हरियाणा के भिवानी जिले के बवानी खेड़ा में सड़क किनारे खेत में लगा टयूबवेल का इंजन चोरी हो गया। किसान सुबह खेत में गया तो इंजन गायब था। खेत में चोरी की सूचना के बाद आसपास के किसानों की भीड़ लग गई। इसके बाद चोरी की सूचना पुलिस को दी गई। क्षेत्र में खेतों में बढ़ती चोरी की वारदातों से किसान दुखी हैं। बवानी खेड़ा के वार्ड 5 निवासी किसान मनफूल ने बताया कि उसने हांसी-भिवानी मुख्य रोड पर रामबाग के पास इंजन से चलने वाला ट्यूबवेल लगाया हुआ था। इससे वह डीजल से इंजन को चलाकर खेतों में पानी से अपनी फसलों को सिंचाई करता था। बीती रात बुधवार लगभग 12 बजे तक ये ट्यूबवेल का इंजन वहीं मौजूद था। लेकिन सुबह 4 बजे देखा तो ये इंजन गायब था। अज्ञात के द्वारा इसकी चोरी की गई है। किसान मनफूल ने बताया कि चोरी किए गए इंजन की कीमत लगभग 45 हजार रुपए है। इसके अलावा चोरी करने वाले ने पाइप भी काट दिया। ब्लेड व चोरी करने वाले की चप्पल मौके पर ही पड़ी मिली हैं। किसान ने पुलिस में शिकायत देकर चोर को गिरफ्तार करे उसके खिलाफ कार्यवाही करने की गुहार लगाई। किसान ने पुलिस ने कहा कहा कि उसके इंजन की तलाश कर उसे दिलाएं ताकि वह फसलों की सिंचाई कर सके। हरियाणा के भिवानी जिले के बवानी खेड़ा में सड़क किनारे खेत में लगा टयूबवेल का इंजन चोरी हो गया। किसान सुबह खेत में गया तो इंजन गायब था। खेत में चोरी की सूचना के बाद आसपास के किसानों की भीड़ लग गई। इसके बाद चोरी की सूचना पुलिस को दी गई। क्षेत्र में खेतों में बढ़ती चोरी की वारदातों से किसान दुखी हैं। बवानी खेड़ा के वार्ड 5 निवासी किसान मनफूल ने बताया कि उसने हांसी-भिवानी मुख्य रोड पर रामबाग के पास इंजन से चलने वाला ट्यूबवेल लगाया हुआ था। इससे वह डीजल से इंजन को चलाकर खेतों में पानी से अपनी फसलों को सिंचाई करता था। बीती रात बुधवार लगभग 12 बजे तक ये ट्यूबवेल का इंजन वहीं मौजूद था। लेकिन सुबह 4 बजे देखा तो ये इंजन गायब था। अज्ञात के द्वारा इसकी चोरी की गई है। किसान मनफूल ने बताया कि चोरी किए गए इंजन की कीमत लगभग 45 हजार रुपए है। इसके अलावा चोरी करने वाले ने पाइप भी काट दिया। ब्लेड व चोरी करने वाले की चप्पल मौके पर ही पड़ी मिली हैं। किसान ने पुलिस में शिकायत देकर चोर को गिरफ्तार करे उसके खिलाफ कार्यवाही करने की गुहार लगाई। किसान ने पुलिस ने कहा कहा कि उसके इंजन की तलाश कर उसे दिलाएं ताकि वह फसलों की सिंचाई कर सके। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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गोद लेकर मुकरे तो पिता को कोर्ट में घसीटा:इंदिरा के न चाहते हुए भी 2 बार CM बने भगवत दयाल; 13 दिन में गिरी सरकार
गोद लेकर मुकरे तो पिता को कोर्ट में घसीटा:इंदिरा के न चाहते हुए भी 2 बार CM बने भगवत दयाल; 13 दिन में गिरी सरकार 26 जनवरी 1918, संयुक्त पंजाब के जींद जिले के बैरो गांव में एक बच्चे का जन्म हुआ। सवा साल बाद उसकी मां नहीं रहीं। पिता हीरालाल शास्त्री ने कुछ साल बच्चे को संभाला, फिर रोहतक के मुरारीलाल को गोद दे दिया। गांव वालों की मौजूदगी में गोद देने कार्यक्रम भी हुआ। बच्चा 16 साल का हुआ, तो उसकी शादी करा दी गई। उसके बाद वो आजादी के आंदोलन में कूद गया, जेल भी गया। 14 साल बाद घर लौटा, तो गोद लेने वाले पिता मुरारीलाल के पास गया। उन्होंने उसे बेटा मानने से इनकार कर दिया। फिर वो हीरालाल के पास गया, उन्होंने कहा- ‘हम तो पहले ही तुम्हें गोद दे चुके हैं।’ दरअसल, जब लड़का जेल में था, तब ब्रितानिया हुकूमत की पुलिस हीरालाल और मुरारीलाल के घर पहुंची थी। दोनों डर गए थे कि उस लड़के की वजह से उन पर मुकदमा न हो जाए। इन सब के बीच लड़के को याद आया कि उसकी एक बहन है, जो गोद लेने वाले पिता की बेटी थी। गांव वालों से पता चला कि उसकी शादी दिल्ली में हुई है। वो बहन से मिलने दिल्ली पहुंचा। उसे आपबीती सुनाई। दोनों भाई-बहन मुरारीलाल के पास पहुंचे, लेकिन उन्होंने लड़के को बेटा मानने से फिर इनकार कर दिया। थक हारकर लड़के ने रोहतक कोर्ट में मुरारीलाल के खिलाफ केस कर दिया। गांव वाले उसके पक्ष में थे, लेकिन कोर्ट गोद लिए जाने का सबूत मांग रहा था। लड़के ने कोर्ट के सामने एक तस्वीर पेश की, जिसमें वो गोद लेने वाले पिता की गोद में बैठा था। फैसला लड़के के पक्ष में आया। मुरारीलाल रो पड़े। लड़के ने उन्हें प्रणाम किया, गले लगाया और कहा- ‘मुझे आपकी संपत्ति नहीं चाहिए, मैं बस ये चाहता था कि आपको अपनी गलती का एहसास हो।’ आगे चलकर यही लड़का हरियाणा का पहला मुख्यमंत्री बना, नाम- भगवत दयाल शर्मा। उनकी बेटी डॉ. भारती शर्मा ने अपनी किताब ‘स्मृतियों के आइने में पंडित भगवत दयाल शर्मा’ में इस किस्से का जिक्र किया है। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज ‘मैं हरियाणा का सीएम’ के पहले एपिसोड में भगवत दयाल शर्मा के मुख्यमंत्री बनने की कहानी… डॉ. भारती शर्मा लिखती हैं- साल 1962, प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों से कहा- मैं दिल्ली को स्विट्जरलैंड बनाना चाहता हूं। वे अपनी बात पूरी करते, उससे पहले ही कैरों बोल पड़े- पंडित जी मुझसे पंजाब का टुकड़ा मत मांगो, क्योंकि स्विट्जरलैंड के चारों तरफ तो 40 मील तक फैक्ट्रियां हैं। नेहरू ने तब के श्रम मंत्री रहे खंडू भाई देसाई से कहा कि प्रताप बहुत मजबूत हो चुका है। मुझे इसका विकल्प दो। खंडू भाई ने कहा- एक पढ़ा-लिखा शख्स है, इंदिरा से मिलने रोज जाता है। पंजाब का ही रहने वाला है। आप उसे मौका दो, भगवत दयाल नाम है। कुछ दिनों बाद… भगवत दयाल, इंदिरा से मिलकर दिल्ली के तीन मूर्ति भवन से बाहर निकल रहे थे। अचानक पंडित नेहरू की कार आ गई। कार रोककर नेहरू ने भगवत दयाल से उनका नाम पूछा। फिर अंदर बुला लिया। तीन मूर्ति भवन में दोनों के बीच देर तक बातचीत हुई। इस दौरान भगवत दयाल ने पंडित नेहरू से कहा- ‘मुझे झज्जर से शेर सिंह के सामने चुनाव लड़ना है।’ शेर सिंह झज्जर के कद्दावर नेता थे। लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके थे। नेहरू ने कहा कि उनके सामने तो मैं भी चुनाव हार जाऊंगा। आखिरकार भगवत दयाल शर्मा को टिकट मिला और वे करीब 16 हजार वोट से जीते। शेर सिंह के समर्थक हंगामे पर उतारू थे। भगवत दयाल ने एक तरकीब निकाली। उन्होंने शेर सिंह से कहा कि बाहर जाकर कह दो कि शेर सिंह चुनाव जीत गया है। शेर सिंह ने वैसा ही किया। शेर सिंह के समर्थकों ने उन्हें कंधों पर उठा लिया। हालांकि, कुछ देर बाद समर्थक जान गए कि शेर सिंह हार गए हैं। समर्थकों ने शेर सिंह को नीचे उतार दिया। इंदिरा ने देवीलाल की मदद से अलग हरियाणा के लिए भगवत दयाल को मनाया
1960 के दशक की शुरुआत में ही पंजाब के बंटवारे की सुगबुगाहट होने लगी थी। भाषा के आधार पर नया राज्य हरियाणा बनना था, लेकिन भगवत दयाल शर्मा इसके विरोध में थे। उनके निजी सुरक्षा अधिकारी रहे दादा राम स्वरूप बताते हैं- ‘इंदिरा गांधी ने भगवत दयाल शर्मा को बुलाकर कहा कि वे अलग हरियाणा राज्य की मांग करें, लेकिन पंडित जी ने इनकार कर दिया। उनका मानना था कि पंजाब को बड़े स्तर पर आर्थिक मदद दी गई है। बंटवारे से पहले हरियाणा को भी आर्थिक तौर पर मजबूत किया जाना चाहिए।’ इसके बाद इंदिरा ने चौधरी देवीलाल से कहा कि वे भगवत दयाल शर्मा से बात करें। आखिरकार देवीलाल ने भगवत दयाल को मना लिया। डॉ. भारती शर्मा लिखती हैं- ‘पंडित जी हरियाणा निर्माण के नहीं, बल्कि पंजाब के बंटवारे के खिलाफ थे। तब वे पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वे कांग्रेस से बाहर आकर ही हरियाणा बनने का समर्थन कर सकते थे। साथ ही वे जातिवाद और भाषाई संकीर्णता के हामी नहीं थे। जब एक बार राष्ट्रीय नेतृत्व ने पंजाब विभाजन का मन बना लिया, तो इतिहास गवाह है कि उन्होंने हरियाणा के हितों के लिए कांग्रेस आलाकमान से टक्कर लेने में गुरेज नहीं किया।’ इंदिरा के न चाहने के बाद भी हरियाणा के पहले CM बने भगवत दयाल
1 नवंबर 1966 को पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। उस दौरान संयुक्त पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भगवत दयाल शर्मा थे। राजनीतिक हलकों में चर्चा पहले से थी कि जो नए राज्य में कांग्रेस अध्यक्ष होगा, उसे ही CM बनाया जाएगा। भगवत दयाल शर्मा, जाट नेताओं के विरोध के बावजूद अब्दुल गफ्फार खान को हराकर हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बन गए। इधर, दिल्ली में इंदिरा पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं। ये वो दौर था जब कांग्रेस में मोरारजी देसाई, गुलजारी लाल नंदा जैसे नेताओं का दबदबा था। गुलजारी लाल नंदा उस समय केंद्रीय गृहमंत्री थे और पंजाब के मामलों को देख रहे थे। भगवत दयाल के साथ ही पंजाब कैबिनेट में मंत्री रहे चौधरी रणबीर सिंह और राव बीरेंद्र सिंह भी CM की रेस में थे। वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘इंदिरा गांधी जिस नेता को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं, वे राव बीरेंद्र सिंह थे। इंदिरा ने भगवत दयाल को बुलाकर कहा था कि वे राव को CM बनाना चाहती हैं और बेहतर होगा कि शर्मा इसमें बाधा न बनें। इस पर भगवत दयाल ने कहा- राव विधायक भी नहीं हैं। उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, तो गलत परंपरा शुरू हो जाएगी। ज्यादातर विधायक भी मेरे साथ हैं। इंदिरा ने भगवत दयाल का रुख भांपते हुए ज्यादा जोर नहीं दिया।’ दूसरी तरफ चौधरी रणबीर सिंह ने मुख्यमंत्री पद के लिए ज्यादा जोर-आजमाइश नहीं की। इसके अलावा हरियाणा को अलग राज्य बनाने और हिंदी आंदोलन के अगुवा रहे चौधरी देवीलाल और शेर सिंह 1962 से ही कांग्रेस से निष्कासित चल रहे थे। ऐसे में उनकी दावेदारी अपने आप खारिज हो गई। गुलजारी लाल नंदा, पंडित भगवत दयाल शर्मा को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। इंदिरा उनकी बात मानती थीं। उन्होंने पंडित भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए पूरा जोर लगा दिया। इस तरह भगवत दयाल शर्मा 1 नवंबर 1966 को हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री बने। CM बनने के बाद भगवत दयाल का पार्टी में दबदबा बढ़ने लगा। उन्होंने अपने करीबी रामकृष्ण गुप्ता को हरियाणा कांग्रेस का निर्विरोध अध्यक्ष बनवाया, ताकि राव बीरेंद्र सिंह और रणबीर सिंह का वर्चस्व न चले। 1967 में पहली बार हरियाणा विधानसभा के चुनाव की घोषणा हुई। वरिष्ठ पत्रकार महेश कुमार वैद्य बताते हैं- भगवत दयाल शर्मा कोताही नहीं बरतना चाहते थे। उन्होंने टिकट वितरण पर बारीकी से नजर रखी। उनकी कोशिश थी कि किसी भी ऐसे उम्मीदवार को टिकट न मिले, जो आगे चलकर उनके खिलाफ बगावत कर दे। मुख्यमंत्री भगवत दयाल कहते थे- ‘कुछ भी करो, लेकिन बंसीलाल को हराओ’
बंसीलाल के प्रिंसिपल सेक्रेटरी रहे रिटायर्ड IAS अफसर एसके मिश्रा अपनी किताब ‘फ्लाइंग इन हाई विंड्स’ में लिखते हैं- ‘हरियाणा बनने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे थे। मुख्यमंत्री भगवत दयाल मुझे पसंद करते थे। उन्होंने कहा कि आप साफ-सुथरा चुनाव कराइए, लेकिन दो लोगों को किसी भी तरह हराना होगा। पहला देवीलाल और दूसरा बंसीलाल। मैंने कहा- किसी को हराना या जिताना मेरे हाथ में नहीं है। मैं इसमें आपकी मदद नहीं कर सकता।’ भगवत दयाल ने देवीलाल का टिकट कटवाने के लिए पूरा जोर लगा दिया। उन्होंने मोरारजी देसाई की मदद से देवीलाल का टिकट कटवा दिया। मजबूरन देवीलाल ने बेटे प्रताप सिंह को ऐलनाबाद सीट से चुनाव लड़ाया। हालांकि, भगवत दयाल के न चाहने के बावजूद रणबीर सिंह और राव बीरेंद्र सिंह को टिकट मिल गया। चुनाव से पहले चौधरी देवीलाल और शेर सिंह भी वापस कांग्रेस में आ गए। भगवत दयाल ने नई सियासी चाल चली और जिन सीटों पर उनकी पसंद के उम्मीदवार नहीं थे, वहां निर्दलीय उम्मीदवार उतार दिए। इसका सबसे बड़ा उदाहरण रोहतक की किलोई सीट पर देखने को मिला, जहां से महंत श्रेयानाथ निर्दलीय उतरे। इसी सीट से चौधरी रणबीर सिंह चुनाव लड़ रहे थे। नतीजे आए तो रणबीर सिंह 8673 वोटों से हार गए। ये रणबीर सिंह की पहली हार थी। कांग्रेस ने 81 सीटों में से 48 सीटें जीत लीं। जनसंघ को 12, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को 2, स्वतंत्र पार्टी को 3 और 16 सीटें निर्दलीय को मिलीं। अब भगवत दयाल के सामने सिर्फ राव बीरेंद्र सिंह ही चुनौती थे। राव पटौदी विधानसभा सीट से चुनाव जीते थे। इंदिरा गांधी इस बार भी उन्हें CM बनाना चाहती थीं, लेकिन मोरारजी देसाई और गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने फिर से भगवत दयाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनवा दिया। 10 मार्च 1967 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। पहली बार किसी राज्य में CM का प्रस्ताव गिरा
CM बनने के बाद भगवत दयाल ने विरोधियों को किनारे करते हुए अपने करीबी नेताओं को मंत्री बनाया। इससे उनके प्रति विधायकों की नाराजगी और बढ़ गई। अब बारी थी विधानसभा स्पीकर चुनने की। इधर टिकट कटने से नाराज देवीलाल तय कर चुके थे कि किसी भी तरह भगवत दयाल की सरकार गिरानी है। उन्हें पता था कि इस काम में राव बीरेंद्र सिंह उनके साझेदार बन सकते हैं, लेकिन दोनों में पहले से तकरार चल रही थी। देवीलाल ने दिल्ली के एक बिल्डर की मदद ली। बिल्डर ने राव बीरेंद्र सिंह को डिनर के लिए घर बुलाया। जब राव बीरेंद्र सिंह उसके घर पहुंचे, तो वहां देवीलाल पहले से मौजूद थे। देवीलाल को देखते ही राव लौटने लगे, लेकिन बिल्डर ने जैसे-तैसे उन्हें रोक लिया। इसके बाद हिम्मत जुटाकर बताया कि देवीलाल उन्हें मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। राव ने जवाब दिया कि वे देवीलाल पर भरोसा नहीं कर सकते। उन्होंने पहले भी उनके साथ धोखा किया है। इसके बाद देवीलाल ने आगे बढ़कर राव बीरेंद्र सिंह को मनाया और स्पीकर का चुनाव लड़ने के लिए राजी कर लिया। 17 मार्च 1967, स्पीकर चुनने की तारीख तय हुई। CM भगवत दयाल शर्मा ने स्पीकर पद के लिए जींद के विधायक लाला दयाकिशन के नाम का प्रस्ताव रखा। उसी समय उन्हीं की पार्टी के एक विधायक ने राव बीरेंद्र सिंह का नाम भी प्रपोज कर दिया। मुख्यमंत्री दंग रह गए। वोटिंग हुई, राव बीरेंद्र सिंह जीत गए। आजाद भारत के इतिहास में ये पहला मौका था, जब किसी सदन में मुख्यमंत्री का प्रस्ताव खारिज हुआ। इससे हरियाणा में संवैधानिक संकट पैदा हो गया। कांग्रेस के बागी 12 विधायकों ने हरियाणा कांग्रेस नाम से नया ग्रुप बनाया। 16 निर्दलीय विधायकों ने मिलकर नवीन हरियाणा कांग्रेस बनाई। ये दोनों ग्रुप साथ मिल गए। भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने इनका समर्थन कर दिया। मजबूरन CM बनने के 13 दिन बाद ही भगवत दयाल को इस्तीफा देना पड़ गया। 24 मार्च 1967 को राव बीरेंद्र सिंह पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, 9 महीने बाद ही राज्यपाल ने बार-बार विधायकों के दल बदलने की बात कहकर विधानसभा भंग कर दी। जिस आधार पर भगवत दयाल ने राव को CM बनने से रोका, उसी आधार पर खुद फंस गए
मई 1968 में हरियाणा में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। इस बार भी कांग्रेस ने 81 में से 48 सीटें जीतीं। राव बीरेंद्र सिंह विशाल हरियाणा पार्टी नाम से अलग पार्टी बना चुके थे। अब CM की रेस में भगवत दयाल शर्मा के साथ चौधरी देवीलाल, शेर सिंह, गुलजारी लाल नंदा और रामकृष्ण गुप्ता शामिल थे। इस बार भगवत दयाल विधायक नहीं थे, लेकिन विधायक दल के नेता के लिए उनका दावा सबसे मजबूत था। विधायकों पर उनकी मजबूत पकड़ थी। इंदिरा गांधी को छोड़कर केंद्र में कांग्रेस के कई दिग्गज उनके साथ थे। संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप के हवाले से सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘भगवत दयाल कांग्रेस हाईकमान को 37 विधायकों के हस्ताक्षर वाला पत्र सौंप चुके थे। उसमें आग्रह किया गया था कि शर्मा को विधायक दल का नेता बनाया जाए, लेकिन पार्टी के संसदीय बोर्ड ने फैसला लिया कि जो विधायक नहीं हैं, उन्हें विधायक दल के नेतृत्व से दूर रखा जाएगा। ऐसे में चौधरी देवीलाल, शेर सिंह, गुलजारी लाल नंदा के साथ भगवत दयाल शर्मा भी विधायक दल के नेता की दौड़ से बाहर हो गए। ये भी अजीब संयोग है कि 1966 में जब इंदिरा, राव बीरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं, तब भगवत दयाल ने ही विधायक नहीं होने की दलील देते हुए राव को CM नहीं बनने दिया था।
दिवाली पर हरियाणवी लड़ियों से जगमगाएगा अयोध्या का राम मंदिर:करनाल की 250 महिलाओं के ग्रुप का कमाल, चाइनीज लड़ियों को दे रहीं टक्कर
दिवाली पर हरियाणवी लड़ियों से जगमगाएगा अयोध्या का राम मंदिर:करनाल की 250 महिलाओं के ग्रुप का कमाल, चाइनीज लड़ियों को दे रहीं टक्कर हरियाणा के करनाल में बनी स्वदेशी लड़ियों की दिवाली पर खूब डिमांड है। ये लड़ियां चीन में बनी लड़ियों को टक्कर दे रही हैं। सेवा भारती से जुड़ी महिलाएं लड़ियां बनाने में इतनी एक्सपर्ट हो चुकी हैं कि महज 4 महिलाएं ही 300 से ज्यादा लड़ियां एक दिन में बना देती हैं। एक लड़ी की कीमत 150 रुपए है। लोकल फॉर वोकल का लक्ष्य लेकर चली संस्था की महिलाओं द्वारा तैयार की गई लड़ियां अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन में भी शोभा बढ़ा चुकी हैं। इस दिवाली पर करीब 40 हजार लड़ियां राम मंदिर के लिए गई हैं। RSS की सेवा भारती विंग 1980 में अस्तित्व में आई थी। मौजूदा समय में यश देव त्यागी संस्था के अध्यक्ष हैं। महासचिव पंकज क्लेव हैं और कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी कृष्ण विज के पास है। बीते 5 साल से संस्था आत्मनिर्भर भारत, नारी सशक्तिकरण और स्वावलंबी भारत अभियान को बढ़ावा दे रही है। लड़ियों के अलावा यहां पर मल्टी ग्रेन आटा, पापड़, बड़ियां और टोकरी बनती हैं। संस्था के साथ लगभग 14 गांवों की 250 महिलाएं जुड़ी हुई हैं। महिलाएं गरीब परिवारों से हैं और ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है। अगर आमदनी की बात की जाए तो महिलाओं को कमीशन बेस पर मेहनताना मिलता है, जिससे उनके परिवार का गुजारा हो जाता है। ममता बोली- अच्छी आमदनी हो जाती है
महिला ममता ने बताया कि मैं 4 साल से संस्था के साथ जुड़कर काम कर रही हूं। मैं लड़ियों में सर्किट लगाने का काम करती हूं। मुझे यहां से अच्छी आमदनी हो जाती है। महिलाएं आगे बढ़ रही हैं और महिलाओं को भी चाहिए कि वे आत्मनिर्भर बने। यहां बहुत से गांव की महिलाएं काम करती हैं। यहां पर लड़ियों के अलावा दीये भी बनाए जाते हैं, इसके अलावा सिलाई सेंटर भी है। यहां महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने की ट्रेनिंग दी जाती है। इतना ही नहीं, लड़कियों के लिए कंप्यूटर क्लासेस भी लगती हैं। महिलाएं लड़ियां बनाने के काम में इतनी निपुण हो चुकी हैं कि यहां पर एक दिन में 300 लड़ियां भी बना लेती हैं। 45 सालों से काम कर रही है संस्था
संस्था के प्रांत उपाध्यक्ष रोशन लाल ने बताया कि सेवा भारती संस्था गरीब समाज के उत्थान के लिए पिछले 45 वर्षों से काम कर रही है। लड़ियों के प्रोजेक्ट से 13-14 गांवों से लगभग 250 परिवार जुड़े हुए हैं और उन्हें गर्व भी महसूस होता है कि हम स्वदेशी अभियान से जुड़े हुए हैं। यहां पर 15 साल से लेकर 70 साल तक की महिलाएं काम कर रही हैं। इसमें ज्यादा पढ़ी लिखी महिलाएं नहीं है। जिस काम को करने से हम डरते हैं, उस काम को महिलाएं अच्छी तरह से कर रही हैं। लड़ियां बनाने के लिए 2 या 3 घंटे की ट्रेनिंग दी जाती है, उसके बाद वे लड़ी बनाने में सक्षम हो जाती हैं।
अहमदाबाद, दिल्ली और गाजियाबाद से आता है कच्चा माल
रोशन लाल ने बताया कि संस्था 1980 से कार्य कर रही है। करनाल में आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किए हुए 5 साल हो चुके हैं। पहले साल जो लड़ियों का लोट गया था, उसके बाद आज तक किसी तरह की शिकायत नहीं आई। यहां पर हाथों से ही लड़ियों का काम किया जाता है। इसमें मशीनों का यूज नहीं होता। लड़ियों के लिए कच्चा माल अहमदाबाद, दिल्ली और गाजियाबाद से लिया जाता है। देश-विदेश में जा रहीं लड़ियां रोशन लाल ने बताया कि यहां से अयोध्या के राम मंदिर के लिए भी लड़ियां गई हैं। राम मंदिर कमेटी को पता है कि करनाल में लड़ियां बनती हैं। उन्होंने हमसे संपर्क किया था। 22 जनवरी को जब राम मंदिर का उद्घाटन हुआ था, तब राम मंदिर के लिए यहां से लड़ियां गई थीं। दरअसल, हमारे एक कार्यकर्ता ने राम मंदिर में लड़ियां देखी थीं। उनकी क्वालिटी ठीक नहीं थी। हमारे कार्यकर्ता ने राम मंदिर प्रबंधन कमेटी के कार्यकर्ता से बात की और स्वदेशी लड़ियों के बारे में बताया और सैंपल दिखाया। जिसके बाद राम मंदिर से हमें लड़ियों का ऑर्डर मिल गया। अब करनाल से भोपाल, जम्मू कश्मीर और अन्य राज्यों में भी लड़ियां गई हैं। यहां से लोग अपने रिश्तेदारों को कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूएसए में भी लड़ियां भेज रहे हैं। संस्था के प्रोग्राम में स्टॉल लगाकर करते हैं मार्केटिंग रोशन लाल ने बताया कि यह कोई व्यापार नहीं है। यह तो केवल स्वदेशी अपनाओ अभियान है, नारी सशक्तिकरण अभियान और मेरा स्वावलंबी भारत अभियान है। इन अभियान को एक ही प्रकल्प से बल मिलता है। मार्केटिंग की बात करें तो करनाल में सेवा भारती का हेड ऑफिस है और हरियाणा में अलग-अलग जगहों पर हमारी समितियां है। उन समितियों के कार्यकर्ता समाज में स्वदेशी के प्रति सजगता लाते है। इसके साथ ही संस्था के कार्यक्रमों के दौरान भी स्टॉल लगाकर मार्केटिंग की जाती है। लोगों में स्वदेशी के प्रति जागरूकता आई है और यही संस्था के लिए सबसे बड़ा सम्मान है।
हरियाणा में 4 वर्षीय बच्चे की लाश मिली:खेलते हुए गायब हुआ, तूड़ी वाले कमरे में मृत पड़ा था, पेंट उतरी हुई थी
हरियाणा में 4 वर्षीय बच्चे की लाश मिली:खेलते हुए गायब हुआ, तूड़ी वाले कमरे में मृत पड़ा था, पेंट उतरी हुई थी हरियाणा के फतेहाबाद में शुक्रवार (1 नवंबर) रात 4 वर्षीय बच्चे का शव घर के पास तूड़ी वाले कमरे में पड़ा हुआ मिला। बच्चा शाम को गली में खेलते खेलते लापता हुआ था। घटना रतिया के हड़ोली गांव की है। बच्चे के परिजनों ने जहर देकर हत्या करने के आरोप लगाए हैं। बच्चे का एक CCTV वीडियो भी सामने आया है, जिसमें वह कुछ खा रहा है। पुलिस ने परिजनों की शिकायत पर अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। परिजनों का आरोप है कि बच्चे की पेंट उतरी हुई थी, उसके साथ जरूर कुछ गलत काम हुआ है। साथ ही पास में उल्टी भी पड़ी हुई थी। हालांकि पुलिस की जांच में अभी तक गलत काम करने जैसी कोई बात सामने नहीं आई है। खेलते-खेलते हो गया था लापता
गांव हड़ोली के मंगा सिंह का 4 वर्ष का बेटा अर्श शुक्रवार शाम करीब 4 बजे घर के बाहर खेल रहा था। इसके बाद से अचानक वह लापता हो गया। परिजन उसकी तलाश करते रहे, घंटेभर बाद उसका शव पड़ोस में ही बने एक कमरे में तूड़े के ढेर में सना हुआ मिला। मामले की सूचना मिलने पर देर रात DSP संजय बिश्नोई के नेतृत्व में रतिया सदर SHO व नागपुर चौकी इंचार्ज अपनी टीमों सहित मौके पर पहुंचे। सीन ऑफ क्राइम के एक्सपर्ट डॉ. जोगेंद्र पूनिया भी घटनास्थल पर गए और जांच पड़ताल की। शरीर पर नहीं मिले चोट के निशान
जांच पड़ताल के दौरान पता चला कि बच्चे की पेंट उतरी हुई थी और उसके शरीर पर कोई चोट के निशान आदि नहीं मिले, हालांकि पास ही उल्टी पड़ी थी। जिस पर संदेह प्रकट किया गया कि उसे कोई जहरीली वस्तु खिलाई गई है। पुलिस हर एंगल से मामले की जांच में जुटी हुई है। पुलिस बोली- गलत काम जैसी बात सामने नहीं आई नागपुर चौकी इंचार्ज गोपाल दास ने बताया कि बच्चे के परिजनों ने हत्या का अंदेशा प्रकट किया है। संदिग्ध मौत होने के चलते अज्ञात के खिलाफ जहरीली पदार्थ खिलाकर हत्या के आरोप में मामला दर्ज कर लिया है। अभी तक गलत काम होने जैसी बात सामने नहीं आई है। पुलिस मामले की जांच में जुटी है।