<p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi High Court:</strong> देश की राजधानी में स्थित दिल्ली हाई कोर्ट खुद न्यायाधीशों की भारी कमी से जूझ रहा है. अदालत ने इस गंभीर मुद्दे पर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए साफ कहा कि यह समस्या पूरे न्यायिक तंत्र के लिए एक बड़ा संकट है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह देते हुए मामले का निपटारा कर दिया. याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में न्यायाधीशों के 40 प्रतिशत पद खाली होने का मुद्दा उठाया था. कोर्ट ने इस पर तीखी टिप्पणी करते हुए पूछा क्या आपको लगता है कि भारत सरकार और दिल्ली हाई कोर्ट को इस संकट की जानकारी नहीं है..</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दिल्ली HC में वर्तमान में केवल 36 जज कार्यरत</strong><br />याचिका में बताया गया कि दिल्ली हाई कोर्ट में स्वीकृत 60 न्यायाधीशों के पदों में से केवल 36 पर ही नियुक्तियां हैं. 45 स्थायी और 15 अतिरिक्त न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या के बावजूद, रिक्तियों के कारण अदालत का कार्य प्रभावित हो रहा है. सेवानिवृत्ति, स्थानांतरण और नियुक्ति प्रक्रिया में देरी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>बढ़ते केस, घटती न्यायिक शक्ति</strong><br />हाल के महीनों में जस्टिस रेखा पल्लि और अनूप कुमार मे सेवानिवृत्त हुए हैं, जबकि तीन अन्य जजों का अन्य हाई कोर्ट में स्थानांतरण हुआ है. आने वाले दिनों में दो और सेवानिवृत्तियाँ संभावित हैं, जिससे केवल 34 जजों के भरोसे दिल्ली जैसे महानगर की न्यायिक ज़िम्मेदारी रह जाएगी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सर्वाधिक प्रभावित गरीब और वंचित वर्ग</strong><br />वकील अमित साहनी ने याचिका में कहा कि यह स्थिति आम लोगों के मौलिक अधिकारों और न्याय तक पहुंच के रास्ते में बाधा बन रही है. खासतौर पर आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित समुदाय लंबी सुनवाई, जमानत और अपील की प्रक्रियाओं में बुरी तरह फंसते जा रहे हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में मामला</strong><br />सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को बताया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट की सक्रिय निगरानी में है. इसके मद्देनज़र हाई कोर्ट की बेंच जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला ने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट में पक्षकार बनने की अनुमति दी और याचिका वापस लेने की अनुमति दी.</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi High Court:</strong> देश की राजधानी में स्थित दिल्ली हाई कोर्ट खुद न्यायाधीशों की भारी कमी से जूझ रहा है. अदालत ने इस गंभीर मुद्दे पर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए साफ कहा कि यह समस्या पूरे न्यायिक तंत्र के लिए एक बड़ा संकट है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह देते हुए मामले का निपटारा कर दिया. याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में न्यायाधीशों के 40 प्रतिशत पद खाली होने का मुद्दा उठाया था. कोर्ट ने इस पर तीखी टिप्पणी करते हुए पूछा क्या आपको लगता है कि भारत सरकार और दिल्ली हाई कोर्ट को इस संकट की जानकारी नहीं है..</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दिल्ली HC में वर्तमान में केवल 36 जज कार्यरत</strong><br />याचिका में बताया गया कि दिल्ली हाई कोर्ट में स्वीकृत 60 न्यायाधीशों के पदों में से केवल 36 पर ही नियुक्तियां हैं. 45 स्थायी और 15 अतिरिक्त न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या के बावजूद, रिक्तियों के कारण अदालत का कार्य प्रभावित हो रहा है. सेवानिवृत्ति, स्थानांतरण और नियुक्ति प्रक्रिया में देरी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>बढ़ते केस, घटती न्यायिक शक्ति</strong><br />हाल के महीनों में जस्टिस रेखा पल्लि और अनूप कुमार मे सेवानिवृत्त हुए हैं, जबकि तीन अन्य जजों का अन्य हाई कोर्ट में स्थानांतरण हुआ है. आने वाले दिनों में दो और सेवानिवृत्तियाँ संभावित हैं, जिससे केवल 34 जजों के भरोसे दिल्ली जैसे महानगर की न्यायिक ज़िम्मेदारी रह जाएगी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सर्वाधिक प्रभावित गरीब और वंचित वर्ग</strong><br />वकील अमित साहनी ने याचिका में कहा कि यह स्थिति आम लोगों के मौलिक अधिकारों और न्याय तक पहुंच के रास्ते में बाधा बन रही है. खासतौर पर आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित समुदाय लंबी सुनवाई, जमानत और अपील की प्रक्रियाओं में बुरी तरह फंसते जा रहे हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में मामला</strong><br />सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को बताया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट की सक्रिय निगरानी में है. इसके मद्देनज़र हाई कोर्ट की बेंच जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला ने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट में पक्षकार बनने की अनुमति दी और याचिका वापस लेने की अनुमति दी.</p> दिल्ली NCR ‘कांग्रेस के शासनकाल में दलितों का विकास …?’, दिलीप जायसवाल ने राहुल गांधी पर साधा निशाना
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