क्या आप इस बात पर यकीन करेंगे कि यूपी में ऐसे भी गांव हैं, जहां पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं? आपका जवाब यही होगा कि ये कैसे हो सकता है? लेकिन यही हकीकत है। यूपी-बिहार बॉर्डर पर 7 ऐसे गांव हैं, जहां जाने के लिए आपको पहले बिहार जाना होगा। बिहार में 20 किलोमीटर से ज्यादा चलना होगा। फिर नाव पकड़नी होगी। तब आप इन 7 गांवों तक पहुंच पाएंगे। इस गांवों में बिजली के खंभे लगे हैं। तार बिछे हैं, लेकिन बिजली नहीं आती। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन डॉक्टर नहीं आते। आप यह सुनकर और हैरान हो जाएंगे कि यहां सरकारी एंबुलेंस जाती ही नहीं। डायल- 112 भी गांव से कॉल आने पर पहुंचने में असमर्थता जता देती है। अब सवाल है कि इतनी चुनौतियों के साथ ये लोग कैसे जी रहे? दैनिक भास्कर की टीम यही सब पता करने यहां पहुंची। लोगों ने जो कुछ बताया, वह चौंकाता है। लेकिन, मन में एक चिंता भी भर देता है कि आज के समय में भी ऐसी स्थिति में लोग जी रहे? आइए आपको यूपी के इन अजूबे बने गांवों की यात्रा पर लेकर चलते हैं… नेपाल से निकली नदी इन गांव को यूपी से अलग करती है
हिमालय से नारायणी नदी निकली है। इसे लोग गंडक नदी भी कहते हैं। नेपाल के रास्ते यह यूपी के कुशीनगर और महराजगंज से होते हुए बिहार पहुंचती है। सोनपुर में गंगा नदी में मिल जाती है। बरसात के मौसम में जब यह नदी उफान पर होती है, तब आसपास के लोगों के लिए बड़ी मुसीबत बनती है। महराजगंज और कुशीनगर जिले के 7 गांव हर साल 4 महीनों तक इस नदी के दंश को झेलते हैं। बाढ़ से प्रभावित इन लोगों के लिए 28 सितंबर बड़ी आफत बनकर आया। नेपाल के वाल्मीकि नगर बैराज से करीब 6 लाख क्यूसेक पानी छोड़ दिया गया। देखते ही सारे के सारे गांव डूब गए। घर में रखा अनाज बर्बाद हो गया, झोपड़ियां टूट गईं। जैसे-तैसे लोग अपने पक्के मकानों की छत पर पहुंचे और जान बचाई। 24 घंटे का यह डरावना मंजर पानी के लौट जाने के बाद भी स्थानीय लोगों के दिमाग से नहीं उतरा। बिहार में 20 किमी चलने के बाद गांव पहुंचे
दैनिक भास्कर की टीम प्रभावित गांव के लिए निकली। हमारे पास दो विकल्प थे। या तो हम नेपाल जाएं और फिर वहां से इन गांव में पहुंचे। दूसरा रास्ता बिहार के जरिए था। हमने दूसरा विकल्प चुना। कुशीनगर से होते हुए हम बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में पहुंचे। करीब 20 किलोमीटर सफर किया और इन 7 गांव के मुख्य रास्ते पर पहुंच गए। यहां से आगे हमारी गाड़ी नहीं जा सकी। हमने 200 मीटर नदी नाव से पार की। इसके बाद आगे हमें एक गाड़ी मिली, जिसके जरिए हम बदहाल रास्ते से होकर गांव पहुंचे। गाड़ी में हमारे साथ इसी इलाके के शिवपुर गांव के निजामुद्दीन थे। वह कहते हैं- आप जिस सड़क पर चल रहे हैं, इसे लेकर यहां के लोगों ने कई बार पत्र लिखा। बाद में डीएम ने प्रधानों को बुलाकर कहा था कि मनरेगा के जरिए इस पर खड़ंजा बिछवा दो। खड़ंजा तो बिछ गया, लेकिन अब इसकी हालत एकदम खराब है। चुनाव के वक्त यहां के लोग रोड नहीं तो वोट नहीं का नारा लगाकर विरोध करते हैं। तब थोड़ी-बहुत मरम्मत हो जाती है, लेकिन फिर से वैसी हालत हो जाती है। नारायण गांव के कमलेश कुशवाहा कहते हैं- यहां एंबुलेंस तब दिखती है, जब यहां किसी की तबीयत खराब हो जाए। उसे हम लोग निजी गाड़ी से हॉस्पिटल ले जाएं और वहां उसकी मौत हो जाए। फिर एंबुलेंस बुक करेंगे तो वह गांव में लाश लेकर आएंगे। सरकारी अस्पताल है, लेकिन डॉक्टर नहीं
गांव की ही गुलाबी देवी कहती हैं- यहां सिर्फ टंपरेरी इलाज होता है। किसी को कोई दिक्कत होती है तो यहीं गांव के डॉक्टर को बुला लेते हैं। ज्यादा दिक्कत होती है तो खड्डा जाना पड़ता है। खड्डा ब्लॉक यहां से 7-8 किलोमीटर ही है, लेकिन घूम कर जाते हैं तो 30-35 किलोमीटर पड़ता है। हम यहां के सरकारी हॉस्पिटल पहुंचे। हॉस्पिटल में भी बाढ़ का पानी करीब 4 फीट तक भरा था। इस प्राथमिक हॉस्पिटल में कोई सुविधा नहीं है। पूरा हॉस्पिटल खाली है। स्थानीय लोग कहते हैं कि रेगुलर ड्यूटी पर यहां एक कंपाउंडर और गार्ड रहते हैं, लेकिन वह भी नहीं दिखते। हर रविवार को स्वास्थ्य मेला लगता है तो डॉक्टर आते हैं। उसी दिन लोगों को दवा देकर फिर से चले जाते हैं। आजादी के 60 साल बाद लाइट पहुंची, लेकिन टिकी नहीं
इन इलाकों में रहने वाले लोगों की चुनौतियों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां के गांवों में बिजली 2012-13 में पहुंची थी। कुशीनगर के मौजूदा बीजेपी सांसद विजय दुबे 2012 में कांग्रेस से खड्डा के विधायक बने थे। राजीव गांधी विद्युत परियोजना के जरिए पनियाहवां इलाके से यहां बिजली पहुंचाई गई। करीब 1 साल तक लाइट जली, लेकिन नारायणी नदी में उफान आया, कटान बढ़ी और नारायणपुर, बकुलादाह, हरिहरपुर गांव कट गए। कटने वाले इन गांव से ही बिजली के पोल आए थे। सभी पोल नदी में समा गए। इस तरह से यहां के गांव में फिर से अंधेरा छा गया। आज भी गांव में पोल लगे हैं, तार बिछे हैं। लोगों के घरों में मीटर लगे हैं। बिजली का बिल भी जोड़ा जा रहा। उसका मैसेज मोबाइल पर आ रहा, लेकिन बिजली नहीं आ रही। स्थानीय निवासी निजामुद्दीन कहते हैं- नारायणपुर जब अम्बेडकर ग्राम बना तो वहां बिजली आई। उसके बाद राजीव गांधी विद्युत परियोजना के जरिए गांव-गांव को बिजली से जोड़ा गया, तब हमारे यहां भी बिजली आई। जिस साल लगी, उसी साल बिजली का खंभा नदी में कट गया। फिर बिजली-बिजली कहते रहे, लेकिन बिजली नहीं आई। बिजली में खर्च 36 करोड़ इसलिए सौर ऊर्जा मिला
निजामुद्दीन कहते हैं- बिजली को लेकर प्रदर्शन हुआ। जेई ने गांव में बिजली पहुंचाने का जो स्टीमेट बनाया वह 36 करोड़ का था। यह भी बताया कि अगर सोलर लाइट लगा दी जाए तो 7 करोड़ खर्च होंगे। सरकार ने सोलर लाइट लगवाना ठीक समझा। दो साल पहले यहां के 16 सौ से ज्यादा घरों को मुफ्त में सोलर लाइट दी गई। बरसात और बाढ़ के बीच अब 80% सोलर लाइट खराब है, लोग परेशान हैं। अधिकारी कहते हैं, कर्मचारी जाएगा तो बनवा दी जाएगी। 2 व्यक्ति पानी के अभाव में मरे तो टंकी लगाने का ऐलान हुआ
यहां पिछले 3 साल से ‘हर घर नल जल’ योजना के तहत पानी की टंकी बनाई जा रही, लेकिन अब तक नींव से आगे का काम नहीं हो सका। गांव में पाइप लाइन एक साल पहले बिछा दी गई थी, जो अब तमाम जगहों पर टूट गई है। गांव के निजामुद्दीन बताते हैं- मरचहवा गांव में दो आदमी पानी के आभाव में मर गए थे। तब लखनऊ से टीम आई थी और टंकी के लिए जगह देखकर गई थी। लेकिन, तब नहीं बनी। फिर डबल इंजन की सरकार जो हर घर नल जल योजना लेकर आई है, उसके तहत यहां 4 ग्राम सभा के लिए टंकी बननी शुरू हुई। लेकिन, आज तक नहीं बन सकी। बहुत लापरवाही है। अब कहते हैं, बरसात हो रही इसलिए काम रोका गया है। इन गांवों को बिहार को देने की थी तैयारी
इन गांव में मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाना प्रशासन के लिए हमेशा से चुनौती रहा है। हमने सरकारी फाइलों को खंगाला तो पता चला कि कि कुशीनगर और महराजगंज, दोनों ही जगह के डीएम यहां के गांव को बिहार में शामिल करने के लिए यूपी सरकार को पत्र लिख चुके हैं। कुशीनगर के पूर्व डीएम आंद्रा वामसी और महराजगंज जिले के पूर्व डीएम सतेंद्र कुमार ने अपने पत्र में यहां स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था पहुंचाने में हो रही दिक्कतों का जिक्र किया था। दोनों डीएम की रिपोर्ट के बाद यूपी सरकार इन्हें बिहार में शामिल करने पर सहमत दिख रही थी। 2022 विधानसभा चुनाव से पहले स्थानीय नेताओं और विधायकों ने विरोध किया। इसके बाद इसे बिहार में शामिल करने का फैसला रोक दिया गया। स्थानीय लोग कहते हैं, अगर यहां नारायणी नदी पर पुल बन जाए तो हमारी सारी दिक्कत दूर हो जाएंगी। हमें फिर न बिहार जाना होगा, न नेपाल के रास्ते यूपी में जाना होगा। बीजेपी विधायक बोले- योगी जी ने पुल बनाने का वादा किया है
हमने यहां की समस्याओं को लेकर खड्डा के स्थानीय बीजेपी विधायक विवेकानंद पांडेय से बात की। वह कहते हैं- निश्चित तौर पर वहां पहुंचना बड़ी परेशानी का काम है। हम लोग भी बिहार से होकर जाते हैं। पिछले महीने सीएम योगी आदित्यनाथ यहां आए थे। उन्होंने दावा किया है कि जल्द ही नारायणी पर पक्का पुल बनाएंगे, जिससे यहां के लोगों की परेशानी दूर हो जाए। बाकी बाढ़ के बीच हमने गांव में दो बार राहत पैकेज बंटवाए हैं। हर परिवार तक राहत पैकेज पहुंचा है। अब सवाल है कि पुल बनाने में दिक्कत क्या है? इस सवाल का जवाब हमें एक स्थानीय बीजेपी नेता देते हैं। वह कहते हैं- इन 7 गांव को जोड़ने के लिए नारायणी नदी पर जो पुल बनाया जाना है, उसमें 600 करोड़ रुपए तक खर्च आ सकता है। खर्च बड़ा है, इसलिए भी सरकार फैसला लेने की स्थिति में नहीं आ पा रही। हालांकि इस पुल के बन जाने से यहां एंबुलेंस भी पहुंचेंगी, साथ ही बिजली और डायल 112 भी। और तो और, यहां के लोगों को यूपी के बाकी हिस्सों में जाने के लिए बिहार और नेपाल के रास्ते का इस्तेमाल भी नहीं करना होगा। यह खबर भी पढ़ें बूढ़ों को जवान बनाने वाली मशीन… 40 लाख में डील, कानपुर में इंजीनियर बोला- साढ़े 18 लाख दिए, मशीन दूसरे से बनवाई कानपुर में बुजुर्गों को जवान करने का दावा करने वाले राजीव दुबे ने सोमवार को सरेंडर कर दिया। उसने कहा- मुझे ब्लैकमेल किया गया। 5 से 18 लाख रुपए मांगे गए। पुलिस राजीव के बयान रिकॉर्ड कर चुकी है। इस बीच दैनिक भास्कर ने उस शख्स को ढूंढ निकाला, जिसने ऑक्सीजन थैरेपी देने वाली मशीन तैयार की थी। यहां पढ़ें पूरी खबर क्या आप इस बात पर यकीन करेंगे कि यूपी में ऐसे भी गांव हैं, जहां पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं? आपका जवाब यही होगा कि ये कैसे हो सकता है? लेकिन यही हकीकत है। यूपी-बिहार बॉर्डर पर 7 ऐसे गांव हैं, जहां जाने के लिए आपको पहले बिहार जाना होगा। बिहार में 20 किलोमीटर से ज्यादा चलना होगा। फिर नाव पकड़नी होगी। तब आप इन 7 गांवों तक पहुंच पाएंगे। इस गांवों में बिजली के खंभे लगे हैं। तार बिछे हैं, लेकिन बिजली नहीं आती। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन डॉक्टर नहीं आते। आप यह सुनकर और हैरान हो जाएंगे कि यहां सरकारी एंबुलेंस जाती ही नहीं। डायल- 112 भी गांव से कॉल आने पर पहुंचने में असमर्थता जता देती है। अब सवाल है कि इतनी चुनौतियों के साथ ये लोग कैसे जी रहे? दैनिक भास्कर की टीम यही सब पता करने यहां पहुंची। लोगों ने जो कुछ बताया, वह चौंकाता है। लेकिन, मन में एक चिंता भी भर देता है कि आज के समय में भी ऐसी स्थिति में लोग जी रहे? आइए आपको यूपी के इन अजूबे बने गांवों की यात्रा पर लेकर चलते हैं… नेपाल से निकली नदी इन गांव को यूपी से अलग करती है
हिमालय से नारायणी नदी निकली है। इसे लोग गंडक नदी भी कहते हैं। नेपाल के रास्ते यह यूपी के कुशीनगर और महराजगंज से होते हुए बिहार पहुंचती है। सोनपुर में गंगा नदी में मिल जाती है। बरसात के मौसम में जब यह नदी उफान पर होती है, तब आसपास के लोगों के लिए बड़ी मुसीबत बनती है। महराजगंज और कुशीनगर जिले के 7 गांव हर साल 4 महीनों तक इस नदी के दंश को झेलते हैं। बाढ़ से प्रभावित इन लोगों के लिए 28 सितंबर बड़ी आफत बनकर आया। नेपाल के वाल्मीकि नगर बैराज से करीब 6 लाख क्यूसेक पानी छोड़ दिया गया। देखते ही सारे के सारे गांव डूब गए। घर में रखा अनाज बर्बाद हो गया, झोपड़ियां टूट गईं। जैसे-तैसे लोग अपने पक्के मकानों की छत पर पहुंचे और जान बचाई। 24 घंटे का यह डरावना मंजर पानी के लौट जाने के बाद भी स्थानीय लोगों के दिमाग से नहीं उतरा। बिहार में 20 किमी चलने के बाद गांव पहुंचे
दैनिक भास्कर की टीम प्रभावित गांव के लिए निकली। हमारे पास दो विकल्प थे। या तो हम नेपाल जाएं और फिर वहां से इन गांव में पहुंचे। दूसरा रास्ता बिहार के जरिए था। हमने दूसरा विकल्प चुना। कुशीनगर से होते हुए हम बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में पहुंचे। करीब 20 किलोमीटर सफर किया और इन 7 गांव के मुख्य रास्ते पर पहुंच गए। यहां से आगे हमारी गाड़ी नहीं जा सकी। हमने 200 मीटर नदी नाव से पार की। इसके बाद आगे हमें एक गाड़ी मिली, जिसके जरिए हम बदहाल रास्ते से होकर गांव पहुंचे। गाड़ी में हमारे साथ इसी इलाके के शिवपुर गांव के निजामुद्दीन थे। वह कहते हैं- आप जिस सड़क पर चल रहे हैं, इसे लेकर यहां के लोगों ने कई बार पत्र लिखा। बाद में डीएम ने प्रधानों को बुलाकर कहा था कि मनरेगा के जरिए इस पर खड़ंजा बिछवा दो। खड़ंजा तो बिछ गया, लेकिन अब इसकी हालत एकदम खराब है। चुनाव के वक्त यहां के लोग रोड नहीं तो वोट नहीं का नारा लगाकर विरोध करते हैं। तब थोड़ी-बहुत मरम्मत हो जाती है, लेकिन फिर से वैसी हालत हो जाती है। नारायण गांव के कमलेश कुशवाहा कहते हैं- यहां एंबुलेंस तब दिखती है, जब यहां किसी की तबीयत खराब हो जाए। उसे हम लोग निजी गाड़ी से हॉस्पिटल ले जाएं और वहां उसकी मौत हो जाए। फिर एंबुलेंस बुक करेंगे तो वह गांव में लाश लेकर आएंगे। सरकारी अस्पताल है, लेकिन डॉक्टर नहीं
गांव की ही गुलाबी देवी कहती हैं- यहां सिर्फ टंपरेरी इलाज होता है। किसी को कोई दिक्कत होती है तो यहीं गांव के डॉक्टर को बुला लेते हैं। ज्यादा दिक्कत होती है तो खड्डा जाना पड़ता है। खड्डा ब्लॉक यहां से 7-8 किलोमीटर ही है, लेकिन घूम कर जाते हैं तो 30-35 किलोमीटर पड़ता है। हम यहां के सरकारी हॉस्पिटल पहुंचे। हॉस्पिटल में भी बाढ़ का पानी करीब 4 फीट तक भरा था। इस प्राथमिक हॉस्पिटल में कोई सुविधा नहीं है। पूरा हॉस्पिटल खाली है। स्थानीय लोग कहते हैं कि रेगुलर ड्यूटी पर यहां एक कंपाउंडर और गार्ड रहते हैं, लेकिन वह भी नहीं दिखते। हर रविवार को स्वास्थ्य मेला लगता है तो डॉक्टर आते हैं। उसी दिन लोगों को दवा देकर फिर से चले जाते हैं। आजादी के 60 साल बाद लाइट पहुंची, लेकिन टिकी नहीं
इन इलाकों में रहने वाले लोगों की चुनौतियों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां के गांवों में बिजली 2012-13 में पहुंची थी। कुशीनगर के मौजूदा बीजेपी सांसद विजय दुबे 2012 में कांग्रेस से खड्डा के विधायक बने थे। राजीव गांधी विद्युत परियोजना के जरिए पनियाहवां इलाके से यहां बिजली पहुंचाई गई। करीब 1 साल तक लाइट जली, लेकिन नारायणी नदी में उफान आया, कटान बढ़ी और नारायणपुर, बकुलादाह, हरिहरपुर गांव कट गए। कटने वाले इन गांव से ही बिजली के पोल आए थे। सभी पोल नदी में समा गए। इस तरह से यहां के गांव में फिर से अंधेरा छा गया। आज भी गांव में पोल लगे हैं, तार बिछे हैं। लोगों के घरों में मीटर लगे हैं। बिजली का बिल भी जोड़ा जा रहा। उसका मैसेज मोबाइल पर आ रहा, लेकिन बिजली नहीं आ रही। स्थानीय निवासी निजामुद्दीन कहते हैं- नारायणपुर जब अम्बेडकर ग्राम बना तो वहां बिजली आई। उसके बाद राजीव गांधी विद्युत परियोजना के जरिए गांव-गांव को बिजली से जोड़ा गया, तब हमारे यहां भी बिजली आई। जिस साल लगी, उसी साल बिजली का खंभा नदी में कट गया। फिर बिजली-बिजली कहते रहे, लेकिन बिजली नहीं आई। बिजली में खर्च 36 करोड़ इसलिए सौर ऊर्जा मिला
निजामुद्दीन कहते हैं- बिजली को लेकर प्रदर्शन हुआ। जेई ने गांव में बिजली पहुंचाने का जो स्टीमेट बनाया वह 36 करोड़ का था। यह भी बताया कि अगर सोलर लाइट लगा दी जाए तो 7 करोड़ खर्च होंगे। सरकार ने सोलर लाइट लगवाना ठीक समझा। दो साल पहले यहां के 16 सौ से ज्यादा घरों को मुफ्त में सोलर लाइट दी गई। बरसात और बाढ़ के बीच अब 80% सोलर लाइट खराब है, लोग परेशान हैं। अधिकारी कहते हैं, कर्मचारी जाएगा तो बनवा दी जाएगी। 2 व्यक्ति पानी के अभाव में मरे तो टंकी लगाने का ऐलान हुआ
यहां पिछले 3 साल से ‘हर घर नल जल’ योजना के तहत पानी की टंकी बनाई जा रही, लेकिन अब तक नींव से आगे का काम नहीं हो सका। गांव में पाइप लाइन एक साल पहले बिछा दी गई थी, जो अब तमाम जगहों पर टूट गई है। गांव के निजामुद्दीन बताते हैं- मरचहवा गांव में दो आदमी पानी के आभाव में मर गए थे। तब लखनऊ से टीम आई थी और टंकी के लिए जगह देखकर गई थी। लेकिन, तब नहीं बनी। फिर डबल इंजन की सरकार जो हर घर नल जल योजना लेकर आई है, उसके तहत यहां 4 ग्राम सभा के लिए टंकी बननी शुरू हुई। लेकिन, आज तक नहीं बन सकी। बहुत लापरवाही है। अब कहते हैं, बरसात हो रही इसलिए काम रोका गया है। इन गांवों को बिहार को देने की थी तैयारी
इन गांव में मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाना प्रशासन के लिए हमेशा से चुनौती रहा है। हमने सरकारी फाइलों को खंगाला तो पता चला कि कि कुशीनगर और महराजगंज, दोनों ही जगह के डीएम यहां के गांव को बिहार में शामिल करने के लिए यूपी सरकार को पत्र लिख चुके हैं। कुशीनगर के पूर्व डीएम आंद्रा वामसी और महराजगंज जिले के पूर्व डीएम सतेंद्र कुमार ने अपने पत्र में यहां स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था पहुंचाने में हो रही दिक्कतों का जिक्र किया था। दोनों डीएम की रिपोर्ट के बाद यूपी सरकार इन्हें बिहार में शामिल करने पर सहमत दिख रही थी। 2022 विधानसभा चुनाव से पहले स्थानीय नेताओं और विधायकों ने विरोध किया। इसके बाद इसे बिहार में शामिल करने का फैसला रोक दिया गया। स्थानीय लोग कहते हैं, अगर यहां नारायणी नदी पर पुल बन जाए तो हमारी सारी दिक्कत दूर हो जाएंगी। हमें फिर न बिहार जाना होगा, न नेपाल के रास्ते यूपी में जाना होगा। बीजेपी विधायक बोले- योगी जी ने पुल बनाने का वादा किया है
हमने यहां की समस्याओं को लेकर खड्डा के स्थानीय बीजेपी विधायक विवेकानंद पांडेय से बात की। वह कहते हैं- निश्चित तौर पर वहां पहुंचना बड़ी परेशानी का काम है। हम लोग भी बिहार से होकर जाते हैं। पिछले महीने सीएम योगी आदित्यनाथ यहां आए थे। उन्होंने दावा किया है कि जल्द ही नारायणी पर पक्का पुल बनाएंगे, जिससे यहां के लोगों की परेशानी दूर हो जाए। बाकी बाढ़ के बीच हमने गांव में दो बार राहत पैकेज बंटवाए हैं। हर परिवार तक राहत पैकेज पहुंचा है। अब सवाल है कि पुल बनाने में दिक्कत क्या है? इस सवाल का जवाब हमें एक स्थानीय बीजेपी नेता देते हैं। वह कहते हैं- इन 7 गांव को जोड़ने के लिए नारायणी नदी पर जो पुल बनाया जाना है, उसमें 600 करोड़ रुपए तक खर्च आ सकता है। खर्च बड़ा है, इसलिए भी सरकार फैसला लेने की स्थिति में नहीं आ पा रही। हालांकि इस पुल के बन जाने से यहां एंबुलेंस भी पहुंचेंगी, साथ ही बिजली और डायल 112 भी। और तो और, यहां के लोगों को यूपी के बाकी हिस्सों में जाने के लिए बिहार और नेपाल के रास्ते का इस्तेमाल भी नहीं करना होगा। यह खबर भी पढ़ें बूढ़ों को जवान बनाने वाली मशीन… 40 लाख में डील, कानपुर में इंजीनियर बोला- साढ़े 18 लाख दिए, मशीन दूसरे से बनवाई कानपुर में बुजुर्गों को जवान करने का दावा करने वाले राजीव दुबे ने सोमवार को सरेंडर कर दिया। उसने कहा- मुझे ब्लैकमेल किया गया। 5 से 18 लाख रुपए मांगे गए। पुलिस राजीव के बयान रिकॉर्ड कर चुकी है। इस बीच दैनिक भास्कर ने उस शख्स को ढूंढ निकाला, जिसने ऑक्सीजन थैरेपी देने वाली मशीन तैयार की थी। यहां पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर