इलाहाबाद हाईकोर्ट में आधे से ज्यादा जजों के पद खाली हैं। डिस्ट्रिक कोर्ट में देश की न्यायिक व्यवस्था को लेकर इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) 15 अप्रैल को जारी कर दी गई। इस बार पिछली रिपोर्ट (2023) के मुकाबले कुछ सुधार हुआ है। यूपी की जेलों में अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा कैदी हैं। वहीं, हाईकोर्ट में आधे से ज्यादा जजों के पद खाली हैं। जिला कोर्ट की स्थिति भी ज्यादा बेहतर नहीं है। चार में से एक जज के पद खाली हैं। वहीं, 1.2 करोड़ केस लंबित हैं। रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश को कानूनी सहायता में 18वां और न्यायपालिका में 17वां स्थान मिला है। 2022 में यह क्रमश: 18वें और 15% नंबर पर था। उत्तर प्रदेश की समग्र रैंकिंग 2025 में एक पायदान ऊपर चढ़ी है, लेकिन 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों में यह अब भी सबसे निचले तीन राज्यों में बना हुआ है। शीर्ष स्थान पर कर्नाटक कायम है, इसके बाद आंध्र प्रदेश (2022 में 5वें से दूसरा), तेलंगाना (तीसरा), और केरल (छठा) स्थान पर हैं। छोटे राज्यों (1 करोड़ से कम आबादी) में सिक्किम ने फिर से पहला स्थान हासिल किया, इसके बाद हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश हैं। तीन मानकों पर देखिए क्या है यूपी की स्थिति 1- कोर्ट: तीन साल से अधिक समय से लंबित मामलों की उच्च हिस्सेदारी
1 जनवरी 2025 तक, इलाहाबाद हाई कोर्ट में देश में सबसे अधिक 11 लाख मामले लंबित थे। इनमें से 71% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित थे, जो देशभर में सबसे अधिक है। इसके साथ ही, आधे से अधिक जजों की कमी और 78% की कम केस निपटाने की दर है। जिला अदालतों में, राज्य के 1.2 करोड़ लंबित मामलों में से 53% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं। 2-पुलिस: खाली पद पहले से कम हुए
जनवरी 2017 से जनवरी 2023 के बीच पुलिस में रिक्तियां काफी कम हुई हैं। कॉन्स्टेबल की रिक्तियां 53% से घटकर 28% और अधिकारियों की रिक्तियां 63% से घटकर 42% हो गई हैं। फोरेंसिक विभाग में, हर दो में से एक वैज्ञानिक कर्मचारी की कमी है और प्रशासनिक कर्मचारियों में 19% की कमी है। 2010 से जनवरी 2023 के बीच, राज्य पुलिस में जाति कोटा पूरा करने में असमर्थ रहा है। अनुसूचित जाति (एससी) अधिकारियों की रिक्तियां इस अवधि में 60% से अधिक रही हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) अधिकारियों की रिक्तियां 88% तक पहुंच गईं, जो 2023 में राज्यों में सबसे अधिक थी। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में कुछ सुधार हुआ है, जहां रिक्तियां 2010 में 59% से घटकर जनवरी 2023 में 23% हो गई हैं। 3-जेल: क्षमता से 80% अधिक भरीं उत्तर प्रदेश की जेलें अपनी क्षमता से 80% अधिक भरी हुई हैं और कुल कर्मचारियों की कमी 28% है। जेल कर्मचारियों में सबसे अधिक कमी चिकित्सा कर्मचारियों (54%) में है और कोई स्वीकृत सुधारात्मक कर्मचारी नहीं है। प्रति चिकित्सा अधिकारी 1000 से अधिक कैदी थे। राज्य ने अपने कुल कानूनी सहायता बजट का 93% योगदान दिया, लेकिन इसका केवल 60% ही उपयोग कर सका। नाल्सा फंड का उपयोग भी 2022-23 में घटकर 19% रह गया। राज्य के 97,000 गांवों के लिए केवल 120 कानूनी सेवा क्लिनिक थे, यानी औसतन एक क्लिनिक 815 गांवों को सेवा देता है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) 2025 ने कहा है कि न्याय व्यवस्था में तुरंत और बड़े बदलाव की ज़रूरत है। इसने खाली पदों को जल्दी भरने और सभी तरह के लोगों को न्याय व्यवस्था में शामिल करने पर ज़ोर दिया है। असली बदलाव लाने के लिए, रिपोर्ट ने कहा है कि न्याय देना एक आवश्यक सेवा होना चाहिए। इलाहाबाद हाईकोर्ट में आधे से ज्यादा जजों के पद खाली हैं। डिस्ट्रिक कोर्ट में देश की न्यायिक व्यवस्था को लेकर इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) 15 अप्रैल को जारी कर दी गई। इस बार पिछली रिपोर्ट (2023) के मुकाबले कुछ सुधार हुआ है। यूपी की जेलों में अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा कैदी हैं। वहीं, हाईकोर्ट में आधे से ज्यादा जजों के पद खाली हैं। जिला कोर्ट की स्थिति भी ज्यादा बेहतर नहीं है। चार में से एक जज के पद खाली हैं। वहीं, 1.2 करोड़ केस लंबित हैं। रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश को कानूनी सहायता में 18वां और न्यायपालिका में 17वां स्थान मिला है। 2022 में यह क्रमश: 18वें और 15% नंबर पर था। उत्तर प्रदेश की समग्र रैंकिंग 2025 में एक पायदान ऊपर चढ़ी है, लेकिन 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों में यह अब भी सबसे निचले तीन राज्यों में बना हुआ है। शीर्ष स्थान पर कर्नाटक कायम है, इसके बाद आंध्र प्रदेश (2022 में 5वें से दूसरा), तेलंगाना (तीसरा), और केरल (छठा) स्थान पर हैं। छोटे राज्यों (1 करोड़ से कम आबादी) में सिक्किम ने फिर से पहला स्थान हासिल किया, इसके बाद हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश हैं। तीन मानकों पर देखिए क्या है यूपी की स्थिति 1- कोर्ट: तीन साल से अधिक समय से लंबित मामलों की उच्च हिस्सेदारी
1 जनवरी 2025 तक, इलाहाबाद हाई कोर्ट में देश में सबसे अधिक 11 लाख मामले लंबित थे। इनमें से 71% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित थे, जो देशभर में सबसे अधिक है। इसके साथ ही, आधे से अधिक जजों की कमी और 78% की कम केस निपटाने की दर है। जिला अदालतों में, राज्य के 1.2 करोड़ लंबित मामलों में से 53% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं। 2-पुलिस: खाली पद पहले से कम हुए
जनवरी 2017 से जनवरी 2023 के बीच पुलिस में रिक्तियां काफी कम हुई हैं। कॉन्स्टेबल की रिक्तियां 53% से घटकर 28% और अधिकारियों की रिक्तियां 63% से घटकर 42% हो गई हैं। फोरेंसिक विभाग में, हर दो में से एक वैज्ञानिक कर्मचारी की कमी है और प्रशासनिक कर्मचारियों में 19% की कमी है। 2010 से जनवरी 2023 के बीच, राज्य पुलिस में जाति कोटा पूरा करने में असमर्थ रहा है। अनुसूचित जाति (एससी) अधिकारियों की रिक्तियां इस अवधि में 60% से अधिक रही हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) अधिकारियों की रिक्तियां 88% तक पहुंच गईं, जो 2023 में राज्यों में सबसे अधिक थी। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में कुछ सुधार हुआ है, जहां रिक्तियां 2010 में 59% से घटकर जनवरी 2023 में 23% हो गई हैं। 3-जेल: क्षमता से 80% अधिक भरीं उत्तर प्रदेश की जेलें अपनी क्षमता से 80% अधिक भरी हुई हैं और कुल कर्मचारियों की कमी 28% है। जेल कर्मचारियों में सबसे अधिक कमी चिकित्सा कर्मचारियों (54%) में है और कोई स्वीकृत सुधारात्मक कर्मचारी नहीं है। प्रति चिकित्सा अधिकारी 1000 से अधिक कैदी थे। राज्य ने अपने कुल कानूनी सहायता बजट का 93% योगदान दिया, लेकिन इसका केवल 60% ही उपयोग कर सका। नाल्सा फंड का उपयोग भी 2022-23 में घटकर 19% रह गया। राज्य के 97,000 गांवों के लिए केवल 120 कानूनी सेवा क्लिनिक थे, यानी औसतन एक क्लिनिक 815 गांवों को सेवा देता है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) 2025 ने कहा है कि न्याय व्यवस्था में तुरंत और बड़े बदलाव की ज़रूरत है। इसने खाली पदों को जल्दी भरने और सभी तरह के लोगों को न्याय व्यवस्था में शामिल करने पर ज़ोर दिया है। असली बदलाव लाने के लिए, रिपोर्ट ने कहा है कि न्याय देना एक आवश्यक सेवा होना चाहिए। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
यूपी के जिला अदालतों में 1.2 करोड़ केस पेंडिंग:हाईकोर्ट में आधे से ज्यादा जजों के पद खाली; इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में 17वें नंबर पर
