अखिलेश ने बदली रणनीति, अब ठाकुर निशाने पर:PDA की सियासत तेज, भाजपा-बसपा को टेंशन, कहीं वोट बैंक न खिसक जाए!

अखिलेश ने बदली रणनीति, अब ठाकुर निशाने पर:PDA की सियासत तेज, भाजपा-बसपा को टेंशन, कहीं वोट बैंक न खिसक जाए!

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सितंबर 2024 में सुल्तानपुर लूटकांड के आरोपी मंगेश यादव के एनकाउंटर पर STF को ‘स्पेशल ठाकुर फोर्स’ बोला था। अब उन्होंने चित्रकूट, जालौन, मैनपुरी, प्रयागराज, आगरा के थानों में PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) से ज्यादा ठाकुर थानाध्यक्षों और SHO की तैनाती का दावा कर भाजपा को घेरने की रणनीति बनाई है। सपा मुखिया ने खुलकर ठाकुर-वर्चस्व को निशाने पर लेना शुरू कर दिया है। इसके बहाने सपा, भाजपा को दलित और ओबीसी विरोधी साबित करने में जुटी है। साथ ही सपा बसपा को भी कमजोर करने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। पहले फैजाबाद सामान्य सीट से जीते अवधेश प्रसाद का कद बढ़ाया, अब आगरा के सपा नेता एवं राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन के राणा सांगा विवाद में मजबूती से साथ देकर दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कवायद में जुट गई है। अखिलेश यादव की इस बदली रणनीति से पार्टी को कितना फायदा होगा? एक्सपर्ट के नजरिए से सपा के PDA फार्मूले से भाजपा-बसपा को कितना नुकसान होगा? पढ़िए रिपोर्ट… अखिलेश यादव ने कब और क्या बदली रणनीति?
2022 के विधानसभा चुनाव में पहली बार PDA का नारा सपा की ओर से दिया गया। हालांकि परिणाम आया तो, पीडीए का दांव नहीं चला। चुनाव बाद सपा गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़े दो महत्वपूर्ण दल सुभासपा और रालोद भाजपा से जा मिले। हालांकि सपा पीडीए की रणनीति पर ही आगे बढ़ती रही। सपा पहले ‘सर्वसमावेशी’ लाइन पर चल रही थी, लेकिन भाजपा की आक्रामक हिंदुत्व राजनीति और बसपा की निष्क्रियता ने उसे नया मार्ग पीडीए दिखा दिया। अब सपा पीडीए को एक मंच पर लाकर भाजपा और बसपा दोनों के पर कुतरना चाहती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा को इसका फायदा भी मिल चुका है। तब कांग्रेस के साथ गठबंधन में सपा ने सूबे की 37 सीटें जीत ली। सपा के जीते सांसदों में 86 प्रतिशत पीडीए से आते हैं। प्रदेश की 17 सुरक्षित सीटों में सपा गठबंधन ने 8 जीते हैं। इसमें सपा को 7 और कांग्रेस को 1 सीट पर जीत मिली है। भाजपा 8 और 1 सीट आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के चंद्रशेखर जीतने में सफल रहे। बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। उसका वोटबैंक भी 9.34 प्रतिशत पर आ गया। बसपा के वोटबैंक में सेंध लगाने की रणनीति पर बढ़ रही सपा
दलित पॉलिटिक्स की पिच पर आक्रामक रणनीति के साथ उतरी सपा ने पहले अवधेश प्रसाद के सहारे गैर जाटव वोट पर फोकस किया, अब राणा सांगा विवाद में रामजीलाल सुमन के पीछे खड़े होकर जाटव वोटबैंक पर निगाहें जमा दी है। सपा ने 2024 लोकसभा में कांग्रेस गठबंधन के साथ 17 सुरक्षित सीटों के अलावां फैजाबाद और मेरठ की सामान्य सीटों पर दलित प्रत्याशी उतारे थे। सपा की ये रणनीति कारगर रही। फैजाबाद की प्रतिष्ठित सीट पर सपा प्रत्याशी व गैर जाटव दलित अवधेश प्रसाद जीत गए। वहीं मेरठ सीट सिर्फ 10,500 वोटों से सपा हारी थी। फैजाबाद सीट जीतने के बाद सपा ने अवधेश प्रसाद का कद बढ़ाते हुए उन्हें पार्टी के प्रमुख नेताओं में स्थान दिया। संसद में अखिलेश यादव के साथ अग्रिम पंक्ति में बैठाए गए। दलितों के मुद्दों पर अवधेश प्रसाद हमेशा से मुखर रहते हैं। अब सपा ने पश्चिम में रामजी लाल सुमन का कद बढ़ाकर बसपा के दलित वोटरों में कोर वोट बैंक के तौर पर शामिल जाटवों को साधने की रणनीति बनाई है। रामजी लाल के बहाने सपा को दोहरा फायदा होता दिख रहा है। राणा सांगा पर उनके विवादित बयान और इस पर करणी सेना सहित क्षत्रीय संगठनों के प्रदर्शन ने पूरी लड़ाई दलित बनाम क्षत्रीय की कर दी है। दलित सांसद के पक्ष में मजबूती से खड़ा दिखाकर सपा पश्चिम के जाटव दलितों को अपनी ओर आकर्षित कर बसपा को कमजोर करने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। वहीं, क्षत्रियों को भाजपा से जोड़कर भाजपा को दलित विरोधी साबित करने में जुटी है। मतलब साफ है कि बसपा से छिटक रहे दलित वोटबैंक भाजपा की बजाय पूरी तरह से सपा के पाले में आ गिरें। कोर वोटबैंक खिसकने के डर से ही मायावती सपा पर हमलावर
प्रदेश में रामजी लाल सुमन के बयान के बाद से अखिलेश दलित कार्ड खेलकर अनुसूचित जाति के वोट बैंक को साधने में जुटे हैं। इस कवायद ने बसपा सुप्रीमो मायावती की बेचैनी बढ़ा दी है। यही कारण है कि मायावती ने 19 अप्रैल को एक्स पर बयान जारी कर सपा को घोर जातिवादी बताया था। कहा कि, सपा के पिछले कृत्यों के लिए उसे माफ करना असंभव है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पश्चिमी यूपी में आगरा दलित राजनीति का बड़ा केंद्र है। करणी सेना के रामजी लाल सुमन के खिलाफ तलवारें लहराने के बाद से दलित वोट बैंक की भाजपा से नाराजगी है। ऐसे में अखिलेश ने रामजी लाल सुमन से आगरा में मुलाकात कर दलित वोट बैंक को बड़ा संदेश दिया है। अखिलेश की इसी सक्रियता ने बसपा की बेचैनी बढ़ा दी है। मायावती की चिंता है कि लोकसभा चुनाव की तरह दलित वोट बैंक फिर सपा की ओर शिफ्ट न हो जाए। यही वजह है कि वह एकाएक सपा पर हमलावर हो गई हैं। मायावती ने 2 जून 1995 गेस्ट हाउस कांड का जिक्र कर सपा पर विश्वासघात करने, बसपा नेतृत्व पर जानलेवा हमला कराने, प्रमोशन में आरक्षण का बिल संसद में फाड़ने जैसे कई आरोप लगाकर दलित वोटरों को सहेजने में जुटी हैं। उन्होंने बहुजन समाज के संतों, गुरुओं और महापुरुषों के सम्मान में बनाए गए नए जिले, पार्क, शिक्षण और मेडिकल कॉलेजों का नाम सपा द्वारा बदलने का मामला भी उठाया। उन्होंने बहुजन समाज के लोगों को सपा से सावधान रहने के लिए आगाह भी किया। मायावती का कहना है कि कांग्रेस और भाजपा की तरह ही सपा भी अपनी नीयत और नीति में खोट/द्वेष के कारण कभी भी दलितों-बहुजनों की सच्ची हितैषी नहीं हो सकती है। लेकिन इनके वोटों के स्वार्थ की खातिर लगातार छलावा करती रहेगी। बीएसपी ’बहुजन समाज’ को शासक वर्ग बनाने को समर्पित और संघर्षरत है। क्या सपा के जाल में फंस गई भाजपा?
सपा ने एक मुद्दा जिसे भाजपा ने उठाया था, उसे पूरी तरह से पलट दिया है। सपा के महाराष्ट्र के प्रदेश अध्यक्ष अबू आसिम आजमी के औरंगजेब पर दिए गए बयान के बाद भाजपा सपा पर हमलावर थी। मामला पूरी तरह से हिंदू-मुस्लिम बहस में छिड़ा हुआ था। बहाना औरंगजेब था और केंद्र में ‘हिंदू मुस्लिम’ थे। राज्यसभा में सपा के सांसद राम जी लाल सुमन के राणा सांगा पर दिए गए विवादित बयान ने इस पूरी लड़ाई के मायने ही बदल दिए। रामजी लाल सुमन पर हमलावर करणी सेना और क्षत्रिय नेताओं के आक्रामक बयानों ने इस पूरी लड़ाई को दलित बनाम ठाकुर में बदल दिया। सपा ने इसे दलितों के स्वाभिमान से जोड़ दिया और रामजी लाल सुमन के पक्ष में मजबूती के साथ न सिर्फ खड़े हो गए बल्कि पहले उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं राम गोपाल यादव और शिवपाल सिंह यादव को सुमन के घर भेजा और बाद में खुद अखिलेश भी उनके घर गए। करणी सेना के बहाने मुख्यमंत्री पर निशाना
सपा ने करणी सेना के बहाने सीधे मुख्यमंत्री पर निशाना साधना शुरू कर दिया। अखिलेश यादव करणी सेना काे योगी सेना के रूप में बताने लगे। करणी सेना के नेताओं की ओर से दी गई खुली धमकी पर कार्रवाई न होने से उनके आरोपों को बल भी मिला। सपा के प्रवक्ता उदयवीर कहते हैं कि आगरा में जो शक्ति प्रदर्शन हुआ है उसे मुख्यमंत्री ने पड़ोसी प्रदेश के बड़े नेताओं की मदद लेकर कराया है। क्योंकि इसमें सारी व्यवस्थाएं सरकारी थीं। प्रदर्शन की अनुमति के साथ प्रदर्शन में तलवारें और बंदूकें बिना पुलिस प्रशासन की छूट के कोई नहीं लहरा सकता था। भाजपा को PDA नहीं, सिर्फ टी-टाइटल पसंद: अखिलेश
आगरा-प्रयागराज सहित हाल के कई जिलों के दौरे पर अखिलेश यादव भाजपा को घेरने की अगली रणनीति के तहत ही उस पर ठाकुरवाद का खुलेआम आरोप लगाने में जुटे हैं। यही कारण है कि अखिलेश खुलेआम बयानों में कह रहे हैं कि भाजपा सरकार में अफसरशाही पर एक ही जाति का कब्जा है। थानों से लेकर कमिश्नर कार्यालय तक, सिर्फ टी-टाइटल वाले बैठे हैं। भाजपा को पीडीए की चिंता नहीं है। उनका इशारा ‘टी’ मतलब ठाकुर से है। थानों में ठाकुर थानाध्यक्षों की तैनाती को तूल देकर वो भाजपा को दलित और पिछड़ा विरोधी बताने में जुटे हैं। अगर सपा का ये नरेटिव चल निकला तो भाजपा के सामने मुश्किल खड़ी हो सकती है। दलित वोट बैंक पर सबकी नजर यूपी की सियासत में पिछड़ा और दलित पॉलिटिक्स पर क्षेत्रीय दलों का जोर रहा है। अन्य पिछड़ा वर्ग खासकर यादव और अल्पसंख्यक वोटबैंक सपा के साथ रहा, तो दलित वोटर्स कांशीराम की बनाई बहुजन समाज पार्टी के साथ रहा। अब सूबे की सियासत का डायनामिक्स बदल रहा है। राजनैतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि अखिलेश यादव ने यह रणनीति जानबूझ कर नहीं बनाई। इसे परिस्थितियों ने पैदा किया है। संसद में रामजी लाल सुमन के बयान के बाद जो प्रतिक्रिया सामने आई, उससे उन्हें लगा कि इसका फायदा उठाया जा सकता है। उनका मकसद ठाकुरों पर हमला कर 21 प्रतिशत दलितों को रिझाने का है। मायावती कमजोर हैं इसलिए दलित वोटों को लेकर सपा, कांग्रेस और बीजेपी तीनों कोशिश कर रही है। पहले सपा-कांग्रेस ने संविधान आरक्षण का मुद्दा उठाया। भाजपा के अंदर इसकी चिंता होनी चाहिए कि सुमन के मुद्दे को तूल देने से उसे नुकसान हो सकता है। आगरा में जिस तरह से नंगी तलवारें लहराई गईं उससे फायदे का तो सवाल नहीं उठता, नुकसान जरूर हो सकता है। सपा अब बसपा का स्पेस हथियाने की कोशिश कर रही है। मायावती की एक मात्र कोशिश है कि उनका सजातीय वोट कहीं न जाए। उनकी पूरी सियासत इसी के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है। मायावती को सपा का मजबूती से जवाब देना होगा, वरना पार्टी सिर्फ यादों में रह जाएगी। मुकाबला अब जातियों का नहीं, हिस्सेदारी का है
उत्तर प्रदेश में अब लड़ाई सिर्फ वोटों की नहीं, प्रतिनिधित्व की बनती जा रही है। अखिलेश इसी बदली रणनीति के बूते भाजपा के मजबूत गढ़ को हिलाने और बसपा की नींव को चैलेंज देने में जुटे हैं। सपा पीडीए वर्गों को एकजुट करने की रणनीति के तहत ही अवधेश प्रसाद, रामजी लाल सुमन और इंद्रजीत सरोज जैसे अपने दलित नेताओं को प्रमुखता दे रही है। मायावती की अगुआई वाली बसपा के कोर वोटर दलित को साथ लाने के लिए सपा साल 2021 से प्रयोग कर रही है। प्रयोगों की ये श्रृंखला अब दो चेहरों अवधेश प्रसाद और रामजी लाल सुमन पर टिक गई है। मायावती के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए पार्टी ने पहले अवधेश प्रसाद का कद बढ़ाया और अब राणा सांगा विवाद में रामजीलाल सुमन का साथ देकर सपा ने यह संदेश दे दिया है कि पार्टी दलित पॉलिटिक्स की पिच पर आक्रामक रणनीति के साथ आगे बढ़ेगी। सपा की PDA रणनीति, कितनी कारगर होगी?
सरकार को पीडीए नहीं चाहिए। पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, सत्ता में हिस्सेदारी देने की कोई मंशा नहीं। लखनऊ के एक कार्यक्रम में अखिलेश ने सीएम योगी पर हमला बोलते हुए कहा था कि राज्य को सरकार नहीं, एक जाति विशेष का ‘प्रशासनिक तंत्र’ चल रहा है। कानून व्यवस्था, विकास और नियुक्तियों से लेकर तबादलों तक में जातिगत संतुलन नहीं है। अखिलेश का ये नया हमला उसी राजनीतिक अभियान का हिस्सा माना जा रहा है, जिससे ये संदेश देना चाह रहे हैं कि भाजपा सरकार में इन वर्गों को हाशिए पर धकेला जा रहा है। भाजपा नेताओं ने अखिलेश के आरोपों को ‘राजनीतिक हताशा’ बताया है। उनका कहना है कि ‘अखिलेश यादव हर बार पुलिस और प्रशासन को जाति के चश्मे से देखते हैं। भाजपा सरकार में कानून का राज चलता है, न कि जाति का।’ ——————————– ये भी पढ़ें: अब अखिलेश यादव को रुलाएंगे- करणी सेना का ऐलान:सपा प्रमुख और रामजी सुमन की फोटो पर लिखा- फिर सुरक्षा मांगते घूमोगे अखिलेश यादव की रामजीलाल सुमन से मुलाकात के बाद करणी सेना ने सपा प्रमुख को चेतावनी दी है। करणी सेना युवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओकेंद्र राणा ने अखिलेश और सुमन की फोटो सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की। इसके कैप्शन में लिखा- आज आप हंस रहे हो, हमारे समाज का अपमान करके। जल्द तुम रोओगे और वही समाज हंसेगा। अगली बार अखिलेश रोएगा, सपा के घटिया नेता रोएंगे। समय का इंतजार करो दोस्त, जल्द मुलाकात होगी। (पढ़ें पूरी खबर) सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सितंबर 2024 में सुल्तानपुर लूटकांड के आरोपी मंगेश यादव के एनकाउंटर पर STF को ‘स्पेशल ठाकुर फोर्स’ बोला था। अब उन्होंने चित्रकूट, जालौन, मैनपुरी, प्रयागराज, आगरा के थानों में PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) से ज्यादा ठाकुर थानाध्यक्षों और SHO की तैनाती का दावा कर भाजपा को घेरने की रणनीति बनाई है। सपा मुखिया ने खुलकर ठाकुर-वर्चस्व को निशाने पर लेना शुरू कर दिया है। इसके बहाने सपा, भाजपा को दलित और ओबीसी विरोधी साबित करने में जुटी है। साथ ही सपा बसपा को भी कमजोर करने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। पहले फैजाबाद सामान्य सीट से जीते अवधेश प्रसाद का कद बढ़ाया, अब आगरा के सपा नेता एवं राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन के राणा सांगा विवाद में मजबूती से साथ देकर दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कवायद में जुट गई है। अखिलेश यादव की इस बदली रणनीति से पार्टी को कितना फायदा होगा? एक्सपर्ट के नजरिए से सपा के PDA फार्मूले से भाजपा-बसपा को कितना नुकसान होगा? पढ़िए रिपोर्ट… अखिलेश यादव ने कब और क्या बदली रणनीति?
2022 के विधानसभा चुनाव में पहली बार PDA का नारा सपा की ओर से दिया गया। हालांकि परिणाम आया तो, पीडीए का दांव नहीं चला। चुनाव बाद सपा गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़े दो महत्वपूर्ण दल सुभासपा और रालोद भाजपा से जा मिले। हालांकि सपा पीडीए की रणनीति पर ही आगे बढ़ती रही। सपा पहले ‘सर्वसमावेशी’ लाइन पर चल रही थी, लेकिन भाजपा की आक्रामक हिंदुत्व राजनीति और बसपा की निष्क्रियता ने उसे नया मार्ग पीडीए दिखा दिया। अब सपा पीडीए को एक मंच पर लाकर भाजपा और बसपा दोनों के पर कुतरना चाहती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा को इसका फायदा भी मिल चुका है। तब कांग्रेस के साथ गठबंधन में सपा ने सूबे की 37 सीटें जीत ली। सपा के जीते सांसदों में 86 प्रतिशत पीडीए से आते हैं। प्रदेश की 17 सुरक्षित सीटों में सपा गठबंधन ने 8 जीते हैं। इसमें सपा को 7 और कांग्रेस को 1 सीट पर जीत मिली है। भाजपा 8 और 1 सीट आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के चंद्रशेखर जीतने में सफल रहे। बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। उसका वोटबैंक भी 9.34 प्रतिशत पर आ गया। बसपा के वोटबैंक में सेंध लगाने की रणनीति पर बढ़ रही सपा
दलित पॉलिटिक्स की पिच पर आक्रामक रणनीति के साथ उतरी सपा ने पहले अवधेश प्रसाद के सहारे गैर जाटव वोट पर फोकस किया, अब राणा सांगा विवाद में रामजीलाल सुमन के पीछे खड़े होकर जाटव वोटबैंक पर निगाहें जमा दी है। सपा ने 2024 लोकसभा में कांग्रेस गठबंधन के साथ 17 सुरक्षित सीटों के अलावां फैजाबाद और मेरठ की सामान्य सीटों पर दलित प्रत्याशी उतारे थे। सपा की ये रणनीति कारगर रही। फैजाबाद की प्रतिष्ठित सीट पर सपा प्रत्याशी व गैर जाटव दलित अवधेश प्रसाद जीत गए। वहीं मेरठ सीट सिर्फ 10,500 वोटों से सपा हारी थी। फैजाबाद सीट जीतने के बाद सपा ने अवधेश प्रसाद का कद बढ़ाते हुए उन्हें पार्टी के प्रमुख नेताओं में स्थान दिया। संसद में अखिलेश यादव के साथ अग्रिम पंक्ति में बैठाए गए। दलितों के मुद्दों पर अवधेश प्रसाद हमेशा से मुखर रहते हैं। अब सपा ने पश्चिम में रामजी लाल सुमन का कद बढ़ाकर बसपा के दलित वोटरों में कोर वोट बैंक के तौर पर शामिल जाटवों को साधने की रणनीति बनाई है। रामजी लाल के बहाने सपा को दोहरा फायदा होता दिख रहा है। राणा सांगा पर उनके विवादित बयान और इस पर करणी सेना सहित क्षत्रीय संगठनों के प्रदर्शन ने पूरी लड़ाई दलित बनाम क्षत्रीय की कर दी है। दलित सांसद के पक्ष में मजबूती से खड़ा दिखाकर सपा पश्चिम के जाटव दलितों को अपनी ओर आकर्षित कर बसपा को कमजोर करने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। वहीं, क्षत्रियों को भाजपा से जोड़कर भाजपा को दलित विरोधी साबित करने में जुटी है। मतलब साफ है कि बसपा से छिटक रहे दलित वोटबैंक भाजपा की बजाय पूरी तरह से सपा के पाले में आ गिरें। कोर वोटबैंक खिसकने के डर से ही मायावती सपा पर हमलावर
प्रदेश में रामजी लाल सुमन के बयान के बाद से अखिलेश दलित कार्ड खेलकर अनुसूचित जाति के वोट बैंक को साधने में जुटे हैं। इस कवायद ने बसपा सुप्रीमो मायावती की बेचैनी बढ़ा दी है। यही कारण है कि मायावती ने 19 अप्रैल को एक्स पर बयान जारी कर सपा को घोर जातिवादी बताया था। कहा कि, सपा के पिछले कृत्यों के लिए उसे माफ करना असंभव है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पश्चिमी यूपी में आगरा दलित राजनीति का बड़ा केंद्र है। करणी सेना के रामजी लाल सुमन के खिलाफ तलवारें लहराने के बाद से दलित वोट बैंक की भाजपा से नाराजगी है। ऐसे में अखिलेश ने रामजी लाल सुमन से आगरा में मुलाकात कर दलित वोट बैंक को बड़ा संदेश दिया है। अखिलेश की इसी सक्रियता ने बसपा की बेचैनी बढ़ा दी है। मायावती की चिंता है कि लोकसभा चुनाव की तरह दलित वोट बैंक फिर सपा की ओर शिफ्ट न हो जाए। यही वजह है कि वह एकाएक सपा पर हमलावर हो गई हैं। मायावती ने 2 जून 1995 गेस्ट हाउस कांड का जिक्र कर सपा पर विश्वासघात करने, बसपा नेतृत्व पर जानलेवा हमला कराने, प्रमोशन में आरक्षण का बिल संसद में फाड़ने जैसे कई आरोप लगाकर दलित वोटरों को सहेजने में जुटी हैं। उन्होंने बहुजन समाज के संतों, गुरुओं और महापुरुषों के सम्मान में बनाए गए नए जिले, पार्क, शिक्षण और मेडिकल कॉलेजों का नाम सपा द्वारा बदलने का मामला भी उठाया। उन्होंने बहुजन समाज के लोगों को सपा से सावधान रहने के लिए आगाह भी किया। मायावती का कहना है कि कांग्रेस और भाजपा की तरह ही सपा भी अपनी नीयत और नीति में खोट/द्वेष के कारण कभी भी दलितों-बहुजनों की सच्ची हितैषी नहीं हो सकती है। लेकिन इनके वोटों के स्वार्थ की खातिर लगातार छलावा करती रहेगी। बीएसपी ’बहुजन समाज’ को शासक वर्ग बनाने को समर्पित और संघर्षरत है। क्या सपा के जाल में फंस गई भाजपा?
सपा ने एक मुद्दा जिसे भाजपा ने उठाया था, उसे पूरी तरह से पलट दिया है। सपा के महाराष्ट्र के प्रदेश अध्यक्ष अबू आसिम आजमी के औरंगजेब पर दिए गए बयान के बाद भाजपा सपा पर हमलावर थी। मामला पूरी तरह से हिंदू-मुस्लिम बहस में छिड़ा हुआ था। बहाना औरंगजेब था और केंद्र में ‘हिंदू मुस्लिम’ थे। राज्यसभा में सपा के सांसद राम जी लाल सुमन के राणा सांगा पर दिए गए विवादित बयान ने इस पूरी लड़ाई के मायने ही बदल दिए। रामजी लाल सुमन पर हमलावर करणी सेना और क्षत्रिय नेताओं के आक्रामक बयानों ने इस पूरी लड़ाई को दलित बनाम ठाकुर में बदल दिया। सपा ने इसे दलितों के स्वाभिमान से जोड़ दिया और रामजी लाल सुमन के पक्ष में मजबूती के साथ न सिर्फ खड़े हो गए बल्कि पहले उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं राम गोपाल यादव और शिवपाल सिंह यादव को सुमन के घर भेजा और बाद में खुद अखिलेश भी उनके घर गए। करणी सेना के बहाने मुख्यमंत्री पर निशाना
सपा ने करणी सेना के बहाने सीधे मुख्यमंत्री पर निशाना साधना शुरू कर दिया। अखिलेश यादव करणी सेना काे योगी सेना के रूप में बताने लगे। करणी सेना के नेताओं की ओर से दी गई खुली धमकी पर कार्रवाई न होने से उनके आरोपों को बल भी मिला। सपा के प्रवक्ता उदयवीर कहते हैं कि आगरा में जो शक्ति प्रदर्शन हुआ है उसे मुख्यमंत्री ने पड़ोसी प्रदेश के बड़े नेताओं की मदद लेकर कराया है। क्योंकि इसमें सारी व्यवस्थाएं सरकारी थीं। प्रदर्शन की अनुमति के साथ प्रदर्शन में तलवारें और बंदूकें बिना पुलिस प्रशासन की छूट के कोई नहीं लहरा सकता था। भाजपा को PDA नहीं, सिर्फ टी-टाइटल पसंद: अखिलेश
आगरा-प्रयागराज सहित हाल के कई जिलों के दौरे पर अखिलेश यादव भाजपा को घेरने की अगली रणनीति के तहत ही उस पर ठाकुरवाद का खुलेआम आरोप लगाने में जुटे हैं। यही कारण है कि अखिलेश खुलेआम बयानों में कह रहे हैं कि भाजपा सरकार में अफसरशाही पर एक ही जाति का कब्जा है। थानों से लेकर कमिश्नर कार्यालय तक, सिर्फ टी-टाइटल वाले बैठे हैं। भाजपा को पीडीए की चिंता नहीं है। उनका इशारा ‘टी’ मतलब ठाकुर से है। थानों में ठाकुर थानाध्यक्षों की तैनाती को तूल देकर वो भाजपा को दलित और पिछड़ा विरोधी बताने में जुटे हैं। अगर सपा का ये नरेटिव चल निकला तो भाजपा के सामने मुश्किल खड़ी हो सकती है। दलित वोट बैंक पर सबकी नजर यूपी की सियासत में पिछड़ा और दलित पॉलिटिक्स पर क्षेत्रीय दलों का जोर रहा है। अन्य पिछड़ा वर्ग खासकर यादव और अल्पसंख्यक वोटबैंक सपा के साथ रहा, तो दलित वोटर्स कांशीराम की बनाई बहुजन समाज पार्टी के साथ रहा। अब सूबे की सियासत का डायनामिक्स बदल रहा है। राजनैतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि अखिलेश यादव ने यह रणनीति जानबूझ कर नहीं बनाई। इसे परिस्थितियों ने पैदा किया है। संसद में रामजी लाल सुमन के बयान के बाद जो प्रतिक्रिया सामने आई, उससे उन्हें लगा कि इसका फायदा उठाया जा सकता है। उनका मकसद ठाकुरों पर हमला कर 21 प्रतिशत दलितों को रिझाने का है। मायावती कमजोर हैं इसलिए दलित वोटों को लेकर सपा, कांग्रेस और बीजेपी तीनों कोशिश कर रही है। पहले सपा-कांग्रेस ने संविधान आरक्षण का मुद्दा उठाया। भाजपा के अंदर इसकी चिंता होनी चाहिए कि सुमन के मुद्दे को तूल देने से उसे नुकसान हो सकता है। आगरा में जिस तरह से नंगी तलवारें लहराई गईं उससे फायदे का तो सवाल नहीं उठता, नुकसान जरूर हो सकता है। सपा अब बसपा का स्पेस हथियाने की कोशिश कर रही है। मायावती की एक मात्र कोशिश है कि उनका सजातीय वोट कहीं न जाए। उनकी पूरी सियासत इसी के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है। मायावती को सपा का मजबूती से जवाब देना होगा, वरना पार्टी सिर्फ यादों में रह जाएगी। मुकाबला अब जातियों का नहीं, हिस्सेदारी का है
उत्तर प्रदेश में अब लड़ाई सिर्फ वोटों की नहीं, प्रतिनिधित्व की बनती जा रही है। अखिलेश इसी बदली रणनीति के बूते भाजपा के मजबूत गढ़ को हिलाने और बसपा की नींव को चैलेंज देने में जुटे हैं। सपा पीडीए वर्गों को एकजुट करने की रणनीति के तहत ही अवधेश प्रसाद, रामजी लाल सुमन और इंद्रजीत सरोज जैसे अपने दलित नेताओं को प्रमुखता दे रही है। मायावती की अगुआई वाली बसपा के कोर वोटर दलित को साथ लाने के लिए सपा साल 2021 से प्रयोग कर रही है। प्रयोगों की ये श्रृंखला अब दो चेहरों अवधेश प्रसाद और रामजी लाल सुमन पर टिक गई है। मायावती के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए पार्टी ने पहले अवधेश प्रसाद का कद बढ़ाया और अब राणा सांगा विवाद में रामजीलाल सुमन का साथ देकर सपा ने यह संदेश दे दिया है कि पार्टी दलित पॉलिटिक्स की पिच पर आक्रामक रणनीति के साथ आगे बढ़ेगी। सपा की PDA रणनीति, कितनी कारगर होगी?
सरकार को पीडीए नहीं चाहिए। पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, सत्ता में हिस्सेदारी देने की कोई मंशा नहीं। लखनऊ के एक कार्यक्रम में अखिलेश ने सीएम योगी पर हमला बोलते हुए कहा था कि राज्य को सरकार नहीं, एक जाति विशेष का ‘प्रशासनिक तंत्र’ चल रहा है। कानून व्यवस्था, विकास और नियुक्तियों से लेकर तबादलों तक में जातिगत संतुलन नहीं है। अखिलेश का ये नया हमला उसी राजनीतिक अभियान का हिस्सा माना जा रहा है, जिससे ये संदेश देना चाह रहे हैं कि भाजपा सरकार में इन वर्गों को हाशिए पर धकेला जा रहा है। भाजपा नेताओं ने अखिलेश के आरोपों को ‘राजनीतिक हताशा’ बताया है। उनका कहना है कि ‘अखिलेश यादव हर बार पुलिस और प्रशासन को जाति के चश्मे से देखते हैं। भाजपा सरकार में कानून का राज चलता है, न कि जाति का।’ ——————————– ये भी पढ़ें: अब अखिलेश यादव को रुलाएंगे- करणी सेना का ऐलान:सपा प्रमुख और रामजी सुमन की फोटो पर लिखा- फिर सुरक्षा मांगते घूमोगे अखिलेश यादव की रामजीलाल सुमन से मुलाकात के बाद करणी सेना ने सपा प्रमुख को चेतावनी दी है। करणी सेना युवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओकेंद्र राणा ने अखिलेश और सुमन की फोटो सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की। इसके कैप्शन में लिखा- आज आप हंस रहे हो, हमारे समाज का अपमान करके। जल्द तुम रोओगे और वही समाज हंसेगा। अगली बार अखिलेश रोएगा, सपा के घटिया नेता रोएंगे। समय का इंतजार करो दोस्त, जल्द मुलाकात होगी। (पढ़ें पूरी खबर)   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर