हरियाणा की 10 सीटों पर कहां-कौन मजबूत?:करनाल में क्या खट्टर रचेंगे इतिहास; जिंदल-बब्बर टक्कर में फंसे, किसान के विरोध ने बिगाड़े समीकरण हरियाणा में चुनावी शोर थम चुका है। बीते कल यानी 25 मई को 10 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हुई। अब सभी को 4 जून का इंतजार, क्योंकि इस दिन रिजल्ट आने हैं। इस बार के चुनाव में 5.5% कम वोटिंग के साथ ही 65% ही वोटिंग हुई है। पिछले 2 चुनाव में जिस तरह एकतरफा हवा बह रही थी, वैसा इस बार नहीं दिखा। वोटिंग के बाद 10 सीटों में से 7 सीटों पर कड़ा मुकाबला कड़ा दिख रहा है। कुरुक्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार नवीन जिंदल कांटे की टक्कर में फंसे हैं। इस चुनाव में किसान आंदोलन के कारण समीकरण बिगड़ा है। 2019 में भाजपा ने सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 1 सीट रोहतक को छोड़ दें तो अन्य सीटों पर भाजपा कैंडिडेट्स ने बड़े मार्जिन से जीत हासिल की थी। रोहतक पर बीजेपी की जीत का मार्जिन सिर्फ 7500 वोटों का था। हालांकि इस बार ऐसी स्थिति नहीं लग रही है। 8 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला
हरियाणा का यह पहला ऐसा चुनाव होगा, जिसमें 2 सीटों को छोड़कर अन्य 8 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला दिख रहा। कुरुक्षेत्र सीट पर भाजपा और कांग्रेस के अलावा INLD के बीच मुकाबला माना जा रहा है। वहीं हिसार सीट पर भाजपा, कांग्रेस के अलावा INLD और जजपा के कैंडिडेट ने मुकाबले को रोचक किया है। इस सीट पर एक ही परिवार के तीन सदस्य आमने-सामने हैं। भाजपा कैंडिडेट्स रणजीत सिंह चौटाला ने रिश्ते में लगने वालीं बहू जजपा की नैना चौटाला और INLD की सुनैना चौटाला के खिलाफ वोट मांगे। किसान आंदोलन ने बिगाड़ा समीकरण
कुछ सीटें ऐसी रही, जहां के वोट प्रतिशत पर किसान आंदोलन का असर दिखा। इनमें भिवानी-महेंद्रगढ़ 65.3% और हिसार में 64.07% मतदान को माना जा रहा है। यहां पर शहरों में मतदान कम हुआ है और गांवों में अधिक लोगों ने मत का प्रयोग किया है। वहीं, रोहतक में 64.6% और सोनीपत में 62.3% तक ही पहुंच पाया, जबकि यहां अधिक मतदान की संभावनाएं थी। सबसे अहम बात यह है कि लोकसभा चुनावों से पहले खुफिया विभाग ने भी रिपोर्ट दी थी कि प्रदेश की 7 सीटों पर किसान आंदोलन का असर दिखेगा। मतदान प्रतिशत भी कुछ इसी तरह का संकेत दे रहा है। अब पढ़िए किस सीट पर भाजपा-कांग्रेस के लिए क्या समीकरण बन रहे हैं… अंबाला: रूरल एरिया में बढ़ी वोटिंग ने भाजपा की बढ़ाई चिंता
यहां के ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ी वोटिंग ने भाजपा की चिंताएं बढ़ा दी हैं। साढ़ौरा, मुलाना, जगाधरी व नारायणगढ़ में वोटिंग प्रतिशत 70 के पार हुआ है। इनमें जगाधरी में सिर्फ BJP विधायक हैं, अन्य दो विधानसभाओं में कांग्रेस के MLA हैं। इसके साथ ही भाजपा के लिए चिंता की बात यह भी है कि पंजाब से सटे ग्रामीण हलकों में भी वोटिंग प्रतिशत शहरों के मुकाबले ज्यादा रहा है। किसानों के लिहाज से अंबाला सीट पहले ही सेंसिटिव रही है। इस बार चुनाव प्रचार के दौरान कई बार भाजपा कैंडिडेट के साथ ही उनकी पार्टी के बड़े चेहरों को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा। अंबाला में 67% वोटिंग हुई है। 2019 के मुकाबले यहां 4.19% की गिरावट आई है। कुरुक्षेत्र: कड़े मुकाबले में फंसे नवीन जिंदल
कुरुक्षेत्र सीट पर कड़े मुकाबले में भाजपा कैंडिडेट नवीन जिंदल फंस गए हैं। इस सीट पर 66.20% वोटिंग हुई है। यह 2019 के मुकाबले 8.08% कम है। जिंदल के खिलाफ I.N.D.I.A गठबंधन ने AAP के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ सुशील गुप्ता का मैदान में उतारा। गुप्ता को AAP के साथ ही कांग्रेस के बड़े नेताओं पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी का साथ मिला। इसके अलावा इनेलो के अभय सिंह चौटाला और उनके समर्थन में किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने मुकाबले को और रोचक बनाया। लाडवा, शाहाबाद और रादौर में वोटिंग का प्रतिशत भी अन्य के मुकाबले ज्यादा रहा। यहां सभी कांग्रेस के विधायक हैं। हिसार: इस बार 8% कम मतदान हुआ
हिसार सीट पर इस बार शुरू से मुकाबला आमने-सामने का था, लेकिन जैसे जैसे वोटिंग की डेट नजदीक आते गई, कांग्रेस के जेपी अलग थलग पड़ गए। उनके प्रचार में किसी बड़े नेता का साथ नहीं मिल पाया। इसके साथ ही इंडियन नेशनल लोकदल (INLD), जननायक जनता पार्टी (JJP) जितनी वोट हासिल करेंगी, इससे कांग्रेस को नुकसान पहुंचेगा। हालांकि चुनाव प्रचार के आखिरी दिन INLD उम्मीदवार सुनैना चौटाला की भाजपा नेता कुलदीप बिश्नोई के आवास पर मुलाकात ने समीकरण में बदलाव कर दिए। इस बार कम मतदान हुआ है। सियासी जानकारों का कहना है कि इस सीट का परिणाम सीधे तौर पर नारनौंद, उचाना, उकलाना के मतदाताओं पर निर्भर है। यहां इस बार करीब 64 प्रतिशत मतदान हुआ है। 2019 में 72.43% मतदान हुआ था। करनाल: क्या इतिहास रचेंगे मनोहर लाल खट्टर
इस बार सबकी नजर करनाल पर है। इसकी वजह यह भी है क्योंकि यहां से 10 साल मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल खट्टर को भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा है। खट्टर ने 2014 में करनाल से विधानसभा चुनाव लड़ा और पहली बार में ही जीत दर्ज की। इसके बाद फिर 2019 में वह जीतकर दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उनके बढ़ते कद को देखते हुए इस बार उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाकर लोकसभा का टिकट दिया। यदि वह यहां से जीतते हैं तो निश्चित तौर पर इतिहास रचेंगे। हालांकि यहां पर 2019 के मुकाबले मतदान प्रतिशत में 5.14% की गिरावट आई। इस चुनाव में यहां 63.20% हुआ है। सोनीपत: यहां जींद की 3 विधानसभाएं होंगी निर्णायक
सोनीपत में मुकाबला रोचक माना जा रहा है। इसकी दो बड़ी वजह हैं, एक यह कि यह पहली बार है कि किसी बड़े राजनीतिक दल ने जींद जिले से उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने यहां से पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी सतपाल ब्रह्मचारी को टिकट दिया है। यह जींद से ही आते हैं। वहीं भाजपा ने विधायक मोहन लाल बड़ौली को उम्मीदवार बनाया। इस बार यहां 62.20% वोटिंग हुई है। 2019 के मुकाबले यह 8.82% कम है। भाजपा के लिए यहां चिंता की बात यह है कि यहां के अधिकांश शहरी क्षेत्रों में गांवों के मुकाबले कम वोटिंग हुई है। यहां जींद, जुलाना और सफीदो विधानसभा निर्णायक भूमिका निभाएंगी। सिरसा: किसान आंदोलन बिगाड़ेगा समीकरण
हॉट सीटों में सिरसा का भी नाम रहा। पिछली बार की तरह इस बार भी सिरसा में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई। यहां 69% वोटिंग हुई। हालांकि 2019 के मुकाबले 6.98% की गिरावट देखी गई। सियासी जानकारों का कहना है कि सिरसा ही एक ऐसी सीट रही, जहां सबसे ज्यादा असर किसान आंदोलन का दिखाई दिया। यही वजह रही यहां के शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक वोटिंग हुई। वोटिंग के इस ट्रेंड को लेकर भाजपा की मुश्किलें बढ़ेंगी। भाजपा के आंतरिक सर्वे में भी सिरसा की रिपोर्ट अच्छी नहीं थी। भिवानी-महेंद्रगढ़ः भाजपा-कांग्रेस की टेंशन बढ़ाई
भिवानी-महेंद्रगढ़ में गिरे वोटिंग प्रतिशत को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों टेंशन में हैं। 2019 के मुकाबले यहां 5.27% कम वोटिंग हुई। कुल 65.20% वोटिंग हुई है। इस सीट पर भाजपा-कांग्रेस दोनों पार्टियों के बड़े चेहरे चुनाव प्रचार के लिए आए थे। भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी ने यहां प्रचार किया। इसके बावजूद यहां मतदान के प्रतिशत में गिरावट आई है। यहां के अहीर और जाट बाहुल्य हलकों में भी मतदान मिलाजुला दिखा। इसको लेकर कांग्रेस टेंशन में हैं। भाजपा इसलिए भी संतुष्ट है क्योंकि बीजेपी पहले भी जाट के वोट को लेकर बहुत ज्यादा आशान्वित नहीं थी। रोहतक: कोसली में इस बार कम मतदान
तीसरी सबसे हॉट सीट रोहतक है। इसकी वजह यहां से पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे राज्यसभा सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा हैं। 2019 में वह भाजपा के डॉ अरविंद शर्मा से कड़े मुकाबले के दौरान मात्र 7500 वोटों से हार गए थे। इस बार दीपेंद्र के साथ ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए यहां की हार जीत मायने रखती है। दीपेंद्र को पिछले चुनाव में कोसली से बड़ा झटका लगा था। इस बार 62.50% मतदान हुआ। 2019 के चुनाव के मुकाबले यहां करीब साढ़े 9% गिरावट आई है। 2019 में यहां 71.93% वोटिंग हुई थी। महम में इस बार अच्छी वोटिंग हुई हैं, यहां पर सबसे ज्यादा 69% वोटिंग हुई है। इसको लेकर भाजपा चिंतित हैं। रोहतक शहर में भी कम वोटिंग ने डॉ अरविंद शर्मा की चिंता बढ़ाई है। गुरुग्राम: टक्कर में फंसे राज बब्बर को मेवों का सहारा
गुरुग्राम सीट से कांग्रेस ने राज बब्बर को कैंडिडेट बनाया। इनके सामने भाजपा उम्मीदवार एवं केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत हैं। यहां भी 2019 के मुकाबले कम वोटिंग हुई है। इस बार यहां पर 60.60% वोट पड़े, जो 6.73% की गिरावट है। सबसे ज्यादा वोटिंग रेवाड़ी में 64.1% हुई है, इसको लेकर भाजपा खुश है। हालांकि मेव बाहुल्य इलाकों में वोटिंग प्रतिशत बढ़ने के कारण कांग्रेस काफी खुश है। पिछले चुनाव में भी मेव कांग्रेस के पक्ष में थे, इस बार भी राज बब्बर ने मेवों के सहारे ही इस सीट पर कड़ा मुकाबला बनाने की कोशिश की है। फरीदाबाद : भाजपा को जाटों ने मुश्किल में डाला
फरीदाबाद सीट 2019 में जीत के अंतर के मामले में देश में तीसरे नंबर पर थी। इस बार यहां मतदान कम हुआ है। कुल 59.70% वोटिंग हुई है, यह 2019 के मुकाबले 4.40% कम है। यहां के जाट बाहुल्य इलाकों में वोटिंग ज्यादा हुई है। जिनसे कांग्रेस ज्यादा उम्मीद लगा रही थी। हालांकि भाजपा इसको लेकर चिंतित है। इस बार जाट नेताओं ने भी एकजुट होकर भाजपा के विरोध में मतदान करने की अपील की थी।