प्रयागराज के मदरसा जामिया हबीबिया मस्जिद-ए-आजम में जाली करेंसी छापने का मामला देश की इकोनॉमी पर चोट पहुंचाने से जुड़ा है। यही वजह है कि IB, स्टेट इंटेलिजेंस समेत खुफिया एजेंसियां विदेशी कनेक्शन की भी जांच कर रही हैं। इनपुट मिले हैं कि गैंग की प्लानिंग हर महीने 20 लाख रुपए के जाली नोट खपाने की थी। साजिश ऐसी कि महाकुंभ के जरिए ये लोग पूरे देश में नकली नोट पहुंचा देते। पहले 100-100 रुपए के नकली नोट छापने वाले शातिर 4 किरदार के बारे में बताते हैं… ओडिशा से प्रिंटिंग सीखी, पुलिस से कहा- वीडियो देखकर नकली नोट छापा
गैंग में मो. जाहिर खान का किरदार सबसे अहम था। 100 के नकली नोट को हूबहू प्रिंट करने का कारीगर जाहिर खान है। वह सिर्फ 23 साल का है। उसके पिता साजिद खान ओडिशा के रहने वाले हैं। प्रिंटिंग की बारीकियों को जाहिर ने ओडिशा में ही सीखा था। वही तय करता था कि कागज कौन-सा इस्तेमाल होगा। वह खुद दिल्ली जाता था। बताते हैं कि चावड़ी बाजार से जाहिर खान पेपर शीट लाता था। जिन पेपर शीट पर नोटों को छापा जाता है, वह अलग किस्म के होते हैं। ऐसी शीट प्रयागराज में नहीं मिल रही थी, फंसने का भी डर था, इसलिए दिल्ली में सेटिंग बनाई गई। यह पेपर बहुत ही पतला, कम वजन का होता है। जाहिर मशीन और स्कैनर में स्याही मिलाने और उसका कलर सेट करता था। जाहिर ने पुलिस को गुमराह करने के लिए बयान दिया था कि उसने सोशल मीडिया पर वीडियो देखकर जाली नोट बनाना सीखा था। 45 दिन की ट्रेनिंग के बाद तैयार हुई ग्रीन रिबन
मौलवी मोहम्मद तफसीरुल आरीफीन मदरसे के ऊपर ही बने प्रिंसिपल हाउस में रहता था। मदरसे में कमरा जाली करेंसी छापने के लिए तफसीरुल ने ही मुहैया कराया था। मौलवी ने 45 दिन तक दिल्ली की एक प्रिंटिंग प्रेस से ट्रेनिंग ली कि नोट की ग्रीन रिबन लाइन को कैसे डेवलप करना है। मौलवी एक खास किस्म के टेप की मदद से ग्रीन रिबन बनाता था। यह लोग मटेरियल दिल्ली से लाए थे। जब पुलिस ने मौलवी को पकड़ा, तब ग्रीन रिबन बनवाकर देखा था। इस गैंग में ग्रीन रिबन सिर्फ मौलवी बना पाता था। अगर जाहिर चाहता भी तो वह जाली नोट नहीं छाप सकता था। नोट के बीच पड़ने वाले पतले तार को ग्रीन रिबन कहा जाता है। नोट को खपाने का काम भी मौलवी कर रहा था। चूंकि वह मदरसे का प्रिंसिपल था, ऐसे में 6 राज्यों के जो बच्चे मदरसे में पढ़ते हैं, वह उसकी बात मानते थे। जाली नोट देकर बच्चों से सामान मंगवाता था। 8वीं पास साहिद नोट खपाने के लिए एजेंट बनाता
मोहम्मद साहिद इसी मदरसे में पढ़ाई करने के लिए आया। वह मौलवी की डिग्री लेना चाहता था। 8वीं तक पढ़ा है। वह करेली इलाके के करामत की चौकी इलाके में रहता है। उसके पिता अब्दुल गफ्फार हैं। मो. साहिद काफी शातिर है। वह थोड़े समय में मौलवी का सबसे करीबी बन गया। मदरसे के कमरे में जब नोट छापे जाते थे, तब वह मौजूद रहता था। कई-कई घंटे तक मदरसे के कमरे से गैंग के लोग बाहर नहीं आते थे। ऐसे में नाश्ता, खाना, चाय और अन्य जरूरतों को वही पूरा करता था। वह जब बाहर जाता था, तब मदरसे के कमरे का ताला बाहर से बंद कर देता था। साथ ही, उस पर नोट खपाने की जिम्मेदारी थी। शहर में नोट चलाने के साथ अपने दोस्तों के जरिए नोट बाजार में पहुंचाता था। इसे एजेंट तैयार करने की जिम्मेदारी भी दी गई थी। उसने करेली के कई लड़कों को तैयार कर लिया था कि 15 हजार रुपए में 45 हजार मिलेंगे। फिर जैसे चाहो, बाजार में इन नोट को चला लो। अफजल जाता था बाजार, नोट चलने पर फोन करके मौलवी को बताता
मोहम्मद अफजल करेली के अंधीपुर रोड गौसनगर का रहने वाला है। उसने हाईस्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ दी। साहिद ने उसको नकली नोट के धंधे में उतार दिया। कुछ दिनों में उसने नई बाइक और मोबाइल खरीद लिया। अफजल नोट छपाई से लेकर उसे खपाने तक की भूमिका निभा रहा था। नोट छापने के दौरान पेपर कटिंग, पंखा धीमा-तेज करना, रिबन टेप पकड़ना, नोट छपाई के बाद रद्दी को बाहर जाकर जला देना, यही सब काम वह संभालता था। एक खेप छप जाने के बाद अफजल और साहिल ट्रायल के लिए पहले खुद बाजार जाकर उस नोट को चलाते थे। नोट तुरंत ले लिया जाता तो फोन करके मौलवी को बताते थे। लाखों के नोट छापने थे, इसलिए रॉ मटेरियल का दिया था एडवांस ऑर्डर
अब सवाल उठता है कि 20 लाख रुपए यह लोग मिलकर छापते कैसे? जवाब पुलिस से मिला। उन्होंने बताया- छापे के वक्त कमरे से 1.30 लाख रुपए के जाली नोट थे। 2 स्कैनर और एक बड़ी प्रिंटिंग मशीन थी। रॉ स्टॉक में करीब 32 सौ शीट थी। 24 ग्रीन रिबन के पैकेट थे। जाहिर ने बताया था कि 20 लाख रुपए के जाली नोट छापने के लिए रॉ मटेरियल का एडवांस ऑर्डर वो दे चुका था। गैंग ने नकली नोट बाजार में उतारने के टारगेट सेट कर लिए थे। ऐसा इसलिए भी था, क्योंकि पिछले 3 महीने में इन लोगों ने मिलकर करीब 5 से 6 लाख के जाली नोट बाजार में खपा दिए। पकड़े नहीं जाने के बाद वह ज्यादा नोट छापने लगे थे। पूछताछ में वह बता चुके हैं कि महाकुंभ पर 2.5 करोड़ रुपए खपाने की योजना थी। मगर, उससे पहले पकड़े गए। 6 राज्यों के 70 बच्चे मदरसा के छात्र
जिस मदरसे में नकली नोट छापे जा रहे थे, वह शहर के अतरसुइया थाने से सिर्फ 1 किलोमीटर दूर है। यह शहर का पाश इलाका है। मदरसे में करीब 70 बच्चे पढ़ाई करते हैं। यहां बच्चों के रहने और खाने पीने का भी इंतजाम है। बच्चों के रहने के लिए कमरे हैं। इस मदरसे में यूपी के अलावा बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल तक के बच्चे शिक्षा लेने आते हैं। मदरसे में नोट छापने की अब तक की कहानी पढ़िए… परिवार के सदस्यों का विदेशों से लिंक तलाश रही एजेंसी
प्रयागराज के मदरसा जामिया हबीबिया मस्जिदे आजम में 100-100 की नकली नोटों के छापे जाने के मामले में पुलिस अब आरोपियों के परिवार वालों की कुंडली खंगाल रही है। साथ ही मदरसा और आरोपियों के परिवार का विदेशों से लिंक तलाशा जा रहा है। उनके बैंक अकाउंट भी जांचे जा रहे हैं। पुलिस ने मदरसे के मैनेजर शाहिद से भी लंबी पूछताछ की है। हालांकि पूछताछ के बाद से मैनेजर मदरसा नहीं पहुंचा है। इसके साथ ही पुलिस मौलवी मोहम्मद तफसीरुल के परिवार के एक-एक सदस्य की जानकारी जुटा रही है। तफसीरुल के पकड़े जाने के बाद से उसके परिवार के कई सदस्य घर से गायब हैं। पुलिस सभी का सोशल मीडिया अकाउंट भी खंगाल रही है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, ताकि पता चल सके कि कहीं यह लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए किसी विदेशी संगठन से तो नहीं जुड़े थे। सोशल मीडिया पर यह लोग किससे, कब से जुड़े थे? इसकी जांच साइबर सेल को दी गई है। छापे में प्रिंटर से नोट छापते हुए लोग मिले
DCP सिटी दीपक भूकर ने बुधवार को मदरसा जामिया हबीबिया मस्जिद-ए-आजम पर छापा मारा था। इस दौरान वहां प्रिंटिंग मशीन से 100-100 रुपए के जाली नोट छापते हुए तीन लोग मिले। उनके पास से 1.30 लाख रुपए के नोट मिले। इसके बाद प्रिंसिपल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। चारों आरोपियों में एक ओडिशा का रहने वाला जाहिर खान (23) है। पुलिस जांच में पता चला कि मदरसे का मौलवी मोहम्मद तफसीरूल (25) गैंग का मास्टरमाइंड है। उसी ने जाहिर और उसके साथियों को मदरसे में रुकने के लिए कमरा दिया था। मो. अफजल (18) और मोहम्मद शाहिद (18) दोनों मार्केट में नोट खपाने का काम करते थे। ये दोनों नोटों की कटिंग और साफ-सफाई का काम भी करते थे। मोबाइल में मिली महाकुंभ की खबरें
अब तक जांच में सामने आया है कि आरोपी जनवरी 2025 में लगने वाले महाकुंभ में नोट खपाने की तैयारी में थे। शातिर, अखबार-टीवी के अलावा इंटरनेट पर महाकुंभ से जुड़ी खबरें देखते थे। पुलिस सूत्रों का कहना है कि इनके मोबाइल के वेब सर्च में महाकुंभ से जुड़ी हिस्ट्री भी मिली है। आरोपियों को पता था कि महाकुंभ में 40 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु आएंगे। ऐसे में जाली करेंसी खपाना आसान होगा। डेढ़ महीने के मेले में ही वह कई करोड़ रुपए कमाने की फिराक में थे। ये लोग अभी से बड़े पैमाने में नोट छापने वाले पेपर यानी शीट का इंतजाम करने में जुटे थे। तफसीरुल के पिता इसी मदरसे में मौलवी थे
मौलवी की पढ़ाई से प्रिंसिपल तक का सफर तय करने वाले मोहम्मद तफसीरुल आरीफीन के पिता भी इसी मदरसे के प्रिंसिपल रहे हैं। उनकी मौत के बाद कुर्सी इसे मिल गई, तो तफसीरुल गलत धंधे में उतर आया। मदरसे की 7 साल पहले तक साख बहुत ही अच्छी थी। तब यह मदरसा मौलाना हबीबुर्रहमान की देखरेख में चलता था। 8 साल पहले उन्होंने शासन को लिखकर दे दिया था कि वह इस मदरसे को नहीं देख सकते। मान्यता प्राप्त इस मदरसे को पहले सरकारी खर्च मिलता था। 7 साल पहले ग्रांट मिलनी बंद हो गई थी। किन-किन राज्यों में भिजवाए गए नोट? जांचा जा रहा इंटरनेशल कनेक्शन
IB और LIU की टीम मामले में गहनता से जांच कर रही है। मौलवी के एक साल की कॉल डिटेल खंगाली जा रही है। इसके अलावा, ये नोट कब से छापे जा रहे थे? क्या प्रयागराज के बाहर इनकी डिलीवरी की गई? मौलवी और उड़ीसा के शातिर का क्या विदेशी गैंग से कनेक्शन है? इस एंगल पर जांच हो रही है। हालांकि, DCP सिटी दीपक भूकर ने बताया- आरोपी 6 माह से प्रयागराज में नोट छापने का काम कर रहे थे। 1.30 लाख की नकली नोट मिले हैं। मौके से जो शीट बरामद की गई है, उससे चार लाख की और जाली करेंसी छापी जा सकती है। ये भी पढ़ें: ED के फर्जी अफसरों ने कारोबारी के घर मारा छापा:मथुरा में सर्च वारंट दिखाया, कॉलर और बाल पकड़कर खींचा, कहा- तस्करी करते हो यूपी के मथुरा में प्रवर्तन निदेशालय यानी ED की एक फर्जी टीम शुक्रवार को सर्राफा कारोबारी के घर छापा मारने पहुंच गई। टीम में तीन पुरुष और एक महिला शामिल थी। एक व्यक्ति ने दरोगा की वर्दी पहन रखी थी। टीम की अगुआई कर रहे व्यक्ति ने पहले कारोबारी से हाथ मिलाया। फिर सर्च वारंट दिखाया और सभी अपने काम में लग गए। पढ़ें पूरी खबर… प्रयागराज के मदरसा जामिया हबीबिया मस्जिद-ए-आजम में जाली करेंसी छापने का मामला देश की इकोनॉमी पर चोट पहुंचाने से जुड़ा है। यही वजह है कि IB, स्टेट इंटेलिजेंस समेत खुफिया एजेंसियां विदेशी कनेक्शन की भी जांच कर रही हैं। इनपुट मिले हैं कि गैंग की प्लानिंग हर महीने 20 लाख रुपए के जाली नोट खपाने की थी। साजिश ऐसी कि महाकुंभ के जरिए ये लोग पूरे देश में नकली नोट पहुंचा देते। पहले 100-100 रुपए के नकली नोट छापने वाले शातिर 4 किरदार के बारे में बताते हैं… ओडिशा से प्रिंटिंग सीखी, पुलिस से कहा- वीडियो देखकर नकली नोट छापा
गैंग में मो. जाहिर खान का किरदार सबसे अहम था। 100 के नकली नोट को हूबहू प्रिंट करने का कारीगर जाहिर खान है। वह सिर्फ 23 साल का है। उसके पिता साजिद खान ओडिशा के रहने वाले हैं। प्रिंटिंग की बारीकियों को जाहिर ने ओडिशा में ही सीखा था। वही तय करता था कि कागज कौन-सा इस्तेमाल होगा। वह खुद दिल्ली जाता था। बताते हैं कि चावड़ी बाजार से जाहिर खान पेपर शीट लाता था। जिन पेपर शीट पर नोटों को छापा जाता है, वह अलग किस्म के होते हैं। ऐसी शीट प्रयागराज में नहीं मिल रही थी, फंसने का भी डर था, इसलिए दिल्ली में सेटिंग बनाई गई। यह पेपर बहुत ही पतला, कम वजन का होता है। जाहिर मशीन और स्कैनर में स्याही मिलाने और उसका कलर सेट करता था। जाहिर ने पुलिस को गुमराह करने के लिए बयान दिया था कि उसने सोशल मीडिया पर वीडियो देखकर जाली नोट बनाना सीखा था। 45 दिन की ट्रेनिंग के बाद तैयार हुई ग्रीन रिबन
मौलवी मोहम्मद तफसीरुल आरीफीन मदरसे के ऊपर ही बने प्रिंसिपल हाउस में रहता था। मदरसे में कमरा जाली करेंसी छापने के लिए तफसीरुल ने ही मुहैया कराया था। मौलवी ने 45 दिन तक दिल्ली की एक प्रिंटिंग प्रेस से ट्रेनिंग ली कि नोट की ग्रीन रिबन लाइन को कैसे डेवलप करना है। मौलवी एक खास किस्म के टेप की मदद से ग्रीन रिबन बनाता था। यह लोग मटेरियल दिल्ली से लाए थे। जब पुलिस ने मौलवी को पकड़ा, तब ग्रीन रिबन बनवाकर देखा था। इस गैंग में ग्रीन रिबन सिर्फ मौलवी बना पाता था। अगर जाहिर चाहता भी तो वह जाली नोट नहीं छाप सकता था। नोट के बीच पड़ने वाले पतले तार को ग्रीन रिबन कहा जाता है। नोट को खपाने का काम भी मौलवी कर रहा था। चूंकि वह मदरसे का प्रिंसिपल था, ऐसे में 6 राज्यों के जो बच्चे मदरसे में पढ़ते हैं, वह उसकी बात मानते थे। जाली नोट देकर बच्चों से सामान मंगवाता था। 8वीं पास साहिद नोट खपाने के लिए एजेंट बनाता
मोहम्मद साहिद इसी मदरसे में पढ़ाई करने के लिए आया। वह मौलवी की डिग्री लेना चाहता था। 8वीं तक पढ़ा है। वह करेली इलाके के करामत की चौकी इलाके में रहता है। उसके पिता अब्दुल गफ्फार हैं। मो. साहिद काफी शातिर है। वह थोड़े समय में मौलवी का सबसे करीबी बन गया। मदरसे के कमरे में जब नोट छापे जाते थे, तब वह मौजूद रहता था। कई-कई घंटे तक मदरसे के कमरे से गैंग के लोग बाहर नहीं आते थे। ऐसे में नाश्ता, खाना, चाय और अन्य जरूरतों को वही पूरा करता था। वह जब बाहर जाता था, तब मदरसे के कमरे का ताला बाहर से बंद कर देता था। साथ ही, उस पर नोट खपाने की जिम्मेदारी थी। शहर में नोट चलाने के साथ अपने दोस्तों के जरिए नोट बाजार में पहुंचाता था। इसे एजेंट तैयार करने की जिम्मेदारी भी दी गई थी। उसने करेली के कई लड़कों को तैयार कर लिया था कि 15 हजार रुपए में 45 हजार मिलेंगे। फिर जैसे चाहो, बाजार में इन नोट को चला लो। अफजल जाता था बाजार, नोट चलने पर फोन करके मौलवी को बताता
मोहम्मद अफजल करेली के अंधीपुर रोड गौसनगर का रहने वाला है। उसने हाईस्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ दी। साहिद ने उसको नकली नोट के धंधे में उतार दिया। कुछ दिनों में उसने नई बाइक और मोबाइल खरीद लिया। अफजल नोट छपाई से लेकर उसे खपाने तक की भूमिका निभा रहा था। नोट छापने के दौरान पेपर कटिंग, पंखा धीमा-तेज करना, रिबन टेप पकड़ना, नोट छपाई के बाद रद्दी को बाहर जाकर जला देना, यही सब काम वह संभालता था। एक खेप छप जाने के बाद अफजल और साहिल ट्रायल के लिए पहले खुद बाजार जाकर उस नोट को चलाते थे। नोट तुरंत ले लिया जाता तो फोन करके मौलवी को बताते थे। लाखों के नोट छापने थे, इसलिए रॉ मटेरियल का दिया था एडवांस ऑर्डर
अब सवाल उठता है कि 20 लाख रुपए यह लोग मिलकर छापते कैसे? जवाब पुलिस से मिला। उन्होंने बताया- छापे के वक्त कमरे से 1.30 लाख रुपए के जाली नोट थे। 2 स्कैनर और एक बड़ी प्रिंटिंग मशीन थी। रॉ स्टॉक में करीब 32 सौ शीट थी। 24 ग्रीन रिबन के पैकेट थे। जाहिर ने बताया था कि 20 लाख रुपए के जाली नोट छापने के लिए रॉ मटेरियल का एडवांस ऑर्डर वो दे चुका था। गैंग ने नकली नोट बाजार में उतारने के टारगेट सेट कर लिए थे। ऐसा इसलिए भी था, क्योंकि पिछले 3 महीने में इन लोगों ने मिलकर करीब 5 से 6 लाख के जाली नोट बाजार में खपा दिए। पकड़े नहीं जाने के बाद वह ज्यादा नोट छापने लगे थे। पूछताछ में वह बता चुके हैं कि महाकुंभ पर 2.5 करोड़ रुपए खपाने की योजना थी। मगर, उससे पहले पकड़े गए। 6 राज्यों के 70 बच्चे मदरसा के छात्र
जिस मदरसे में नकली नोट छापे जा रहे थे, वह शहर के अतरसुइया थाने से सिर्फ 1 किलोमीटर दूर है। यह शहर का पाश इलाका है। मदरसे में करीब 70 बच्चे पढ़ाई करते हैं। यहां बच्चों के रहने और खाने पीने का भी इंतजाम है। बच्चों के रहने के लिए कमरे हैं। इस मदरसे में यूपी के अलावा बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल तक के बच्चे शिक्षा लेने आते हैं। मदरसे में नोट छापने की अब तक की कहानी पढ़िए… परिवार के सदस्यों का विदेशों से लिंक तलाश रही एजेंसी
प्रयागराज के मदरसा जामिया हबीबिया मस्जिदे आजम में 100-100 की नकली नोटों के छापे जाने के मामले में पुलिस अब आरोपियों के परिवार वालों की कुंडली खंगाल रही है। साथ ही मदरसा और आरोपियों के परिवार का विदेशों से लिंक तलाशा जा रहा है। उनके बैंक अकाउंट भी जांचे जा रहे हैं। पुलिस ने मदरसे के मैनेजर शाहिद से भी लंबी पूछताछ की है। हालांकि पूछताछ के बाद से मैनेजर मदरसा नहीं पहुंचा है। इसके साथ ही पुलिस मौलवी मोहम्मद तफसीरुल के परिवार के एक-एक सदस्य की जानकारी जुटा रही है। तफसीरुल के पकड़े जाने के बाद से उसके परिवार के कई सदस्य घर से गायब हैं। पुलिस सभी का सोशल मीडिया अकाउंट भी खंगाल रही है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, ताकि पता चल सके कि कहीं यह लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए किसी विदेशी संगठन से तो नहीं जुड़े थे। सोशल मीडिया पर यह लोग किससे, कब से जुड़े थे? इसकी जांच साइबर सेल को दी गई है। छापे में प्रिंटर से नोट छापते हुए लोग मिले
DCP सिटी दीपक भूकर ने बुधवार को मदरसा जामिया हबीबिया मस्जिद-ए-आजम पर छापा मारा था। इस दौरान वहां प्रिंटिंग मशीन से 100-100 रुपए के जाली नोट छापते हुए तीन लोग मिले। उनके पास से 1.30 लाख रुपए के नोट मिले। इसके बाद प्रिंसिपल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। चारों आरोपियों में एक ओडिशा का रहने वाला जाहिर खान (23) है। पुलिस जांच में पता चला कि मदरसे का मौलवी मोहम्मद तफसीरूल (25) गैंग का मास्टरमाइंड है। उसी ने जाहिर और उसके साथियों को मदरसे में रुकने के लिए कमरा दिया था। मो. अफजल (18) और मोहम्मद शाहिद (18) दोनों मार्केट में नोट खपाने का काम करते थे। ये दोनों नोटों की कटिंग और साफ-सफाई का काम भी करते थे। मोबाइल में मिली महाकुंभ की खबरें
अब तक जांच में सामने आया है कि आरोपी जनवरी 2025 में लगने वाले महाकुंभ में नोट खपाने की तैयारी में थे। शातिर, अखबार-टीवी के अलावा इंटरनेट पर महाकुंभ से जुड़ी खबरें देखते थे। पुलिस सूत्रों का कहना है कि इनके मोबाइल के वेब सर्च में महाकुंभ से जुड़ी हिस्ट्री भी मिली है। आरोपियों को पता था कि महाकुंभ में 40 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु आएंगे। ऐसे में जाली करेंसी खपाना आसान होगा। डेढ़ महीने के मेले में ही वह कई करोड़ रुपए कमाने की फिराक में थे। ये लोग अभी से बड़े पैमाने में नोट छापने वाले पेपर यानी शीट का इंतजाम करने में जुटे थे। तफसीरुल के पिता इसी मदरसे में मौलवी थे
मौलवी की पढ़ाई से प्रिंसिपल तक का सफर तय करने वाले मोहम्मद तफसीरुल आरीफीन के पिता भी इसी मदरसे के प्रिंसिपल रहे हैं। उनकी मौत के बाद कुर्सी इसे मिल गई, तो तफसीरुल गलत धंधे में उतर आया। मदरसे की 7 साल पहले तक साख बहुत ही अच्छी थी। तब यह मदरसा मौलाना हबीबुर्रहमान की देखरेख में चलता था। 8 साल पहले उन्होंने शासन को लिखकर दे दिया था कि वह इस मदरसे को नहीं देख सकते। मान्यता प्राप्त इस मदरसे को पहले सरकारी खर्च मिलता था। 7 साल पहले ग्रांट मिलनी बंद हो गई थी। किन-किन राज्यों में भिजवाए गए नोट? जांचा जा रहा इंटरनेशल कनेक्शन
IB और LIU की टीम मामले में गहनता से जांच कर रही है। मौलवी के एक साल की कॉल डिटेल खंगाली जा रही है। इसके अलावा, ये नोट कब से छापे जा रहे थे? क्या प्रयागराज के बाहर इनकी डिलीवरी की गई? मौलवी और उड़ीसा के शातिर का क्या विदेशी गैंग से कनेक्शन है? इस एंगल पर जांच हो रही है। हालांकि, DCP सिटी दीपक भूकर ने बताया- आरोपी 6 माह से प्रयागराज में नोट छापने का काम कर रहे थे। 1.30 लाख की नकली नोट मिले हैं। मौके से जो शीट बरामद की गई है, उससे चार लाख की और जाली करेंसी छापी जा सकती है। ये भी पढ़ें: ED के फर्जी अफसरों ने कारोबारी के घर मारा छापा:मथुरा में सर्च वारंट दिखाया, कॉलर और बाल पकड़कर खींचा, कहा- तस्करी करते हो यूपी के मथुरा में प्रवर्तन निदेशालय यानी ED की एक फर्जी टीम शुक्रवार को सर्राफा कारोबारी के घर छापा मारने पहुंच गई। टीम में तीन पुरुष और एक महिला शामिल थी। एक व्यक्ति ने दरोगा की वर्दी पहन रखी थी। टीम की अगुआई कर रहे व्यक्ति ने पहले कारोबारी से हाथ मिलाया। फिर सर्च वारंट दिखाया और सभी अपने काम में लग गए। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर