बांग्लादेश में भड़की आरक्षण विरोधी हिंसा में फंसे मुरादाबाद के 20 मेडिकल स्टूडेंट्स इंडियन एंबेसी की मदद से घर लौट आए। इनमें 3 सगी बहनें उमाम, जोया और कशिश भी शामिल हैं। घर लौटे इन मेडिकल स्टूडेंट्स ने बताया- 20-25 दिन उन्हें हर वक्त सिर पर मौत मंडराती नजर आती थी। एक वक्त ऐसा था जब मोबाइल-इंटरनेट सब बंद हाे गया। घर वालों से बात नहीं हो पा रही थी। हम डर के साए में थे। ऐसे खराब वक्त में बांग्लादेश में इंडियन एंबेसी ने हमारी मदद की। कॉलेजों से रेस्क्यू कर वतन वापसी कराई। इंडियन एंबेसी के दखल के बाद बांग्लादेश आर्मी ने स्टूडेंट्स को अपनी सुरक्षा में नजदीकी एयरपोर्ट और इंडिया बॉर्डर तक पहुंचाया। मेडिकल स्टूडेंट्स बताते हैं कि उन्हें बॉर्डर और एयरपोर्ट के रास्ते में तमाम जगह जली हुई गाड़ियां और हिंसा के जख्म नजर आए। इधर, अपने बच्चों की घर से पेरेंट्स के चेहरे पर मुस्कान लौट आई है। ये लोग पिछले 20-25 दिन से अपने बच्चों से संपर्क नहीं हो पाने की वजह से बेचैन थे। अब आपको बांग्लादेश से लौटे मेडिकल स्टूडेंट्स के अनुभव पढ़वाते हैं… 3 सगी बहनें बांग्लादेश के हॉस्टल में कैद थीं
मुरादाबाद के हरथला में रहने वाले सलीम अहमद पेशे से एडवोकेट हैं। वो मुरादाबाद बार एसोसिएशन के जॉइंट सेक्रेटरी भी हैं। उनकी तीन बेटियां बांग्लादेश के खुलना शहर में स्थित गाजी मेडिकल कॉलेज में MBBS की पढ़ाई कर रही हैं। तीनों 25 जुलाई की रात घर लौटी हैं। सलीम अहमद ने दैनिक भास्कर से कहा- मेरी तीनों बेटियों में जोया और कशिश जुड़वां हैं, जबकि उमाम उनसे एक साल बड़ी है। तीनों ही बांग्लादेश के गाजी मेडिकल कॉलेज में MBBS सेकेंड ईयर की स्टूडेंट हैं। वहां भड़की हिंसा के बाद से तीनों कॉलेज के हॉस्टल में कैद थीं। उस दौरान बेटियों से संपर्क भी नहीं हो सका। उमाम बोलीं- खौफनाक मंजर था, वहां देखते ही गोली मार रहे थे
उमाम ने कहा- वहां हर जगह कर्फ्यू था। हम हॉस्टल में कैद थे। बाहर हर तरफ शूटआउट हो रहा था। देखते ही वहां पुलिस और आर्मी प्रदर्शनकारी स्टूडेंट्स को गोली मार रहे थे। इंटरनेट कॉलिंग बंद होने पर हमने इंटरनेशनल कॉलिंग से घर वालों से संपर्क किया। फिर उसमें भी दिक्कत आने लगी। हम बुरी तरह फंसे थे। फिर इंडियन एंबेसी को कॉल करके हेल्प मांगी। इंडियन एंबेसी ने ही स्कूल मैनेजमेंट पर प्रेशर बनाया। इसके बाद हमें रेस्क्यू किया जा सका। एंबेसी की बदौलत ही हम आज अपने परिवार के साथ हैं। उमाम कहती हैं- इंडियन एंबेसी ने हमें कॉलेज से रेस्क्यू किया और कड़ी सुरक्षा के बीच कोलकाता बॉर्डर तक पहुंचाया। खुलना में हमारे कॉलेज से कोलकाता बॉर्डर करीब 100 किमी दूर है। यहां से हमने बॉर्डर पार किया। फिर ट्रेन से 24 घंटे का सफर करके मुरादाबाद अपने घर पहुंचे हैं। इंडियन एंबेसी ने हमारे मेडिकल कॉलेज से करीब 200 भारतीय छात्र-छात्राओं को इंडियन एंबेसी ने रेस्क्यू किया। इनमें से 20 स्टूडेंट्स अकेले मुरादाबाद के ही थे। जोया अहमद बोलीं- थैंक्स इंडियन एंबेसी
MBBS सेकेंड ईयर की छात्रा जोया अहमद कहती हैं- मैं इंडियन एंबेसी को थैंक्स बोलना चाहूंगी। उनकी वजह से ही हम आज अपने परिवार के साथ अपने घर पर हैं। वहां हालात बहुत क्रिटिकल थे। हर तरफ हिंसा हो रही थी। इंटरनेट शटडाउन होने की वजह से हम परिवार से भी संपर्क नहीं कर पा रहे थे। एंबेसी ने हमें सुरक्षित वहां से निकाला और इंडिया वापस भेजा। कशिश बोलीं- हालात नॉर्मल होंगे, तब हम लौटेंगे
मुरादाबाद के हरथला में रहने वाली कशिश कहती हैं- मैं 25 जुलाई को अपनी 2 बहनों के साथ बांग्लादेश से लौटी हूं। इस सप्ताह में मुरादाबाद के करीब 20 स्टूडेंट्स बांग्लादेश से लौटे हैं। जो वहां अलग-अलग कॉलेजों से मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। मैं वहां खुलना स्थित गाजी मेडिकल कॉलेज से MBBS की पढ़ाई कर रही थी। अभी वहां माहौल बहुत सेंसटिव है। 3 सगी बहनों से बात करने के बाद हम बांग्लादेश से लौटी स्टूडेंट सना के पास पहुंचे… सना बोलीं- कई रात तो हम डर से सोए ही नहीं
मुरादाबाद में सिविल लाइन में जिगर कॉलोनी की रहने वाली सना बांग्लादेश से MBBS की पढ़ाई कर रही हैं। वो थर्ड ईयर की छात्रा हैं। उनके पिता आरिफ शिक्षा विभाग में हैं। सना 22 जुलाई की रात फ्लाइट से दिल्ली पहुंचीं। इसके बाद परिजन उन्हें लेकर मुरादाबाद आए। सना हसन अपने मोबाइल में बांग्लादेश हिंसा के वीडियो-फोटो दिखाते हुए बताती हैं- वहां हर ओर मौत का मंजर था। हॉस्टल से हमारे बांग्लादेशी साथी जा चुके थे। वहां हम सिर्फ कुछ भारतीय स्टूडेंट्स हॉस्टल में रह गए थे। बार-बार गोलियों और धमाकों की आवाज से रूह कांप जाती थी। शुरू में तो हम अपने परिवारों से इंटरनेट कॉलिंग के जरिए संपर्क में थे। लेकिन, बाद में बांग्लादेश सरकार ने मोबाइल और इंरटनेट सेवा बंद की तो हमारा घर वालों से संपर्क पूरी तरह टूट गया था। सना बताती हैं- वहां हम डर की वजह से सो नहीं पा रहे थे। यहां हमारे घर वाले चिंता में डूबे थे। ऐसे हालात में इंडियन एंबेंसी के अधिकारियों ने हमारे कॉलेज में बात करके हमें रेस्क्यू कराया। सुरक्षा में हमारी बस के साथ बांग्लादेश आर्मी के जवान तैनात थे। मेरे कॉलेज से हम कुल 200 भारतीय स्टूडेंट्स रेस्क्यू करके एयरपोर्ट तक पहुंचाए गए थे। हमें रास्ते में तमाम जगह जली हुई कारें, इमारतें दिखीं। आर्मी प्रोटेक्शन नहीं होती तो हमारा एयरपोर्ट तक पहुंच पाना नामुमकिन था। सना आगे कहती हैं- हम किसी तरह एयरपोर्ट तो पहुंच गए। लेकिन, वहां हमें 12 घंटे फर्श पर बैठकर फ्लाइट का वेट करना पड़ा। एक बार फ्लाइट टेक ऑफ होने के बाद हमने राहत की सांस ली। 400 बार कॉल करते थे, तो एक बार बात होती थी
सना हसन के पिता आरिफ बताते हैं- एक सप्ताह तो हम बुरी तरह घबरा गए थे। बेटी से संपर्क नहीं हो पा रहा था। हमने लगातार 400 बार कॉल किया तो एक बार कॉल कनेक्ट हुई। वो भी कुछ सेकेंड में ही कट गई। ये दिन बहुत बुरे गुजरे हैं। अब पढ़िए बांग्लादेश में भड़की हिंसा का मूल कारण… बांग्लादेश में भी सरकारी नौकरी का क्रेज
बांग्लादेश में भी भारत की तरह सरकारी नौकरी रोजगार का एक बड़ा जरिया है। CNN के मुताबिक, बांग्लादेश में सरकारी नौकरी की 600 सीटों के लिए 6 लाख लोग आवेदन करते हैं। इनमें से आरक्षण के कारण 336 सीटें रिजर्व हैं, यानी सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए 264 सीटें बचती हैं। यहां हर साल 4 लाख से भी अधिक छात्र 3 हजार बांग्लादेश पब्लिक सर्विस कमीशन (BPSC) के लिए कम्पीट करते हैं। कुछ साल से कोटा न मिलने की वजह से इसमें योग्यता का बोलबाला था, लेकिन अब छात्रों को डर है कि आधी से अधिक सीटें ‘कोटा वाले’ खा जाएंगे। अब ये सभी छात्रों के लिए एक समान अधिकार मांग रहे हैं। इनका कहना है- आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सेनानियों के पोते-पोतियों को आरक्षण देने का कोई मतलब नहीं है। सरकारी नौकरियों में कोटा नहीं, मेरिट की जरूरत होनी चाहिए। बांग्लादेश में भड़की आरक्षण विरोधी हिंसा में फंसे मुरादाबाद के 20 मेडिकल स्टूडेंट्स इंडियन एंबेसी की मदद से घर लौट आए। इनमें 3 सगी बहनें उमाम, जोया और कशिश भी शामिल हैं। घर लौटे इन मेडिकल स्टूडेंट्स ने बताया- 20-25 दिन उन्हें हर वक्त सिर पर मौत मंडराती नजर आती थी। एक वक्त ऐसा था जब मोबाइल-इंटरनेट सब बंद हाे गया। घर वालों से बात नहीं हो पा रही थी। हम डर के साए में थे। ऐसे खराब वक्त में बांग्लादेश में इंडियन एंबेसी ने हमारी मदद की। कॉलेजों से रेस्क्यू कर वतन वापसी कराई। इंडियन एंबेसी के दखल के बाद बांग्लादेश आर्मी ने स्टूडेंट्स को अपनी सुरक्षा में नजदीकी एयरपोर्ट और इंडिया बॉर्डर तक पहुंचाया। मेडिकल स्टूडेंट्स बताते हैं कि उन्हें बॉर्डर और एयरपोर्ट के रास्ते में तमाम जगह जली हुई गाड़ियां और हिंसा के जख्म नजर आए। इधर, अपने बच्चों की घर से पेरेंट्स के चेहरे पर मुस्कान लौट आई है। ये लोग पिछले 20-25 दिन से अपने बच्चों से संपर्क नहीं हो पाने की वजह से बेचैन थे। अब आपको बांग्लादेश से लौटे मेडिकल स्टूडेंट्स के अनुभव पढ़वाते हैं… 3 सगी बहनें बांग्लादेश के हॉस्टल में कैद थीं
मुरादाबाद के हरथला में रहने वाले सलीम अहमद पेशे से एडवोकेट हैं। वो मुरादाबाद बार एसोसिएशन के जॉइंट सेक्रेटरी भी हैं। उनकी तीन बेटियां बांग्लादेश के खुलना शहर में स्थित गाजी मेडिकल कॉलेज में MBBS की पढ़ाई कर रही हैं। तीनों 25 जुलाई की रात घर लौटी हैं। सलीम अहमद ने दैनिक भास्कर से कहा- मेरी तीनों बेटियों में जोया और कशिश जुड़वां हैं, जबकि उमाम उनसे एक साल बड़ी है। तीनों ही बांग्लादेश के गाजी मेडिकल कॉलेज में MBBS सेकेंड ईयर की स्टूडेंट हैं। वहां भड़की हिंसा के बाद से तीनों कॉलेज के हॉस्टल में कैद थीं। उस दौरान बेटियों से संपर्क भी नहीं हो सका। उमाम बोलीं- खौफनाक मंजर था, वहां देखते ही गोली मार रहे थे
उमाम ने कहा- वहां हर जगह कर्फ्यू था। हम हॉस्टल में कैद थे। बाहर हर तरफ शूटआउट हो रहा था। देखते ही वहां पुलिस और आर्मी प्रदर्शनकारी स्टूडेंट्स को गोली मार रहे थे। इंटरनेट कॉलिंग बंद होने पर हमने इंटरनेशनल कॉलिंग से घर वालों से संपर्क किया। फिर उसमें भी दिक्कत आने लगी। हम बुरी तरह फंसे थे। फिर इंडियन एंबेसी को कॉल करके हेल्प मांगी। इंडियन एंबेसी ने ही स्कूल मैनेजमेंट पर प्रेशर बनाया। इसके बाद हमें रेस्क्यू किया जा सका। एंबेसी की बदौलत ही हम आज अपने परिवार के साथ हैं। उमाम कहती हैं- इंडियन एंबेसी ने हमें कॉलेज से रेस्क्यू किया और कड़ी सुरक्षा के बीच कोलकाता बॉर्डर तक पहुंचाया। खुलना में हमारे कॉलेज से कोलकाता बॉर्डर करीब 100 किमी दूर है। यहां से हमने बॉर्डर पार किया। फिर ट्रेन से 24 घंटे का सफर करके मुरादाबाद अपने घर पहुंचे हैं। इंडियन एंबेसी ने हमारे मेडिकल कॉलेज से करीब 200 भारतीय छात्र-छात्राओं को इंडियन एंबेसी ने रेस्क्यू किया। इनमें से 20 स्टूडेंट्स अकेले मुरादाबाद के ही थे। जोया अहमद बोलीं- थैंक्स इंडियन एंबेसी
MBBS सेकेंड ईयर की छात्रा जोया अहमद कहती हैं- मैं इंडियन एंबेसी को थैंक्स बोलना चाहूंगी। उनकी वजह से ही हम आज अपने परिवार के साथ अपने घर पर हैं। वहां हालात बहुत क्रिटिकल थे। हर तरफ हिंसा हो रही थी। इंटरनेट शटडाउन होने की वजह से हम परिवार से भी संपर्क नहीं कर पा रहे थे। एंबेसी ने हमें सुरक्षित वहां से निकाला और इंडिया वापस भेजा। कशिश बोलीं- हालात नॉर्मल होंगे, तब हम लौटेंगे
मुरादाबाद के हरथला में रहने वाली कशिश कहती हैं- मैं 25 जुलाई को अपनी 2 बहनों के साथ बांग्लादेश से लौटी हूं। इस सप्ताह में मुरादाबाद के करीब 20 स्टूडेंट्स बांग्लादेश से लौटे हैं। जो वहां अलग-अलग कॉलेजों से मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। मैं वहां खुलना स्थित गाजी मेडिकल कॉलेज से MBBS की पढ़ाई कर रही थी। अभी वहां माहौल बहुत सेंसटिव है। 3 सगी बहनों से बात करने के बाद हम बांग्लादेश से लौटी स्टूडेंट सना के पास पहुंचे… सना बोलीं- कई रात तो हम डर से सोए ही नहीं
मुरादाबाद में सिविल लाइन में जिगर कॉलोनी की रहने वाली सना बांग्लादेश से MBBS की पढ़ाई कर रही हैं। वो थर्ड ईयर की छात्रा हैं। उनके पिता आरिफ शिक्षा विभाग में हैं। सना 22 जुलाई की रात फ्लाइट से दिल्ली पहुंचीं। इसके बाद परिजन उन्हें लेकर मुरादाबाद आए। सना हसन अपने मोबाइल में बांग्लादेश हिंसा के वीडियो-फोटो दिखाते हुए बताती हैं- वहां हर ओर मौत का मंजर था। हॉस्टल से हमारे बांग्लादेशी साथी जा चुके थे। वहां हम सिर्फ कुछ भारतीय स्टूडेंट्स हॉस्टल में रह गए थे। बार-बार गोलियों और धमाकों की आवाज से रूह कांप जाती थी। शुरू में तो हम अपने परिवारों से इंटरनेट कॉलिंग के जरिए संपर्क में थे। लेकिन, बाद में बांग्लादेश सरकार ने मोबाइल और इंरटनेट सेवा बंद की तो हमारा घर वालों से संपर्क पूरी तरह टूट गया था। सना बताती हैं- वहां हम डर की वजह से सो नहीं पा रहे थे। यहां हमारे घर वाले चिंता में डूबे थे। ऐसे हालात में इंडियन एंबेंसी के अधिकारियों ने हमारे कॉलेज में बात करके हमें रेस्क्यू कराया। सुरक्षा में हमारी बस के साथ बांग्लादेश आर्मी के जवान तैनात थे। मेरे कॉलेज से हम कुल 200 भारतीय स्टूडेंट्स रेस्क्यू करके एयरपोर्ट तक पहुंचाए गए थे। हमें रास्ते में तमाम जगह जली हुई कारें, इमारतें दिखीं। आर्मी प्रोटेक्शन नहीं होती तो हमारा एयरपोर्ट तक पहुंच पाना नामुमकिन था। सना आगे कहती हैं- हम किसी तरह एयरपोर्ट तो पहुंच गए। लेकिन, वहां हमें 12 घंटे फर्श पर बैठकर फ्लाइट का वेट करना पड़ा। एक बार फ्लाइट टेक ऑफ होने के बाद हमने राहत की सांस ली। 400 बार कॉल करते थे, तो एक बार बात होती थी
सना हसन के पिता आरिफ बताते हैं- एक सप्ताह तो हम बुरी तरह घबरा गए थे। बेटी से संपर्क नहीं हो पा रहा था। हमने लगातार 400 बार कॉल किया तो एक बार कॉल कनेक्ट हुई। वो भी कुछ सेकेंड में ही कट गई। ये दिन बहुत बुरे गुजरे हैं। अब पढ़िए बांग्लादेश में भड़की हिंसा का मूल कारण… बांग्लादेश में भी सरकारी नौकरी का क्रेज
बांग्लादेश में भी भारत की तरह सरकारी नौकरी रोजगार का एक बड़ा जरिया है। CNN के मुताबिक, बांग्लादेश में सरकारी नौकरी की 600 सीटों के लिए 6 लाख लोग आवेदन करते हैं। इनमें से आरक्षण के कारण 336 सीटें रिजर्व हैं, यानी सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए 264 सीटें बचती हैं। यहां हर साल 4 लाख से भी अधिक छात्र 3 हजार बांग्लादेश पब्लिक सर्विस कमीशन (BPSC) के लिए कम्पीट करते हैं। कुछ साल से कोटा न मिलने की वजह से इसमें योग्यता का बोलबाला था, लेकिन अब छात्रों को डर है कि आधी से अधिक सीटें ‘कोटा वाले’ खा जाएंगे। अब ये सभी छात्रों के लिए एक समान अधिकार मांग रहे हैं। इनका कहना है- आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सेनानियों के पोते-पोतियों को आरक्षण देने का कोई मतलब नहीं है। सरकारी नौकरियों में कोटा नहीं, मेरिट की जरूरत होनी चाहिए। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर