वर्ल्ड ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी-डे:BHU में मिल चुके हैं 3500 मरीज, डॉक्टर बोले- गर्भ में टूट रहा जीन, जन्म के 2 साल बाद लक्षण दिख रहे

वर्ल्ड ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी-डे:BHU में मिल चुके हैं 3500 मरीज, डॉक्टर बोले- गर्भ में टूट रहा जीन, जन्म के 2 साल बाद लक्षण दिख रहे

आज दुनियाभर में वर्ल्ड ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी- डे​​​ (DMD) मनाया जा रहा है। हर साल सितंबर के 7वें दिन ये पड़ता है। DMD दुर्लभ और लाइलाज जेनेटिक बीमारी है। मां के गर्भ में शुक्राणु और अंडाणु बनने के समय एक या इससे ज्यादा जीन के टूटने से ये दिक्कत होती है। लेकिन, बच्चे के पैदा होने के 2 से 5 साल बाद इसके लक्षण सामने आते हैं। हाथ-पैर और रीढ़ मुड़ने लगती है। मांस पेशियों के सिकुड़ने से फेफड़े काम नहीं करते। हार्टअटैक या लंग्स फेल्योर से 20 साल की उम्र तक मौत हो जाती है। बिमारी को रोकने के लिए कोई दवा नहीं
उत्तर प्रदेश में 20 हजार मरीज ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित हैं। BHU में हर साल 600 और लखनऊ स्थित एसजी पीजीआई में 400 से ज्यादा मरीज OPD में आते हैं। भारत में कुल डेढ़ लाख मरीज हैं। वहीं, दुनिया में पैदा होने वाला हर 3500वां बच्चा (मेल) इस रोग से ग्रसित है। इस बीमारी को रोकने की कोई दवा भारत में नहीं है। कैसे-कैसे बढ़ता है ये रोग….
BHU के सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर के हेड और जेनेटिक्स एक्सपर्ट डॉ. अख्तर अली ने बताया- जन्म के समय बच्चा बिल्कुल स्वस्थ रहता है। लेकिन, 2-3 साल की उम्र में लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। हाथ-पैर अपने आप मुड़ने लगते हैं। रीढ़ की हड्डी सिकुड़ने लगती है। कंधा झुकना लगता है। चलना-फिरना बंद हो जाता है। 5 से 10 साल की उम्र में जाते-जाते मरीज बेड और व्हील चेयर पर आ जाता है। हालत ऐसी होती है कि अपने हाथ से मुंह पर बैठी मक्खी भी नहीं उड़ा सकते। 20 साल की उम्र तक मरीज दम तोड़ देता है। BHU में बीते 10 सालों में ऐसे 3500 मरीज सामने आ चुके हैं। परिजनों ने इन बच्चों की फ्री फिजियोथेरेपी और पैसे की मांग राज्य सरकार से की है। लेकिन, अभी तक कोई मदद नहीं मिली है। वाराणसी के समाजसेवियों को साथ लेकर सभी मंत्रियों से मिलकर इस समस्या को उठाया गया, लेकिन सब ओर से निराशा ही हाथ लगी। BHU में 3500 मरीजों के सैंपल उपलब्ध
BHU के सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर में 3500 मरीजों के सैंपल जुटाए गए हैं। यहां के हेड और जेनेटिक्स एक्सपर्ट डॉ. अख्तर अली ने बताया- दुनिया में जन्म लेने वाला हर 3500वां लड़का इस बीमारी से ग्रसित है। कुछ दवाएं क्लीनिकल ट्रायल में हैं। नीदरलैंड में एग्जॉन एस्कीपिंग थेरेपी दी जाती है। ये यूएस एफडीए द्वारा अप्रूव है। भारत में ये उपलब्ध नहीं है। ये थेरेपी रोग की गंभीरता को कम कर देती है।डॉ. अली ने कहा- 2 महीने पहले रिसर्च का प्रपोजल दिया गया है। इसमें एग्जॉन एस्कीपिंग थेरेपी को मोडिफाई कर और बेहतर इलाज की बात कही गई है। साथ ही रेट भी कम से कम हो, लेकिन अप्रूवल और ग्रांट का इंतजार है। शुक्राणु और अंडाणु के मिलन के दौरान होती है गड़बड़ी
DMD का पता तब चलता है जब बच्चे को चलने-फिरने में दिक्कत होने लगती है। जबकि, ये दिक्कत मां के गर्भ में होती है। ये बीमारी माता-पिता से बच्चे में ट्रांसफर नहीं होती। गर्भ में गैमिटोजेनेसिस या जाइगोट (जब शुक्राणु और अंडाणु मिलते हैं तो जाइगोट बनता है) बनने के दौरान काेई जीन टूट गया तो ही ये रोग होता है। ज्यादातर केस में डिस्ट्राॅफी जीन के टूटने से ऐसा होता है। डिस्ट्राॅफी जीन में 79 एग्जॉन होते हैं। जब इसके अंदर एक या एक से अधिक एग्जाॅन टूट जाते हैं तो डिस्ट्राॅफी प्रोटीन सही से नहीं बनती। इसी से मांस-पेशियों के विकास में दिक्कतें आ जाती हैं। कुछ लोग मानते हैं लकवा, कुछ कराते हैं झाड़-फूंक
वाराणसी के 200 DMD रोगियों को रजिस्टर्ड करा चुके समाजसेवी जयंत सिंह ने बताया- भारत में डेढ़ लाख मरीज हैं। BHU ने RTI में जवाब दिया कि सालभर में करीब 600 मरीज आते हैं। कुछ मरीज झाड़-फूंक कर सही कराने में लग जाते हैं। कुछ लोग इसे पोलियो या लकवा मान लेते हैं। इसको लेकर जागरूकता के साथ ही सरकारी प्रयासों को भी बढ़ाना होगा। यूपी में मरीजों को 100% दिव्यांगता श्रेणी में शामिल कर कुछ पेंशन स्कीम चलाई जाए। यूपी में जाे भी प्रावधान है, वो 18 साल के बाद के मरीजों के लिए है। हर महीने होती है 9000 की फिजियोथेरेपी
समाजसेवी जयंत सिंह ने बताया- इन मरीजों को जिंदा रखने का एक मात्र उपाय फिजियोथेरेपी है। निजी सेंटर्स पर कराते हैं तो एक बार का 300 रुपए चार्ज लगता है। हर महीने तो 9 हजार रुपए खर्च होता है। बाकी दवाओं का खर्च मिलाकर 15 से 20 हजार रुपए हर महीने आ जाता है। इससे उनका काफी नुकसान हो जाता है। ये तो खर्च सरकार वहन करे। मरीजों के परिजनों की मांगें ये भी पढ़ें:- BHU के स्कॉलर बोले- भेड़िया खूंखार नहीं, शर्मीला जीव:भूख मिटाने के लिए जानवर या इंसान के बच्चे में फर्क नहीं समझ पा रहे 50 दिन, 9 बच्चों का शिकार। भेड़िए खूंखार होते जा रहे हैं। बहराइच में वन मंत्री खुद कैंप कर रहे हैं। भेड़ियों को मुर्दा पकड़ने तक के आदेश हो चुके हैं। आखिर क्यों ऐसा है कि आदमखोर हो चुके भेड़ियों को वन विभाग की टीम पकड़ नहीं पा रही है। जंगल का खूंखार भेड़िया गांव में कैसे हमलावर हो गया? यह सब जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम BHU के जंतु विज्ञान विभाग पहुंची। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ( देहरादून ) में भेड़िए पर रिसर्च कर चुके स्कॉलर शैलेश देसाई से मुलाकात हुई। उन्होंने बहराइच में भेड़ियों के हमले को लेकर हमारे सवालों के जवाब दिए। पढ़िए इंटरव्यू… आज दुनियाभर में वर्ल्ड ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी- डे​​​ (DMD) मनाया जा रहा है। हर साल सितंबर के 7वें दिन ये पड़ता है। DMD दुर्लभ और लाइलाज जेनेटिक बीमारी है। मां के गर्भ में शुक्राणु और अंडाणु बनने के समय एक या इससे ज्यादा जीन के टूटने से ये दिक्कत होती है। लेकिन, बच्चे के पैदा होने के 2 से 5 साल बाद इसके लक्षण सामने आते हैं। हाथ-पैर और रीढ़ मुड़ने लगती है। मांस पेशियों के सिकुड़ने से फेफड़े काम नहीं करते। हार्टअटैक या लंग्स फेल्योर से 20 साल की उम्र तक मौत हो जाती है। बिमारी को रोकने के लिए कोई दवा नहीं
उत्तर प्रदेश में 20 हजार मरीज ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित हैं। BHU में हर साल 600 और लखनऊ स्थित एसजी पीजीआई में 400 से ज्यादा मरीज OPD में आते हैं। भारत में कुल डेढ़ लाख मरीज हैं। वहीं, दुनिया में पैदा होने वाला हर 3500वां बच्चा (मेल) इस रोग से ग्रसित है। इस बीमारी को रोकने की कोई दवा भारत में नहीं है। कैसे-कैसे बढ़ता है ये रोग….
BHU के सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर के हेड और जेनेटिक्स एक्सपर्ट डॉ. अख्तर अली ने बताया- जन्म के समय बच्चा बिल्कुल स्वस्थ रहता है। लेकिन, 2-3 साल की उम्र में लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। हाथ-पैर अपने आप मुड़ने लगते हैं। रीढ़ की हड्डी सिकुड़ने लगती है। कंधा झुकना लगता है। चलना-फिरना बंद हो जाता है। 5 से 10 साल की उम्र में जाते-जाते मरीज बेड और व्हील चेयर पर आ जाता है। हालत ऐसी होती है कि अपने हाथ से मुंह पर बैठी मक्खी भी नहीं उड़ा सकते। 20 साल की उम्र तक मरीज दम तोड़ देता है। BHU में बीते 10 सालों में ऐसे 3500 मरीज सामने आ चुके हैं। परिजनों ने इन बच्चों की फ्री फिजियोथेरेपी और पैसे की मांग राज्य सरकार से की है। लेकिन, अभी तक कोई मदद नहीं मिली है। वाराणसी के समाजसेवियों को साथ लेकर सभी मंत्रियों से मिलकर इस समस्या को उठाया गया, लेकिन सब ओर से निराशा ही हाथ लगी। BHU में 3500 मरीजों के सैंपल उपलब्ध
BHU के सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर में 3500 मरीजों के सैंपल जुटाए गए हैं। यहां के हेड और जेनेटिक्स एक्सपर्ट डॉ. अख्तर अली ने बताया- दुनिया में जन्म लेने वाला हर 3500वां लड़का इस बीमारी से ग्रसित है। कुछ दवाएं क्लीनिकल ट्रायल में हैं। नीदरलैंड में एग्जॉन एस्कीपिंग थेरेपी दी जाती है। ये यूएस एफडीए द्वारा अप्रूव है। भारत में ये उपलब्ध नहीं है। ये थेरेपी रोग की गंभीरता को कम कर देती है।डॉ. अली ने कहा- 2 महीने पहले रिसर्च का प्रपोजल दिया गया है। इसमें एग्जॉन एस्कीपिंग थेरेपी को मोडिफाई कर और बेहतर इलाज की बात कही गई है। साथ ही रेट भी कम से कम हो, लेकिन अप्रूवल और ग्रांट का इंतजार है। शुक्राणु और अंडाणु के मिलन के दौरान होती है गड़बड़ी
DMD का पता तब चलता है जब बच्चे को चलने-फिरने में दिक्कत होने लगती है। जबकि, ये दिक्कत मां के गर्भ में होती है। ये बीमारी माता-पिता से बच्चे में ट्रांसफर नहीं होती। गर्भ में गैमिटोजेनेसिस या जाइगोट (जब शुक्राणु और अंडाणु मिलते हैं तो जाइगोट बनता है) बनने के दौरान काेई जीन टूट गया तो ही ये रोग होता है। ज्यादातर केस में डिस्ट्राॅफी जीन के टूटने से ऐसा होता है। डिस्ट्राॅफी जीन में 79 एग्जॉन होते हैं। जब इसके अंदर एक या एक से अधिक एग्जाॅन टूट जाते हैं तो डिस्ट्राॅफी प्रोटीन सही से नहीं बनती। इसी से मांस-पेशियों के विकास में दिक्कतें आ जाती हैं। कुछ लोग मानते हैं लकवा, कुछ कराते हैं झाड़-फूंक
वाराणसी के 200 DMD रोगियों को रजिस्टर्ड करा चुके समाजसेवी जयंत सिंह ने बताया- भारत में डेढ़ लाख मरीज हैं। BHU ने RTI में जवाब दिया कि सालभर में करीब 600 मरीज आते हैं। कुछ मरीज झाड़-फूंक कर सही कराने में लग जाते हैं। कुछ लोग इसे पोलियो या लकवा मान लेते हैं। इसको लेकर जागरूकता के साथ ही सरकारी प्रयासों को भी बढ़ाना होगा। यूपी में मरीजों को 100% दिव्यांगता श्रेणी में शामिल कर कुछ पेंशन स्कीम चलाई जाए। यूपी में जाे भी प्रावधान है, वो 18 साल के बाद के मरीजों के लिए है। हर महीने होती है 9000 की फिजियोथेरेपी
समाजसेवी जयंत सिंह ने बताया- इन मरीजों को जिंदा रखने का एक मात्र उपाय फिजियोथेरेपी है। निजी सेंटर्स पर कराते हैं तो एक बार का 300 रुपए चार्ज लगता है। हर महीने तो 9 हजार रुपए खर्च होता है। बाकी दवाओं का खर्च मिलाकर 15 से 20 हजार रुपए हर महीने आ जाता है। इससे उनका काफी नुकसान हो जाता है। ये तो खर्च सरकार वहन करे। मरीजों के परिजनों की मांगें ये भी पढ़ें:- BHU के स्कॉलर बोले- भेड़िया खूंखार नहीं, शर्मीला जीव:भूख मिटाने के लिए जानवर या इंसान के बच्चे में फर्क नहीं समझ पा रहे 50 दिन, 9 बच्चों का शिकार। भेड़िए खूंखार होते जा रहे हैं। बहराइच में वन मंत्री खुद कैंप कर रहे हैं। भेड़ियों को मुर्दा पकड़ने तक के आदेश हो चुके हैं। आखिर क्यों ऐसा है कि आदमखोर हो चुके भेड़ियों को वन विभाग की टीम पकड़ नहीं पा रही है। जंगल का खूंखार भेड़िया गांव में कैसे हमलावर हो गया? यह सब जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम BHU के जंतु विज्ञान विभाग पहुंची। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ( देहरादून ) में भेड़िए पर रिसर्च कर चुके स्कॉलर शैलेश देसाई से मुलाकात हुई। उन्होंने बहराइच में भेड़ियों के हमले को लेकर हमारे सवालों के जवाब दिए। पढ़िए इंटरव्यू…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर