काशीविश्वनाथ मंदिर न्यास ने बदली 350 साल प्राचीन चल-प्रतिमा परंपरा:झूलनोत्सव में महंत आवास से नहीं जाएंगी पंचबदन प्रतिमा, न्यास अपनी प्रतिमा रखेगा, महंत परिवार को आपत्ति

काशीविश्वनाथ मंदिर न्यास ने बदली 350 साल प्राचीन चल-प्रतिमा परंपरा:झूलनोत्सव में महंत आवास से नहीं जाएंगी पंचबदन प्रतिमा, न्यास अपनी प्रतिमा रखेगा, महंत परिवार को आपत्ति

वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में 358 वर्ष प्राचीन परंपरा पर मंदिर न्यास ने विराम लगा दिया है। महंत आवास से मंदिर परिसर तक वर्षों से जाने वाली पंचबदन चल रजत प्रतिमा इस बार नहीं जाएगी। मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के निधन के बाद अनवरत चली आ रही परंपरा को परिवार की चौथी पीढ़ी नहीं निभा सकेगी। मंदिर प्रशासन अब महंत आवास की प्रतिमा को झूलनोत्सव में शामिल नहीं करेगा। मंदिर परिसर के झूले पर काशी विश्वनाथ न्यास अब अपनी प्रतिमा सजाएगा। मंदिर के वर्षों पुराने इतिहास में यह पहली बार होगा जब महंत आवास पर झूलनोत्सव में शामिल प्रतिमा मंदिर के गर्भगृह में नहीं रखी जाएगी। मंदिर न्यास की ओर से इसकी जानकारी साझा करते हुए पूर्णिमा यानि अंतिम सोमवार को अपनी स्वयं की प्रतिमा रखने की बात कही। वहीं महंत परिवार से जुड़े लोगों ने प्रशासन की इस फैसले पर आपत्ति जताई है। पहले जानिए बाबा की नगरी में झूलनोत्सव परंपरा… बाबा विश्वनाथ की आराधना के पावन महीने सावन में काशी पुराधिपति के कई श्रृंगार किए जाते हैं। बाबा की चल प्रतिमा को गर्भगृह में रखकर भव्य श्रृंगार और आरती पूजन किया जाता है। सावन की पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के एक दिन पहले टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पर मंगला आरती के साथ झूलन उत्सव के आयोजन शुरू होते हैं। उससे जुड़े अनुष्ठान पूरे किए जाते हैं। इसके बाद पूर्णिमा को दोपहर में बाबा विश्वनाथ की चल रजत प्रतिमा का शृंगार किया जाता है। श्रावण पूर्णिमा पर दोपहर 2 बजे से लगभग शाम 6 बजे तक आम भक्तों ने बाबा विश्वनाथ की चल रजत प्रतिमा का दर्शन मिलता था। महंत परिवार का दावा है कि यह परंपरा 350 साल पुरानी है। इसके बाद महंत आवास से बाबा विश्वनाथ चांदी की पालकी पर सवार होकर काशी की सड़कों पर निकलते हैं तो भक्तों की भारी भीड़ मंदिर तक जाती थी। शृंगार भोग आरती के दौरान डमरू और शहनाई वादन के बीच बाबा की प्रतिमा को मंत्रोच्चार के साथ बाबा की प्रतिमा को गर्भगृह में स्थापित किया जाता रहा है। इस बार यह दृश्य श्रद्धालुओं को महंत आवास पर नहीं मिलेगा। टेढ़ीनीम महंत आवास (गौरा-सदनिका) पर पं. वाचस्पति तिवारी ने बताया कि मंदिर की स्थापना काल से ही मेरे पूर्वज मंदिर से जुड़ी परंपराओं को निभा रहे हैं। अन्नकूट, रंगभरी और श्रावण पूर्णिमा के अनुष्ठान महंत आवास से होते रहे हैं। उन्होंने बाबा की प्रतिमा का भव्य श्रृंगार और पूजन भी किया। महादेव के अब तक चार श्रृंगार काशी विश्वनाथ मंदिर में देवाधिदेव महादेव हर सोमवार को अलग श्रृंगार और स्वरूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। अब तक चार स्वरूपों में दर्शन पाकर भक्त निहाल हो चुके हैं। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में पिछले चार सोमवार को बाबा विश्वनाथ का अलग अलग शृंगार हो चुका है। पहले सोमवार को चल प्रतिमा स्वरूप, दूसरे सोमवार को गौरी शंकर (शंकर-पार्वती) स्वरूप, तीसरे सोमवार को अर्धनारीश्वर स्वरूप और चौथे सोमवार को शृंगार रुद्राक्ष से किया गया था। इससे बाद आज यानि सावन के पांचवें व अंतिम सोमवार 19 अगस्त को बाबा का शंकर, पार्वती, गणेश शृंगार एवं श्रावण पूर्णिमा पर वार्षिक झूला शृंगार होगा। मंदिर अपनी अलग प्रतिमा पर निकालेगा झांकी श्रावण मास के अंतिम सोमवार को होने वाले झूला श्रृंगार यानि झूलनोत्सव के लिए मंदिर प्रशासन ने रविवार देर रात नई प्रतिमा के झूला पर विराजमान किए जाने की जानकारी दी। मंदिर न्यास की ओर से जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि पंचबदन चल रजत प्रतिमा बाहर से श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में नहीं लाई जाएगी। कतिपय पर्वों पर मंदिर परिसर में चल प्रतिमा शोभायात्रा निकाली जाती लेकिन इस बार मंदिर अपनी प्रतिमा पर अनुष्ठान करेगा। मंदिर न्यास अध्यक्ष के अनुसार न्यास के पास स्वयं की मूर्ति, पालकी आदि की समस्त व्यवस्था एवं संसाधन हैं जिससे प्रचलित परम्परा का पूर्ण निर्वहन मंदिर प्रांगण के भीतर ही किया जाएगा। धाम क्षेत्र के भीतर ही न्यास मंदिर की स्वयं की चल प्रतिमा से श्रावण मास के अंतिम सोमवार को होने वाले झूला श्रृंगार का परम्परागत निवर्हन करेगा। इसकी पूरी तैयारी की जा चुकी है, ट्रस्ट के सदस्यों की उपस्थिति में पूजा उपरांत शोभायात्रा मंदिर प्रांगण के अंदर ही गर्भगृह तक आयोजित की जाएगी। मंदिर को झूलनोत्सव के दो पत्र मिले, दोनों का दावा श्री काशी विश्वनाथ धाम के पुनर्निर्माण के समय मंदिर क्षेत्र से अन्यत्र जाते समय दो परिवारों द्वारा कथित तौर पर अपने साथ चल प्रतिमा को साथ ले जाने का दावा किया जाता है। दो तीन वर्षों तक स्वर्गीय कुलपति तिवारी के जीवनकाल में चल प्रतिमा की शोभायात्रा उनके आवास से मंदिर तक लाने पर उनके भाई लोकपति तिवारी ने आपत्ति जताई थी। इस बार मंदिर न्यास की ओर से बताया गया कि मंदिर में पंचबदन चल प्रतिमा लाने के लिए मंदिर प्रशासन को दो पक्षों द्वारा अलग-अलग पत्र मिले। मंदिर न्यास के संज्ञान में आया कि वाचस्पति तिवारी और लोकपति तिवारी परिवार की दो शाखाओं का असली मूर्ति व श्रृंगार परंपरा के निर्वहन के संबंध में आपसी में विवाद है। दोनों की ओर से मूल प्रतिमा के कब्जे और परम्परा के असली दावेदार होने के दावे किये गये हैं, दोनों पक्षकार बनकर कोर्ट केस भी लड़ रहे हैं। कुलपति तिवारी के निधन के उपरांत उनके पुत्र वाचस्पति तिवारी इसे वशांनुगत निजी परम्परा घोषित करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकी उनके चाचा लोकपति तिवारी बड़ी पीढ़ी का अधिकार होने का दावा कर रहे हैं। पारिवारिक विरोध बताकर मंदिर ने बदली परंपरा मंदिर न्यास की ओर से बताया गया कि दो परिवारों के परस्पर विरोधी दावों पर मंदिर प्रशासन ने विधिक स्थिति का आकलन किया गया। इसके बाद निर्णय लिया गया है कि इस प्रकार की कोई शोभायात्रा मंदिर न्यास के प्रबंधन से बाहर की प्रतिमा से व बाहर के स्थान से नहीं की जाएगी। तर्क दिया गया कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास किसी पारिवारिक विवाद से दूर रहना चाहता है, दोनों पक्षों में विरोधाभास होने से पर्व के सकुशल निर्वहन में बाधा उत्पन्न होती है तथा इससे मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को भी असुविधा होती है। साथ ही मंदिर का नाम कोर्ट कचहरी में घसीटने की संभावना बनती है। घर की मूर्ति को पूजा की बताना भ्रामक होगा न्यास की ओर से बताया गया कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा शोभायात्रा के नाम पर किसी बाहरी पक्ष द्वारा अपनी मूर्ति से कोई समानान्तर व्यवस्था करने का कोई भी प्रयास मंदिर की निर्धारित व्यवस्था के विरुद्ध होगा। यदि कोई व्यक्ति अपने घर की किसी मूर्ति या उसकी पूजा को मंदिर से संबंधित बताता है तो यह पूरी तरह से भ्रामक होगा। मंदिर न्यास का बाहरी मूर्तियों या किसी के घर व परिवार द्वारा की जा रही उनकी पूजा से कोई सरोकार नहीं है। बाबा विश्वनाथ के झूलनोत्सव की परंपरा का निर्वहन विधिविधान से किया जाएगा। भविष्य में भी ऐसे सभी चल प्रतिमा संबंधी त्योहार मंदिर न्यास द्वारा स्वयं की मूर्तियों से पूरे होंगे। 2022 में चंद्रयान थीम पर हुआ था झूलनोत्सव विगत वर्ष काशी में चंद्रयान-3 की थीम पर बाबा विश्वनाथ का झूलनोत्सव का आयोजन हुआ था। 358 साल पुरानी परंपरा के तहत बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ की रजत प्रतिमा को झूला झुलाया गया था। प्रतिमा को ज्योर्लिंग के ऊपर झूले में रखा गया है। नजारा ऐसा था कि पुजारी और श्रद्धालु बाबा को झूला झुला रहे हैं। करीब डेढ़ लाख से ज्यादा भक्त बाबा के दर्शन के लिए पहुंचे हैं, रात में शयन आरती की गई थी। इससे पहले आधा किमी टेढ़ी नीम से काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह तक बाबा विश्वनाथ, माता गौरा और बाल गणेश की भव्य पालिका यात्रा निकाली गई थी। इसमें शहनाई और शंख वादन करते हुए हजारों की संख्या में भक्त शामिल हुए थे। हर-हर महादेव और जय शिव शंभु के उद्घोष के बीच बाबा की प्रतिमा को गर्भ गृह में विराजमान किया गया था। आपके साथ साझा करते हैं 2022 के झूलनोत्सव वो तस्वीरें जो शायद अब फिर देखने को नहीं मिलेंगी वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में 358 वर्ष प्राचीन परंपरा पर मंदिर न्यास ने विराम लगा दिया है। महंत आवास से मंदिर परिसर तक वर्षों से जाने वाली पंचबदन चल रजत प्रतिमा इस बार नहीं जाएगी। मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के निधन के बाद अनवरत चली आ रही परंपरा को परिवार की चौथी पीढ़ी नहीं निभा सकेगी। मंदिर प्रशासन अब महंत आवास की प्रतिमा को झूलनोत्सव में शामिल नहीं करेगा। मंदिर परिसर के झूले पर काशी विश्वनाथ न्यास अब अपनी प्रतिमा सजाएगा। मंदिर के वर्षों पुराने इतिहास में यह पहली बार होगा जब महंत आवास पर झूलनोत्सव में शामिल प्रतिमा मंदिर के गर्भगृह में नहीं रखी जाएगी। मंदिर न्यास की ओर से इसकी जानकारी साझा करते हुए पूर्णिमा यानि अंतिम सोमवार को अपनी स्वयं की प्रतिमा रखने की बात कही। वहीं महंत परिवार से जुड़े लोगों ने प्रशासन की इस फैसले पर आपत्ति जताई है। पहले जानिए बाबा की नगरी में झूलनोत्सव परंपरा… बाबा विश्वनाथ की आराधना के पावन महीने सावन में काशी पुराधिपति के कई श्रृंगार किए जाते हैं। बाबा की चल प्रतिमा को गर्भगृह में रखकर भव्य श्रृंगार और आरती पूजन किया जाता है। सावन की पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के एक दिन पहले टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पर मंगला आरती के साथ झूलन उत्सव के आयोजन शुरू होते हैं। उससे जुड़े अनुष्ठान पूरे किए जाते हैं। इसके बाद पूर्णिमा को दोपहर में बाबा विश्वनाथ की चल रजत प्रतिमा का शृंगार किया जाता है। श्रावण पूर्णिमा पर दोपहर 2 बजे से लगभग शाम 6 बजे तक आम भक्तों ने बाबा विश्वनाथ की चल रजत प्रतिमा का दर्शन मिलता था। महंत परिवार का दावा है कि यह परंपरा 350 साल पुरानी है। इसके बाद महंत आवास से बाबा विश्वनाथ चांदी की पालकी पर सवार होकर काशी की सड़कों पर निकलते हैं तो भक्तों की भारी भीड़ मंदिर तक जाती थी। शृंगार भोग आरती के दौरान डमरू और शहनाई वादन के बीच बाबा की प्रतिमा को मंत्रोच्चार के साथ बाबा की प्रतिमा को गर्भगृह में स्थापित किया जाता रहा है। इस बार यह दृश्य श्रद्धालुओं को महंत आवास पर नहीं मिलेगा। टेढ़ीनीम महंत आवास (गौरा-सदनिका) पर पं. वाचस्पति तिवारी ने बताया कि मंदिर की स्थापना काल से ही मेरे पूर्वज मंदिर से जुड़ी परंपराओं को निभा रहे हैं। अन्नकूट, रंगभरी और श्रावण पूर्णिमा के अनुष्ठान महंत आवास से होते रहे हैं। उन्होंने बाबा की प्रतिमा का भव्य श्रृंगार और पूजन भी किया। महादेव के अब तक चार श्रृंगार काशी विश्वनाथ मंदिर में देवाधिदेव महादेव हर सोमवार को अलग श्रृंगार और स्वरूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। अब तक चार स्वरूपों में दर्शन पाकर भक्त निहाल हो चुके हैं। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में पिछले चार सोमवार को बाबा विश्वनाथ का अलग अलग शृंगार हो चुका है। पहले सोमवार को चल प्रतिमा स्वरूप, दूसरे सोमवार को गौरी शंकर (शंकर-पार्वती) स्वरूप, तीसरे सोमवार को अर्धनारीश्वर स्वरूप और चौथे सोमवार को शृंगार रुद्राक्ष से किया गया था। इससे बाद आज यानि सावन के पांचवें व अंतिम सोमवार 19 अगस्त को बाबा का शंकर, पार्वती, गणेश शृंगार एवं श्रावण पूर्णिमा पर वार्षिक झूला शृंगार होगा। मंदिर अपनी अलग प्रतिमा पर निकालेगा झांकी श्रावण मास के अंतिम सोमवार को होने वाले झूला श्रृंगार यानि झूलनोत्सव के लिए मंदिर प्रशासन ने रविवार देर रात नई प्रतिमा के झूला पर विराजमान किए जाने की जानकारी दी। मंदिर न्यास की ओर से जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि पंचबदन चल रजत प्रतिमा बाहर से श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में नहीं लाई जाएगी। कतिपय पर्वों पर मंदिर परिसर में चल प्रतिमा शोभायात्रा निकाली जाती लेकिन इस बार मंदिर अपनी प्रतिमा पर अनुष्ठान करेगा। मंदिर न्यास अध्यक्ष के अनुसार न्यास के पास स्वयं की मूर्ति, पालकी आदि की समस्त व्यवस्था एवं संसाधन हैं जिससे प्रचलित परम्परा का पूर्ण निर्वहन मंदिर प्रांगण के भीतर ही किया जाएगा। धाम क्षेत्र के भीतर ही न्यास मंदिर की स्वयं की चल प्रतिमा से श्रावण मास के अंतिम सोमवार को होने वाले झूला श्रृंगार का परम्परागत निवर्हन करेगा। इसकी पूरी तैयारी की जा चुकी है, ट्रस्ट के सदस्यों की उपस्थिति में पूजा उपरांत शोभायात्रा मंदिर प्रांगण के अंदर ही गर्भगृह तक आयोजित की जाएगी। मंदिर को झूलनोत्सव के दो पत्र मिले, दोनों का दावा श्री काशी विश्वनाथ धाम के पुनर्निर्माण के समय मंदिर क्षेत्र से अन्यत्र जाते समय दो परिवारों द्वारा कथित तौर पर अपने साथ चल प्रतिमा को साथ ले जाने का दावा किया जाता है। दो तीन वर्षों तक स्वर्गीय कुलपति तिवारी के जीवनकाल में चल प्रतिमा की शोभायात्रा उनके आवास से मंदिर तक लाने पर उनके भाई लोकपति तिवारी ने आपत्ति जताई थी। इस बार मंदिर न्यास की ओर से बताया गया कि मंदिर में पंचबदन चल प्रतिमा लाने के लिए मंदिर प्रशासन को दो पक्षों द्वारा अलग-अलग पत्र मिले। मंदिर न्यास के संज्ञान में आया कि वाचस्पति तिवारी और लोकपति तिवारी परिवार की दो शाखाओं का असली मूर्ति व श्रृंगार परंपरा के निर्वहन के संबंध में आपसी में विवाद है। दोनों की ओर से मूल प्रतिमा के कब्जे और परम्परा के असली दावेदार होने के दावे किये गये हैं, दोनों पक्षकार बनकर कोर्ट केस भी लड़ रहे हैं। कुलपति तिवारी के निधन के उपरांत उनके पुत्र वाचस्पति तिवारी इसे वशांनुगत निजी परम्परा घोषित करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकी उनके चाचा लोकपति तिवारी बड़ी पीढ़ी का अधिकार होने का दावा कर रहे हैं। पारिवारिक विरोध बताकर मंदिर ने बदली परंपरा मंदिर न्यास की ओर से बताया गया कि दो परिवारों के परस्पर विरोधी दावों पर मंदिर प्रशासन ने विधिक स्थिति का आकलन किया गया। इसके बाद निर्णय लिया गया है कि इस प्रकार की कोई शोभायात्रा मंदिर न्यास के प्रबंधन से बाहर की प्रतिमा से व बाहर के स्थान से नहीं की जाएगी। तर्क दिया गया कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास किसी पारिवारिक विवाद से दूर रहना चाहता है, दोनों पक्षों में विरोधाभास होने से पर्व के सकुशल निर्वहन में बाधा उत्पन्न होती है तथा इससे मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को भी असुविधा होती है। साथ ही मंदिर का नाम कोर्ट कचहरी में घसीटने की संभावना बनती है। घर की मूर्ति को पूजा की बताना भ्रामक होगा न्यास की ओर से बताया गया कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा शोभायात्रा के नाम पर किसी बाहरी पक्ष द्वारा अपनी मूर्ति से कोई समानान्तर व्यवस्था करने का कोई भी प्रयास मंदिर की निर्धारित व्यवस्था के विरुद्ध होगा। यदि कोई व्यक्ति अपने घर की किसी मूर्ति या उसकी पूजा को मंदिर से संबंधित बताता है तो यह पूरी तरह से भ्रामक होगा। मंदिर न्यास का बाहरी मूर्तियों या किसी के घर व परिवार द्वारा की जा रही उनकी पूजा से कोई सरोकार नहीं है। बाबा विश्वनाथ के झूलनोत्सव की परंपरा का निर्वहन विधिविधान से किया जाएगा। भविष्य में भी ऐसे सभी चल प्रतिमा संबंधी त्योहार मंदिर न्यास द्वारा स्वयं की मूर्तियों से पूरे होंगे। 2022 में चंद्रयान थीम पर हुआ था झूलनोत्सव विगत वर्ष काशी में चंद्रयान-3 की थीम पर बाबा विश्वनाथ का झूलनोत्सव का आयोजन हुआ था। 358 साल पुरानी परंपरा के तहत बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ की रजत प्रतिमा को झूला झुलाया गया था। प्रतिमा को ज्योर्लिंग के ऊपर झूले में रखा गया है। नजारा ऐसा था कि पुजारी और श्रद्धालु बाबा को झूला झुला रहे हैं। करीब डेढ़ लाख से ज्यादा भक्त बाबा के दर्शन के लिए पहुंचे हैं, रात में शयन आरती की गई थी। इससे पहले आधा किमी टेढ़ी नीम से काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह तक बाबा विश्वनाथ, माता गौरा और बाल गणेश की भव्य पालिका यात्रा निकाली गई थी। इसमें शहनाई और शंख वादन करते हुए हजारों की संख्या में भक्त शामिल हुए थे। हर-हर महादेव और जय शिव शंभु के उद्घोष के बीच बाबा की प्रतिमा को गर्भ गृह में विराजमान किया गया था। आपके साथ साझा करते हैं 2022 के झूलनोत्सव वो तस्वीरें जो शायद अब फिर देखने को नहीं मिलेंगी   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर