हरियाणा में 4 जून को लोकसभा चुनाव का परिणाम आते ही विधानसभा का नंबर गेम फिर से बदल जाएगा। इसकी वजह यह है कि इस बार लोकसभा चुनाव में दो बड़े राष्ट्रीय दल भाजपा, कांग्रेस के साथ ही क्षेत्रीय दल जजपा और इनेलों के 5 विधायक मैदान में हैं। 2024 के आम चुनाव में कांग्रेस के दो, भाजपा के एक विधायक लड़ रहे हैं। वहीं जजपा और इनेलो से भी एक-एक प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यदि ये विधायक लोकसभा चुनाव जीत जाते हैं, तो निश्चित तौर पर कांग्रेस के 28, भाजपा के 39, जजपा के 9 विधायक विधानसभा में बचेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी INLD का एक भी विधायक विधानसभा में नहीं होगा। दौलताबाद के निधन से अल्पमत में चल रही सैनी सरकार हरियाणा में गुरुग्राम के निर्दलीय विधायक के निधन से BJP सरकार पर अल्पमत का संकट गहराया हुआ है। गुरुग्राम की बादशाहपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद का कल (25 मई) को निधन हो गया है। इसके बाद विधानसभा में सदस्यों की संख्या 87 हो गई है, ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 44 हो गया है, लेकिन भाजपा सरकार के पास अभी 42 ही विधायकों का समर्थन बचा है।ऐसे में विपक्षी फिर सरकार को फ्लोर टेस्ट करवाने के लिए घेर सकते हैं। कांग्रेस और JJP पहले ही गवर्नर को लेटर लिखकर नायब सैनी सरकार के बहुमत साबित करने की मांग कर चुकी है। यहां समझिए विधानसभा का पूरा अंकगणित जानिए.. हरियाणा विधानसभा में मौजूदा स्थिति क्या है? हरियाणा विधानसभा में कुल 90 सीटें हैं। करनाल से मनोहर लाल खट्टर और रानियां से निर्दलीय रणजीत चौटाला के इस्तीफे के बाद 88 विधायक बचे थे। इसके बाद बादशाहपुर से निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद का निधन हो गया। ऐसे में अब कुल विधायक 87 रह गए हैं और बहुमत का आंकड़ा 44 का हो गया है। ऐसे शुरू हुई अल्पमत की चर्चा लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर को सीएम की कुर्सी से हटाकर लोकसभा टिकट दे दी। उनकी जगह नायब सैनी सीएम बनाए गए। उन्हें भाजपा के 41, हलोपा के 1 और 6 निर्दलीय समेत 48 विधायकों का समर्थन मिला था।हालांकि पहले खट्टर और फिर सरकार के समर्थन वाले रणजीत चौटाला ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद लोकसभा चुनाव के बीच 3 निर्दलीय विधायकों धर्मपाल गोंदर, रणधीर गोलन और सोमबीर सांगवान ने समर्थन वापस ले लिया। जिसके बाद सरकार के पास 43 विधायकों का समर्थन बचा।अब सरकार के साथ कितने विधायक बचे? खट्टर के इस्तीफे के बाद भाजपा के पास अपने 40 विधायक हैं। इसके अलावा उन्हें हलोपा के गोपाल कांडा और निर्दलीय नैनपाल रावत का समर्थन प्राप्त है। विपक्षी दलों की क्या स्थिति है? हरियाणा में कांग्रेस के पास 30 विधायक हैं। इसके अलावा जजपा के 10 और इनेलो का एक विधायक है। 4 निर्दलीय भी अब सरकार के विपक्ष में हैं। भाजपा के 42 के मुकाबले पूरे विपक्ष में 45 विधायक हो गए हैं।हालांकि जजपा की ओर से अपने 2 विधायक जोगीराम सिहाग और राम निवास के विरुद्ध स्पीकर को दल-बदल विरोधी कानून के अंतर्गत याचिका दी गई है, जिसमें दोनों की सदस्यता समाप्त करने की मांग की गई है। अगर यह मंजूर हुआ तो भी विपक्ष के पास ज्यादा विधायक होंगे। सैनी चुनाव जीते तो फिर सरकार और विपक्ष बराबर हो जांएगे इसमें एक और दिलचस्प स्थिति 4 जून को बनेगी। सीएम नायब सैनी खट्टर की जगह करनाल से विधानसभा उपचुनाव लड़ रहे हैं। अगर वह सीट जीत जाते हैं तो फिर सत्ता पक्ष के पास 43 विधायक हो जाएंगे। अगर जजपा के 2 विधायकों की सदस्यता रद्द हो जाती है तो फिर पक्ष और विपक्ष, दोनों बराबर हो जाएंगे। क्या हरियाणा में सरकार गिरने का खतरा है? फिलहाल ऐसा नहीं है। सीएम नायब सैनी की सरकार ने ढ़ाई महीने पहले ही 13 मार्च को बहुमत साबित किया। जिसके बाद 6 महीने तक फिर अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जाता। इतना समय बीतने के बाद अक्टूबर-नवंबर में हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं। फिर ऐसी मांग की जरूरत नहीं रहेगी। हरियाणा में 4 जून को लोकसभा चुनाव का परिणाम आते ही विधानसभा का नंबर गेम फिर से बदल जाएगा। इसकी वजह यह है कि इस बार लोकसभा चुनाव में दो बड़े राष्ट्रीय दल भाजपा, कांग्रेस के साथ ही क्षेत्रीय दल जजपा और इनेलों के 5 विधायक मैदान में हैं। 2024 के आम चुनाव में कांग्रेस के दो, भाजपा के एक विधायक लड़ रहे हैं। वहीं जजपा और इनेलो से भी एक-एक प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यदि ये विधायक लोकसभा चुनाव जीत जाते हैं, तो निश्चित तौर पर कांग्रेस के 28, भाजपा के 39, जजपा के 9 विधायक विधानसभा में बचेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी INLD का एक भी विधायक विधानसभा में नहीं होगा। दौलताबाद के निधन से अल्पमत में चल रही सैनी सरकार हरियाणा में गुरुग्राम के निर्दलीय विधायक के निधन से BJP सरकार पर अल्पमत का संकट गहराया हुआ है। गुरुग्राम की बादशाहपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद का कल (25 मई) को निधन हो गया है। इसके बाद विधानसभा में सदस्यों की संख्या 87 हो गई है, ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 44 हो गया है, लेकिन भाजपा सरकार के पास अभी 42 ही विधायकों का समर्थन बचा है।ऐसे में विपक्षी फिर सरकार को फ्लोर टेस्ट करवाने के लिए घेर सकते हैं। कांग्रेस और JJP पहले ही गवर्नर को लेटर लिखकर नायब सैनी सरकार के बहुमत साबित करने की मांग कर चुकी है। यहां समझिए विधानसभा का पूरा अंकगणित जानिए.. हरियाणा विधानसभा में मौजूदा स्थिति क्या है? हरियाणा विधानसभा में कुल 90 सीटें हैं। करनाल से मनोहर लाल खट्टर और रानियां से निर्दलीय रणजीत चौटाला के इस्तीफे के बाद 88 विधायक बचे थे। इसके बाद बादशाहपुर से निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद का निधन हो गया। ऐसे में अब कुल विधायक 87 रह गए हैं और बहुमत का आंकड़ा 44 का हो गया है। ऐसे शुरू हुई अल्पमत की चर्चा लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर को सीएम की कुर्सी से हटाकर लोकसभा टिकट दे दी। उनकी जगह नायब सैनी सीएम बनाए गए। उन्हें भाजपा के 41, हलोपा के 1 और 6 निर्दलीय समेत 48 विधायकों का समर्थन मिला था।हालांकि पहले खट्टर और फिर सरकार के समर्थन वाले रणजीत चौटाला ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद लोकसभा चुनाव के बीच 3 निर्दलीय विधायकों धर्मपाल गोंदर, रणधीर गोलन और सोमबीर सांगवान ने समर्थन वापस ले लिया। जिसके बाद सरकार के पास 43 विधायकों का समर्थन बचा।अब सरकार के साथ कितने विधायक बचे? खट्टर के इस्तीफे के बाद भाजपा के पास अपने 40 विधायक हैं। इसके अलावा उन्हें हलोपा के गोपाल कांडा और निर्दलीय नैनपाल रावत का समर्थन प्राप्त है। विपक्षी दलों की क्या स्थिति है? हरियाणा में कांग्रेस के पास 30 विधायक हैं। इसके अलावा जजपा के 10 और इनेलो का एक विधायक है। 4 निर्दलीय भी अब सरकार के विपक्ष में हैं। भाजपा के 42 के मुकाबले पूरे विपक्ष में 45 विधायक हो गए हैं।हालांकि जजपा की ओर से अपने 2 विधायक जोगीराम सिहाग और राम निवास के विरुद्ध स्पीकर को दल-बदल विरोधी कानून के अंतर्गत याचिका दी गई है, जिसमें दोनों की सदस्यता समाप्त करने की मांग की गई है। अगर यह मंजूर हुआ तो भी विपक्ष के पास ज्यादा विधायक होंगे। सैनी चुनाव जीते तो फिर सरकार और विपक्ष बराबर हो जांएगे इसमें एक और दिलचस्प स्थिति 4 जून को बनेगी। सीएम नायब सैनी खट्टर की जगह करनाल से विधानसभा उपचुनाव लड़ रहे हैं। अगर वह सीट जीत जाते हैं तो फिर सत्ता पक्ष के पास 43 विधायक हो जाएंगे। अगर जजपा के 2 विधायकों की सदस्यता रद्द हो जाती है तो फिर पक्ष और विपक्ष, दोनों बराबर हो जाएंगे। क्या हरियाणा में सरकार गिरने का खतरा है? फिलहाल ऐसा नहीं है। सीएम नायब सैनी की सरकार ने ढ़ाई महीने पहले ही 13 मार्च को बहुमत साबित किया। जिसके बाद 6 महीने तक फिर अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जाता। इतना समय बीतने के बाद अक्टूबर-नवंबर में हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं। फिर ऐसी मांग की जरूरत नहीं रहेगी। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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हरियाणा में कांग्रेस नेता बोले-बीरेंद्र सिंह धोखेबाज, पार्टी छोड़ी:कहा- पूर्व केंद्रीय मंत्री ने झूठे-जुमलेबाज; कैथल में पूर्व मंत्री इनेलो छोड़ कांग्रेस में शामिल हरियाणा के जींद जिले में पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के करीबी रहे शिवनारायण शर्मा ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी है। वे जींद विधानसभा से टिकट की दावेदारी कर रहे थे। शिवनारायण शर्मा ने बीरेंद्र सिंह पर धोखा देने का आरोप लगाया और कहा कि उनका इस्तेमाल किया गया। उन्हें अंधेरे में रखा गया और टिकट के लिए कोई पैरवी नहीं की गई। इस बीच कैथल में पूर्व मंत्री सुरेंद्र मदान ने इनेलो पार्टी छोड़ दी है। वे राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला के नेतृत्व में कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। इस पर रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि सुरेंद्र मदान के आने से पार्टी को मजबूती मिलेगी और कैथल में कांग्रेस पार्टी बड़ी जीत हासिल करेगी। शिवनारायण के बयान के 3 अहम बातें 1.बीरेंद्र सिंह ने मझधार में छोड़ा
शिवनारायण ने कहा कि पिछले एक सप्ताह से वे और उनके कार्यकर्ता सदमे में थे। अब उन्होंने कांग्रेस और बीरेंद्र सिंह को छोड़ने का फैसला कर लिया है। शर्मा ने रोते हुए कहा कि उनका राजनीतिक इस्तेमाल किया गया। उनका मानना था कि बीरेंद्र सिंह जुमलेबाज हैं, लेकिन वे झूठे निकले। बीरेंद्र सिंह ने उन्हें मझधार में छोड़ दिया। 2. बेटी के लिए टिकट मांगा था
शर्मा ने कहा कि 50 साल के राजनीतिक करियर में उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल सरकार के साथ काम करने का भी मौका मिला। पिछले 20 साल से वे पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह के साथ राजनीति कर रहे थे। इस राजनीतिक करियर में उन्होंने बीरेंद्र सिंह से कोई राजनीतिक फायदा नहीं लिया। अब वे अपनी बेटी की टिकट के लिए बीरेंद्र सिंह से मिले थे। वे उनसे उचाना में भी मिले और दिल्ली में भी। बीरेंद्र सिंह ने न तो उन्हें टिकट के लिए किसी से मिलवाया और न ही किसी से सिफारिश की। बल्कि बदतमीजी से बात की। वहां करीब 70 अन्य लोग मौजूद थे। 3.बीरेंद्र के जवाब का इंतजार किया
बीरेंद्र सिंह के जवाब से उनकी भावनाएं आहत हुईं। इसलिए हमने एक सप्ताह तक इंतजार किया। लेकिन उन्हें बीरेंद्र सिंह का कोई फोन नहीं आया। इसलिए वे अपने साथियों के साथ कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह रहे हैं। उन्होंने कहा कि 20 साल तक वे पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के हनुमान बनकर उनके साथ रहे। सुरजेवाला के बयान की 3 अहम बातें
1. कांग्रेस पार्टी बड़ी जीत हासिल करेगी
रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि केंद्र में भाजपा सरकार के 100 दिन पूरे होने पर प्रतिक्रिया देते हुए रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि लोग इंतजार कर रहे हैं, भाजपा जितनी जल्दी जाएगी, लोगों के लिए उतना ही अच्छा होगा। केंद्र की भाजपा सरकार ऐसी सरकार है, जिसके पास जनमत नहीं है। 2. बैसाखियों पर खड़ी है भाजपा सरकार
रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि चंद्रबाबू नायडू ने भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था। विधानसभा चुनाव के आधार पर मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार ने भी भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था। इसलिए मैं कह रहा हूं कि यह सरकार जनमत पर नहीं, बैसाखियों पर खड़ी है। इसलिए यह जो भी फैसला ले, उसे वापस लेना ही होगा। दिल्ली में भाजपा सरकार अपने षडयंत्रों और साजिशों के कारण खुद ही गिर जाएगी। यह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकती। 3. हार रही है भाजपा, 100 सीटें जीतने का दावा उनका डर
वंशवाद की राजनीति पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि जनता भगवान है, जनता ही तय करेगी कि किसे चुना जाएगा। और जनता की बुद्धि का अपमान करने वालों को जनता ही सजा भी देती है। पत्रकारों ने पूछा कि भाजपा सभी सीटें जीतने का दावा कर रही है। इसका जवाब देते हुए रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कुछ दिनों में वे 100 सीटें जीतने का दावा करेंगे। आज भारतीय जनता पार्टी हार रही है और यह उनके अहंकार के कारण हो रहा है। .
हरियाणा में कांग्रेस को झटका, किरण-श्रुति चौधरी BJP जॉइन करेंगी:पूर्व CM बंसीलाल की MLA बहू-पोती; राहुल गांधी के आगे विरोध जता चुकीं
हरियाणा में कांग्रेस को झटका, किरण-श्रुति चौधरी BJP जॉइन करेंगी:पूर्व CM बंसीलाल की MLA बहू-पोती; राहुल गांधी के आगे विरोध जता चुकीं हरियाणा के पूर्व CM चौधरी बंसीलाल की पुत्रवधु और भिवानी के तोशाम से MLA किरण चौधरी कल कांग्रेस छोड़ रही है। सूत्रों के अनुसार, किरण अपनी बेटी पूर्व सांसद श्रुति चौधरी के साथ कल (19 जून) को ही BJP जॉइन करेगी। दोनों दिल्ली जाकर BJP हेडक्वार्टर में पार्टी में शामिल होगी। सोमवार को दिल्ली में हुई भाजपा की बैठक में इस पर चर्चा हो चुकी है। किरण चौधरी लोकसभा चुनाव में अपनी बेटी श्रुति चौधरी की भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से टिकट कटने के बाद से ही नाराज दिख रही थी। किरण ने खुलकर मीडिया के सामने कई बार राजनीतिक तौर पर उन्हें खत्म करने की साजिश रचने के आरोप लगाए। उनके अलावा कांग्रेस के एक और नेता पूर्व विधानसभा स्पीकर कुलदीप शर्मा के भी पार्टी छोड़ने की चर्चा है। हालांकि कुलदीप अभी कांग्रेस में ही है, लेकिन सूत्रों के अनुसार बहुत जल्द वह भी बीजेपी जॉइन कर सकते हैं। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से टिकट मांग रही थी श्रुति, हुड्डा के करीबी को मिली
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस को हरियाणा में 5-5 सीटों पर जीत मिली है। किरण चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से अपनी बेटी श्रुति चौधरी टिकट मांग रही थी। उनकी बेटी इस सीट पर एक बार सांसद भी रह चुकी है, लेकिन पार्टी ने इस बार श्रुति की टिकट काटकर पूर्व सीएम हुड्डा के खास महेंद्रगढ़ से विधायक राव दान सिंह को दे दी। जिससे किरण नाराज हो गई और चुनावी प्रचार से भी पूरी तरह दोनों ने दूरी बना ली। हालात ये बने कि राव दान सिंह चुनाव हार गए। कुलदीप शर्मा करनाल सीट से थे दावेदार
इसी तरह करनाल सीट से पूर्व डिप्टी स्पीकर कुलदीप शर्मा दावेदारी जता रहे थे। यहां भी उनकी बजाय युवा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष दिव्यांशु बुद्धिराजा को बीजेपी के हैवीवेट प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के सामने उतार दिया। दिव्यांशु बुद्धिराजा और कुलदीप शर्मा दोनों ही पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खास हैं। टिकट नहीं मिलने के कारण कुलदीप शर्मा एक तरह से घर बैठ गए। कुलदीप ने बुद्धिराजा के चुनाव में किसी तरह की दिलचस्पी नहीं दिखाई। जिसकी वजह से इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी बुरी तरह हार गए। सोनीपत की गन्नौर विधानसभा सीट से विधायक कुलदीप शर्मा सभी कार्यक्रमों से दूरी बनाए हुए हैं। पांच सीटें जीतने के बाद कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव की तैयारियों की शुरुआत करनाल से ही की है। 16 जून को करनाल में हुए कार्यकर्ता सम्मेलन में कुलदीप शर्मा नहीं आए। इसके बाद से ही ये कयास लगाए जा रहे है कुलदीप शर्मा कभी भी पार्टी छोड़ सकते हैं। किरण-श्रुति को राज्यसभा भेजने के भी आसार
दरअसल, दीपेंद्र हुड्डा के रोहतक लोकसभा से चुनाव जीतने के बाद हरियाणा में राज्यसभा की एक सीट खाली हुई है। प्रदेश में फिलहाल बीजेपी की सरकार हैं। ऐसे में राज्यसभा में बीजेपी के ही किसी उम्मीदवार की जीत तय मानी जा रही है। चर्चा इस बात की है कि बीजेपी हरियाणा में कांग्रेस के किसी बड़े नेता को पार्टी में शामिल कराकर राज्यसभा में भेज सकती है। इनमें किरण चौधरी या उनकी बेटी श्रुति चौधरी का नाम टॉप पर है।किरण चौधरी के लोकसभा चुनाव से पहले भी बीजेपी में जाने की चर्चा चल रही थी। हालांकि माहौल को भांपकर किरण चौधरी शांत रही, लेकिन बेटी की टिकट कटने और फिर पार्टी के नेताओं द्वारा उन्हें इग्नोर करने से वे काफी आहत हुई। मीडिया के सामने किरण कई बार कह चुके है कि उन्हें दबाने और खत्म करने की साजिशें की जा रही है। वहीं दूसरी तरफ ब्राह्मण चेहरे के तौर पर कुलदीप शर्मा को पार्टी में शामिल कराकर उन्हें भी राज्यसभा में भेजा जा सकता है, लेकिन इसके चांस कम है। क्योंकि हरियाणा से पहले ही बीजेपी निर्दलीय कार्तिकेय शर्मा को समर्थन कर राज्यसभा भेज चुकी है। कई गुटों में बंटी कांग्रेस, हुड्डा ग्रुप भारी
हरियाणा में कांग्रेस कई गुटों में बंटी हुई है। एक गुट पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा तो दूसरा उनके एंटी एसआरके ( कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी ) गुट बना हुआ है। इसके अलावा पूर्व वित्तमंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव भी अपनी अलग राह चुने हुए हैं। कैप्टन भी इस बार गुरुग्राम सीट से दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने उनकी टिकट काटकर हुड्डा की सिफारिश पर फिल्म स्टार राज बब्बर को टिकट दे दी। हालांकि राज बब्बर भी राव इंद्रजीत सिंह से चुनाव हार गए। मौजूदा वक्त में हुड्डा का गुट भारी है। हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बैठे उदयभान भी उनके ही ग्रुप के हैं। हुड्डा से खटपट में कई नेता कर चुके किनारा
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा से खटपट के चलते पहले भी कई कांग्रेसी नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। इनमें राव इंद्रजीत सिंह, कुलदीप बिश्नोई जैसे बड़े नेता भी शामिल है। राव इंद्रजीत सिंह ने दक्षिणी हरियाणा के साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए 2014 में पार्टी छोड़ी तो कुलदीप बिश्नोई प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनाए जाने के कारण 2022 में बीजेपी में शामिल हुए थे। फिलहाल राव इंद्रजीत सिंह केंद्र सरकार में मंत्री तो कुलदीप बिश्नोई राज्यसभा सीट को लेकर दावेदारी जता रहे है। बिश्नोई हिसार सीट से लोकसभा चुनाव भी लड़ना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उनकी टिकट काटकर चौधरी रणजीत चौटाला को चुनाव लड़ाया, लेकिन चौटाला कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश से चुनाव हार गए। कांग्रेस अध्यक्ष बोले- सबको भविष्य चुनने का अधिकार
किरण चौधरी के भाजपा जॉइन करने के सवाल पर हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष उदयभान ने कहा कि हर नेता को अपना भविष्य का फैसला लेने का अधिकार है। अगर उन्हें वहां अपना भविष्य नजर आता है तो वह फैसला ले सकती हैं।
बवानी खेड़ा में चुनाव में विकास बना मुद्दा:लोग बोले- काम करते तो बन जाती बात; कांग्रेस व बीजेपी से कई दावेदार
बवानी खेड़ा में चुनाव में विकास बना मुद्दा:लोग बोले- काम करते तो बन जाती बात; कांग्रेस व बीजेपी से कई दावेदार हरियाणा में विधानसभा चुनावों को लेकर बिगुल बज चुका है। चुनाव आयोग ने तारीख निर्धारित कर दी है। बवानी खेड़ा विधान सभा की बात की जाए तो कांग्रेस से लगभग 78 दावेदार है, तो बीजेपी में भी दर्जनों उम्मीदवार दावेदारी कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव को लेकर लोगों ने कहा कि पार्टी उम्मीदवार चुनाव से पहले कस्बा में रिहायश बनाकर यहां विकास के साथ हर दुख सुख में साथी बनने का वायदा करता है। लेकिन कस्बा की किस्मत इस मामले में फूटी हुई है। यहां से जीतने के बाद यहां का नुमाईंदा यहां शकल दिखाना भी पसंद नहीं करता। जनता के फोन उठाने में भी नुमांदों को शर्म आने लगती है। लेकिन इस बार 2024 के चुनावों में बड़ा उलटफेर होने का अंदेशा साफ दिखाई दे रहा है। टिकट न मिलने पर दूसरी पार्टी के टच में नेता बवानी खेड़ा में कांग्रेस पार्टी से लगभग 78 दावेदार है, तो बीजेपी में भी दर्जनों उम्मीदवार है जो टिकट का दावा कर रहे हैं। लेकिन टिकट एक को ही मिलनी है, कुछ उम्मीदवार ऐसे हैं जो पिछले काफी समय से अपने आकाओं को संतुष्ट करने के लिए काम-दाम-दंड-भेद सब अपना कर भीड़ दिखाने का प्रयास रहे हैं। लेकिन उनकी स्वयं की हरकतों से अब उन्हें अंदेशा होने लगा है कि उनके हाथ टिकट नहीं आने वाली जिसके कारण वे दूसरी पार्टी में सेटिंग के लिए जुगाड़ भिड़ा रहे हैं चाहे दूसरी पार्टियों के चर्चे भी कुछ खास न हो। चाहे चुनाव का परिणाम जो भी हो लेकिन उनकी मंशा विधानसभा चुनाव लड़ना है। जनता में आकर उनकी सुनते तो बन सकती थी फिर बात बवानी खेड़ा से ऐसे-ऐसे नेता भी हैं जिन्होंने जनता की सुनी और उनके दिल पर राज किया और जनता ने भी उन्हें पलकों पर बैठाया और हैट्रिक का तोहफा दिया। लेकिन कुछ नेता ऐसे भी हैं यदि पार्टी उन्हें टिकट दे, तो हैट्रिक बना सकते थे यदि जनता के बीच आकर दुख-दर्द के साथी बनते। लेकिन अब कुछ लोगों तक ही सिमट कर रह गए। इसबार कस्बा की जनता चाहती है हलके की बागडोर स्थानीय नेता को दी जाए, ताकि यहीं रहकर कस्बा सहित हलके का विकास करे। लेकिन ये तो वक्त बताएगा की पार्टी किसको टिकट देती है और जनता किसके पक्ष में मतदान करती है। करोड़ों खर्च किए पर नहीं बन पाई बात बवानी खेड़ा में भाजपा सरकार के विकास की बात करें तो पंडित दीन दयाल उपाध्याय पर्यटन स्थल जिसका टैंडर लगभग एक करोड़ से कम का था। इसे रिवाइज करके तीन करोड़ पहुंचा दिया लेकिन ये झील कभी पूरी हो ही नहीं पाई। पहले यहां पालतू पशु पानी पीते थे। आज यह डरावना कुंआ बना हुआ है। इसी झील की दो बार विजिलेंस इंक्वारी हुई लेकिन कुछ हल नहीं निकला। वहीं हांसी चुंगी पर करोड़ों की लागत से अग्निशमन केन्द्र व डॉ. हेडग्वार सभागार बनाया गया। जिसे बने हुए लगभग तीन वर्ष हो चुके हैं लेकिन इसका उद्घाटन अभी तक नहीं हुआ और ये भन जर्जर हालत में हो रहे हैं। इसके अलावा सीवरेज व्यवस्था पर करोड़ों खर्च हुए लेकिन ये कस्बावासियों के गले की फांस बनी हुई है। ऐसा रहा बवानी खेड़ा विधान सभा का इतिहास इतिहास खंगालने व जानकारों की मानें तो 1967 में जगन्नाथ, 1968 में सूबेदार प्रभु सिंह, 1972 अमर सिंह, 1977 जगन्नाथ, 1982 में अमर सिंह, 1987 में जगन्नाथ, 1991 में अमर सिंह, 1996 में जगन्नाथ, 2000-2005-2009 रामकिशन फौजी, 2014, 2019 विशंभर वाल्मीकि ने विजय हासिल की। यहां से नेताओं को मंत्रिमंडल में भी स्थान मिला। लेकिन विकास के नाम पर क्या और कितना हुआ किसी से छिपा नहीं। आज करोड़ों रूपए लगाने पश्चात भवन खंडहर बनने को मजबूर दिखाई दे रहे हैं। मंत्री बनने के बाद हलका विकास के मामले में चमकना चाहिए था। लेकिन विकास कस्बा व हलके से कोसों दूर दिखाई देता है।