बहराइच से करीब 35 किमी दूर महसी तहसील का बारह बिगहा गांव। यहां भेड़िए की दहशत से खौफजदा लोग हाथ में लाठी-डंडे लेकर खड़े होकर बातें कर रहे हैं। तभी अचानक गांव में हलचल बढ़ती है। एक के बाद एक तकरीबन 18 लग्जरी गाड़ियां गांव में पहुंचती हैं। इस काफिले में कुछ पुलिस और वन विभाग की भी गाड़ियां शामिल हैं। गाड़ियों से 12 से ज्यादा हथियारबंद लोग उतर कर खेतों की तरफ दौड़ने लगते हैं। उनके पीछे ग्रामीणों का हुजूम भी दौड़ पड़ता है। पूछने पर पता चला, ये महसी विधायक सुरेश्वर सिंह का काफिला है। वह गांव के लोगों को आदमखोर भेड़िए की दहशत से बचाने के लिए खुद कॉम्बिंग कर रहे हैं। बहराइच के 35 गांव भेड़िए के आतंक से दहशत में हैं। यहां जिन गांवों में भेड़िए ने हमला किया, वहां के लोग सजग हो गए। साथ ही जिन गांवों में हमला नहीं किया, वहां के लोग अब और ज्यादा चौकन्ने हैं। वजह यह कि आदमखोर भेड़िए हर दिन अपनी लोकेशन बदल रहे। किसी एक गांव में हमला करने के बाद दोबारा वहां नहीं जा रहे। इनका सॉफ्ट टारगेट बच्चे हैं। बच्चे नहीं मिलने पर महिलाओं पर हमला करते हैं। इन्हें पकड़ने के लिए वन विभाग के साथ तमाम विभाग और उसके बड़े अफसर लगे हैं। लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी। क्या भेड़ियों के हमले को रोका नहीं जा सकता? आखिर भेड़ियों को पकड़ने में दिक्कत कहां आ रही? हमने बहराइच में ही इन सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश की। आइए शुरुआत से जानते हैं… …इसलिए पकड़ में नहीं आ रहे भेड़िए 1- जहां शिकार किया, वहां दोबारा नहीं गए
महसी तहसील के बारह बीघा गांव में भेड़िए ने 21 अगस्त की रात को हमला किया। पहले एक बच्चे को उठाने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुआ। कुछ देर बाद गांव के एक किनारे एक महिला पर हमला किया। उसे भी ले जाने में सफल नहीं हुआ, लेकिन बुरी तरह घायल कर दिया। कुछ घंटों के बाद भेड़िया गांव के दूसरे छोर से एक बच्ची को उठा ले गया। इसके बाद उसने दोबारा इस गांव में हमला नहीं किया। इसी तरह मक्का पुरवा, नकवा, कुलैला, पूरा हिंद सिंह, बस्ती गड़रिया गांव के साथ हुआ। इन सभी गांवों में घुसकर भेड़िए ने बच्चों को अपना शिकार बनाया। इसके बाद उसने दूसरे गांव पर हमला किया। यह बात चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट अशोक प्रसाद सिन्हा भी मानते हैं। दैनिक भास्कर से बात करते हुए वह कहते हैं- अभी तक भेड़िए के हमले का जो पैटर्न रहा, उसमें यही निकलकर सामने आया कि वह लगातार गांव बदल रहा। किसी एक गांव में वह टिक नहीं रहा। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि उसके अटैक के बाद वहां के लोग ज्यादा सजग हो जाते हैं। 2- दिन में सर्च अभियान चल रहा, भेड़िए रात में हमला कर रहे
भेड़िया पकड़ में न आने की एक वजह ये भी है कि अभियान दिन में ज्यादा चलाया जा रहा। वहीं, भेड़िए रात में ज्यादा हमला कर रहे। भेड़िया हर दिन कहीं न कहीं दिखाई दे रहा। लोग मोबाइल के जरिए उसका वीडियो बनाकर वन विभाग और पुलिस प्रशासन को भेज रहे हैं। 3 अगस्त को एक भेड़िया असमानपुर में बैठा दिखाई दिया। हिंदू पुरवा गांव में 2 भेड़िए दिखाई दिए। इसका वीडियो बनाकर लोगों ने विभाग को भेजा। इसके बाद इन इलाकों में सर्च अभियान बढ़ गया। 3- ड्रोन से निगरानी, बैटरी डाउन होने से आ रही दिक्कत
वन विभाग दिन में ड्रोन के जरिए खोज रहा, लेकिन गन्ने के खेत और झाड़ियों के चलते भेड़िए पकड़ में नहीं आ रहे। बारह बीघा गांव के शिवकुमार कहते हैं- हमारे गांव में भेड़िया हर दिन दिखता है। यहां वन विभाग की टीम कई बार ड्रोन से निगरानी करने आई। कुछ देर ड्रोन उड़ाने के बाद कह देते हैं, बैटरी डाउन हो गई। अगर रात में निगरानी की जाए तो उसे देखा जा सकता है। इसके बचाव में वन विभाग के अधिकारी कहते हैं, रात में सर्च अभियान चलाना मुश्किल है। गन्ने के घने खेत भेड़ियों के छिपने की मुफीद जगह है। ज्यादा गर्मी के चलते थर्मल ड्रोन ओवरहीट होकर बंद हो जा रहे हैं। 4- वन विभाग और गांववालों में तालमेल की कमी
विधायक सुरेश्वर सिंह अपने काफिले के साथ गांव में दाखिल हुए तो लोगों ने वन विभाग के खिलाफ शिकायतों की झड़ी लगा दी। एक ग्रामीण ने बताया, शाम को भेड़िया गांव के एक खेत में देखा गया था। हमने वन विभाग को सूचना दी तो उनकी एक टीम आई। लेकिन, आते ही उन्होंने ड्रोन से सर्च करने के बजाय वहां पटाखे दगाने शुरू कर दिए। पटाखों की आवाज से सतर्क होकर भेड़िए पकड़ में आने की जगह भाग निकले। अब जानिए भेड़िए के हिंसक होने की वजह क्या? आदमखोर भेड़िए अपने ग्रुप से बाहर
भेड़िए के इतना हिंसक होने की वजह पूछने पर चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट अशोक प्रसाद सिन्हा कहते हैं- भेड़िए ग्रुप में रहते हैं। मेरा मानना है, जो भेड़िया हमला कर रहा वह अपने समाज से बहिष्कृत है। क्योंकि इसमें अल्फा मेल का डॉमिनेंस होता है। जब कोई उसे चैलेंज करता है, तो दोनों के बीच लड़ाई होती है। जो हार जाता है, उसे ग्रुप छोड़ना होता है। यहां भी ऐसा ही लगता है। क्योंकि आमतौर पर भेड़िए इंसानी बच्चों को नहीं उठाते। उत्तर से दक्षिण की तरफ मूव कर रहे भेड़िए
अशोक प्रसाद सिन्हा कहते हैं- भेड़िए उत्तर से दक्षिण की तरफ मूव कर रहे हैं। इसका मूवमेंट कुल साढ़े 7 हजार हेक्टेयर यानी 15 किलोमीटर में है। हम लोग लगातार ट्रेस कर रहे हैं। मैं यह नहीं कह सकता कि उसके इलाके को पहचान लिया है। क्योंकि, भेड़िया निशाचरी प्रकृति का जानवर है। उसका मूवमेंट कई बार 5-10 किलोमीटर एक ही रात में हो जाता है। हमारी 3 टीमें लगी हैं। हर टीम में 5-6 एक्सपर्ट हैं, सभी के पास आधुनिक हथियार हैं। जहां अटैक नहीं हुआ, वहां के लोगों को भी जागरूक किया जा रहा। वो गांव अब ज्यादा संवेदनशील हैं। वह कहते हैं- अगर हम सितंबर महीने में उसे रोकने में सफल रहते हैं तो इस बात की संभावना ज्यादा है कि वह अक्टूबर में खुद ही इलाका छोड़कर चले जाएं। भेड़िए पकड़ने के लिए अब ये तरीका अपनाया बच्चों की यूरिन से भिगोकर टेडीवियर रखे
भेड़ियों को पकड़ने के लिए वन विभाग ने छोटे बच्चों का पेशाब (यूरिन) मंगाया। यूरिन में टेडीवियर भिगोकर जगह-जगह रखा जा रहा है। ऐसा माना जाता है, पेशाब की गंध से शिकार समझकर भेड़िए यहां तक आएंगे। इसके बाद उन्हें पकड़ा जा सकता है। पेशाब से भीगे ये टेडीवियर उन गन्नों के खेतों में रखे जा रहे, जहां भेड़िए कई बार देखे गए और पड़ोस के गांव में हमला कर चुके हैं। जैसा कि अधिकारी कह रहे कि भेड़िए लगातार मूव कर रहे, एक-एक रात में वह 5-10 किलोमीटर भाग जा रहे। ऐसे में जिन स्थानों पर टेडीवियर रखे जा रहे, वहां भेड़िए नहीं आ रहे। कुछ स्थानों पर पेड़ों पर कैमरे भी लगाए गए हैं। लेकिन अब तक उसमें भी भेड़ियों की एक झलक नहीं रिकॉर्ड हो पाई है। अब सवाल है कि इन्हें पकड़ा कैसे जाए? इसे लेकर हमने दो एक्सपर्ट से बात की… भेड़ियों को उनकी आवाज निकालकर बुलाया जा सकता है
कतर्निया घाट वन्य प्रभाग में वाइल्ड लाइफ पर पिछले 20 साल से काम कर रहे जंग बहादुर सिंह उर्फ जंग हिंदुस्तानी से हमने बात की। वह कहते हैं- जब भेड़ियों के घर में इंसानों को घुसा दिया जाएगा, तो जाहिर है भेड़िए इंसानों के घर में घुसेंगे। सरकारों ने जंगल को ईको पर्यटन स्थल केंद्र बना दिया। आज पूरे जंगल को चिड़ियाघर बना दिया गया है। कतर्निया जंगल में पिछले साल 14 हजार पर्यटक आए। इससे जंगली जीव परेशान हुए और वह अब निकलकर आबादी वाले क्षेत्र में आ रहे हैं। जंग हिंदुस्तानी कहते हैं- भेड़ियों को पकड़ने के लिए एक विशेष प्रकार का प्रशिक्षण होता है। विशेष प्रकार के एज ग्रुप के लोग इसके लिए काम करते हैं। लेकिन, विभाग के पास योग्य लोगों की कमी है। समुचित संसाधन भी नहीं हैं। अभी कुछ दिनों से ड्रोन वगैरह आए हैं। अगर इन्हें पकड़ना है तो इनकी आवाज निकालनी होगी। इसके लिए जगह-जगह साउंड रखे जाएं। ये अपनी आवाज सुनने के बाद उसका उत्तर जरूर देते हैं। ऐसे में हम पहचान पाएंगे कि भेड़िए कहां हैं? वन विभाग को सभी गांव में जाना होगा
कतर्निया घाट फ्रेंड्स क्लब NGO के प्रमुख भगवान दास लखमानी कहते हैं- मुझे लगता है, इनके ग्रुप के अल्फा मेल या फिर फीमेल को पकड़ लिया गया है। जिसके बाद ये हिंसक हो गए हैं। इन्हें काबू में करने के लिए वन विभाग की बहुत सारी टीमें लगी हैं। लेकिन कुछ जगह चूक हो रही। ग्रामीण बताते हैं कि वन विभाग के लोग गांव में आते हैं, पूछते हैं और फिर चले जाते हैं। जबकि इन्हें वहां रुकना होगा और लोगों को जागरूक करना होगा। गांववाले बोले- मारने की इजाजत मिले तो हम खुद मार देंगे
भास्कर की टीम भेड़िए प्रभावित इलाके में लगातार घूमती रही। हम रात करीब 2 बजे कटाई घाट गांव पहुंचे। यहां सड़क के किनारे कुछ लोग मचान बनाकर बैठे थे। हमने पूछा कि क्या तैयारी है? वे कहते हैं- भेड़िए से सुरक्षा के लिए यहीं बैठे रहते हैं। अगर हमला करेगा तो हमारे पास हथियार हैं, हम उससे निपटेंगे। हमने पूछा, क्या आप लोग भेड़ियों को मार सकते हैं? वह कहते हैं- अगर इजाजत मिले तो हम लोग घेरकर मार देंगे। लेकिन, ऐसा करेंगे तो हम लोग फंस जाएंगे। हमारे पास तो हथियार भी हैं। हथियार के नाम पर वह एक नुकीला भाला और फरसा दिखाते हैं। हमने कहा कि अब तो परमिशन मिल गई है कि जिंदा नहीं पकड़ में आए तो मार दीजिए? जवाब में कहते हैं- अगर ऐसी बात है तो सर हम घेरकर मार देंगे। स्थानीय भाजपा विधायक सुरेश्वर सिंह भी इस बात को लेकर ग्रामीणों के समर्थन में बात करते हैं। वह कहते हैं- तुम लोग तो घेरकर किसी भी जानवर को मार सकते हो, फिर भेड़िए से क्यों डरते हो? मारो, जो होगा हम देखेंगे। हालांकि जैसे ही वह देखते हैं कि सामने कैमरा चल रहा, चुप हो जाते हैं। वन विभाग बहा रहा पसीना, फिर भी नतीजा नहीं
कुल मिलाकर भेड़िए को पकड़ने में वन विभाग खूब पसीना बहा रहा है। इसके बावजूद नतीजे नहीं मिल रहे। स्थानीय विधायक भी इसे लेकर नाराज हैं। खुद सीएम योगी मामले की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। बहराइच वन्य जीव आपदा क्षेत्र घोषित हो गया है। इन सबके बावजूद वन विभाग के सारे प्रयास भेड़ियों को पकड़ने में नाकाफी दिख रहे हैं। भेड़िए पकड़ने के लिए वन विभाग को अपने तरीके में बदलाव लाने की जरूरत है। ये भी पढ़ें बच्चे सो रहे, मां लाठी लेकर बैठी; बहराइच में भेड़ियों का खौफ, 35 गांवों में बाहर सोने की इजाजत नहीं बहराइच का मिसरन पुरवा गांव। रात में चारपाई पर दो बच्चे सो रहे हैं। मां खलीकुन लाठी लेकर सुरक्षा में बैठी है। पुरुष गांव में पहरा दे रहे हैं। अहिरन पुरवा गांव में ट्रैक्टर-ट्रॉली पर लगे लाउडस्पीकर से अनाउंस हो रहा है- सुनो-सुनो-सुनो…आप सभी को सचेत किया जाता है कि आपके क्षेत्र में जंगली जानवर रात और दोपहर में छोटे बच्चों पर हमला कर रहे हैं। इसलिए आप सभी से आग्रह है कि शाम और रात में बच्चों को अकेला न छोड़ें। पढ़ें पूरी खबर बहराइच से करीब 35 किमी दूर महसी तहसील का बारह बिगहा गांव। यहां भेड़िए की दहशत से खौफजदा लोग हाथ में लाठी-डंडे लेकर खड़े होकर बातें कर रहे हैं। तभी अचानक गांव में हलचल बढ़ती है। एक के बाद एक तकरीबन 18 लग्जरी गाड़ियां गांव में पहुंचती हैं। इस काफिले में कुछ पुलिस और वन विभाग की भी गाड़ियां शामिल हैं। गाड़ियों से 12 से ज्यादा हथियारबंद लोग उतर कर खेतों की तरफ दौड़ने लगते हैं। उनके पीछे ग्रामीणों का हुजूम भी दौड़ पड़ता है। पूछने पर पता चला, ये महसी विधायक सुरेश्वर सिंह का काफिला है। वह गांव के लोगों को आदमखोर भेड़िए की दहशत से बचाने के लिए खुद कॉम्बिंग कर रहे हैं। बहराइच के 35 गांव भेड़िए के आतंक से दहशत में हैं। यहां जिन गांवों में भेड़िए ने हमला किया, वहां के लोग सजग हो गए। साथ ही जिन गांवों में हमला नहीं किया, वहां के लोग अब और ज्यादा चौकन्ने हैं। वजह यह कि आदमखोर भेड़िए हर दिन अपनी लोकेशन बदल रहे। किसी एक गांव में हमला करने के बाद दोबारा वहां नहीं जा रहे। इनका सॉफ्ट टारगेट बच्चे हैं। बच्चे नहीं मिलने पर महिलाओं पर हमला करते हैं। इन्हें पकड़ने के लिए वन विभाग के साथ तमाम विभाग और उसके बड़े अफसर लगे हैं। लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी। क्या भेड़ियों के हमले को रोका नहीं जा सकता? आखिर भेड़ियों को पकड़ने में दिक्कत कहां आ रही? हमने बहराइच में ही इन सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश की। आइए शुरुआत से जानते हैं… …इसलिए पकड़ में नहीं आ रहे भेड़िए 1- जहां शिकार किया, वहां दोबारा नहीं गए
महसी तहसील के बारह बीघा गांव में भेड़िए ने 21 अगस्त की रात को हमला किया। पहले एक बच्चे को उठाने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुआ। कुछ देर बाद गांव के एक किनारे एक महिला पर हमला किया। उसे भी ले जाने में सफल नहीं हुआ, लेकिन बुरी तरह घायल कर दिया। कुछ घंटों के बाद भेड़िया गांव के दूसरे छोर से एक बच्ची को उठा ले गया। इसके बाद उसने दोबारा इस गांव में हमला नहीं किया। इसी तरह मक्का पुरवा, नकवा, कुलैला, पूरा हिंद सिंह, बस्ती गड़रिया गांव के साथ हुआ। इन सभी गांवों में घुसकर भेड़िए ने बच्चों को अपना शिकार बनाया। इसके बाद उसने दूसरे गांव पर हमला किया। यह बात चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट अशोक प्रसाद सिन्हा भी मानते हैं। दैनिक भास्कर से बात करते हुए वह कहते हैं- अभी तक भेड़िए के हमले का जो पैटर्न रहा, उसमें यही निकलकर सामने आया कि वह लगातार गांव बदल रहा। किसी एक गांव में वह टिक नहीं रहा। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि उसके अटैक के बाद वहां के लोग ज्यादा सजग हो जाते हैं। 2- दिन में सर्च अभियान चल रहा, भेड़िए रात में हमला कर रहे
भेड़िया पकड़ में न आने की एक वजह ये भी है कि अभियान दिन में ज्यादा चलाया जा रहा। वहीं, भेड़िए रात में ज्यादा हमला कर रहे। भेड़िया हर दिन कहीं न कहीं दिखाई दे रहा। लोग मोबाइल के जरिए उसका वीडियो बनाकर वन विभाग और पुलिस प्रशासन को भेज रहे हैं। 3 अगस्त को एक भेड़िया असमानपुर में बैठा दिखाई दिया। हिंदू पुरवा गांव में 2 भेड़िए दिखाई दिए। इसका वीडियो बनाकर लोगों ने विभाग को भेजा। इसके बाद इन इलाकों में सर्च अभियान बढ़ गया। 3- ड्रोन से निगरानी, बैटरी डाउन होने से आ रही दिक्कत
वन विभाग दिन में ड्रोन के जरिए खोज रहा, लेकिन गन्ने के खेत और झाड़ियों के चलते भेड़िए पकड़ में नहीं आ रहे। बारह बीघा गांव के शिवकुमार कहते हैं- हमारे गांव में भेड़िया हर दिन दिखता है। यहां वन विभाग की टीम कई बार ड्रोन से निगरानी करने आई। कुछ देर ड्रोन उड़ाने के बाद कह देते हैं, बैटरी डाउन हो गई। अगर रात में निगरानी की जाए तो उसे देखा जा सकता है। इसके बचाव में वन विभाग के अधिकारी कहते हैं, रात में सर्च अभियान चलाना मुश्किल है। गन्ने के घने खेत भेड़ियों के छिपने की मुफीद जगह है। ज्यादा गर्मी के चलते थर्मल ड्रोन ओवरहीट होकर बंद हो जा रहे हैं। 4- वन विभाग और गांववालों में तालमेल की कमी
विधायक सुरेश्वर सिंह अपने काफिले के साथ गांव में दाखिल हुए तो लोगों ने वन विभाग के खिलाफ शिकायतों की झड़ी लगा दी। एक ग्रामीण ने बताया, शाम को भेड़िया गांव के एक खेत में देखा गया था। हमने वन विभाग को सूचना दी तो उनकी एक टीम आई। लेकिन, आते ही उन्होंने ड्रोन से सर्च करने के बजाय वहां पटाखे दगाने शुरू कर दिए। पटाखों की आवाज से सतर्क होकर भेड़िए पकड़ में आने की जगह भाग निकले। अब जानिए भेड़िए के हिंसक होने की वजह क्या? आदमखोर भेड़िए अपने ग्रुप से बाहर
भेड़िए के इतना हिंसक होने की वजह पूछने पर चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट अशोक प्रसाद सिन्हा कहते हैं- भेड़िए ग्रुप में रहते हैं। मेरा मानना है, जो भेड़िया हमला कर रहा वह अपने समाज से बहिष्कृत है। क्योंकि इसमें अल्फा मेल का डॉमिनेंस होता है। जब कोई उसे चैलेंज करता है, तो दोनों के बीच लड़ाई होती है। जो हार जाता है, उसे ग्रुप छोड़ना होता है। यहां भी ऐसा ही लगता है। क्योंकि आमतौर पर भेड़िए इंसानी बच्चों को नहीं उठाते। उत्तर से दक्षिण की तरफ मूव कर रहे भेड़िए
अशोक प्रसाद सिन्हा कहते हैं- भेड़िए उत्तर से दक्षिण की तरफ मूव कर रहे हैं। इसका मूवमेंट कुल साढ़े 7 हजार हेक्टेयर यानी 15 किलोमीटर में है। हम लोग लगातार ट्रेस कर रहे हैं। मैं यह नहीं कह सकता कि उसके इलाके को पहचान लिया है। क्योंकि, भेड़िया निशाचरी प्रकृति का जानवर है। उसका मूवमेंट कई बार 5-10 किलोमीटर एक ही रात में हो जाता है। हमारी 3 टीमें लगी हैं। हर टीम में 5-6 एक्सपर्ट हैं, सभी के पास आधुनिक हथियार हैं। जहां अटैक नहीं हुआ, वहां के लोगों को भी जागरूक किया जा रहा। वो गांव अब ज्यादा संवेदनशील हैं। वह कहते हैं- अगर हम सितंबर महीने में उसे रोकने में सफल रहते हैं तो इस बात की संभावना ज्यादा है कि वह अक्टूबर में खुद ही इलाका छोड़कर चले जाएं। भेड़िए पकड़ने के लिए अब ये तरीका अपनाया बच्चों की यूरिन से भिगोकर टेडीवियर रखे
भेड़ियों को पकड़ने के लिए वन विभाग ने छोटे बच्चों का पेशाब (यूरिन) मंगाया। यूरिन में टेडीवियर भिगोकर जगह-जगह रखा जा रहा है। ऐसा माना जाता है, पेशाब की गंध से शिकार समझकर भेड़िए यहां तक आएंगे। इसके बाद उन्हें पकड़ा जा सकता है। पेशाब से भीगे ये टेडीवियर उन गन्नों के खेतों में रखे जा रहे, जहां भेड़िए कई बार देखे गए और पड़ोस के गांव में हमला कर चुके हैं। जैसा कि अधिकारी कह रहे कि भेड़िए लगातार मूव कर रहे, एक-एक रात में वह 5-10 किलोमीटर भाग जा रहे। ऐसे में जिन स्थानों पर टेडीवियर रखे जा रहे, वहां भेड़िए नहीं आ रहे। कुछ स्थानों पर पेड़ों पर कैमरे भी लगाए गए हैं। लेकिन अब तक उसमें भी भेड़ियों की एक झलक नहीं रिकॉर्ड हो पाई है। अब सवाल है कि इन्हें पकड़ा कैसे जाए? इसे लेकर हमने दो एक्सपर्ट से बात की… भेड़ियों को उनकी आवाज निकालकर बुलाया जा सकता है
कतर्निया घाट वन्य प्रभाग में वाइल्ड लाइफ पर पिछले 20 साल से काम कर रहे जंग बहादुर सिंह उर्फ जंग हिंदुस्तानी से हमने बात की। वह कहते हैं- जब भेड़ियों के घर में इंसानों को घुसा दिया जाएगा, तो जाहिर है भेड़िए इंसानों के घर में घुसेंगे। सरकारों ने जंगल को ईको पर्यटन स्थल केंद्र बना दिया। आज पूरे जंगल को चिड़ियाघर बना दिया गया है। कतर्निया जंगल में पिछले साल 14 हजार पर्यटक आए। इससे जंगली जीव परेशान हुए और वह अब निकलकर आबादी वाले क्षेत्र में आ रहे हैं। जंग हिंदुस्तानी कहते हैं- भेड़ियों को पकड़ने के लिए एक विशेष प्रकार का प्रशिक्षण होता है। विशेष प्रकार के एज ग्रुप के लोग इसके लिए काम करते हैं। लेकिन, विभाग के पास योग्य लोगों की कमी है। समुचित संसाधन भी नहीं हैं। अभी कुछ दिनों से ड्रोन वगैरह आए हैं। अगर इन्हें पकड़ना है तो इनकी आवाज निकालनी होगी। इसके लिए जगह-जगह साउंड रखे जाएं। ये अपनी आवाज सुनने के बाद उसका उत्तर जरूर देते हैं। ऐसे में हम पहचान पाएंगे कि भेड़िए कहां हैं? वन विभाग को सभी गांव में जाना होगा
कतर्निया घाट फ्रेंड्स क्लब NGO के प्रमुख भगवान दास लखमानी कहते हैं- मुझे लगता है, इनके ग्रुप के अल्फा मेल या फिर फीमेल को पकड़ लिया गया है। जिसके बाद ये हिंसक हो गए हैं। इन्हें काबू में करने के लिए वन विभाग की बहुत सारी टीमें लगी हैं। लेकिन कुछ जगह चूक हो रही। ग्रामीण बताते हैं कि वन विभाग के लोग गांव में आते हैं, पूछते हैं और फिर चले जाते हैं। जबकि इन्हें वहां रुकना होगा और लोगों को जागरूक करना होगा। गांववाले बोले- मारने की इजाजत मिले तो हम खुद मार देंगे
भास्कर की टीम भेड़िए प्रभावित इलाके में लगातार घूमती रही। हम रात करीब 2 बजे कटाई घाट गांव पहुंचे। यहां सड़क के किनारे कुछ लोग मचान बनाकर बैठे थे। हमने पूछा कि क्या तैयारी है? वे कहते हैं- भेड़िए से सुरक्षा के लिए यहीं बैठे रहते हैं। अगर हमला करेगा तो हमारे पास हथियार हैं, हम उससे निपटेंगे। हमने पूछा, क्या आप लोग भेड़ियों को मार सकते हैं? वह कहते हैं- अगर इजाजत मिले तो हम लोग घेरकर मार देंगे। लेकिन, ऐसा करेंगे तो हम लोग फंस जाएंगे। हमारे पास तो हथियार भी हैं। हथियार के नाम पर वह एक नुकीला भाला और फरसा दिखाते हैं। हमने कहा कि अब तो परमिशन मिल गई है कि जिंदा नहीं पकड़ में आए तो मार दीजिए? जवाब में कहते हैं- अगर ऐसी बात है तो सर हम घेरकर मार देंगे। स्थानीय भाजपा विधायक सुरेश्वर सिंह भी इस बात को लेकर ग्रामीणों के समर्थन में बात करते हैं। वह कहते हैं- तुम लोग तो घेरकर किसी भी जानवर को मार सकते हो, फिर भेड़िए से क्यों डरते हो? मारो, जो होगा हम देखेंगे। हालांकि जैसे ही वह देखते हैं कि सामने कैमरा चल रहा, चुप हो जाते हैं। वन विभाग बहा रहा पसीना, फिर भी नतीजा नहीं
कुल मिलाकर भेड़िए को पकड़ने में वन विभाग खूब पसीना बहा रहा है। इसके बावजूद नतीजे नहीं मिल रहे। स्थानीय विधायक भी इसे लेकर नाराज हैं। खुद सीएम योगी मामले की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। बहराइच वन्य जीव आपदा क्षेत्र घोषित हो गया है। इन सबके बावजूद वन विभाग के सारे प्रयास भेड़ियों को पकड़ने में नाकाफी दिख रहे हैं। भेड़िए पकड़ने के लिए वन विभाग को अपने तरीके में बदलाव लाने की जरूरत है। ये भी पढ़ें बच्चे सो रहे, मां लाठी लेकर बैठी; बहराइच में भेड़ियों का खौफ, 35 गांवों में बाहर सोने की इजाजत नहीं बहराइच का मिसरन पुरवा गांव। रात में चारपाई पर दो बच्चे सो रहे हैं। मां खलीकुन लाठी लेकर सुरक्षा में बैठी है। पुरुष गांव में पहरा दे रहे हैं। अहिरन पुरवा गांव में ट्रैक्टर-ट्रॉली पर लगे लाउडस्पीकर से अनाउंस हो रहा है- सुनो-सुनो-सुनो…आप सभी को सचेत किया जाता है कि आपके क्षेत्र में जंगली जानवर रात और दोपहर में छोटे बच्चों पर हमला कर रहे हैं। इसलिए आप सभी से आग्रह है कि शाम और रात में बच्चों को अकेला न छोड़ें। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर