बाबा रामदेव के एक बार फिर अपने बयान की वजह से विवाद में हैं। इस बार उन्होंने शरबत बनाने वाली कंपनी रूह अफजा पर बिना नाम लिए टिप्पणी की है। उन्होंने इसे शरबत जिहाद कहा। उन्होंने एक पतंजलि के शरबत के प्रचार के दौरान यह बात कही। अब उनका यह वीडियो वायरल है। क्या है पूरा मामला? रूह अफजा की कहानी क्या है? कंपनी की शुरुआत कैसे हुई? जानिए भास्कर एक्सप्लेनर में- सवाल 1- ‘शरबत जिहाद’ से जुड़ा पूरा मामला क्या है? जवाब- यह मामला एक वीडियो से शुरू हुआ। वीडियो में रामदेव बाबा पतंजलि के शरबत का प्रचार करते दिख रहे हैं। वह कह रहे हैं- गर्मियों में प्यास बुझाने के लिए सॉफ्ट ड्रिंक के नाम पर ठंडा मतलब टॉयलेट क्लीनर पीते रहते हैं। एक तरफ टॉयलेट क्लीनर का प्रहार जहर है। दूसरी तरफ शरबत के नाम पर एक कंपनी है। जो शरबत तो देती है, लेकिन शरबत से जो पैसा मिलता है, उससे मदरसे और मस्जिदें बनवाती है। अगर आप वो शरबत पिएंगे, तो मस्जिद और मदरसे बनेंगे। अगर आप पतंजलि का शरबत पिएंगे, तो गुरुकुल बनेंगे, आचार्य कुलम बनेगा। पतंजलि विश्वविद्यालय और भारतीय शिक्षा बोर्ड आगे बढ़ेगा। उन्होंने आगे कहा- इसलिए मैं कहता हूं कि ये शरबत जिहाद है। जैसे लव जिहाद और वोट जिहाद चल रहा है, वैसे ही ‘शरबत जिहाद’ भी चल रहा है। उन्होंने इस वीडियो में भले ही ड्रिंक का नाम नहीं लिया। लेकिन, लोगों को इशारा समझने में देर नहीं लगी कि रूह अफजा शरबत की बात कर रहे हैं। इस पर लोगों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। सवाल 2- रामदेव बाबा के बयान पर किसने क्या कहा? जवाब- रामदेव बाबा के ‘शरबत जिहाद’ के बयान को लेकर मुस्लिम धर्मगुरुओं ने नाराजगी जताई। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कहा- बाबा रामदेव अपने शरबत का प्रचार खूब करें। इसमें किसी की रोक-टोक नहीं है। लेकिन, वह हमदर्द कंपनी के रूह अफजा शरबत को जिहाद से जोड़कर प्रचार कर रहे हैं। यह सरासर गलत, अन्यायपूर्ण और गैरकानूनी है। उन्हें शरबत को जिहाद से नहीं जोड़ना चाहिए था। बाबा रामदेव योग जिहाद और पतंजलि जिहाद चला रहे हैं। देवबंद के जमीयत दावतुल मुस्लिमीन के संरक्षक मौलाना कारी इसहाक गोरा ने कहा- बाबा रामदेव बयान के लिए जब तक जनता से माफी नहीं मांगते, तब तक पतंजलि उत्पादों का बॉयकाट करें। एक वीडियो जारी करते हुए कारी इसहाक ने कहा- मैं बाबा रामदेव को बुद्धिजीवी समझता था। लेकिन, उनके अल्फाजों से दुख हुआ। ऐसी बातें करने वाला बुद्धिजीवी नहीं हो सकता। उन्हें जनता से माफी मांगनी चाहिए। हमदर्द जैसी प्रतिष्ठित कंपनी आजादी से पहले से ही देश में सेवा कर रही है। उसकी पहचान, उसकी गुणवत्तापूर्ण यूनानी, आयुर्वेदिक दवाओं और शरबतों से है। रूह अफजा भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है। इसे सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोग पसंद करते हैं। भारत में व्यापार धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि गुणवत्ता, भरोसे और इंसाफ पर होता है। जो व्यक्ति अपने उत्पाद बेचने के लिए दूसरे धर्म या समुदाय को बदनाम करे, वो समाज का दुश्मन है। न कि योग का प्रचारक। सवाल 3- रूह अफजा कंपनी की शुरुआत कैसे हुई? जवाब- रूह अफजा शरबत कंपनी की शुरुआत दिल्ली से हुई। इसे शुरू करने वाले शख्स थे यूपी के पीलीभीत में जन्मे यूनानी हकीम हफीज अब्दुल मजीद। वो दिल्ली में रहते थे। वहीं लाल कुआं बाजार में उनका एक छोटा-सा दवाखाना था- हमदर्द दवाखाना। यहीं हफीज अब्दुल मजीद मरीजों को देखते थे। बात है साल 1907 की गर्मियों की। दिल्ली के लोग भीषण लू की वजह से बीमार हालत में हकीम के पास पहुंच रहे थे। हकीम अब्दुल मजीद ने पाया कि गर्मियों में अक्सर ज्यादा खाने की इच्छा नहीं होती। लोग सादा पानी भी एक सीमित मात्रा में पी पाते हैं। तब अपने मरीजों के शरीर में पानी की कमी को दूर करने के लिए एक उन्हें एक बूटी बनाने का ख्याल सूझा। इसके लिए उन्होंने अपने घर में ही एक बड़े कड़ाहे में संतरा, तरबूज, अनानास और सेब जैसे फलों, जड़ी-बूटियों, फूलों और मसालों को मिलाकर एक सिरप तैयार किया। इसमें केवड़ा, धनिया, खसखस, गुलाब और कमल के फूलों का अर्क डाला। यह तैयार होने के बाद गाढ़े लाल रंग का सिरप तैयार हुआ। हकीम मजीद अपने मरीजों को यह सिरप देने लगे। धीरे-धीरे उनके इस सिरप की हर तरफ चर्चा फैल गई। खरीदने के लिए लाइनें लगने लगीं। बढ़ती मांग को देखते हुए एक साल के अंदर ही इसे औपचारिक नाम देने की जरूरत पड़ गई। तब हकीम मजीद ने इसे रूह अफजा नाम दिया। यानी रूह को ताजगी देने वाला। हकीम मजीद ने इसे बाजार में उतारने का फैसला किया। पुरानी दिल्ली के हौज काजी में एक प्रिंटिंग वाले से उन्होंने इसका लेबल तैयार कराया। तीन भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में उस पर रूह अफजा लिखवाया। मांग बढ़ने पर उनका पूरा परिवार इस काम में लग गया। आज के समय में कंपनी 100 साल से भी ज्यादा पुरानी हो चुकी है। सवाल 4- रूह अफजा का पाकिस्तान से क्या कनेक्शन है? जवाब- 1907 के बाद से रूह अफजा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बाजार में इसकी बराबर मांग बनी रही। ऐसे में, कंपनी भी बड़ी होती चली गई। साल 1922 में हकीम मजीद का देहांत हो गया। इसके बाद कंपनी की बागडोर उनके बेटों अब्दुल हमीद और मोहम्मद सईद के हाथों में आ गई। उनके छोटे बेटे मोहम्मद सईद तब आजादी की लड़ाई में मुस्लिम लीग से प्रेरित थे। लीग ने जब अलग मुस्लिम देश की मांग की, तो मोहम्मद सईद इसके समर्थन में थे। ऐसे में, बंटवारे के बाद साल 1948 में पाकिस्तान शिफ्ट हो गए। उन्होंने कराची में रूह अफजा के नुस्खे से इसे बनाने का काम शुरू किया। दूसरी तरफ, भारत में मूल कंपनी की कमान बड़े बेटे अब्दुल हमीद संभाल रहे थे। पाकिस्तान में यह ब्रांड नया था। ऐसे में, इसे वहां स्थापित करने के लिए मोहम्मद सईद पूरी लगन से जुटे रहे। एक चुनौती और थी कि पाकिस्तान में केवड़ा की पैदावार भारत के मुकाबले कम थी। इसलिए मोहम्मद सईद ने रूह अफजा के नुस्खे में थोड़ा बदलाव किया। केवड़ा की जगह गुल-ए-बहार और तुरंज फल के फूल का इस्तेमाल शुरू कर दिया। इस बदलाव के साथ भी रूह अफजा ने पाकिस्तान में भी अपनी पहचान बना ली। इस तरह आज भारत और पाकिस्तान दोनों जगहों पर यह कंपनी बनी हुई है। आज के समय में हमदर्द लेबोरेट्रीज के तहत रूह अफजा भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बनता है। सवाल 5- कंपनी रूह अफजा के अलावा और कौन-कौन से प्रोडक्ट बनती है? जवाब- रूह अफजा प्रोडक्ट हमदर्द लेबोरेट्रीज कंपनी के अंडर में है। हमदर्द कंपनी पिछले कुछ सालों में रूह अफजा सिरप के अलावा अन्य कई प्रोडक्ट लॉन्च किया है। इसमें एनर्जी ड्रिंक्स से लेकर मिल्कशेक, लस्सी, नारियल पानी, ग्लूकोस-डी, तेल, शहद जैसे रेंज हैं। सवाल 6- क्या रूह अफजा हलाला सर्टिफाइड प्रोडक्ट है? जवाब- हलाला सर्टिफाइड प्रोडक्ट उन चीजों को कहते हैं, जो इस्लामिक नियम-कानूनों के मुताबिक बनाई जाती हैं। इनके मैन्युफैक्चरिंग में इस्लामिक शरिया कानून का पालन किया जाता है। ढाका साउथ सिटी कॉर्पोरेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूह अफजा हलाला सर्टिफाइड है। हालांकि, भारत में रूह अफजा खुद को हलाला सर्टिफिकेशन के टैग में नहीं रखता है। सवाल 7- रूह अफजा का प्रॉफिट कहां जाता है? जवाब- रूह अफजा बनाने वाली पेरेंट कंपनी हमदर्द लेबोरेट्रीज के मुनाफे का एक हिस्सा समाजसेवी संस्था हमदर्द नेशनल फाउंडेशन को जाता है। कंपनी के मुताबिक, उसके मुनाफे का करीब 85 फीसदी हिस्सा इस संस्था को जाता है। हमदर्द नेशनल फाउंडेशन की स्थापना 1964 में हकीम अब्दुल मजीद ने ही की थी। उन्होंने इसकी स्थापना समाज के कमजोर वर्ग, उसमें भी खासकर मुस्लिमों में शिक्षा और स्वास्थ्य की दशा सुधारने के उद्देश्य से की थी। हालांकि, इससे भी पहले 1948 में हमदर्द कंपनी ने खुद को वक्फ यानी एक चैरिटेबल ट्रस्ट में बदल दिया था। तभी से कंपनी अपने मुनाफे का ज्यादातर हिस्सा मुस्लिम समाज में शिक्षा और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में करने लगी। सवाल 8- हमदर्द कंपनी की कमाई कितनी है? जवाब- हकीम अब्दुल मजीद के पड़पोते और हमदर्द इंडिया के फूड प्रोसेसिंग विभाग के सीईओ हामिद अहमद के मुताबिक, भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में बिजनेस आज स्वतंत्र रूप से चलाए जाते हैं। लेकिन, उनके प्रोडक्ट लगभग समान हैं। हमदर्द इंडिया का वार्षिक कारोबार लगभग 600 करोड़ रुपए है। 2020 में कंपनी ने बताया था कि उसने अकेले रूह अफजा की बिक्री से 317 करोड़ रुपए से अधिक की कमाई की थी। हमदर्द कंपनी का बिजनेस आज 25 से ज्यादा देशों में है और इसके 600 से ज्यादा प्रोडक्ट्स हैं। ————————— ये खबर भी पढ़िए यूपी के 22 SP के पास खुद का घर नहीं, कन्नौज एसपी सबसे अमीर; जानिए प्रदेश के सभी कप्तानों के पास कितनी प्रॉपर्टी यूपी में तैनात IPS अफसरों में से किसी के पास आलीशान बंगले हैं, तो किसी के पास 31 एकड़ तक खेती की जमीन है। प्रदेश के 68 जिलों के पुलिस कप्तानों की प्रॉपर्टी करोड़ों में है। ये फैक्ट IPS अफसरों की केंद्र सरकार को दी गई जानकारी में सामने आए हैं। सबसे ज्यादा प्रॉपर्टी कन्नौज के एसपी विनोद कुमार के पास है। रिकॉर्ड के अनुसार, 22 जिलों के कप्तानों के पास कोई प्रॉपर्टी नहीं है। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… बाबा रामदेव के एक बार फिर अपने बयान की वजह से विवाद में हैं। इस बार उन्होंने शरबत बनाने वाली कंपनी रूह अफजा पर बिना नाम लिए टिप्पणी की है। उन्होंने इसे शरबत जिहाद कहा। उन्होंने एक पतंजलि के शरबत के प्रचार के दौरान यह बात कही। अब उनका यह वीडियो वायरल है। क्या है पूरा मामला? रूह अफजा की कहानी क्या है? कंपनी की शुरुआत कैसे हुई? जानिए भास्कर एक्सप्लेनर में- सवाल 1- ‘शरबत जिहाद’ से जुड़ा पूरा मामला क्या है? जवाब- यह मामला एक वीडियो से शुरू हुआ। वीडियो में रामदेव बाबा पतंजलि के शरबत का प्रचार करते दिख रहे हैं। वह कह रहे हैं- गर्मियों में प्यास बुझाने के लिए सॉफ्ट ड्रिंक के नाम पर ठंडा मतलब टॉयलेट क्लीनर पीते रहते हैं। एक तरफ टॉयलेट क्लीनर का प्रहार जहर है। दूसरी तरफ शरबत के नाम पर एक कंपनी है। जो शरबत तो देती है, लेकिन शरबत से जो पैसा मिलता है, उससे मदरसे और मस्जिदें बनवाती है। अगर आप वो शरबत पिएंगे, तो मस्जिद और मदरसे बनेंगे। अगर आप पतंजलि का शरबत पिएंगे, तो गुरुकुल बनेंगे, आचार्य कुलम बनेगा। पतंजलि विश्वविद्यालय और भारतीय शिक्षा बोर्ड आगे बढ़ेगा। उन्होंने आगे कहा- इसलिए मैं कहता हूं कि ये शरबत जिहाद है। जैसे लव जिहाद और वोट जिहाद चल रहा है, वैसे ही ‘शरबत जिहाद’ भी चल रहा है। उन्होंने इस वीडियो में भले ही ड्रिंक का नाम नहीं लिया। लेकिन, लोगों को इशारा समझने में देर नहीं लगी कि रूह अफजा शरबत की बात कर रहे हैं। इस पर लोगों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। सवाल 2- रामदेव बाबा के बयान पर किसने क्या कहा? जवाब- रामदेव बाबा के ‘शरबत जिहाद’ के बयान को लेकर मुस्लिम धर्मगुरुओं ने नाराजगी जताई। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कहा- बाबा रामदेव अपने शरबत का प्रचार खूब करें। इसमें किसी की रोक-टोक नहीं है। लेकिन, वह हमदर्द कंपनी के रूह अफजा शरबत को जिहाद से जोड़कर प्रचार कर रहे हैं। यह सरासर गलत, अन्यायपूर्ण और गैरकानूनी है। उन्हें शरबत को जिहाद से नहीं जोड़ना चाहिए था। बाबा रामदेव योग जिहाद और पतंजलि जिहाद चला रहे हैं। देवबंद के जमीयत दावतुल मुस्लिमीन के संरक्षक मौलाना कारी इसहाक गोरा ने कहा- बाबा रामदेव बयान के लिए जब तक जनता से माफी नहीं मांगते, तब तक पतंजलि उत्पादों का बॉयकाट करें। एक वीडियो जारी करते हुए कारी इसहाक ने कहा- मैं बाबा रामदेव को बुद्धिजीवी समझता था। लेकिन, उनके अल्फाजों से दुख हुआ। ऐसी बातें करने वाला बुद्धिजीवी नहीं हो सकता। उन्हें जनता से माफी मांगनी चाहिए। हमदर्द जैसी प्रतिष्ठित कंपनी आजादी से पहले से ही देश में सेवा कर रही है। उसकी पहचान, उसकी गुणवत्तापूर्ण यूनानी, आयुर्वेदिक दवाओं और शरबतों से है। रूह अफजा भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है। इसे सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोग पसंद करते हैं। भारत में व्यापार धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि गुणवत्ता, भरोसे और इंसाफ पर होता है। जो व्यक्ति अपने उत्पाद बेचने के लिए दूसरे धर्म या समुदाय को बदनाम करे, वो समाज का दुश्मन है। न कि योग का प्रचारक। सवाल 3- रूह अफजा कंपनी की शुरुआत कैसे हुई? जवाब- रूह अफजा शरबत कंपनी की शुरुआत दिल्ली से हुई। इसे शुरू करने वाले शख्स थे यूपी के पीलीभीत में जन्मे यूनानी हकीम हफीज अब्दुल मजीद। वो दिल्ली में रहते थे। वहीं लाल कुआं बाजार में उनका एक छोटा-सा दवाखाना था- हमदर्द दवाखाना। यहीं हफीज अब्दुल मजीद मरीजों को देखते थे। बात है साल 1907 की गर्मियों की। दिल्ली के लोग भीषण लू की वजह से बीमार हालत में हकीम के पास पहुंच रहे थे। हकीम अब्दुल मजीद ने पाया कि गर्मियों में अक्सर ज्यादा खाने की इच्छा नहीं होती। लोग सादा पानी भी एक सीमित मात्रा में पी पाते हैं। तब अपने मरीजों के शरीर में पानी की कमी को दूर करने के लिए एक उन्हें एक बूटी बनाने का ख्याल सूझा। इसके लिए उन्होंने अपने घर में ही एक बड़े कड़ाहे में संतरा, तरबूज, अनानास और सेब जैसे फलों, जड़ी-बूटियों, फूलों और मसालों को मिलाकर एक सिरप तैयार किया। इसमें केवड़ा, धनिया, खसखस, गुलाब और कमल के फूलों का अर्क डाला। यह तैयार होने के बाद गाढ़े लाल रंग का सिरप तैयार हुआ। हकीम मजीद अपने मरीजों को यह सिरप देने लगे। धीरे-धीरे उनके इस सिरप की हर तरफ चर्चा फैल गई। खरीदने के लिए लाइनें लगने लगीं। बढ़ती मांग को देखते हुए एक साल के अंदर ही इसे औपचारिक नाम देने की जरूरत पड़ गई। तब हकीम मजीद ने इसे रूह अफजा नाम दिया। यानी रूह को ताजगी देने वाला। हकीम मजीद ने इसे बाजार में उतारने का फैसला किया। पुरानी दिल्ली के हौज काजी में एक प्रिंटिंग वाले से उन्होंने इसका लेबल तैयार कराया। तीन भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में उस पर रूह अफजा लिखवाया। मांग बढ़ने पर उनका पूरा परिवार इस काम में लग गया। आज के समय में कंपनी 100 साल से भी ज्यादा पुरानी हो चुकी है। सवाल 4- रूह अफजा का पाकिस्तान से क्या कनेक्शन है? जवाब- 1907 के बाद से रूह अफजा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बाजार में इसकी बराबर मांग बनी रही। ऐसे में, कंपनी भी बड़ी होती चली गई। साल 1922 में हकीम मजीद का देहांत हो गया। इसके बाद कंपनी की बागडोर उनके बेटों अब्दुल हमीद और मोहम्मद सईद के हाथों में आ गई। उनके छोटे बेटे मोहम्मद सईद तब आजादी की लड़ाई में मुस्लिम लीग से प्रेरित थे। लीग ने जब अलग मुस्लिम देश की मांग की, तो मोहम्मद सईद इसके समर्थन में थे। ऐसे में, बंटवारे के बाद साल 1948 में पाकिस्तान शिफ्ट हो गए। उन्होंने कराची में रूह अफजा के नुस्खे से इसे बनाने का काम शुरू किया। दूसरी तरफ, भारत में मूल कंपनी की कमान बड़े बेटे अब्दुल हमीद संभाल रहे थे। पाकिस्तान में यह ब्रांड नया था। ऐसे में, इसे वहां स्थापित करने के लिए मोहम्मद सईद पूरी लगन से जुटे रहे। एक चुनौती और थी कि पाकिस्तान में केवड़ा की पैदावार भारत के मुकाबले कम थी। इसलिए मोहम्मद सईद ने रूह अफजा के नुस्खे में थोड़ा बदलाव किया। केवड़ा की जगह गुल-ए-बहार और तुरंज फल के फूल का इस्तेमाल शुरू कर दिया। इस बदलाव के साथ भी रूह अफजा ने पाकिस्तान में भी अपनी पहचान बना ली। इस तरह आज भारत और पाकिस्तान दोनों जगहों पर यह कंपनी बनी हुई है। आज के समय में हमदर्द लेबोरेट्रीज के तहत रूह अफजा भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बनता है। सवाल 5- कंपनी रूह अफजा के अलावा और कौन-कौन से प्रोडक्ट बनती है? जवाब- रूह अफजा प्रोडक्ट हमदर्द लेबोरेट्रीज कंपनी के अंडर में है। हमदर्द कंपनी पिछले कुछ सालों में रूह अफजा सिरप के अलावा अन्य कई प्रोडक्ट लॉन्च किया है। इसमें एनर्जी ड्रिंक्स से लेकर मिल्कशेक, लस्सी, नारियल पानी, ग्लूकोस-डी, तेल, शहद जैसे रेंज हैं। सवाल 6- क्या रूह अफजा हलाला सर्टिफाइड प्रोडक्ट है? जवाब- हलाला सर्टिफाइड प्रोडक्ट उन चीजों को कहते हैं, जो इस्लामिक नियम-कानूनों के मुताबिक बनाई जाती हैं। इनके मैन्युफैक्चरिंग में इस्लामिक शरिया कानून का पालन किया जाता है। ढाका साउथ सिटी कॉर्पोरेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूह अफजा हलाला सर्टिफाइड है। हालांकि, भारत में रूह अफजा खुद को हलाला सर्टिफिकेशन के टैग में नहीं रखता है। सवाल 7- रूह अफजा का प्रॉफिट कहां जाता है? जवाब- रूह अफजा बनाने वाली पेरेंट कंपनी हमदर्द लेबोरेट्रीज के मुनाफे का एक हिस्सा समाजसेवी संस्था हमदर्द नेशनल फाउंडेशन को जाता है। कंपनी के मुताबिक, उसके मुनाफे का करीब 85 फीसदी हिस्सा इस संस्था को जाता है। हमदर्द नेशनल फाउंडेशन की स्थापना 1964 में हकीम अब्दुल मजीद ने ही की थी। उन्होंने इसकी स्थापना समाज के कमजोर वर्ग, उसमें भी खासकर मुस्लिमों में शिक्षा और स्वास्थ्य की दशा सुधारने के उद्देश्य से की थी। हालांकि, इससे भी पहले 1948 में हमदर्द कंपनी ने खुद को वक्फ यानी एक चैरिटेबल ट्रस्ट में बदल दिया था। तभी से कंपनी अपने मुनाफे का ज्यादातर हिस्सा मुस्लिम समाज में शिक्षा और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में करने लगी। सवाल 8- हमदर्द कंपनी की कमाई कितनी है? जवाब- हकीम अब्दुल मजीद के पड़पोते और हमदर्द इंडिया के फूड प्रोसेसिंग विभाग के सीईओ हामिद अहमद के मुताबिक, भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में बिजनेस आज स्वतंत्र रूप से चलाए जाते हैं। लेकिन, उनके प्रोडक्ट लगभग समान हैं। हमदर्द इंडिया का वार्षिक कारोबार लगभग 600 करोड़ रुपए है। 2020 में कंपनी ने बताया था कि उसने अकेले रूह अफजा की बिक्री से 317 करोड़ रुपए से अधिक की कमाई की थी। हमदर्द कंपनी का बिजनेस आज 25 से ज्यादा देशों में है और इसके 600 से ज्यादा प्रोडक्ट्स हैं। ————————— ये खबर भी पढ़िए यूपी के 22 SP के पास खुद का घर नहीं, कन्नौज एसपी सबसे अमीर; जानिए प्रदेश के सभी कप्तानों के पास कितनी प्रॉपर्टी यूपी में तैनात IPS अफसरों में से किसी के पास आलीशान बंगले हैं, तो किसी के पास 31 एकड़ तक खेती की जमीन है। प्रदेश के 68 जिलों के पुलिस कप्तानों की प्रॉपर्टी करोड़ों में है। ये फैक्ट IPS अफसरों की केंद्र सरकार को दी गई जानकारी में सामने आए हैं। सबसे ज्यादा प्रॉपर्टी कन्नौज के एसपी विनोद कुमार के पास है। रिकॉर्ड के अनुसार, 22 जिलों के कप्तानों के पास कोई प्रॉपर्टी नहीं है। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
रामदेव ने जिसे ‘शरबत जिहाद’ कहा, यूपी से उसका कनेक्शन:पहले हकीम की दवा थी, आज हर साल 300 करोड़ से ज्यादा की कमाई
