वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में 358 वर्ष प्राचीन परंपरा पर मंदिर न्यास ने विराम लगा दिया है। महंत आवास से मंदिर परिसर तक वर्षों से जाने वाली पंचबदन चल रजत प्रतिमा इस बार नहीं जाएगी। मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के निधन के बाद अनवरत चली आ रही परंपरा को परिवार की चौथी पीढ़ी नहीं निभा सकेगी। मंदिर प्रशासन अब महंत आवास की प्रतिमा को झूलनोत्सव में शामिल नहीं करेगा। मंदिर परिसर के झूले पर काशी विश्वनाथ न्यास अब अपनी प्रतिमा सजाएगा। मंदिर के वर्षों पुराने इतिहास में यह पहली बार होगा जब महंत आवास पर झूलनोत्सव में शामिल प्रतिमा मंदिर के गर्भगृह में नहीं रखी जाएगी। मंदिर न्यास की ओर से इसकी जानकारी साझा करते हुए पूर्णिमा यानि अंतिम सोमवार को अपनी स्वयं की प्रतिमा रखने की बात कही। वहीं महंत परिवार से जुड़े लोगों ने प्रशासन की इस फैसले पर आपत्ति जताई है। पहले जानिए बाबा की नगरी में झूलनोत्सव परंपरा… बाबा विश्वनाथ की आराधना के पावन महीने सावन में काशी पुराधिपति के कई श्रृंगार किए जाते हैं। बाबा की चल प्रतिमा को गर्भगृह में रखकर भव्य श्रृंगार और आरती पूजन किया जाता है। सावन की पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के एक दिन पहले टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पर मंगला आरती के साथ झूलन उत्सव के आयोजन शुरू होते हैं। उससे जुड़े अनुष्ठान पूरे किए जाते हैं। इसके बाद पूर्णिमा को दोपहर में बाबा विश्वनाथ की चल रजत प्रतिमा का शृंगार किया जाता है। श्रावण पूर्णिमा पर दोपहर 2 बजे से लगभग शाम 6 बजे तक आम भक्तों ने बाबा विश्वनाथ की चल रजत प्रतिमा का दर्शन मिलता था। महंत परिवार का दावा है कि यह परंपरा 350 साल पुरानी है। इसके बाद महंत आवास से बाबा विश्वनाथ चांदी की पालकी पर सवार होकर काशी की सड़कों पर निकलते हैं तो भक्तों की भारी भीड़ मंदिर तक जाती थी। शृंगार भोग आरती के दौरान डमरू और शहनाई वादन के बीच बाबा की प्रतिमा को मंत्रोच्चार के साथ बाबा की प्रतिमा को गर्भगृह में स्थापित किया जाता रहा है। इस बार यह दृश्य श्रद्धालुओं को महंत आवास पर नहीं मिलेगा। टेढ़ीनीम महंत आवास (गौरा-सदनिका) पर पं. वाचस्पति तिवारी ने बताया कि मंदिर की स्थापना काल से ही मेरे पूर्वज मंदिर से जुड़ी परंपराओं को निभा रहे हैं। अन्नकूट, रंगभरी और श्रावण पूर्णिमा के अनुष्ठान महंत आवास से होते रहे हैं। उन्होंने बाबा की प्रतिमा का भव्य श्रृंगार और पूजन भी किया। महादेव के अब तक चार श्रृंगार काशी विश्वनाथ मंदिर में देवाधिदेव महादेव हर सोमवार को अलग श्रृंगार और स्वरूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। अब तक चार स्वरूपों में दर्शन पाकर भक्त निहाल हो चुके हैं। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में पिछले चार सोमवार को बाबा विश्वनाथ का अलग अलग शृंगार हो चुका है। पहले सोमवार को चल प्रतिमा स्वरूप, दूसरे सोमवार को गौरी शंकर (शंकर-पार्वती) स्वरूप, तीसरे सोमवार को अर्धनारीश्वर स्वरूप और चौथे सोमवार को शृंगार रुद्राक्ष से किया गया था। इससे बाद आज यानि सावन के पांचवें व अंतिम सोमवार 19 अगस्त को बाबा का शंकर, पार्वती, गणेश शृंगार एवं श्रावण पूर्णिमा पर वार्षिक झूला शृंगार होगा। मंदिर अपनी अलग प्रतिमा पर निकालेगा झांकी श्रावण मास के अंतिम सोमवार को होने वाले झूला श्रृंगार यानि झूलनोत्सव के लिए मंदिर प्रशासन ने रविवार देर रात नई प्रतिमा के झूला पर विराजमान किए जाने की जानकारी दी। मंदिर न्यास की ओर से जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि पंचबदन चल रजत प्रतिमा बाहर से श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में नहीं लाई जाएगी। कतिपय पर्वों पर मंदिर परिसर में चल प्रतिमा शोभायात्रा निकाली जाती लेकिन इस बार मंदिर अपनी प्रतिमा पर अनुष्ठान करेगा। मंदिर न्यास अध्यक्ष के अनुसार न्यास के पास स्वयं की मूर्ति, पालकी आदि की समस्त व्यवस्था एवं संसाधन हैं जिससे प्रचलित परम्परा का पूर्ण निर्वहन मंदिर प्रांगण के भीतर ही किया जाएगा। धाम क्षेत्र के भीतर ही न्यास मंदिर की स्वयं की चल प्रतिमा से श्रावण मास के अंतिम सोमवार को होने वाले झूला श्रृंगार का परम्परागत निवर्हन करेगा। इसकी पूरी तैयारी की जा चुकी है, ट्रस्ट के सदस्यों की उपस्थिति में पूजा उपरांत शोभायात्रा मंदिर प्रांगण के अंदर ही गर्भगृह तक आयोजित की जाएगी। मंदिर को झूलनोत्सव के दो पत्र मिले, दोनों का दावा श्री काशी विश्वनाथ धाम के पुनर्निर्माण के समय मंदिर क्षेत्र से अन्यत्र जाते समय दो परिवारों द्वारा कथित तौर पर अपने साथ चल प्रतिमा को साथ ले जाने का दावा किया जाता है। दो तीन वर्षों तक स्वर्गीय कुलपति तिवारी के जीवनकाल में चल प्रतिमा की शोभायात्रा उनके आवास से मंदिर तक लाने पर उनके भाई लोकपति तिवारी ने आपत्ति जताई थी। इस बार मंदिर न्यास की ओर से बताया गया कि मंदिर में पंचबदन चल प्रतिमा लाने के लिए मंदिर प्रशासन को दो पक्षों द्वारा अलग-अलग पत्र मिले। मंदिर न्यास के संज्ञान में आया कि वाचस्पति तिवारी और लोकपति तिवारी परिवार की दो शाखाओं का असली मूर्ति व श्रृंगार परंपरा के निर्वहन के संबंध में आपसी में विवाद है। दोनों की ओर से मूल प्रतिमा के कब्जे और परम्परा के असली दावेदार होने के दावे किये गये हैं, दोनों पक्षकार बनकर कोर्ट केस भी लड़ रहे हैं। कुलपति तिवारी के निधन के उपरांत उनके पुत्र वाचस्पति तिवारी इसे वशांनुगत निजी परम्परा घोषित करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकी उनके चाचा लोकपति तिवारी बड़ी पीढ़ी का अधिकार होने का दावा कर रहे हैं। पारिवारिक विरोध बताकर मंदिर ने बदली परंपरा मंदिर न्यास की ओर से बताया गया कि दो परिवारों के परस्पर विरोधी दावों पर मंदिर प्रशासन ने विधिक स्थिति का आकलन किया गया। इसके बाद निर्णय लिया गया है कि इस प्रकार की कोई शोभायात्रा मंदिर न्यास के प्रबंधन से बाहर की प्रतिमा से व बाहर के स्थान से नहीं की जाएगी। तर्क दिया गया कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास किसी पारिवारिक विवाद से दूर रहना चाहता है, दोनों पक्षों में विरोधाभास होने से पर्व के सकुशल निर्वहन में बाधा उत्पन्न होती है तथा इससे मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को भी असुविधा होती है। साथ ही मंदिर का नाम कोर्ट कचहरी में घसीटने की संभावना बनती है। घर की मूर्ति को पूजा की बताना भ्रामक होगा न्यास की ओर से बताया गया कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा शोभायात्रा के नाम पर किसी बाहरी पक्ष द्वारा अपनी मूर्ति से कोई समानान्तर व्यवस्था करने का कोई भी प्रयास मंदिर की निर्धारित व्यवस्था के विरुद्ध होगा। यदि कोई व्यक्ति अपने घर की किसी मूर्ति या उसकी पूजा को मंदिर से संबंधित बताता है तो यह पूरी तरह से भ्रामक होगा। मंदिर न्यास का बाहरी मूर्तियों या किसी के घर व परिवार द्वारा की जा रही उनकी पूजा से कोई सरोकार नहीं है। बाबा विश्वनाथ के झूलनोत्सव की परंपरा का निर्वहन विधिविधान से किया जाएगा। भविष्य में भी ऐसे सभी चल प्रतिमा संबंधी त्योहार मंदिर न्यास द्वारा स्वयं की मूर्तियों से पूरे होंगे। 2022 में चंद्रयान थीम पर हुआ था झूलनोत्सव विगत वर्ष काशी में चंद्रयान-3 की थीम पर बाबा विश्वनाथ का झूलनोत्सव का आयोजन हुआ था। 358 साल पुरानी परंपरा के तहत बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ की रजत प्रतिमा को झूला झुलाया गया था। प्रतिमा को ज्योर्लिंग के ऊपर झूले में रखा गया है। नजारा ऐसा था कि पुजारी और श्रद्धालु बाबा को झूला झुला रहे हैं। करीब डेढ़ लाख से ज्यादा भक्त बाबा के दर्शन के लिए पहुंचे हैं, रात में शयन आरती की गई थी। इससे पहले आधा किमी टेढ़ी नीम से काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह तक बाबा विश्वनाथ, माता गौरा और बाल गणेश की भव्य पालिका यात्रा निकाली गई थी। इसमें शहनाई और शंख वादन करते हुए हजारों की संख्या में भक्त शामिल हुए थे। हर-हर महादेव और जय शिव शंभु के उद्घोष के बीच बाबा की प्रतिमा को गर्भ गृह में विराजमान किया गया था। आपके साथ साझा करते हैं 2022 के झूलनोत्सव वो तस्वीरें जो शायद अब फिर देखने को नहीं मिलेंगी वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में 358 वर्ष प्राचीन परंपरा पर मंदिर न्यास ने विराम लगा दिया है। महंत आवास से मंदिर परिसर तक वर्षों से जाने वाली पंचबदन चल रजत प्रतिमा इस बार नहीं जाएगी। मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के निधन के बाद अनवरत चली आ रही परंपरा को परिवार की चौथी पीढ़ी नहीं निभा सकेगी। मंदिर प्रशासन अब महंत आवास की प्रतिमा को झूलनोत्सव में शामिल नहीं करेगा। मंदिर परिसर के झूले पर काशी विश्वनाथ न्यास अब अपनी प्रतिमा सजाएगा। मंदिर के वर्षों पुराने इतिहास में यह पहली बार होगा जब महंत आवास पर झूलनोत्सव में शामिल प्रतिमा मंदिर के गर्भगृह में नहीं रखी जाएगी। मंदिर न्यास की ओर से इसकी जानकारी साझा करते हुए पूर्णिमा यानि अंतिम सोमवार को अपनी स्वयं की प्रतिमा रखने की बात कही। वहीं महंत परिवार से जुड़े लोगों ने प्रशासन की इस फैसले पर आपत्ति जताई है। पहले जानिए बाबा की नगरी में झूलनोत्सव परंपरा… बाबा विश्वनाथ की आराधना के पावन महीने सावन में काशी पुराधिपति के कई श्रृंगार किए जाते हैं। बाबा की चल प्रतिमा को गर्भगृह में रखकर भव्य श्रृंगार और आरती पूजन किया जाता है। सावन की पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के एक दिन पहले टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पर मंगला आरती के साथ झूलन उत्सव के आयोजन शुरू होते हैं। उससे जुड़े अनुष्ठान पूरे किए जाते हैं। इसके बाद पूर्णिमा को दोपहर में बाबा विश्वनाथ की चल रजत प्रतिमा का शृंगार किया जाता है। श्रावण पूर्णिमा पर दोपहर 2 बजे से लगभग शाम 6 बजे तक आम भक्तों ने बाबा विश्वनाथ की चल रजत प्रतिमा का दर्शन मिलता था। महंत परिवार का दावा है कि यह परंपरा 350 साल पुरानी है। इसके बाद महंत आवास से बाबा विश्वनाथ चांदी की पालकी पर सवार होकर काशी की सड़कों पर निकलते हैं तो भक्तों की भारी भीड़ मंदिर तक जाती थी। शृंगार भोग आरती के दौरान डमरू और शहनाई वादन के बीच बाबा की प्रतिमा को मंत्रोच्चार के साथ बाबा की प्रतिमा को गर्भगृह में स्थापित किया जाता रहा है। इस बार यह दृश्य श्रद्धालुओं को महंत आवास पर नहीं मिलेगा। टेढ़ीनीम महंत आवास (गौरा-सदनिका) पर पं. वाचस्पति तिवारी ने बताया कि मंदिर की स्थापना काल से ही मेरे पूर्वज मंदिर से जुड़ी परंपराओं को निभा रहे हैं। अन्नकूट, रंगभरी और श्रावण पूर्णिमा के अनुष्ठान महंत आवास से होते रहे हैं। उन्होंने बाबा की प्रतिमा का भव्य श्रृंगार और पूजन भी किया। महादेव के अब तक चार श्रृंगार काशी विश्वनाथ मंदिर में देवाधिदेव महादेव हर सोमवार को अलग श्रृंगार और स्वरूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। अब तक चार स्वरूपों में दर्शन पाकर भक्त निहाल हो चुके हैं। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में पिछले चार सोमवार को बाबा विश्वनाथ का अलग अलग शृंगार हो चुका है। पहले सोमवार को चल प्रतिमा स्वरूप, दूसरे सोमवार को गौरी शंकर (शंकर-पार्वती) स्वरूप, तीसरे सोमवार को अर्धनारीश्वर स्वरूप और चौथे सोमवार को शृंगार रुद्राक्ष से किया गया था। इससे बाद आज यानि सावन के पांचवें व अंतिम सोमवार 19 अगस्त को बाबा का शंकर, पार्वती, गणेश शृंगार एवं श्रावण पूर्णिमा पर वार्षिक झूला शृंगार होगा। मंदिर अपनी अलग प्रतिमा पर निकालेगा झांकी श्रावण मास के अंतिम सोमवार को होने वाले झूला श्रृंगार यानि झूलनोत्सव के लिए मंदिर प्रशासन ने रविवार देर रात नई प्रतिमा के झूला पर विराजमान किए जाने की जानकारी दी। मंदिर न्यास की ओर से जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि पंचबदन चल रजत प्रतिमा बाहर से श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में नहीं लाई जाएगी। कतिपय पर्वों पर मंदिर परिसर में चल प्रतिमा शोभायात्रा निकाली जाती लेकिन इस बार मंदिर अपनी प्रतिमा पर अनुष्ठान करेगा। मंदिर न्यास अध्यक्ष के अनुसार न्यास के पास स्वयं की मूर्ति, पालकी आदि की समस्त व्यवस्था एवं संसाधन हैं जिससे प्रचलित परम्परा का पूर्ण निर्वहन मंदिर प्रांगण के भीतर ही किया जाएगा। धाम क्षेत्र के भीतर ही न्यास मंदिर की स्वयं की चल प्रतिमा से श्रावण मास के अंतिम सोमवार को होने वाले झूला श्रृंगार का परम्परागत निवर्हन करेगा। इसकी पूरी तैयारी की जा चुकी है, ट्रस्ट के सदस्यों की उपस्थिति में पूजा उपरांत शोभायात्रा मंदिर प्रांगण के अंदर ही गर्भगृह तक आयोजित की जाएगी। मंदिर को झूलनोत्सव के दो पत्र मिले, दोनों का दावा श्री काशी विश्वनाथ धाम के पुनर्निर्माण के समय मंदिर क्षेत्र से अन्यत्र जाते समय दो परिवारों द्वारा कथित तौर पर अपने साथ चल प्रतिमा को साथ ले जाने का दावा किया जाता है। दो तीन वर्षों तक स्वर्गीय कुलपति तिवारी के जीवनकाल में चल प्रतिमा की शोभायात्रा उनके आवास से मंदिर तक लाने पर उनके भाई लोकपति तिवारी ने आपत्ति जताई थी। इस बार मंदिर न्यास की ओर से बताया गया कि मंदिर में पंचबदन चल प्रतिमा लाने के लिए मंदिर प्रशासन को दो पक्षों द्वारा अलग-अलग पत्र मिले। मंदिर न्यास के संज्ञान में आया कि वाचस्पति तिवारी और लोकपति तिवारी परिवार की दो शाखाओं का असली मूर्ति व श्रृंगार परंपरा के निर्वहन के संबंध में आपसी में विवाद है। दोनों की ओर से मूल प्रतिमा के कब्जे और परम्परा के असली दावेदार होने के दावे किये गये हैं, दोनों पक्षकार बनकर कोर्ट केस भी लड़ रहे हैं। कुलपति तिवारी के निधन के उपरांत उनके पुत्र वाचस्पति तिवारी इसे वशांनुगत निजी परम्परा घोषित करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकी उनके चाचा लोकपति तिवारी बड़ी पीढ़ी का अधिकार होने का दावा कर रहे हैं। पारिवारिक विरोध बताकर मंदिर ने बदली परंपरा मंदिर न्यास की ओर से बताया गया कि दो परिवारों के परस्पर विरोधी दावों पर मंदिर प्रशासन ने विधिक स्थिति का आकलन किया गया। इसके बाद निर्णय लिया गया है कि इस प्रकार की कोई शोभायात्रा मंदिर न्यास के प्रबंधन से बाहर की प्रतिमा से व बाहर के स्थान से नहीं की जाएगी। तर्क दिया गया कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास किसी पारिवारिक विवाद से दूर रहना चाहता है, दोनों पक्षों में विरोधाभास होने से पर्व के सकुशल निर्वहन में बाधा उत्पन्न होती है तथा इससे मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को भी असुविधा होती है। साथ ही मंदिर का नाम कोर्ट कचहरी में घसीटने की संभावना बनती है। घर की मूर्ति को पूजा की बताना भ्रामक होगा न्यास की ओर से बताया गया कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा शोभायात्रा के नाम पर किसी बाहरी पक्ष द्वारा अपनी मूर्ति से कोई समानान्तर व्यवस्था करने का कोई भी प्रयास मंदिर की निर्धारित व्यवस्था के विरुद्ध होगा। यदि कोई व्यक्ति अपने घर की किसी मूर्ति या उसकी पूजा को मंदिर से संबंधित बताता है तो यह पूरी तरह से भ्रामक होगा। मंदिर न्यास का बाहरी मूर्तियों या किसी के घर व परिवार द्वारा की जा रही उनकी पूजा से कोई सरोकार नहीं है। बाबा विश्वनाथ के झूलनोत्सव की परंपरा का निर्वहन विधिविधान से किया जाएगा। भविष्य में भी ऐसे सभी चल प्रतिमा संबंधी त्योहार मंदिर न्यास द्वारा स्वयं की मूर्तियों से पूरे होंगे। 2022 में चंद्रयान थीम पर हुआ था झूलनोत्सव विगत वर्ष काशी में चंद्रयान-3 की थीम पर बाबा विश्वनाथ का झूलनोत्सव का आयोजन हुआ था। 358 साल पुरानी परंपरा के तहत बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ की रजत प्रतिमा को झूला झुलाया गया था। प्रतिमा को ज्योर्लिंग के ऊपर झूले में रखा गया है। नजारा ऐसा था कि पुजारी और श्रद्धालु बाबा को झूला झुला रहे हैं। करीब डेढ़ लाख से ज्यादा भक्त बाबा के दर्शन के लिए पहुंचे हैं, रात में शयन आरती की गई थी। इससे पहले आधा किमी टेढ़ी नीम से काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह तक बाबा विश्वनाथ, माता गौरा और बाल गणेश की भव्य पालिका यात्रा निकाली गई थी। इसमें शहनाई और शंख वादन करते हुए हजारों की संख्या में भक्त शामिल हुए थे। हर-हर महादेव और जय शिव शंभु के उद्घोष के बीच बाबा की प्रतिमा को गर्भ गृह में विराजमान किया गया था। आपके साथ साझा करते हैं 2022 के झूलनोत्सव वो तस्वीरें जो शायद अब फिर देखने को नहीं मिलेंगी उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
Related Posts
उद्धव ठाकरे या कांग्रेस, महाराष्ट्र में ज्यादा सीटों पर कौन लड़ेगा चुनाव? जानें MVA का फॉर्मूला
उद्धव ठाकरे या कांग्रेस, महाराष्ट्र में ज्यादा सीटों पर कौन लड़ेगा चुनाव? जानें MVA का फॉर्मूला <p style=”text-align: justify;”>महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी में सीटों का फॉर्मूला लगभग तय हो गया है. बस ऐलान होना बाकी रह गया है. एबीपी न्यूज़ को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, संभावित फॉर्मूले के तहत कांग्रेस 103 से 108 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. वहीं उद्धव ठाकरे की पार्टी को 90-95 सीटें मिल सकती हैं. शरद पवार के खाते में 80-85 सीटें तो अन्य को तीन से छह सीटें मिल सकती हैं. महाराष्ट्र में विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मुंबई में उद्धव ठाकरे को ज्यादा सीटें</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>वहीं, मुंबई में सबसे ज्यादा सीटों पर उद्धव ठाकरे की पार्टी विधानसभा चुनाव लड़ सकती है. सूत्रों के मुताबिक, 18 सीटों पर शिवसेना (यूबीटी) अपने उम्मीदवार देगी. कांग्रेस को मुंबई में 14 सीट सीटें मिलेंगी. शरद पवार को दो, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी को मुंबई में एक-एक सीट मिलेगी.</p>
<p style=”text-align: justify;”>बीते दिनों में सीट शेयरिंग को लेकर एमवीए के भीतर कांग्रेस और उद्धव ठाकरे गुट के बीच माहौल गरमा गया था. शिवसेना अपनी मांग पर अड़ गई थी लेकिन अब बातचीत एक नतीजे तक पहुंचती मालूम पड़ रही है. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>लोकसभा चुनाव के नतीजे</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>लोकसभा चुनाव में एमवीए में उद्धव ठाकरे ने सबसे ज्यादा 21 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन अब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ज्यादा सीटें लेने में कामयाब होती दिख रही है. लेकिन लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें जीतने में कांग्रेस कामयाब रही. कांग्रेस ने महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 13 सीटों पर जीत हासिल की. उद्धव ठाकरे को 9 सीटों पर जीत मिली. शरद पवार के खाते में आठ सीटें गईं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>महायुति के आंकड़ों के देखें तो बीजेपी नौ, शिवसेना सात और एनसीपी को एक सीट मिली. एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी. इस तरह से <a title=”लोकसभा चुनाव” href=”https://www.abplive.com/topic/lok-sabha-election-2024″ data-type=”interlinkingkeywords”>लोकसभा चुनाव</a> में महाविकास अघाड़ी को 30 तो महायुति को 17 सीटों पर जीत मिली. वोट शेयर के लिहाज से दोनों गठबंधन में एक फीसदी का अंतर रहा. महायुति को 43 फीसदी तो महाविकास अघाड़ी को 44 फीसदी वोट शेयर मिले.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a title=”BJP सांसद नारायण राणे के बेटे निलेश राणे शिवसेना में होंगे शामिल, जानें आखिर क्या है वजह?” href=”https://www.abplive.com/states/maharashtra/maharashtra-assembly-election-2024-nilesh-rane-son-of-bjp-mp-narayan-rane-will-join-eknath-shinde-led-shiv-sena-2808736″ target=”_blank” rel=”noopener”>BJP सांसद नारायण राणे के बेटे निलेश राणे शिवसेना में होंगे शामिल, जानें आखिर क्या है वजह?</a></strong></p>
शिमला की ऊंची पहाड़ी पर रहती हैं मां तारा, क्या है मान्यताएं?
शिमला की ऊंची पहाड़ी पर रहती हैं मां तारा, क्या है मान्यताएं? <p style=”text-align: justify;”><strong>Tara Devi Temple Shimla:</strong> शारदीय नवरात्रि के मौके पर देश भर के मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ है. देवभूमि हिमाचल के मंदिरों में भी भक्तों का तांता लगा हुआ है. आज नवमी के मौके पर भक्त विशेष तौर पर मां के दर्शन के लिए दूर-दूर से पहुंच रहे हैं. शिमला के मंदिरों में भी मां के भक्तों की भारी भीड़ है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>शिमला की ऊंची पहाड़ी पर ‘स्वर्ग की देवी’ मां तारा का वास है. यह मंदिर समुद्र तल से 1 हजार 851 मीटर की ऊंचाई पर बना है. शिमला के शोघी इलाके की ऊंची पहाड़ी पर मां तारा विराजमान हैं. अपनी दिव्य सुंदरता और आध्यात्मिक शांति के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर हिमाचल के लोगों के लिए आस्था का भी केंद्र है. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>शिमला से लगभग 18 किलोमीटर की है दूरी </strong><br />तारादेवी मंदिर शिमला से करीब 18 किलोमीटर की दूरी पर है. श्रद्धालुओं के लिए मंदिर तक पहुंचने के लिए बेहतरीन सड़क सुविधा है, लेकिन कुछ लोग यहां वादियों की सुंदरता लेने के लिए मंदिर ट्रैकिंग कर के भी पहुंचते हैं. यहां सड़क को चौड़ा करने का काम भी पूरा हो चुका है. तारादेवी मंदिर तक पहुंचने के लिए शिमला के पुराना बस स्टैंड से सीधी बस सुविधा है. इसके अलावा यहां वक्त अपनी निजी गाड़ी या टैक्सी से भी पहुंच सकते हैं. तारादेवी मंदिर तक पहुंचने के लिए रास्ता नेशनल हाईवे पर शोघी के नजदीक से जाता है. मंदिर के नजदीक ही पार्किंग की बेहतरीन सुविधा है. शिमला का तारादेवी मंदिर न सिर्फ स्थानीय लोगों के लिए बल्कि अन्य राज्यों से आने वाले भक्तों के लिए भी आस्था का केंद्र है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>पश्चिम बंगाल से मां तारा को लाया गया हिमाचल</strong> <br />तारादेवी मंदिर का इतिहास आज से करीब 250 साल पुराना है. कहा जाता है कि एक बार बंगाल के सेन राजवंश के राजा शिमला आए थे. एक दिन घने जंगलों के बीच शिकार खेलने से पैदा हुई थकान के बाद राजा भूपेन्द्र सेन को नींद आ गई. सपने में राजा ने मां तारा के साथ उनके द्वारपाल श्री भैरव और भगवान हनुमान को आम और आर्थिक रूप से अक्षम आबादी के सामने उनका अनावरण करने का अनुरोध करते देखा. सपने से प्रेरित होकर राजा भूपेंद्र सेन ने 50 बीघा जमीन दान कर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>बलवीर सेन ने करवाया था मंदिर का पुनर्निर्माण</strong><br />मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद मां तारा की मूर्ति को वैष्णव परंपरा के अनुसार स्थापित किया गया था. यह मूर्ति लकड़ी से तैयार की गई थी. कुछ समय बाद राजा भूपेंद्र सेन के वंशज बलवीर सेन को भी सपने में तारा माता के दर्शन हुए. इसके बाद बलवीर सिंह ने मंदिर में अष्टधातु से बनी मां तारा देवी की मूर्ति स्थापित करवाई और मंदिर का पूर्ण रूप से निर्माण करवाया. माना जाता है कि माता तारा, दुर्गा मां की नौवीं बहन हैं. तारा, एकजुट और नील सरस्वती माता तारा के तीन स्वरूप हैं. बृहन्नील ग्रंथ में माता तारा के तीन स्वरूपों के बारे में बताया गया है. सबको तारने वाली मां तारा की पूजा हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों में की जाती है. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>शिव कुटिया करवाती है कैलाश का आभास</strong><br />तारादेवी मंदिर से कुछ ही दूरी पर शिव कुटिया बनी हुई है. घने जंगल में स्थित भगवान शिव का यह छोटा-सा मंदिर है. यह मंदिर भगवान शिव के कैलाश में होने का आभास कराता है. जंगल के अन्य हिस्सों की तुलना में इस मंदिर का तापमान कुछ कम है. कई साल पहले तक यहां एक संत ध्यान लगाया करते थे. ठंड में भी वह संत केवल एक लंगोट में ही यहां तपस्या किया करते थे.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>भक्तों को धुने की राख का प्रसाद</strong><br />बताया जाता है कि तपस्या कर रहे वे संत दक्षिण भारत से संबंध रखते थे और मर्चेंट नेवी में एक इंजीनियर थे. मंदिर के साथ एक छोटे से कमरे में लकड़ी का बड़ा टुकड़ा लगातार जलता रहता है. इसे बाबा का धूना भी कहा जाता है. मान्यता है कि बाबा आज भी यहां ध्यान में बैठे हैं. मंदिर में धुने की राख को उनके अनुयायियों के लिए प्रसाद माना जाता है. यह भी भक्तों के लिए आस्था के साथ आकर्षण का केंद्र है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें: <a title=”हिमाचल की इस जगह पर नहीं जलता रावण का पुतला, कोशिश भी रही नाकाम, जानें क्या है मान्यता?” href=”https://www.abplive.com/states/himachal-pradesh/dussehra-2024-why-are-ravana-effigies-not-burnt-in-himachal-baijnath-know-reason-ann-2801381″ target=”_self”>हिमाचल की इस जगह पर नहीं जलता रावण का पुतला, कोशिश भी रही नाकाम, जानें क्या है मान्यता?</a></strong></p>
विधानसभा चुनाव से पहले BJP का आदमपुर पर दांव:3 साल बाद नगर पालिका दर्जा खत्म होगा, कुलदीप बिश्नोई ने जताया आभार
विधानसभा चुनाव से पहले BJP का आदमपुर पर दांव:3 साल बाद नगर पालिका दर्जा खत्म होगा, कुलदीप बिश्नोई ने जताया आभार हिसार की आदमपुर नगर पालिका का दर्जा जल्द ही खत्म हो जाएगा। सरकार से इसकी मंजूरी मिलने के बाद फाइल हिसार डीसी ऑफिस पहुंच गई है। कभी भी इसकी घोषणा हो सकती है। आदमपुर को भाजपा सरकार ने 29 जून 2021 को नगर पालिका का दर्जा दिया था। इसके बाद से ही लोगों ने विरोध शुरू कर दिया। करीब 40 दिन तक लगातार धरना-प्रदर्शन चला था। इसके बाद कुलदीप बिश्नोई ने धरने पर पहुंचकर आश्वासन दिया था कि वह सरकार से मिलकर नगर पालिका का दर्जा खत्म करवाएंगे। कुलदीप बिश्नोई ने तब के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मुलाकात की थी। मनोहर लाल ने आश्वासन दिया था कि नगर पालिका का दर्जा हटाएंगे। करीब 2 साल पहले सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर कहा था कि आदमपुर गांव को नगर पालिका से हटाया जाएगा। इसके बाद कुलदीप बिश्नोई ने विधायक बेटे भव्य बिश्नोई के साथ जाकर 6 जून को मुख्यमंत्री नायब सैनी से मुलाकात की थी और इस मामले को जल्द हल करने को कहा था। इसके बाद सरकार ने कार्रवाई करते हुए फाइल आगे बढ़ा दी। अब फाइल मंजूर होकर डीसी ऑफिस तक पहुंच गई है। पहले नगर पालिका का दर्जा देने को चली थी मुहिम बता दें कि इससे पहले मंडी आदमपुर को नगर पालिका बनाने के लिए जन सेवा समिति ने मुहिम शुरू की थी। बाद में जन सेवा समिति के सदस्यों ने आदमपुर की करीब 16 सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं को अपने साथ लिया और उनसे इस बारे में चर्चा की। संस्थाओं द्वारा सहमति जताने के साथ ही अपने-अपने लेटर हेड पर प्रस्ताव लिखित में दिए गए थे। संस्थाओं से प्रस्ताव मिलने के बाद समिति द्वारा सामूहिक बैठक बुलाई गई थी। आदमपुर को नगरपालिका बनाने के लिए तब जजपा के नेता रहे रमेश गोदारा ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला से मुलाकात की थी। इसके बाद आदमपुर को नगर पालिका का दर्जा मिला था। इसके बाद नगर पालिका का दर्जा हटवाने को चला धरना आदमपुर ग्राम पंचायत को नगरपालिका से बाहर कर पुनः ग्राम पंचायत का दर्जा देने की मांग पर 40 दिनों तक धरना चला। इसके बाद ग्रामीणों के साथ वीडियो काल कर आदमपुर से विधायक कुलदीप बिश्नोई ने दावा किया कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने उनकी मांग को मानते हुए आदमपुर गांव को पुन: ग्राम पंचायत का दर्जा देने की स्वीकृति दे दी है। कुलदीप बिश्नोई की ओर से कहा गया था कि वे इस मामले को लेकर गुरुग्राम में मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मिलकर विस्तृत सकारात्मक चर्चा कर चुके हैं। आदमपुर ग्राम पंचायत बहाली को लेकर मुख्यमंत्री ने उनके सामने अधिकारियों को निर्देश दिए। पूर्व CM के इलाका उपमंडल बनने को तरसा आदमपुर को उपमंडल बनाने के मामले में पहले की सरकारें राजनीति करती रही हैं। 1991 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रहे चौ. भजनलाल ने आदमपुर को उपमंडल का दर्जा दे दिया था। वर्ष 1996 में बनी हविपा-भाजपा गठबंधन की सरकार के मुख्यमंत्री बंसीलाल ने तोशाम सहित आदमपुर का उपमंडल का दर्जा वापस ले लिया। इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुए और आदमपुर के साथ-साथ तोशाम को भी फिर से उपमंडल का दर्जा दे दिया। साथ ही इसे विधानसभा में पारित भी करवा दिया था। फिर कांग्रेस की सरकार बनने के बाद फाइलें धूल फांकती रही और अब तक आदमपुर को उप मंडल का दर्जा नहीं मिल सका है। नगर पालिका का दर्जा का इसलिए हुआ था विरोध लोगों का आरोप था कि नगरपालिका बनने के बाद विकास का कोई कार्य आरंभ नहीं हुआ, जबकि जनता के ऊपर टैक्स थोपे जाने लगे। निकायों के टैक्स लोगों से लिए जाने लगे। इसके कारण लोग परेशान हो गए। निर्माण करा रहे लोगों को नोटिस दिए जाने लगे। आदमपुर गांव के पूर्व सरपंच कृष्ण सेठी ने बताया कि नगरपालिका का कोई फायदा नहीं है, बल्कि नुकसान ही नुकसान है। नगरपालिका बनने के बाद से मनरेगा स्कीम बंद हो गई है। चुनावों में उठाना पड़ा नुकसान, भजनलाल के गढ़ में हारी भाजपा भजनलाल परिवार का अभेद दुर्ग कहे जाने वाले आदमपुर में भाजपा को लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। आदमपुर विधानसभा पर 56 साल से बिश्नोई परिवार का कब्जा है। इस सीट पर पहली बार भजनलाल 1968 में विधायक बने थे तब से लेकर जितने भी चुनाव हुए सभी में भजनलाल परिवार ही आदमपुर से जीतता आ रहा है। मगर इस बार भजनलाल के किले में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। स्व. भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई भाजपा में हैं और उनके बेटे भव्य बिश्नोई आदमपुर में 2022 में भाजपा की टिकट पर विधायक चुने गए थे। मगर इस बार कुलदीप बिश्नोई भाजपा की नैया आदमपुर में पार नहीं लगा सके। भाजपा के हिसार से लोकसभा रणजीत चौटाला को आदमपुर में 53156 वोट मिले जबकि कांग्रेस के जयप्रकाश जेपी को 59544 वोट मिले। जयप्रकाश जेपी 6384 वोट से आदमपुर से चुनाव जीत गए। कुलदीप ने बार-बार जनता के सामने जोड़े थे हाथ कुलदीप बिश्नोई इस बात को जानते थे कि आदमपुर में अगर वह हार गए तो इसका खामियाजा उनके राजनीतिक जीवन पर पड़ेगा। इस स्थिति को भांपते हुए वह बार-बार जनता के बीच गए और अपने पिता चौधरी भजनलाल से जुड़ाव को याद दिलाकर वोट मांगे। वह बार-बार जनता के बीच जाकर हाथ जोड़ते हुए नजर आए और कहते रहे कि लाज रख लेना कहीं गलत कदम मल उठा लेना। मगर लोगों ने कुलदीप बिश्नोई की अपील को अनसुना कर दिया। आदमपुर में कांग्रेस को बढ़त मिली और सबसे खास बात है कि बिश्नोईयों के गांव में जयप्रकाश जेपी आगे रहे। इसका कारण कुलदीप बिश्नोई से लोगों की नाराजगी को कारण माना जा रहा है। बिश्नोई परिवार का आदमपुर में घटा जनाधार आदमपुर में बिश्नोई परिवार का जनाधार लगातार कम हो रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भजनलाल के पौते भव्य बिश्नोई हिसार से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे तब भाजपा के बृजेंद्र सिंह ने भव्य को आदमपुर में हराया था। अब लोकसभा चुनाव में यह दूसरा मौका है जब बिश्नोई परिवार आदमपुर में हार गया हो। वहीं दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव में भाजपा की ही टिकट पर भव्य आदमपुर से चुनाव लड़े और चुनाव जीते। मगर चुनाव जीत का मार्जिन कम हो गया। भव्य 15,714 वोटों से ही चुनाव जीत पाए। बिश्नोई परिवार का आदमपुर ही नहीं आसपास की सीटों भी प्रभाव था जो कहीं देखने को नहीं मिला।