वाराणसी के 12 गांव में 15 दिन से लोगों में तेंदुए की दहशत है, लोग घरों में रहने को मजबूर हैं। इन गांवों में 60% आबादी फूलों की खेती करती है, बाकी लोग मजदूरी और छोटे-मोटे व्यापार करते हैं। अब लोग खेतों में नहीं जा रहे। ज्यादातर लोग अपने बच्चों को अकेले घर से बाहर नहीं भेज रहे हैं। वन विभाग ने 23 मई को 36 घंटे के ऑपरेशन के बाद डिक्लेयर कर दिया कि तेंदुआ गौराकला गांव से लखरांव होते हुए चंदौली की तरफ निकल गया। मगर, किसी CCTV में तेंदुआ नहीं दिखा, सिर्फ पैरों के निशान ही दिखे। ऐसे में इन गांवों की जिंदगी अभी तक पटरी पर नहीं उतर सकी है। गांव के लोगों से बात करके दो बातें समझ आई। पहली- 24 मई के बाद किसी ने तेंदुआ को देखा नहीं। दूसरी – 60% परिवारों की आजीविका फूलों की खेती से चलती है। 12 दिन में खेती बर्बाद हो गई। क्या तेंदुआ अभी भी इन गांवों में है? वन विभाग क्या कर रहा है? इस गांव के हालात समझने के लिए दैनिक भास्कर ऐप टीम वाराणसी से 20Km दूर गांव गौराकला पहुंची। पढ़िए रिपोर्ट… गांव में तेंदुए के हमले में घायल की बात जयदेव ने कहा- हमले पर अधिकारी सबसे पहले भागे
गांव में तेंदुए के हमले में घायल हुए जयदेव से मुलाकात हुई। उन्होंने 23 मई को हुए हमले की कहानी सुनाई। कहा, अचानक हल्ला मचा कि गांव में तेंदुआ देखा गया। सब लोग घरों से बाहर निकल आए। हम भी वन विभाग के अधिकारियों के पास खड़े थे। अचानक एक तरफ से लोग दौड़े, मैं कुछ समझ पाता, उससे पहले मेरे ऊपर तेंदुआ कूदा। आप समझिए कि सबसे पहले वन विभाग वाले ही भागे। तेंदुआ ने मेरे हाथ पर हमला किया। चेहरे पर पंजा मारा। मैं जमीन पर गिर पड़ा, इसके बाद तेंदुए ने पास में खड़े गांव के दूसरे लड़के पर हमला कर दिया। गांव के लोगों के शोर मचाने पर तेंदुआ एक तरफ खेतों में भागता चला गया। जयचंद ने कहा- टीमें लौट गईं, डर से लोग खेतों में नहीं जा रहे
तेंदुए के हमले को समझने के बाद टीम ने गांव के लोगों से बातचीत शुरू की। फूलों की खेती करने वाले जयचंद मौर्य ने कहा- वन विभाग की टीमें वापस चली गई हैं, कोई किसान डर की वजह से खेतों में नहीं जा रहा है। कुछ लोग जा रहे हैं, मगर आधे फूल तोड़कर वापस आ जाते हैं, क्योंकि डर है कि तेंदुआ का हमला हो सकता है। जयचंद कहते हैं- लोग एक दिन में 500 से 600 रुपए कमा पाते थे, मगर अब सिंचाई नहीं होती है, फूल सूख रहे हैं। मजदूर भी खेतों में जाने की हिम्मत ही जुटा पा रहे हैं। अगर मजदूर ही नहीं जाएंगे तो फूल कैसे टूटेगा। उन्होंने कहा कि गांव के आसपास के इलाकों से रोज ही सूचना आ रही है कि तेंदुआ दिखाई दे रहा है, इस कारण डर अभी भी बना हुआ है। ये सब तब तक चलेगा जब तक तेंदुआ पकड़ा नहीं जाता। जिस खेत में तेंदुआ था, उसके सामने वन विभाग वाले एक जाल रखकर चले गए हैं। क्या वो खुद आकर फंस जाएगा? चुन्नी देवी ने कहा- मेरे बच्चे को भी घायल किया, हम घर में कैद
गांव में रहने वाली चुन्नी देवी ने बताया- गांव में सब लोग डरे हुए हैं कि कहीं बाहर निकले तो तेंदुआ हमला न कर दे। मेरे बच्चे पर भी तेंदुआ ने हमला किया था। हम लोग गरीब हैं, उसका इलाज तक नहीं करवा सके हैं। सिर्फ इतना कह सकते हैं कि तेंदुए को पकड़ा जाए, ताकि लोगों का डर खत्म हो। क्योंकि कब तक लोग घरों में कैद रहेंगे। किसान बोले- 12 दिन बाद आज खेत पर आया हूं
खेत में हिम्मत करके फूल तोड़ने जा रहे रामगोपाल मौर्य ने बताया- बुधवार को हमें गांव के लोगों ने बताया कि तेंदुआ दूसरी तरफ चला गया है, इसलिए आज खेत पर आया हूं। पिछले 12 दिनों से कोई नहीं आ रहा था। हमने पूछा- क्या किसी ने तेंदुआ को अपनी आंख से देखा है। उन्होंने कहा- नहीं… देखा तो नहीं है। मगर झाड़ियां भी हिलती हैं, तो लोग भाग खड़े होते हैं। घायल सुनील ने कहा- तेंदुए ने हाथ-पेट अपने जबड़े में भर लिया था
अब गांव में हमारी मुलाकात तेंदुए के हमले में घायल सुनील से हुई। वह कहते हैं- मेरे आगे भैया जयदेव चल रहे थे, उन पर हमला किया। मैं उन्हें बचाने के लिए आगे बढ़ा तो मेरे ऊपर तेंदुआ ने हमला शुरू कर दिया। जब वह जबड़े में मेरा हाथ और पेट भरने की कोशिश कर रहा था। मेरा तो दिमाग ही चलना बंद हो गया कि मैं क्या करूं। ईश्वर की कृपा है जो बच गया। आज 14 दिन से अस्पताल में हूं। अब ये लोग डिस्चार्ज कर रहे हैं। वन विभाग का दावा तेंदुए ने इलाका छोड़ा, लोग घबराएं नहीं
DFO स्वाति श्रीवास्तव ने दावा किया- गौराकला के लखरांव गांव में 23 मई को एक तेंदुए दिखा था। वन विभाग की टीम सुबह 8 बजे पिंजड़ा, जाल और अन्य आवश्यक उपकरणों के साथ मौके पर पहुंची। मौके पर प्रभागीय वनाधिकारी, उप प्रभागीय वनाधिकारी, क्षेत्रीय वन अधिकारी समेत 25-30 कर्मचारियों की टीम मौजूद रही। जिस बाग में तेंदुआ देखा गया, वो तीनों ओर से रिहायशी इलाके से घिरा था। कुछ देर बाद तेंदुआ दूसरे बाग में चला गया। हमने लखनऊ की मेडिकल टीम, गाजीपुर और चंदौली से भी रेस्क्यू टीमों को बुला लिया। वन विभाग की टीम पूरी रात मौके पर डटी रही और क्षेत्र में लगातार गश्त करती रही। कई नए पिंजड़े भी लगाए गए। देर रात तेंदुए को क्षेत्र से भागते हुए देखा गया। 24 मई की सुबह गश्त के दौरान तेंदुए के पैरों के निशानों से संकेत मिला कि वह अब इस क्षेत्र को छोड़ चुका है। सुरक्षा की दृष्टि से वन विभाग की टीमें 1 जून तक गांव में सक्रिय थी। अब अलग अलग जगहों एवं नदी किनारे के गांवों में भी गश्त की जा रही है। पिंजड़े, जाल, और ट्रैप कैमरों के जरिए निगरानी लगातार जारी है। उन्होंने गांव के लोगों से अपील की है कि वह अफवाहों पर ध्यान न देते हुए अपने काम को शुरू करें कही संदेह लगे तो वन विभाग को जानकारी भेजे। अब ये जानिए कि पहली बार तेंदुआ कब दिखा झाड़ियों में छिपा था तेंदुआ, छेड़ते ही हमला किया चौबेपुर की नई नवापुरा बस्ती में 23 मई की सुबह अमित मौर्य अपने खेत पर फूल तोड़ने पहुंचे थे। उन्होंने झाड़ियों में तेंदुए को छिपा देखा। शोर मचाकर गांववालों को बुला लिया। करीब 25 लोग लाठी-डंडे लेकर पहुंच गए। अभी कोई कुछ कर पाता, इससे पहले अमित ने तेंदुए को डंडे से छेड़ दिया। इसके बाद तेंदुए ने अमित पर हमला कर दिया। मौके पर मौजूद लोगों ने शोर मचाया तो तेंदुआ भागकर पास के एक बगीचे में छिप गया। हमले में घायल अमित को बस्ती के लोगों ने बाइक पर बैठाकर अस्पताल पहुंचा दिया। पुलिस-प्रशासन को तेंदुए के बारे में बताया। अमित के हाथ में गहरी चोट आई थी। सिर, पेट और पीठ पर भी तेंदुए के पंजे के निशान हैं। इसके 2 घंटे के बाद ग्राम पंचायत गौरा कला के कामाख्या नजर कॉलोनी में भी तेंदुए को भागते हुए देखा गया। वहां दो युवक तेंदुए को मारने के लिए बाग में घुस गए। तेंदुए ने दोनों युवकों अनिल और जयदेव को घायल कर दिया। इसके बाद वाराणसी वन विभाग ने 5 जिलों की टीमें बुला लीं। लखनऊ से भी टीम काशी आ गई। प्रशासन की टीम ड्रोन कैमरे से तेंदुए पर नजर रखने की कोशिश करती रही, लेकिन लोकेशन आज तक ट्रेस नहीं हो सकी। …………………… ये पढ़े : मायके नहीं आती तो बेटे को भेड़िया नहीं खाता:बहराइच में मां का दर्द, बोलीं-मैं पीछे दौड़ी…लेकिन बचा नहीं पाई मैं बरामदे में दोनों बच्चों के साथ सोई हुई थी। रात में भेड़िया आया और छोटे बेटे आयुष को मुंह में दबाकर भागने लगा। बेटे की चीख सुनकर मैं और मेरा पूरा परिवार जग गया। हम लोग भेड़िए के पीछे दौड़े। चीख-पुकार सुनकर गांव वाले भी पहुंच गए, लेकिन भेड़िया बच्चे को लेकर भाग गया। 5 घंटे बाद सुबह घर से डेढ़ किलोमीटर दूर गन्ने के खेत में बेटे का शव मिला। कलेजे के टुकड़े को देखते ही मैं बेहोश हो गई। मैं पति से झगड़ा करके मायके न आती तो आज मेरा बेटा जिंदा होता। पढ़िए पूरी खबर… वाराणसी के 12 गांव में 15 दिन से लोगों में तेंदुए की दहशत है, लोग घरों में रहने को मजबूर हैं। इन गांवों में 60% आबादी फूलों की खेती करती है, बाकी लोग मजदूरी और छोटे-मोटे व्यापार करते हैं। अब लोग खेतों में नहीं जा रहे। ज्यादातर लोग अपने बच्चों को अकेले घर से बाहर नहीं भेज रहे हैं। वन विभाग ने 23 मई को 36 घंटे के ऑपरेशन के बाद डिक्लेयर कर दिया कि तेंदुआ गौराकला गांव से लखरांव होते हुए चंदौली की तरफ निकल गया। मगर, किसी CCTV में तेंदुआ नहीं दिखा, सिर्फ पैरों के निशान ही दिखे। ऐसे में इन गांवों की जिंदगी अभी तक पटरी पर नहीं उतर सकी है। गांव के लोगों से बात करके दो बातें समझ आई। पहली- 24 मई के बाद किसी ने तेंदुआ को देखा नहीं। दूसरी – 60% परिवारों की आजीविका फूलों की खेती से चलती है। 12 दिन में खेती बर्बाद हो गई। क्या तेंदुआ अभी भी इन गांवों में है? वन विभाग क्या कर रहा है? इस गांव के हालात समझने के लिए दैनिक भास्कर ऐप टीम वाराणसी से 20Km दूर गांव गौराकला पहुंची। पढ़िए रिपोर्ट… गांव में तेंदुए के हमले में घायल की बात जयदेव ने कहा- हमले पर अधिकारी सबसे पहले भागे
गांव में तेंदुए के हमले में घायल हुए जयदेव से मुलाकात हुई। उन्होंने 23 मई को हुए हमले की कहानी सुनाई। कहा, अचानक हल्ला मचा कि गांव में तेंदुआ देखा गया। सब लोग घरों से बाहर निकल आए। हम भी वन विभाग के अधिकारियों के पास खड़े थे। अचानक एक तरफ से लोग दौड़े, मैं कुछ समझ पाता, उससे पहले मेरे ऊपर तेंदुआ कूदा। आप समझिए कि सबसे पहले वन विभाग वाले ही भागे। तेंदुआ ने मेरे हाथ पर हमला किया। चेहरे पर पंजा मारा। मैं जमीन पर गिर पड़ा, इसके बाद तेंदुए ने पास में खड़े गांव के दूसरे लड़के पर हमला कर दिया। गांव के लोगों के शोर मचाने पर तेंदुआ एक तरफ खेतों में भागता चला गया। जयचंद ने कहा- टीमें लौट गईं, डर से लोग खेतों में नहीं जा रहे
तेंदुए के हमले को समझने के बाद टीम ने गांव के लोगों से बातचीत शुरू की। फूलों की खेती करने वाले जयचंद मौर्य ने कहा- वन विभाग की टीमें वापस चली गई हैं, कोई किसान डर की वजह से खेतों में नहीं जा रहा है। कुछ लोग जा रहे हैं, मगर आधे फूल तोड़कर वापस आ जाते हैं, क्योंकि डर है कि तेंदुआ का हमला हो सकता है। जयचंद कहते हैं- लोग एक दिन में 500 से 600 रुपए कमा पाते थे, मगर अब सिंचाई नहीं होती है, फूल सूख रहे हैं। मजदूर भी खेतों में जाने की हिम्मत ही जुटा पा रहे हैं। अगर मजदूर ही नहीं जाएंगे तो फूल कैसे टूटेगा। उन्होंने कहा कि गांव के आसपास के इलाकों से रोज ही सूचना आ रही है कि तेंदुआ दिखाई दे रहा है, इस कारण डर अभी भी बना हुआ है। ये सब तब तक चलेगा जब तक तेंदुआ पकड़ा नहीं जाता। जिस खेत में तेंदुआ था, उसके सामने वन विभाग वाले एक जाल रखकर चले गए हैं। क्या वो खुद आकर फंस जाएगा? चुन्नी देवी ने कहा- मेरे बच्चे को भी घायल किया, हम घर में कैद
गांव में रहने वाली चुन्नी देवी ने बताया- गांव में सब लोग डरे हुए हैं कि कहीं बाहर निकले तो तेंदुआ हमला न कर दे। मेरे बच्चे पर भी तेंदुआ ने हमला किया था। हम लोग गरीब हैं, उसका इलाज तक नहीं करवा सके हैं। सिर्फ इतना कह सकते हैं कि तेंदुए को पकड़ा जाए, ताकि लोगों का डर खत्म हो। क्योंकि कब तक लोग घरों में कैद रहेंगे। किसान बोले- 12 दिन बाद आज खेत पर आया हूं
खेत में हिम्मत करके फूल तोड़ने जा रहे रामगोपाल मौर्य ने बताया- बुधवार को हमें गांव के लोगों ने बताया कि तेंदुआ दूसरी तरफ चला गया है, इसलिए आज खेत पर आया हूं। पिछले 12 दिनों से कोई नहीं आ रहा था। हमने पूछा- क्या किसी ने तेंदुआ को अपनी आंख से देखा है। उन्होंने कहा- नहीं… देखा तो नहीं है। मगर झाड़ियां भी हिलती हैं, तो लोग भाग खड़े होते हैं। घायल सुनील ने कहा- तेंदुए ने हाथ-पेट अपने जबड़े में भर लिया था
अब गांव में हमारी मुलाकात तेंदुए के हमले में घायल सुनील से हुई। वह कहते हैं- मेरे आगे भैया जयदेव चल रहे थे, उन पर हमला किया। मैं उन्हें बचाने के लिए आगे बढ़ा तो मेरे ऊपर तेंदुआ ने हमला शुरू कर दिया। जब वह जबड़े में मेरा हाथ और पेट भरने की कोशिश कर रहा था। मेरा तो दिमाग ही चलना बंद हो गया कि मैं क्या करूं। ईश्वर की कृपा है जो बच गया। आज 14 दिन से अस्पताल में हूं। अब ये लोग डिस्चार्ज कर रहे हैं। वन विभाग का दावा तेंदुए ने इलाका छोड़ा, लोग घबराएं नहीं
DFO स्वाति श्रीवास्तव ने दावा किया- गौराकला के लखरांव गांव में 23 मई को एक तेंदुए दिखा था। वन विभाग की टीम सुबह 8 बजे पिंजड़ा, जाल और अन्य आवश्यक उपकरणों के साथ मौके पर पहुंची। मौके पर प्रभागीय वनाधिकारी, उप प्रभागीय वनाधिकारी, क्षेत्रीय वन अधिकारी समेत 25-30 कर्मचारियों की टीम मौजूद रही। जिस बाग में तेंदुआ देखा गया, वो तीनों ओर से रिहायशी इलाके से घिरा था। कुछ देर बाद तेंदुआ दूसरे बाग में चला गया। हमने लखनऊ की मेडिकल टीम, गाजीपुर और चंदौली से भी रेस्क्यू टीमों को बुला लिया। वन विभाग की टीम पूरी रात मौके पर डटी रही और क्षेत्र में लगातार गश्त करती रही। कई नए पिंजड़े भी लगाए गए। देर रात तेंदुए को क्षेत्र से भागते हुए देखा गया। 24 मई की सुबह गश्त के दौरान तेंदुए के पैरों के निशानों से संकेत मिला कि वह अब इस क्षेत्र को छोड़ चुका है। सुरक्षा की दृष्टि से वन विभाग की टीमें 1 जून तक गांव में सक्रिय थी। अब अलग अलग जगहों एवं नदी किनारे के गांवों में भी गश्त की जा रही है। पिंजड़े, जाल, और ट्रैप कैमरों के जरिए निगरानी लगातार जारी है। उन्होंने गांव के लोगों से अपील की है कि वह अफवाहों पर ध्यान न देते हुए अपने काम को शुरू करें कही संदेह लगे तो वन विभाग को जानकारी भेजे। अब ये जानिए कि पहली बार तेंदुआ कब दिखा झाड़ियों में छिपा था तेंदुआ, छेड़ते ही हमला किया चौबेपुर की नई नवापुरा बस्ती में 23 मई की सुबह अमित मौर्य अपने खेत पर फूल तोड़ने पहुंचे थे। उन्होंने झाड़ियों में तेंदुए को छिपा देखा। शोर मचाकर गांववालों को बुला लिया। करीब 25 लोग लाठी-डंडे लेकर पहुंच गए। अभी कोई कुछ कर पाता, इससे पहले अमित ने तेंदुए को डंडे से छेड़ दिया। इसके बाद तेंदुए ने अमित पर हमला कर दिया। मौके पर मौजूद लोगों ने शोर मचाया तो तेंदुआ भागकर पास के एक बगीचे में छिप गया। हमले में घायल अमित को बस्ती के लोगों ने बाइक पर बैठाकर अस्पताल पहुंचा दिया। पुलिस-प्रशासन को तेंदुए के बारे में बताया। अमित के हाथ में गहरी चोट आई थी। सिर, पेट और पीठ पर भी तेंदुए के पंजे के निशान हैं। इसके 2 घंटे के बाद ग्राम पंचायत गौरा कला के कामाख्या नजर कॉलोनी में भी तेंदुए को भागते हुए देखा गया। वहां दो युवक तेंदुए को मारने के लिए बाग में घुस गए। तेंदुए ने दोनों युवकों अनिल और जयदेव को घायल कर दिया। इसके बाद वाराणसी वन विभाग ने 5 जिलों की टीमें बुला लीं। लखनऊ से भी टीम काशी आ गई। प्रशासन की टीम ड्रोन कैमरे से तेंदुए पर नजर रखने की कोशिश करती रही, लेकिन लोकेशन आज तक ट्रेस नहीं हो सकी। …………………… ये पढ़े : मायके नहीं आती तो बेटे को भेड़िया नहीं खाता:बहराइच में मां का दर्द, बोलीं-मैं पीछे दौड़ी…लेकिन बचा नहीं पाई मैं बरामदे में दोनों बच्चों के साथ सोई हुई थी। रात में भेड़िया आया और छोटे बेटे आयुष को मुंह में दबाकर भागने लगा। बेटे की चीख सुनकर मैं और मेरा पूरा परिवार जग गया। हम लोग भेड़िए के पीछे दौड़े। चीख-पुकार सुनकर गांव वाले भी पहुंच गए, लेकिन भेड़िया बच्चे को लेकर भाग गया। 5 घंटे बाद सुबह घर से डेढ़ किलोमीटर दूर गन्ने के खेत में बेटे का शव मिला। कलेजे के टुकड़े को देखते ही मैं बेहोश हो गई। मैं पति से झगड़ा करके मायके न आती तो आज मेरा बेटा जिंदा होता। पढ़िए पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
काशी के 12 गांव में तेंदुए की दहशत:60% लोग फूलों की खेती करते हैं, वो बर्बाद; लोग बोले- अफसरों को नहीं पता तेंदुआ कहां है?
