अखिलेश ने माता प्रसाद से साधा 2027 का समीकरण:सत्तापक्ष के लिए कोई दांव छोड़ना नहीं चाहते; पीडीए फार्मूले के साथ अगड़ों को भी तरजीह हमेशा M-Y (मुस्लिम-यादव) की राजनीति करने वाली सपा ने लोकसभा चुनाव से पहले PDA की बात की। जब लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आया, तो अखिलेश यादव का दांव सटीक बैठा। इस बीच, रविवार को अखिलेश ने एक बार फिर अपने फैसले से सबको चौंका दिया। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के लिए उम्मीद थी कि कोई पीडीए से नेता होगा। लेकिन, अखिलेश ने सबको दरकिनार करते हुए ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाया। लेकिन, अखिलेश यादव ने ऐसे ही ब्राह्मण को विधानसभा नेता प्रतिपक्ष नहीं बना दिया। उन्होंने विधानमंडल के दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष, मुख्य सचेतक, उप-सचेतक और अधिष्ठाता मंडल का भी ऐलान किया। इसमें अखिलेश ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (PDA) के फार्मूले को ही आगे बढ़ाया। विधान परिषद में लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाया। विधानसभा में मुस्लिम समुदाय के कमाल अख्तर को मुख्य सचेतक बनाया। महबूब अली को अधिष्ठाता मंडल में नियुक्ति दी है। उप मुख्य सचेतक पद पर कुर्मी समाज के बड़े चेहरे डॉ. आरके वर्मा को नियुक्त किया है। दरअसल, अखिलेश ने न केवल विधानसभा की 10 सीटों पर होने वाले उप-चुनाव की रणनीति तैयार की, 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए भी साफ संदेश दिया। सपा ने विधान परिषद और विधानसभा में मनोनयन पर M-Y (मुस्लिम-यादव) के साथ PDA और अगड़ा की रणनीति अपनाई। उप-चुनाव में होगा फायदा
जल्द ही अयोध्या की मिल्कीपुर, अंबेडकरनगर की कटेहरी, प्रयागराज की फूलपुर, भदोही की मझवां, अलीगढ़ की खैर, मुजफ्फरनगर की मीरापुर, गाजियाबाद, मैनपुरी, कानपुर की सीसामऊ और मुरादाबाद की कुंदरकी सीट पर उप-चुनाव होना है। जानकार मानते हैं कि विधानमंडल के दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष और अन्य पदों पर मनोनयन से सपा को इन 10 सीटों पर होने वाले उप-चुनाव में फायदा हो सकता है। खासतौर पर कुर्मी और ब्राह्मण वोट बैंक सपा की ओर कदम बढ़ा सकता है। सरकार का मुकाबला नहीं कर पाते सरोज
सपा मुखिया इंद्रजीत सरोज को नेता प्रतिपक्ष बनाना चाहते थे। लेकिन सपा विधायकों का एक बड़ा वर्ग इससे नाराज था। उनका मानना था कि इंद्रजीत सरोज सदन में सरकार का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। सदन में सरकार उन्हें दबाने में सफल हो जाएगी। इसलिए शिवपाल नहीं बने नेता प्रतिपक्ष
अखिलेश यादव यूं भी चाचा शिवपाल का राजनीतिक कद बढ़ाने के पक्षधर नहीं रहते हैं। अब तर्क दिया जा रहा है कि विधान परिषद में लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। ऐसे में अगर विधानसभा में भी शिवपाल यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता, तो सपा पर परिवारवाद का आरोप लगता। साथ ही विपक्ष यह नरेटिव सेट करता कि सपा के PDA में पिछड़े केवल यादव ही हैं। सरकार से मुकाबला कर पाएंगे माता प्रसाद
अखिलेश का मानना है कि 7वीं बार विधायक बने माता प्रसाद पांडेय सदन में सरकार से मुकाबला कर पाएंगे। विधायक और विधानसभा अध्यक्ष पद का लंबा अनुभव होने से वह संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना और नेता सदन योगी आदित्यनाथ से सवाल-जवाब भी कर पाएंगे। ब्राह्मणों को संदेश देने की कोशिश
सिद्धार्थनगर के रहने वाले माता प्रसाद पांडेय पूर्वांचल के ब्राह्मण नेता हैं। विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने ब्राह्मण वर्ग में अपना वर्चस्व बढ़ाया था। जानकार मानते हैं, माता प्रसाद की नियुक्ति से ब्राह्मण वर्ग में सपा का सीधा संदेश जाएगा। ऐसे में भाजपा से नाराज चल रहे ब्राह्मण सपा की ओर आकर्षित होंगे। जानकार यह भी मानते हैं कि पूर्व मुख्य सचेतक मनोज पांडेय के सपा छोड़कर भाजपा में शामिल होने से ब्राह्मण समाज में सपा के प्रति गलत संदेश गया था। ब्राह्मण समाज मानने लगा था कि सपा केवल पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग पर फोकस करती हैं। सपा को ब्राह्मण वोट बैंक की जरूरत नहीं है। अब माता प्रसाद को नेता प्रतिपक्ष बनाने से ब्राह्मणों में संदेश जाएगा कि सपा भी उन्हें महत्व दे रही है। सत्ता पक्ष के हाथ दांव नहीं छोड़ना चाहते अखिलेश
इस बार लोकसभा चुनाव में सपा ने यूपी में भाजपा पर बढ़त बनाई। जानकार मानते हैं, इस जीत से सपा नेतृत्व खुशी से लबरेज हैं। जीत के इस सिलसिले को आगे जारी रखने के लिए अखिलेश अब एक-एक कदम सधे हुए राजनेता की तरह रख रहे हैं। वह अब भाजपा के हाथ एक भी मुद्दा नहीं देना चाहते। यही वजह है, अखिलेश ने PDA को आगे बढ़ाने के साथ ब्राह्मण चेहरे को मौका दिया। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक आनंद राय कहते हैं- सपा ने 7 बार के विधायक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद को यूं ही नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया। माता प्रसाद सदन में विपक्ष की आवाज को मजबूत करने में सक्षम हैं। विधानसभा अध्यक्ष रहने के नाते सदन के नियम-कायदों के अच्छे जानकार हैं। दलित हो सकता है उपनेता प्रतिपक्ष
सपा विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष पद पर दलित वर्ग के इंद्रजीत सरोज या डॉ. रागिनी सोनकर को नियुक्त करने पर मंथन कर रही है। इसके बाद ही सपा का PDA सही साबित होगा। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रतनमणिलाल कहते हैं- ऐसा माना जाता था कि सपा केवल PDA पर ही फोकस करेगी। एक समय था कि सपा में बड़े पद अगड़े वर्ग को दिए जाते थे। अखिलेश यादव ने बहुत सोच-समझकर ब्राह्मणों को संदेश देने के लिए यह निर्णय लिया है। लेकिन केवल इससे काम नहीं चलेगा, दूसरी जगहों पर भी मौका देना होगा। यूपी में 14 फीसदी है ब्राह्मण वोट बैंक
यूपी में 115 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर ब्राह्मण वोटरों का अच्छा प्रभाव है। 14 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मण वोट वाले 12 जिले हैं। इनमें बलरामपुर, बस्ती, संत कबीरनगर, महराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर, प्रयागराज शामिल हैं। यही वजह है कि सभी पार्टियों ने इस वर्ग के नेताओं को तवज्जो दी है। यही वजह है कि यूपी के 21 में से 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण रहे हैं। सपा ने पहली बार अगड़े को बनाया नेता प्रतिपक्ष
1993 में बानी समाजवादी पार्टी के पास विधानसभा में 7 बार नेता प्रतिपक्ष चुनने का मौका रहा। 2 बार मुलायम सिंह यादव, एक-एक बार धनीराम वर्मा, आजम खान, शिवपाल सिंह, रामगोविंद चौधरी और अखिलेश यादव नेता प्रतिपक्ष रहे। मतलब 4 बार मुलायम परिवार ने नेता प्रतिपक्ष के पद अपने पास रखा। पार्टी के इतिहास में पहली बार किसी अगड़े को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का ओहदा दिया गया है। ये खबर भी पढ़ें… अखिलेश ने चाचा को क्यों किया दरकिनार; नेता प्रतिपक्ष के लिए माता प्रसाद ही क्यों मुफीद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के लोकसभा जाने के बाद यूपी में सबसे ज्यादा चर्चा नेता प्रतिपक्ष के चेहरे को लेकर थी। पहले तीन नाम सामने आए। पहला- शिवपाल यादव, दूसरा- इंद्रजीत सरोज और तीसरा- तूफानी सरोज। बैठक में इन नामों पर चर्चा भी हुई। माता प्रसाद पांडेय के नाम की दूर-दूर चर्चा नहीं थी, लेकिन अखिलेश ने सबको चौंकाते हुए पार्टी के पुराने नेताओं में शामिल 81 साल के माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष का पद दे दिया। घोषणा के समय शिवपाल यादव नहीं थे। पूरी खबर पढ़ें…