इलाहाबाद हाईकोर्ट बोला- तुम्हारा रेप हुआ, तुम ही जिम्मेदार:क्या छात्रा का बिहैवियर आरोपी की जमानत का आधार हो सकती है?

इलाहाबाद हाईकोर्ट बोला- तुम्हारा रेप हुआ, तुम ही जिम्मेदार:क्या छात्रा का बिहैवियर आरोपी की जमानत का आधार हो सकती है?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस संजय कुमार सिंह ने रेप के एक आरोपी को जमानत दे दी। कहा- अगर पीड़ित के आरोपों को सही मान भी लिया जाए, तो इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि उसने खुद ही मुसीबत को न्योता दिया था। वह रेप के लिए खुद ही जिम्मेदार भी है। मेडिकल जांच में हाइमन टूटा हुआ पाया गया था, लेकिन डॉक्टर ने यौन हिंसा की बात नहीं की। क्या है पूरा मामला, कोर्ट में दोनों पक्षों के वकीलों ने क्या दलील दी, क्या पीड़ित की नैतिकता किसी आरोपी की जमानत का आधार हो सकती है? ऐसे सभी सवालों के जवाब जानेंगे भास्कर एक्सप्लेनर में… सवाल 1- रेप के लिए पीड़िता को ही जिम्मेदार ठहराने का मामला क्या है?
जावाब- 22 सितंबर 2024 को नोएडा की एक यूनिवर्सिटी में एमए की छात्रा ने नोएडा सेक्टर 125 पुलिस स्टेशन में रेप की FIR दर्ज कराई। FIR के मुताबिक- सवाल 2- आरोपी और पीड़िता के वकील ने कोर्ट में क्या दलीलें दीं?
जवाब- हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में आरोपी पक्ष के वकील और सरकारी वकील ने अपनी दलीलें रखीं। सवाल 3- पीड़िता को रेप का जिम्मेदार बताने वाले जज संजय कुमार सिंह कौन हैं?
जवाब- संजय कुमार सिंह इस समय इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थायी न्यायाधीश हैं। 1988 में उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से संबद्ध इविंग क्रिश्चियन कॉलेज से साइंस में ग्रेजुएशन किया था। साल 1992 में उन्होंने कानपुर के छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय से संबद्ध दयानंद कॉलेज ऑफ लॉ से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। फिर साल 1993 में बार काउंसिल यूपी में एक वकील के रूप में इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे। इन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही उत्तर प्रदेश राज्य के सरकारी वकील के रूप में भी काम किया है। साल 2018 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडिशनल जज के रूप में इनकी नियुक्ति हुई। अब 2020 से स्थायी जज हैं। सवाल 4- क्या किसी अपराध के लिए पीड़ित को ही जिम्मेदार माना जा सकता है? जवाब- इस सवाल को लेकर हमने सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा और महमूद प्राचा से बात की। महमूद प्राचा कहते हैं, रेप हो या कोई अन्य अपराध, भारतीय कानून क्राइम के लिए पीड़ित को न्योता देने का जिम्मेदार नहीं मानता है। यह किसी भी लिहाज से तार्किक नहीं है। वो कहते हैं कि रेप के मामले में तो ऐसा कहना सीधे तौर पर जेंडर इंसेंसिटिविटी को उजागर करता है। आज के समय में जो जज होते हैं उनकी अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग होती है। अलग-अलग फील्ड्स की ट्रेनिंग होती है। लेकिन हमारे देश में जजों को जेंडर सेंसिटाइजेशन यानी लैंगिक संवेदनशीलता की ट्रेनिंग नहीं दी जाती है। जो मानसिकता शुरुआत से डेवलप होकर आती है, वही जजमेंट में भी दिखती है। हमारे देश में अभी भी महिलाओं का उनके शरीर पर अधिकार को लेकर समझ नहीं है। वह कहां तक सहमति देती हैं और कहां तक नहीं? यह सिर्फ और सिर्फ महिला पर निर्भर करता है। एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर रेप के मामलों में पीड़िता की नैतिकता, उसके आचरण या चरित्र पर सवाल उठाने को लेकर अपने फैसलों में कहा है कि रेप की सुनवाई में यह कोई भी आधार नहीं हो सकता है। सवाल 5- क्या रेप केस में पीड़िता की नैतिकता आरोपी के जमानत का आधार हो सकती है?
जवाब- सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा कहती हैं कि जब एक बार कोर्ट रेप केस मान्य कर देता है, तब पीड़ित की नैतिकता पर सवाल उठाते हुए जमानत देने का कोई ग्राउंड नहीं हो सकता है। जब भी बिना सहमति के संबंध है, तो वह रेप है। वो उदाहरण देते हुए कहती हैं कि मान लीजिए एक सेक्स वर्कर के संबंध में नैतिकता का सवाल आ सकता है, लेकिन जैसे ही उसकी बिना सहमति के उससे जबरन संबंध बनाया गया यह रेप है। इसका नैतिकता से कोई लेना-देना ही नहीं है। जमानत देने के आधार केस के परिस्थितिजनक साक्ष्य हो सकते हैं। रेप के मामले में नैतिकता किसी भी तरह का आधार नहीं हो सकता है। यहां सिर्फ महिला का सवाल रह जाता है। सवाल 6- महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामले में नैतिकता का सवाल क्यों आता है?
जवाब- एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा कहती हैं कि रेप के मामलों में पीड़िता के चरित्र और उसकी नैतिकता पर सवाल उठाने को सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में गलत बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार नहीं कई बार अपने अलग-अलग फैसलों में यह कहा कि रेप के मामलों में आरोपी का अपराध निर्धारित करते समय पीड़िता की नैतिकता और चरित्र पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि क्या आरोपी ने अपराध किया है, बजाय इसके कि पीड़ित की निजी जिंदगी या उसकी कथित नैतिकता या आचरण कैसा था? वह इसे लेकर 1990 के दशक में एक कस्टोडियल रेप केस का हवाला देते हुए कहती हैं कि तब कोर्ट ने पीड़िता की नैतिकता पर शक करते हुए दोषी को कम सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले की रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई करते हुए कहा था कि रेप के मामले में पीड़िता के चरित्र पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। सवाल 7- रेप के मामलों में किस तरह के साक्ष्यों के आधार पर फैसले लिए जाते हैं?
जवाब- नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ऑफ इंडिया के ‘द लैंग्वेज ऑफ द एविडेंस इन रेप ट्रायल्स’ नाम के रिसर्च पेपर में रेप के मामलों में ट्रायल के दौरान साक्ष्यों की भूमिका के बारे में बताया गया है। इसके मुताबिक रेप ट्रायल में सबसे पहले दो सवालों का जवाब तलाशा जाता है। पहला सवाल- क्या पीड़िता और आरोपी के बीच सेक्सुअल इंटरकोर्स हुआ? दूसरा सवाल- क्या यह सेक्सुअल इंटर कोर्स बिना सहमति के था? इन दो सवालों को साबित या खारिज करने के लिए अन्य सबूत कानूनी रूप से महत्वपूर्ण हो जाते हैं। पेपर के मुताबिक रेप ट्रायल में किस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है, यह एक महत्वपूर्ण पहलू होता है। रेप के मामलों में कई ऐसे सबूत हो सकते हैं जिन्हें भौतिक रूप से शायद न पेश किया जा सके। लेकिन मौखिक रूप से बयानों और जिरह में कैसी भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है, यह महत्वपूर्ण होता है। कोई कह सकता है कि यह तो किसी भी केस के ट्रायल के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात, ये ट्रायल हमारे समाज और संस्कृति से भी गहरे से जुड़े होते हैं। और रेप के मामलों में हमारे समाज का लिंगभेदी पूर्वाग्रह अक्सर सूक्ष्म रूप से भाषा में शामिल रहता है। सवाल 8- क्या इलाहाबाद हाईकोर्ट इससे पहले भी अपनी टिप्पणियों को लेकर विवाद में रहा है?
जवाब- हां। इससे पहले जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने एक फैसले में कहा कि स्तनों को छूना और पायजामा की डोरी तोड़ना रेप या रेप की कोशिश के दायरे में नहीं आता। उन्होंने ये टिप्पणी यूपी के कासगंज जिले के पॉक्सो के एक केस की सुनवाई के दौरान की थी। कोर्ट ने कहा कि अगर ये साबित करना है कि रेप का प्रयास हुआ, तो अभियोजन पक्ष को यह दिखाना होगा कि अभियुक्तों का इरादा अपराध को अंजाम देना था। ——————- ये खबर भी पढ़ें… पति के टुकड़े करने वाली मुस्कान डेढ़ महीने की प्रेग्नेंट:मेरठ जेल से 2 घंटे के लिए बाहर आई; हाई सिक्योरिटी में हुआ अल्ट्रासाउंड मेरठ में सौरभ हत्याकांड की आरोपी मुस्कान 5-7 हफ्ते की प्रेग्नेंट है। शुक्रवार सुबह उसे कड़ी सुरक्षा के बीच लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज लाया गया। हाई सिक्योरिटी में मुस्कान का अल्ट्रासाउंड कराया गया। वह करीब 2 घंटे जेल से बाहर रही। पढ़ें पूरी खबर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस संजय कुमार सिंह ने रेप के एक आरोपी को जमानत दे दी। कहा- अगर पीड़ित के आरोपों को सही मान भी लिया जाए, तो इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि उसने खुद ही मुसीबत को न्योता दिया था। वह रेप के लिए खुद ही जिम्मेदार भी है। मेडिकल जांच में हाइमन टूटा हुआ पाया गया था, लेकिन डॉक्टर ने यौन हिंसा की बात नहीं की। क्या है पूरा मामला, कोर्ट में दोनों पक्षों के वकीलों ने क्या दलील दी, क्या पीड़ित की नैतिकता किसी आरोपी की जमानत का आधार हो सकती है? ऐसे सभी सवालों के जवाब जानेंगे भास्कर एक्सप्लेनर में… सवाल 1- रेप के लिए पीड़िता को ही जिम्मेदार ठहराने का मामला क्या है?
जावाब- 22 सितंबर 2024 को नोएडा की एक यूनिवर्सिटी में एमए की छात्रा ने नोएडा सेक्टर 125 पुलिस स्टेशन में रेप की FIR दर्ज कराई। FIR के मुताबिक- सवाल 2- आरोपी और पीड़िता के वकील ने कोर्ट में क्या दलीलें दीं?
जवाब- हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में आरोपी पक्ष के वकील और सरकारी वकील ने अपनी दलीलें रखीं। सवाल 3- पीड़िता को रेप का जिम्मेदार बताने वाले जज संजय कुमार सिंह कौन हैं?
जवाब- संजय कुमार सिंह इस समय इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थायी न्यायाधीश हैं। 1988 में उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से संबद्ध इविंग क्रिश्चियन कॉलेज से साइंस में ग्रेजुएशन किया था। साल 1992 में उन्होंने कानपुर के छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय से संबद्ध दयानंद कॉलेज ऑफ लॉ से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। फिर साल 1993 में बार काउंसिल यूपी में एक वकील के रूप में इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे। इन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही उत्तर प्रदेश राज्य के सरकारी वकील के रूप में भी काम किया है। साल 2018 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडिशनल जज के रूप में इनकी नियुक्ति हुई। अब 2020 से स्थायी जज हैं। सवाल 4- क्या किसी अपराध के लिए पीड़ित को ही जिम्मेदार माना जा सकता है? जवाब- इस सवाल को लेकर हमने सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा और महमूद प्राचा से बात की। महमूद प्राचा कहते हैं, रेप हो या कोई अन्य अपराध, भारतीय कानून क्राइम के लिए पीड़ित को न्योता देने का जिम्मेदार नहीं मानता है। यह किसी भी लिहाज से तार्किक नहीं है। वो कहते हैं कि रेप के मामले में तो ऐसा कहना सीधे तौर पर जेंडर इंसेंसिटिविटी को उजागर करता है। आज के समय में जो जज होते हैं उनकी अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग होती है। अलग-अलग फील्ड्स की ट्रेनिंग होती है। लेकिन हमारे देश में जजों को जेंडर सेंसिटाइजेशन यानी लैंगिक संवेदनशीलता की ट्रेनिंग नहीं दी जाती है। जो मानसिकता शुरुआत से डेवलप होकर आती है, वही जजमेंट में भी दिखती है। हमारे देश में अभी भी महिलाओं का उनके शरीर पर अधिकार को लेकर समझ नहीं है। वह कहां तक सहमति देती हैं और कहां तक नहीं? यह सिर्फ और सिर्फ महिला पर निर्भर करता है। एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर रेप के मामलों में पीड़िता की नैतिकता, उसके आचरण या चरित्र पर सवाल उठाने को लेकर अपने फैसलों में कहा है कि रेप की सुनवाई में यह कोई भी आधार नहीं हो सकता है। सवाल 5- क्या रेप केस में पीड़िता की नैतिकता आरोपी के जमानत का आधार हो सकती है?
जवाब- सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा कहती हैं कि जब एक बार कोर्ट रेप केस मान्य कर देता है, तब पीड़ित की नैतिकता पर सवाल उठाते हुए जमानत देने का कोई ग्राउंड नहीं हो सकता है। जब भी बिना सहमति के संबंध है, तो वह रेप है। वो उदाहरण देते हुए कहती हैं कि मान लीजिए एक सेक्स वर्कर के संबंध में नैतिकता का सवाल आ सकता है, लेकिन जैसे ही उसकी बिना सहमति के उससे जबरन संबंध बनाया गया यह रेप है। इसका नैतिकता से कोई लेना-देना ही नहीं है। जमानत देने के आधार केस के परिस्थितिजनक साक्ष्य हो सकते हैं। रेप के मामले में नैतिकता किसी भी तरह का आधार नहीं हो सकता है। यहां सिर्फ महिला का सवाल रह जाता है। सवाल 6- महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामले में नैतिकता का सवाल क्यों आता है?
जवाब- एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा कहती हैं कि रेप के मामलों में पीड़िता के चरित्र और उसकी नैतिकता पर सवाल उठाने को सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में गलत बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार नहीं कई बार अपने अलग-अलग फैसलों में यह कहा कि रेप के मामलों में आरोपी का अपराध निर्धारित करते समय पीड़िता की नैतिकता और चरित्र पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि क्या आरोपी ने अपराध किया है, बजाय इसके कि पीड़ित की निजी जिंदगी या उसकी कथित नैतिकता या आचरण कैसा था? वह इसे लेकर 1990 के दशक में एक कस्टोडियल रेप केस का हवाला देते हुए कहती हैं कि तब कोर्ट ने पीड़िता की नैतिकता पर शक करते हुए दोषी को कम सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले की रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई करते हुए कहा था कि रेप के मामले में पीड़िता के चरित्र पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। सवाल 7- रेप के मामलों में किस तरह के साक्ष्यों के आधार पर फैसले लिए जाते हैं?
जवाब- नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ऑफ इंडिया के ‘द लैंग्वेज ऑफ द एविडेंस इन रेप ट्रायल्स’ नाम के रिसर्च पेपर में रेप के मामलों में ट्रायल के दौरान साक्ष्यों की भूमिका के बारे में बताया गया है। इसके मुताबिक रेप ट्रायल में सबसे पहले दो सवालों का जवाब तलाशा जाता है। पहला सवाल- क्या पीड़िता और आरोपी के बीच सेक्सुअल इंटरकोर्स हुआ? दूसरा सवाल- क्या यह सेक्सुअल इंटर कोर्स बिना सहमति के था? इन दो सवालों को साबित या खारिज करने के लिए अन्य सबूत कानूनी रूप से महत्वपूर्ण हो जाते हैं। पेपर के मुताबिक रेप ट्रायल में किस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है, यह एक महत्वपूर्ण पहलू होता है। रेप के मामलों में कई ऐसे सबूत हो सकते हैं जिन्हें भौतिक रूप से शायद न पेश किया जा सके। लेकिन मौखिक रूप से बयानों और जिरह में कैसी भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है, यह महत्वपूर्ण होता है। कोई कह सकता है कि यह तो किसी भी केस के ट्रायल के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात, ये ट्रायल हमारे समाज और संस्कृति से भी गहरे से जुड़े होते हैं। और रेप के मामलों में हमारे समाज का लिंगभेदी पूर्वाग्रह अक्सर सूक्ष्म रूप से भाषा में शामिल रहता है। सवाल 8- क्या इलाहाबाद हाईकोर्ट इससे पहले भी अपनी टिप्पणियों को लेकर विवाद में रहा है?
जवाब- हां। इससे पहले जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने एक फैसले में कहा कि स्तनों को छूना और पायजामा की डोरी तोड़ना रेप या रेप की कोशिश के दायरे में नहीं आता। उन्होंने ये टिप्पणी यूपी के कासगंज जिले के पॉक्सो के एक केस की सुनवाई के दौरान की थी। कोर्ट ने कहा कि अगर ये साबित करना है कि रेप का प्रयास हुआ, तो अभियोजन पक्ष को यह दिखाना होगा कि अभियुक्तों का इरादा अपराध को अंजाम देना था। ——————- ये खबर भी पढ़ें… पति के टुकड़े करने वाली मुस्कान डेढ़ महीने की प्रेग्नेंट:मेरठ जेल से 2 घंटे के लिए बाहर आई; हाई सिक्योरिटी में हुआ अल्ट्रासाउंड मेरठ में सौरभ हत्याकांड की आरोपी मुस्कान 5-7 हफ्ते की प्रेग्नेंट है। शुक्रवार सुबह उसे कड़ी सुरक्षा के बीच लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज लाया गया। हाई सिक्योरिटी में मुस्कान का अल्ट्रासाउंड कराया गया। वह करीब 2 घंटे जेल से बाहर रही। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर