यूपी विधानमंडल का 4 दिन चला मानसून सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। विधानसभा सत्र में विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच कई मुद्दों पर नोकझोंक तो हुई, लेकिन इस बार सदन में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की कमी साफ तौर पर नजर आई। सरकार के मुकाबले विपक्ष कमजोर दिखा। नेता प्रतिपक्ष बनाए गए 81 साल के माता प्रसाद पांडेय के अनुभव का तो लाभ सपा को मिला, लेकिन उनकी अगुवाई में विपक्ष सरकार को घेर नहीं पाया। विपक्ष का रवैया आक्रामक होने के बजाय रक्षात्मक ज्यादा नजर आया। वहीं, शिवपाल यादव ज्यादातर समय चुप ही रहे। दरअसल, अखिलेश यादव को न सिर्फ विपक्ष बल्कि सत्ता पक्ष के लोग भी सुनना पसंद करते थे। कई बार सीधे तौर पर मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के बीच तंज, छींटाकशी, नोकझोंक से भी सदन का माहौल बना रहता था। लेकिन, इस बार यह चीजें नजर नहीं आईं। विपक्ष पूरी तरह से समर्पण भाव में दिखा। एक-दो मौकों को छोड़ दिया जाए तो विपक्ष ने सरकार को घेरने के कई मौके गंवा दिए। इस सत्र में विपक्ष के पास मुद्दों की कमी नहीं थीं, वहीं सरकार अपनी अंदरुनी खींचतान की वजह से बैकफुट पर थी। लेकिन, विपक्ष की कमजोरी ने सरकार का काम आसान कर दिया। विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए खुद मुख्यमंत्री प्रश्नकाल के दौरान सदन में मौजूद रहे। सीएम ने कई मौकों पर मंत्रियों को अटकता देख कमान खुद संभाल ली और जवाब दिया। विपक्ष कई मुद्दों को सदन में सही तरीके से उठा ही नहीं सका। अखिलेश के न होने से ये दो बातें सामने आईं… 1- सपा के वरिष्ठ नेताओं ने खुद को किनारे किया: समाजवादी पार्टी में कई वरिष्ठ नेता इस बार सदन में खामोश रहे। शिवपाल सिंह यादव जरूर एक-दो मौकों पर मोर्चा लेते नजर आए, जबकि इकबाल महमूद, शाहिद मंजूर, दुर्गा प्रसाद यादव जैसे विधायकों ने खुद को किनारे ही रखा। पूरे सत्र के दौरान नजूल का इकलौता ऐसा मामला रहा, जिसे लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर दिखा। विधान परिषद में इस बिल के विरोध के चलते इसे प्रवर समिति के पास भेज दिया गया। 2-अनुशासन की कमी दिखी: विधानसभा में अखिलेश की मौजूदगी में पूरा सदन न सिर्फ व्यवस्थित रहता था। बल्कि विपक्ष सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख भी अपनाता था। अखिलेश की अनुपस्थिति में न ताे पार्टी में अनुशासन दिखा और न ही वह आक्रामकता नजर आई, जो पहले देखने को मिलती थी। माता प्रसाद पांडेय विपक्ष की आवाज बनने में कहीं न कहीं पीछे रह गए। सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट रतनमणि लाल कहते हैं- अखिलेश की विधानसभा में गैर मौजूदगी से सपा कमजोर पड़ गई। बेहतर होता कि अखिलेश 2027 को मद्देनजर रखते हुए यूपी पर ही फोकस करते। अगर अखिलेश को लगता है कि लोकसभा चुनाव 2024 के प्रदर्शन की तर्ज पर वह विधानसभा चुनाव 2027 में जीत हासिल कर लेंगे, तो ये उनका ओवर कॉन्फिडेंस हो सकता है। प्रदेश के वो दो बड़े मुद्दे, जिन्हें विपक्ष कैच नहीं कर पाया 1- हाथरस में एक सत्संग में मची भगदड़ के दौरान 122 लोगों की मौत हुई, सैकड़ों लोग घायल हुए। घटना ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया था। लेकिन, यह घटना विधानसभा में चर्चा का विषय नहीं बनी। जानकार मानते हैं कि भोले बाबा उर्फ नारायण साकार हरि की दलित और पिछड़े वर्ग के वोट बैंक में मजबूत पकड़ होने के कारण सत्तापक्ष और विपक्ष ने इस मुद्दे को नहीं उठाया। 2- कांवड़ यात्रा के मार्ग की दुकानों, ढाबों, होटलों पर दुकान मालिक की नेम प्लेट लगाने का मुद्दा भी सदन में नहीं उठा। हालांकि, इस मामले में सपा ने सदन से बाहर तो भाजपा सरकार का विरोध किया था। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट की ओर से रोक लगाए जाने के बाद विपक्ष ने इसे सदन में मुद्दा नहीं बनाया। दो मुखर नेता अब साथ नहीं, बागियों ने स्थिति कमजोर की 1. लालजी और अवधेश प्रसाद भी नहीं थे: विधानसभा में नियम कायदे से सत्ता पक्ष को घेरने में सपा विधायक लालजी वर्मा और अवधेश प्रसाद वर्मा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे। इस सत्र में लालजी वर्मा और देश भर में समाजवादी पार्टी के दलित आइकॉन बने अवधेश प्रसाद की भी कमी दिखी। लालजी वर्मा की गिनती एक मुखर वक्ता के रूप में होती है। वह सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे। वहीं, अवधेश प्रसाद अपनी 9 बार के विधायकी के अनुभवों से सरकार को घेरने की कोशिश करते थे। हालांकि, अब दोनों ही सांसद हैं। 2. सपा के बागियों से कमजोर पड़ा प्रश्न काल: विधानसभा सत्र सपा के बागियों के कारण भी पहले की तुलना में कमजोर दिखा। सपा के पूर्व मुख्य सचेतक मनोज पांडेय, सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह अक्सर सरकार को घेरने का काम करते थे। दोनों इस बार सदन में सक्रिय नहीं रहे। उधर, सपा विधायक अभय सिंह बगावत के बाद पूरी तरह सरकार के पक्ष में दिखे। विपक्ष लॉबी में बैठकर उन्होंने सरकार के कामकाज की प्रशंसा की। बागी विधायक पूजा पाल भी महज उपस्थिति दर्ज कराने पहुंचीं। 3. बसपा का एक विधायक, वो भी बीमार: विधानसभा में बसपा के एक मात्र विधायक उमाशंकर सिंह हैं। जबकि विधान परिषद में बसपा का एक भी सदस्य नहीं हैं। उमाशंकर सिंह इन दिनों अस्वस्थ होने के कारण सदन में उपस्थित नहीं हो सके। ऐसे में बीते तीन दशक में यह पहला मौका था, जब विधानसभा और विधान परिषद में बसपा पूरी तरह गायब थी। उमाशंकर सिंह की कमी भी सदन में काफी खली। जब-जब विपक्ष ने घेरने की कोशिश की, योगी ने बेअसर कर दिया इन मुद्दों पर घिरती नजर आई सरकार
विधानसभा सत्र के दौरान ऊर्जा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, कृषि और शिक्षा विभाग विपक्ष के निशाने पर रहे। विपक्ष ने बिजली की खराब व्यवस्था की पोल खोली। ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा पर भी गंभीर आरोप लगाते हुए उनकी कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगाया। बेसिक और माध्यमिक विद्यालयों की अव्यवस्था और शिक्षकों की समस्याओं को भी विपक्ष ने मुद्दा बनाया। बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार संदीप सिंह और माध्यमिक शिक्षा राज्यमंत्री गुलाब देवी के जवाब भी संतोषजनक नहीं रहे। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की भी विपक्ष ने घेराबंदी की, लेकिन उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने इस पर मजबूती से पलटवार किया। अब जानिए सबसे ज्यादा किस विधायक ने उठाए मुद्दे यूपी विधानमंडल का 4 दिन चला मानसून सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। विधानसभा सत्र में विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच कई मुद्दों पर नोकझोंक तो हुई, लेकिन इस बार सदन में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की कमी साफ तौर पर नजर आई। सरकार के मुकाबले विपक्ष कमजोर दिखा। नेता प्रतिपक्ष बनाए गए 81 साल के माता प्रसाद पांडेय के अनुभव का तो लाभ सपा को मिला, लेकिन उनकी अगुवाई में विपक्ष सरकार को घेर नहीं पाया। विपक्ष का रवैया आक्रामक होने के बजाय रक्षात्मक ज्यादा नजर आया। वहीं, शिवपाल यादव ज्यादातर समय चुप ही रहे। दरअसल, अखिलेश यादव को न सिर्फ विपक्ष बल्कि सत्ता पक्ष के लोग भी सुनना पसंद करते थे। कई बार सीधे तौर पर मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के बीच तंज, छींटाकशी, नोकझोंक से भी सदन का माहौल बना रहता था। लेकिन, इस बार यह चीजें नजर नहीं आईं। विपक्ष पूरी तरह से समर्पण भाव में दिखा। एक-दो मौकों को छोड़ दिया जाए तो विपक्ष ने सरकार को घेरने के कई मौके गंवा दिए। इस सत्र में विपक्ष के पास मुद्दों की कमी नहीं थीं, वहीं सरकार अपनी अंदरुनी खींचतान की वजह से बैकफुट पर थी। लेकिन, विपक्ष की कमजोरी ने सरकार का काम आसान कर दिया। विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए खुद मुख्यमंत्री प्रश्नकाल के दौरान सदन में मौजूद रहे। सीएम ने कई मौकों पर मंत्रियों को अटकता देख कमान खुद संभाल ली और जवाब दिया। विपक्ष कई मुद्दों को सदन में सही तरीके से उठा ही नहीं सका। अखिलेश के न होने से ये दो बातें सामने आईं… 1- सपा के वरिष्ठ नेताओं ने खुद को किनारे किया: समाजवादी पार्टी में कई वरिष्ठ नेता इस बार सदन में खामोश रहे। शिवपाल सिंह यादव जरूर एक-दो मौकों पर मोर्चा लेते नजर आए, जबकि इकबाल महमूद, शाहिद मंजूर, दुर्गा प्रसाद यादव जैसे विधायकों ने खुद को किनारे ही रखा। पूरे सत्र के दौरान नजूल का इकलौता ऐसा मामला रहा, जिसे लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर दिखा। विधान परिषद में इस बिल के विरोध के चलते इसे प्रवर समिति के पास भेज दिया गया। 2-अनुशासन की कमी दिखी: विधानसभा में अखिलेश की मौजूदगी में पूरा सदन न सिर्फ व्यवस्थित रहता था। बल्कि विपक्ष सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख भी अपनाता था। अखिलेश की अनुपस्थिति में न ताे पार्टी में अनुशासन दिखा और न ही वह आक्रामकता नजर आई, जो पहले देखने को मिलती थी। माता प्रसाद पांडेय विपक्ष की आवाज बनने में कहीं न कहीं पीछे रह गए। सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट रतनमणि लाल कहते हैं- अखिलेश की विधानसभा में गैर मौजूदगी से सपा कमजोर पड़ गई। बेहतर होता कि अखिलेश 2027 को मद्देनजर रखते हुए यूपी पर ही फोकस करते। अगर अखिलेश को लगता है कि लोकसभा चुनाव 2024 के प्रदर्शन की तर्ज पर वह विधानसभा चुनाव 2027 में जीत हासिल कर लेंगे, तो ये उनका ओवर कॉन्फिडेंस हो सकता है। प्रदेश के वो दो बड़े मुद्दे, जिन्हें विपक्ष कैच नहीं कर पाया 1- हाथरस में एक सत्संग में मची भगदड़ के दौरान 122 लोगों की मौत हुई, सैकड़ों लोग घायल हुए। घटना ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया था। लेकिन, यह घटना विधानसभा में चर्चा का विषय नहीं बनी। जानकार मानते हैं कि भोले बाबा उर्फ नारायण साकार हरि की दलित और पिछड़े वर्ग के वोट बैंक में मजबूत पकड़ होने के कारण सत्तापक्ष और विपक्ष ने इस मुद्दे को नहीं उठाया। 2- कांवड़ यात्रा के मार्ग की दुकानों, ढाबों, होटलों पर दुकान मालिक की नेम प्लेट लगाने का मुद्दा भी सदन में नहीं उठा। हालांकि, इस मामले में सपा ने सदन से बाहर तो भाजपा सरकार का विरोध किया था। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट की ओर से रोक लगाए जाने के बाद विपक्ष ने इसे सदन में मुद्दा नहीं बनाया। दो मुखर नेता अब साथ नहीं, बागियों ने स्थिति कमजोर की 1. लालजी और अवधेश प्रसाद भी नहीं थे: विधानसभा में नियम कायदे से सत्ता पक्ष को घेरने में सपा विधायक लालजी वर्मा और अवधेश प्रसाद वर्मा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे। इस सत्र में लालजी वर्मा और देश भर में समाजवादी पार्टी के दलित आइकॉन बने अवधेश प्रसाद की भी कमी दिखी। लालजी वर्मा की गिनती एक मुखर वक्ता के रूप में होती है। वह सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे। वहीं, अवधेश प्रसाद अपनी 9 बार के विधायकी के अनुभवों से सरकार को घेरने की कोशिश करते थे। हालांकि, अब दोनों ही सांसद हैं। 2. सपा के बागियों से कमजोर पड़ा प्रश्न काल: विधानसभा सत्र सपा के बागियों के कारण भी पहले की तुलना में कमजोर दिखा। सपा के पूर्व मुख्य सचेतक मनोज पांडेय, सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह अक्सर सरकार को घेरने का काम करते थे। दोनों इस बार सदन में सक्रिय नहीं रहे। उधर, सपा विधायक अभय सिंह बगावत के बाद पूरी तरह सरकार के पक्ष में दिखे। विपक्ष लॉबी में बैठकर उन्होंने सरकार के कामकाज की प्रशंसा की। बागी विधायक पूजा पाल भी महज उपस्थिति दर्ज कराने पहुंचीं। 3. बसपा का एक विधायक, वो भी बीमार: विधानसभा में बसपा के एक मात्र विधायक उमाशंकर सिंह हैं। जबकि विधान परिषद में बसपा का एक भी सदस्य नहीं हैं। उमाशंकर सिंह इन दिनों अस्वस्थ होने के कारण सदन में उपस्थित नहीं हो सके। ऐसे में बीते तीन दशक में यह पहला मौका था, जब विधानसभा और विधान परिषद में बसपा पूरी तरह गायब थी। उमाशंकर सिंह की कमी भी सदन में काफी खली। जब-जब विपक्ष ने घेरने की कोशिश की, योगी ने बेअसर कर दिया इन मुद्दों पर घिरती नजर आई सरकार
विधानसभा सत्र के दौरान ऊर्जा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, कृषि और शिक्षा विभाग विपक्ष के निशाने पर रहे। विपक्ष ने बिजली की खराब व्यवस्था की पोल खोली। ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा पर भी गंभीर आरोप लगाते हुए उनकी कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगाया। बेसिक और माध्यमिक विद्यालयों की अव्यवस्था और शिक्षकों की समस्याओं को भी विपक्ष ने मुद्दा बनाया। बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार संदीप सिंह और माध्यमिक शिक्षा राज्यमंत्री गुलाब देवी के जवाब भी संतोषजनक नहीं रहे। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की भी विपक्ष ने घेराबंदी की, लेकिन उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने इस पर मजबूती से पलटवार किया। अब जानिए सबसे ज्यादा किस विधायक ने उठाए मुद्दे उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर