है। भूख मिटाने के लिए एक परांठा काफी है
सुकेंद्र पाल सिंह बताते हैं- हमारे परांठे का साइज काफी बड़ा होता है। हैवी भी। ये मान लीजिए कि 6 रोटी के बराबर एक पराठा। मतलब, एक परांठा ही भूख मिटाने के लिए काफी होता है। 50 किस्म के मिलते हैं परांठे
सचिन ढाबा के साथ-साथ सभी ढाबों में 50 किस्म के परांठे मिलते हैं। स्वाद में- आलू परांठा, आलू-प्याज, आलू पनीर, गोभी, मटर, प्याज पनीर परांठा, चकुंदर परांठा, लौकी परांठा, खीरा परांठा, मशरूम परांठा, मटर मशरूम परांठा, गाजर परांठा, गाजर प्याज परांठा मेन है। जिसकी जैसी डिमांड, उसे वैसा ही परांठा परोसा जाता है। परांठों के साथ लजीज हरी चटनी, आचार के अलावा रायता। एक नजर परांठों की कीमत पर
वलीपुरा नहर स्थित ढाबों में अलग-अलग दाम पर परांठे मिलते हैं। यहां कीमत 50 रुपए से लेकर 500 रुपए तक है। स्वाद की वैराइटी के हिसाब से ये कीमत हैं। जैसे सामान्य परांठा-50 रुपए प्लेट और पनीर या मशरूम परांठा 100 रुपए। इसी तरह स्पेशल थाली की कीमत- 500 तक। एक दिन में सचिन ढाबे में करीब 2 हजार से ज्यादा परांठों की बिक्री होती है। अगर पूरे एरिया में परांठे बिक्री पर नजर डाली जाए तो इसकी संख्या 10 हजार तक पहुंच जाती है। कस्टमर रिव्यू…. …………………. आप ‘जायका यूपी का’ सीरीज की ये 4 कहानियां भी पढ़ सकते हैं… 1.ठग्गू के लड्डू…ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं: 55 साल पुराना कनपुरिया जायका; स्वाद ऐसा कि पीएम मोदी भी मुरीद, सालाना टर्नओवर 5 करोड़ रुपए गंगा नदी के किनारे बसा कानपुर, स्वाद की दुनिया में भी खास पहचान रखता है। यहां का एक जायका 55 साल पुराना है। इसकी क्वालिटी और स्वाद आज भी वैसे ही बरकरार है। यूं तो आपने देश के कई शहरों में लड्डुओं का स्वाद चखा होगा। लेकिन गाय के शुद्ध खोए, सूजी और गोंद में तैयार होने वाले ठग्गू के लजीज लड्डुओं का स्वाद आप शायद ही भूल पाएंगे। पीएम मोदी जब कानपुर मेट्रो का उद्घाटन करने आए थे, तब उन्होंने मंच से इस लड्डू की तारीफ की थी। पढ़िए पूरी खबर… 2. बाजपेयी कचौड़ी…अटल बिहारी से राजनाथ तक स्वाद के दीवाने: खाने के लिए 20 मिनट तक लाइन में लगना पड़ता है, रोजाना 1000 प्लेट से ज्यादा की सेल बात उस कचौड़ी की, जिसकी तारीफ यूपी विधानसभा में होती है। अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव भी इसके स्वाद के मुरीद रह चुके हैं। दुकान छोटी है, पर स्वाद ऐसा कि इसे खाने के लिए लोग 15 मिनट तक खुशी-खुशी लाइन में लगे रहते हैं। जी हां…सही पहचाना आपने। हम बात कर रहे हैं लखनऊ की बाजपेयी कचौड़ी की। पढ़िए पूरी खबर… 3. ओस की बूंदों से बनने वाली मिठाई: रात 2:30 बजे मक्खन-दूध को मथकर तैयार होती है, अटल से लेकर कल्याण तक आते थे खाने नवाबी ठाठ वाले लखनऊ ने बदलाव के कई दौर देखे हैं, पर 200 साल से भी पुराना एक स्वाद है जो आज भी बरकरार है। लखनऊ की रियासत के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह भी इसके मुरीद थे। अवध क्षेत्र का तख्त कहे जाने वाले लखनऊ के चौक पर आज भी 50 से ज्यादा दुकानें मौजूद हैं, जहां बनती है रूई से भी हल्की मिठाई। दिल्ली वाले इसे ‘दौलत की चाट’ कहते हैं। ठेठ बनारसिया इसे ‘मलइयो’ नाम से पुकारते हैं। आगरा में ‘16 मजे’ और लखनऊ में आकर ये ‘मक्खन-मलाई’ बन जाती है। पढ़िए पूरी खबर… 4. रत्तीलाल के खस्ते के दीवाने अमेरिका में भी: 1937 में 1 रुपए में बिकते थे 64 खस्ते, 4 पीस खाने पर भी हाजमा खराब नहीं होता मसालेदार लाल आलू और मटर के साथ गरमा-गरम खस्ता, साथ में नींबू, लच्छेदार प्याज और हरी मिर्च। महक ऐसी कि मुंह में पानी आ जाए। ये जायका है 85 साल पुराने लखनऊ के रत्तीलाल खस्ते का। 1937 में एक डलिये से बिकना शुरू हुए इन खस्तों का स्वाद आज ऑस्ट्रेलिया,अमेरिका और यूरोप तक पहुंच चुका है। पढ़िए पूरी खबर… बुलंदशहर के बुलंद परांठे…जिसकी महक लोगों को अपनी ओर खींच लाती है। इनकी खास बात है कि ये तवे में नहीं सेंके जाते। बल्कि, इसे तंदूर में बनाया जाता है। 100 सालों के परांठा बनाने के इस अंदाज से यहां के लोग भलि-भांति परिचित हैं। यहां के परांठों की खुशबू अब यूपी के बाहर अलग-अलग स्टेट में पहुंच चुकी है। स्वाद ऐसा कि जो इसे खाता है, वही गुणगान करता है। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज जायका में चखेंगे बुलंदशहर के परांठों का स्वाद… बुलंदशहर में जिला मुख्यालय से करीब 2 किमी दूर वलीपुरा नहर है। यहां करीब एक दर्जन ढाबे हैं, जो सिर्फ परांठों के लिए फेमस हैं। इन ढाबों में सबसे पुराना और प्रसिद्ध है सचिन का ढाबा। सचिन ढाबा के संचालक सुकेन्द्र पाल सिंह उर्फ गुड्डू भैया कहते हैं, हमारा ढाबा आजादी से पहले से चल रहा है। करीब 100 साल हो गए। आज चौथी पीढ़ी इस ढाबे को संभाल रही है। हमने आज तक अपनी क्वालिटी से समझौता नहीं किया। यही कारण है कि लोग दूर-दूर से परांठा खाने आते हैं। तंदूर पर परांठे बनाने के पीछे की वजह
इस सवाल के जवाब में सुकेन्द्र पाल सिंह मुस्कुराकर बोलते हैं- यही हमारे परांठों के स्वाद का असल राज है। मिट्टी की खुशबू जिस व्यंजन में लग जाए, वही स्वादिष्ट हो जाता है। वह कहते हैं- हमारा मानना है कि तवे में परांठे सही से पकते नहीं हैं, जबकि तंदूर में कोयले और लकड़ी की आंच बराबर से लगती है। हमारा तंदूर नियमित साफ होता है, इसमें मिट्टी का लेप लगाया जाता है। टेस्ट में इसका असर भी होता है। भूख मिटाने के लिए एक परांठा काफी है
सुकेंद्र पाल सिंह बताते हैं- हमारे परांठे का साइज काफी बड़ा होता है। हैवी भी। ये मान लीजिए कि 6 रोटी के बराबर एक पराठा। मतलब, एक परांठा ही भूख मिटाने के लिए काफी होता है। 50 किस्म के मिलते हैं परांठे
सचिन ढाबा के साथ-साथ सभी ढाबों में 50 किस्म के परांठे मिलते हैं। स्वाद में- आलू परांठा, आलू-प्याज, आलू पनीर, गोभी, मटर, प्याज पनीर परांठा, चकुंदर परांठा, लौकी परांठा, खीरा परांठा, मशरूम परांठा, मटर मशरूम परांठा, गाजर परांठा, गाजर प्याज परांठा मेन है। जिसकी जैसी डिमांड, उसे वैसा ही परांठा परोसा जाता है। परांठों के साथ लजीज हरी चटनी, आचार के अलावा रायता। एक नजर परांठों की कीमत पर
वलीपुरा नहर स्थित ढाबों में अलग-अलग दाम पर परांठे मिलते हैं। यहां कीमत 50 रुपए से लेकर 500 रुपए तक है। स्वाद की वैराइटी के हिसाब से ये कीमत हैं। जैसे सामान्य परांठा-50 रुपए प्लेट और पनीर या मशरूम परांठा 100 रुपए। इसी तरह स्पेशल थाली की कीमत- 500 तक। एक दिन में सचिन ढाबे में करीब 2 हजार से ज्यादा परांठों की बिक्री होती है। अगर पूरे एरिया में परांठे बिक्री पर नजर डाली जाए तो इसकी संख्या 10 हजार तक पहुंच जाती है। कस्टमर रिव्यू…. …………………. आप ‘जायका यूपी का’ सीरीज की ये 4 कहानियां भी पढ़ सकते हैं… 1.ठग्गू के लड्डू…ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं: 55 साल पुराना कनपुरिया जायका; स्वाद ऐसा कि पीएम मोदी भी मुरीद, सालाना टर्नओवर 5 करोड़ रुपए गंगा नदी के किनारे बसा कानपुर, स्वाद की दुनिया में भी खास पहचान रखता है। यहां का एक जायका 55 साल पुराना है। इसकी क्वालिटी और स्वाद आज भी वैसे ही बरकरार है। यूं तो आपने देश के कई शहरों में लड्डुओं का स्वाद चखा होगा। लेकिन गाय के शुद्ध खोए, सूजी और गोंद में तैयार होने वाले ठग्गू के लजीज लड्डुओं का स्वाद आप शायद ही भूल पाएंगे। पीएम मोदी जब कानपुर मेट्रो का उद्घाटन करने आए थे, तब उन्होंने मंच से इस लड्डू की तारीफ की थी। पढ़िए पूरी खबर… 2. बाजपेयी कचौड़ी…अटल बिहारी से राजनाथ तक स्वाद के दीवाने: खाने के लिए 20 मिनट तक लाइन में लगना पड़ता है, रोजाना 1000 प्लेट से ज्यादा की सेल बात उस कचौड़ी की, जिसकी तारीफ यूपी विधानसभा में होती है। अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव भी इसके स्वाद के मुरीद रह चुके हैं। दुकान छोटी है, पर स्वाद ऐसा कि इसे खाने के लिए लोग 15 मिनट तक खुशी-खुशी लाइन में लगे रहते हैं। जी हां…सही पहचाना आपने। हम बात कर रहे हैं लखनऊ की बाजपेयी कचौड़ी की। पढ़िए पूरी खबर… 3. ओस की बूंदों से बनने वाली मिठाई: रात 2:30 बजे मक्खन-दूध को मथकर तैयार होती है, अटल से लेकर कल्याण तक आते थे खाने नवाबी ठाठ वाले लखनऊ ने बदलाव के कई दौर देखे हैं, पर 200 साल से भी पुराना एक स्वाद है जो आज भी बरकरार है। लखनऊ की रियासत के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह भी इसके मुरीद थे। अवध क्षेत्र का तख्त कहे जाने वाले लखनऊ के चौक पर आज भी 50 से ज्यादा दुकानें मौजूद हैं, जहां बनती है रूई से भी हल्की मिठाई। दिल्ली वाले इसे ‘दौलत की चाट’ कहते हैं। ठेठ बनारसिया इसे ‘मलइयो’ नाम से पुकारते हैं। आगरा में ‘16 मजे’ और लखनऊ में आकर ये ‘मक्खन-मलाई’ बन जाती है। पढ़िए पूरी खबर… 4. रत्तीलाल के खस्ते के दीवाने अमेरिका में भी: 1937 में 1 रुपए में बिकते थे 64 खस्ते, 4 पीस खाने पर भी हाजमा खराब नहीं होता मसालेदार लाल आलू और मटर के साथ गरमा-गरम खस्ता, साथ में नींबू, लच्छेदार प्याज और हरी मिर्च। महक ऐसी कि मुंह में पानी आ जाए। ये जायका है 85 साल पुराने लखनऊ के रत्तीलाल खस्ते का। 1937 में एक डलिये से बिकना शुरू हुए इन खस्तों का स्वाद आज ऑस्ट्रेलिया,अमेरिका और यूरोप तक पहुंच चुका है। पढ़िए पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर