27 फरवरी 2005, हरियाणा विधानसभा चुनाव के वोट गिने गए। कांग्रेस ने 90 में 67 सीटें जीत लीं। ओमप्रकाश चौटाला की सत्ताधारी पार्टी इनेलो 9 सीटों पर सिमट गई। 9 साल बाद कांग्रेस की वापसी हुई। अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चार बड़े दावेदार थे- तीन बार मुख्यमंत्री रहे चौधरी भजनलाल, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मुख्यमंत्री चौटाला को हराने वाले रणदीप सुरजेवाला और उचाना कलां से विधायक बीरेंद्र सिंह। वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1 मार्च 2005 को सीएम के नाम पर रायशुमारी के लिए दिल्ली से तीन ऑब्जर्वर- कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी, राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री पीएम सईद हरियाणा पहुंचे। चंड़ीगढ़ में बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के विधायकों और प्रदेश के सांसदों से नए मुख्यमंत्री को लेकर वन टु वन सवाल-जवाब हुए। बैठक में भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन और कुलदीप भी मौजूद थे। तब चंद्रमोहन विधायक और कुलदीप सांसद थे। बैठक के बाद ऑब्जर्वर्स ने कहा- ‘कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुख्यमंत्री पर अंतिम फैसला लेंगी।’ अगले दिन यानी, 2 मार्च को सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंपी गई। 3 मार्च को सोनिया और ऑब्जर्वर्स के बीच लंबी बैठक हुई। 4 मार्च 2005, दिल्ली के पार्लियामेंट अनेक्सी में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के 67 विधायकों में से 47 बैठक में शामिल हुए। भजनलाल सहित उनके समर्थक 20 विधायक नहीं पहुंचे। 90 मिनट चली बैठक के बाद जर्नादन द्विवेदी ने ऐलान किया- कल शाम 5:30 बजे भूपेंद्र हुड्डा राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।’ 5 मार्च 2005 को हुड्डा हरियाणा के 9वें मुख्यमंत्री बन गए। हुड्डा लगातार 2 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री और 4 बार सांसद रहे। उनके पिता रणबीर हुड्डा 3 बार सांसद और एक बार हरियाणा सरकार में मंत्री रहे। भूपेंद्र के बेटे दीपेंद्र हुड्डा चौथी बार लोकसभा पहुंचे हैं। आज हुड्डा परिवार की तीसरी पीढ़ी राजनीति में है। हरियाणा के ताकतवर राजनीतिक परिवारों की सीरीज ‘परिवार राज’ के छठे एपिसोड में पढ़िए हुड्डा कुनबे की कहानी… जुलाई 1947, आजादी की तारीख तय हो चुकी थी। अलग-अलग जेलों में बंद नेताओं को छोड़ा जा रहा था। इस दौरान दिल्ली से 81 किलोमीटर दूर रोहतक के सांघी गांव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक संदेश आया- ‘गांधीवादी नेता रणबीर सिंह को देश की संविधान सभा में भेजा जा रहा है।’ 26 नवंबर 1914, को रोहतक में जन्मे रणबीर सिंह माता-पिता की तीसरी संतान थे। पिता चौधरी मातूराम राजनीति में सक्रिय थे। वे रोहतक में कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे आर्य समाज में शामिल होने वाले शुरुआती लोगों में शामिल थे। रणबीर के बचपन और शिक्षा पर भी आर्य समाज का प्रभाव था। 1937 में दिल्ली के रामजस कॉलेज से बीए पास करने के बाद वे सोच में पड़ गए कि नौकरी करें, वकालत करें या फिर खेती-बाड़ी। फिर सबकुछ छोड़कर वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। महात्मा गांधी का संयुक्त पंजाब में दौरा हुआ तो रणबीर उनसे जुड़ गए। उन्हें तीन साल जेल की सजा हुई। दो साल तक नजरबंद रखा गया। वे रोहतक, अंबाला, हिसार, फिरोजपुर, लाहौर, मुल्तान और सियालकोट की जेलों में कैद रहे। आजादी के बाद हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात यानी मेव बाहुल्य इलाकों में दंगे शुरू हो गए। बताया जाता है कि मेव जाति के लोग मूल रूप से राजपूत, जाट, अहीर और मीणा जाति के थे, लेकिन 12वीं सदी के बीच उन्होंने इस्लाम अपना लिया। दंगों की वजह से मेव समुदाय के लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया। पंजाब विधानसभा के सदस्य और मेवात के रहने वाले चौधरी यासीन खान मेवातियों के इस फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने इसकी जानकारी चौधरी रणबीर सिंह को दी। रणबीर सिंह, यासीन को लेकर महात्मा गांधी के पास पहुंचे। 19 दिसंबर 1947 को गांधी उनके साथ मेवात पहुंचे। गांधी ने कहा- ‘मेव कौम हिंदुस्तान के रीढ़ की हड्डी है। किसी से डरना नहीं है। आज से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।’ गांधी की अपील का असर हुआ और लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला बदल लिया। हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात एरिया में आज भी मेव समुदाय की बड़ी आबादी है। इन इलाकों में रणबीर सिंह का मजबूत प्रभाव था। 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। रणबीर रोहतक से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1957 में वे दूसरी बार रोहतक से चुने गए। इसके बाद 1962 में वे संयुक्त पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए। उन्हें प्रताप सिंह कैरों सरकार में बिजली, सिंचाई, पीडब्ल्यूडी और स्वास्थ्य जैसे महकमों की जिम्मेदारी दी गई। भाखड़ा-नांगल पावर प्रोजेक्ट में उनका अहम योगदान रहा। इंदिरा की पसंद होने के बाद भी सीएम नहीं बन पाए रणबीर सिंह 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। मुख्यमंत्री पद के लिए तीन दावेदार थे- रणबीर सिंह, भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंद्र सिंह। रणबीर सिंह अपनी आत्मकथा ‘स्वराज के स्वर’ में लिखते हैं- ‘लोग मेरे पास आए और कहने लगे, ‘आप कैसे बैठे हैं? आप सबसे ज्यादा तर्जुबेकार हैं। पंजाब में सीनियर मंत्री रहे हैं। आपसे ज्यादा योग्य यहां कौन है? मैंने जवाब दिया- सब योग्य हैं। मैंने आज-तक सत्ता के लिए भागदौड़ नहीं की। अब क्यों करूं?’ रणबीर लिखते हैं- ‘मैं सब कुछ तटस्थ भाव से देखता रहा। इंदिरा गांधी मेरी वरिष्ठता और देश के लिए जो कुछ भी मैंने किया था, उसे देखते हुए मुझे मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं। उस वक्त गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे। वह पंजाब-हरियाणा के मामलों को देख रहे थे। इंदिरा उनकी बात सुन लेती थीं। उन्होंने भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बनाने में पूरा जोर लगा दिया।’ इस तरह भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले सीएम बने और रणबीर सिंह कैबिनेट मंत्री। तब रणबीर सिंह 52 साल के थे। उन्हें लगने लगा था कि वे ज्यादा दिन राजनीति नहीं कर पाएंगे। बड़े बेटे को चुनाव में उतारा, लेकिन जीत नहीं दिला सके साल 1972, कांग्रेस में दो फाड़ हो चुका था। कांग्रेस (आर) यानी इंदिरा का गुट और कांग्रेस (ओ) यानी सिंडिकेट नेताओं का गुट। तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। रणबीर ने बड़े बेटे प्रताप सिंह को कांग्रेस (आर) के टिकट पर रोहतक जिले की किलोई सीट से चुनाव में उतारा, लेकिन वे हार गए। कुछ ही सालों बाद उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। इधर, छोटे बेटे भूपेंद्र वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहतक कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे थे। वे कॉलेज के वक्त ही कांग्रेस से जुड़ गए थे। राजीव गांधी ने लिस्ट में भूपेंद्र हुड्डा का नाम लिखा, भजनलाल ने कटवा दिया साल 1982, भारत एशियाई खेलों की मेजबानी कर रहा था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी जिम्मेदारी राजीव गांधी को सौंपी थी। उसी साल हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होने थे। सूबे की कमान चौधरी भजनलाल के हाथों में थी। राजीव गांधी ने हरियाणा से 10-12 युवा नेताओं की लिस्ट तैयार की। इसमें भूपेंद्र हुड्डा का भी नाम था। इसके बारे में भजनलाल को पता चला, तो उन्होंने कांग्रेस नेता सीताराम केसरी से कहकर लिस्ट से हुड्डा का नाम हटवा दिया। राजीव के पास दोबारा लिस्ट आई। उन्होंने फिर से हुड्डा का नाम जुड़वा दिया। विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा किलोई सीट से उतरे। राजीव ने उनके समर्थन में रैली की, लेकिन वे हार गए। 1987 में उन्हें दोबारा किलोई से टिकट मिला। फिर से हुड्डा हार गए। हुड्डा एक इंटरव्यू में बताते हैं- ‘चौधरी भजनलाल को मेरे पिता के सपोर्ट से पहली बार टिकट मिला था, लेकिन मेरी बारी आई तो मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अड़चनें खड़ी कीं। पॉलिटिकल बैकग्राउंड का मुझे फायदा मिला। दादा और पिता की गांधी परिवार से नजदीकियां रहीं। इसलिए 1982 में हारने के बाद भी 1987 मुझे टिकट दिया गया।’ 1991 में पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल को हराकर जायंट किलर बने भूपेंद्र हुड्डा वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1991 में लोकसभा के साथ ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। भूपेंद्र हुड्डा लगातार तीसरी बार किलोई से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। इस सीट पर भजनलाल के करीबी कृष्णमूर्ति हुड्डा भी दावेदारी जता रहे थे। भूपेंद्र हुड्डा के ममेरे भाई और राजीव गांधी के करीबी बीरेंद्र सिंह तब टिकट वितरण में अहम भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने हुड्डा को विधानसभा की बजाय लोकसभा चुनाव लड़ने की सलाह दी। उन्हें रोहतक से टिकट मिला। यहां उनका मुकाबला पूर्व उप प्रधानमंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके चौधरी देवीलाल से था। हुड्डा करीब 30 हजार वोटों से चुनाव जीत गए। देवीलाल को हराना बहुत बड़ी बात थी। इसके बाद हुड्डा जाइंट किलर कहलाने लगे। इसके बाद 1996 और 1998 में भी हुड्डा ने देवीलाल को हराकर हैट्रिक लगाई, लेकिन 1999 में वे देवीलाल की पार्टी INLD के उम्मीदवार इंदर सिंह से हार गए। उस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हरियाणा में खाता नहीं खोल पाई थी। भजनलाल की रैली में हुड्डा के साथ धक्का-मुक्की, कुर्ता भी फट गया साल 1997, प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद भूपेंद्र हुड्डा ने गोहाना में जनसभा की। उसमें भजनलाल भी शामिल हुए, लेकिन उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया। भजनलाल को काफी ठेस पहुंची। इसके बाद दोनों के अनबन की खबरें खुलकर सामने आने लगीं। कांग्रेस आलाकमान ने फरमान जारी किया कि प्रदेश में कांग्रेस के कार्यक्रमों की अध्यक्षता हुड्डा ही करेंगे। भजनलाल को भी पार्टी के कार्यक्रमों में हुड्डा को अध्यक्षता करने के लिए बुलाना होगा। साथ ही एक पर्यवेक्षक भी रखना होगा, ताकि कोई गड़बड़ी नहीं हो। करीब चार साल बाद। साल 2001, भजनलाल ने भिवानी के किरोड़ीमल पार्क में चौटाला सरकार के खिलाफ एक रैली रखी। भूपेंद्र हुड्डा को इस रैली की अध्यक्षता करनी थी। सुनियोजित तरीके से आगे की 300-400 कुर्सियों पर भजनलाल खेमे के कार्यकर्ताओं को बैठाया गया। थोड़ी देर बाद हुड्डा अपने समर्थकों के साथ मंच पर पहुंचे। हुड्डा ने जैसे ही बोलना शुरू किया भजनलाल समर्थक नारेबाजी करने लगे। जबरदस्त हूटिंग शुरू हो गई। हुड्डा का बोलना मुश्किल हो गया। उनके साथ धक्का-मुक्की भी हुई, जिसमें उनका कुर्ता फट गया। बड़ी मुश्किल से वे रैली से बचकर निकले। चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया, मुख्यमंत्री बने हुड्डा 2005 विधानसभा चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया। भूपेंद्र टिकट बंटवारे की स्क्रीनिंग कमेटी में भी नहीं थे। भजनलाल ने अपने करीबियों को टिकट दिलवाए। कांग्रेस ने 67 सीटें जीतीं। भजनलाल को उम्मीद थी कि वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे। विधायकों को साधने के लिए उन्होंने अपने बेटे कुलदीप को लगा रखा था, लेकिन विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर आम सहमति नहीं बन पाई। तय हुआ कि आलाकमान मुख्यमंत्री पद का फैसला करेगा। यहां भूपेंद्र हुड्डा के सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल से संबंध बहुत काम आए। 3 मार्च को भजनलाल को संदेश मिला कि आलाकमान ने भूपेंद्र हुड्डा को सीएम बनाने का फैसला किया है। बदले में उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनने, छोटे बेटे को केंद्रीय मंत्री और बड़े बेटे को डिप्टी सीएम बनाने का ऑफर दिया गया। भजनलाल अड़ गए। उन्होंने दावा किया कि 37 विधायक उनके साथ हैं। अगर किसी और को सीएम बनाया जाता है, तो तीन महीने के अंदर वे सरकार गिरा देंगे। उनके समर्थकों ने दिल्ली में हंगामा भी किया, लेकिन अहमद पटेल सोनिया गांधी को ये समझाने में कामयाब रहे कि अगर इस समय वे झुक गईं तो पार्टी पर उनकी पकड़ कमजोर हो जाएगी। बाकी राज्यों में भी बगावत हो सकती है। इधर चौधरी भजनलाल सारे दांवपेच आजमा चुके थे। आखिर में उन्होंने भी इस फैसले को मान लिया। उनके बड़े बेटे चंद्रमोहन को डिप्टी सीएम बनाया गया। कभी चेन स्मोकर थे हुड्डा, रोज 30 सिगरेट पी जाते थे 2023 में एक मीडिया इंटरव्यू में हुड्डा ने बताया- ‘कॉलेज के दिनों की बात है। मुझे सिगरेट पीने की लत लगी। एक पैकेट में 20 सिगरेट आती थीं। मैं रोज के डेढ़ पैकेट पीता था। एक दिन मैं चंडीगढ़ जा रहा था। तब मैं सीएम था। उस दिन पिता सैर करके वापस आ रहे थे। उन्होंने मुझे देखा तो मेरी गाड़ी रुकवाई। मैंने उन्हें नमस्ते किया, पैर छुए। उन्होंने मुझसे एक ही बात कही कि ‘भूपेंद्र सिगरेट छोड़ दे, नहीं तो मैं सत्याग्रह कर दूंगा। उनकी बात सुनकर मुझे काफी तकलीफ हुई। मेरे बड़े भाई भी स्मोक करते थे। उन्हें गले में कैंसर हो गया था। उसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई। पिता के दिमाग में यही बात चलती थी कि कहीं मेरे साथ ऐसा ना हो जाए। उस दिन के बाद मैंने कभी सिगरेट नहीं पी।’ मुख्यमंत्री बनते ही हुड्डा ने इकलौते बेटे को सौंपी विरासत भूपेंद्र हुड्डा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद बेटे दीपेंद्र हुड्डा को अमेरिका में मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छुड़वाकर रोहतक लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़वाया। दीपेंद्र आसानी से चुनाव जीत गए। इसके बाद भूपेंद्र हुड्डा ने अपने विरोधी नेताओं को एक-एक कर निपटाना शुरू कर दिया। 2007 में भजनलाल और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई को पार्टी से निकाल दिया गया। हालांकि, भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन 2008 तक डिप्टी सीएम बने रहे। भजनलाल के अलग होते ही हुड्डा की कांग्रेस हाईकमान पर पकड़ और मजबूत हो गई। उस वक्त कांग्रेस आलाकमान के दरबार में अहमद पटेल, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, अशोक गहलोत जैसे नेताओं की तूती बोलती थी। 2010 में राहुल गांधी ने युवा नेताओं की एक अलग टीम बनाई, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता शामिल थे। 2014 के बाद सीनियर नेता साइड लाइन होते चले गए। ऐसे में भूपेंद्र हुड्डा ने सांसद बेटे दीपेंद्र के जरिए गांधी परिवार में अपना दबदबा बरकरार रखा। दीपेंद्र राहुल गांधी ही नहीं, बल्कि प्रियंका गांधी के भी भरोसेमंद बन गए। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी लहर के बावजूद वे अपनी रोहतक सीट को बचाने में कामयाब रहे। राजस्थान के बड़े राजनीतिक घराने की बेटी हैं दीपेंद्र की पत्नी श्वेता दीपेंद्र हुड्डा की पहली शादी गीता ग्रेवाल से हुई थी, 2005 में उनका तलाक हो गया। उसके बाद हुड्डा ने राजस्थान के दिग्गज जाट नेता और पांच बार सांसद रहे नाथूराम मिर्धा की पोती श्वेता से शादी की। श्वेता राजनीति से दूर हैं, लेकिन उनकी बहन ज्योति मिर्धा राजस्थान की नागौर सीट से सांसद रह चुकी हैं। उन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव नागौर सीट से बीजेपी के टिकट पर लड़ा, लेकिन हार गईं। उनके दादा इसी सीट से पांच बार सांसद रहे थे। किरण चौधरी का टिकट कटा, आरोप लगा हुड्डा पर पूर्व सीएम बंसीलाल चौधरी की बहू किरण चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से अपनी बेटी श्रुति चौधरी के लिए टिकट मांग रही थीं। उनकी बेटी इस सीट पर सांसद भी रह चुकी हैं, लेकिन पार्टी ने श्रुति का टिकट काटकर हुड्डा के खास महेंद्रगढ़ से विधायक राव दान सिंह को दे दिया। किरण नाराज हो गईं और चुनाव प्रचार से दूरी बना लीं। राव दान सिंह चुनाव हार गए। कुछ ही दिनों बाद किरण, बेटी के साथ बीजेपी में शामिल हो गईं। ‘परिवार राज सीरीज’ की ये स्टोरीज भी पढ़िए… 1. देवीलाल ने राज्यपाल को तमाचा जड़ दिया था:खुद डिप्टी PM, बेटा 5 बार CM; बोले-अपनों को न बनाऊं, तो क्या पाकिस्तान से लाऊं 2. बंसीलाल पर 164 अविवाहितों की नसबंदी का आरोप लगा:4 बार CM बने; बड़ा बेटा BCCI अध्यक्ष बना, छोटा बेटा सांसद रहा 3. विधायक बचाने के लिए बंदूक रखते थे भजनलाल:केंद्रीय मंत्री बने तो पत्नी को MLA बनवाया; मुस्लिम बनने पर बेटे को पार्टी से निकाला 4. राव बीरेंद्र को मनाने हवाई चप्पल में पहुंचीं इंदिरा:चुनौती देकर 13 दिनों में कांग्रेस की सरकार गिराई; अब दो दलों में बंटा परिवार 5. ओपी जिंदल बीड़ी पीते, दोस्तों संग ताश खेलते:देवीलाल ने बिजली काटी तो राजनीति में उतरे; बेटा BJP सांसद, पत्नी का टिकट कटा 27 फरवरी 2005, हरियाणा विधानसभा चुनाव के वोट गिने गए। कांग्रेस ने 90 में 67 सीटें जीत लीं। ओमप्रकाश चौटाला की सत्ताधारी पार्टी इनेलो 9 सीटों पर सिमट गई। 9 साल बाद कांग्रेस की वापसी हुई। अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चार बड़े दावेदार थे- तीन बार मुख्यमंत्री रहे चौधरी भजनलाल, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मुख्यमंत्री चौटाला को हराने वाले रणदीप सुरजेवाला और उचाना कलां से विधायक बीरेंद्र सिंह। वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1 मार्च 2005 को सीएम के नाम पर रायशुमारी के लिए दिल्ली से तीन ऑब्जर्वर- कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी, राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री पीएम सईद हरियाणा पहुंचे। चंड़ीगढ़ में बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के विधायकों और प्रदेश के सांसदों से नए मुख्यमंत्री को लेकर वन टु वन सवाल-जवाब हुए। बैठक में भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन और कुलदीप भी मौजूद थे। तब चंद्रमोहन विधायक और कुलदीप सांसद थे। बैठक के बाद ऑब्जर्वर्स ने कहा- ‘कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुख्यमंत्री पर अंतिम फैसला लेंगी।’ अगले दिन यानी, 2 मार्च को सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंपी गई। 3 मार्च को सोनिया और ऑब्जर्वर्स के बीच लंबी बैठक हुई। 4 मार्च 2005, दिल्ली के पार्लियामेंट अनेक्सी में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के 67 विधायकों में से 47 बैठक में शामिल हुए। भजनलाल सहित उनके समर्थक 20 विधायक नहीं पहुंचे। 90 मिनट चली बैठक के बाद जर्नादन द्विवेदी ने ऐलान किया- कल शाम 5:30 बजे भूपेंद्र हुड्डा राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।’ 5 मार्च 2005 को हुड्डा हरियाणा के 9वें मुख्यमंत्री बन गए। हुड्डा लगातार 2 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री और 4 बार सांसद रहे। उनके पिता रणबीर हुड्डा 3 बार सांसद और एक बार हरियाणा सरकार में मंत्री रहे। भूपेंद्र के बेटे दीपेंद्र हुड्डा चौथी बार लोकसभा पहुंचे हैं। आज हुड्डा परिवार की तीसरी पीढ़ी राजनीति में है। हरियाणा के ताकतवर राजनीतिक परिवारों की सीरीज ‘परिवार राज’ के छठे एपिसोड में पढ़िए हुड्डा कुनबे की कहानी… जुलाई 1947, आजादी की तारीख तय हो चुकी थी। अलग-अलग जेलों में बंद नेताओं को छोड़ा जा रहा था। इस दौरान दिल्ली से 81 किलोमीटर दूर रोहतक के सांघी गांव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक संदेश आया- ‘गांधीवादी नेता रणबीर सिंह को देश की संविधान सभा में भेजा जा रहा है।’ 26 नवंबर 1914, को रोहतक में जन्मे रणबीर सिंह माता-पिता की तीसरी संतान थे। पिता चौधरी मातूराम राजनीति में सक्रिय थे। वे रोहतक में कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे आर्य समाज में शामिल होने वाले शुरुआती लोगों में शामिल थे। रणबीर के बचपन और शिक्षा पर भी आर्य समाज का प्रभाव था। 1937 में दिल्ली के रामजस कॉलेज से बीए पास करने के बाद वे सोच में पड़ गए कि नौकरी करें, वकालत करें या फिर खेती-बाड़ी। फिर सबकुछ छोड़कर वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। महात्मा गांधी का संयुक्त पंजाब में दौरा हुआ तो रणबीर उनसे जुड़ गए। उन्हें तीन साल जेल की सजा हुई। दो साल तक नजरबंद रखा गया। वे रोहतक, अंबाला, हिसार, फिरोजपुर, लाहौर, मुल्तान और सियालकोट की जेलों में कैद रहे। आजादी के बाद हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात यानी मेव बाहुल्य इलाकों में दंगे शुरू हो गए। बताया जाता है कि मेव जाति के लोग मूल रूप से राजपूत, जाट, अहीर और मीणा जाति के थे, लेकिन 12वीं सदी के बीच उन्होंने इस्लाम अपना लिया। दंगों की वजह से मेव समुदाय के लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया। पंजाब विधानसभा के सदस्य और मेवात के रहने वाले चौधरी यासीन खान मेवातियों के इस फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने इसकी जानकारी चौधरी रणबीर सिंह को दी। रणबीर सिंह, यासीन को लेकर महात्मा गांधी के पास पहुंचे। 19 दिसंबर 1947 को गांधी उनके साथ मेवात पहुंचे। गांधी ने कहा- ‘मेव कौम हिंदुस्तान के रीढ़ की हड्डी है। किसी से डरना नहीं है। आज से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।’ गांधी की अपील का असर हुआ और लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला बदल लिया। हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात एरिया में आज भी मेव समुदाय की बड़ी आबादी है। इन इलाकों में रणबीर सिंह का मजबूत प्रभाव था। 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। रणबीर रोहतक से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1957 में वे दूसरी बार रोहतक से चुने गए। इसके बाद 1962 में वे संयुक्त पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए। उन्हें प्रताप सिंह कैरों सरकार में बिजली, सिंचाई, पीडब्ल्यूडी और स्वास्थ्य जैसे महकमों की जिम्मेदारी दी गई। भाखड़ा-नांगल पावर प्रोजेक्ट में उनका अहम योगदान रहा। इंदिरा की पसंद होने के बाद भी सीएम नहीं बन पाए रणबीर सिंह 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। मुख्यमंत्री पद के लिए तीन दावेदार थे- रणबीर सिंह, भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंद्र सिंह। रणबीर सिंह अपनी आत्मकथा ‘स्वराज के स्वर’ में लिखते हैं- ‘लोग मेरे पास आए और कहने लगे, ‘आप कैसे बैठे हैं? आप सबसे ज्यादा तर्जुबेकार हैं। पंजाब में सीनियर मंत्री रहे हैं। आपसे ज्यादा योग्य यहां कौन है? मैंने जवाब दिया- सब योग्य हैं। मैंने आज-तक सत्ता के लिए भागदौड़ नहीं की। अब क्यों करूं?’ रणबीर लिखते हैं- ‘मैं सब कुछ तटस्थ भाव से देखता रहा। इंदिरा गांधी मेरी वरिष्ठता और देश के लिए जो कुछ भी मैंने किया था, उसे देखते हुए मुझे मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं। उस वक्त गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे। वह पंजाब-हरियाणा के मामलों को देख रहे थे। इंदिरा उनकी बात सुन लेती थीं। उन्होंने भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बनाने में पूरा जोर लगा दिया।’ इस तरह भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले सीएम बने और रणबीर सिंह कैबिनेट मंत्री। तब रणबीर सिंह 52 साल के थे। उन्हें लगने लगा था कि वे ज्यादा दिन राजनीति नहीं कर पाएंगे। बड़े बेटे को चुनाव में उतारा, लेकिन जीत नहीं दिला सके साल 1972, कांग्रेस में दो फाड़ हो चुका था। कांग्रेस (आर) यानी इंदिरा का गुट और कांग्रेस (ओ) यानी सिंडिकेट नेताओं का गुट। तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। रणबीर ने बड़े बेटे प्रताप सिंह को कांग्रेस (आर) के टिकट पर रोहतक जिले की किलोई सीट से चुनाव में उतारा, लेकिन वे हार गए। कुछ ही सालों बाद उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। इधर, छोटे बेटे भूपेंद्र वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहतक कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे थे। वे कॉलेज के वक्त ही कांग्रेस से जुड़ गए थे। राजीव गांधी ने लिस्ट में भूपेंद्र हुड्डा का नाम लिखा, भजनलाल ने कटवा दिया साल 1982, भारत एशियाई खेलों की मेजबानी कर रहा था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी जिम्मेदारी राजीव गांधी को सौंपी थी। उसी साल हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होने थे। सूबे की कमान चौधरी भजनलाल के हाथों में थी। राजीव गांधी ने हरियाणा से 10-12 युवा नेताओं की लिस्ट तैयार की। इसमें भूपेंद्र हुड्डा का भी नाम था। इसके बारे में भजनलाल को पता चला, तो उन्होंने कांग्रेस नेता सीताराम केसरी से कहकर लिस्ट से हुड्डा का नाम हटवा दिया। राजीव के पास दोबारा लिस्ट आई। उन्होंने फिर से हुड्डा का नाम जुड़वा दिया। विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा किलोई सीट से उतरे। राजीव ने उनके समर्थन में रैली की, लेकिन वे हार गए। 1987 में उन्हें दोबारा किलोई से टिकट मिला। फिर से हुड्डा हार गए। हुड्डा एक इंटरव्यू में बताते हैं- ‘चौधरी भजनलाल को मेरे पिता के सपोर्ट से पहली बार टिकट मिला था, लेकिन मेरी बारी आई तो मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अड़चनें खड़ी कीं। पॉलिटिकल बैकग्राउंड का मुझे फायदा मिला। दादा और पिता की गांधी परिवार से नजदीकियां रहीं। इसलिए 1982 में हारने के बाद भी 1987 मुझे टिकट दिया गया।’ 1991 में पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल को हराकर जायंट किलर बने भूपेंद्र हुड्डा वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1991 में लोकसभा के साथ ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। भूपेंद्र हुड्डा लगातार तीसरी बार किलोई से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। इस सीट पर भजनलाल के करीबी कृष्णमूर्ति हुड्डा भी दावेदारी जता रहे थे। भूपेंद्र हुड्डा के ममेरे भाई और राजीव गांधी के करीबी बीरेंद्र सिंह तब टिकट वितरण में अहम भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने हुड्डा को विधानसभा की बजाय लोकसभा चुनाव लड़ने की सलाह दी। उन्हें रोहतक से टिकट मिला। यहां उनका मुकाबला पूर्व उप प्रधानमंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके चौधरी देवीलाल से था। हुड्डा करीब 30 हजार वोटों से चुनाव जीत गए। देवीलाल को हराना बहुत बड़ी बात थी। इसके बाद हुड्डा जाइंट किलर कहलाने लगे। इसके बाद 1996 और 1998 में भी हुड्डा ने देवीलाल को हराकर हैट्रिक लगाई, लेकिन 1999 में वे देवीलाल की पार्टी INLD के उम्मीदवार इंदर सिंह से हार गए। उस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हरियाणा में खाता नहीं खोल पाई थी। भजनलाल की रैली में हुड्डा के साथ धक्का-मुक्की, कुर्ता भी फट गया साल 1997, प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद भूपेंद्र हुड्डा ने गोहाना में जनसभा की। उसमें भजनलाल भी शामिल हुए, लेकिन उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया। भजनलाल को काफी ठेस पहुंची। इसके बाद दोनों के अनबन की खबरें खुलकर सामने आने लगीं। कांग्रेस आलाकमान ने फरमान जारी किया कि प्रदेश में कांग्रेस के कार्यक्रमों की अध्यक्षता हुड्डा ही करेंगे। भजनलाल को भी पार्टी के कार्यक्रमों में हुड्डा को अध्यक्षता करने के लिए बुलाना होगा। साथ ही एक पर्यवेक्षक भी रखना होगा, ताकि कोई गड़बड़ी नहीं हो। करीब चार साल बाद। साल 2001, भजनलाल ने भिवानी के किरोड़ीमल पार्क में चौटाला सरकार के खिलाफ एक रैली रखी। भूपेंद्र हुड्डा को इस रैली की अध्यक्षता करनी थी। सुनियोजित तरीके से आगे की 300-400 कुर्सियों पर भजनलाल खेमे के कार्यकर्ताओं को बैठाया गया। थोड़ी देर बाद हुड्डा अपने समर्थकों के साथ मंच पर पहुंचे। हुड्डा ने जैसे ही बोलना शुरू किया भजनलाल समर्थक नारेबाजी करने लगे। जबरदस्त हूटिंग शुरू हो गई। हुड्डा का बोलना मुश्किल हो गया। उनके साथ धक्का-मुक्की भी हुई, जिसमें उनका कुर्ता फट गया। बड़ी मुश्किल से वे रैली से बचकर निकले। चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया, मुख्यमंत्री बने हुड्डा 2005 विधानसभा चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया। भूपेंद्र टिकट बंटवारे की स्क्रीनिंग कमेटी में भी नहीं थे। भजनलाल ने अपने करीबियों को टिकट दिलवाए। कांग्रेस ने 67 सीटें जीतीं। भजनलाल को उम्मीद थी कि वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे। विधायकों को साधने के लिए उन्होंने अपने बेटे कुलदीप को लगा रखा था, लेकिन विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर आम सहमति नहीं बन पाई। तय हुआ कि आलाकमान मुख्यमंत्री पद का फैसला करेगा। यहां भूपेंद्र हुड्डा के सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल से संबंध बहुत काम आए। 3 मार्च को भजनलाल को संदेश मिला कि आलाकमान ने भूपेंद्र हुड्डा को सीएम बनाने का फैसला किया है। बदले में उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनने, छोटे बेटे को केंद्रीय मंत्री और बड़े बेटे को डिप्टी सीएम बनाने का ऑफर दिया गया। भजनलाल अड़ गए। उन्होंने दावा किया कि 37 विधायक उनके साथ हैं। अगर किसी और को सीएम बनाया जाता है, तो तीन महीने के अंदर वे सरकार गिरा देंगे। उनके समर्थकों ने दिल्ली में हंगामा भी किया, लेकिन अहमद पटेल सोनिया गांधी को ये समझाने में कामयाब रहे कि अगर इस समय वे झुक गईं तो पार्टी पर उनकी पकड़ कमजोर हो जाएगी। बाकी राज्यों में भी बगावत हो सकती है। इधर चौधरी भजनलाल सारे दांवपेच आजमा चुके थे। आखिर में उन्होंने भी इस फैसले को मान लिया। उनके बड़े बेटे चंद्रमोहन को डिप्टी सीएम बनाया गया। कभी चेन स्मोकर थे हुड्डा, रोज 30 सिगरेट पी जाते थे 2023 में एक मीडिया इंटरव्यू में हुड्डा ने बताया- ‘कॉलेज के दिनों की बात है। मुझे सिगरेट पीने की लत लगी। एक पैकेट में 20 सिगरेट आती थीं। मैं रोज के डेढ़ पैकेट पीता था। एक दिन मैं चंडीगढ़ जा रहा था। तब मैं सीएम था। उस दिन पिता सैर करके वापस आ रहे थे। उन्होंने मुझे देखा तो मेरी गाड़ी रुकवाई। मैंने उन्हें नमस्ते किया, पैर छुए। उन्होंने मुझसे एक ही बात कही कि ‘भूपेंद्र सिगरेट छोड़ दे, नहीं तो मैं सत्याग्रह कर दूंगा। उनकी बात सुनकर मुझे काफी तकलीफ हुई। मेरे बड़े भाई भी स्मोक करते थे। उन्हें गले में कैंसर हो गया था। उसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई। पिता के दिमाग में यही बात चलती थी कि कहीं मेरे साथ ऐसा ना हो जाए। उस दिन के बाद मैंने कभी सिगरेट नहीं पी।’ मुख्यमंत्री बनते ही हुड्डा ने इकलौते बेटे को सौंपी विरासत भूपेंद्र हुड्डा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद बेटे दीपेंद्र हुड्डा को अमेरिका में मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छुड़वाकर रोहतक लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़वाया। दीपेंद्र आसानी से चुनाव जीत गए। इसके बाद भूपेंद्र हुड्डा ने अपने विरोधी नेताओं को एक-एक कर निपटाना शुरू कर दिया। 2007 में भजनलाल और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई को पार्टी से निकाल दिया गया। हालांकि, भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन 2008 तक डिप्टी सीएम बने रहे। भजनलाल के अलग होते ही हुड्डा की कांग्रेस हाईकमान पर पकड़ और मजबूत हो गई। उस वक्त कांग्रेस आलाकमान के दरबार में अहमद पटेल, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, अशोक गहलोत जैसे नेताओं की तूती बोलती थी। 2010 में राहुल गांधी ने युवा नेताओं की एक अलग टीम बनाई, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता शामिल थे। 2014 के बाद सीनियर नेता साइड लाइन होते चले गए। ऐसे में भूपेंद्र हुड्डा ने सांसद बेटे दीपेंद्र के जरिए गांधी परिवार में अपना दबदबा बरकरार रखा। दीपेंद्र राहुल गांधी ही नहीं, बल्कि प्रियंका गांधी के भी भरोसेमंद बन गए। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी लहर के बावजूद वे अपनी रोहतक सीट को बचाने में कामयाब रहे। राजस्थान के बड़े राजनीतिक घराने की बेटी हैं दीपेंद्र की पत्नी श्वेता दीपेंद्र हुड्डा की पहली शादी गीता ग्रेवाल से हुई थी, 2005 में उनका तलाक हो गया। उसके बाद हुड्डा ने राजस्थान के दिग्गज जाट नेता और पांच बार सांसद रहे नाथूराम मिर्धा की पोती श्वेता से शादी की। श्वेता राजनीति से दूर हैं, लेकिन उनकी बहन ज्योति मिर्धा राजस्थान की नागौर सीट से सांसद रह चुकी हैं। उन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव नागौर सीट से बीजेपी के टिकट पर लड़ा, लेकिन हार गईं। उनके दादा इसी सीट से पांच बार सांसद रहे थे। किरण चौधरी का टिकट कटा, आरोप लगा हुड्डा पर पूर्व सीएम बंसीलाल चौधरी की बहू किरण चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से अपनी बेटी श्रुति चौधरी के लिए टिकट मांग रही थीं। उनकी बेटी इस सीट पर सांसद भी रह चुकी हैं, लेकिन पार्टी ने श्रुति का टिकट काटकर हुड्डा के खास महेंद्रगढ़ से विधायक राव दान सिंह को दे दिया। किरण नाराज हो गईं और चुनाव प्रचार से दूरी बना लीं। राव दान सिंह चुनाव हार गए। कुछ ही दिनों बाद किरण, बेटी के साथ बीजेपी में शामिल हो गईं। ‘परिवार राज सीरीज’ की ये स्टोरीज भी पढ़िए… 1. देवीलाल ने राज्यपाल को तमाचा जड़ दिया था:खुद डिप्टी PM, बेटा 5 बार CM; बोले-अपनों को न बनाऊं, तो क्या पाकिस्तान से लाऊं 2. बंसीलाल पर 164 अविवाहितों की नसबंदी का आरोप लगा:4 बार CM बने; बड़ा बेटा BCCI अध्यक्ष बना, छोटा बेटा सांसद रहा 3. विधायक बचाने के लिए बंदूक रखते थे भजनलाल:केंद्रीय मंत्री बने तो पत्नी को MLA बनवाया; मुस्लिम बनने पर बेटे को पार्टी से निकाला 4. राव बीरेंद्र को मनाने हवाई चप्पल में पहुंचीं इंदिरा:चुनौती देकर 13 दिनों में कांग्रेस की सरकार गिराई; अब दो दलों में बंटा परिवार 5. ओपी जिंदल बीड़ी पीते, दोस्तों संग ताश खेलते:देवीलाल ने बिजली काटी तो राजनीति में उतरे; बेटा BJP सांसद, पत्नी का टिकट कटा हरियाणा | दैनिक भास्कर
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अनिल विज ने परिवहन विभाग पुलिस से मुक्त किया:पहले IPS-इंस्पेक्टर को हटाया, अब सभी पुलिसकर्मियों को मूल कैडर में वापसी के आदेश हरियाणा में परिवहन विभाग अब पुलिस से मुक्त हो गया है। रीजनल ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (RTA) में तैनात सभी पुलिस कर्मचारियों को अपने मूल कैडर में भेजने के आदेश जारी हो गए हैं। मंगलवार शाम ट्रांसपोर्ट कमिश्नर सीजी रजनी कंथन की ओर से आदेश जारी किए गए। आदेश में कहा गया है कि कॉन्स्टेबल, हेड कॉन्स्टेबल, असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर (ASI) समेत जितने भी पुलिस कर्मचारी डेपुटेशन पर RTA डिस्ट्रिक्ट ट्रांसपोर्ट ऑफिस (DTO) समेत विभिन्न कार्यालयों में काम कर रहे हैं, वह अपने मूल कैडर में जाकर कार्यभार संभालें। परिवहन मंत्री अनिल विज के आदेश पर परिवहन विभाग से पुलिस कर्मचारियों की छुट्टी होना शुरू हुई है। पहले विभाग से IPS अफसर और इंस्पेक्टरों को हटाया गया था। परिवहन विभाग की तरफ से जारी ऑर्डर… विज बोले- पुलिस-सिविल की ड्यूटी अलग-अलग मंत्री अनिल विज ने पिछले दिनों कहा था, ‘सिविल और पुलिस अधिकारियों की ट्रेनिंग अलग-अलग होती है। इसलिए, सिद्धांत यही कहता है कि पुलिस और सिविल को अपने-अपने विभाग में ड्यूटी करनी चाहिए, लेकिन कुछ लोग तिकड़म करके सिविल पदों पर आकर बैठ गए हैं। वे सिस्टम को नहीं समझते। इसलिए उन्होंने पत्र लिखकर कहा कि यह ठीक नहीं है। जिसके बाद उन्हें हटाया जा रहा है। कुछ को हटाया गया है और कुछ को हटाया जाएगा।’ विज ने विभाग से IPS अफसर की छुट्टी की
अनिल विज के चीफ सेक्रेटरी को लिखे लेटर के बाद IAS अफसरों की ट्रांसफर लिस्ट में परिवहन विभाग के प्रधान सचिव IPS अफसर नवदीप सिंह विर्क की छुट्टी कर दी गई थी। नवदीप विर्क को खेल विभाग की जिम्मेदारी दी गई है। परिवहन विभाग में उनके स्थान पर सीनियर IAS अफसर अशोक खेमका को एडिशनल चीफ सेक्रेटरी (ACS) लगाया गया। खट्टर सरकार में RTA में HPS लगाए गए मनोहर लाल खट्टर के हरियाणा के मुख्यमंत्री रहते हुए RTA के पदों पर लगे HCS अफसरों को भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद गैर HCS अफसरों को विभाग में तैनात करने की योजना शुरू की गई। उस दौरान परिवहन विभाग की कमान वरिष्ठ IPS अफसर शत्रुजीत कपूर के हाथों में थी। उन्होंने RTA के पदों पर HCS के अलावा HPS व अन्य महकमों के क्लास वन अफसरों की तैनाती का प्रस्ताव तैयार किया। इसके अलावा मोटर व्हीकल अफसर (MVO) के पदों पर पुलिस इंस्पेक्टर व सब इंस्पेक्टर की तैनाती की गई। तब से RTA में पुलिस कर्मचारियों की एंट्री शुरू हो गई। खट्टर सरकार अब केंद्रीय मंत्री बन गए। वहीं परिवहन विभाग विज के पास आने के बाद नियमों में बदलाव होना शुरू हो गया।
सोनीपत में तहसीलदार की कार्यशैली की जांच के आदेश:मंत्री गौतम को बताया- इनकी वजह से आ चुके 2 अटैक; तहसील का भट्ठा बैठा दिया
सोनीपत में तहसीलदार की कार्यशैली की जांच के आदेश:मंत्री गौतम को बताया- इनकी वजह से आ चुके 2 अटैक; तहसील का भट्ठा बैठा दिया हरियाणा के युवा अधिकारिता एवं उद्यमिता राज्य मंत्री गौरव गौतम ने बुधवार को सोनीपत में ग्रीवेंस कमेटी की मीटिंग में तहसीलदार की कार्यशैली की जांच के आदेश दिए। साथ ही उन्होंने कहा कि किसी भी मामले में अगर शिकायत आती है तो अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। बैठक में तहसीलदार की कार्यशैली पर सवाल उठे थे। ओलिंपियन मनु भाकर के मामले में मंत्री गौरव गौतम ने कहा है कि खेल को लेकर राजनीति नहीं करनी चाहिए। सोनीपत के मिनी सचिवालय में आयोजित ग्रीवेंस कमेटी की मीटिंग में कुल 22 शिकायतें सुनी गई। सात शिकायतों का निवारण मौके पर ही कर दिया गया, जबकि 15 शिकायतों पर अधिकारियों को दिशा निर्देश देकर इनको अगली मीटिंग के लिए रख लिया गया। 3 व्यक्तियों के तहसीलदार पर आरोप ग्रीवेंस की मीटिंग में शिकायत देते हुए एक व्यक्ति ने कहा कि तहसीलदार की हरसमेंट के चलते डिप्रेशन में रहता हूं। 270 गज की रजिस्ट्री में नाम गलत हो गया था और तहसीलदार ने पूरी रजिस्ट्री को कैंसिल कर दिया। इसमें डीसी द्वारा भी ऑर्डर दिया गया था। उसने मंत्री को कहा कि तहसीलदार ने पूरी तहसील का भट्ठा बैठा दिया है। बोले- औचक छापा मारो, सब सामने आ जाएगा मीटिंग में एक अन्य व्यक्ति ने भी तहसीलदार के खिलाफ शिकायत करते हुए कहा है कि उसे तहसीलदार के कारण दो अटैक आ चुके हैं । पूरा दिन बैठाकर रखते हैं। लोगों ने यह भी गुहार की तहसील का औचक निरीक्षण किया जाना चाहिए और काफी कुछ खुलासा होगा। इन शिकायतों के बाद मंत्री गौरव गौतम ने तहसीलदार की जांच के आदेश डीसी को दिए। एक अन्य व्यक्ति ने भी तहसीलदार पर परेशान करने के आरोप लगाए। मंत्री ने दिलाए अस्पताल से 4 लाख रुपए मंत्री ने मीटिंग में ककरोई रोड़ के टूटे हुए भाग का अस्थाई समाधान करवाने के निर्देश दिए। एक निजी अस्पताल द्वारा आयुष्मान कार्ड को न मानने की शिकायत पर राज्यमंत्री ने महिला को 4 लाख रुपए की राशि वापस दिलाई। अस्पताल ने इलाज के लिए ये राशि वसूली थी। सोनीपत में सेक्टर 10 स्थित रेलवे सोसाइटी बिल्डिंग की मरम्मत न कराने की शिकायत पर मंत्री ने डीटीपी को ऑडिट करवाने के निर्देश दिए। कांग्रेस पर बरसे मंत्री गौरव मीटिंग के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए राज्य मंत्री गौरव गौतम कांग्रेस पर जमकर बरसे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस खिलाड़ियों को राजनैतिक हथियार बनाकर प्रयोग करती है। कांग्रेस डा. भीमराव अंबेडकर को लेकर भी राजनीति कर रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी खिलाड़ियों के साथ खड़ी है। 2014 से पहले कांग्रेस के कार्यकाल में 48 करोड रुपए खेल के लिए खर्च किया गया है। भाजपा राज में 592 करोड रुपए खर्च किए गए हैं। किसान आंदोलन पर भी बोले गौरव गौतम किसान नेता डल्लेवाल के प्रधानमंत्री को पत्र लिखे जाने को लेकर उन्होंने कहा है कि किसान हमारे अन्नदाता हैं और उनकी मांगों को लेकर लिए कमेटी भी बनाई गई है। जिस पर काम भी चल रहा है। हरियाणा पहला ऐसा राज्य है, जहां 24 फसलों को एमएसपी पर खरीद किया जाता है। किसानों के सम्मान को लेकर भारतीय जनता पार्टी पहले भी खड़ी रही है और आगे भी खड़ी रहेगी। मीटिंग में ये रहे मौजूद सोनीपत विधायक निखिल मदान, डीसी डॉ. मनोज कुमार, भाजपा जिलाध्यक्ष जसबीर दोदवा, डीसीपी नरेन्द्र सिंह सहित सभी उच्च व संबंधित विभाग के अधिकारियों सहित कष्टï निवारण समिति के सभी मैंबर मौजूद रहे।
हरियाणा-दिल्ली में दहशत फैलाने वाला गैंगस्टर खैरमपुरिया कौन:मां को तंग करने पर मामा पर की थी फायरिंग, पैरोल पर आने के बाद 4 कत्ल
हरियाणा-दिल्ली में दहशत फैलाने वाला गैंगस्टर खैरमपुरिया कौन:मां को तंग करने पर मामा पर की थी फायरिंग, पैरोल पर आने के बाद 4 कत्ल हरियाणा के सोनीपत शहर के फेमस मातूराम हलवाई की शॉप के बाहर एक के बाद एक 30 राउंड गोलियां चली। एक गोली दूध बेचने वाले शख्स को भी लगी। फायरिंग करने वाले शूटर दुकान पर एक पर्ची फेंक गए, जिसमें 2 करोड़ रुपए की फिरौती और हरियाणा के गैंगस्टर हिमांशु भाऊ के साथ काला खैरमपुरिया के नाम का जिक्र था। यहीं वो दिन था, जब काला राणा का नाम अपराध की दुनिया में लाइमलाइट में आया। हिसार शहर में नामी महिंद्रा कंपनी के शोरूम में रूटीन की तरह पूरा स्टाफ अपने काम में लगा हुआ था। दोपहर के समय एक बाइक पर तीन शूटर पहुंचे। शूटर्स ने अंधाधुंध 35 से ज्यादा राउंड फायरिंग की और 5 करोड़ रुपए की फिरौती से संबंधित एक पर्ची फेंक कर फरार हो गए। इस पर्ची में भी हिमांशु भाऊ के साथ काला खैरमपुरिया के नाम का जिक्र था। इसके बाद तो पुलिस के लिए काला राणा एक तरह से टारगेट बन गया। हरियाणा की स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने राकेश उर्फ काला को शनिवार को गिरफ्तार कर लिया। हिसार के गांव खैरमपुर के रहने वाले राकेश को क्राइम की दुनिया में काला खैरमपुरिया के नाम से जाना जाता हैं। महज 22 साल की उम्र में अपराध की दुनिया में कदम रख सनसनी फैलाने वाले इस सनकी मिजाज काला राणा ने पिछले एक लाल में हरियाणा ही नहीं, बल्कि दिल्ली पुलिस के सामने भी कई बार चुनौती पेश की। ये बात भी सामने आई कि पिता की मौत के बाद काला की मां को मामा परेशान कर रहे थे। इस पर उसने साथियों के साथ मिलकर मामा पर फायरिंग करवा दी थी। हालांकि उसमें मामा बच गया था। 2024 में पहली वारदात, सजा के बाद देश छोड़ भागा
STF से मिली जानकारी के मुताबिक, काला खैरमपुरिया का पहली बार नाम 2014 में हिसार जिले में हुई एक लूट की वारदात में सामने आया। इस केस में जेल चला गया। यहां उसकी कुछ लोकल बदमाशों से दोस्ती हो गई। जेल से छूटने के बाद उसने इलाके में कई अन्य वारदातें की, लेकिन 2015 में उसने राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में एक शख्स की हत्या कर सबसे बड़ी वारदात को अंजाम दिया। राजस्थान पुलिस ने कुछ समय बाद उसे पकड़ भी लिया और वह हनुमानगढ़ जेल में बंद रहा। 2018 में उसे इसी कत्ल केस में हनुमानगढ़ की अदालत से उम्रकैद की सजा हो गई। हनुमानगढ़ जेल में रहते हुए उसके संपर्क उत्तर भारत में एक्टिव कई बड़े गैंगस्टर से हो गए। सजा के 2 साल बाद उसे 2020 में कोर्ट से पैरोल मिल गई, लेकिन काला खैरमपुरिया वापस जेल जाने की बजाए फरार हो गए। इसके बाद तो उसने ऐसा आतंक मचाया कि टारगेट किलिंग, हत्या का प्रयास, लूट, फिरौती, रंगदारी जैसे 14 वारदातों को या तो खुद अंजाम दिया या फिर विदेश में बैठकर अपने गुर्गो के जरिए अंजाम दिलवाया। उसने 2021 में फतेहाबाद जिले के गांव दरौली में एक शख्स की हत्या की। इसके साथ ही हनुमानगढ़, सिरसा, हिसार में कई जगह गोलियां चलाकर फिरौती मांगी। जब वह पुलिस के लिए सिरदर्द बनने लगा तो वह कुछ समय के लिए शांत बैठ गया। 2023 में उसने फर्जी पते पर फर्जी पासपोर्ट तैयार कराया और फिर पहले यूएई, आर्मीनिया के बाद थाईलैंड पहुंच गया। गैंगस्टर भाऊ और नीरज के संपर्क में आया
यहां पहुंचने के बाद काला राणा गैंगस्टर हिमांशु भाऊ और नीरज फरीदपुरिया के संपर्क में आया। इन दोनों बड़े गैंगस्टर के साथ मिलकर अपनी गैंग को दिल्ली-हरियाणा में एक्टिव कर दिया। गैंग के गुर्गों के जरिए उसने सोनीपत में मातूराम हलवाई के यहां फिरौती के लिए फायरिंग कराई। इसके बाद सोनीपत में ही शराब कारोबारी सुंदर मलिक का कत्ल करा दिया। यही नहीं काला खैरमपुरिया ने दिल्ली के तिलक नगर में एक नामी शोरूम पर फायरिंग कराकर 5 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगी। उसके बाद 18 जून को दिल्ली के राजौरी गार्डन में अमन जून नाम के शख्स की गैंगवारी में हत्या करा दी। 24 जून को उसने हिसार में इनेलो नेता रामभगत के बेटे के शोरूम पर फायरिंग कराकर 5 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगी। एक बाद एक काला खैरमपुरिया का नाम पुलिस के रोजनामचे में चढ़ता गया। हिसार की घटना के बाद पुलिस के साथ-साथ सरकार की भी काफी किरकिरी हुई। इसी के चलते एसटीएफ ने कमान संभाली और फिर सबसे पहले पुलिस ने उस पते को ढूंढ निकाला, जिसके जरिए काला फर्जी पासपोर्ट बनवाकर देश छोड़कर भागा था। पुलिस ने उसी पते के आधार पर काला की ट्रैवलिंग रूट की हिस्ट्री खंगाली और फिर उसका पुख्ता ठिकाना पता लगने के बाद पासपोर्ट रद्द करवाकर उसे अरेस्ट कर लिया।