मायावती की 14 साल बाद उप चुनाव में वापसी:बसपा ने 3 सीटों पर उतारे प्रत्याशी, भाजपा की B टीम का टैग हटाना होगा चुनौती

मायावती की 14 साल बाद उप चुनाव में वापसी:बसपा ने 3 सीटों पर उतारे प्रत्याशी, भाजपा की B टीम का टैग हटाना होगा चुनौती

बसपा करीब डेढ़ दशक बाद एक बार फिर से उपचुनाव में दमखम के साथ उतरने जा रही है। इसका एलान खुद बसपा सुप्रीमो मायावती ने किया है। उप चुनाव लड़ने के पीछे मायावती की मंशा क्या है? किसको फायदा होगा? किसको नुकसान होगा? क्या मायावती अपने मकसद में कामयाब होंगीं? पिछले चुनाव में इन सीटों पर बसपा की क्या स्थिति रही। दैनिक भास्कर ने इन सबकी पड़ताल की। बसपा ने अचानक न सिर्फ चुनाव लड़ने का ऐलान किया बल्कि तीन सीटों पर प्रत्याशी घोषित भी कर दिए। जबकि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी अभी रणनीति ही बना रहे हैं। ऐसे में सवाल वाजिब है कि आखिर मायावती अचानक इतनी आक्रामक कैसे हो गईं? क्या वाकई वह इस चुनाव में कुछ हासिल करना चाहती हैं या फिर स्थिति 2017 और 2022 जैसी ही रहेगी? लोकसभा चुनाव की शुरुआत में जिस आकाश आनंद को लॉन्च किया गया था, उनका इस चुनाव में क्या रोल रहेगा? दरअसल बहुजन समाज पार्टी की ऐसी स्थिति कभी नहीं रही जो आज है। यानी बसपा के लोकसभा और विधानसभा में मिलाकर कुल एक सदस्य है। बहुजन समाज पार्टी के गठन के बाद साल 1989 में 3 विधायक जीत कर विधानसभा पहुंचे थे। उसके बाद से लगातार पार्टी बढ़ती ही रही। 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। 2012 में पार्टी के सदस्यों की संख्या घटकर 80 रह गई। 2017 में चुनाव हुआ तो बसपा 19 पर सिमट गई। 2022 में सबसे खराब स्थिति रही और मात्र एक सदस्य उमाशंकर सिंह बलिया की रसड़ा विधानसभा सीट से चुनाव जीते। बीते विधानसभा सत्र में ये रहा हाल
जुलाई 2024 के अंत में जब विधानसभा सत्र शुरू हुआ तो बसपा का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नहीं था। पार्टी के इकलौते सदस्य उमाशंकर सिंह बीमारी की वजह से सदन की कार्यवाही में हिस्सा नहीं ले सके।1989 के बाद यह पहला मौका था जब बसपा का कोई सदस्य विधानसभा में नहीं था। आरक्षण कोटे में क्रीमी लेयर के मसले को लेकर आदेश पारित हुआ तो मायावती ने इसका खुले तौर पर विरोध किया। बसपा को लगा कि यह बेहतर मौका है, अपने छिटके वोट बैंक को एक बार फिर एकजुट करने की कोशिश की जाए। इन परिस्थितियों के मद्देनजर मायावती ने उप चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस उप चुनाव में बसपा के पास कम से कम तीन सीट ऐसी हैं, जहां उसे 2022 विधानसभा में खराब स्थिति में भी 50 हजार से अधिक वोट मिले। इसमें अलीगढ़ की खैर सीट पर बसपा को 65302 वोट मिले थे। अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट पर 58482 वोट और मिर्जापुर की मझवां सीट पर 52990 वोट मिले। इसलिए बसपा इन सीटों को अपने लिए मजबूत मानकर चल रही है। एक भी सीट जीत पाएंगी मायावती?
अब सवाल पैदा होता है कि मायावती क्या एक सीट भी जीतने में कामयाब होंगी? हाल के चुनाव नतीजों के बाद तो बसपा पर कौन कितना भरोसा जताएगा यह कहना मुश्किल है। लेकिन बसपा लड़ती है तो इसका फायदा किसे होगा? लोकसभा चुनाव में दलितों के वोट का एक बड़ा हिस्सा सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर गया। बसपा के लिए यह बड़ा झटका था। अब बसपा की पहली कोशिश किसी भी हाल में अपने वोटबैंक को वापस लाने की है। ऐसे में जाहिर तौर पर बसपा जितनी ज्यादा मेहनत करेगी, उसका नुकसान सपा-कांग्रेस गठबंधन को होगा। बसपा के चुनाव लड़ने से भाजपा कहीं न कहीं फायदे में रह सकती है। क्या रहेगी आकाश आनंद की भूमिका
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आकाश आनंद को लांच करने वाली मायावती ने बीच चुनाव में ही उन्हें अपरिपक्व बताया। सभी पदों से हटा दिया। चुनाव के नतीजे आए। बसपा की स्थिति बहुत खराब रही। मायावती ने कुछ ही दिन बाद ही आकाश आनंद को सभी पद दोबारा सौंप दिए। उनको फिर से उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। लेकिन यूपी में उपचुनाव को लेकर बुलाई गई बैठक में आकाश आनंद नदारद दिखे। इसे लेकर पार्टी के पदाधिकारियों में भी चर्चा होती रही। हालांकि, बताया गया कि आकाश हरियाणा में चुनाव के मद्देनजर व्यस्त हैं। ऐसे में सवाल यह भी है कि अगर चुनाव हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के साथ होता है तो क्या आकाश आनंद यूपी उप चुनाव में नहीं आएंगे? इसका जवाब आना अभी बाकी है। भाजपा को घेरकर जमीन तैयार कर रहीं मायावती
राजनीतिक मामलों के जानकार रतन मणिलाल कहते हैं कि बीते कुछ सालों में बसपा का कोर वोटर राशन और मकान के चक्कर में भाजपा के साथ चला गया। जिसके बाद बैक एंड पर मायावती ने कहीं न कहीं भाजपा का साथ देना शुरू किया। पिछले चुनाव में पिछड़े और दलित भाजपा से दूर हुए तो मायावती को उम्मीद दिखाई दी। क्योंकि सपा ने जो सीटें जीतीं, उसमें कई ऐसी सीटें थीं जो पहले कभी बसपा की हुआ करती थीं। मायावती को अपने मूल वोटरों की भाजपा से दूरी और मोह भंग होता दिख रहा है, जिसका वह फायदा उठाना चाहती है। उन्होंने कहा कि मायावती आरक्षण और क्रीमी लेयर के मुद्दे पर भाजपा को घेर कर अपनी जमीन तैयार कर रही हैं। बसपा ने इस चुनाव को अपने लिए टेस्ट केस बना लिया है। बसपा अगर दो सीट भी जीतती है तो ऐसे में उसे अपने लिए 2027 विधानसभा चुनाव की जमीन तैयार दिखेगी। फिर वह उसी शिद्दत के साथ विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटेगी। बसपा के लिए अस्तित्व बचाने की लड़ाई
बसपा को काफी करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम बताते हैं कि पार्टी की रणनीति साफ है। बसपा किसी के फायदे या नुकसान के लिए नहीं बल्कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए उप चुनाव लड़ने जा रही है। मायावती जिस तरह से आरक्षण के मुद्दे पर आक्रामक हैं, उससे तो यही लगता है कि वह उप चुनाव को भी इसी आक्रामकता के साथ लड़ेंगी। जिन तीन सीटों पर बसपा ने प्रत्याशी घोषित किए हैं। किसी जमाने पर इन सीटों पर बसपा का दबदबा था। इसमें फूलपुर विधानसभा सीट से शिव बरन पासी को चुनाव लड़ाने का फैसला किया है। इसी तरह मिर्जापुर की मंझवा सीट से दीपू तिवारी के नाम पर मुहर लगाई है। कटेहरी से पवन पांडेय के बेटे प्रतीक पांडेय को उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा है। बसपा के वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बीते कुछ दिनों में पार्टी को सपा व कांग्रेस ने भाजपा की बी टीम बताने की कोशिश की है। इसी वजह से पार्टी को डेंट लगा है। जबकि सच्चाई ये है मायावती ने भाजपा के साथ मिलकर अपनी शर्तों पर सरकार चलाई थी। 2024 के चुनाव में बसपा की बुरी हार का कारण भी यही रहा। अब पार्टी को फिर से मजबूत करने के लिए मायावती ने उप चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। निश्चित तौर पर इस कदम से पार्टी में ऊर्जा का संचार होगा। नए जोश के साथ पार्टी दोबारा मजबूत स्थिति में पहुंचेगी। यह भी पढ़ें… 14 साल बाद उपचुनाव में उतरेंगी मायावती:10 में 3 सीट पर प्रत्याशी तय किए, कहा- बुलडोजर एक साजिश यूपी में बसपा 14 साल बाद उपचुनाव लड़ेगी। पार्टी प्रमुख मायावती ने इसका ऐलान किया। उन्होंने कहा- भाजपा ने इस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। इसलिए हम दमदारी के साथ लड़ेंगे और सभी 10 सीटों पर प्रत्याशी उतारेंगे। मायावती ने तीन सीटों पर प्रत्याशी तय होने के संकेत भी दिए। इसमें फूलपुर विधानसभा सीट से शिव बरन पासी को चुनाव लड़ाने का फैसला किया है। पूरी खबर पढ़ें… बसपा करीब डेढ़ दशक बाद एक बार फिर से उपचुनाव में दमखम के साथ उतरने जा रही है। इसका एलान खुद बसपा सुप्रीमो मायावती ने किया है। उप चुनाव लड़ने के पीछे मायावती की मंशा क्या है? किसको फायदा होगा? किसको नुकसान होगा? क्या मायावती अपने मकसद में कामयाब होंगीं? पिछले चुनाव में इन सीटों पर बसपा की क्या स्थिति रही। दैनिक भास्कर ने इन सबकी पड़ताल की। बसपा ने अचानक न सिर्फ चुनाव लड़ने का ऐलान किया बल्कि तीन सीटों पर प्रत्याशी घोषित भी कर दिए। जबकि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी अभी रणनीति ही बना रहे हैं। ऐसे में सवाल वाजिब है कि आखिर मायावती अचानक इतनी आक्रामक कैसे हो गईं? क्या वाकई वह इस चुनाव में कुछ हासिल करना चाहती हैं या फिर स्थिति 2017 और 2022 जैसी ही रहेगी? लोकसभा चुनाव की शुरुआत में जिस आकाश आनंद को लॉन्च किया गया था, उनका इस चुनाव में क्या रोल रहेगा? दरअसल बहुजन समाज पार्टी की ऐसी स्थिति कभी नहीं रही जो आज है। यानी बसपा के लोकसभा और विधानसभा में मिलाकर कुल एक सदस्य है। बहुजन समाज पार्टी के गठन के बाद साल 1989 में 3 विधायक जीत कर विधानसभा पहुंचे थे। उसके बाद से लगातार पार्टी बढ़ती ही रही। 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। 2012 में पार्टी के सदस्यों की संख्या घटकर 80 रह गई। 2017 में चुनाव हुआ तो बसपा 19 पर सिमट गई। 2022 में सबसे खराब स्थिति रही और मात्र एक सदस्य उमाशंकर सिंह बलिया की रसड़ा विधानसभा सीट से चुनाव जीते। बीते विधानसभा सत्र में ये रहा हाल
जुलाई 2024 के अंत में जब विधानसभा सत्र शुरू हुआ तो बसपा का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नहीं था। पार्टी के इकलौते सदस्य उमाशंकर सिंह बीमारी की वजह से सदन की कार्यवाही में हिस्सा नहीं ले सके।1989 के बाद यह पहला मौका था जब बसपा का कोई सदस्य विधानसभा में नहीं था। आरक्षण कोटे में क्रीमी लेयर के मसले को लेकर आदेश पारित हुआ तो मायावती ने इसका खुले तौर पर विरोध किया। बसपा को लगा कि यह बेहतर मौका है, अपने छिटके वोट बैंक को एक बार फिर एकजुट करने की कोशिश की जाए। इन परिस्थितियों के मद्देनजर मायावती ने उप चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस उप चुनाव में बसपा के पास कम से कम तीन सीट ऐसी हैं, जहां उसे 2022 विधानसभा में खराब स्थिति में भी 50 हजार से अधिक वोट मिले। इसमें अलीगढ़ की खैर सीट पर बसपा को 65302 वोट मिले थे। अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट पर 58482 वोट और मिर्जापुर की मझवां सीट पर 52990 वोट मिले। इसलिए बसपा इन सीटों को अपने लिए मजबूत मानकर चल रही है। एक भी सीट जीत पाएंगी मायावती?
अब सवाल पैदा होता है कि मायावती क्या एक सीट भी जीतने में कामयाब होंगी? हाल के चुनाव नतीजों के बाद तो बसपा पर कौन कितना भरोसा जताएगा यह कहना मुश्किल है। लेकिन बसपा लड़ती है तो इसका फायदा किसे होगा? लोकसभा चुनाव में दलितों के वोट का एक बड़ा हिस्सा सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर गया। बसपा के लिए यह बड़ा झटका था। अब बसपा की पहली कोशिश किसी भी हाल में अपने वोटबैंक को वापस लाने की है। ऐसे में जाहिर तौर पर बसपा जितनी ज्यादा मेहनत करेगी, उसका नुकसान सपा-कांग्रेस गठबंधन को होगा। बसपा के चुनाव लड़ने से भाजपा कहीं न कहीं फायदे में रह सकती है। क्या रहेगी आकाश आनंद की भूमिका
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आकाश आनंद को लांच करने वाली मायावती ने बीच चुनाव में ही उन्हें अपरिपक्व बताया। सभी पदों से हटा दिया। चुनाव के नतीजे आए। बसपा की स्थिति बहुत खराब रही। मायावती ने कुछ ही दिन बाद ही आकाश आनंद को सभी पद दोबारा सौंप दिए। उनको फिर से उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। लेकिन यूपी में उपचुनाव को लेकर बुलाई गई बैठक में आकाश आनंद नदारद दिखे। इसे लेकर पार्टी के पदाधिकारियों में भी चर्चा होती रही। हालांकि, बताया गया कि आकाश हरियाणा में चुनाव के मद्देनजर व्यस्त हैं। ऐसे में सवाल यह भी है कि अगर चुनाव हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के साथ होता है तो क्या आकाश आनंद यूपी उप चुनाव में नहीं आएंगे? इसका जवाब आना अभी बाकी है। भाजपा को घेरकर जमीन तैयार कर रहीं मायावती
राजनीतिक मामलों के जानकार रतन मणिलाल कहते हैं कि बीते कुछ सालों में बसपा का कोर वोटर राशन और मकान के चक्कर में भाजपा के साथ चला गया। जिसके बाद बैक एंड पर मायावती ने कहीं न कहीं भाजपा का साथ देना शुरू किया। पिछले चुनाव में पिछड़े और दलित भाजपा से दूर हुए तो मायावती को उम्मीद दिखाई दी। क्योंकि सपा ने जो सीटें जीतीं, उसमें कई ऐसी सीटें थीं जो पहले कभी बसपा की हुआ करती थीं। मायावती को अपने मूल वोटरों की भाजपा से दूरी और मोह भंग होता दिख रहा है, जिसका वह फायदा उठाना चाहती है। उन्होंने कहा कि मायावती आरक्षण और क्रीमी लेयर के मुद्दे पर भाजपा को घेर कर अपनी जमीन तैयार कर रही हैं। बसपा ने इस चुनाव को अपने लिए टेस्ट केस बना लिया है। बसपा अगर दो सीट भी जीतती है तो ऐसे में उसे अपने लिए 2027 विधानसभा चुनाव की जमीन तैयार दिखेगी। फिर वह उसी शिद्दत के साथ विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटेगी। बसपा के लिए अस्तित्व बचाने की लड़ाई
बसपा को काफी करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम बताते हैं कि पार्टी की रणनीति साफ है। बसपा किसी के फायदे या नुकसान के लिए नहीं बल्कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए उप चुनाव लड़ने जा रही है। मायावती जिस तरह से आरक्षण के मुद्दे पर आक्रामक हैं, उससे तो यही लगता है कि वह उप चुनाव को भी इसी आक्रामकता के साथ लड़ेंगी। जिन तीन सीटों पर बसपा ने प्रत्याशी घोषित किए हैं। किसी जमाने पर इन सीटों पर बसपा का दबदबा था। इसमें फूलपुर विधानसभा सीट से शिव बरन पासी को चुनाव लड़ाने का फैसला किया है। इसी तरह मिर्जापुर की मंझवा सीट से दीपू तिवारी के नाम पर मुहर लगाई है। कटेहरी से पवन पांडेय के बेटे प्रतीक पांडेय को उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा है। बसपा के वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बीते कुछ दिनों में पार्टी को सपा व कांग्रेस ने भाजपा की बी टीम बताने की कोशिश की है। इसी वजह से पार्टी को डेंट लगा है। जबकि सच्चाई ये है मायावती ने भाजपा के साथ मिलकर अपनी शर्तों पर सरकार चलाई थी। 2024 के चुनाव में बसपा की बुरी हार का कारण भी यही रहा। अब पार्टी को फिर से मजबूत करने के लिए मायावती ने उप चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। निश्चित तौर पर इस कदम से पार्टी में ऊर्जा का संचार होगा। नए जोश के साथ पार्टी दोबारा मजबूत स्थिति में पहुंचेगी। यह भी पढ़ें… 14 साल बाद उपचुनाव में उतरेंगी मायावती:10 में 3 सीट पर प्रत्याशी तय किए, कहा- बुलडोजर एक साजिश यूपी में बसपा 14 साल बाद उपचुनाव लड़ेगी। पार्टी प्रमुख मायावती ने इसका ऐलान किया। उन्होंने कहा- भाजपा ने इस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। इसलिए हम दमदारी के साथ लड़ेंगे और सभी 10 सीटों पर प्रत्याशी उतारेंगे। मायावती ने तीन सीटों पर प्रत्याशी तय होने के संकेत भी दिए। इसमें फूलपुर विधानसभा सीट से शिव बरन पासी को चुनाव लड़ाने का फैसला किया है। पूरी खबर पढ़ें…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर