पिता ने जमीन बेचकर दी फीस, प्रैक्टिस में दांत-पैर टूटा:काशी की बेटी टीम इंडिया में सिलेक्ट हुई; मां बोलीं- डाइट में सिर्फ दूध दिया

पिता ने जमीन बेचकर दी फीस, प्रैक्टिस में दांत-पैर टूटा:काशी की बेटी टीम इंडिया में सिलेक्ट हुई; मां बोलीं- डाइट में सिर्फ दूध दिया

‘बचपन से हमने बेटी को लड़के की तरह पाला। वो 6 बहनों में लड़का बनकर रही। उसने जो भी कहा, उसे पूरा किया। उसने कहा, हॉकी खेलना है तो हमने भी मना नहीं किया। आज वो देश के लिए खेलने जा रही है। खाने-पीने के नाम पर हम लोगों के पास शुद्ध दूध ही रहता था। ऐसे में जब भी उसे कमजोरी महसूस होती, उसे दूध पिला देती थी।’ यह कहना है पूजा यादव की मां कलावती देवी का। आस्ट्रेलिया (पर्थ में) के साथ 5 मैचों की हॉकी टेस्ट सीरीज के लिए भारतीय टीम में पूजा यादव का सिलेक्शन हुआ है। पूजा यादव वाराणसी की गंगापुर नगर पंचायत में रहने वाले महेंद्र यादव और कलावती देवी की पांचवें नंबर की बेटी है। उनके कुल 7 बच्चे हैं। पूजा को घरवालों ने तब तक लड़के की तरह रखा, जब तक उनके बेटा नहीं हो गया। पूजा ने हॉकी की स्टिक कब और कैसे पकड़ी? उन्हें हौसला देने वालों में कौन-कौन शामिल है? उनके परिवार की स्थिति क्या है? यह जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम वाराणसी जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर गंगापुर गांव पहुंची। वार्ड नंबर- 4 में रहने वाले महेंद्र यादव खेत से गेहूं कटवा कर लौटे थे। पत्नी कलावती भी वहीं मौजूद थीं। हमने महेंद्र यादव से पूजा की इस पूरी यात्रा के बारे में जाना। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… पिता बोले- पैसे की कमी में हॉकी खेलना छोड़ दिया था
हमने पिता महेंद्र यादव से बातचीत का सिलसिला शुरू किया। बेटी के भारतीय टीम में सिलेक्शन से वह काफी खुश दिखे। महेंद्र बताते हैं- पूजा जब छोटी थी, तभी से हॉकी खेल रही है। हमने कभी उसे खेलने से मना नहीं किया। हमने उसे प्रेरित किया, क्योंकि वो हमारा लड़का थी। उसने हॉकी को मेहनत से सीखा, खेला। आज उसने मेरा और खानदान का नाम रोशन कर दिया। महेंद्र ने बताया- हम लोग गरीब हैं। एक भैंस है, जिसका दूध बेचते हैं। उसी से परिवार चलता है। एक बार पूजा ने पैसे के अभाव में खेलना छोड़ दिया था। घर चली आई थी। तब हमने दूध बेचकर और कुछ पुश्तैनी जमीन बेचकर पैसा जमा किया। उसी पैसे से हमने उसकी फीस भरी। इसके बाद पूजा फिर से खेलने के लिए मैदान में दौड़ पड़ी। गांव वाले कहते थे, सयानी बेटी है, बाहर खेलने भेजते हो
महेंद्र ने बताया- अक्सर पड़ोसियों ने हमसे कहा कि बेटी सयानी (जवान) हो गई है। उसे बाहर खेलने भेजते हो। उसकी शादी कर दो। घर से न निकलने दो। लेकिन, हमने इस बात पर ध्यान नहीं दिया। उसे खेलने की पूरी आजादी दी। बेटी अब नेशनल टीम में चुन ली गई है। महेंद्र ने बताया- गांव के ही इंटर कॉलेज में पूजा पढ़ती थी। बगल में ग्राउंड था, जहां बच्चे हॉकी की ट्रेनिंग लेने आते थे। उसने भी खेलने की ठानी, पर कोई लड़की वहां नहीं आती थी। लेकिन, हमने उसे सपोर्ट किया। फिर उसने गंगापुर के ग्राउंड में हॉकी खेलना शुरू कर दिया। आज वो इस मुकाम पर पहुंच गई है। बेटी के इस मुकाम पर पहुंचने के बाद सभी लोग घर आ रहे हैं। बधाई दे रहे हैं। अब और क्या ही चाहिए? मां कलावती बोलीं- वो मेरी बेटी, नहीं बेटा है पूजा की मां कलावती ने बताया- बेटी को हमने कभी लड़की माना ही नहीं, उसे हमेशा बेटा ही समझा। उसे कभी खेलने से नहीं रोका। हम लोग गरीब थे। इसलिए उसे डाइट के नाम पर कुछ नहीं दे सके। लेकिन गाय/भैंस हमेशा से घर में रहीं। जब भी बेटी को कमजोरी मालूम होती थी, उसे एक गिलास दूध दे देती थी। इससे वह हमेश चुस्त-दुरुस्त रहती थी। कलावती ने बताया- एक बार उसे चोट लगी और उसका दांत टूट गया। पैर भी फ्रैक्चर हो गया। उस समय वह लखनऊ स्पोर्ट्स हॉस्टल में थी। वह 2 महीने आकर घर में रही। फिर उसने खेलने से मना कर दिया। तब उसके मामा घर आए। उसके खेल के बारे में पूछा, तो वह बोली अब नहीं जाना। उन्होंने उसे हौसला दिया। हर दूसरे दिन आकर उसे खेल के फायदे बताए। इसके बाद वह दोबारा खेलने को तैयार हुई। बहन रुक्मणि ने बीएचयू में कराया एडमिशन
पूजा की बहन रुक्मणि ने बताया- चोट से उबरने के बाद हम उसे लेकर बीएचयू पहुंचे, वहां उसका एडमिशन कराया। वहां खेलने के बाद उसका सिलेक्शन साईं सेंटर, लखनऊ के लिए हो गया। वहां खेलकर उसने यह उपलब्धि हासिल की है। इससे अब पूरा परिवार खुश है। हमारी बहन ने जो सपना देखा था, वो साकार हो रहा है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ होने वाली 5 मैचों की सीरीज में चयन के बाद पूजा काफी खुश है। वह कहती है कि दीदी आप लोगों का सपना पूरा हो गया है। आपकी बहन नेशनल टीम में सिलेक्ट हो गई है। साल 2008 से स्टिक पकड़ने लगी थी पूजा
गंगापुर हॉकी एकेडमी के सचिव चरनदास गुप्ता ने भी हमसे बात की। वह बताते हैं- गंगापुर इंटर कॉलेज के मैदान में पूजा ने 2009 में हॉकी स्टिक पकड़ी थी। तब वह क्लास- 5 की स्टूडेंट थीं। इसके बाद बाद वो सीखने लगी और लड़कों के साथ अकेली लड़की ने वो कर दिखाया, जिसके लिए कई साल तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। उसने कुछ ही साल में अपने खेल से सबको अपना फैन बना लिया। 2015 में उसका चयन स्पोर्ट्स हॉस्टल, लखनऊ के लिए हुआ था। इंजरी के बाद हॉकी छोड़ने का फैसला लिया था
पूजा ने साल 2016 में इंजरी के बाद हॉकी छोड़ने का फैसला किया था। लेकिन, उसकी बहन और घरवालों ने हौसला दिया। इसके बाद वह बीएचयू ट्रेनिंग के लिए पहुंची और साईं सेंटर लखनऊ में सिलेक्ट हो गई। अब उसका खेल निखर गया है। वो बेंगलुरु में इस समय टीम इंडिया के साथ प्रैक्टिस सेशन में है। पर्थ में 25 अप्रैल से 5 मई तक 5 मैच खेले जाएंगे। पूजा 20 अप्रैल को टीम के साथ रवाना होंगी। पूजा बनारस से पहली महिला खिलाड़ी हैं, जो हॉकी खेलेंगी। ————————– यह खबर भी पढ़िए प्रेमानंद महाराज ने पदयात्रा रोकी तो रो पड़े भक्त, 3 दिन से कार से आश्रम जा रहे, देर रात तक डायलिसिस चल रही प्रेमानंद महाराज पिछले तीन दिनों से पदयात्रा पर नहीं निकल रहे हैं। महाराज का आशीर्वाद लेने के लिए हजारों भक्तों को लौटना पड़ रहा है। बता दें कि प्रेमानंद महाराज किडनी की बीमारी से जूझ रहे हैं। पहले कभी-कभी प्रेमानंद महाराज की डायलिसिस होती थी, इन दिनों रोज देर रात तक डायलिसिस हो रही है। पूरी खबर पढ़िए ‘बचपन से हमने बेटी को लड़के की तरह पाला। वो 6 बहनों में लड़का बनकर रही। उसने जो भी कहा, उसे पूरा किया। उसने कहा, हॉकी खेलना है तो हमने भी मना नहीं किया। आज वो देश के लिए खेलने जा रही है। खाने-पीने के नाम पर हम लोगों के पास शुद्ध दूध ही रहता था। ऐसे में जब भी उसे कमजोरी महसूस होती, उसे दूध पिला देती थी।’ यह कहना है पूजा यादव की मां कलावती देवी का। आस्ट्रेलिया (पर्थ में) के साथ 5 मैचों की हॉकी टेस्ट सीरीज के लिए भारतीय टीम में पूजा यादव का सिलेक्शन हुआ है। पूजा यादव वाराणसी की गंगापुर नगर पंचायत में रहने वाले महेंद्र यादव और कलावती देवी की पांचवें नंबर की बेटी है। उनके कुल 7 बच्चे हैं। पूजा को घरवालों ने तब तक लड़के की तरह रखा, जब तक उनके बेटा नहीं हो गया। पूजा ने हॉकी की स्टिक कब और कैसे पकड़ी? उन्हें हौसला देने वालों में कौन-कौन शामिल है? उनके परिवार की स्थिति क्या है? यह जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम वाराणसी जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर गंगापुर गांव पहुंची। वार्ड नंबर- 4 में रहने वाले महेंद्र यादव खेत से गेहूं कटवा कर लौटे थे। पत्नी कलावती भी वहीं मौजूद थीं। हमने महेंद्र यादव से पूजा की इस पूरी यात्रा के बारे में जाना। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… पिता बोले- पैसे की कमी में हॉकी खेलना छोड़ दिया था
हमने पिता महेंद्र यादव से बातचीत का सिलसिला शुरू किया। बेटी के भारतीय टीम में सिलेक्शन से वह काफी खुश दिखे। महेंद्र बताते हैं- पूजा जब छोटी थी, तभी से हॉकी खेल रही है। हमने कभी उसे खेलने से मना नहीं किया। हमने उसे प्रेरित किया, क्योंकि वो हमारा लड़का थी। उसने हॉकी को मेहनत से सीखा, खेला। आज उसने मेरा और खानदान का नाम रोशन कर दिया। महेंद्र ने बताया- हम लोग गरीब हैं। एक भैंस है, जिसका दूध बेचते हैं। उसी से परिवार चलता है। एक बार पूजा ने पैसे के अभाव में खेलना छोड़ दिया था। घर चली आई थी। तब हमने दूध बेचकर और कुछ पुश्तैनी जमीन बेचकर पैसा जमा किया। उसी पैसे से हमने उसकी फीस भरी। इसके बाद पूजा फिर से खेलने के लिए मैदान में दौड़ पड़ी। गांव वाले कहते थे, सयानी बेटी है, बाहर खेलने भेजते हो
महेंद्र ने बताया- अक्सर पड़ोसियों ने हमसे कहा कि बेटी सयानी (जवान) हो गई है। उसे बाहर खेलने भेजते हो। उसकी शादी कर दो। घर से न निकलने दो। लेकिन, हमने इस बात पर ध्यान नहीं दिया। उसे खेलने की पूरी आजादी दी। बेटी अब नेशनल टीम में चुन ली गई है। महेंद्र ने बताया- गांव के ही इंटर कॉलेज में पूजा पढ़ती थी। बगल में ग्राउंड था, जहां बच्चे हॉकी की ट्रेनिंग लेने आते थे। उसने भी खेलने की ठानी, पर कोई लड़की वहां नहीं आती थी। लेकिन, हमने उसे सपोर्ट किया। फिर उसने गंगापुर के ग्राउंड में हॉकी खेलना शुरू कर दिया। आज वो इस मुकाम पर पहुंच गई है। बेटी के इस मुकाम पर पहुंचने के बाद सभी लोग घर आ रहे हैं। बधाई दे रहे हैं। अब और क्या ही चाहिए? मां कलावती बोलीं- वो मेरी बेटी, नहीं बेटा है पूजा की मां कलावती ने बताया- बेटी को हमने कभी लड़की माना ही नहीं, उसे हमेशा बेटा ही समझा। उसे कभी खेलने से नहीं रोका। हम लोग गरीब थे। इसलिए उसे डाइट के नाम पर कुछ नहीं दे सके। लेकिन गाय/भैंस हमेशा से घर में रहीं। जब भी बेटी को कमजोरी मालूम होती थी, उसे एक गिलास दूध दे देती थी। इससे वह हमेश चुस्त-दुरुस्त रहती थी। कलावती ने बताया- एक बार उसे चोट लगी और उसका दांत टूट गया। पैर भी फ्रैक्चर हो गया। उस समय वह लखनऊ स्पोर्ट्स हॉस्टल में थी। वह 2 महीने आकर घर में रही। फिर उसने खेलने से मना कर दिया। तब उसके मामा घर आए। उसके खेल के बारे में पूछा, तो वह बोली अब नहीं जाना। उन्होंने उसे हौसला दिया। हर दूसरे दिन आकर उसे खेल के फायदे बताए। इसके बाद वह दोबारा खेलने को तैयार हुई। बहन रुक्मणि ने बीएचयू में कराया एडमिशन
पूजा की बहन रुक्मणि ने बताया- चोट से उबरने के बाद हम उसे लेकर बीएचयू पहुंचे, वहां उसका एडमिशन कराया। वहां खेलने के बाद उसका सिलेक्शन साईं सेंटर, लखनऊ के लिए हो गया। वहां खेलकर उसने यह उपलब्धि हासिल की है। इससे अब पूरा परिवार खुश है। हमारी बहन ने जो सपना देखा था, वो साकार हो रहा है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ होने वाली 5 मैचों की सीरीज में चयन के बाद पूजा काफी खुश है। वह कहती है कि दीदी आप लोगों का सपना पूरा हो गया है। आपकी बहन नेशनल टीम में सिलेक्ट हो गई है। साल 2008 से स्टिक पकड़ने लगी थी पूजा
गंगापुर हॉकी एकेडमी के सचिव चरनदास गुप्ता ने भी हमसे बात की। वह बताते हैं- गंगापुर इंटर कॉलेज के मैदान में पूजा ने 2009 में हॉकी स्टिक पकड़ी थी। तब वह क्लास- 5 की स्टूडेंट थीं। इसके बाद बाद वो सीखने लगी और लड़कों के साथ अकेली लड़की ने वो कर दिखाया, जिसके लिए कई साल तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। उसने कुछ ही साल में अपने खेल से सबको अपना फैन बना लिया। 2015 में उसका चयन स्पोर्ट्स हॉस्टल, लखनऊ के लिए हुआ था। इंजरी के बाद हॉकी छोड़ने का फैसला लिया था
पूजा ने साल 2016 में इंजरी के बाद हॉकी छोड़ने का फैसला किया था। लेकिन, उसकी बहन और घरवालों ने हौसला दिया। इसके बाद वह बीएचयू ट्रेनिंग के लिए पहुंची और साईं सेंटर लखनऊ में सिलेक्ट हो गई। अब उसका खेल निखर गया है। वो बेंगलुरु में इस समय टीम इंडिया के साथ प्रैक्टिस सेशन में है। पर्थ में 25 अप्रैल से 5 मई तक 5 मैच खेले जाएंगे। पूजा 20 अप्रैल को टीम के साथ रवाना होंगी। पूजा बनारस से पहली महिला खिलाड़ी हैं, जो हॉकी खेलेंगी। ————————– यह खबर भी पढ़िए प्रेमानंद महाराज ने पदयात्रा रोकी तो रो पड़े भक्त, 3 दिन से कार से आश्रम जा रहे, देर रात तक डायलिसिस चल रही प्रेमानंद महाराज पिछले तीन दिनों से पदयात्रा पर नहीं निकल रहे हैं। महाराज का आशीर्वाद लेने के लिए हजारों भक्तों को लौटना पड़ रहा है। बता दें कि प्रेमानंद महाराज किडनी की बीमारी से जूझ रहे हैं। पहले कभी-कभी प्रेमानंद महाराज की डायलिसिस होती थी, इन दिनों रोज देर रात तक डायलिसिस हो रही है। पूरी खबर पढ़िए   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर