<p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi University Psychology Curriculum Controversy:</strong> दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद की सदस्य डॉ. मोनामी सिन्हा ने विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान पाठ्यक्रम में हो रही छेड़छाड़ और अत्यधिक जांच पर गहरी चिंता जताई है. शुक्रवार को हुई स्टैंडिंग कमेटी ऑन एकेडमिक मैटर्स की बैठक में उन्होंने यह मुद्दा उठाया. हालांकि विश्वविद्यालय की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>डॉ. सिन्हा, जो कमला नेहरू कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, ने बताया कि बैठक में पाठ्यक्रम के कई अहम हिस्सों को लेकर सवाल उठाए गए. खासतौर पर पाठ्यक्रम में शामिल पश्चिमी दृष्टिकोण और कुछ राजनीतिक रूप से संवेदनशील विषयों को लेकर आपत्ति जताई गई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>‘Psychology of Peace’ को लेकर विवाद</strong><br />सबसे अधिक चर्चा “Psychology of Peace” पाठ्यक्रम की यूनिट 4 को लेकर हुई, जिसमें इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष और कश्मीर मुद्दे जैसे केस स्टडीज के माध्यम से संघर्ष और समाधान की प्रक्रियाओं को समझाया गया है. सिन्हा के अनुसार, इस यूनिट को पूरी तरह हटाने का प्रस्ताव आया, यह कहते हुए कि कश्मीर मुद्दा अब ‘सुलझ चुका’ है और इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष पढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है. इसके स्थान पर महाभारत और भगवद गीता जैसे भारतीय दर्शन से जुड़े ग्रंथों को शामिल करने की सिफारिश की गई, ताकि स्वदेशी दृष्टिकोण को महत्व दिया जा सके.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सोशल मीडिया और डेटिंग ऐप्स पर भी आपत्ति</strong><br />डॉ. सिन्हा ने बताया कि एक अन्य वैकल्पिक पाठ्यक्रम में शामिल सोशल मीडिया और डेटिंग ऐप्स से संबंधित विषयों पर भी आपत्ति जताई गई. तर्क दिया गया कि ऐसे विषय भारतीय कक्षा के लिए उपयुक्त नहीं हैं और पाठ्यक्रम को पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों पर आधारित होना चाहिए. जबकि, सिन्हा ने इसे युवाओं की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से जुड़ी घटनाओं के संदर्भ में प्रासंगिक बताया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>‘Psychology of Diversity’ में बदलाव की मांग</strong><br />सिन्हा के अनुसार, “Psychology of Diversity” कोर्स में जातीय भेदभाव, स्त्रीद्वेष और पूर्वाग्रह जैसे विषयों को शामिल करने पर भी आपत्ति जताई गई. इसके बजाय एक “सकारात्मक दृष्टिकोण” अपनाने की बात कही गई. इसके अलावा, अल्पसंख्यक समूहों के मानसिक अनुभव को समझने के लिए अहम माने जाने वाले ‘Minority Stress Theory’ को भी पाठ्यक्रम से हटाने का सुझाव दिया गया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>शैक्षणिक स्वतंत्रता पर खतरा: सिन्हा</strong><br />डॉ. सिन्हा ने स्पष्ट रूप से कहा कि ये आपत्तियां अकादमिक नहीं बल्कि वैचारिक और राजनीतिक प्रेरणा से युक्त है. “शैक्षणिक निर्णयों का आधार शिक्षण और अनुसंधान होना चाहिए, न कि कोई विचारधारा. इन विषयों को हटाना न केवल विषय की गहराई को कमजोर करता है, बल्कि हमारे समाज की जटिल सच्चाइयों से भी छात्रों को दूर करता है,” उन्होंने कहा.</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi University Psychology Curriculum Controversy:</strong> दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद की सदस्य डॉ. मोनामी सिन्हा ने विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान पाठ्यक्रम में हो रही छेड़छाड़ और अत्यधिक जांच पर गहरी चिंता जताई है. शुक्रवार को हुई स्टैंडिंग कमेटी ऑन एकेडमिक मैटर्स की बैठक में उन्होंने यह मुद्दा उठाया. हालांकि विश्वविद्यालय की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>डॉ. सिन्हा, जो कमला नेहरू कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, ने बताया कि बैठक में पाठ्यक्रम के कई अहम हिस्सों को लेकर सवाल उठाए गए. खासतौर पर पाठ्यक्रम में शामिल पश्चिमी दृष्टिकोण और कुछ राजनीतिक रूप से संवेदनशील विषयों को लेकर आपत्ति जताई गई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>‘Psychology of Peace’ को लेकर विवाद</strong><br />सबसे अधिक चर्चा “Psychology of Peace” पाठ्यक्रम की यूनिट 4 को लेकर हुई, जिसमें इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष और कश्मीर मुद्दे जैसे केस स्टडीज के माध्यम से संघर्ष और समाधान की प्रक्रियाओं को समझाया गया है. सिन्हा के अनुसार, इस यूनिट को पूरी तरह हटाने का प्रस्ताव आया, यह कहते हुए कि कश्मीर मुद्दा अब ‘सुलझ चुका’ है और इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष पढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है. इसके स्थान पर महाभारत और भगवद गीता जैसे भारतीय दर्शन से जुड़े ग्रंथों को शामिल करने की सिफारिश की गई, ताकि स्वदेशी दृष्टिकोण को महत्व दिया जा सके.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सोशल मीडिया और डेटिंग ऐप्स पर भी आपत्ति</strong><br />डॉ. सिन्हा ने बताया कि एक अन्य वैकल्पिक पाठ्यक्रम में शामिल सोशल मीडिया और डेटिंग ऐप्स से संबंधित विषयों पर भी आपत्ति जताई गई. तर्क दिया गया कि ऐसे विषय भारतीय कक्षा के लिए उपयुक्त नहीं हैं और पाठ्यक्रम को पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों पर आधारित होना चाहिए. जबकि, सिन्हा ने इसे युवाओं की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से जुड़ी घटनाओं के संदर्भ में प्रासंगिक बताया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>‘Psychology of Diversity’ में बदलाव की मांग</strong><br />सिन्हा के अनुसार, “Psychology of Diversity” कोर्स में जातीय भेदभाव, स्त्रीद्वेष और पूर्वाग्रह जैसे विषयों को शामिल करने पर भी आपत्ति जताई गई. इसके बजाय एक “सकारात्मक दृष्टिकोण” अपनाने की बात कही गई. इसके अलावा, अल्पसंख्यक समूहों के मानसिक अनुभव को समझने के लिए अहम माने जाने वाले ‘Minority Stress Theory’ को भी पाठ्यक्रम से हटाने का सुझाव दिया गया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>शैक्षणिक स्वतंत्रता पर खतरा: सिन्हा</strong><br />डॉ. सिन्हा ने स्पष्ट रूप से कहा कि ये आपत्तियां अकादमिक नहीं बल्कि वैचारिक और राजनीतिक प्रेरणा से युक्त है. “शैक्षणिक निर्णयों का आधार शिक्षण और अनुसंधान होना चाहिए, न कि कोई विचारधारा. इन विषयों को हटाना न केवल विषय की गहराई को कमजोर करता है, बल्कि हमारे समाज की जटिल सच्चाइयों से भी छात्रों को दूर करता है,” उन्होंने कहा.</p> दिल्ली NCR दिल्ली के आनंद पवर्त लूट कांड में बड़ा खुलासा, भाई से बदला के लिए बहन से लूटे 25 लाख, 5 गिरफ्तार
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