लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद सपा पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (PDA) फॉर्मूले को नए सिरे से लागू करने की तैयारी कर रही है। पार्टी इसको लेकर पंचायत स्तर पर कार्यक्रम शुरू करने जा जा रही है। दूसरे दलों से आए नेताओं को सक्रिय करते हुए बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। शुरुआत में नेताओं से पंचायत स्तर पर कार्यक्रम करने के लिए कहा गया है। अखिलेश यादव खुद इसकी रेगुलर बेसिस पर मॉनिटरिंग करेंगे। लोकसभा चुनाव में जाति समीकरणों का प्रयोग सफल होने से सपा उत्साहित है। वो यही फॉर्मूला 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी आजमाना चाहती है। क्या है पीडीए को लेकर सपा की पूरी रणनीति? कैसे ब्लॉक से लेकर पंचायत स्तर पर इस फॉर्मूले पर काम कर रही है पार्टी? ऐसे सभी सवालों का जवाब इस रिपोर्ट में जानिए- पहले इस ग्राफिक्स से समझिए पीडीए फॉर्मूले से मिला फायदा… दरअसल समाजवादी पार्टी का मानना है कि लोकसभा चुनाव में जो जीत मिली है उसमें सभी जाति और खासकर पीडीए फॉर्मूले का बड़ा योगदान है। ऐसे में, जो वोट भाजपा से छिटककर समाजवादी पार्टी में आए हैं, उन्हें रोके रखने के लिए कौन-कौन से फॉर्मूले अपनाए जाएं इसको लेकर मंथन किया जा रहा है। इसी के तहत समाजवादी पार्टी जिलों में पंचायत स्तर पर कार्यक्रम करेगी। हर जाति और वर्ग के कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोड़ेगी। जिस क्षेत्र में जिस नेता की पकड़ अधिक है, उस क्षेत्र में वह नेता खुद मौजूद रहेगा और अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं को पार्टी के साथ जोड़ेगा। तय किया गया है कि जो भी बड़े नेता दूसरे दलों से आए हैं, उनका भरपूर तरीके से पार्टी के विस्तार के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। दूसरे दलों से आए नेताओं को उनके क्षेत्र में सक्रिय किया जाएगा और अधिक से अधिक लोगों को पार्टी के साथ जोड़ा जाएगा। सपा इससे उन नेताओं के संपर्क और प्रभाव को इस्तेमाल करना चाहती है। बसपा से आए नेताओं के लिए सपा की रणनीति
समाजवादी पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के साथ समझौता किया था, लेकिन गठबंधन को अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो बसपा ने सपा से संबंध तोड़ लिए। बसपा के कई नेताओं को मायावती का यह तरीका रास नहीं आया। धीरे-धीरे कई नेताओं ने बसपा का साथ छोड़ कर समाजवादी पार्टी का दामन थामना शुरू कर दिया। इसमें बसपा के तत्कालीन विधायक से लेकर महासचिव स्तर तक के नेता समाजवादी पार्टी जॉइन करने लगे। 2022 चुनाव से पहले बड़ी संख्या में बसपा के नेताओं ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। कई ऐसे नेता भी हैं जिन्हें टिकट नहीं दिया गया उन्हें अब संगठन में अहम जिम्मेदारी दिए जाने की चर्चा है। पूर्वांचल में ज्यादातर बसपा के नेता आए सपा के साथ
पूर्वी उत्तर प्रदेश में कई नेता बसपा छोड़कर समाजवादी पार्टी के साथ आए। बसपा में ये नेता विधायक, सांसद और मंत्री तक रहे हैं। बसपा में अनदेखी के चलते सपा में आए। इनमें से अधिकतर ने जीत दर्ज की है। ऐसे ही नेताओं की लिस्ट देखिए… तुष्टिकरण से बच रहे अखिलेश यादव, पीडीए का सहारा
समाजवादी पार्टी अब यादव और मुस्लिमों की राजनीति के बजाय पीडीए के जरिए राजनीति कर रही है। सपा मुखिया अखिलेश यादव खुद ऐसे मामलों से बचते रहे हैं, ताकि विरोधी उन पर तुष्टीकरण का आरोप न लगा पाएं। पार्टी ने लोकसभा चुनाव में भी मुस्लिमों को मात्र चार टिकट दिए। ऐसे मुद्दों पर जिनसे तुष्टीकरण का आरोप लग सकता था, उनसे किनारा करने में ही भलाई समझी। राजनीतिक विश्लेषक अमिता वर्मा कहती हैं- सपा ने बहुत ही होशियारी से पीडीए फॉर्मूले को न सिर्फ लागू किया बल्कि जमीन पर उतारा भी। पार्टी पर सबसे ज्यादा यादव वाद का आरोप लगता रहा है, लेकिन लोकसभा चुनाव में परिवार के अलावा किसी को भी यादव को टिकट नहीं दिया। इसके अलावा बसपा का कमजोर होने का लाभ भी सपा को हुआ। आने वाले चुनाव में सपा अपने सफल फॉर्मूले को दोबारा न सिर्फ अपनाएगी बल्कि उसका विस्तार करेगी। राजनीतिक विश्लेषक सैयद कासिम कहते हैं-अखिलेश का यह फॉर्मूला दरअसल कांशी राम का फॉर्मूला है। कांशी राम ने जो बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का नारा दिया था। समाजवादी पार्टी ने उस पर अमल किया है और नाम पीडीए कर दिया है। पीडीए फार्मूले के तहत हुई थी श्याम लाल की नियुक्ति
समाजवादी पार्टी में श्याम लाल पाल की नियुक्ति पीडीए फॉर्मूले के तहत की गई थी। हुआ यह कि समाजवादी पार्टी ने जब लोकसभा चुनाव के टिकटों का बंटवारा किया तो सभी जातियों का समायोजन किया लेकिन पाल समाज का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाया था। ऐसे में उन्होंने पाल समाज से प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद सपा पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (PDA) फॉर्मूले को नए सिरे से लागू करने की तैयारी कर रही है। पार्टी इसको लेकर पंचायत स्तर पर कार्यक्रम शुरू करने जा जा रही है। दूसरे दलों से आए नेताओं को सक्रिय करते हुए बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। शुरुआत में नेताओं से पंचायत स्तर पर कार्यक्रम करने के लिए कहा गया है। अखिलेश यादव खुद इसकी रेगुलर बेसिस पर मॉनिटरिंग करेंगे। लोकसभा चुनाव में जाति समीकरणों का प्रयोग सफल होने से सपा उत्साहित है। वो यही फॉर्मूला 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी आजमाना चाहती है। क्या है पीडीए को लेकर सपा की पूरी रणनीति? कैसे ब्लॉक से लेकर पंचायत स्तर पर इस फॉर्मूले पर काम कर रही है पार्टी? ऐसे सभी सवालों का जवाब इस रिपोर्ट में जानिए- पहले इस ग्राफिक्स से समझिए पीडीए फॉर्मूले से मिला फायदा… दरअसल समाजवादी पार्टी का मानना है कि लोकसभा चुनाव में जो जीत मिली है उसमें सभी जाति और खासकर पीडीए फॉर्मूले का बड़ा योगदान है। ऐसे में, जो वोट भाजपा से छिटककर समाजवादी पार्टी में आए हैं, उन्हें रोके रखने के लिए कौन-कौन से फॉर्मूले अपनाए जाएं इसको लेकर मंथन किया जा रहा है। इसी के तहत समाजवादी पार्टी जिलों में पंचायत स्तर पर कार्यक्रम करेगी। हर जाति और वर्ग के कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोड़ेगी। जिस क्षेत्र में जिस नेता की पकड़ अधिक है, उस क्षेत्र में वह नेता खुद मौजूद रहेगा और अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं को पार्टी के साथ जोड़ेगा। तय किया गया है कि जो भी बड़े नेता दूसरे दलों से आए हैं, उनका भरपूर तरीके से पार्टी के विस्तार के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। दूसरे दलों से आए नेताओं को उनके क्षेत्र में सक्रिय किया जाएगा और अधिक से अधिक लोगों को पार्टी के साथ जोड़ा जाएगा। सपा इससे उन नेताओं के संपर्क और प्रभाव को इस्तेमाल करना चाहती है। बसपा से आए नेताओं के लिए सपा की रणनीति
समाजवादी पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के साथ समझौता किया था, लेकिन गठबंधन को अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो बसपा ने सपा से संबंध तोड़ लिए। बसपा के कई नेताओं को मायावती का यह तरीका रास नहीं आया। धीरे-धीरे कई नेताओं ने बसपा का साथ छोड़ कर समाजवादी पार्टी का दामन थामना शुरू कर दिया। इसमें बसपा के तत्कालीन विधायक से लेकर महासचिव स्तर तक के नेता समाजवादी पार्टी जॉइन करने लगे। 2022 चुनाव से पहले बड़ी संख्या में बसपा के नेताओं ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। कई ऐसे नेता भी हैं जिन्हें टिकट नहीं दिया गया उन्हें अब संगठन में अहम जिम्मेदारी दिए जाने की चर्चा है। पूर्वांचल में ज्यादातर बसपा के नेता आए सपा के साथ
पूर्वी उत्तर प्रदेश में कई नेता बसपा छोड़कर समाजवादी पार्टी के साथ आए। बसपा में ये नेता विधायक, सांसद और मंत्री तक रहे हैं। बसपा में अनदेखी के चलते सपा में आए। इनमें से अधिकतर ने जीत दर्ज की है। ऐसे ही नेताओं की लिस्ट देखिए… तुष्टिकरण से बच रहे अखिलेश यादव, पीडीए का सहारा
समाजवादी पार्टी अब यादव और मुस्लिमों की राजनीति के बजाय पीडीए के जरिए राजनीति कर रही है। सपा मुखिया अखिलेश यादव खुद ऐसे मामलों से बचते रहे हैं, ताकि विरोधी उन पर तुष्टीकरण का आरोप न लगा पाएं। पार्टी ने लोकसभा चुनाव में भी मुस्लिमों को मात्र चार टिकट दिए। ऐसे मुद्दों पर जिनसे तुष्टीकरण का आरोप लग सकता था, उनसे किनारा करने में ही भलाई समझी। राजनीतिक विश्लेषक अमिता वर्मा कहती हैं- सपा ने बहुत ही होशियारी से पीडीए फॉर्मूले को न सिर्फ लागू किया बल्कि जमीन पर उतारा भी। पार्टी पर सबसे ज्यादा यादव वाद का आरोप लगता रहा है, लेकिन लोकसभा चुनाव में परिवार के अलावा किसी को भी यादव को टिकट नहीं दिया। इसके अलावा बसपा का कमजोर होने का लाभ भी सपा को हुआ। आने वाले चुनाव में सपा अपने सफल फॉर्मूले को दोबारा न सिर्फ अपनाएगी बल्कि उसका विस्तार करेगी। राजनीतिक विश्लेषक सैयद कासिम कहते हैं-अखिलेश का यह फॉर्मूला दरअसल कांशी राम का फॉर्मूला है। कांशी राम ने जो बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का नारा दिया था। समाजवादी पार्टी ने उस पर अमल किया है और नाम पीडीए कर दिया है। पीडीए फार्मूले के तहत हुई थी श्याम लाल की नियुक्ति
समाजवादी पार्टी में श्याम लाल पाल की नियुक्ति पीडीए फॉर्मूले के तहत की गई थी। हुआ यह कि समाजवादी पार्टी ने जब लोकसभा चुनाव के टिकटों का बंटवारा किया तो सभी जातियों का समायोजन किया लेकिन पाल समाज का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाया था। ऐसे में उन्होंने पाल समाज से प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर