27 फरवरी 2005, हरियाणा विधानसभा चुनाव के वोट गिने गए। कांग्रेस ने 90 में 67 सीटें जीत लीं। ओमप्रकाश चौटाला की सत्ताधारी पार्टी इनेलो 9 सीटों पर सिमट गई। 9 साल बाद कांग्रेस की वापसी हुई। अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चार बड़े दावेदार थे- तीन बार मुख्यमंत्री रहे चौधरी भजनलाल, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मुख्यमंत्री चौटाला को हराने वाले रणदीप सुरजेवाला और उचाना कलां से विधायक बीरेंद्र सिंह। वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1 मार्च 2005 को सीएम के नाम पर रायशुमारी के लिए दिल्ली से तीन ऑब्जर्वर- कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी, राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री पीएम सईद हरियाणा पहुंचे। चंड़ीगढ़ में बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के विधायकों और प्रदेश के सांसदों से नए मुख्यमंत्री को लेकर वन टु वन सवाल-जवाब हुए। बैठक में भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन और कुलदीप भी मौजूद थे। तब चंद्रमोहन विधायक और कुलदीप सांसद थे। बैठक के बाद ऑब्जर्वर्स ने कहा- ‘कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुख्यमंत्री पर अंतिम फैसला लेंगी।’ अगले दिन यानी, 2 मार्च को सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंपी गई। 3 मार्च को सोनिया और ऑब्जर्वर्स के बीच लंबी बैठक हुई। 4 मार्च 2005, दिल्ली के पार्लियामेंट अनेक्सी में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के 67 विधायकों में से 47 बैठक में शामिल हुए। भजनलाल सहित उनके समर्थक 20 विधायक नहीं पहुंचे। 90 मिनट चली बैठक के बाद जर्नादन द्विवेदी ने ऐलान किया- कल शाम 5:30 बजे भूपेंद्र हुड्डा राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।’ 5 मार्च 2005 को हुड्डा हरियाणा के 9वें मुख्यमंत्री बन गए। हुड्डा लगातार 2 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री और 4 बार सांसद रहे। उनके पिता रणबीर हुड्डा 3 बार सांसद और एक बार हरियाणा सरकार में मंत्री रहे। भूपेंद्र के बेटे दीपेंद्र हुड्डा चौथी बार लोकसभा पहुंचे हैं। आज हुड्डा परिवार की तीसरी पीढ़ी राजनीति में है। हरियाणा के ताकतवर राजनीतिक परिवारों की सीरीज ‘परिवार राज’ के छठे एपिसोड में पढ़िए हुड्डा कुनबे की कहानी… जुलाई 1947, आजादी की तारीख तय हो चुकी थी। अलग-अलग जेलों में बंद नेताओं को छोड़ा जा रहा था। इस दौरान दिल्ली से 81 किलोमीटर दूर रोहतक के सांघी गांव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक संदेश आया- ‘गांधीवादी नेता रणबीर सिंह को देश की संविधान सभा में भेजा जा रहा है।’ 26 नवंबर 1914, को रोहतक में जन्मे रणबीर सिंह माता-पिता की तीसरी संतान थे। पिता चौधरी मातूराम राजनीति में सक्रिय थे। वे रोहतक में कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे आर्य समाज में शामिल होने वाले शुरुआती लोगों में शामिल थे। रणबीर के बचपन और शिक्षा पर भी आर्य समाज का प्रभाव था। 1937 में दिल्ली के रामजस कॉलेज से बीए पास करने के बाद वे सोच में पड़ गए कि नौकरी करें, वकालत करें या फिर खेती-बाड़ी। फिर सबकुछ छोड़कर वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। महात्मा गांधी का संयुक्त पंजाब में दौरा हुआ तो रणबीर उनसे जुड़ गए। उन्हें तीन साल जेल की सजा हुई। दो साल तक नजरबंद रखा गया। वे रोहतक, अंबाला, हिसार, फिरोजपुर, लाहौर, मुल्तान और सियालकोट की जेलों में कैद रहे। आजादी के बाद हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात यानी मेव बाहुल्य इलाकों में दंगे शुरू हो गए। बताया जाता है कि मेव जाति के लोग मूल रूप से राजपूत, जाट, अहीर और मीणा जाति के थे, लेकिन 12वीं सदी के बीच उन्होंने इस्लाम अपना लिया। दंगों की वजह से मेव समुदाय के लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया। पंजाब विधानसभा के सदस्य और मेवात के रहने वाले चौधरी यासीन खान मेवातियों के इस फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने इसकी जानकारी चौधरी रणबीर सिंह को दी। रणबीर सिंह, यासीन को लेकर महात्मा गांधी के पास पहुंचे। 19 दिसंबर 1947 को गांधी उनके साथ मेवात पहुंचे। गांधी ने कहा- ‘मेव कौम हिंदुस्तान के रीढ़ की हड्डी है। किसी से डरना नहीं है। आज से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।’ गांधी की अपील का असर हुआ और लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला बदल लिया। हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात एरिया में आज भी मेव समुदाय की बड़ी आबादी है। इन इलाकों में रणबीर सिंह का मजबूत प्रभाव था। 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। रणबीर रोहतक से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1957 में वे दूसरी बार रोहतक से चुने गए। इसके बाद 1962 में वे संयुक्त पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए। उन्हें प्रताप सिंह कैरों सरकार में बिजली, सिंचाई, पीडब्ल्यूडी और स्वास्थ्य जैसे महकमों की जिम्मेदारी दी गई। भाखड़ा-नांगल पावर प्रोजेक्ट में उनका अहम योगदान रहा। इंदिरा की पसंद होने के बाद भी सीएम नहीं बन पाए रणबीर सिंह 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। मुख्यमंत्री पद के लिए तीन दावेदार थे- रणबीर सिंह, भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंद्र सिंह। रणबीर सिंह अपनी आत्मकथा ‘स्वराज के स्वर’ में लिखते हैं- ‘लोग मेरे पास आए और कहने लगे, ‘आप कैसे बैठे हैं? आप सबसे ज्यादा तर्जुबेकार हैं। पंजाब में सीनियर मंत्री रहे हैं। आपसे ज्यादा योग्य यहां कौन है? मैंने जवाब दिया- सब योग्य हैं। मैंने आज-तक सत्ता के लिए भागदौड़ नहीं की। अब क्यों करूं?’ रणबीर लिखते हैं- ‘मैं सब कुछ तटस्थ भाव से देखता रहा। इंदिरा गांधी मेरी वरिष्ठता और देश के लिए जो कुछ भी मैंने किया था, उसे देखते हुए मुझे मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं। उस वक्त गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे। वह पंजाब-हरियाणा के मामलों को देख रहे थे। इंदिरा उनकी बात सुन लेती थीं। उन्होंने भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बनाने में पूरा जोर लगा दिया।’ इस तरह भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले सीएम बने और रणबीर सिंह कैबिनेट मंत्री। तब रणबीर सिंह 52 साल के थे। उन्हें लगने लगा था कि वे ज्यादा दिन राजनीति नहीं कर पाएंगे। बड़े बेटे को चुनाव में उतारा, लेकिन जीत नहीं दिला सके साल 1972, कांग्रेस में दो फाड़ हो चुका था। कांग्रेस (आर) यानी इंदिरा का गुट और कांग्रेस (ओ) यानी सिंडिकेट नेताओं का गुट। तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। रणबीर ने बड़े बेटे प्रताप सिंह को कांग्रेस (आर) के टिकट पर रोहतक जिले की किलोई सीट से चुनाव में उतारा, लेकिन वे हार गए। कुछ ही सालों बाद उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। इधर, छोटे बेटे भूपेंद्र वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहतक कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे थे। वे कॉलेज के वक्त ही कांग्रेस से जुड़ गए थे। राजीव गांधी ने लिस्ट में भूपेंद्र हुड्डा का नाम लिखा, भजनलाल ने कटवा दिया साल 1982, भारत एशियाई खेलों की मेजबानी कर रहा था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी जिम्मेदारी राजीव गांधी को सौंपी थी। उसी साल हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होने थे। सूबे की कमान चौधरी भजनलाल के हाथों में थी। राजीव गांधी ने हरियाणा से 10-12 युवा नेताओं की लिस्ट तैयार की। इसमें भूपेंद्र हुड्डा का भी नाम था। इसके बारे में भजनलाल को पता चला, तो उन्होंने कांग्रेस नेता सीताराम केसरी से कहकर लिस्ट से हुड्डा का नाम हटवा दिया। राजीव के पास दोबारा लिस्ट आई। उन्होंने फिर से हुड्डा का नाम जुड़वा दिया। विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा किलोई सीट से उतरे। राजीव ने उनके समर्थन में रैली की, लेकिन वे हार गए। 1987 में उन्हें दोबारा किलोई से टिकट मिला। फिर से हुड्डा हार गए। हुड्डा एक इंटरव्यू में बताते हैं- ‘चौधरी भजनलाल को मेरे पिता के सपोर्ट से पहली बार टिकट मिला था, लेकिन मेरी बारी आई तो मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अड़चनें खड़ी कीं। पॉलिटिकल बैकग्राउंड का मुझे फायदा मिला। दादा और पिता की गांधी परिवार से नजदीकियां रहीं। इसलिए 1982 में हारने के बाद भी 1987 मुझे टिकट दिया गया।’ 1991 में पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल को हराकर जायंट किलर बने भूपेंद्र हुड्डा वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1991 में लोकसभा के साथ ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। भूपेंद्र हुड्डा लगातार तीसरी बार किलोई से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। इस सीट पर भजनलाल के करीबी कृष्णमूर्ति हुड्डा भी दावेदारी जता रहे थे। भूपेंद्र हुड्डा के ममेरे भाई और राजीव गांधी के करीबी बीरेंद्र सिंह तब टिकट वितरण में अहम भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने हुड्डा को विधानसभा की बजाय लोकसभा चुनाव लड़ने की सलाह दी। उन्हें रोहतक से टिकट मिला। यहां उनका मुकाबला पूर्व उप प्रधानमंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके चौधरी देवीलाल से था। हुड्डा करीब 30 हजार वोटों से चुनाव जीत गए। देवीलाल को हराना बहुत बड़ी बात थी। इसके बाद हुड्डा जाइंट किलर कहलाने लगे। इसके बाद 1996 और 1998 में भी हुड्डा ने देवीलाल को हराकर हैट्रिक लगाई, लेकिन 1999 में वे देवीलाल की पार्टी INLD के उम्मीदवार इंदर सिंह से हार गए। उस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हरियाणा में खाता नहीं खोल पाई थी। भजनलाल की रैली में हुड्डा के साथ धक्का-मुक्की, कुर्ता भी फट गया साल 1997, प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद भूपेंद्र हुड्डा ने गोहाना में जनसभा की। उसमें भजनलाल भी शामिल हुए, लेकिन उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया। भजनलाल को काफी ठेस पहुंची। इसके बाद दोनों के अनबन की खबरें खुलकर सामने आने लगीं। कांग्रेस आलाकमान ने फरमान जारी किया कि प्रदेश में कांग्रेस के कार्यक्रमों की अध्यक्षता हुड्डा ही करेंगे। भजनलाल को भी पार्टी के कार्यक्रमों में हुड्डा को अध्यक्षता करने के लिए बुलाना होगा। साथ ही एक पर्यवेक्षक भी रखना होगा, ताकि कोई गड़बड़ी नहीं हो। करीब चार साल बाद। साल 2001, भजनलाल ने भिवानी के किरोड़ीमल पार्क में चौटाला सरकार के खिलाफ एक रैली रखी। भूपेंद्र हुड्डा को इस रैली की अध्यक्षता करनी थी। सुनियोजित तरीके से आगे की 300-400 कुर्सियों पर भजनलाल खेमे के कार्यकर्ताओं को बैठाया गया। थोड़ी देर बाद हुड्डा अपने समर्थकों के साथ मंच पर पहुंचे। हुड्डा ने जैसे ही बोलना शुरू किया भजनलाल समर्थक नारेबाजी करने लगे। जबरदस्त हूटिंग शुरू हो गई। हुड्डा का बोलना मुश्किल हो गया। उनके साथ धक्का-मुक्की भी हुई, जिसमें उनका कुर्ता फट गया। बड़ी मुश्किल से वे रैली से बचकर निकले। चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया, मुख्यमंत्री बने हुड्डा 2005 विधानसभा चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया। भूपेंद्र टिकट बंटवारे की स्क्रीनिंग कमेटी में भी नहीं थे। भजनलाल ने अपने करीबियों को टिकट दिलवाए। कांग्रेस ने 67 सीटें जीतीं। भजनलाल को उम्मीद थी कि वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे। विधायकों को साधने के लिए उन्होंने अपने बेटे कुलदीप को लगा रखा था, लेकिन विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर आम सहमति नहीं बन पाई। तय हुआ कि आलाकमान मुख्यमंत्री पद का फैसला करेगा। यहां भूपेंद्र हुड्डा के सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल से संबंध बहुत काम आए। 3 मार्च को भजनलाल को संदेश मिला कि आलाकमान ने भूपेंद्र हुड्डा को सीएम बनाने का फैसला किया है। बदले में उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनने, छोटे बेटे को केंद्रीय मंत्री और बड़े बेटे को डिप्टी सीएम बनाने का ऑफर दिया गया। भजनलाल अड़ गए। उन्होंने दावा किया कि 37 विधायक उनके साथ हैं। अगर किसी और को सीएम बनाया जाता है, तो तीन महीने के अंदर वे सरकार गिरा देंगे। उनके समर्थकों ने दिल्ली में हंगामा भी किया, लेकिन अहमद पटेल सोनिया गांधी को ये समझाने में कामयाब रहे कि अगर इस समय वे झुक गईं तो पार्टी पर उनकी पकड़ कमजोर हो जाएगी। बाकी राज्यों में भी बगावत हो सकती है। इधर चौधरी भजनलाल सारे दांवपेच आजमा चुके थे। आखिर में उन्होंने भी इस फैसले को मान लिया। उनके बड़े बेटे चंद्रमोहन को डिप्टी सीएम बनाया गया। कभी चेन स्मोकर थे हुड्डा, रोज 30 सिगरेट पी जाते थे 2023 में एक मीडिया इंटरव्यू में हुड्डा ने बताया- ‘कॉलेज के दिनों की बात है। मुझे सिगरेट पीने की लत लगी। एक पैकेट में 20 सिगरेट आती थीं। मैं रोज के डेढ़ पैकेट पीता था। एक दिन मैं चंडीगढ़ जा रहा था। तब मैं सीएम था। उस दिन पिता सैर करके वापस आ रहे थे। उन्होंने मुझे देखा तो मेरी गाड़ी रुकवाई। मैंने उन्हें नमस्ते किया, पैर छुए। उन्होंने मुझसे एक ही बात कही कि ‘भूपेंद्र सिगरेट छोड़ दे, नहीं तो मैं सत्याग्रह कर दूंगा। उनकी बात सुनकर मुझे काफी तकलीफ हुई। मेरे बड़े भाई भी स्मोक करते थे। उन्हें गले में कैंसर हो गया था। उसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई। पिता के दिमाग में यही बात चलती थी कि कहीं मेरे साथ ऐसा ना हो जाए। उस दिन के बाद मैंने कभी सिगरेट नहीं पी।’ मुख्यमंत्री बनते ही हुड्डा ने इकलौते बेटे को सौंपी विरासत भूपेंद्र हुड्डा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद बेटे दीपेंद्र हुड्डा को अमेरिका में मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छुड़वाकर रोहतक लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़वाया। दीपेंद्र आसानी से चुनाव जीत गए। इसके बाद भूपेंद्र हुड्डा ने अपने विरोधी नेताओं को एक-एक कर निपटाना शुरू कर दिया। 2007 में भजनलाल और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई को पार्टी से निकाल दिया गया। हालांकि, भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन 2008 तक डिप्टी सीएम बने रहे। भजनलाल के अलग होते ही हुड्डा की कांग्रेस हाईकमान पर पकड़ और मजबूत हो गई। उस वक्त कांग्रेस आलाकमान के दरबार में अहमद पटेल, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, अशोक गहलोत जैसे नेताओं की तूती बोलती थी। 2010 में राहुल गांधी ने युवा नेताओं की एक अलग टीम बनाई, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता शामिल थे। 2014 के बाद सीनियर नेता साइड लाइन होते चले गए। ऐसे में भूपेंद्र हुड्डा ने सांसद बेटे दीपेंद्र के जरिए गांधी परिवार में अपना दबदबा बरकरार रखा। दीपेंद्र राहुल गांधी ही नहीं, बल्कि प्रियंका गांधी के भी भरोसेमंद बन गए। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी लहर के बावजूद वे अपनी रोहतक सीट को बचाने में कामयाब रहे। राजस्थान के बड़े राजनीतिक घराने की बेटी हैं दीपेंद्र की पत्नी श्वेता दीपेंद्र हुड्डा की पहली शादी गीता ग्रेवाल से हुई थी, 2005 में उनका तलाक हो गया। उसके बाद हुड्डा ने राजस्थान के दिग्गज जाट नेता और पांच बार सांसद रहे नाथूराम मिर्धा की पोती श्वेता से शादी की। श्वेता राजनीति से दूर हैं, लेकिन उनकी बहन ज्योति मिर्धा राजस्थान की नागौर सीट से सांसद रह चुकी हैं। उन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव नागौर सीट से बीजेपी के टिकट पर लड़ा, लेकिन हार गईं। उनके दादा इसी सीट से पांच बार सांसद रहे थे। किरण चौधरी का टिकट कटा, आरोप लगा हुड्डा पर पूर्व सीएम बंसीलाल चौधरी की बहू किरण चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से अपनी बेटी श्रुति चौधरी के लिए टिकट मांग रही थीं। उनकी बेटी इस सीट पर सांसद भी रह चुकी हैं, लेकिन पार्टी ने श्रुति का टिकट काटकर हुड्डा के खास महेंद्रगढ़ से विधायक राव दान सिंह को दे दिया। किरण नाराज हो गईं और चुनाव प्रचार से दूरी बना लीं। राव दान सिंह चुनाव हार गए। कुछ ही दिनों बाद किरण, बेटी के साथ बीजेपी में शामिल हो गईं। ‘परिवार राज सीरीज’ की ये स्टोरीज भी पढ़िए… 1. देवीलाल ने राज्यपाल को तमाचा जड़ दिया था:खुद डिप्टी PM, बेटा 5 बार CM; बोले-अपनों को न बनाऊं, तो क्या पाकिस्तान से लाऊं 2. बंसीलाल पर 164 अविवाहितों की नसबंदी का आरोप लगा:4 बार CM बने; बड़ा बेटा BCCI अध्यक्ष बना, छोटा बेटा सांसद रहा 3. विधायक बचाने के लिए बंदूक रखते थे भजनलाल:केंद्रीय मंत्री बने तो पत्नी को MLA बनवाया; मुस्लिम बनने पर बेटे को पार्टी से निकाला 4. राव बीरेंद्र को मनाने हवाई चप्पल में पहुंचीं इंदिरा:चुनौती देकर 13 दिनों में कांग्रेस की सरकार गिराई; अब दो दलों में बंटा परिवार 5. ओपी जिंदल बीड़ी पीते, दोस्तों संग ताश खेलते:देवीलाल ने बिजली काटी तो राजनीति में उतरे; बेटा BJP सांसद, पत्नी का टिकट कटा 27 फरवरी 2005, हरियाणा विधानसभा चुनाव के वोट गिने गए। कांग्रेस ने 90 में 67 सीटें जीत लीं। ओमप्रकाश चौटाला की सत्ताधारी पार्टी इनेलो 9 सीटों पर सिमट गई। 9 साल बाद कांग्रेस की वापसी हुई। अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चार बड़े दावेदार थे- तीन बार मुख्यमंत्री रहे चौधरी भजनलाल, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मुख्यमंत्री चौटाला को हराने वाले रणदीप सुरजेवाला और उचाना कलां से विधायक बीरेंद्र सिंह। वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1 मार्च 2005 को सीएम के नाम पर रायशुमारी के लिए दिल्ली से तीन ऑब्जर्वर- कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी, राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री पीएम सईद हरियाणा पहुंचे। चंड़ीगढ़ में बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के विधायकों और प्रदेश के सांसदों से नए मुख्यमंत्री को लेकर वन टु वन सवाल-जवाब हुए। बैठक में भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन और कुलदीप भी मौजूद थे। तब चंद्रमोहन विधायक और कुलदीप सांसद थे। बैठक के बाद ऑब्जर्वर्स ने कहा- ‘कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुख्यमंत्री पर अंतिम फैसला लेंगी।’ अगले दिन यानी, 2 मार्च को सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंपी गई। 3 मार्च को सोनिया और ऑब्जर्वर्स के बीच लंबी बैठक हुई। 4 मार्च 2005, दिल्ली के पार्लियामेंट अनेक्सी में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के 67 विधायकों में से 47 बैठक में शामिल हुए। भजनलाल सहित उनके समर्थक 20 विधायक नहीं पहुंचे। 90 मिनट चली बैठक के बाद जर्नादन द्विवेदी ने ऐलान किया- कल शाम 5:30 बजे भूपेंद्र हुड्डा राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।’ 5 मार्च 2005 को हुड्डा हरियाणा के 9वें मुख्यमंत्री बन गए। हुड्डा लगातार 2 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री और 4 बार सांसद रहे। उनके पिता रणबीर हुड्डा 3 बार सांसद और एक बार हरियाणा सरकार में मंत्री रहे। भूपेंद्र के बेटे दीपेंद्र हुड्डा चौथी बार लोकसभा पहुंचे हैं। आज हुड्डा परिवार की तीसरी पीढ़ी राजनीति में है। हरियाणा के ताकतवर राजनीतिक परिवारों की सीरीज ‘परिवार राज’ के छठे एपिसोड में पढ़िए हुड्डा कुनबे की कहानी… जुलाई 1947, आजादी की तारीख तय हो चुकी थी। अलग-अलग जेलों में बंद नेताओं को छोड़ा जा रहा था। इस दौरान दिल्ली से 81 किलोमीटर दूर रोहतक के सांघी गांव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक संदेश आया- ‘गांधीवादी नेता रणबीर सिंह को देश की संविधान सभा में भेजा जा रहा है।’ 26 नवंबर 1914, को रोहतक में जन्मे रणबीर सिंह माता-पिता की तीसरी संतान थे। पिता चौधरी मातूराम राजनीति में सक्रिय थे। वे रोहतक में कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे आर्य समाज में शामिल होने वाले शुरुआती लोगों में शामिल थे। रणबीर के बचपन और शिक्षा पर भी आर्य समाज का प्रभाव था। 1937 में दिल्ली के रामजस कॉलेज से बीए पास करने के बाद वे सोच में पड़ गए कि नौकरी करें, वकालत करें या फिर खेती-बाड़ी। फिर सबकुछ छोड़कर वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। महात्मा गांधी का संयुक्त पंजाब में दौरा हुआ तो रणबीर उनसे जुड़ गए। उन्हें तीन साल जेल की सजा हुई। दो साल तक नजरबंद रखा गया। वे रोहतक, अंबाला, हिसार, फिरोजपुर, लाहौर, मुल्तान और सियालकोट की जेलों में कैद रहे। आजादी के बाद हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात यानी मेव बाहुल्य इलाकों में दंगे शुरू हो गए। बताया जाता है कि मेव जाति के लोग मूल रूप से राजपूत, जाट, अहीर और मीणा जाति के थे, लेकिन 12वीं सदी के बीच उन्होंने इस्लाम अपना लिया। दंगों की वजह से मेव समुदाय के लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया। पंजाब विधानसभा के सदस्य और मेवात के रहने वाले चौधरी यासीन खान मेवातियों के इस फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने इसकी जानकारी चौधरी रणबीर सिंह को दी। रणबीर सिंह, यासीन को लेकर महात्मा गांधी के पास पहुंचे। 19 दिसंबर 1947 को गांधी उनके साथ मेवात पहुंचे। गांधी ने कहा- ‘मेव कौम हिंदुस्तान के रीढ़ की हड्डी है। किसी से डरना नहीं है। आज से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।’ गांधी की अपील का असर हुआ और लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला बदल लिया। हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात एरिया में आज भी मेव समुदाय की बड़ी आबादी है। इन इलाकों में रणबीर सिंह का मजबूत प्रभाव था। 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। रणबीर रोहतक से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1957 में वे दूसरी बार रोहतक से चुने गए। इसके बाद 1962 में वे संयुक्त पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए। उन्हें प्रताप सिंह कैरों सरकार में बिजली, सिंचाई, पीडब्ल्यूडी और स्वास्थ्य जैसे महकमों की जिम्मेदारी दी गई। भाखड़ा-नांगल पावर प्रोजेक्ट में उनका अहम योगदान रहा। इंदिरा की पसंद होने के बाद भी सीएम नहीं बन पाए रणबीर सिंह 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। मुख्यमंत्री पद के लिए तीन दावेदार थे- रणबीर सिंह, भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंद्र सिंह। रणबीर सिंह अपनी आत्मकथा ‘स्वराज के स्वर’ में लिखते हैं- ‘लोग मेरे पास आए और कहने लगे, ‘आप कैसे बैठे हैं? आप सबसे ज्यादा तर्जुबेकार हैं। पंजाब में सीनियर मंत्री रहे हैं। आपसे ज्यादा योग्य यहां कौन है? मैंने जवाब दिया- सब योग्य हैं। मैंने आज-तक सत्ता के लिए भागदौड़ नहीं की। अब क्यों करूं?’ रणबीर लिखते हैं- ‘मैं सब कुछ तटस्थ भाव से देखता रहा। इंदिरा गांधी मेरी वरिष्ठता और देश के लिए जो कुछ भी मैंने किया था, उसे देखते हुए मुझे मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं। उस वक्त गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे। वह पंजाब-हरियाणा के मामलों को देख रहे थे। इंदिरा उनकी बात सुन लेती थीं। उन्होंने भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बनाने में पूरा जोर लगा दिया।’ इस तरह भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले सीएम बने और रणबीर सिंह कैबिनेट मंत्री। तब रणबीर सिंह 52 साल के थे। उन्हें लगने लगा था कि वे ज्यादा दिन राजनीति नहीं कर पाएंगे। बड़े बेटे को चुनाव में उतारा, लेकिन जीत नहीं दिला सके साल 1972, कांग्रेस में दो फाड़ हो चुका था। कांग्रेस (आर) यानी इंदिरा का गुट और कांग्रेस (ओ) यानी सिंडिकेट नेताओं का गुट। तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। रणबीर ने बड़े बेटे प्रताप सिंह को कांग्रेस (आर) के टिकट पर रोहतक जिले की किलोई सीट से चुनाव में उतारा, लेकिन वे हार गए। कुछ ही सालों बाद उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। इधर, छोटे बेटे भूपेंद्र वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहतक कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे थे। वे कॉलेज के वक्त ही कांग्रेस से जुड़ गए थे। राजीव गांधी ने लिस्ट में भूपेंद्र हुड्डा का नाम लिखा, भजनलाल ने कटवा दिया साल 1982, भारत एशियाई खेलों की मेजबानी कर रहा था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी जिम्मेदारी राजीव गांधी को सौंपी थी। उसी साल हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होने थे। सूबे की कमान चौधरी भजनलाल के हाथों में थी। राजीव गांधी ने हरियाणा से 10-12 युवा नेताओं की लिस्ट तैयार की। इसमें भूपेंद्र हुड्डा का भी नाम था। इसके बारे में भजनलाल को पता चला, तो उन्होंने कांग्रेस नेता सीताराम केसरी से कहकर लिस्ट से हुड्डा का नाम हटवा दिया। राजीव के पास दोबारा लिस्ट आई। उन्होंने फिर से हुड्डा का नाम जुड़वा दिया। विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा किलोई सीट से उतरे। राजीव ने उनके समर्थन में रैली की, लेकिन वे हार गए। 1987 में उन्हें दोबारा किलोई से टिकट मिला। फिर से हुड्डा हार गए। हुड्डा एक इंटरव्यू में बताते हैं- ‘चौधरी भजनलाल को मेरे पिता के सपोर्ट से पहली बार टिकट मिला था, लेकिन मेरी बारी आई तो मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अड़चनें खड़ी कीं। पॉलिटिकल बैकग्राउंड का मुझे फायदा मिला। दादा और पिता की गांधी परिवार से नजदीकियां रहीं। इसलिए 1982 में हारने के बाद भी 1987 मुझे टिकट दिया गया।’ 1991 में पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल को हराकर जायंट किलर बने भूपेंद्र हुड्डा वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1991 में लोकसभा के साथ ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। भूपेंद्र हुड्डा लगातार तीसरी बार किलोई से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। इस सीट पर भजनलाल के करीबी कृष्णमूर्ति हुड्डा भी दावेदारी जता रहे थे। भूपेंद्र हुड्डा के ममेरे भाई और राजीव गांधी के करीबी बीरेंद्र सिंह तब टिकट वितरण में अहम भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने हुड्डा को विधानसभा की बजाय लोकसभा चुनाव लड़ने की सलाह दी। उन्हें रोहतक से टिकट मिला। यहां उनका मुकाबला पूर्व उप प्रधानमंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके चौधरी देवीलाल से था। हुड्डा करीब 30 हजार वोटों से चुनाव जीत गए। देवीलाल को हराना बहुत बड़ी बात थी। इसके बाद हुड्डा जाइंट किलर कहलाने लगे। इसके बाद 1996 और 1998 में भी हुड्डा ने देवीलाल को हराकर हैट्रिक लगाई, लेकिन 1999 में वे देवीलाल की पार्टी INLD के उम्मीदवार इंदर सिंह से हार गए। उस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हरियाणा में खाता नहीं खोल पाई थी। भजनलाल की रैली में हुड्डा के साथ धक्का-मुक्की, कुर्ता भी फट गया साल 1997, प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद भूपेंद्र हुड्डा ने गोहाना में जनसभा की। उसमें भजनलाल भी शामिल हुए, लेकिन उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया। भजनलाल को काफी ठेस पहुंची। इसके बाद दोनों के अनबन की खबरें खुलकर सामने आने लगीं। कांग्रेस आलाकमान ने फरमान जारी किया कि प्रदेश में कांग्रेस के कार्यक्रमों की अध्यक्षता हुड्डा ही करेंगे। भजनलाल को भी पार्टी के कार्यक्रमों में हुड्डा को अध्यक्षता करने के लिए बुलाना होगा। साथ ही एक पर्यवेक्षक भी रखना होगा, ताकि कोई गड़बड़ी नहीं हो। करीब चार साल बाद। साल 2001, भजनलाल ने भिवानी के किरोड़ीमल पार्क में चौटाला सरकार के खिलाफ एक रैली रखी। भूपेंद्र हुड्डा को इस रैली की अध्यक्षता करनी थी। सुनियोजित तरीके से आगे की 300-400 कुर्सियों पर भजनलाल खेमे के कार्यकर्ताओं को बैठाया गया। थोड़ी देर बाद हुड्डा अपने समर्थकों के साथ मंच पर पहुंचे। हुड्डा ने जैसे ही बोलना शुरू किया भजनलाल समर्थक नारेबाजी करने लगे। जबरदस्त हूटिंग शुरू हो गई। हुड्डा का बोलना मुश्किल हो गया। उनके साथ धक्का-मुक्की भी हुई, जिसमें उनका कुर्ता फट गया। बड़ी मुश्किल से वे रैली से बचकर निकले। चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया, मुख्यमंत्री बने हुड्डा 2005 विधानसभा चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया। भूपेंद्र टिकट बंटवारे की स्क्रीनिंग कमेटी में भी नहीं थे। भजनलाल ने अपने करीबियों को टिकट दिलवाए। कांग्रेस ने 67 सीटें जीतीं। भजनलाल को उम्मीद थी कि वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे। विधायकों को साधने के लिए उन्होंने अपने बेटे कुलदीप को लगा रखा था, लेकिन विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर आम सहमति नहीं बन पाई। तय हुआ कि आलाकमान मुख्यमंत्री पद का फैसला करेगा। यहां भूपेंद्र हुड्डा के सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल से संबंध बहुत काम आए। 3 मार्च को भजनलाल को संदेश मिला कि आलाकमान ने भूपेंद्र हुड्डा को सीएम बनाने का फैसला किया है। बदले में उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनने, छोटे बेटे को केंद्रीय मंत्री और बड़े बेटे को डिप्टी सीएम बनाने का ऑफर दिया गया। भजनलाल अड़ गए। उन्होंने दावा किया कि 37 विधायक उनके साथ हैं। अगर किसी और को सीएम बनाया जाता है, तो तीन महीने के अंदर वे सरकार गिरा देंगे। उनके समर्थकों ने दिल्ली में हंगामा भी किया, लेकिन अहमद पटेल सोनिया गांधी को ये समझाने में कामयाब रहे कि अगर इस समय वे झुक गईं तो पार्टी पर उनकी पकड़ कमजोर हो जाएगी। बाकी राज्यों में भी बगावत हो सकती है। इधर चौधरी भजनलाल सारे दांवपेच आजमा चुके थे। आखिर में उन्होंने भी इस फैसले को मान लिया। उनके बड़े बेटे चंद्रमोहन को डिप्टी सीएम बनाया गया। कभी चेन स्मोकर थे हुड्डा, रोज 30 सिगरेट पी जाते थे 2023 में एक मीडिया इंटरव्यू में हुड्डा ने बताया- ‘कॉलेज के दिनों की बात है। मुझे सिगरेट पीने की लत लगी। एक पैकेट में 20 सिगरेट आती थीं। मैं रोज के डेढ़ पैकेट पीता था। एक दिन मैं चंडीगढ़ जा रहा था। तब मैं सीएम था। उस दिन पिता सैर करके वापस आ रहे थे। उन्होंने मुझे देखा तो मेरी गाड़ी रुकवाई। मैंने उन्हें नमस्ते किया, पैर छुए। उन्होंने मुझसे एक ही बात कही कि ‘भूपेंद्र सिगरेट छोड़ दे, नहीं तो मैं सत्याग्रह कर दूंगा। उनकी बात सुनकर मुझे काफी तकलीफ हुई। मेरे बड़े भाई भी स्मोक करते थे। उन्हें गले में कैंसर हो गया था। उसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई। पिता के दिमाग में यही बात चलती थी कि कहीं मेरे साथ ऐसा ना हो जाए। उस दिन के बाद मैंने कभी सिगरेट नहीं पी।’ मुख्यमंत्री बनते ही हुड्डा ने इकलौते बेटे को सौंपी विरासत भूपेंद्र हुड्डा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद बेटे दीपेंद्र हुड्डा को अमेरिका में मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छुड़वाकर रोहतक लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़वाया। दीपेंद्र आसानी से चुनाव जीत गए। इसके बाद भूपेंद्र हुड्डा ने अपने विरोधी नेताओं को एक-एक कर निपटाना शुरू कर दिया। 2007 में भजनलाल और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई को पार्टी से निकाल दिया गया। हालांकि, भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन 2008 तक डिप्टी सीएम बने रहे। भजनलाल के अलग होते ही हुड्डा की कांग्रेस हाईकमान पर पकड़ और मजबूत हो गई। उस वक्त कांग्रेस आलाकमान के दरबार में अहमद पटेल, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, अशोक गहलोत जैसे नेताओं की तूती बोलती थी। 2010 में राहुल गांधी ने युवा नेताओं की एक अलग टीम बनाई, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता शामिल थे। 2014 के बाद सीनियर नेता साइड लाइन होते चले गए। ऐसे में भूपेंद्र हुड्डा ने सांसद बेटे दीपेंद्र के जरिए गांधी परिवार में अपना दबदबा बरकरार रखा। दीपेंद्र राहुल गांधी ही नहीं, बल्कि प्रियंका गांधी के भी भरोसेमंद बन गए। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी लहर के बावजूद वे अपनी रोहतक सीट को बचाने में कामयाब रहे। राजस्थान के बड़े राजनीतिक घराने की बेटी हैं दीपेंद्र की पत्नी श्वेता दीपेंद्र हुड्डा की पहली शादी गीता ग्रेवाल से हुई थी, 2005 में उनका तलाक हो गया। उसके बाद हुड्डा ने राजस्थान के दिग्गज जाट नेता और पांच बार सांसद रहे नाथूराम मिर्धा की पोती श्वेता से शादी की। श्वेता राजनीति से दूर हैं, लेकिन उनकी बहन ज्योति मिर्धा राजस्थान की नागौर सीट से सांसद रह चुकी हैं। उन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव नागौर सीट से बीजेपी के टिकट पर लड़ा, लेकिन हार गईं। उनके दादा इसी सीट से पांच बार सांसद रहे थे। किरण चौधरी का टिकट कटा, आरोप लगा हुड्डा पर पूर्व सीएम बंसीलाल चौधरी की बहू किरण चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से अपनी बेटी श्रुति चौधरी के लिए टिकट मांग रही थीं। उनकी बेटी इस सीट पर सांसद भी रह चुकी हैं, लेकिन पार्टी ने श्रुति का टिकट काटकर हुड्डा के खास महेंद्रगढ़ से विधायक राव दान सिंह को दे दिया। किरण नाराज हो गईं और चुनाव प्रचार से दूरी बना लीं। राव दान सिंह चुनाव हार गए। कुछ ही दिनों बाद किरण, बेटी के साथ बीजेपी में शामिल हो गईं। ‘परिवार राज सीरीज’ की ये स्टोरीज भी पढ़िए… 1. देवीलाल ने राज्यपाल को तमाचा जड़ दिया था:खुद डिप्टी PM, बेटा 5 बार CM; बोले-अपनों को न बनाऊं, तो क्या पाकिस्तान से लाऊं 2. बंसीलाल पर 164 अविवाहितों की नसबंदी का आरोप लगा:4 बार CM बने; बड़ा बेटा BCCI अध्यक्ष बना, छोटा बेटा सांसद रहा 3. विधायक बचाने के लिए बंदूक रखते थे भजनलाल:केंद्रीय मंत्री बने तो पत्नी को MLA बनवाया; मुस्लिम बनने पर बेटे को पार्टी से निकाला 4. राव बीरेंद्र को मनाने हवाई चप्पल में पहुंचीं इंदिरा:चुनौती देकर 13 दिनों में कांग्रेस की सरकार गिराई; अब दो दलों में बंटा परिवार 5. ओपी जिंदल बीड़ी पीते, दोस्तों संग ताश खेलते:देवीलाल ने बिजली काटी तो राजनीति में उतरे; बेटा BJP सांसद, पत्नी का टिकट कटा हरियाणा | दैनिक भास्कर
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रोहतक में पूर्व मंत्री का हुड्डा पर निशाना:मनीष ग्रोवर बोले- भूपेंद्र हुड्डा पुत्र मोह में बने धृतराष्ट्र, कांग्रेस के लिए बने नासूर रोहतक के दिल्ली रोड़ स्थित कैंप कार्यालय में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सहकारिता मंत्री मनीष कुमार ग्रोवर ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर निशाना साधा। उन्होंने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को धृतराष्ट्र बताया। उन्होंने कहा कि हुड्डा ने पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बनकर काम किया है। वह कांग्रेस के लिए नासूर बन गए हैं। लगातार तीन चुनाव से हुड्डा हरियाणा में कांग्रेस की वापसी के दावे करते आ रहे हैं, लेकिन हरियाणा की जनता ने कांग्रेस की दमनकारी नीति और हुड्डा के शासन के गुंडई भरे दिनों को याद करते हुए उन्हें आइना दिखा दिया है। हुड्डा दलितों और पिछड़ों के सबसे बड़े विरोधी बनकर सामने आए हैं। मनीष ग्रोवर ने कहा कि रोहतक विधानसभा के लोगों ने 2019 की तुलना में उन्हें 11 हजार ज्यादा वोट दिए हैं। रोहतक विधानसभा के प्रत्येक मतदाता का दिल की गहराई से आभार व्यक्त करता हूं। हर वर्ग ने दिल खोलकर साथ दिया और अगले 5 साल पहले से ज्यादा ऊर्जा के साथ लोगों के और कार्यकर्ताओं के काम करेंगे। रोहतक विधानसभा की बेहतरी के लिए हर संभव जो काम होगा, वह करेंगे। कांग्रेस में भी हुड्डा के खिलाफ विरोध
पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए ग्रोवर ने कहा कि कांग्रेस हाईकमान ने जहां पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा को अनेक मौके दिए हैं, वहीं हुड्डा पिछले तीन चुनावों से हरियाणा में कांग्रेस की सत्ता वापसी के बड़े-बड़े दावे करते रहे। 2024 के विधानसभा चुनाव में भी हरियाणा की जनता ने हुड्डा के दावों की हवा निकाल कर रख दी। आज कांग्रेस के अंदर ही हुड्डा के खिलाफ जबरदस्त विरोध हो रहा है। हुड्डा ने पुत्र मोह में दलितों और पिछड़ों के नेताओं की भी इस कदर राजनीतिक हत्या की है कि वह इस वर्ग के सबसे बड़े धुरविरोधी बनकर सामने आए हैं। हुड्डा ने कांग्रेस हाईकमान को किया गुमराह
मनीष ग्रोवर ने कहा कि हरियाणा की जनता ने भाजपा को दिल खोलकर वोट दिए हैं। लोगों ने कांग्रेस और हुड्डा की गुंडागर्दी पर लगाम लगाते हुए जनहित में काम कर रही भाजपा को लगातार तीसरी बार मौका देने का काम किया है। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी द्वारा लिए जा रहे फैसलों से हर वर्ग खुश है और रोहतक जिले में भी हर वर्ग के हितों का पूरा ख्याल रखा जाएगा। इस मौके पर भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष सतीश नांदल, पूर्व मेयर मनमोहन गोयल, जिला परिषद की चेयरपर्सन मंजू हुड्डा, रेनू डाबला, दीपक हुड्डा, जिला अध्यक्ष रणवीर ढाका आदि मौजूद रहे।
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हरियाणा के ऊर्जा मंत्री की अधिकारियों को हिदायत:विज बोले- एक घंटे में बदला जाए खराब ट्रांसफार्मर, शॉर्ट सर्किट पर मुआवजे को लेकर विचार चंडीगढ़ में ऊर्जा मंत्री अनिल विज ने आज बिजली डिपार्टमेंट के अधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने कहा कि मैंने अधिकारियों से कहा कि अगर शहर में ट्रांसफार्मर खराब हो जाता है तो उसको एक घंटे में बदला जाए और गांव में दो घंटे में बदला जाए। अगर किसी ट्रांसफार्मर में लोड ज्यादा है तो उसको अपग्रेड किया जाए। अनिल विज ने कहा कि हमने निर्णय लिया है कि खराब ट्रांसफार्मर का डाटा एकत्रित किया जाए कि कितने ट्रांसफार्मर हैं और उन ट्रांसफार्मर में कितना लोड है। हमने इसकी रिपोर्ट भी मंगवाई है। उन्होंने आगे कहा कि मुफ्त सूर्य योजना को लेकर हमने तय किया है कि हमारे पास एक लाख के लगभग एप्लिकेशन है और हम उनको जल्द कनेक्शन देंगे। हम सोलर लाइट को लेकर बढ़ावा देना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि कई बार यह इश्यू आता है कि शॉर्ट सर्किट के कारण घर को और दुकान को आग लग गई है। उसको लेकर भी हम जल्द कोई पॉलिसी बनाएंगे। शॉर्ट सर्किट की जांच करके पीड़ित को क्या मुआवजा देना है उस पर विचार किया जाएगा। हरियाणा में लाइन लॉस अभी 10% है। मैंने उत्तर और दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम को कहा है कि जो भी कदम उठाने पड़े हम उसको 10% से नीचे लाएंगे।
ओलिंपिक से पहले नीरज ने जीता गोल्ड:पावो नूरमी गेम्स में 85.97 मीटर थ्रो किया; मसल्स में खिंचाव के कारण एक टूर्नामेंट छोड़ा
ओलिंपिक से पहले नीरज ने जीता गोल्ड:पावो नूरमी गेम्स में 85.97 मीटर थ्रो किया; मसल्स में खिंचाव के कारण एक टूर्नामेंट छोड़ा टोक्यो ओलिंपिक में जेवलिन थ्रो के गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा ने फिन लैंड के टुर्कु में आयोजित पावो नूरमी गेम्स में जेवलिन में गोल्ड मेडल जीता है। उन्होंने 85.97 थ्रो करके पहला स्थान प्राप्त किया।
नीरज के अलावा फिनलैंड के टोनी केरानेन ने 84.19 मीटर के थ्रो के साथ दूसरे स्थान पर रहकर सिल्वर मेडल और ओलिवियर हेलांडर ने 83.96 मीटर के अपने सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ बॉन्ज मेडल जीता है। इस प्रतियोगिता में नीरज दूसरे थ्रो में पिछड़ गए थे। लेकिन इसके बाद उन्होंने न केवल अच्छी वापसी की, बल्कि अपना बेस्ट थ्रो भी किया। अगले महीने से पेरिस ओलिंपिक गेम्स नीरज का गोल्ड जीतना भारत के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि 26 जुलाई से 11 अगस्त तक पेरिस ओलिंपिक गेम्स है। नीरज को पिछले महीने प्रैक्टिस के दौरान मांसपेशियों में खिंचाव आ गया था। इस वजह से उन्होंने 28 मई को चेक गणराज्य में आयोजित ओस्ट्रावा गोल्डन स्पाइक टूर्नामेंट में हिस्सा नहीं लिया था। इसकी जानकारी नीरज ने सोशल मीडिया पर दी थी। नीरज चोपड़ा ने लिखा था, “मुझे ये समस्या पहले भी रही है। इस स्टेज पर अगर मैं खुद को पुश करता हूं तो ये चोट में बदल सकती है। मैं साफ कर दे रहा हूं कि मैं चोटिल नहीं हूं, पर मैं ओलिंपिक्स से पहले कोई खतरा नहीं लेना चाहता। जैसे ही मैं पूरी तरह से रिकवर हो जाऊंगा, मैं चैम्पियनशिप में वापसी करूंगा। आपके सपोर्ट के लिए धन्यवाद।” पहले आगे और फिर पीछे हो गए थे नीरज नीरज चोपड़ा सबसे पहले थ्रो करने आए और उन्होंने पहली ही बार में 83.62 मीटर का थ्रो किया। हालांकि यह उनकी खराब शुरुआत नहीं थी। वे एंडरसन पीटर्स से आगे रहे, जिन्होंने पहली बार में 82.58 मीटर का थ्रो किया। दूसरे प्रयास में नीरज ने 83.45 मीटर का थ्रो किया जो उनके शुरुआती प्रयास से बेहतर नहीं था। दूसरे प्रयास के बाद नीरज पिछड़ गए थे और ओलिवियर हेलांडर ने बढ़त बना ली थी। ओलिवियर ने दूसरे प्रयास में 83.96 मीटर का थ्रो किया था। इससे नीरज दूसरे स्थान पर खिसक गए थे। तीसरी थ्रो में हुए आगे दूसरे प्रयास में पिछड़ने के बाद नीरज ने तीसरे प्रयास में शानदार वापसी की। उन्होंने 85.97 मीटर का थ्रो कर बढ़त हासिल कर ली। नीरज का यह सर्वश्रेष्ठ थ्रो रहा। नीरज 8 भाला फेंक एथलीट में एकमात्र खिलाड़ी रहे जिन्होंने 85 मीटर के थ्रो को पार किया। वहीं, ओलिवियर अपने तीसरे प्रयास में 83 मीटर के पार भी नहीं जा सके और उन्होंने 82.60 मीटर का थ्रो किया। तीसरा प्रयास समाप्त होने के बाद नीरज ने अपनी बढ़त बनाए रखी। चौथे प्रयास में 82.21 मीटर का थ्रो किया। नीरज का यह इस मुकाबले का सबसे कमजोर थ्रो रहा, लेकिन इससे उनकी बढ़त पर कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि अन्य कोई एथलीट उनके सर्वश्रेष्ठ थ्रो के करीब भी नहीं पहुंच सका। इस तरह नीरज ने चौथे प्रयास के समाप्त होने के बाद भी अपनी बढ़त को बरकरार रखा। पांचवा हुआ फाउल, लेकिन कोई पीछे नहीं छोड़ सका नीरज पांचवें प्रयास में फाउल कर बैठे, लेकिन राहत की बात यह रही कि इस प्रयास में भी कोई नीरज को पीछे नहीं छोड़ सका और पांचवें प्रयास की समाप्ति के बाद भी टोक्यो ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता इस खिलाड़ी की बादशाहत बरकरार रही। पांचवें प्रयास में आंद्रियन मारडारे ही 82 मीटर के थ्रो को पार कर सके, जबकि नीरज सहित तीन खिलाड़ियों ने फाउल किया। हालांकि, छठे प्रयास में नीरज ने 82.97 मीटर का थ्रो किया। दिलचस्प बात यह रही कि अंतिम प्रयास में नीरज और मैक्स डेहिंग ही सफल प्रयास कर सके, जबकि अन्य सभी खिलाड़ियों ने फाउल किया। स्पोर्ट्स की ये खबरें भी पढ़ें… ओलिंपिक गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा को मांसपेशियों में परेशानी: कहा- चोटिल नहीं हूं, पर ओलिंपिक्स से पहले कोई रिस्क नहीं ले सकता भारत के स्टार जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा को ओलिंपिक्स से दो महीने पहले मांसपेशियों में परेशानी आ गई है। नीरज चोपड़ा ने इंस्टाग्राम पर इसकी जानकारी दी है। उन्होंने लिखा- ”थ्रोइंग सेशन में हिस्सा लेने के बाद मैंने ओस्ट्रावा गोल्डन स्पाइक टूर्नामेंट में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया है पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। नीरज चोपड़ा को नेशनल एथलेटिक्स फेडरेशन कप में गोल्ड:82.27 मीटर थ्रो फेंककर पहला स्थान हासिल किया, कर्नाटक के डीपी मनु को सिल्वर नेशनल एथलेटिक्स फेडरेशन कप में नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल जीत लिया है। 2020 के टोक्यो ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीतने के बाद नीरज भारत में पहली बार किसी कॉम्पिटिशन में हिस्सा ले रहे थे। उन्होंने अपने चौथे अटैम्प्ट में 82.27 मीटर का थ्रो फेंका, इसी थ्रो से उन्होंने पहला स्थान हासिल कर गोल्ड मेडल जीता पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।