कल एक कार्यक्रम में गया था, जिसमें बुद्धिजीवी बैठकर ‘प्रतिबंधित कविताओं’ पर विचार-विमर्श कर रहे थे। आजादी से पहले जिन कविताओं को प्रतिबंधित किया गया, उन पर चर्चा हो रही थी। मैंने इस शीर्षक पर विरोध प्रकट किया। उन्हें प्रतिबंधित कविताएं नहीं कहा जाना चाहिए। वे राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत कविताएं थीं। अंग्रेज उन्हें ‘प्रतिबंधित’ कहकर पुकारते थे, लेकिन हमें उन्हें राष्ट्रीयता की कविताएं ही कहना चाहिए। कविता सत्ता के विरोध में बोले तो सत्ता उन्हें विरोध की कविता कह सकती है, लेकिन जनता के लिए तो कविता हमेशा हितैषी ही रही है। आपातकाल में भवानी प्रसाद मिश्र प्रतिदिन ‘त्रिकाल संध्या’ कर नाम से तीन कविताएं लिखते थे। ये कविताएं उस सरकार के विरुद्ध थीं। उनमें से एक कविता में तो बाकायदा ‘कौआ’ कहकर उस समय के सत्ता केंद्रों को संबोधित किया गया था। मुझे याद है, भवानी प्रसाद मिश्र को हार्ट प्रॉब्लम हुई। डॉक्टरों ने पेसमेकर लगवाने की सलाह दी। उन दिनों पेसमेकर लगवाने में काफी खर्चा आता था। कांग्रेस के बड़े नेता विद्याचरण शुक्ल ने मुझे कहा कि बेशक भवानी दादा हमारे खिलाफ कविता लिखते हैं, लेकिन हम फिर भी उनका सम्मान करते हैं। आप उनको तैयार कर लें तो सरकारी खर्च पर उन्हें पेसमेकर लगवाया जा सकता है। मैंने भवानी दादा के सामने शुक्ल जी का प्रस्ताव रखा। भवानी दादा ने हंसते हुए कहा- ‘राजा बेटा, भवानी के सीने में सरकारी दिल नहीं धड़केगा।’ इस एक प्रसंग में कवि का तेवर भी है और सत्ता की सहिष्णुता भी। चर्चा अंग्रेजों द्वारा प्रतिबंधित किए गए साहित्य पर नहीं होनी चाहिए, चर्चा इस पर हो कि आजकल ऐसा कितना ही साहित्य लगातार छप रहा है, जिसे प्रतिबंधित होना चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक हो या प्रिंट मीडिया हो, उनमें कुछ सामग्री पर रोक लगाने की आवश्यकता है। आजकल सत्ता गुणगान को साहित्य कहा जाने लगा है। आलोचना का लोग विरोध करने लगे हैं। हर पार्टी को चापलूसी और समर्थन चाहिए। आप विरोध करेंगे तो जाने कहां-कहां भुगतना पड़ेगा। नेहरू जी की एक घटना मुझे याद है। 1962 की लड़ाई में जब हम चीन से हार गए थे तो नेहरू जी ने कहा कि जो जमीन चीन ने हड़पी है, वो बंजर है। वहां घास का एक तिनका भी नहीं उग सकता। इस पर भरे सदन में महावीर त्यागी ने खड़े होकर कहा- ‘पंडित जी, सिर पर भी एक भी बाल नहीं है। तो क्या सिर भी दुश्मनों को सौंप दिया जाए?’ इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि महावीर त्यागी नेहरू के मंत्रिमंडल में मंत्री थे। और यह बात उन्होंने कैबिनेट की बैठक में नहीं, बल्कि सदन में कही थी। इसके बावजूद नेहरू जी ने महावीर त्यागी को मंत्री पद से बर्खास्त नहीं किया। पहले के राजनेता आलोचना का महत्व समझते थे। इसलिए उन्होंने अपनी ही सरकार की आलोचना करने के लिए बाकायदा लोगों को नियुक्त किया था। यह लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने का प्रयास था। आजकल आलोचना का मतलब विरोध होता है। जिसके विरोध में कुछ लिख दो, वह तो उसको प्रतिबंधित कहेगा ही, जिसके पक्ष में यह विरोध करोगे, वह भी उसे प्रतिबंधित ही कह रहा है। सुरेंद्र शर्मा का ये कॉलम भी पढ़ें… नेता अपने हादसों से फ्री हों तो कुछ सोचें भी:’हादसों से रिटायर्ड अफसरों की बेरोजगारी दूर होती है, जांच का काम मिलता है’ पूरा कॉलम पढ़ें कल एक कार्यक्रम में गया था, जिसमें बुद्धिजीवी बैठकर ‘प्रतिबंधित कविताओं’ पर विचार-विमर्श कर रहे थे। आजादी से पहले जिन कविताओं को प्रतिबंधित किया गया, उन पर चर्चा हो रही थी। मैंने इस शीर्षक पर विरोध प्रकट किया। उन्हें प्रतिबंधित कविताएं नहीं कहा जाना चाहिए। वे राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत कविताएं थीं। अंग्रेज उन्हें ‘प्रतिबंधित’ कहकर पुकारते थे, लेकिन हमें उन्हें राष्ट्रीयता की कविताएं ही कहना चाहिए। कविता सत्ता के विरोध में बोले तो सत्ता उन्हें विरोध की कविता कह सकती है, लेकिन जनता के लिए तो कविता हमेशा हितैषी ही रही है। आपातकाल में भवानी प्रसाद मिश्र प्रतिदिन ‘त्रिकाल संध्या’ कर नाम से तीन कविताएं लिखते थे। ये कविताएं उस सरकार के विरुद्ध थीं। उनमें से एक कविता में तो बाकायदा ‘कौआ’ कहकर उस समय के सत्ता केंद्रों को संबोधित किया गया था। मुझे याद है, भवानी प्रसाद मिश्र को हार्ट प्रॉब्लम हुई। डॉक्टरों ने पेसमेकर लगवाने की सलाह दी। उन दिनों पेसमेकर लगवाने में काफी खर्चा आता था। कांग्रेस के बड़े नेता विद्याचरण शुक्ल ने मुझे कहा कि बेशक भवानी दादा हमारे खिलाफ कविता लिखते हैं, लेकिन हम फिर भी उनका सम्मान करते हैं। आप उनको तैयार कर लें तो सरकारी खर्च पर उन्हें पेसमेकर लगवाया जा सकता है। मैंने भवानी दादा के सामने शुक्ल जी का प्रस्ताव रखा। भवानी दादा ने हंसते हुए कहा- ‘राजा बेटा, भवानी के सीने में सरकारी दिल नहीं धड़केगा।’ इस एक प्रसंग में कवि का तेवर भी है और सत्ता की सहिष्णुता भी। चर्चा अंग्रेजों द्वारा प्रतिबंधित किए गए साहित्य पर नहीं होनी चाहिए, चर्चा इस पर हो कि आजकल ऐसा कितना ही साहित्य लगातार छप रहा है, जिसे प्रतिबंधित होना चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक हो या प्रिंट मीडिया हो, उनमें कुछ सामग्री पर रोक लगाने की आवश्यकता है। आजकल सत्ता गुणगान को साहित्य कहा जाने लगा है। आलोचना का लोग विरोध करने लगे हैं। हर पार्टी को चापलूसी और समर्थन चाहिए। आप विरोध करेंगे तो जाने कहां-कहां भुगतना पड़ेगा। नेहरू जी की एक घटना मुझे याद है। 1962 की लड़ाई में जब हम चीन से हार गए थे तो नेहरू जी ने कहा कि जो जमीन चीन ने हड़पी है, वो बंजर है। वहां घास का एक तिनका भी नहीं उग सकता। इस पर भरे सदन में महावीर त्यागी ने खड़े होकर कहा- ‘पंडित जी, सिर पर भी एक भी बाल नहीं है। तो क्या सिर भी दुश्मनों को सौंप दिया जाए?’ इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि महावीर त्यागी नेहरू के मंत्रिमंडल में मंत्री थे। और यह बात उन्होंने कैबिनेट की बैठक में नहीं, बल्कि सदन में कही थी। इसके बावजूद नेहरू जी ने महावीर त्यागी को मंत्री पद से बर्खास्त नहीं किया। पहले के राजनेता आलोचना का महत्व समझते थे। इसलिए उन्होंने अपनी ही सरकार की आलोचना करने के लिए बाकायदा लोगों को नियुक्त किया था। यह लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने का प्रयास था। आजकल आलोचना का मतलब विरोध होता है। जिसके विरोध में कुछ लिख दो, वह तो उसको प्रतिबंधित कहेगा ही, जिसके पक्ष में यह विरोध करोगे, वह भी उसे प्रतिबंधित ही कह रहा है। सुरेंद्र शर्मा का ये कॉलम भी पढ़ें… नेता अपने हादसों से फ्री हों तो कुछ सोचें भी:’हादसों से रिटायर्ड अफसरों की बेरोजगारी दूर होती है, जांच का काम मिलता है’ पूरा कॉलम पढ़ें उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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Bihar News: बिहार में ये क्या हो रहा? समस्तीपुर में ब्रिज का स्लैब गिरने के बाद अब मुंगेर में भी ढहा पुल
Bihar News: बिहार में ये क्या हो रहा? समस्तीपुर में ब्रिज का स्लैब गिरने के बाद अब मुंगेर में भी ढहा पुल <p style=”text-align: justify;”><strong>Munger Bichali Bridge Collapsed:</strong> बिहार में पुलों के गिरने का सिलसिला रुक ही नहीं रहा. पिछले तीन महिनों में एक के बाद एक कई पुल गिर चुके हैं. रविवार की रात समस्तीपुर में पटोरी प्रखंड के बख्तियारपुर-ताजपुर निर्माणाधीन ओवर ब्रिज का स्लैब गिरने के बाद अब सोमवार (23 सितंबर) को मुंगेर के गंडक नदी पर बना बिचली पुल गिर गया है. हरिणमार पंचायत और गोगरी पंचायत को जोड़ने वाला बिचली पुल गंगा में बह गया है. मुख्य पथ पर बने इस पुल के बह जाने से हरिणमार और गोगरी का आवागमन बाधित हो गया है. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>गंगा का जलस्तर बढ़ने से गिरा पुल</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>दरअसल मुंगेर जिला में लगातार गंडक का जलस्तर बढ़ने के कारण आवागमन प्रभावित हो रहा है. वहीं गोगरी (खगड़िया) और हरिणमार (मुंगेर) पंचायत को जोड़ने वाला मुख्य पथ पर बना बीचली पुल गंडक में विलीन हो गया, जिसके कारण दोनों ओर से आवागमन बाधित हो गया. बताया जाता है की खगड़िया जिला के पथ निर्माण विभाग ने 2005 में गोगरी और हरिनमार को जोड़ने के लिए मुख्य सड़क का निर्माण कराया था. सड़क निर्माण में कई जगहों पर पुल का भी निर्माण हुआ था. </p>
<p style=”text-align: justify;”>पुल के गंडक नदी में विलीन होने के कारण मुंगेर जिला के गंडक पार बरियारपुर प्रखंड के दो पंचायत हरिनमार और झोवा बहियार पंचायत के लोग प्रभावित हुए हैं. वही इन पंचायत में जहां बाढ़ का पानी कम था वहीं अब ज्यादा बढ़ गया है. बताया जाता है कि एसडीआरएफ की टीम कल रविवार को रिलीफ बांटने के लिए हरिनमार और झोवा बहियार पंचायत पहुंची थी, वहीं बिचली पुल ध्वस्त होने के कारण वे और उनके वाहन फंसे हुए है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में घुसा बाढ़ का पानी </strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>मुंगेर जिलाधिकारी अवनीश कुमार ने कहा कि गंडक पूरा रौद्र रूप ले चुकी है. जंहा तहां ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है. वहीं बरियारपुर प्रखंड के हरिणमार और झौवा बहियार गांव में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है. जहां खगड़िया जिला के गोगड़ी और हरिणमार पंचायत को जोड़ने वाली मुख्य पथ पर बना बिचली पुल तेज पानी के बहाव से गंडक में बह गया.</p>
<p style=”text-align: justify;”>डीएम ने कहा कि पुल के गिरने के कारण कुछ परेशानी हुई है, फिलहाल उन इलाकों में एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीम को लगया गया है. ग्रामीणों को खाने पीने का सामना और दवा का वितरण किया जा रहा है. हमारे अधिकारी भी बाढ़ ग्रसित इलाकों में नजर बनाए रखे हुए है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ेंः <a href=”https://www.abplive.com/states/bihar/leader-of-opposition-tejashwi-yadav-targeted-bihar-government-after-bakhtiyarpur-tajpur-mahasetu-falls-in-samastipur-2789438″>Bihar News: ’20 वर्षों की NDA सरकार की बुनियाद ही लूट पर टिकी है’, समस्तीपुर में निर्माणाधीन पुल का स्लैब गिरने पर तेजस्वी यादव का तंज</a></strong></p>
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अबोहर में दो गुटों में खूनी संघर्ष:चारा काटने की मशीन चलाने को लेकर विवाद, चले ईंट-पत्थर, बुजुर्ग समेत दो घायल अबोहर उपमंडल के गांव कंधवाला अमरकोट में आज सुबह नोहरे में लगी चारा मशीन को लेकर हुए मामूली विवाद ने उस समय खुनी संघर्ष का रुप ले लिया, जब दो पक्षों में जमकर ईंट पत्थर चले। जिसमें एक बुजुर्ग व्यक्ति सहित दो लोग घायल हो गए। बुरी तरह से लहुलुहान हालत में दोनों को इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। अस्पताल में उपचाराधीन घायल हरचंद (60 साल) ने बताया कि उसके घर के पास उसका नोहरा है जिसें उसने पशुओं के चारे के लिए चारा काटने की मशीन लगा रखी है। लेकिन पड़ोसी वह मशीन चलाने नहीं देते और अक्सर झगड़ा करते हैं। आज भी पड़ोसियों ने उससे गाली गलौच किया। जब उसने विरोध किया तो पड़ोसी के बेटे ने उसके मुंह पर ईंट मारकर घायल कर घायल कर दिया। मशीन से होती है कंपन इसी मामले में घायल दूसरे पक्ष के हीरालाल पुत्र लाल चंद ने बताया कि उनके पड़ोसी ने उनके घर के साथ नोहरा बना रखा है जिसमें उसने चारा काटने की मशीन लगाई है। जब वह मशीन चलाता है तो उसकी आवाज से उनके घर की दीवारों में कंपन होता है। वो कई बार उसे यहां से चारा मशीन हटाने को कह चुके हैं, लेकिन उनसे नहीं हटाई। आज वह अपने पिता के साथ थाना बहाववाला में शिकायत देकर आ रहा था तो पड़ोसी हरचंद के बेटे ने उस पर किसी भारी वस्तु से हमला कर सिर फोड़ दिया। इसी मामले में दोनों घायलों को इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में दाखिल करवाया गया है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
पंजाब में पराली जलाने के 70 फीसदी केस कम हुए:कृषि मंत्री ने किया दावा; सुप्रीम कोर्ट से लगी चुकी है फटकार
पंजाब में पराली जलाने के 70 फीसदी केस कम हुए:कृषि मंत्री ने किया दावा; सुप्रीम कोर्ट से लगी चुकी है फटकार पंजाब में पराली जलाने के मामलों में 70 फीसदी की कमी आई है। यह दावा पंजाब के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां ने किया है। उनका कहना है कि 30 नवंबर खरीफ सीजन 2024 का अंतिम दिन था। इस समय में पराली जलाने के कुल 10,909 मामले सामने आए हैं। यह संख्या 2023-24 सीजन में दर्ज 36663 मामलों की तुलना में काफी कम है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने के मामले में पंजाब सरकार को फटकार लगाई थी। वहीं, पराली के धुएं का मुद्दा इस बार सरहद पार पाकिस्तान तक पहुंचा था। पंजाब पाकिस्तान की मुख्यमंत्री मरियम नवाज ने तो इस गंभीर मुद्दे पर भारत पंजाब सीएम भगवंत मान को पत्र लिखने की बात कहीं थी। इस वजह से पराली जलाने के केस हुए कम मंत्री बताया कि पराली जलाने के कमी के लिए कई कारक है। एक तो फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनरी के बढ़ते उपयोग के कारण पराली जलाने के मामलों में यह कमी आई है। किसानों को सब्सिडी पर 22582 सीआरएम मशीनों के लिए मंजूरी पत्र जारी किए गए, जिनमें से 16,125 मशीनें किसानों द्वारा खरीदी जा चुकी हैं। इसके अलावा, छोटे और सीमांत किसानों की सीआरएम मशीनों तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए 722 कस्टमर हायरिंग सेंटर (सीएचसी) स्थापित किए गए हैं। कई पंच हुए थे संस्पेंड पराली जलाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट से भी पंजाब और पड़ोसी राज्य हरियाणा को लताड़ लग चुकी है। अदालत ने कहा कि वहां पर किसानों पर केवल नाम के लिए कार्रवाई हो रही है। इसके बाद जब सुप्रीम कोर्ट सख्त हुआ था तो 950 से किसानों पर कार्रवाई हुई। उनके खिलाफ एफआईआर तक दर्ज की गई थी। कई अधिकारियों को नोटिस हुए हैं। जबकि कई पंच सस्पेंड हुए। तर्क दिया कि वह गांवों को पराली जलाने से रोकने में नाकाम रहे हैं।