हरियाणा के रेवाड़ी में 6 दिन पहले व्यापारी दिनेश की गोली मारकर हत्या करने के मामले में कसौला थाना पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार किया है। पकड़े गए आरोपी की पहचान गांव पातूहेड़ा निवासी सुनील उर्फ सुम्मी के रूप में हुई है। दिनेश की हत्या उसके बर्थडे वाले दिन कर दी गई थी। पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि रेवाड़ी के गांव रानौली निवासी दिनेश कुमार (28) ने जलियावास में गारमेंट व किरयाना की दुकान की हुई थी। 5 जुलाई को दिनेश कुमार का जन्म दिन था, जिसकी वजह से उसके पिता शीशराम अपने बेटे को बुलाने के लिए दुकान पर गया था। उनकी दुकान से कुछ दूरी पर एक मोमोज की रेहड़ी लगी हुई थी। जिस पर एसपी उर्फ शिव गांव जलालपुर और सुम्मी गुर्जर पातुहेड़ा के अलावा अमित पहलवान गांव आसलवास ये तीनों मोमोज खा रहे थे। छाती में मारी गोली तीनों आरोपी दिनेश के पास आए और झगड़ा करने लग गए। समझाने के बाद वह सभी वहां से चले गए। शीशराम ने बताया कि उसके बाद वह अपने बेटे के साथ दुकान के पास चौराहे पर आकर बैठ गया। थोडी देर बाद एसपी उर्फ शिव, सुम्मी और अमित एक कार में सवार होकर आए तथा एसपी उर्फ शिव के दो दोस्त सचिन व देवेंद्र उर्फ देबू निवासी चिरहाड़ा अपनी बाइक पर पहुंचे। आरोपियों ने किसी पुरानी रंजिश में उसके बेटे दिनेश के साथ झगड़ा करना शुरू कर दिया। आरोपी एसपी उर्फ शिव ने उसके बेटे दिनेश को गोली मार दी और आरोपी मौके से फरार हो गए। तीन दिन के रिमांड पर लिया आरोपी आस-पड़ौस के लोगों की मदद से वह दिनेश को इलाज के लिए पुष्पाजंलि अस्पताल रेवाड़ी लेकर गया जहां डॉक्टर ने दिनेश को मृत घोषित कर दिया। कसौला थाना पुलिस ने शीशराम की शिकायत पर आरोपियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया था। जांच के बाद पुलिस ने मामले में एक आरोपी गांव पातूहेड़ा निवासी सुनील उर्फ सुम्मी को गिरफ्तार कर लिया है। उसे गुरुवार को कोर्ट में पेश कर 3 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया है। हरियाणा के रेवाड़ी में 6 दिन पहले व्यापारी दिनेश की गोली मारकर हत्या करने के मामले में कसौला थाना पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार किया है। पकड़े गए आरोपी की पहचान गांव पातूहेड़ा निवासी सुनील उर्फ सुम्मी के रूप में हुई है। दिनेश की हत्या उसके बर्थडे वाले दिन कर दी गई थी। पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि रेवाड़ी के गांव रानौली निवासी दिनेश कुमार (28) ने जलियावास में गारमेंट व किरयाना की दुकान की हुई थी। 5 जुलाई को दिनेश कुमार का जन्म दिन था, जिसकी वजह से उसके पिता शीशराम अपने बेटे को बुलाने के लिए दुकान पर गया था। उनकी दुकान से कुछ दूरी पर एक मोमोज की रेहड़ी लगी हुई थी। जिस पर एसपी उर्फ शिव गांव जलालपुर और सुम्मी गुर्जर पातुहेड़ा के अलावा अमित पहलवान गांव आसलवास ये तीनों मोमोज खा रहे थे। छाती में मारी गोली तीनों आरोपी दिनेश के पास आए और झगड़ा करने लग गए। समझाने के बाद वह सभी वहां से चले गए। शीशराम ने बताया कि उसके बाद वह अपने बेटे के साथ दुकान के पास चौराहे पर आकर बैठ गया। थोडी देर बाद एसपी उर्फ शिव, सुम्मी और अमित एक कार में सवार होकर आए तथा एसपी उर्फ शिव के दो दोस्त सचिन व देवेंद्र उर्फ देबू निवासी चिरहाड़ा अपनी बाइक पर पहुंचे। आरोपियों ने किसी पुरानी रंजिश में उसके बेटे दिनेश के साथ झगड़ा करना शुरू कर दिया। आरोपी एसपी उर्फ शिव ने उसके बेटे दिनेश को गोली मार दी और आरोपी मौके से फरार हो गए। तीन दिन के रिमांड पर लिया आरोपी आस-पड़ौस के लोगों की मदद से वह दिनेश को इलाज के लिए पुष्पाजंलि अस्पताल रेवाड़ी लेकर गया जहां डॉक्टर ने दिनेश को मृत घोषित कर दिया। कसौला थाना पुलिस ने शीशराम की शिकायत पर आरोपियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया था। जांच के बाद पुलिस ने मामले में एक आरोपी गांव पातूहेड़ा निवासी सुनील उर्फ सुम्मी को गिरफ्तार कर लिया है। उसे गुरुवार को कोर्ट में पेश कर 3 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
Related Posts
हिसार में पुलिस सब इंस्पेक्टर ने पत्नी को पीटा:दूसरी महिला से बोलचाल पर घर में कलह; SP ने पीसीआर में भेजा अस्पताल
हिसार में पुलिस सब इंस्पेक्टर ने पत्नी को पीटा:दूसरी महिला से बोलचाल पर घर में कलह; SP ने पीसीआर में भेजा अस्पताल हरियाणा के हिसार में पुलिस सब इंस्पेक्टर ने अपनी पत्नी को बुरी तरह से पीटा। झगड़े के दौरान महिला ने हिसार एसपी को फोन किया। इसके बाद महिला के घर पीसीआर पहुंची और उसको हिसार के नागरिक अस्पताल में भर्ती कराया गया। घायल महिला ने आरोप लगाया कि उसके पति की एक महिला से बोलचाल है। जब इसका विरोध किया तो उसने मारपीट शुरू कर दी। सदर थाना पुलिस से महिला कॉन्स्टेबल सिविल अस्पताल पहुंची और महिला के बयान दर्ज किया। नागरिक अस्पताल में घायल महिला ने बताया कि उसका पति पुलिस में है शादी से 3 बच्चे है। बच्चे कॉलेज में पढ़ते है।उसका पति सब इंस्पेक्टर के पद जिले के थाने में तैनात है। पति के एक महिला से बोलचाल है जिसे लेकर पति से कई बार झगड़ा हो चुका है। गुरुवार को सुबह वह घर पर थी इस दौरान उसने अपने पति को फिर से दूसरी महिला से बोलचाल न रखने के लिए कहा तो पति को गुस्सा आ गया और उसने दरवाजे बंद करके उसे जमकर पीटा। इस दौरान उसने मुंह पर चोट मारी। महिला ने बताया कि पति द्वारा मारपीट किए जाने के बाद उसने हिसार एसपी को फोन किया। इसके बाद पुलिस घर पहुंची और उसे नागरिक अस्पताल में भर्ती कराया। फिलहाल पुलिस ने महिला के बयान दर्ज किए हैं। महिला ने बताया कि उसके पति और दूसरी महिला के बीच चैटिंग के सबूत उसे महिला के परिवार के सदस्यों को दिए हैं। उस महिला को कई बार पति से दूर रहने के लिए भी कहा गया, लेकिन महिला ने उसकी बात को मानने से इनकार कर दिया। वही पति को भी कई बार मनाने का प्रयास किया, लेकिन उसके पति ने भी बात को मानने से मना कर दिया। फिलहाल सदर पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है।
बनारसी दास को भाषण के दौरान गोली लगी:ट्रेन में छिपकर पत्नी के साथ लाहौर से भारत पहुंचे; कठपुतली मुख्यमंत्री कहा गया
बनारसी दास को भाषण के दौरान गोली लगी:ट्रेन में छिपकर पत्नी के साथ लाहौर से भारत पहुंचे; कठपुतली मुख्यमंत्री कहा गया साल 1989, चौधरी देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर डिप्टी प्राइम मिनिस्टर बने और बेटे ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बनवा दिया। तब ओम प्रकाश चौटाला विधायक नहीं थे। उन्हें 6 महीने के भीतर विधायक बनना था। ओमप्रकाश चौटाला, रोहतक जिले की महम सीट से उपचुनाव में उतरे। ये वो सीट थी जहां से लगातार तीन बार देवीलाल जीत चुके थे। जब चुनाव हुआ तो महम सीट हिंसा की भेंट चढ़ गई। 10 लोगों की जान चली गई। चुनाव रद्द हो गया। महम कांड की आंच चौटाला परिवार तक पहुंची। इधर, अप्रैल 1990, जनता दल में नए अध्यक्ष को लेकर गहमागहमी शुरू हो चुकी थी। रेस में दो नाम सबसे आगे थे। पहला- एसआर बोम्मई का, जिन्हें समाजवादी नेता चंद्रशेखर का समर्थन था। दूसरा- एस जयपाल रेड्डी का, जिनके खेमे में रामकृष्ण हेगड़े और अजीत सिंह जैसे नेता थे। देवीलाल, बोम्मई का समर्थन कर रहे थे। उन्हें लगता था कि बोम्मई अध्यक्ष बनते हैं, तो ओमप्रकाश चौटाला की कुर्सी बच जाएगी। उधर, रेड्डी को आशंका थी कि प्रधानमंत्री वीपी सिंह उनका साथ नहीं देंगे। इसी असमंजस में उन्होंने दावेदारी छोड़ दी। 19 मई को बोम्मई जनता दल के निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिए गए। इस बीच महम कांड का शोर संसद तक पहुंच गया। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी चौटाला के इस्तीफे की मांग कर डाली। वीपी सिंह को आनन-फानन में मंत्रिमंडल की बैठक बुलानी पड़ी। देवीलाल की हाजिरी में बोम्मई ने चौटाला से इस्तीफा मांग लिया। 22 मई को ओमप्रकाश चौटाला ने इस्तीफा दे दिया। अब देवीलाल को ऐसे नेता की जरूरत थी, जो हरियाणा का मुख्यमंत्री तो बने, लेकिन सरकार की बागडोर उनके पास ही रहे। देवीलाल के छोटे बेटे रणजीत चौटाला भी सीएम की रेस में थे, लेकिन ओमप्रकाश को डर था कि रणजीत मुख्यमंत्री बन गए, तो बाद में वे इस्तीफा नहीं देंगे। ऐसे में डिप्टी सीएम बनारसी दास गुप्ता का नाम तय किया गया। वे देवीलाल और ओमप्रकाश दोनों के करीबी थे। 22 मई 1990 को बनारसी दास गुप्ता दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के चौथे एपिसोड में बनारसी दास गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने की कहानी और उनसे जुड़े किस्से… बनारसी दास गुप्ता का जन्म 5 नवंबर 1917 को पंजाब की जींद रियासत के एक छोटे से गांव में हुआ। पिता रामस्वरूप गुप्ता गांव में दुकान चलाते थे और खेती भी करते थे। उनकी मौसी की कोई संतान नहीं थी। इसलिए वे कुछ सालों तक अपनी मौसी के पास रहे, लेकिन जब उनको बेटा हुआ तो बनारसी दास माता-पिता के पास लौट आए। बनारसी दास की तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई गांव में ही हुई। उन दिनों स्कूल में दलित बच्चों को अन्य बच्चों से अलग बिठाया जाता था। वे इसका विरोध करते और उनके साथ ही बैठते। आठवीं के बाद वे पिलानी के बिड़ला कॉलेज में एडमिशन लेने पहुंचे। जब फीस जमा करने की बारी आई तो बनारसी दास ने 100 रुपए का नोट दिया। नोट किनारे से फटा था, मुनीम ने नोट लेने से मना कर दिया। बनारसी दास के पास सिर्फ उतने ही रुपए थे। पूरा दिन उन्होंने सड़क पर बिताया। शाम को कॉलेज के मालिक घनश्यामदास बिड़ला ने उन्हें देखा और कारण पूछा। तब बनारसी दास ने उन्हें पूरा किस्सा बताया। इसके बाद उन्हें एडमिशन मिल गया। बिड़ला कॉलेज से 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद वे पढ़ाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में उतर गए। उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ साल जेल में भी रहे। बंटवारे के दौरान पत्नी को लेने लाहौर पहुंचे, सीट के नीचे छिपकर लौटे 28 फरवरी 1941, बनारसी दास की शादी भिवानी जिले के तिगराणा गांव की द्रौपदी गुप्ता से हुई। उन्होंने अपनी शादी में भी आजादी के नारे लगाए। बनारसी दास के मित्र और उन पर तीन-तीन किताबें लिखने वाले डॉ. निरजंन रोहिल्ला उनकी शादी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं- ‘बंटवारे के समय बनारसी दास की पत्नी लाहौर के कॉलेज में पढ़ रही थीं। उस वक्त दोनों तरफ कत्लेआम मचा हुआ था। बनारसी दास के पिता ने उनसे कहा कि वे लाहौर जाकर द्रौपदी को लेकर आएं। बनारसी दास लाहौर के लिए निकल पड़े। वे पहले भटिंडा पहुंचे, लेकिन लाहौर जाने वाली ट्रेन में कत्लेआम देखकर उन्होंने ट्रेन से जाने का प्लान कैंसिल कर दिया। वे ट्रक से लाहौर के लिए निकल गए। रात के अंधेरे में जैसे-तैसे वे द्रौपदी को ढूंढने में कामयाब रहे। उन्होंने पूरी रात स्टेशन के पास जंगल में बिताई। सुबह भटिंडा के लिए ट्रेन पकड़ी और सीट के नीचे छिपकर पत्नी के साथ भारत पहुंचे।’ जींद रियासत को देश में मिलाने के लिए जेल गए जींद रियासत को भारत में मिलाने में उनकी बड़ी भूमिका रही। उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 1946 में राजनीतिक हालात बदले तो वे जेल से बाहर आए। इस दौरान जींद के महाराजा ने सीमित मताधिकार से चुने गए 65 सदस्यों की विधानसभा का गठन किया। बनारसी दास जींद से निर्विरोध सदस्य चुने गए। आजादी के बाद बनारसीदास और उनके साथियों ने जींद रियासत का पंजाब में विलय करने के लिए संघर्ष किया। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद पंजाब की सभी रियासतों को मिलाकर पेप्सू यूनियन बनाया गया। आगे चलकर पंजाब में इसका विलय कर दिया गया। रियासती प्रजामंडलों का कांग्रेस में विलय कर दिया। बनारसी दास भी कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस में शामिल होने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने भिवानी को कार्यक्षेत्र बनाया। राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के बैनर तले मजदूरों को संगठित किया। इस दौरान उन्होंने 17 दिन तक अनशन भी किया। वे 1953 से 1960 तक जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। 1953 में ही भिवानी नगरपालिका के पहले गैर सरकारी अध्यक्ष चुने गए। 1968 में बनारसीदास भिवानी से कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक बने। 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 81 में से 52 सीटें जीतीं। बनारसी दास फिर विधायक बने। बंसीलाल दोबारा मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनने के बाद बंसीलाल ने बनारसी दास को स्पीकर बनाया। बंसीलाल को इंदिरा का बुलावा और बनारसी दास सीएम बन गए स्पीकर बनने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने विधानसभा का सारा काम हिंदी में करने का आदेश दिया। इससे वे चर्चा में आ गए। यह पहला मौका था जब किसी विधानसभा में सारा काम हिंदी में करने का आदेश जारी हुआ था। 1973 में उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और बंसीलाल मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। उन्हें बिजली, सिंचाई, कृषि, सहकारिता, स्वास्थ्य और नागरिक प्रशासन मंत्रालय मिला। इसी बीच इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने बंसीलाल को दिल्ली बुला लिया। बंसीलाल हरियाणा की कमान अपने किसी करीबी को सौंपना चाहते थे। उन्होंने बनारसी दास को मुफीद माना। इस तरह 1 दिसंबर 1975 को बनारसी दास गुप्ता पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि इस दौरान उन पर डमी सीएम होने का आरोप भी लगा। कहा जाता है कि भले ही बंसीलाल दिल्ली में रक्षा मंत्रालय की कमान संभाल रहे थे, लेकिन हरियाणा में हर फैसले में उनकी और उनके बेटे सुरेंद्र की दखल रहती थी। 1977 में कांग्रेस को 3 सीटें मिलीं, बनारसी दास ने पाला बदल लिया 1977 में इमरजेंसी हटने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 3 सीटों पर सिमट गई। बनारसी दास भी चुनाव हार गए। जनता पार्टी 75 सीटों के साथ सत्ता में आई। चौधरी देवीलाल मुख्यमंत्री बने। हालांकि दो साल बाद ही उनकी जगह भजनलाल को सीएम बना दिया गया। 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोगोंवाल के बीच पंजाब में समझौता हुआ। इसमें चंड़ीगढ़ और रावी-व्यास के जल बंटवारे से जुड़ा मामला शामिल था। इसे लेकर हरियाणा में काफी आक्रोश था। देवीलाल ने 18 विधायकों के साथ विधानसभा से इस्तीफा देकर ‘न्याय युद्ध’ छेड़ दिया। बनारसी दास ने कांग्रेस को आंदोलन में शामिल होने की सलाह दी, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई। इसके बाद बनारसी दास कांग्रेस छोड़कर चौधरी देवीलाल के साथ आ गए। 1987 में विधानसभा चुनाव हुए तो चौधरी देवीलाल को 60 सीटें मिलीं। देवीलाल मुख्यमंत्री बने और बनारसी दास गुप्ता को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। ओमप्रकाश चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा, बनारसी दास पर कठपुतली सीएम का ठप्पा लगा दो साल बाद केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार बनी, तो देवीलाल को उप प्रधानमंत्री बनाया गया। देवीलाल राज्य की सत्ता बेटे ओमप्रकाश चौटाला को सौंप कर दिल्ली की तरफ बढ़ गए। चौटाला सीएम बने तो वे विधायक नहीं थे। उन्होंने महम सीट पर उपचुनाव में पर्चा भर दिया। खाप पंचायतों ने इसका विरोध किया और देवीलाल के करीबी रहे आनंद सिंह दांगी को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर समर्थन दे दिया। 27 फरवरी, 1990 को महम में वोटिंग हुई। आनंद सिंह दांगी ने चुनाव आयोग से आठ वोटिंग सेंटर्स पर बूथ कैप्चरिंग की शिकायत की। अगले दिन यानी 28 फरवरी को उन आठ बूथों पर फिर से वोटिंग हुई। उस दौरान भी भारी हिंसा हुई। भीड़ ने बचाव में जुटी CRPF के एक जवान की हत्या कर दी। इसके बाद सुरक्षाबलों ने भीड़ पर गोलियां चला दीं जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- महम हिंसा के बाद जनता दल में अजीत सिंह, अरुण नेहरू, जॉर्ज फर्नांडिस और रामकृष्ण हेगड़े जैसे नेताओं ने वीपी सिंह पर चौटाला को हटाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। 3 मार्च को एक बैठक में देवीलाल और अजीत सिंह में जमकर गाली-गलौज हुई। इसी रात एक और बैठक हुई इसमें जनता दल शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए। बैठक में उत्तर प्रदेश के सीएम मुलायम सिंह यादव, बिहार के सीएम लालू प्रसाद यादव और ओडिशा के सीएम बीजू पटनायक ने चौटाला को हटाने की वकालत की। देवीलाल के खास शरद यादव भी चौटाला को हटाने के पक्ष में थे। हालांकि बैठक में कोई फैसला नहीं हो सका। अब इसका फैसला करने का जिम्मा एक कमेटी को सौंप गया। कमेटी में अजीत सिंह, जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव, अरुण नेहरू और यशवंत सिन्हा शामिल थे। 4 मार्च को कमेटी ने तय किया कि पार्टी चुनाव आयोग से महम सीट पर फिर से वोटिंग कराने को कहे। साथ ही चौटाला इस्तीफा दें। आखिरकार 22 मई 1990 को चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। उसी दिन देवीलाल ने अपने करीबी और तब डिप्टी सीएम रहे बनारसी दास गुप्ता को सीएम बनाया। हालांकि दो महीने के भीतर ही ओमप्रकाश चौटाला दरबान कलां सीट से उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए। उन्होंने बनारसी दास गुप्ता से इस्तीफा ले लिया और खुद मुख्यमंत्री बन गए। बनारसी दास गुप्ता 51 दिन ही सीएम रह सके। बनारसी दास गुप्ता को गोली लगी, बाल-बाल बचे इसके बाद बनारसी दास गुप्ता के देवीलाल से वैचारिक मतभेद बढ़ गए। वे सक्रिय राजनीति से अलग-थलग रहने लगे थे। 23 सितंबर 1990 की बात है। बनारसी दास भिवानी में महाराजा अग्रसेन जयंती समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इसी दौरान अचानक उन पर फायरिंग हो गई। गोली उनके सीने को चीरती हुई पार निकल गई। हालांकि लंबे इलाज के बाद वे ठीक हो गए। इस घटना ने बनारसी दास को फिर से राजनीति में एक्टिव होने की ऊर्जा दे दी। राजीव गांधी के कहने पर बनारसी दास कांग्रेस में शामिल हो गए। 1996 में भजनलाल सरकार के दौरान उन्हें राज्यसभा भेजा गया। कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्होंने राजनीति से रिटायरमेंट ले लिया और समाजसेवा की तरफ बढ़ गए। 29 अगस्त 2007 को बनारसी दास का निधन हो गया।
पानीपत में यमुना नदी में डूबे 3 युवक:6 दोस्तों के साथ कुंड में नहाने आए थे, गोताखोरों ने चलाया सर्च ऑपरेशन
पानीपत में यमुना नदी में डूबे 3 युवक:6 दोस्तों के साथ कुंड में नहाने आए थे, गोताखोरों ने चलाया सर्च ऑपरेशन पानीपत जिले के सनौली में हरियाणा-यूपी बॉर्डर पर यमुना नदी में दोपहर बाद 3 बजे स्नान करने के दौरान तीन युवक डूब गए। हादसे की सूचना पर दोनों प्रदेशों से पुलिस पर पहुंची और प्राइवेट गोताखोर की मदद से सर्च अभियान चलाया गया। युवकों की पहचान खोतपुरा गांव निवासी सुमित(15), सुंडेसी उर्फ सुमित (14) व नितेश(18 ) के नाम से हुई। जो गुरुवार को सनौली नाके की निकट यमुना नदी में स्नान कर रहे थे। तीनों आपस में दोस्त थे। देखते ही देखते तीनों यमुना नदी के तेज बहाव के साथ गहरे पानी में डूब गए। उन्हें डूबता देख उनके साथी आबिद, गौरव व रिहान ने शोर मचा दिया और मामले की सूचना पुलिस को दी। इसके बाद सनौली थाना एसएचओ संदीप कुमार ने पुलिस टीम व यूपी के कैराना कोतवाली पुलिस साथ सडीएम स्वप्निल कुमार यादव मौके पर पहुंचे। तीन घंटे तक चले सर्च अभियान में नहीं लगा सुराग उन्होंने हादसे के संबंध में जानकारी हासिल ली और मौके पर गोताखोरों को बुलाया गया। यमुना नदी में सर्च अभियान में दोनों प्रदेशों के प्राइवेट गोताखोरों को लगाया गया है, जिनके द्वारा मोटर बोट के साथ डूबे तीनों दोस्तों की तलाश की जा रही है। करीब तीन घंटे बीत जाने के बाद भी किसी का सुराग नहीं लग सका है। 11 दिनों में यमुना पर दूसरा बड़ा हादसा उधर, हादसे के संबंध में तीनों दोस्तों के परिजनों को सूचना दे दी गई है, जिसके चलते उनमें कोहराम मचा हुआ है। 11 दिनों में यमुना पर दूसरा बड़ा हादसा हुआ। पिछले दिनों 4 अगस्त को भी डूबे थे 3 लोग, सनौली यमुना घाट पर समान करने 4 अगस्त को पानीपत से 8 दोस्त टायल मजदूर में से दो सगे भाइयों सहित तीन लोगो की डूबने से मोत हो चुकी है।