अमेठी में स्मृति ईरानी क्यों हार गईं:लोग बोले- 2019 में ‘दीदी’ बनकर जीत गईं; फिर प्रेशर पॉलिटिक्स करने लगीं, हारना तो था ही

अमेठी में स्मृति ईरानी क्यों हार गईं:लोग बोले- 2019 में ‘दीदी’ बनकर जीत गईं; फिर प्रेशर पॉलिटिक्स करने लगीं, हारना तो था ही

हाई प्रोफाइल लोकसभा सीट अमेठी फिर सुर्खियों में है। 2019 में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को जितने वोट से हराया, 2024 में उसके 3 गुना मार्जिन से खुद हार गईं। स्मृति जिन केएल शर्मा को कांग्रेस का प्रॉक्सी उम्मीदवार बता रही थीं, उन्होंने चुनाव जीतकर पूरे देश को चौंका दिया। पब्लिक की मानें तो 2019 का चुनाव स्मृति ईरानी ‘दीदी’ बनकर जीत गई थीं। मगर 5 साल में कई दृश्य बदल गए। जिन पुराने भाजपाइयों ने उन्हें चुनाव जिताया था। स्मृति उन्हीं से किनारा कर बैठीं। चुनाव में बड़े चेहरे तो अमेठी पहुंचे, मगर लोकल कार्यकर्ता डोर टु डोर प्रचार करने गए ही नहीं। इसकी वजह स्मृति से नाराजगी थी। बड़ी हार के कारणों को इस रिपोर्ट में पढ़िए… हम अमेठी के गौरीगंज पहुंचे तो लगभग 3 बज चुके थे। सीधे रेलवे स्टेशन पहुंचे, जहां होटल पर कुछ लोगों का जमावड़ा था। लोग चाय की चुस्कियों के साथ लोकसभा चुनाव की चर्चा कर रहे थे। हमारी मुलाकात महेश सिंह से हुई। वह अमेठी के बड़े लकड़ी कारोबारी हैं। अमेठी में स्मृति ईरानी को चुनाव लड़वाने वालों में शामिल रहे हैं।कहते हैं- प्रेशर पॉलिटिक्स अमेठी बर्दाश्त नहीं करती है। यहां प्रेम से आइए राजनीति करिए। इतने दिन गांधी परिवार के लोग राजनीति करते रहे। स्मृति ईरानी भी 2019 में आईं तो दीदी बनकर जीती थीं, दबाव में नहीं जीती थीं। इसलिए दीदी बनकर रहिए दबाव क्यों बनाती हैं? भाजपा कार्यकर्ता स्मृति के लिए फील्ड में नहीं निकले यहीं हमारी मुलाकात ओपी सिंह से हुई। ओपी सिंह खाटी भाजपाई हैं, लेकिन स्मृति के साथ उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा। वह कहते हैं- 2014 में जब स्मृति ईरानी अमेठी में चुनाव लड़ने आईं, तब हमने अपने घर में रहने के लिए जगह दी, लेकिन वह कार्यकर्ताओं से कहती हैं कि कोई हमें पूछने वाला नहीं था। हम सीमेंट के गोदाम में रहते थे। इस तरह की बात से हमारा मन खट्‌टा हो गया। वह कहते हैं- हम अकेले नहीं हैं, ऐसे कई कार्यकर्ता हैं। जिनसे दीदी की दूरियां बढ़ती चली गईं। पिछले 2 साल से जिले को बाहरी नेताओं से चलवाया जा रहा था। पता नहीं क्यों…वह हम लोगों पर भरोसा नहीं कर पा रही थीं। लोकल कार्यकर्ताओं को इज्जत नहीं मिली
स्टेशन से थोड़ी दूरी पर जय शंकर मिश्रा की जनरल स्टोर की दुकान है। जय शंकर कहते हैं- इस बार बाहर से आए नेताओं पर स्मृति ने फोकस किया। इससे लोकल कार्यकर्ता नाराज थे। इन सबकी वजह से ही जो खाटी भाजपाई थे, वे भी छिटक गए। हम भी पुराने भाजपा के वोटर रहे हैं। अबकी बार हमने कांग्रेस को वोट किया। इसके अलावा भी कई कारण हैं। फ्री राशन देने से कोई फायदा नहीं होने वाला है। अगर एक फैक्ट्री लगाकर लोगों को नौकरी दी जाए तो उससे सभी का फायदा होगा।
लोग बोले- जीत के ओवर कॉन्फिडेंस में हार गईं स्मृति
रेलवे स्टेशन पर ही हमारी मुलाकात किट्‌टू चायवाला से हुई। किट्‌टू पहले दिल्ली में एक बड़े होटल में शेफ थे, लेकिन लॉकडाउन में नौकरी चली गई। इसलिए अमेठी वापस आए और डेढ़-दो साल पहले रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान चलाने लगे। वह कहते हैं- मेरी दुकान पर शहर का लगभग हर युवा चाय पीने आता है। उनकी बातों को सुनता हूं तो लगता है कि उनके अंदर बेरोजगारी को लेकर आक्रोश है। अमेठी के राजा का सम्मान नहीं किया तो जीत कैसे मिलती?
गौरीगंज कस्बे के नगरवा मोहल्ले में हमारी मुलाकात आशीष तिवारी और विवेक त्रिपाठी से हुई। दोनों ही अमेठी में भाजपा की हार को चौंकाने वाला नहीं बताते। कहते हैं- डॉ संजय सिंह अमेठी के राजा हैं। यहां की जनता के बीच उनका सम्मान है, लेकिन 2022 में जब वह भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ने उतरे तो उन्हें हरवा दिया गया। तब यह नहीं सोचा गया कि आपका भी वक्त आएगा। घमंड इतना था कि राजा संजय सिंह का समर्थन मांगना भी उचित नहीं समझा गया। छुट्‌टा पशु, बेरोजगारी-महंगाई ने लगाई हार पर आखिरी मुहर
चुनाव से पहले स्मृति ईरानी ने गौरीगंज के मेदनमवई में अपना घर बनाया। जनता का दिल जीतने के लिए खुद को अमेठी का निवासी बताया। उसी मेदनमवई इलाके में हमारी मुलाकात महादेव मौर्या से हुई। महादेव मौर्या ने यह नहीं बताया कि किसे वोट किया? लेकिन वह कहते हैं- हम किसान लोग हैं, छुट्‌टा पशुओं की वजह से हमारे पास खाने को नहीं बचता है। हमारा बेटा बी फार्मा किया हुआ है, लेकिन उसे नौकरी नहीं मिल पा रही है। इन्हीं सबसे नाराजगी थी। कोई सुनवाई नहीं होती है। अब पार्टी कार्यालयों का हाल… कांग्रेस कार्यालय: जिला प्रवक्ता बोले- कांग्रेस का चुनाव जनता ने लड़ा
गौरीगंज कस्बे में घुसते ही थोड़ी दूरी पर कांग्रेस का दफ्तर बना हुआ है। बड़े से कैंपस में घुसते ही सबसे पहले राहुल गांधी का कटआउट नजर आया। चुनाव बाद यहां चहल-पहल बढ़ गई है। यहां हमारी मुलाकात पार्टी के जिला प्रवक्ता अनिल सिंह से हुई। वह बताते हैं- ज्यादातर पदाधिकारी दिल्ली चले गए हैं। कुछ लोग बचे हैं। जहां पहले सन्नाटा पसरा रहता था, अब वहीं थोड़ी चहल-पहल है। लोग आने-जाने लगे हैं। वहीं हमारी मुलाकात गौरीगंज ब्लॉक के कांग्रेस के नगर अध्यक्ष अवनीश मिश्रा से हुई। वह कहते हैं- जो कांग्रेसी पिछली बार भाजपा में चले गए थे। अपनी उपेक्षा से नाराज थे। वे खुद सामने नहीं आए, लेकिन उन्होंने कांग्रेस को वोट करने के साथ ही और भी लोगों से वोट दिलवाए। स्मृति ईरानी थीं तो लेडीज लेकिन इतना आतंक हो गया था, जिसका जवाब नहीं। उनकी मीटिंग में कोई किसी काम के पूरा न होने का सवाल उठाता तो उसके ऊपर मुकदमा करवा देतीं। भरी सभा में कहती थीं कि कांग्रेस का गुंडा है, जिससे लोग परेशान थे। उसी वजह से वोट देकर कांग्रेस को जिताया गया। भाजपा कार्यालय: स्मृति-मोदी के कटआउट, लेकिन सन्नाटा पसरा दिखा
कांग्रेस कार्यालय से लगभग 5 किमी दूरी पर भाजपा कार्यालय है। जब हम वहां पहुंचे तो पूरे कार्यालय पर स्मृति ईरानी और मोदी के कटआउट लगे मिले। लेकिन कार्यालय के अंदर सन्नाटा दिखा। अंदर जाने पर मीटिंग हॉल में दो से तीन लोग मिले, जो टीवी देख रहे थे। साथ ही साथ दिल्ली में सरकार बनने को लेकर जो उठा-पटक हो रही है, उस पर बहस कर रहे थे। बहरहाल, हमारी वहां मुलाकात भाजपा के किसान मोर्चा के पूर्व जिलाध्यक्ष सूर्य नारायण तिवारी से हुई। वह कहते हैं- जो भाजपा का कैडर वोट है, वह हमें मिला है। लेकिन हमसे जो चूक हुई वह दलित वोटों को लेकर हुई। हम लोगों को लग रहा था कि वे लाभार्थी हैं। ऐसे में वे कहीं नहीं जाएंगे। लेकिन आपने देखा होगा कि राहुल गांधी अपनी हर मीटिंग में लाल डायरी लेकर घूमते और कहते रहे कि संविधान खतरे में है। इससे दलित वोट लामबंद हो गया और उनकी तरफ चला गया। यहीं हमारी मुलाकात अरूण कुमार मिश्रा से हुई। कहते हैं- यह अमेठी की जनता की भूल है। वह पछताएंगे। वह ऐसी सांसद थीं, जो जनता के बीच रहती थीं। केएल शर्मा वही हैं, जब लोग उनके पास काम लेकर जाते तो उनके सामने ही उनकी चिट्ठी डस्टबिन में डाल देते थे। क्या स्मृति चुनाव लड़ने वापस आएंगी? इस पर सूर्य नारायण कहते हैं- बिल्कुल, हम सब विश्लेषण कर रहे हैं। संगठन को फिर से मजबूत करेंगे और अगला चुनाव दीदी ही लड़ेंगी और जीतेंगी। पब्लिक से बातचीत के बाद स्मृति ईरानी की हार के 3 कारण समझ में आए… कारण 1. बाहरी नेताओं के आने से कार्यकर्ता नाराज हुए
चुनाव से पहले स्मृति ईरानी ने टीम को मजबूत करने के लिए अमेठी से सपा विधायक गायत्री देवी की पत्नी महाराजी देवी को पार्टी में ले लिया। गौरीगंज से सपा विधायक राकेश सिंह भी पार्टी में आ गए। सबसे पहले महाराजी देवी के आने से डॉ संजय सिंह नाराज हुए तो उन्होंने पूरे चुनाव में चुप्पी साध ली। साथ ही जो भाजपाई अमेठी या गौरीगंज विधानसभा से भविष्य में चुनाव लड़ना चाहते थे, उन्हें लगा कि अब इन्हीं को पार्टी आगे बढ़ाएगी। ऐसे में उन लोगों ने भी दूरी बना ली। कारण 2. कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से बिगड़े हालात
पिछले एक डेढ़ साल से कार्यकर्ता स्मृति और उनकी टीम से नाराज चल रहे थे। जो भी कार्यकर्ता जमीनी हालात बताता तो उसे डांटकर भगा दिया जाता। कोई काम होने पर कई बार एप्लिकेशन दी जाती, लेकिन काम नहीं हो पाता था। कारण 3. नेगेटिव कैंपेनिंग का असर भी हुआ
2019 में स्मृति ईरानी सांसद तो बन गई लेकिन पूरे पांच साल वह राहुल गांधी को ही कोसने में लगी रहीं। जब राहुल ने सीट बदल दी तो जनता के सामने उन्हें भगोड़ा साबित करने में लग गईं। मतदान से पहले कांग्रेस एमएलसी दीपक सिंह पर मुकदमा करवाना भी अमेठी के लोगों को अखर गया। पॉलिटिकल एक्सपर्ट
अमेठी में भाजपा के हारने के फैक्टर क्या हैं?
इस सवाल को लेकर हम वरिष्ठ पत्रकार शीतला प्रसाद मिश्रा के पास पहुंचे। उन्होंने बताया- भाजपा ने संगठन स्तर पर होमवर्क नहीं किया था। वह उदाहरण देते हुए समझाते हैं, सरवांवा बूथ पर भाजपा को 2 वोट मिले। जबकि एक बूथ पर पन्ना प्रमुख से लेकर तमाम लोगों को भाजपा लगाती है। स्मृति ईरानी ने चुनाव से पहले जनसंवाद यात्रा भी निकाली। जहां वह अधिकारियों के साथ जाती थीं। मौके पर समस्याओं का निराकरण भी किया। लेकिन कुछ लोगों की समस्या का निराकरण नहीं हुआ होगा तो वे नाराज होंगे। भाजपा की परंपरागत सीट नहीं है अमेठी
अमेठी के पत्रकार चिंतामणि मिश्रा कहते हैं- अमेठी भाजपा की परंपरागत सीट नहीं है। इसके बावजूद अमेठी को जीतने के लिए अगर कहें कि कांग्रेस ने 5 साल से तैयारी की तो ऐसा नहीं है। चुनाव से 15 से 20 दिन पहले एक स्ट्रेटजी प्लान की गई। जिसमें राहुल को रायबरेली से अचानक कैंडिडेट बनाया गया। अमेठी से केएल शर्मा को उतारा गया। यहां स्मृति के खिलाफ प्रियंका गांधी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने एक नकारात्मक माहौल तैयार किया। जिससे चुनाव स्मृति के खिलाफ चला गया। किशोरी लाल सिर्फ एक फेस थे। यहां से राहुल या प्रियंका गांधी के अलावा कांग्रेस का कोई भी फेस चुनाव लड़ता तो जीत जाता। क्योंकि जनता का जुड़ाव गांधी परिवार से है। वह नेगेटिव कैंपेन से नाराज थी। हाई प्रोफाइल लोकसभा सीट अमेठी फिर सुर्खियों में है। 2019 में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को जितने वोट से हराया, 2024 में उसके 3 गुना मार्जिन से खुद हार गईं। स्मृति जिन केएल शर्मा को कांग्रेस का प्रॉक्सी उम्मीदवार बता रही थीं, उन्होंने चुनाव जीतकर पूरे देश को चौंका दिया। पब्लिक की मानें तो 2019 का चुनाव स्मृति ईरानी ‘दीदी’ बनकर जीत गई थीं। मगर 5 साल में कई दृश्य बदल गए। जिन पुराने भाजपाइयों ने उन्हें चुनाव जिताया था। स्मृति उन्हीं से किनारा कर बैठीं। चुनाव में बड़े चेहरे तो अमेठी पहुंचे, मगर लोकल कार्यकर्ता डोर टु डोर प्रचार करने गए ही नहीं। इसकी वजह स्मृति से नाराजगी थी। बड़ी हार के कारणों को इस रिपोर्ट में पढ़िए… हम अमेठी के गौरीगंज पहुंचे तो लगभग 3 बज चुके थे। सीधे रेलवे स्टेशन पहुंचे, जहां होटल पर कुछ लोगों का जमावड़ा था। लोग चाय की चुस्कियों के साथ लोकसभा चुनाव की चर्चा कर रहे थे। हमारी मुलाकात महेश सिंह से हुई। वह अमेठी के बड़े लकड़ी कारोबारी हैं। अमेठी में स्मृति ईरानी को चुनाव लड़वाने वालों में शामिल रहे हैं।कहते हैं- प्रेशर पॉलिटिक्स अमेठी बर्दाश्त नहीं करती है। यहां प्रेम से आइए राजनीति करिए। इतने दिन गांधी परिवार के लोग राजनीति करते रहे। स्मृति ईरानी भी 2019 में आईं तो दीदी बनकर जीती थीं, दबाव में नहीं जीती थीं। इसलिए दीदी बनकर रहिए दबाव क्यों बनाती हैं? भाजपा कार्यकर्ता स्मृति के लिए फील्ड में नहीं निकले यहीं हमारी मुलाकात ओपी सिंह से हुई। ओपी सिंह खाटी भाजपाई हैं, लेकिन स्मृति के साथ उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा। वह कहते हैं- 2014 में जब स्मृति ईरानी अमेठी में चुनाव लड़ने आईं, तब हमने अपने घर में रहने के लिए जगह दी, लेकिन वह कार्यकर्ताओं से कहती हैं कि कोई हमें पूछने वाला नहीं था। हम सीमेंट के गोदाम में रहते थे। इस तरह की बात से हमारा मन खट्‌टा हो गया। वह कहते हैं- हम अकेले नहीं हैं, ऐसे कई कार्यकर्ता हैं। जिनसे दीदी की दूरियां बढ़ती चली गईं। पिछले 2 साल से जिले को बाहरी नेताओं से चलवाया जा रहा था। पता नहीं क्यों…वह हम लोगों पर भरोसा नहीं कर पा रही थीं। लोकल कार्यकर्ताओं को इज्जत नहीं मिली
स्टेशन से थोड़ी दूरी पर जय शंकर मिश्रा की जनरल स्टोर की दुकान है। जय शंकर कहते हैं- इस बार बाहर से आए नेताओं पर स्मृति ने फोकस किया। इससे लोकल कार्यकर्ता नाराज थे। इन सबकी वजह से ही जो खाटी भाजपाई थे, वे भी छिटक गए। हम भी पुराने भाजपा के वोटर रहे हैं। अबकी बार हमने कांग्रेस को वोट किया। इसके अलावा भी कई कारण हैं। फ्री राशन देने से कोई फायदा नहीं होने वाला है। अगर एक फैक्ट्री लगाकर लोगों को नौकरी दी जाए तो उससे सभी का फायदा होगा।
लोग बोले- जीत के ओवर कॉन्फिडेंस में हार गईं स्मृति
रेलवे स्टेशन पर ही हमारी मुलाकात किट्‌टू चायवाला से हुई। किट्‌टू पहले दिल्ली में एक बड़े होटल में शेफ थे, लेकिन लॉकडाउन में नौकरी चली गई। इसलिए अमेठी वापस आए और डेढ़-दो साल पहले रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान चलाने लगे। वह कहते हैं- मेरी दुकान पर शहर का लगभग हर युवा चाय पीने आता है। उनकी बातों को सुनता हूं तो लगता है कि उनके अंदर बेरोजगारी को लेकर आक्रोश है। अमेठी के राजा का सम्मान नहीं किया तो जीत कैसे मिलती?
गौरीगंज कस्बे के नगरवा मोहल्ले में हमारी मुलाकात आशीष तिवारी और विवेक त्रिपाठी से हुई। दोनों ही अमेठी में भाजपा की हार को चौंकाने वाला नहीं बताते। कहते हैं- डॉ संजय सिंह अमेठी के राजा हैं। यहां की जनता के बीच उनका सम्मान है, लेकिन 2022 में जब वह भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ने उतरे तो उन्हें हरवा दिया गया। तब यह नहीं सोचा गया कि आपका भी वक्त आएगा। घमंड इतना था कि राजा संजय सिंह का समर्थन मांगना भी उचित नहीं समझा गया। छुट्‌टा पशु, बेरोजगारी-महंगाई ने लगाई हार पर आखिरी मुहर
चुनाव से पहले स्मृति ईरानी ने गौरीगंज के मेदनमवई में अपना घर बनाया। जनता का दिल जीतने के लिए खुद को अमेठी का निवासी बताया। उसी मेदनमवई इलाके में हमारी मुलाकात महादेव मौर्या से हुई। महादेव मौर्या ने यह नहीं बताया कि किसे वोट किया? लेकिन वह कहते हैं- हम किसान लोग हैं, छुट्‌टा पशुओं की वजह से हमारे पास खाने को नहीं बचता है। हमारा बेटा बी फार्मा किया हुआ है, लेकिन उसे नौकरी नहीं मिल पा रही है। इन्हीं सबसे नाराजगी थी। कोई सुनवाई नहीं होती है। अब पार्टी कार्यालयों का हाल… कांग्रेस कार्यालय: जिला प्रवक्ता बोले- कांग्रेस का चुनाव जनता ने लड़ा
गौरीगंज कस्बे में घुसते ही थोड़ी दूरी पर कांग्रेस का दफ्तर बना हुआ है। बड़े से कैंपस में घुसते ही सबसे पहले राहुल गांधी का कटआउट नजर आया। चुनाव बाद यहां चहल-पहल बढ़ गई है। यहां हमारी मुलाकात पार्टी के जिला प्रवक्ता अनिल सिंह से हुई। वह बताते हैं- ज्यादातर पदाधिकारी दिल्ली चले गए हैं। कुछ लोग बचे हैं। जहां पहले सन्नाटा पसरा रहता था, अब वहीं थोड़ी चहल-पहल है। लोग आने-जाने लगे हैं। वहीं हमारी मुलाकात गौरीगंज ब्लॉक के कांग्रेस के नगर अध्यक्ष अवनीश मिश्रा से हुई। वह कहते हैं- जो कांग्रेसी पिछली बार भाजपा में चले गए थे। अपनी उपेक्षा से नाराज थे। वे खुद सामने नहीं आए, लेकिन उन्होंने कांग्रेस को वोट करने के साथ ही और भी लोगों से वोट दिलवाए। स्मृति ईरानी थीं तो लेडीज लेकिन इतना आतंक हो गया था, जिसका जवाब नहीं। उनकी मीटिंग में कोई किसी काम के पूरा न होने का सवाल उठाता तो उसके ऊपर मुकदमा करवा देतीं। भरी सभा में कहती थीं कि कांग्रेस का गुंडा है, जिससे लोग परेशान थे। उसी वजह से वोट देकर कांग्रेस को जिताया गया। भाजपा कार्यालय: स्मृति-मोदी के कटआउट, लेकिन सन्नाटा पसरा दिखा
कांग्रेस कार्यालय से लगभग 5 किमी दूरी पर भाजपा कार्यालय है। जब हम वहां पहुंचे तो पूरे कार्यालय पर स्मृति ईरानी और मोदी के कटआउट लगे मिले। लेकिन कार्यालय के अंदर सन्नाटा दिखा। अंदर जाने पर मीटिंग हॉल में दो से तीन लोग मिले, जो टीवी देख रहे थे। साथ ही साथ दिल्ली में सरकार बनने को लेकर जो उठा-पटक हो रही है, उस पर बहस कर रहे थे। बहरहाल, हमारी वहां मुलाकात भाजपा के किसान मोर्चा के पूर्व जिलाध्यक्ष सूर्य नारायण तिवारी से हुई। वह कहते हैं- जो भाजपा का कैडर वोट है, वह हमें मिला है। लेकिन हमसे जो चूक हुई वह दलित वोटों को लेकर हुई। हम लोगों को लग रहा था कि वे लाभार्थी हैं। ऐसे में वे कहीं नहीं जाएंगे। लेकिन आपने देखा होगा कि राहुल गांधी अपनी हर मीटिंग में लाल डायरी लेकर घूमते और कहते रहे कि संविधान खतरे में है। इससे दलित वोट लामबंद हो गया और उनकी तरफ चला गया। यहीं हमारी मुलाकात अरूण कुमार मिश्रा से हुई। कहते हैं- यह अमेठी की जनता की भूल है। वह पछताएंगे। वह ऐसी सांसद थीं, जो जनता के बीच रहती थीं। केएल शर्मा वही हैं, जब लोग उनके पास काम लेकर जाते तो उनके सामने ही उनकी चिट्ठी डस्टबिन में डाल देते थे। क्या स्मृति चुनाव लड़ने वापस आएंगी? इस पर सूर्य नारायण कहते हैं- बिल्कुल, हम सब विश्लेषण कर रहे हैं। संगठन को फिर से मजबूत करेंगे और अगला चुनाव दीदी ही लड़ेंगी और जीतेंगी। पब्लिक से बातचीत के बाद स्मृति ईरानी की हार के 3 कारण समझ में आए… कारण 1. बाहरी नेताओं के आने से कार्यकर्ता नाराज हुए
चुनाव से पहले स्मृति ईरानी ने टीम को मजबूत करने के लिए अमेठी से सपा विधायक गायत्री देवी की पत्नी महाराजी देवी को पार्टी में ले लिया। गौरीगंज से सपा विधायक राकेश सिंह भी पार्टी में आ गए। सबसे पहले महाराजी देवी के आने से डॉ संजय सिंह नाराज हुए तो उन्होंने पूरे चुनाव में चुप्पी साध ली। साथ ही जो भाजपाई अमेठी या गौरीगंज विधानसभा से भविष्य में चुनाव लड़ना चाहते थे, उन्हें लगा कि अब इन्हीं को पार्टी आगे बढ़ाएगी। ऐसे में उन लोगों ने भी दूरी बना ली। कारण 2. कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से बिगड़े हालात
पिछले एक डेढ़ साल से कार्यकर्ता स्मृति और उनकी टीम से नाराज चल रहे थे। जो भी कार्यकर्ता जमीनी हालात बताता तो उसे डांटकर भगा दिया जाता। कोई काम होने पर कई बार एप्लिकेशन दी जाती, लेकिन काम नहीं हो पाता था। कारण 3. नेगेटिव कैंपेनिंग का असर भी हुआ
2019 में स्मृति ईरानी सांसद तो बन गई लेकिन पूरे पांच साल वह राहुल गांधी को ही कोसने में लगी रहीं। जब राहुल ने सीट बदल दी तो जनता के सामने उन्हें भगोड़ा साबित करने में लग गईं। मतदान से पहले कांग्रेस एमएलसी दीपक सिंह पर मुकदमा करवाना भी अमेठी के लोगों को अखर गया। पॉलिटिकल एक्सपर्ट
अमेठी में भाजपा के हारने के फैक्टर क्या हैं?
इस सवाल को लेकर हम वरिष्ठ पत्रकार शीतला प्रसाद मिश्रा के पास पहुंचे। उन्होंने बताया- भाजपा ने संगठन स्तर पर होमवर्क नहीं किया था। वह उदाहरण देते हुए समझाते हैं, सरवांवा बूथ पर भाजपा को 2 वोट मिले। जबकि एक बूथ पर पन्ना प्रमुख से लेकर तमाम लोगों को भाजपा लगाती है। स्मृति ईरानी ने चुनाव से पहले जनसंवाद यात्रा भी निकाली। जहां वह अधिकारियों के साथ जाती थीं। मौके पर समस्याओं का निराकरण भी किया। लेकिन कुछ लोगों की समस्या का निराकरण नहीं हुआ होगा तो वे नाराज होंगे। भाजपा की परंपरागत सीट नहीं है अमेठी
अमेठी के पत्रकार चिंतामणि मिश्रा कहते हैं- अमेठी भाजपा की परंपरागत सीट नहीं है। इसके बावजूद अमेठी को जीतने के लिए अगर कहें कि कांग्रेस ने 5 साल से तैयारी की तो ऐसा नहीं है। चुनाव से 15 से 20 दिन पहले एक स्ट्रेटजी प्लान की गई। जिसमें राहुल को रायबरेली से अचानक कैंडिडेट बनाया गया। अमेठी से केएल शर्मा को उतारा गया। यहां स्मृति के खिलाफ प्रियंका गांधी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने एक नकारात्मक माहौल तैयार किया। जिससे चुनाव स्मृति के खिलाफ चला गया। किशोरी लाल सिर्फ एक फेस थे। यहां से राहुल या प्रियंका गांधी के अलावा कांग्रेस का कोई भी फेस चुनाव लड़ता तो जीत जाता। क्योंकि जनता का जुड़ाव गांधी परिवार से है। वह नेगेटिव कैंपेन से नाराज थी।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर