साइलेंट डेथ के ये चंद मामले हैं..। कोविड महामारी के बाद से 2 साल में साइलेंट डेथ के मामले तेजी से बढ़े हैं। कुछ मामले बने तो कुछ गुमनाम रह गए। साइलेंट डेथ का सच जानने के लिए दैनिक भास्कर ने अब तक की सबसे बड़ी पड़ताल की। टीम उत्तर प्रदेश के 20 जिलों के ऐसे 25 परिवारों के पास पहुंची, जिनके परिवार में किसी न किसी की अचानक मौत हुई। हमने 7 सवालों के जवाब तलाशे। जिनकी अचानक मौत हुई, क्या वह बीमार थे? कोई मेडिकल हिस्ट्री थी? कोरोना वैक्सीन लगी थी? कौन सी वैक्सीन लगी थी? क्या उन्हें कोरोना हुआ था? किस ऐज ग्रुप के ज्यादा लोगों की अचानक मौतें हुईं? महिलाएं ज्यादा हैं या पुरुष? यूपी के 6 बड़े मेडिकल एक्सपर्ट्स से बात करके मौत के कारण भी तलाशने की कोशिश की। पड़ताल के नतीजे चौंकाने वाले निकले। 25 केसेस में से 24 स्वस्थ थे, यानी उन्हें कोई बीमारी नहीं थी। 50 फीसदी से ज्यादा की उम्र 20 से 40 साल के बीच थी। 75% ने कोवीशील्ड की डोज ली थी, 25% ने कोवैक्सिन लगवाई थी। चिंताजनक ये है कि साइलेंट डेथ का शिकार ज्यादातर पुरुष हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… सबसे पहले ये तीन केस स्टडी देखिए… केस-1
जौनपुर: ‘मां, मैं जा रहा हूं…’ कानों में आज भी गूंजते हैं ये 5 शब्द भदोही-मिर्जापुर मार्ग पर 10 किमी चलने पर उंचनी खुर्द गांव है। यहां रहने वाले राकेश यादव हॉस्पिटल के मालिक हैं। राकेश यादव बताते हैं- ईश्वर की कृपा से हमारे दोनों बेटे नवनीत और अजीत पढ़ने-लिखने में बहुत अच्छे थे। अजीत को 2018 में टीचर की सरकारी नौकरी मिल गई थी। घर से लगभग 5 किमी दूर स्कूल में वह पढ़ाता था। साथ में नेट की तैयारी भी कर रहा था। मैं भी खुश था। दोनों बेटे सेटल हो चुके थे। रोजाना की तरह बेटा अजीत सुबह तैयार होकर स्कूल चला गया। अचानक 9 बजे के आसपास स्कूल से फोन आया कि अजीत की तबीयत खराब है। हम भागकर स्कूल पहुंचे। वहां देखा कि वह बेसुध पड़ा है। डॉक्टर के पास ले गए, लेकिन उसे मृत बता दिया गया। मौत की वजह साइलेंट अटैक सामने आई। हमने पूछा- क्या अजीत की तबीयत खराब थी या कोई बीमारी थी? राकेश ने कहा- अजीत एकदम फिट था। उसने कई साल से कोई दवा नहीं खाई। न ही कोई बीमारी थी। इस बात की तस्दीक उनकी मां गीता और भाई नवनीत ने भी की। भाई नवनीत ने अजीत के वैक्सीनेशन का सर्टिफिकेट दिखाया। 25 जून 2021 को अजीत को कोवीशील्ड की पहली डोज और 17 सितंबर 2021 को दूसरी डोज लगी थी। अजीत के पिता कहते हैं- पहले कभी विश्वास तो नहीं किया, लेकिन अब लगता है कि वैक्सीन की वजह से हमारे बच्चे की जान गई। मां गीता देवी की आंखों में आंसू हैं। कहती हैं- पिछले दो साल से कान में रोजाना मेरे बेटे के आखिरी शब्द ‘मां, मैं जा रहा हूं’ गूंजते रहते हैं। हर पल उसकी ही बातें याद आती हैं। हम अजीत के स्कूल अवरैला पहुंचे। स्कूल के हेड-मास्टर जय सिंह ने कहा- अजीत क्लास में अटेंडेंस ले रहे थे। अचानक बच्चे चिल्लाने लगे। हम लोग पहुंचे तो उनकी गर्दन झूल चुकी थी। अजीत की मौत के बाद तकरीबन 6 महीने तक उस कमरे में कोई क्लास नहीं लगाई गई। केस-2
मऊ: लूडो खेला, खाना खाया.. 2 झटके आए और मौत
मऊ से लगभग 35 किमी दूर गोंठा के शिवम पाल की मौत हार्ट अटैक से 5 मई, 2024 को हो गई। वह परिवार का इकलौता बेटा था। पिता राजेंद्र पाल की दोहरीघाट में फोटो कॉपी की दुकान है। उन्होंने बताया- शिवम गोरखपुर में रहकर कंप्यूटर की क्लास करता था। उसकी मौत देवरिया में मौसी के घर हुई। वह एक दम अच्छा था, कोई बीमारी नहीं थी। कोरोना भी नहीं हुआ था। हमने शिवम की बड़ी बहन स्नेहा से भी मुलाकात की। स्नेहा से शिवम 3 साल छोटा था। स्नेहा बताती है, उसको (शिवम) न बुरी आदतों की लत थी, न ही वह गलत सोहबत में रहता था। तीन साल पहले उसकी कुछ तबीयत खराब हुई थी, लेकिन इस समय वह बिल्कुल अच्छा था। हमारी मुलाकात शिवम की मौसी शकुंतला देवी से भी हुई। शकुंतला बताती हैं, रविवार (5 मई) को कंप्यूटर क्लास में छुट्टी रहती थी। वह शनिवार शाम (4 मई) को ही घर आ गया। शाम को अच्छे से खाना खाकर सोया था। सब भाई बहनों के साथ लूडो खेला। फिर अपनी मां से बात की। अचानक तड़के 4 से 5 बजे के आसपास उसे दो झटके आए। सबकी आंख खुल गई। डॉक्टर के यहां ले गए। जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। अचानक पता नहीं क्या हो गया? मां गंगोत्री कहती हैं- 5 मई को बहन के घर से फोन आया कि शिवम की तबीयत खराब है। हम लोग बोले कि डॉक्टर के यहां ले जाओ। हम लोग वहां जाने की तैयारी कर ही रहे थे। फिर फोन आया, शिवम खत्म हो गया। घर से आखिरी बार 25 अप्रैल को गया था। रोजाना हमसे फोन पर बातचीत करता रहता था। आखिरी बार जल्द घर आने का वादा किया था। लेकिन आई तो उसकी लाश…। केस-3
मिर्जापुर: बैंक से घर लौटा, औंधे मुंह गिरा, फिर नहीं उठा
मिर्जापुर जिले के धुंधी कटरा मोहल्ले में राजेश का घर है। 19 अप्रैल को उनकी मौत हुई। हम परिवार से मिलने उनके घर पहुंचे। यहां उनके पिता द्वारिका प्रसाद मिले। बुझे मन से हमसे बातचीत को तैयार हुए। द्वारिका प्रसाद बताते हैं, राजेश नगरपालिका में ठेकेदारी करते थे। सुबह नाश्ता करने के बाद वह नगरपालिका और फिर बैंक गए। वहां से लौटे और आकर घर में बैठे ही थे कि अचानक तड़पने लगे और बेसुध हो गए। पानी देने का भी मौका नहीं मिला। डॉक्टर के यहां ले गए तो हार्ट अटैक बताया गया। अभी मेरे बेटे की उम्र 45 साल थी। यह भी कोई जाने की उम्र होती है? राजेश की पत्नी विजय लक्ष्मी भी पास में बैठी थीं। वह बताती हैं, घर के बगल में ही हमारा स्कूल है। घर का खर्च चलाने के लिए हम स्कूल में बैठते हैं। 18 अप्रैल को हम लोग परिवार सहित बनारस गए थे। सभी लोग रात में लौटे तो सोने में काफी देर हो गई। सुबह 4 बजे सोए। सुबह उठने में देर हुई तो वह (राजेश) स्कूल में जाकर बैठ गए। जल्दी-जल्दी अपना काम निपटाकर मैं भी आ गई। इसके बाद राजेश बोले, मैं बैंक जा रहा हूं। खाना आकर खाएंगे। वह घर तो आए, लेकिन खाना नहीं खा पाए। उनकी मौत हो गई। हमने सवाल किया- किसी तरह के नशे की लत या कोई गलत आदत रही हो? विजय लक्ष्मी बताती हैं, ठेकेदारी करते थे तो पान वगैरह खाते थे, लेकिन कोई बीमारी नहीं थी। कोरोना महामारी में भी उनको संक्रमण नहीं हुआ था। इसके बावजूद वैक्सीन की डोज लगवाई थी। अब परिवार में सास-ससुर हैं और दो बच्चे हैं। जिनकी देखभाल करनी है। उम्र के हिसाब से 5 ग्रुपों में बांटकर मौतों की स्टडी की पड़ताल में हमने जाना कि किस उम्र के लोग साइलेंट डेथ का सर्वाधिक शिकार हो रहे…। 25 मृतकों को 5 ग्रुप में बांटा है। 5-20, 20-30, 30-40, 40-50 और 50 से 60 साल। सबसे ज्यादा 20 से 40 साल के बीच के 14 लोगों की मौत हुई है। पड़ताल में निकला…25 में 24 फिट थे, कोई मेडिकल हिस्ट्री नहीं 25 लोगों में सिर्फ एक को बीपी की शिकायत थी, लेकिन वह रेगुलर दवा नहीं लेते थे। जबकि 24 लोगों की न तो कोई मेडिकल हिस्ट्री निकली न ही मौत से पहले उनकी तबीयत खराब थी। किसी को कोरोना नहीं हुआ था, कोरोना की वैक्सीन सबने लगवाई थी। 13 लोगों ने कोवीशील्ड वैक्सीन लगवाई थी, जबकि 4 लोगों को कोवैक्सीन लगी थी। 7 के परिवार नहीं बता पाए कि उन्हें कौन सी वैक्सीन लगी थी, लेकिन वैक्सीन जरूर लगी थी। 7 साल के 1 बच्चे को वैक्सीन नहीं लगी थी। जिन 25 लोगों की हार्ट अटैक से मौत हुई, उनमें सिर्फ एक महिला थी। जबकि अन्य 24 पुरुष थे। मरने वाली महिला की उम्र 18 साल थी। कासगंज की रहने वाली प्रियांशी स्कूल जा रही थीं। रास्ते में ही चलते-चलते गिर पड़ीं और मौत हो गई। उन्हें कोवैक्सीन लगी थी। कोरोना, वैक्सीन, साइड इफैक्ट, फिटनेस से जुड़े सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स ने दिए… सवाल: क्या वैक्सीन के कारण नौजवानों की मौत हो रही है? कितनी सच्चाई है?
जवाब: यह पूरी तरह गलत है। वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स की जानकारी सभी डॉक्टरों को है। वह भी रेयर है। हर एक दवा का साइड इफेक्ट होता है। कोरोना वैक्सीन भी एक तरह की दवा है। आपके घर में पैरासीटामॉल होती है। उसका भी साइडइफेक्ट होता है। चूंकि भारत में जनसंख्या बहुत ज्यादा है, इसलिए कोरोना महामारी में मृतकों की संख्या बहुत ज्यादा थी। हालांकि, कोरोना वैक्सीन से बचने वालों की संख्या उससे भी ज्यादा है। नुकसान नॉमिनल हुआ होगा। सवाल: मृतकों को कोरोना नहीं हुआ था। वैक्सीन लगी थी। क्या वैक्सीन का साइड इफेक्ट हो रहा है?
जवाब: यदि कोई कहे कि उसे कोरोना नहीं हुआ था तो वह गलतफहमी में हैं। कोरोना सभी को हुआ है। किसी में लक्षण दिखे तो कई लोगों में लक्षण नहीं नजर आए। खांसी आई और ठीक हो गई। बुखार आया और निकल गया। इसलिए यह कहना बहुत ही मुश्किल है कि कोरोना नहीं हुआ। ऐसी कोई स्टडी अभी नहीं हुई है, जिससे पता चले कि वैक्सीन लगवाने से सडेन डेथ हो गई। 10 से 15 साल स्टडी करने के बाद ही मेडिकल एक्सपर्ट किसी निर्णय पर पहुंच सकते हैं। सवाल: ज्यादातर मृतकों की कोई मेडिकल हिस्ट्री नहीं थी। वे फिट थे। फिर मौत का कारण क्या लगता है?
जवाब: यह कोई भी मेडिकल टेस्ट एश्योर नहीं कर सकता है कि आज आपने मेडिकल टेस्ट कराया हो और कल आपको हार्ट अटैक नहीं आएगा। सडेन डेथ होने के कई कारण होते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) का कॉन्सेप्ट है कि जब तक आप मेडिकली, मेंटली और स्प्रिचुअली फिट नहीं होते तब तक पूरी तरह से फिट नहीं माने जाएंगे। क्लिनिकल आंकड़ों को माना जाए तो अभी भी मेडिकल फिटनेस को लेकर 15 से 20% लोग ही जागरूक हैं। इनमें भी वह लोग शामिल हैं, जिनके आसपास ऐसे हादसे हुए हैं। सवाल: 2022 की NCRB की रिपोर्ट के अनुसार देश में सडेन डेथ के मामलों में 12% की बढ़ोतरी देखने को मिली है। क्या कारण है?
जवाब: सडेन डेथ के मामले पहले भी आते थे। तब हम और आप इस पर ध्यान नहीं देते थे। कम उम्र वालों की कम ही मौत होती थी, लेकिन कोविड के बाद इसमें बढ़ोतरी हुई है। इसका सबसे बड़ा कारण बैड फूड हैबिट, एग्रेशन और कसरत की कमी है। सवाल: अचानक होने वाली मौतों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या ज्यादा क्यों है?
जवाब: महिलाओं में एस्ट्रोजन नामक हार्मोन होता है, जो उन्हें प्रोटेक्ट करता है। वह घरेलू काम करती हैं तो थोड़ी बहुत फिजिकल एक्टिविटी होती रहती है। पुरुषों के मुकाबले स्ट्रेस को भी बेहतर ढंग से हैंडल करती हैं। इसलिए यह रेश्यो कम है, लेकिन अब आजकल के माहौल में महिलाएं भी सडेन डेथ का शिकार बन रही हैं। शहरों में महिलाएं डेस्क वर्क करती हैं। सिगरेट, बैड फूड की आदत बढ़ रही है। हालांकि, इसके बावजूद अभी पुरुषों के मुकाबले कम महिलाएं सडेन डेथ का शिकार बनती हैं। सवाल: 25 परिवारों में से 13 को कोविशील्ड वैक्सीन लगी थी, जबकि 4 को कोवैक्सिन। इसे कैसे देखा जाए?
जवाब: इतने कम लोगों से कोई पैटर्न नहीं ड्रा कर सकते। दूसरा कारण यह है कि शुरुआत में कोवीशील्ड वैक्सीन ही सबको लग रही थी। ऐसे में आप अगर बड़ी संख्या पर भी कोई पैटर्न ड्रा करना चाहेंगे तो उसमें ज्यादातर लोगों को कोवीशील्ड लगी ही मिलेगी। सवाल: अचानक मौतों से लोगों के मन में डर है। क्या हिदायत देंगे?
जवाब: ऐसे लोगों को अपनी फैमिली हिस्ट्री का पता होना चाहिए। जैसे परिवार में किसी की कभी हार्ट अटैक से तो मौत नहीं हुई। साथ ही ECG और ECHO टेस्ट करवा लेना चाहिए। साथ ही बेसिक लिपिड प्रोफाइल करा लेना चाहिए। सवाल: ऐसा क्या करें कि अचानक मौत से बचा जा सके?
जवाब: सबसे पहले सही समय पर सोना और उठना चाहिए। इसके बाद 30 मिनट की कसरत जरूर करना चाहिए। ऑफिस में डेस्क वर्क है तो सीढ़ियां जरूर यूज करें। खाने में हरी सब्जियों की मात्रा बढ़ानी चाहिए। डीप फ्राइड फूड और हाई कार्बोहाईड्रेट खाने से बचना चाहिए। वैक्सीन का मुद्दा ऐसे उठा ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने कोवीशील्ड वैक्सीन तैयार की थी। इस साल फरवरी में एस्ट्र्राजेनेका ने एक मुकदमे के जवाब में हाईकोर्ट में दस्तावेज दाखिल किए। पहली बार स्वीकार किया कि वैक्सीन से थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी TTS हो सकता है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है। यह रिपोर्ट सामने आने के बाद भारत के दो परिवारों ने भी एस्ट्राजेनेका के खिलाफ वाद दायर किया है। भास्कर ने ऐसे की पड़ताल इस खबर के बाद हमने अचानक होने वाली मौतों की पड़ताल की शुरुआत की। 1 मई से 1 जून तक उन परिवारों को खोजा, जिनके यहां 2022 से मई 2024 तक अचानक मौत हुई हो। एक महीने में 40 परिवारों तक पहुंचे, लेकिन ज्यादातर परिवारों ने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। ये परिवार उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने 55 साल से कम उम्र के अपनों को खोया था। कोई पुराने जख्मों को फिर से ताजा नहीं करना चाहता था, तो किसी के मन में था कि इस तरह की मौत के पीछे पता नहीं क्या मंशा है? लेकिन हमारा मकसद सिर्फ सच उजागर करना था। इसलिए लंबे प्रयासों के बाद हमें 20 जिलों में 25 ऐसे परिवार मिले, जिन्होंने अपना दर्द हमसे साझा किया। साइलेंट डेथ के ये चंद मामले हैं..। कोविड महामारी के बाद से 2 साल में साइलेंट डेथ के मामले तेजी से बढ़े हैं। कुछ मामले बने तो कुछ गुमनाम रह गए। साइलेंट डेथ का सच जानने के लिए दैनिक भास्कर ने अब तक की सबसे बड़ी पड़ताल की। टीम उत्तर प्रदेश के 20 जिलों के ऐसे 25 परिवारों के पास पहुंची, जिनके परिवार में किसी न किसी की अचानक मौत हुई। हमने 7 सवालों के जवाब तलाशे। जिनकी अचानक मौत हुई, क्या वह बीमार थे? कोई मेडिकल हिस्ट्री थी? कोरोना वैक्सीन लगी थी? कौन सी वैक्सीन लगी थी? क्या उन्हें कोरोना हुआ था? किस ऐज ग्रुप के ज्यादा लोगों की अचानक मौतें हुईं? महिलाएं ज्यादा हैं या पुरुष? यूपी के 6 बड़े मेडिकल एक्सपर्ट्स से बात करके मौत के कारण भी तलाशने की कोशिश की। पड़ताल के नतीजे चौंकाने वाले निकले। 25 केसेस में से 24 स्वस्थ थे, यानी उन्हें कोई बीमारी नहीं थी। 50 फीसदी से ज्यादा की उम्र 20 से 40 साल के बीच थी। 75% ने कोवीशील्ड की डोज ली थी, 25% ने कोवैक्सिन लगवाई थी। चिंताजनक ये है कि साइलेंट डेथ का शिकार ज्यादातर पुरुष हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… सबसे पहले ये तीन केस स्टडी देखिए… केस-1
जौनपुर: ‘मां, मैं जा रहा हूं…’ कानों में आज भी गूंजते हैं ये 5 शब्द भदोही-मिर्जापुर मार्ग पर 10 किमी चलने पर उंचनी खुर्द गांव है। यहां रहने वाले राकेश यादव हॉस्पिटल के मालिक हैं। राकेश यादव बताते हैं- ईश्वर की कृपा से हमारे दोनों बेटे नवनीत और अजीत पढ़ने-लिखने में बहुत अच्छे थे। अजीत को 2018 में टीचर की सरकारी नौकरी मिल गई थी। घर से लगभग 5 किमी दूर स्कूल में वह पढ़ाता था। साथ में नेट की तैयारी भी कर रहा था। मैं भी खुश था। दोनों बेटे सेटल हो चुके थे। रोजाना की तरह बेटा अजीत सुबह तैयार होकर स्कूल चला गया। अचानक 9 बजे के आसपास स्कूल से फोन आया कि अजीत की तबीयत खराब है। हम भागकर स्कूल पहुंचे। वहां देखा कि वह बेसुध पड़ा है। डॉक्टर के पास ले गए, लेकिन उसे मृत बता दिया गया। मौत की वजह साइलेंट अटैक सामने आई। हमने पूछा- क्या अजीत की तबीयत खराब थी या कोई बीमारी थी? राकेश ने कहा- अजीत एकदम फिट था। उसने कई साल से कोई दवा नहीं खाई। न ही कोई बीमारी थी। इस बात की तस्दीक उनकी मां गीता और भाई नवनीत ने भी की। भाई नवनीत ने अजीत के वैक्सीनेशन का सर्टिफिकेट दिखाया। 25 जून 2021 को अजीत को कोवीशील्ड की पहली डोज और 17 सितंबर 2021 को दूसरी डोज लगी थी। अजीत के पिता कहते हैं- पहले कभी विश्वास तो नहीं किया, लेकिन अब लगता है कि वैक्सीन की वजह से हमारे बच्चे की जान गई। मां गीता देवी की आंखों में आंसू हैं। कहती हैं- पिछले दो साल से कान में रोजाना मेरे बेटे के आखिरी शब्द ‘मां, मैं जा रहा हूं’ गूंजते रहते हैं। हर पल उसकी ही बातें याद आती हैं। हम अजीत के स्कूल अवरैला पहुंचे। स्कूल के हेड-मास्टर जय सिंह ने कहा- अजीत क्लास में अटेंडेंस ले रहे थे। अचानक बच्चे चिल्लाने लगे। हम लोग पहुंचे तो उनकी गर्दन झूल चुकी थी। अजीत की मौत के बाद तकरीबन 6 महीने तक उस कमरे में कोई क्लास नहीं लगाई गई। केस-2
मऊ: लूडो खेला, खाना खाया.. 2 झटके आए और मौत
मऊ से लगभग 35 किमी दूर गोंठा के शिवम पाल की मौत हार्ट अटैक से 5 मई, 2024 को हो गई। वह परिवार का इकलौता बेटा था। पिता राजेंद्र पाल की दोहरीघाट में फोटो कॉपी की दुकान है। उन्होंने बताया- शिवम गोरखपुर में रहकर कंप्यूटर की क्लास करता था। उसकी मौत देवरिया में मौसी के घर हुई। वह एक दम अच्छा था, कोई बीमारी नहीं थी। कोरोना भी नहीं हुआ था। हमने शिवम की बड़ी बहन स्नेहा से भी मुलाकात की। स्नेहा से शिवम 3 साल छोटा था। स्नेहा बताती है, उसको (शिवम) न बुरी आदतों की लत थी, न ही वह गलत सोहबत में रहता था। तीन साल पहले उसकी कुछ तबीयत खराब हुई थी, लेकिन इस समय वह बिल्कुल अच्छा था। हमारी मुलाकात शिवम की मौसी शकुंतला देवी से भी हुई। शकुंतला बताती हैं, रविवार (5 मई) को कंप्यूटर क्लास में छुट्टी रहती थी। वह शनिवार शाम (4 मई) को ही घर आ गया। शाम को अच्छे से खाना खाकर सोया था। सब भाई बहनों के साथ लूडो खेला। फिर अपनी मां से बात की। अचानक तड़के 4 से 5 बजे के आसपास उसे दो झटके आए। सबकी आंख खुल गई। डॉक्टर के यहां ले गए। जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। अचानक पता नहीं क्या हो गया? मां गंगोत्री कहती हैं- 5 मई को बहन के घर से फोन आया कि शिवम की तबीयत खराब है। हम लोग बोले कि डॉक्टर के यहां ले जाओ। हम लोग वहां जाने की तैयारी कर ही रहे थे। फिर फोन आया, शिवम खत्म हो गया। घर से आखिरी बार 25 अप्रैल को गया था। रोजाना हमसे फोन पर बातचीत करता रहता था। आखिरी बार जल्द घर आने का वादा किया था। लेकिन आई तो उसकी लाश…। केस-3
मिर्जापुर: बैंक से घर लौटा, औंधे मुंह गिरा, फिर नहीं उठा
मिर्जापुर जिले के धुंधी कटरा मोहल्ले में राजेश का घर है। 19 अप्रैल को उनकी मौत हुई। हम परिवार से मिलने उनके घर पहुंचे। यहां उनके पिता द्वारिका प्रसाद मिले। बुझे मन से हमसे बातचीत को तैयार हुए। द्वारिका प्रसाद बताते हैं, राजेश नगरपालिका में ठेकेदारी करते थे। सुबह नाश्ता करने के बाद वह नगरपालिका और फिर बैंक गए। वहां से लौटे और आकर घर में बैठे ही थे कि अचानक तड़पने लगे और बेसुध हो गए। पानी देने का भी मौका नहीं मिला। डॉक्टर के यहां ले गए तो हार्ट अटैक बताया गया। अभी मेरे बेटे की उम्र 45 साल थी। यह भी कोई जाने की उम्र होती है? राजेश की पत्नी विजय लक्ष्मी भी पास में बैठी थीं। वह बताती हैं, घर के बगल में ही हमारा स्कूल है। घर का खर्च चलाने के लिए हम स्कूल में बैठते हैं। 18 अप्रैल को हम लोग परिवार सहित बनारस गए थे। सभी लोग रात में लौटे तो सोने में काफी देर हो गई। सुबह 4 बजे सोए। सुबह उठने में देर हुई तो वह (राजेश) स्कूल में जाकर बैठ गए। जल्दी-जल्दी अपना काम निपटाकर मैं भी आ गई। इसके बाद राजेश बोले, मैं बैंक जा रहा हूं। खाना आकर खाएंगे। वह घर तो आए, लेकिन खाना नहीं खा पाए। उनकी मौत हो गई। हमने सवाल किया- किसी तरह के नशे की लत या कोई गलत आदत रही हो? विजय लक्ष्मी बताती हैं, ठेकेदारी करते थे तो पान वगैरह खाते थे, लेकिन कोई बीमारी नहीं थी। कोरोना महामारी में भी उनको संक्रमण नहीं हुआ था। इसके बावजूद वैक्सीन की डोज लगवाई थी। अब परिवार में सास-ससुर हैं और दो बच्चे हैं। जिनकी देखभाल करनी है। उम्र के हिसाब से 5 ग्रुपों में बांटकर मौतों की स्टडी की पड़ताल में हमने जाना कि किस उम्र के लोग साइलेंट डेथ का सर्वाधिक शिकार हो रहे…। 25 मृतकों को 5 ग्रुप में बांटा है। 5-20, 20-30, 30-40, 40-50 और 50 से 60 साल। सबसे ज्यादा 20 से 40 साल के बीच के 14 लोगों की मौत हुई है। पड़ताल में निकला…25 में 24 फिट थे, कोई मेडिकल हिस्ट्री नहीं 25 लोगों में सिर्फ एक को बीपी की शिकायत थी, लेकिन वह रेगुलर दवा नहीं लेते थे। जबकि 24 लोगों की न तो कोई मेडिकल हिस्ट्री निकली न ही मौत से पहले उनकी तबीयत खराब थी। किसी को कोरोना नहीं हुआ था, कोरोना की वैक्सीन सबने लगवाई थी। 13 लोगों ने कोवीशील्ड वैक्सीन लगवाई थी, जबकि 4 लोगों को कोवैक्सीन लगी थी। 7 के परिवार नहीं बता पाए कि उन्हें कौन सी वैक्सीन लगी थी, लेकिन वैक्सीन जरूर लगी थी। 7 साल के 1 बच्चे को वैक्सीन नहीं लगी थी। जिन 25 लोगों की हार्ट अटैक से मौत हुई, उनमें सिर्फ एक महिला थी। जबकि अन्य 24 पुरुष थे। मरने वाली महिला की उम्र 18 साल थी। कासगंज की रहने वाली प्रियांशी स्कूल जा रही थीं। रास्ते में ही चलते-चलते गिर पड़ीं और मौत हो गई। उन्हें कोवैक्सीन लगी थी। कोरोना, वैक्सीन, साइड इफैक्ट, फिटनेस से जुड़े सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स ने दिए… सवाल: क्या वैक्सीन के कारण नौजवानों की मौत हो रही है? कितनी सच्चाई है?
जवाब: यह पूरी तरह गलत है। वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स की जानकारी सभी डॉक्टरों को है। वह भी रेयर है। हर एक दवा का साइड इफेक्ट होता है। कोरोना वैक्सीन भी एक तरह की दवा है। आपके घर में पैरासीटामॉल होती है। उसका भी साइडइफेक्ट होता है। चूंकि भारत में जनसंख्या बहुत ज्यादा है, इसलिए कोरोना महामारी में मृतकों की संख्या बहुत ज्यादा थी। हालांकि, कोरोना वैक्सीन से बचने वालों की संख्या उससे भी ज्यादा है। नुकसान नॉमिनल हुआ होगा। सवाल: मृतकों को कोरोना नहीं हुआ था। वैक्सीन लगी थी। क्या वैक्सीन का साइड इफेक्ट हो रहा है?
जवाब: यदि कोई कहे कि उसे कोरोना नहीं हुआ था तो वह गलतफहमी में हैं। कोरोना सभी को हुआ है। किसी में लक्षण दिखे तो कई लोगों में लक्षण नहीं नजर आए। खांसी आई और ठीक हो गई। बुखार आया और निकल गया। इसलिए यह कहना बहुत ही मुश्किल है कि कोरोना नहीं हुआ। ऐसी कोई स्टडी अभी नहीं हुई है, जिससे पता चले कि वैक्सीन लगवाने से सडेन डेथ हो गई। 10 से 15 साल स्टडी करने के बाद ही मेडिकल एक्सपर्ट किसी निर्णय पर पहुंच सकते हैं। सवाल: ज्यादातर मृतकों की कोई मेडिकल हिस्ट्री नहीं थी। वे फिट थे। फिर मौत का कारण क्या लगता है?
जवाब: यह कोई भी मेडिकल टेस्ट एश्योर नहीं कर सकता है कि आज आपने मेडिकल टेस्ट कराया हो और कल आपको हार्ट अटैक नहीं आएगा। सडेन डेथ होने के कई कारण होते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) का कॉन्सेप्ट है कि जब तक आप मेडिकली, मेंटली और स्प्रिचुअली फिट नहीं होते तब तक पूरी तरह से फिट नहीं माने जाएंगे। क्लिनिकल आंकड़ों को माना जाए तो अभी भी मेडिकल फिटनेस को लेकर 15 से 20% लोग ही जागरूक हैं। इनमें भी वह लोग शामिल हैं, जिनके आसपास ऐसे हादसे हुए हैं। सवाल: 2022 की NCRB की रिपोर्ट के अनुसार देश में सडेन डेथ के मामलों में 12% की बढ़ोतरी देखने को मिली है। क्या कारण है?
जवाब: सडेन डेथ के मामले पहले भी आते थे। तब हम और आप इस पर ध्यान नहीं देते थे। कम उम्र वालों की कम ही मौत होती थी, लेकिन कोविड के बाद इसमें बढ़ोतरी हुई है। इसका सबसे बड़ा कारण बैड फूड हैबिट, एग्रेशन और कसरत की कमी है। सवाल: अचानक होने वाली मौतों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या ज्यादा क्यों है?
जवाब: महिलाओं में एस्ट्रोजन नामक हार्मोन होता है, जो उन्हें प्रोटेक्ट करता है। वह घरेलू काम करती हैं तो थोड़ी बहुत फिजिकल एक्टिविटी होती रहती है। पुरुषों के मुकाबले स्ट्रेस को भी बेहतर ढंग से हैंडल करती हैं। इसलिए यह रेश्यो कम है, लेकिन अब आजकल के माहौल में महिलाएं भी सडेन डेथ का शिकार बन रही हैं। शहरों में महिलाएं डेस्क वर्क करती हैं। सिगरेट, बैड फूड की आदत बढ़ रही है। हालांकि, इसके बावजूद अभी पुरुषों के मुकाबले कम महिलाएं सडेन डेथ का शिकार बनती हैं। सवाल: 25 परिवारों में से 13 को कोविशील्ड वैक्सीन लगी थी, जबकि 4 को कोवैक्सिन। इसे कैसे देखा जाए?
जवाब: इतने कम लोगों से कोई पैटर्न नहीं ड्रा कर सकते। दूसरा कारण यह है कि शुरुआत में कोवीशील्ड वैक्सीन ही सबको लग रही थी। ऐसे में आप अगर बड़ी संख्या पर भी कोई पैटर्न ड्रा करना चाहेंगे तो उसमें ज्यादातर लोगों को कोवीशील्ड लगी ही मिलेगी। सवाल: अचानक मौतों से लोगों के मन में डर है। क्या हिदायत देंगे?
जवाब: ऐसे लोगों को अपनी फैमिली हिस्ट्री का पता होना चाहिए। जैसे परिवार में किसी की कभी हार्ट अटैक से तो मौत नहीं हुई। साथ ही ECG और ECHO टेस्ट करवा लेना चाहिए। साथ ही बेसिक लिपिड प्रोफाइल करा लेना चाहिए। सवाल: ऐसा क्या करें कि अचानक मौत से बचा जा सके?
जवाब: सबसे पहले सही समय पर सोना और उठना चाहिए। इसके बाद 30 मिनट की कसरत जरूर करना चाहिए। ऑफिस में डेस्क वर्क है तो सीढ़ियां जरूर यूज करें। खाने में हरी सब्जियों की मात्रा बढ़ानी चाहिए। डीप फ्राइड फूड और हाई कार्बोहाईड्रेट खाने से बचना चाहिए। वैक्सीन का मुद्दा ऐसे उठा ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने कोवीशील्ड वैक्सीन तैयार की थी। इस साल फरवरी में एस्ट्र्राजेनेका ने एक मुकदमे के जवाब में हाईकोर्ट में दस्तावेज दाखिल किए। पहली बार स्वीकार किया कि वैक्सीन से थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी TTS हो सकता है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है। यह रिपोर्ट सामने आने के बाद भारत के दो परिवारों ने भी एस्ट्राजेनेका के खिलाफ वाद दायर किया है। भास्कर ने ऐसे की पड़ताल इस खबर के बाद हमने अचानक होने वाली मौतों की पड़ताल की शुरुआत की। 1 मई से 1 जून तक उन परिवारों को खोजा, जिनके यहां 2022 से मई 2024 तक अचानक मौत हुई हो। एक महीने में 40 परिवारों तक पहुंचे, लेकिन ज्यादातर परिवारों ने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। ये परिवार उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने 55 साल से कम उम्र के अपनों को खोया था। कोई पुराने जख्मों को फिर से ताजा नहीं करना चाहता था, तो किसी के मन में था कि इस तरह की मौत के पीछे पता नहीं क्या मंशा है? लेकिन हमारा मकसद सिर्फ सच उजागर करना था। इसलिए लंबे प्रयासों के बाद हमें 20 जिलों में 25 ऐसे परिवार मिले, जिन्होंने अपना दर्द हमसे साझा किया। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर