कथावाचक मोरारी बापू पत्नी नर्मदाबा के निधन के 3 दिन बाद वाराणसी पहुंचे। यहां रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में 14 जून से 9 दिवसीय उनकी राम कथा ‘मानस सिंदूर’ शुरू हुई। उससे पहले उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन किया। सूतक में पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान करने पर सवाल उठाए जाने लगे। कहा गया कि सूतक काल में बापू ने पूजा करके गलत किया। उनका पुतला तक जलाया गया। हालांकि, विवाद बढ़ता देख मोरारी बापू ने माफी मांग ली। क्या है ये पूरा मामला? क्या होता है सूतक? क्या इस दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है? क्या वैष्णव संतों के लिए कोई नियम नहीं? इन सभी सवालों के जवाब भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए- सवाल-1: मोरारी बापू के धार्मिक अनुष्ठान करने, माफी मांगने का पूरा मामला क्या है? जवाब: कथावाचक मोरारी बापू की पत्नी का 11 जून को निधन हो गया था। मोरारी बापू 14 जून को काशी पहुंचे। यहां उन्होंने बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए। कथा शुरू की। इसे लेकर विरोध शुरू हो गया। अखिल भारतीय संत समिति ने भी विरोध दर्ज कराया। समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा- सूतक में कथा करना निंदनीय है। जब व्यक्ति धर्म से ऊपर उठकर अर्थ की कामना से इस प्रकार के आचरण करता है, तो समाज के लिए निंदनीय हो जाता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष और काशी विद्वत के मंत्री डॉ. विनय पांडेय ने कहा कि ऐसा करना धर्म शास्त्र के खिलाफ है। वाराणसी की सुमेर पीठ के शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने इसे धर्म और परंपरा के विपरीत बताया। विवाद बढ़ता देख मोरारी बापू ने रविवार को माफी मांग ली। कथास्थल से कहा- ये बात किसी को बुरी लगी हो, तो मैं माफी मांगता हूं। इसके लिए मैं मानस क्षमा कथा भी कहूंगा। मैं प्रभु की कथा करता रहूंगा। इसके लिए ही यहां आया हूं। सवाल- 2: सूतक क्या होता है? जवाब: भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के रिसर्चर आचार्य राकेश झा बताते हैं, घर में किसी की मौत हो जाने जाने के बाद हिंदू धर्म में 13 दिन का सूतक माना जाता है। घर में किसी नवजात का जन्म होने पर भी सूतक होता है। हालांकि, इसको अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता हैं। यूपी, बिहार, झारखंड, दिल्ली आदि इलाकों में इसे सूतक कहते हैं। वहीं, मध्य प्रदेश और राजस्थान के इलाकों में इसको पातक कहते हैं। ग्रहण काल को भी सूतक माना जाता है। सूतक को शास्त्रीय भाषा में अशौच काल भी कहा जाता है। आचार्य राकेश बताते हैं सूतक के दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है। ज्योतिष कर्मकांड से जुड़े पंडित नरेंद्र उपाध्याय बताते है कि घर किसी की मौत या जन्म होने पर पूरे परिवार पर सूतक लग जाता है। कहा जाता है कि परिवार ‘छुतके’ से गुजर रहा है। कहने का मतलब वो अशुद्ध होते हैं। इस दौरान घर पर कोई धार्मिक कार्य करना या परिवार के किसी भी शख्स को शुभ कामों में भाग लेना वर्जित माना जाता है। सवाल- 3: कब से सूतक लग जाता है? जवाब: कर्मकांड के जानकारों के मुताबिक, यह परिवार के सभी सदस्यों, खानदान और कभी-कभी गोत्र-कुल के लोगों पर भी लागू हो सकता है। जिस दिन दाह-संस्कार होता है, उस दिन से सूतक की गणना होती है। जिस दिन व्यक्ति की मौत होती है, उस दिन से इसको नहीं जोड़ा जाता। अगर किसी के घर का सदस्य बाहर हो, तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है, उस दिन से उस पर सूतक लगता है। अगर किसी को 12वें दिन सूचना मिलती है, तो सिर्फ स्नान मात्र से शुद्धि हो जाती है। सवाल- 4: क्या सूतक के दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है? जवाब: आचार्य राकेश झा बताते हैं- सूतक के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि, ये समय धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अशुद्ध माना जाता है। सूतक काल चाहे जन्म के बाद हो या मौत के बाद, एक नेगेटिव एनर्जी का टाइम होता है। जिसमें किसी भी मांगलिक या शुभ कार्यों से बचना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूतक अवधि 12 या 13 दिन की मानी जाती है। इस अवधि तक घर में सूतक के नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। कितने दिनों का होता है जन्म सूतक? कितने दिन का होता है मृत्यु सूतक? ग्रहण के दौरान लगने वाला सूतक क्या है? सवाल- 5: क्या सूतक में मंदिर में प्रवेश या पूजा-पाठ नहीं करना चाहिए? जवाब: पंडित नरेंद्र उपाध्याय और आचार्य राकेश बताते हैं- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूतक के दौरान छूत लग जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है। हर चीज अशुद्ध होती है, इस वजह से मंदिर जाना या घर के मंदिर में पूजा करने की भी मनाही होती है। मान्यता है कि इस दौरान पितृ लोग इर्द-गिर्द रहते हैं। शास्त्रों के अनुसार, ब्राह्मण को 10 दिन का क्षत्रिय को 12 दिन का और वैश्य को 15 दिन और शूद्र को एक महीने का सूतक लगता है। विशेष परिस्थितियों में चारों वर्णों की शुद्धि 10 दिनों में ही होती है। इसे शारीरिक शुद्धि कहते हैं। इसके बाद किसी तरह का दोष नहीं रहता। त्रयोदश संस्कार (तेरहवीं) के बाद पूर्णशुद्धि हो जाती है। इसके बाद ही देवताओं की पूजा-आराधना की जाती है। सूतक के दौरान बाल कटवाने, नाखून काटने और कहीं-कहीं पर हल्दी और खाने में तेल के इस्तेमाल की मनाही होती है। सवाल- 6: वैष्णव संत कौन होते हैं? जवाब: ये संत वैष्णव धर्म के अनुयायी होते है। भगवान विष्णु और उनके अवतारों जैसे राम-कृष्ण के भक्त होते हैं। ये भगवान विष्णु को सर्वोच्च ईश्वर मानते हैं। अपने जीवन को भगवान विष्णु की भक्ति के लिए समर्पित करते हैं। इसमें भजन, कीर्तन, कथा वाचन और अन्य धार्मिक क्रियाएं शामिल हैं। आमतौर पर ये शाकाहारी होते हैं, सत्य और अहिंसा का पालन करते हैं। सवाल-7: क्या वैष्णव संतों के लिए सूतक नहीं लागू होता? जवाब: आचार्य राकेश झा के अनुसार, संन्यासी-वैष्णव संतों और जिनका गृहस्थ आश्रम से कुछ लेना-देना नहीं, उन पर ये नियम नहीं लागू होता। क्योंकि जब आप संन्यासी बनते हैं, तब पिंडदान कर दिया जाता है। इससे आपका गृहस्थ जीवन से कोई ताल्लुक नहीं रहता। इस वजह से ये लोग किसी की मौत या जन्म के बाद शुभ काम कर सकते हैं। लेकिन अगर आप गृहस्थ जीवन में हैं, चाहे आप कथा वाचक हों या फिर एस्ट्रोलॉजर, तो आपको सूतक के नियमों का पालन करना चाहिए। आचार्य राकेश झा का कहना है कि मोरारी बापू बहुत अच्छे और महान संत हैं। लेकिन, उनका इस तरह से कथा करना सही नहीं है। वो गृहस्थ जीवन में हैं, उनको सूतक के नियमों का पालन करना चाहिए। सवाल-8: सूतक को लेकर धार्मिक मान्यता क्या है? जवाब: पंडित नरेंद्र उपाध्याय का कहना है- हिंदू मान्यता के अनुसार जन्म और मृत्यु जीवन के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं। ये आत्मा से जुड़े हैं। सूतक के दौरान परिवार को आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से अशुद्ध माना जाता है। धार्मिक कार्यों पर प्रतिबंध लग जाता है। इस दौरान मंदिर जाना, पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन या अन्य धार्मिक अनुष्ठान करना वर्जित होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान की गई पूजा का फल भी नहीं मिलता। सूतक अवधि समाप्त होने के बाद परिवार को शुद्धिकरण की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। जैसे स्नान, गंगा जल का छिड़काव या विशेष अनुष्ठान। मृत्यु सूतक में यह प्रक्रिया अंतिम संस्कार और श्राद्ध के बाद पूरी होती है। शुद्धिकरण की प्रक्रिया के बाद ही परिवार को शुद्ध माना जाता है। तभी शुभ या मांगलिक कार्यों की अनुमति मिलती है, शुभ कार्यों का फल मिलता है। सवाल- 9: धार्मिक ग्रंथों में सूतक का कहां-कहां जिक्र है? जवाब: हिंदू धर्म के पुराणों और शास्त्रों में मौत के बाद सूतक का उल्लेख मिलता है। गरुड़ पुराण, विष्णु पुराण में इसका जिक्र है, लेकिन अग्नि पुराण में इसकी विस्तृत चर्चा की गई है। अग्नि पुराण में सूतक का विस्तृत उल्लेख
अग्नि पुराण हिंदू धर्म के 18 प्रमुख पुराणों में से एक है। इसमें सूतक और उसके नियमों की स्पष्ट चर्चा की गई है। अग्नि पुराण के अध्याय 155 और 156 में मौत के बाद अशौच (सूतक) की अवधि का वर्णन है। यह अमूमन 10 से 13 दिनों तक माना जाता है। यह मृतक के संबंध और परिवार के वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) पर निर्भर करता है। अग्नि पुराण में सूतक समाप्त होने के बाद शुद्धिकरण के लिए स्नान, गंगा जल का उपयोग और श्राद्ध कर्म का महत्व बताया गया है। इसके 13वें दिन पर श्राद्ध और पिंडदान के बाद परिवार शुद्ध माना जाता है। सवाल- 10: सूतक को लेकर क्या कहता है साइंस? जवाब: सूतक को लेकर एक्सपर्ट बताते हैं कि पुराने समय में मेडिकल सुविधाएं सीमित थीं। मौत के बाद शरीर से बैक्टीरिया फैलने का खतरा रहता था। सही मायनों में इसे साफ-सफाई से जोड़कर देखना चाहिए। सूतक की अवधि में परिवार के लोगों को सामाजिक संपर्क और धार्मिक स्थलों पर जाने से रोकना संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने का तरीका हो सकता है। ——————– ये खबर भी पढ़ें… डॉल्फिन-कछुओं की लगातार हो रहीं मौतें:यूपी में जहां सबसे ज्यादा संख्या वहां नहीं दिखती डॉल्फिन, पार्ट-2 बुलंदशहर जिले का गांव राजघाट। गंगा का ये इलाका डॉल्फिन, कछुओं और मछलियों की मौजूदगी के लिए मशहूर है। अकेले इसी जगह गंगा में 20 से ज्यादा डॉल्फिन हैं। लेकिन, हमें निराश होना पड़ा। दो घंटे मोटरबोट में घूमने के बाद भी हमें डॉल्फिन की एक झलक भी नहीं दिखी। ‘दैनिक भास्कर’ ने अपनी गंगा यात्रा के दूसरे दिन मेरठ के हस्तिनापुर से संभल तक करीब 175 किलोमीटर का सफर तय किया। यात्रा के इस पड़ाव में हमने देखा गंगा में डॉल्फिन, कछुओं की मौजूदगी कम है। पढ़ें पूरी खबर कथावाचक मोरारी बापू पत्नी नर्मदाबा के निधन के 3 दिन बाद वाराणसी पहुंचे। यहां रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में 14 जून से 9 दिवसीय उनकी राम कथा ‘मानस सिंदूर’ शुरू हुई। उससे पहले उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन किया। सूतक में पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान करने पर सवाल उठाए जाने लगे। कहा गया कि सूतक काल में बापू ने पूजा करके गलत किया। उनका पुतला तक जलाया गया। हालांकि, विवाद बढ़ता देख मोरारी बापू ने माफी मांग ली। क्या है ये पूरा मामला? क्या होता है सूतक? क्या इस दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है? क्या वैष्णव संतों के लिए कोई नियम नहीं? इन सभी सवालों के जवाब भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए- सवाल-1: मोरारी बापू के धार्मिक अनुष्ठान करने, माफी मांगने का पूरा मामला क्या है? जवाब: कथावाचक मोरारी बापू की पत्नी का 11 जून को निधन हो गया था। मोरारी बापू 14 जून को काशी पहुंचे। यहां उन्होंने बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए। कथा शुरू की। इसे लेकर विरोध शुरू हो गया। अखिल भारतीय संत समिति ने भी विरोध दर्ज कराया। समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा- सूतक में कथा करना निंदनीय है। जब व्यक्ति धर्म से ऊपर उठकर अर्थ की कामना से इस प्रकार के आचरण करता है, तो समाज के लिए निंदनीय हो जाता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष और काशी विद्वत के मंत्री डॉ. विनय पांडेय ने कहा कि ऐसा करना धर्म शास्त्र के खिलाफ है। वाराणसी की सुमेर पीठ के शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने इसे धर्म और परंपरा के विपरीत बताया। विवाद बढ़ता देख मोरारी बापू ने रविवार को माफी मांग ली। कथास्थल से कहा- ये बात किसी को बुरी लगी हो, तो मैं माफी मांगता हूं। इसके लिए मैं मानस क्षमा कथा भी कहूंगा। मैं प्रभु की कथा करता रहूंगा। इसके लिए ही यहां आया हूं। सवाल- 2: सूतक क्या होता है? जवाब: भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के रिसर्चर आचार्य राकेश झा बताते हैं, घर में किसी की मौत हो जाने जाने के बाद हिंदू धर्म में 13 दिन का सूतक माना जाता है। घर में किसी नवजात का जन्म होने पर भी सूतक होता है। हालांकि, इसको अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता हैं। यूपी, बिहार, झारखंड, दिल्ली आदि इलाकों में इसे सूतक कहते हैं। वहीं, मध्य प्रदेश और राजस्थान के इलाकों में इसको पातक कहते हैं। ग्रहण काल को भी सूतक माना जाता है। सूतक को शास्त्रीय भाषा में अशौच काल भी कहा जाता है। आचार्य राकेश बताते हैं सूतक के दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है। ज्योतिष कर्मकांड से जुड़े पंडित नरेंद्र उपाध्याय बताते है कि घर किसी की मौत या जन्म होने पर पूरे परिवार पर सूतक लग जाता है। कहा जाता है कि परिवार ‘छुतके’ से गुजर रहा है। कहने का मतलब वो अशुद्ध होते हैं। इस दौरान घर पर कोई धार्मिक कार्य करना या परिवार के किसी भी शख्स को शुभ कामों में भाग लेना वर्जित माना जाता है। सवाल- 3: कब से सूतक लग जाता है? जवाब: कर्मकांड के जानकारों के मुताबिक, यह परिवार के सभी सदस्यों, खानदान और कभी-कभी गोत्र-कुल के लोगों पर भी लागू हो सकता है। जिस दिन दाह-संस्कार होता है, उस दिन से सूतक की गणना होती है। जिस दिन व्यक्ति की मौत होती है, उस दिन से इसको नहीं जोड़ा जाता। अगर किसी के घर का सदस्य बाहर हो, तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है, उस दिन से उस पर सूतक लगता है। अगर किसी को 12वें दिन सूचना मिलती है, तो सिर्फ स्नान मात्र से शुद्धि हो जाती है। सवाल- 4: क्या सूतक के दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है? जवाब: आचार्य राकेश झा बताते हैं- सूतक के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि, ये समय धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अशुद्ध माना जाता है। सूतक काल चाहे जन्म के बाद हो या मौत के बाद, एक नेगेटिव एनर्जी का टाइम होता है। जिसमें किसी भी मांगलिक या शुभ कार्यों से बचना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूतक अवधि 12 या 13 दिन की मानी जाती है। इस अवधि तक घर में सूतक के नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। कितने दिनों का होता है जन्म सूतक? कितने दिन का होता है मृत्यु सूतक? ग्रहण के दौरान लगने वाला सूतक क्या है? सवाल- 5: क्या सूतक में मंदिर में प्रवेश या पूजा-पाठ नहीं करना चाहिए? जवाब: पंडित नरेंद्र उपाध्याय और आचार्य राकेश बताते हैं- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूतक के दौरान छूत लग जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है। हर चीज अशुद्ध होती है, इस वजह से मंदिर जाना या घर के मंदिर में पूजा करने की भी मनाही होती है। मान्यता है कि इस दौरान पितृ लोग इर्द-गिर्द रहते हैं। शास्त्रों के अनुसार, ब्राह्मण को 10 दिन का क्षत्रिय को 12 दिन का और वैश्य को 15 दिन और शूद्र को एक महीने का सूतक लगता है। विशेष परिस्थितियों में चारों वर्णों की शुद्धि 10 दिनों में ही होती है। इसे शारीरिक शुद्धि कहते हैं। इसके बाद किसी तरह का दोष नहीं रहता। त्रयोदश संस्कार (तेरहवीं) के बाद पूर्णशुद्धि हो जाती है। इसके बाद ही देवताओं की पूजा-आराधना की जाती है। सूतक के दौरान बाल कटवाने, नाखून काटने और कहीं-कहीं पर हल्दी और खाने में तेल के इस्तेमाल की मनाही होती है। सवाल- 6: वैष्णव संत कौन होते हैं? जवाब: ये संत वैष्णव धर्म के अनुयायी होते है। भगवान विष्णु और उनके अवतारों जैसे राम-कृष्ण के भक्त होते हैं। ये भगवान विष्णु को सर्वोच्च ईश्वर मानते हैं। अपने जीवन को भगवान विष्णु की भक्ति के लिए समर्पित करते हैं। इसमें भजन, कीर्तन, कथा वाचन और अन्य धार्मिक क्रियाएं शामिल हैं। आमतौर पर ये शाकाहारी होते हैं, सत्य और अहिंसा का पालन करते हैं। सवाल-7: क्या वैष्णव संतों के लिए सूतक नहीं लागू होता? जवाब: आचार्य राकेश झा के अनुसार, संन्यासी-वैष्णव संतों और जिनका गृहस्थ आश्रम से कुछ लेना-देना नहीं, उन पर ये नियम नहीं लागू होता। क्योंकि जब आप संन्यासी बनते हैं, तब पिंडदान कर दिया जाता है। इससे आपका गृहस्थ जीवन से कोई ताल्लुक नहीं रहता। इस वजह से ये लोग किसी की मौत या जन्म के बाद शुभ काम कर सकते हैं। लेकिन अगर आप गृहस्थ जीवन में हैं, चाहे आप कथा वाचक हों या फिर एस्ट्रोलॉजर, तो आपको सूतक के नियमों का पालन करना चाहिए। आचार्य राकेश झा का कहना है कि मोरारी बापू बहुत अच्छे और महान संत हैं। लेकिन, उनका इस तरह से कथा करना सही नहीं है। वो गृहस्थ जीवन में हैं, उनको सूतक के नियमों का पालन करना चाहिए। सवाल-8: सूतक को लेकर धार्मिक मान्यता क्या है? जवाब: पंडित नरेंद्र उपाध्याय का कहना है- हिंदू मान्यता के अनुसार जन्म और मृत्यु जीवन के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं। ये आत्मा से जुड़े हैं। सूतक के दौरान परिवार को आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से अशुद्ध माना जाता है। धार्मिक कार्यों पर प्रतिबंध लग जाता है। इस दौरान मंदिर जाना, पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन या अन्य धार्मिक अनुष्ठान करना वर्जित होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान की गई पूजा का फल भी नहीं मिलता। सूतक अवधि समाप्त होने के बाद परिवार को शुद्धिकरण की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। जैसे स्नान, गंगा जल का छिड़काव या विशेष अनुष्ठान। मृत्यु सूतक में यह प्रक्रिया अंतिम संस्कार और श्राद्ध के बाद पूरी होती है। शुद्धिकरण की प्रक्रिया के बाद ही परिवार को शुद्ध माना जाता है। तभी शुभ या मांगलिक कार्यों की अनुमति मिलती है, शुभ कार्यों का फल मिलता है। सवाल- 9: धार्मिक ग्रंथों में सूतक का कहां-कहां जिक्र है? जवाब: हिंदू धर्म के पुराणों और शास्त्रों में मौत के बाद सूतक का उल्लेख मिलता है। गरुड़ पुराण, विष्णु पुराण में इसका जिक्र है, लेकिन अग्नि पुराण में इसकी विस्तृत चर्चा की गई है। अग्नि पुराण में सूतक का विस्तृत उल्लेख
अग्नि पुराण हिंदू धर्म के 18 प्रमुख पुराणों में से एक है। इसमें सूतक और उसके नियमों की स्पष्ट चर्चा की गई है। अग्नि पुराण के अध्याय 155 और 156 में मौत के बाद अशौच (सूतक) की अवधि का वर्णन है। यह अमूमन 10 से 13 दिनों तक माना जाता है। यह मृतक के संबंध और परिवार के वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) पर निर्भर करता है। अग्नि पुराण में सूतक समाप्त होने के बाद शुद्धिकरण के लिए स्नान, गंगा जल का उपयोग और श्राद्ध कर्म का महत्व बताया गया है। इसके 13वें दिन पर श्राद्ध और पिंडदान के बाद परिवार शुद्ध माना जाता है। सवाल- 10: सूतक को लेकर क्या कहता है साइंस? जवाब: सूतक को लेकर एक्सपर्ट बताते हैं कि पुराने समय में मेडिकल सुविधाएं सीमित थीं। मौत के बाद शरीर से बैक्टीरिया फैलने का खतरा रहता था। सही मायनों में इसे साफ-सफाई से जोड़कर देखना चाहिए। सूतक की अवधि में परिवार के लोगों को सामाजिक संपर्क और धार्मिक स्थलों पर जाने से रोकना संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने का तरीका हो सकता है। ——————– ये खबर भी पढ़ें… डॉल्फिन-कछुओं की लगातार हो रहीं मौतें:यूपी में जहां सबसे ज्यादा संख्या वहां नहीं दिखती डॉल्फिन, पार्ट-2 बुलंदशहर जिले का गांव राजघाट। गंगा का ये इलाका डॉल्फिन, कछुओं और मछलियों की मौजूदगी के लिए मशहूर है। अकेले इसी जगह गंगा में 20 से ज्यादा डॉल्फिन हैं। लेकिन, हमें निराश होना पड़ा। दो घंटे मोटरबोट में घूमने के बाद भी हमें डॉल्फिन की एक झलक भी नहीं दिखी। ‘दैनिक भास्कर’ ने अपनी गंगा यात्रा के दूसरे दिन मेरठ के हस्तिनापुर से संभल तक करीब 175 किलोमीटर का सफर तय किया। यात्रा के इस पड़ाव में हमने देखा गंगा में डॉल्फिन, कछुओं की मौजूदगी कम है। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
मोरारी बापू के धार्मिक अनुष्ठान पर क्यों उठे सवाल:क्या होता है सूतक जिसमें पूजा-पाठ की है मनाही, पुराणों में भी जिक्र
