हरियाणा के भिवानी में 2 बच्चों की तालाब में डूबने से मौत हो गई। वे गर्मी से निजात पाने के लिए तालाब में नहाने के लिए गए थे। जब लोगों ने उन्हें तालाब में डूबते देखा तो फौरन बाहर निकाला और हिसार के अस्पताल में लाया गया, जहां डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। यह घटना भिवानी के बवानी खेड़ा के अंतर्गत गांव रतेरा में घटित हुई है। इसमें एक तीसरी लड़की के भी डूबने की आशंका जताई जा रही है, लेकिन इसकी अब तक पुष्टि नहीं हो पाई है। तालाब में खुदाई का काम चल रहा था
ग्रामीणों के अनुसार, रतेरा गांव के 2 बच्चे विराट और लकी (दोनों की उम्र लगभग 9 साल) मंगलवार को घर से निकले थे। वे दोनों साथ में गांव के ही तालाब में नहाने के लिए चले गए। बताया जाता है गांव के तालाब में खुदाई का काम चल रहा था। इस वजह से तालाब में कहीं ऊंचा तो कहीं गड्ढ़े हो गए हैं। इनमें पानी भरा हुआ था तो अंदाजा लगाना मुश्किल था कि कहां गड्ढा है और कहां समतल। दोनों बच्चे दोपहर लगभग 3 बजे घर से निकले थे। जब काफी देर तक बच्चे घर नहीं पहुंचे तो परिजनों ने उन्हें तलाशना शुरू कर दिया। हालांकि, उनका कहीं अता-पता नहीं चला। पशुपालकों ने निकाले शव
इधर, तालाब पर कुछ पशुपालक अपने पशुओं को पानी पिलाने के लिए पहुंचे। उन्होंने देखा कि पानी में कुछ तैर रहा था। उन्होंने तालाब में घुसकर देखा तो सिर दिखाई दिया। इसके बाद ग्रामीणों ने बड़ी मशक्कत के बाद दोनों बच्चों को बाहर निकाला और हिसार के निजी अस्पताल ले गए। लोग विराट को हिसार के आधार अस्पताल और लकी को जिंदल हॉस्पिटल लेकर पहुंचे थे। वहां दोनों को मृत घोषित कर दिया गया। वहां से अब बच्चों के शवों को सरकारी अस्पताल ले जाया जाएगा, जहां उनका पोस्टमॉर्टम किया जाएगा। बताया जाता है कि विराट के पिता का कुछ साल पहले ही देहांत हो चुका है। ये 2 भाई और एक बहन थे, जिनमें विराट की मृत्यु हो गई। वहीं, लकी अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। उसकी एक एक बहन है। मृतक दोनों बच्चे तीसरी कक्षा में पढ़ते थे। हरियाणा के भिवानी में 2 बच्चों की तालाब में डूबने से मौत हो गई। वे गर्मी से निजात पाने के लिए तालाब में नहाने के लिए गए थे। जब लोगों ने उन्हें तालाब में डूबते देखा तो फौरन बाहर निकाला और हिसार के अस्पताल में लाया गया, जहां डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। यह घटना भिवानी के बवानी खेड़ा के अंतर्गत गांव रतेरा में घटित हुई है। इसमें एक तीसरी लड़की के भी डूबने की आशंका जताई जा रही है, लेकिन इसकी अब तक पुष्टि नहीं हो पाई है। तालाब में खुदाई का काम चल रहा था
ग्रामीणों के अनुसार, रतेरा गांव के 2 बच्चे विराट और लकी (दोनों की उम्र लगभग 9 साल) मंगलवार को घर से निकले थे। वे दोनों साथ में गांव के ही तालाब में नहाने के लिए चले गए। बताया जाता है गांव के तालाब में खुदाई का काम चल रहा था। इस वजह से तालाब में कहीं ऊंचा तो कहीं गड्ढ़े हो गए हैं। इनमें पानी भरा हुआ था तो अंदाजा लगाना मुश्किल था कि कहां गड्ढा है और कहां समतल। दोनों बच्चे दोपहर लगभग 3 बजे घर से निकले थे। जब काफी देर तक बच्चे घर नहीं पहुंचे तो परिजनों ने उन्हें तलाशना शुरू कर दिया। हालांकि, उनका कहीं अता-पता नहीं चला। पशुपालकों ने निकाले शव
इधर, तालाब पर कुछ पशुपालक अपने पशुओं को पानी पिलाने के लिए पहुंचे। उन्होंने देखा कि पानी में कुछ तैर रहा था। उन्होंने तालाब में घुसकर देखा तो सिर दिखाई दिया। इसके बाद ग्रामीणों ने बड़ी मशक्कत के बाद दोनों बच्चों को बाहर निकाला और हिसार के निजी अस्पताल ले गए। लोग विराट को हिसार के आधार अस्पताल और लकी को जिंदल हॉस्पिटल लेकर पहुंचे थे। वहां दोनों को मृत घोषित कर दिया गया। वहां से अब बच्चों के शवों को सरकारी अस्पताल ले जाया जाएगा, जहां उनका पोस्टमॉर्टम किया जाएगा। बताया जाता है कि विराट के पिता का कुछ साल पहले ही देहांत हो चुका है। ये 2 भाई और एक बहन थे, जिनमें विराट की मृत्यु हो गई। वहीं, लकी अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। उसकी एक एक बहन है। मृतक दोनों बच्चे तीसरी कक्षा में पढ़ते थे। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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रोजाना 30 सिगरेट पीते थे भूपेंद्र हुड्डा:डिप्टी PM देवीलाल को हराया; CM बने तो बेटे को अमेरिका से बुलाकर सांसद बनवाया 27 फरवरी 2005, हरियाणा विधानसभा चुनाव के वोट गिने गए। कांग्रेस ने 90 में 67 सीटें जीत लीं। ओमप्रकाश चौटाला की सत्ताधारी पार्टी इनेलो 9 सीटों पर सिमट गई। 9 साल बाद कांग्रेस की वापसी हुई। अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चार बड़े दावेदार थे- तीन बार मुख्यमंत्री रहे चौधरी भजनलाल, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मुख्यमंत्री चौटाला को हराने वाले रणदीप सुरजेवाला और उचाना कलां से विधायक बीरेंद्र सिंह। वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1 मार्च 2005 को सीएम के नाम पर रायशुमारी के लिए दिल्ली से तीन ऑब्जर्वर- कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी, राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री पीएम सईद हरियाणा पहुंचे। चंड़ीगढ़ में बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के विधायकों और प्रदेश के सांसदों से नए मुख्यमंत्री को लेकर वन टु वन सवाल-जवाब हुए। बैठक में भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन और कुलदीप भी मौजूद थे। तब चंद्रमोहन विधायक और कुलदीप सांसद थे। बैठक के बाद ऑब्जर्वर्स ने कहा- ‘कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुख्यमंत्री पर अंतिम फैसला लेंगी।’ अगले दिन यानी, 2 मार्च को सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंपी गई। 3 मार्च को सोनिया और ऑब्जर्वर्स के बीच लंबी बैठक हुई। 4 मार्च 2005, दिल्ली के पार्लियामेंट अनेक्सी में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के 67 विधायकों में से 47 बैठक में शामिल हुए। भजनलाल सहित उनके समर्थक 20 विधायक नहीं पहुंचे। 90 मिनट चली बैठक के बाद जर्नादन द्विवेदी ने ऐलान किया- कल शाम 5:30 बजे भूपेंद्र हुड्डा राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।’ 5 मार्च 2005 को हुड्डा हरियाणा के 9वें मुख्यमंत्री बन गए। हुड्डा लगातार 2 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री और 4 बार सांसद रहे। उनके पिता रणबीर हुड्डा 3 बार सांसद और एक बार हरियाणा सरकार में मंत्री रहे। भूपेंद्र के बेटे दीपेंद्र हुड्डा चौथी बार लोकसभा पहुंचे हैं। आज हुड्डा परिवार की तीसरी पीढ़ी राजनीति में है। हरियाणा के ताकतवर राजनीतिक परिवारों की सीरीज ‘परिवार राज’ के छठे एपिसोड में पढ़िए हुड्डा कुनबे की कहानी… जुलाई 1947, आजादी की तारीख तय हो चुकी थी। अलग-अलग जेलों में बंद नेताओं को छोड़ा जा रहा था। इस दौरान दिल्ली से 81 किलोमीटर दूर रोहतक के सांघी गांव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक संदेश आया- ‘गांधीवादी नेता रणबीर सिंह को देश की संविधान सभा में भेजा जा रहा है।’ 26 नवंबर 1914, को रोहतक में जन्मे रणबीर सिंह माता-पिता की तीसरी संतान थे। पिता चौधरी मातूराम राजनीति में सक्रिय थे। वे रोहतक में कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे आर्य समाज में शामिल होने वाले शुरुआती लोगों में शामिल थे। रणबीर के बचपन और शिक्षा पर भी आर्य समाज का प्रभाव था। 1937 में दिल्ली के रामजस कॉलेज से बीए पास करने के बाद वे सोच में पड़ गए कि नौकरी करें, वकालत करें या फिर खेती-बाड़ी। फिर सबकुछ छोड़कर वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। महात्मा गांधी का संयुक्त पंजाब में दौरा हुआ तो रणबीर उनसे जुड़ गए। उन्हें तीन साल जेल की सजा हुई। दो साल तक नजरबंद रखा गया। वे रोहतक, अंबाला, हिसार, फिरोजपुर, लाहौर, मुल्तान और सियालकोट की जेलों में कैद रहे। आजादी के बाद हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात यानी मेव बाहुल्य इलाकों में दंगे शुरू हो गए। बताया जाता है कि मेव जाति के लोग मूल रूप से राजपूत, जाट, अहीर और मीणा जाति के थे, लेकिन 12वीं सदी के बीच उन्होंने इस्लाम अपना लिया। दंगों की वजह से मेव समुदाय के लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया। पंजाब विधानसभा के सदस्य और मेवात के रहने वाले चौधरी यासीन खान मेवातियों के इस फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने इसकी जानकारी चौधरी रणबीर सिंह को दी। रणबीर सिंह, यासीन को लेकर महात्मा गांधी के पास पहुंचे। 19 दिसंबर 1947 को गांधी उनके साथ मेवात पहुंचे। गांधी ने कहा- ‘मेव कौम हिंदुस्तान के रीढ़ की हड्डी है। किसी से डरना नहीं है। आज से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।’ गांधी की अपील का असर हुआ और लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला बदल लिया। हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात एरिया में आज भी मेव समुदाय की बड़ी आबादी है। इन इलाकों में रणबीर सिंह का मजबूत प्रभाव था। 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। रणबीर रोहतक से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1957 में वे दूसरी बार रोहतक से चुने गए। इसके बाद 1962 में वे संयुक्त पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए। उन्हें प्रताप सिंह कैरों सरकार में बिजली, सिंचाई, पीडब्ल्यूडी और स्वास्थ्य जैसे महकमों की जिम्मेदारी दी गई। भाखड़ा-नांगल पावर प्रोजेक्ट में उनका अहम योगदान रहा। इंदिरा की पसंद होने के बाद भी सीएम नहीं बन पाए रणबीर सिंह 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। मुख्यमंत्री पद के लिए तीन दावेदार थे- रणबीर सिंह, भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंद्र सिंह। रणबीर सिंह अपनी आत्मकथा ‘स्वराज के स्वर’ में लिखते हैं- ‘लोग मेरे पास आए और कहने लगे, ‘आप कैसे बैठे हैं? आप सबसे ज्यादा तर्जुबेकार हैं। पंजाब में सीनियर मंत्री रहे हैं। आपसे ज्यादा योग्य यहां कौन है? मैंने जवाब दिया- सब योग्य हैं। मैंने आज-तक सत्ता के लिए भागदौड़ नहीं की। अब क्यों करूं?’ रणबीर लिखते हैं- ‘मैं सब कुछ तटस्थ भाव से देखता रहा। इंदिरा गांधी मेरी वरिष्ठता और देश के लिए जो कुछ भी मैंने किया था, उसे देखते हुए मुझे मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं। उस वक्त गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे। वह पंजाब-हरियाणा के मामलों को देख रहे थे। इंदिरा उनकी बात सुन लेती थीं। उन्होंने भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बनाने में पूरा जोर लगा दिया।’ इस तरह भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले सीएम बने और रणबीर सिंह कैबिनेट मंत्री। तब रणबीर सिंह 52 साल के थे। उन्हें लगने लगा था कि वे ज्यादा दिन राजनीति नहीं कर पाएंगे। बड़े बेटे को चुनाव में उतारा, लेकिन जीत नहीं दिला सके साल 1972, कांग्रेस में दो फाड़ हो चुका था। कांग्रेस (आर) यानी इंदिरा का गुट और कांग्रेस (ओ) यानी सिंडिकेट नेताओं का गुट। तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। रणबीर ने बड़े बेटे प्रताप सिंह को कांग्रेस (आर) के टिकट पर रोहतक जिले की किलोई सीट से चुनाव में उतारा, लेकिन वे हार गए। कुछ ही सालों बाद उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। इधर, छोटे बेटे भूपेंद्र वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहतक कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे थे। वे कॉलेज के वक्त ही कांग्रेस से जुड़ गए थे। राजीव गांधी ने लिस्ट में भूपेंद्र हुड्डा का नाम लिखा, भजनलाल ने कटवा दिया साल 1982, भारत एशियाई खेलों की मेजबानी कर रहा था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी जिम्मेदारी राजीव गांधी को सौंपी थी। उसी साल हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होने थे। सूबे की कमान चौधरी भजनलाल के हाथों में थी। राजीव गांधी ने हरियाणा से 10-12 युवा नेताओं की लिस्ट तैयार की। इसमें भूपेंद्र हुड्डा का भी नाम था। इसके बारे में भजनलाल को पता चला, तो उन्होंने कांग्रेस नेता सीताराम केसरी से कहकर लिस्ट से हुड्डा का नाम हटवा दिया। राजीव के पास दोबारा लिस्ट आई। उन्होंने फिर से हुड्डा का नाम जुड़वा दिया। विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा किलोई सीट से उतरे। राजीव ने उनके समर्थन में रैली की, लेकिन वे हार गए। 1987 में उन्हें दोबारा किलोई से टिकट मिला। फिर से हुड्डा हार गए। हुड्डा एक इंटरव्यू में बताते हैं- ‘चौधरी भजनलाल को मेरे पिता के सपोर्ट से पहली बार टिकट मिला था, लेकिन मेरी बारी आई तो मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अड़चनें खड़ी कीं। पॉलिटिकल बैकग्राउंड का मुझे फायदा मिला। दादा और पिता की गांधी परिवार से नजदीकियां रहीं। इसलिए 1982 में हारने के बाद भी 1987 मुझे टिकट दिया गया।’ 1991 में पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल को हराकर जायंट किलर बने भूपेंद्र हुड्डा वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1991 में लोकसभा के साथ ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। भूपेंद्र हुड्डा लगातार तीसरी बार किलोई से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। इस सीट पर भजनलाल के करीबी कृष्णमूर्ति हुड्डा भी दावेदारी जता रहे थे। भूपेंद्र हुड्डा के ममेरे भाई और राजीव गांधी के करीबी बीरेंद्र सिंह तब टिकट वितरण में अहम भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने हुड्डा को विधानसभा की बजाय लोकसभा चुनाव लड़ने की सलाह दी। उन्हें रोहतक से टिकट मिला। यहां उनका मुकाबला पूर्व उप प्रधानमंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके चौधरी देवीलाल से था। हुड्डा करीब 30 हजार वोटों से चुनाव जीत गए। देवीलाल को हराना बहुत बड़ी बात थी। इसके बाद हुड्डा जाइंट किलर कहलाने लगे। इसके बाद 1996 और 1998 में भी हुड्डा ने देवीलाल को हराकर हैट्रिक लगाई, लेकिन 1999 में वे देवीलाल की पार्टी INLD के उम्मीदवार इंदर सिंह से हार गए। उस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हरियाणा में खाता नहीं खोल पाई थी। भजनलाल की रैली में हुड्डा के साथ धक्का-मुक्की, कुर्ता भी फट गया साल 1997, प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद भूपेंद्र हुड्डा ने गोहाना में जनसभा की। उसमें भजनलाल भी शामिल हुए, लेकिन उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया। भजनलाल को काफी ठेस पहुंची। इसके बाद दोनों के अनबन की खबरें खुलकर सामने आने लगीं। कांग्रेस आलाकमान ने फरमान जारी किया कि प्रदेश में कांग्रेस के कार्यक्रमों की अध्यक्षता हुड्डा ही करेंगे। भजनलाल को भी पार्टी के कार्यक्रमों में हुड्डा को अध्यक्षता करने के लिए बुलाना होगा। साथ ही एक पर्यवेक्षक भी रखना होगा, ताकि कोई गड़बड़ी नहीं हो। करीब चार साल बाद। साल 2001, भजनलाल ने भिवानी के किरोड़ीमल पार्क में चौटाला सरकार के खिलाफ एक रैली रखी। भूपेंद्र हुड्डा को इस रैली की अध्यक्षता करनी थी। सुनियोजित तरीके से आगे की 300-400 कुर्सियों पर भजनलाल खेमे के कार्यकर्ताओं को बैठाया गया। थोड़ी देर बाद हुड्डा अपने समर्थकों के साथ मंच पर पहुंचे। हुड्डा ने जैसे ही बोलना शुरू किया भजनलाल समर्थक नारेबाजी करने लगे। जबरदस्त हूटिंग शुरू हो गई। हुड्डा का बोलना मुश्किल हो गया। उनके साथ धक्का-मुक्की भी हुई, जिसमें उनका कुर्ता फट गया। बड़ी मुश्किल से वे रैली से बचकर निकले। चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया, मुख्यमंत्री बने हुड्डा 2005 विधानसभा चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया। भूपेंद्र टिकट बंटवारे की स्क्रीनिंग कमेटी में भी नहीं थे। भजनलाल ने अपने करीबियों को टिकट दिलवाए। कांग्रेस ने 67 सीटें जीतीं। भजनलाल को उम्मीद थी कि वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे। विधायकों को साधने के लिए उन्होंने अपने बेटे कुलदीप को लगा रखा था, लेकिन विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर आम सहमति नहीं बन पाई। तय हुआ कि आलाकमान मुख्यमंत्री पद का फैसला करेगा। यहां भूपेंद्र हुड्डा के सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल से संबंध बहुत काम आए। 3 मार्च को भजनलाल को संदेश मिला कि आलाकमान ने भूपेंद्र हुड्डा को सीएम बनाने का फैसला किया है। बदले में उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनने, छोटे बेटे को केंद्रीय मंत्री और बड़े बेटे को डिप्टी सीएम बनाने का ऑफर दिया गया। भजनलाल अड़ गए। उन्होंने दावा किया कि 37 विधायक उनके साथ हैं। अगर किसी और को सीएम बनाया जाता है, तो तीन महीने के अंदर वे सरकार गिरा देंगे। उनके समर्थकों ने दिल्ली में हंगामा भी किया, लेकिन अहमद पटेल सोनिया गांधी को ये समझाने में कामयाब रहे कि अगर इस समय वे झुक गईं तो पार्टी पर उनकी पकड़ कमजोर हो जाएगी। बाकी राज्यों में भी बगावत हो सकती है। इधर चौधरी भजनलाल सारे दांवपेच आजमा चुके थे। आखिर में उन्होंने भी इस फैसले को मान लिया। उनके बड़े बेटे चंद्रमोहन को डिप्टी सीएम बनाया गया। कभी चेन स्मोकर थे हुड्डा, रोज 30 सिगरेट पी जाते थे 2023 में एक मीडिया इंटरव्यू में हुड्डा ने बताया- ‘कॉलेज के दिनों की बात है। मुझे सिगरेट पीने की लत लगी। एक पैकेट में 20 सिगरेट आती थीं। मैं रोज के डेढ़ पैकेट पीता था। एक दिन मैं चंडीगढ़ जा रहा था। तब मैं सीएम था। उस दिन पिता सैर करके वापस आ रहे थे। उन्होंने मुझे देखा तो मेरी गाड़ी रुकवाई। मैंने उन्हें नमस्ते किया, पैर छुए। उन्होंने मुझसे एक ही बात कही कि ‘भूपेंद्र सिगरेट छोड़ दे, नहीं तो मैं सत्याग्रह कर दूंगा। उनकी बात सुनकर मुझे काफी तकलीफ हुई। मेरे बड़े भाई भी स्मोक करते थे। उन्हें गले में कैंसर हो गया था। उसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई। पिता के दिमाग में यही बात चलती थी कि कहीं मेरे साथ ऐसा ना हो जाए। उस दिन के बाद मैंने कभी सिगरेट नहीं पी।’ मुख्यमंत्री बनते ही हुड्डा ने इकलौते बेटे को सौंपी विरासत भूपेंद्र हुड्डा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद बेटे दीपेंद्र हुड्डा को अमेरिका में मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छुड़वाकर रोहतक लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़वाया। दीपेंद्र आसानी से चुनाव जीत गए। इसके बाद भूपेंद्र हुड्डा ने अपने विरोधी नेताओं को एक-एक कर निपटाना शुरू कर दिया। 2007 में भजनलाल और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई को पार्टी से निकाल दिया गया। हालांकि, भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन 2008 तक डिप्टी सीएम बने रहे। भजनलाल के अलग होते ही हुड्डा की कांग्रेस हाईकमान पर पकड़ और मजबूत हो गई। उस वक्त कांग्रेस आलाकमान के दरबार में अहमद पटेल, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, अशोक गहलोत जैसे नेताओं की तूती बोलती थी। 2010 में राहुल गांधी ने युवा नेताओं की एक अलग टीम बनाई, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता शामिल थे। 2014 के बाद सीनियर नेता साइड लाइन होते चले गए। ऐसे में भूपेंद्र हुड्डा ने सांसद बेटे दीपेंद्र के जरिए गांधी परिवार में अपना दबदबा बरकरार रखा। दीपेंद्र राहुल गांधी ही नहीं, बल्कि प्रियंका गांधी के भी भरोसेमंद बन गए। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी लहर के बावजूद वे अपनी रोहतक सीट को बचाने में कामयाब रहे। राजस्थान के बड़े राजनीतिक घराने की बेटी हैं दीपेंद्र की पत्नी श्वेता दीपेंद्र हुड्डा की पहली शादी गीता ग्रेवाल से हुई थी, 2005 में उनका तलाक हो गया। उसके बाद हुड्डा ने राजस्थान के दिग्गज जाट नेता और पांच बार सांसद रहे नाथूराम मिर्धा की पोती श्वेता से शादी की। श्वेता राजनीति से दूर हैं, लेकिन उनकी बहन ज्योति मिर्धा राजस्थान की नागौर सीट से सांसद रह चुकी हैं। उन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव नागौर सीट से बीजेपी के टिकट पर लड़ा, लेकिन हार गईं। उनके दादा इसी सीट से पांच बार सांसद रहे थे। किरण चौधरी का टिकट कटा, आरोप लगा हुड्डा पर पूर्व सीएम बंसीलाल चौधरी की बहू किरण चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से अपनी बेटी श्रुति चौधरी के लिए टिकट मांग रही थीं। उनकी बेटी इस सीट पर सांसद भी रह चुकी हैं, लेकिन पार्टी ने श्रुति का टिकट काटकर हुड्डा के खास महेंद्रगढ़ से विधायक राव दान सिंह को दे दिया। किरण नाराज हो गईं और चुनाव प्रचार से दूरी बना लीं। राव दान सिंह चुनाव हार गए। कुछ ही दिनों बाद किरण, बेटी के साथ बीजेपी में शामिल हो गईं। ‘परिवार राज सीरीज’ की ये स्टोरीज भी पढ़िए… 1. देवीलाल ने राज्यपाल को तमाचा जड़ दिया था:खुद डिप्टी PM, बेटा 5 बार CM; बोले-अपनों को न बनाऊं, तो क्या 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भिवानी में रात को हुई भारी बारिश:श्हार में जगह- जगह जलभराव; लोगों की बढ़ी परेशानी, किसानों के चेहरे खिले
भिवानी में रात को हुई भारी बारिश:श्हार में जगह- जगह जलभराव; लोगों की बढ़ी परेशानी, किसानों के चेहरे खिले हरियाणा के भिवानी में बुधवार देर रात को जमकर बारिश हुई। बारिश से शहर जलमग्न हो गया। बारिश का पानी घरों, दुकानों में घुस गया। जिस कारण फर्नीचर, राशन आदि का सामन खराब होने से काफी नुकसान भी हुआ है। बरसाती पानी निकासी प्रबंध धराशाही होते नजर आए। घरों, दुकानों, स्कूल व अन्य संस्थानों में पानी घुसने से मुसीबत बनी हुई हैं। शहर के अनेक हिस्सों में बिजली गुल होने से लोगों को परेशानी हुई। बारिश से उमेश भरी गर्मी से भी आमजन को राहत मिली है तो किसानों के चेहरे भी खिल उठे हैं। भिवानी जिले में बुधवार देर रात करीब एक बजे से बारिश शुरू हुई। यह बारिश करीब एक घंटे तक बारिश हुई। बारिश से शहर के मुख्य मार्ग जलमग्न हो गए तो अनेक क्षेत्रों में घरों व दुकानों में पानी घुस गया। प्रशासन के जल निकासी के नाकाम प्रबंधों ने मुसीबत पैदा कर दी है। शहरी क्षेत्रों में बारिश का पानी जमा होने से लोगों की सामान्य दिनचर्या प्रभावित हुई। स्कूली बच्चों व महिलाओं को परेशानी का सामना करना पड़ा। सर्कुलर रोड पर पानी में रात को रेंगते रहे वाहन भिवानी के सर्कुलर रोड पर पानी जमा होने से वाहन रात को रेंगते नजर आए। दिनोद गेट, बावड़ी गेट, रोहतक गेट, बीटीएम चौक पर सबसे अधिक पानी भरा रहा। जिस कारण यातायात व्यवस्था प्रभावित हुई। ये कालोनियां हुई जलमग्न शिव नगर कालोनी, जोगी वाला मंदिर, हालू बाजार, घोसियान चौक,विकास नगर, दिनोद पुलिस चौकी, हालू मोहल्ला, हनुमान गेट, जैन चौक आदि में जलभराव होने से लोगों को मुसीबत झेलनी पड़ी।
हरियाणा चुनाव में खाप पॉलिटिक्स:निर्दलीय को समर्थन देकर पूर्व CM चौटाला को हराया था, इस बार 4 उम्मीदवार
हरियाणा चुनाव में खाप पॉलिटिक्स:निर्दलीय को समर्थन देकर पूर्व CM चौटाला को हराया था, इस बार 4 उम्मीदवार हरियाणा के विधानसभा चुनाव में खाप पॉलिटिक्स की चर्चा तेज है। इसका कारण खापों के 4 बड़े चेहरे चुनावी मैदान में होना है। खाप पॉलिटिक्स की चर्चा इसलिए भी अहम है कि राज्य में खापों का सामाजिक से लेकर राजनीतिक फैसलों में गहरा नाता रहा है। चाहे बात किसान आंदोलन की हो या फिर खिलाड़ियों के विरोध-प्रदर्शन की। इन दोनों ही घटनाक्रम में खापों ने अहम रोल निभाया था। ऐसे में इस बार खाप से जुड़े बड़े चेहरे चुनावी रण में उतरकर अपना भाग्य आजमा रहे हैं। अहलावत खाप से जुड़ीं सोनू अहलावत को आम आदमी पार्टी (AAP) ने झज्जर की बेरी सीट से टिकट दी है। वहीं, पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के खिलाफ उचाना कलां सीट पर 66 गांवों के प्रतिनिधियों की बैठक के बाद खाप ने आजाद पालवा को उतारा है। इसी तरह बेरी सीट पर ही अहलावत खाप से जुड़े अमित अहलावत भी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। साथ ही 360 महरौली के प्रमुख गोवर्धन सिंह भी इसी सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। बेरी में कांग्रेस-बीजेपी दोनों के लिए खतरा
बेरी सीट पर कुल वोटर्स की संख्या 1,82,798 है। जाट बाहुल्य इस सीट पर कांग्रेस ने कद्दावर नेता और 6 बार के विधायक रघुबीर कादियान को फिर से चुनाव मैदान में उतारा हैं। वहीं बीजेपी ने संजय कबलाना के रूप में नया चेहरा दिया है। जेजेपी ने इस सीट पर सुनील दुजाना को टिकट दी हैं। तीनों ही नेता जाट हैं। वहीं खाप की तरफ से ताल्लुक रखने वाले अमित अहलावत, आप कैंडिडेट सोनू अहलावत और गोवर्धन सिंह भी जाट ही हैं। यहां बीजेपी और कांग्रेस में सीधा मुकाबला माना जा रहा है, लेकिन खाप उम्मीदवारों के आने से कांग्रेस के लिए कुछ मुश्किल हो सकती है। अब पढ़िए खापों की पॉलिटिक्स हरियाणा में कितनी असरदार है? खाप का इतिहास और उनके विवादित फैसले 2014 में कांग्रेस को दिया था समर्थन
हरियाणा की राजनीति में खाप और डेरे का फैक्टर हमेशा से हावी रहा है। 2014 से पहले डेरे और खाप के समर्थन को एक तरह से जीत की गारंटी माना जाता था, लेकिन 2014 में कई बड़े चेहरों की हार के बाद सवाल भी खड़े होने लगे। उस वक्त खापों ने कांग्रेस का समर्थन किया था, लेकिन राज्य में कांग्रेस की सरकार नहीं बन पाई। इतना ही नहीं उस वक्त गठवाला के चौधरी बलजीत सिंह और खाप से जुड़ीं संतोष दहिया चुनाव हार गईं थीं। हालांकि 2019 के चुनाव में खाप का राज्य में बड़ा असर देखने को मिला। चरखी-दादरी सीट से सांगवान खाप के प्रमुख सोमबीर सांगवान ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा और भाजपा उम्मीदवार दंगल गर्ल बबीता फोगाट को हरा दिया था। जून महीने में हुए लोकसभा चुनाव में भी खाप का असर देखने को मिला। 2019 में राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटें जीतने वाली बीजेपी इस बार 5 सीटों पर आकर सिमट गई। बीजेपी की पांच सीटों पर हुई हार के पीछे भी खाप फैक्टर को ही माना गया। क्योंकि खापों ने बीजेपी उम्मीदवारों को हराने का लोकसभा चुनाव में ऐलान किया था। हरियाणा में ज्यादातर खापें जाट समाज से जुड़े हुई हैं और जाटों की बीजेपी से पहले ही नाराजगी बनी हुई थी। कई बार सरकारें भी घुटने टेकने को मजबूर हुईं
जातीय गोलबंदी की तरह काम करने वाली खापों का सियासी रसूख हरियाणा में बड़ा रहा है। कई बार इनके फैसलों के आगे सरकारें तक झुकने को मजबूर हुईं। हालांकि साल 2014 के बाद हरियाणा में खापों का असर कमजोर होने की बातें भी होती रही हैं, लेकिन हकीकत ये है कि आज भी खापों के निर्णय को राज्य के कुछ इलाकों में अंतिम निर्णय माना जाता हैं। खाप के समर्थन से दांगी ने चौटाला को हरा दिया था
वर्ष 1989 की बात है। केंद्र में वीपी सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद देवीलाल को उपप्रधानमंत्री बनाया गया। उस वक्त देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे और रोहतक की महम सीट से विधायक थे। सीएम की कुर्सी छोड़ने से पहले देवीलाल महम चौबीसी खाप के समर्थन से ना केवल चुनाव लड़ते बल्कि जीतते भी आए थे। देवीलाल के दिल्ली में शिफ्ट होने के बाद प्रदेश की सिसायत की कमान उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला के हाथ में आई। उस समय ओमप्रकाश चौटाला राज्यसभा सांसद थे। CM बने रहने के लिए 6 महीने के भीतर उन्हें विधायक बनना था। देवीवाल के इस्तीफा देने के बाद महम सीट पर उपचुनाव हुआ। ओमप्रकाश चौटाला चुनाव लड़े, लेकिन तब खाप ने चौटाला के खिलाफ चुनाव में उतरे आनंद सिंह दांगी को समर्थन दे दिया। जिसके बाद कई बार हिंसा के चलते उपचुनाव संपन्न नहीं हो पाया। आखिर में ओपी चौटाला ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। बाद में फिर से इस सीट पर चुनाव कराया गया। चौटाला दोबारा चुनाव लड़े, लेकिन खाप के समर्थन से आनंद सिंह दांगी ने चौटाला को हरा दिया। खाप पंचायत के इस फैसले की चर्चा आज भी हरियाणा ही नहीं, बल्कि देशभर में होती है। खिलाड़ियों के मामले में खापों की एंट्री के बाद एक्शन में आई सरकार
पिछले साल 2023 में हरियाणा के नामी पहलवान बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट, साक्षी मलिक ने भारतीय कुश्ती संग (WFI) के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाते हुए दिल्ली में प्रदर्शन किया था। 2023 में अप्रैल महीने में जब दोबारा से खिलाड़ी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ धरने पर बैठे तो खाप पंचायतों ने भी खिलाड़ियों का समर्थन कर दिया था। जंतर-मंतर पर हुई खापों की पंचायत में केंद्र सरकार को 9 जून तक प्रदर्शनकारी खिलाड़ियों से बातचीत करने का अल्टीमेटम दिया था। इसका असर ये हुआ है कि अल्टीमेटम से एक सप्ताह पहले ही प्रदर्शन कर रहे खिलाड़ियों के पास गृहमंत्री से बातचीत का बुलावा आ गया था। अब पढ़िए खाप क्या है… एक गोत्र या बिरादरी के सदस्यों का समूह
कनाडा में प्रोफेसर रहे एमसी प्रधान ‘द जर्नल ऑफ एशियन स्टडीज’ किताब के पेज नंबर 664 में खाप के बारे में बताते हैं। ‘खाप’ एक गोत्र या जाति बिरादरी के सदस्यों का समूह होता है। इनमें एक क्षेत्र या कुछ गांव के उस जाति से जुड़े लोग शामिल होते हैं। उस जाति के बुजुर्ग और दबंग लोग इन खाप का नेतृत्व करते हैं। इन खापों के प्रधान एक परिवार या वंश के ही लोग होते हैं। जो शख्स इस समय किसी खाप का प्रधान है आने वाले समय में उसका बेटा उस खाप का प्रधान बनता है। जब किसी मुद्दे पर सार्वजनिक फैसला लेने के लिए किसी खाप के प्रधान सभा बुलाते हैं तो इसे खाप पंचायत कहते हैं। खाप प्रधान को चुनने के लिए कोई तय स्ट्रक्चर या नियम नहीं होते हैं। कई बार खाप प्रधान के पद पर एक ही परिवार या वंश के दो या ज्यादा लोग भी दावा करते हैं। करीब 600 साल पहले शुरुआत, कई दस्तावेजों में जिक्र
पंजाब यूनिवर्सिटी की सीनियर रिसर्चर रितिका ठाकुर के मुताबिक खाप की शुरुआत 14वीं सदी के दौरान हुई थी। इसके अलावा कानूनी कागजों में खाप शब्द का प्रयोग पहली बार 1890-91 में जोधपुर की जनगणना रिपोर्ट में किया गया था, जो धर्म और जाति पर आधारित थी। कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि ‘खाप’ शब्द संभवतः ‘शक’ भाषा के खतप से लिया गया है, जिसका अर्थ है एक विशेष कबीले द्वारा बसा हुआ क्षेत्र। सबसे पहले खाप का नाम क्या था, ये हमारे रिसर्च में पता नहीं चला। हालांकि कुछ रिसर्च पेपर में इसका जिक्र है कि पहली खाप से 84 गांवों के लोग जुड़े थे। 1950 में पश्चिमी UP के मुजफ्फरनगर जिले के सोरेम में हुई खाप पंचायत का जिक्र कई रिसर्च पेपर में मिलता है। आजादी के बाद हुई इस सर्वखाप पंचायत के प्रधान बीनरा निवास गांव के चौधरी जवान सिंह गुर्जर थे। इस खाप पंचायत में पुनियाला गांव के ठाकुर यशपाल सिंह उपप्रधान थे, जबकि सोरेम गांव के चौधरी काबुल सिंह इसके मंत्री थे। जिन तीन लोगों के नेतृत्व में इस पंचायत का आयोजन हुआ उनमें चौधरी काबुल सिंह एकमात्र जाट थे। हालांकि पिछले कुछ सालों में जाटों का दबदबा खाप पंचायतों में बढ़ा है, इसीलिए कई बार खाप पंचायतों को सीधे जाटों से जोड़ दिया जाता है। खाप पंचायतों के 4 विवादित फैसले… 1. रेप रोकने के लिए 15 साल की उम्र में शादी कर दी जाए
जुलाई 2010 में हरियाणा की सर्वखाप जाट पंचायत ने कहा कि लड़कियों की शादी के लिए उनके बालिग होने का इंतजार नहीं करना है। उनकी शादी अब 15 साल में ही कर देनी है। रेप की घटनाओं में हो रही बढ़ोतरी पर अंकुश लगाने के लिए यह आदेश जारी किया गया था। 2. लड़कियों को जींस पहनने से मना किया
अगस्त 2014 में मुजफ्फरनगर के सोरम गांव में हुई एक खाप पंचायत ने लड़कियों के जींस पहनने, उनके फोन और इंटरनेट यूज करने पर बैन लगाया था। कुछ लड़कियों के घर से भागने के बाद समाधान के रूप में यह ऐलान किया गया था। 3. भाई की सजा बहनों को दे दी
अगस्त 2015 में बागपत में एक खाप पंचायत ने दो बहनों के साथ रेप करने और उन्हें निर्वस्त्र करके गांव में घुमाने का आदेश जारी किया था। उन्हें उनके भाई के अपराध की सजा दी जानी थी। उनका भाई एक ऊंची जाति की महिला के साथ भाग गया था। खाप पंचायत के इस आदेश के बाद ब्रिटिश संसद तक में मांग उठी कि आरोपी की 23 और 15 साल की बहनों को सुरक्षा दी जाए। 4. परंपराओं में हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं
फरवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने खाप से जुड़े एक मामले में कहा था कि दो रजामंद वयस्कों को अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार है। खाप पंचायत किसी वयस्क को अंतरजातीय विवाह करने से रोक नहीं सकती। इससे नाराज होकर नरेश टिकैत ने कहा- अगर हमारी परंपराओं में हस्तक्षेप किया गया तो उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। अगर इस तरह के आदेश पारित होते हैं तो हम न तो लड़कियां पैदा करेंगे और न ही लड़कियों को पैदा होने देंगे। हरियाणा में 120 से ज्यादा खापें
हरियाणा में जाट बड़ा वोट बैंक हैं। जाटों की आबादी 25% से अधिक है। जाट बाहुल्य राज्य होने से खाप भी इसकी पहचान से जुड़ी हुई हैं। प्रदेश में वर्तमान में 120 से ज्यादा खापें हैं। जिनमें सर्वखाप, महम चौबीसी, फोगाट खाप, सांगवान खाप, श्योराण, धनखड़, सतगामा, हवेली, मलिक, जाखड़, हुड्डा, कंडेला, बिनैन, गठवाला मलिक आदि प्रमुख हैं। कंडेला खाप के प्रमुख धर्मपाल कंडेला हैं तो वहीं सातबास खाप के बलवान सिंह मलिक। खाप पॉलिटिक्स में फोगाट खाप के प्रमुख बलवंत नंबरदार, सांगवान खाप के सोमवीर सांगवान भी बड़ा चेहरा हैं।