अलीगढ़ की खैर और गाजियाबाद की सदर सीट पर माहौल पूरी तरह चुनावी है। जातिगत समीकरण बनाए जा रहे हैं। प्रत्याशी त्योहार के बहाने लोगों से मिल रहे हैं। दिवाली की बधाई देते हुए कह रहे हैं- ‘याद रखिएगा’। जाट लैंड कही जाने वाली खैर सीट पर 6 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। यहां भाजपा ने पूर्व सांसद राजवीर सिंह दिलेर के बेटे सुरेंद्र दिलेर को प्रत्याशी बनाया है। सपा ने बसपा और कांग्रेस में रह चुकीं डॉक्टर चारू कैन को टिकट दिया है। बसपा से पहल सिंह और आजाद समाज पार्टी से नितिन कुमार चोटेल मैदान में हैं। मौजूदा स्थिति में यहां भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है। हालांकि, अखिलेश यादव ने एससी कैंडिडेट उतारकर जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है। दरअसल, चारू कैन एससी वर्ग से आती हैं, उनके पति जाट हैं। ऐसे में जाट बिरादरी में उनकी चर्चा तेज है। गाजियाबाद की सदर सीट पर भाजपा ने संजीव शर्मा को कैंडिडेट बनाया है। सपा की ओर से सिंह राज चुनावी मैदान में हैं। बसपा-आजाद समाज पार्टी और एआईएमआईएम ने भी अपने प्रत्याशी उतारे हैं। यहां चुनावी हवा अभी भाजपा के पक्ष में चल रही है। खैर और गाजियाबाद सदर सीट पर क्या राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं? अभी हवा का रुख क्या है? क्या यहां बड़ा उलटफेर होगा? ये जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ग्राउंड पर पहुंची। सबसे पहले चलते हैं खैर… इस सीट पर भाजपा और सपा ने नामांकन के आखिरी समय पर प्रत्याशियों का ऐलान किया। सपा ने कैंडिडेट का ऐलान करने में सबसे ज्यादा टाइम लिया, क्योंकि कांग्रेस से सीट शेयरिंग पर मंथन पर चल रहा था। मुहर लगी चारू कैन पर। 25 अक्टूबर को नामांकन से पहले और बाद में, भाजपा और सपा दोनों ने यहां अपनी ताकत दिखाई। जमकर प्रचार शुरू कर दिया। अलीगढ़ मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर खैर सीट ग्रामीण इलाका है। यहां हमने करीब 100 लोगों से बात की। पता चला कि यहां भाजपा और सपा के बीच मुकाबला है। बसपा और आजाद समाज पार्टी का प्रभाव ज्यादा नहीं दिख रहा। हम सबसे पहले गोमत चौराहे पहुंचे। प्राचीन शिव मंदिर पर कुछ बुजुर्ग मंदिर के पुजारी से चर्चा करते दिखे। चर्चा चुनाव पर थी। यहां हमने सबसे पहले चौधरी भरत सिंह से बात की। उन्होंने कहा- मैं आर्मी से रिटायर हूं। फिर मैं बिजली विभाग में रहा। अब खेतीबाड़ी कर रहा हूं। मुझे ऐसा लगता है कि भाजपा जीतेगी। ऐसा क्यों लग रहा है? जवाब में भरत सिंह ने कहा- पहले चेन स्नेचिंग होती थी। लूट होती थी। अब लॉ एंड ऑर्डर अच्छा है। भरत सिंह के साथ खड़े मंदिर के पुजारी राम शरण शर्मा ने कहा- हमारे यहां भाजपा का ही प्रत्याशी जीतेगा। जाट भी भाजपा की तरफ जाएंगे। सभी सुविधाएं मिल रही हैं। कुछ आगे बढ़ने पर हमें जूता-चप्पल कारोबारी ओमकार सिंह मिले। उन्होंने कहा- इस बार कांग्रेस गठबंधन जीतेगा। हम कांग्रेस को जानते हैं। महंगाई के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही है। गैस के दाम बढ़ गए हैं। किसानों के लिए कुछ नहीं हो रहा है। मार्बल व्यापारी ओम प्रकाश चौधरी मिले। उन्होंने कहा- अभी माहौल भाजपा की तरफ ही दिख रहा है। जो सांसद बनकर गए हैं, उन्होंने भी अच्छा काम किया था। इसी तरह अंकित चौहान ने भी भाजपा का सपोर्ट किया। हम खैर के अलग-अलग एरिया में गए। चौधरी हरवीर सिंह ने कहा- हमारा जाट समाज अभी तक भाजपा के समर्थन में रहा। लेकिन इस बार हमारा रुझान चारू कैन की तरफ है। क्योंकि सपा ने जाट समाज का ख्याल रखा है। किसान उपेंद्र ने कहा- अभी हम कुछ नहीं कह सकते। हम तो कांग्रेस वाले हैं। हम सिर्फ गठबंधन को देख रहे हैं। लोगों से बातचीत के आधार पर हमें यहां का जो सियासी समीकरण दिखा, उसे 3 पॉइंट में समझिए… 1. खैर सीट से भाजपा लगातार दो बार बड़े मार्जिन से चुनाव जीत रही है। इस बार रालोद गठबंधन का फायदा मिलता दिख रहा है। भाजपा प्रत्याशी पूर्व सांसद स्व. राजवीर दिलेर के बेटे हैं। उनके साथ लोगों की सहानुभूति भी जुड़ी है। 2. खैर विधानसभा सीट से सपा कभी नहीं जीती है, जबकि बसपा ने एक बार ही जीत दर्ज की है। खैर में जनरल कैटेगरी में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समाज के वोट 29% हैं। जिन्हें भाजपा अपना वोटर मानती है। 3. खैर में दलित वोटर 27% है। बसपा इन्हें अपना कोर वोटर मानती है। दलित वोटर में चंद्रशेखर का भी प्रभाव है। ऐसे में इसका सीधा नुकसान सपा को पहुंच सकता है और फायदा भाजपा को। अब उन समीकरणों को समझिए, जो हवा के रुख को बदल सकते हैं… 1. सपा ने एक तीर से तीन निशाने साधे हैं। पहला- महिला कैंडिडेट, दूसरा-दलित, तीसरा- जाट वर्ग की बहू। अगर पार्टी जाट और दलित वोटर को अपने पक्ष में लाने में कामयाब होती है, तब भाजपा के लिए मुश्किल होगी। 2. 2022 विधानसभा चुनाव में भी चारू कैन बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ीं। वह दूसरे नंबर पर रहीं। अब सपा-कांग्रेस की संयुक्त प्रत्याशी हैं। मुस्लिम वोटर उनके फेवर में दिखाई दे रहा है। अगर सपा यहां किसानों के मुद्दे और पीडीए फॉर्मूले को धार देने में कामयाब होती है, तब मुकाबला रोमांचक हो सकता है। 3. खैर में ओबीसी वर्ग में जाट, लोधी राजपूत और यादव आते हैं, जो 36% प्रतिशत हैं, जबकि 27% एससी में जाटव और वाल्मीकि हैं। ओबीसी वोट- भाजपा-बसपा और आजाद समाज पार्टी में बंट रहा है। यही सपा के लिए चुनौती है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट ने क्या कहा, जानिए… खैर की राजनीति को करीब से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक चौधरी सुनील रोरिया ने कहा- अभी खैर में भाजपा मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है। उपचुनाव सरकार का चुनाव होता है। इस बार तो उसे रालोद का भी साथ मिल रहा है। यह भाजपा के लिए प्लस पॉइंट है। सुनील रोरिया ने कहा- भाजपा ने सुरेंद्र दिलेर को टिकट दिया है। उनके पिता का स्वर्गवास हो चुका है। तो साहनुभूति वोट भी उनके पक्ष में जा सकता है। मुकाबला तो भाजपा और सपा के बीच ही दिखाई दे रहा है। बशर्ते सपा अगर जाट वोटर को एकजुट कर ले, तब स्थिति बदल सकती है। ……………………………………………… अब चलते हैं गाजियाबाद… गेटवे ऑफ यूपी यानी गाजियाबाद… भाजपा इसे अपना गढ़ मानती है। पार्टी यहां सभी चुनावों में मजबूत रहती है। मेयर, पाचों विधायक, सांसद से लेकर अन्य जनप्रतिनिधियों के पदों पर BJP ही काबिज है। इसलिए यहां ये मायने नहीं रखता कि भाजपा ने किसे टिकट दिया है। उपचुनाव में पार्टी ने संगठन के महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा पर भरोसा जताया और वह पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं। गाजियाबाद सामान्य सीट है, लेकिन दलित वोटर की संख्या ज्यादा है। यही समीकरण साधते हुए सपा ने जाटव और बसपा ने वैश्य कैंडिडेट को मैदान में उतारा है। इसलिए समीकरण थोड़ा-बहुत प्रभावित जरूर हुए हैं। यहां सामान्य चुनाव में 50% तक वोटिंग होती है। अगर चुनाव प्रतिशत में गिरावट आती है, तब सभी दलों की माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ सकती हैं। गाजियाबाद में हमने करीब 100 लोगों से बात की। इनसे बातचीत के आधार पर फिलहाल, यहां अभी मुकाबला भाजपा और सपा के बीच दिखाई दे रहा है। बसपा ने वैश्य कैंडिडेट उतार भाजपा के सामने मुश्किलें जरूर खड़ी की हैं। गाजियाबाद में मौजूदा समीकरण 2 पॉइंट में समझिए… 1. संजीव शर्मा ब्राह्मण हैं, संगठन में रहते हुए उन्होंने कई चुनाव लड़ाए हैं। इसलिए अच्छा अनुभव है। संगठन अध्यक्ष होने की वजह से संजीव शर्मा, सांसद और सभी विधायकों के खास हैं। भाजपा यहां सिर्फ योगी-मोदी के फेस पर इलेक्शन लड़ रही है। 2. इस सीट पर प्रमुख रूप से दो दलित प्रत्याशी सपा और एआईएमआईएम के हैं। भाजपा मान रही है कि सामान्य वोटर तो मिलेगा ही। इसके अलावा दलित वोटर आपस में बंट सकता है। इसका फायदा भाजपा को हो सकता है। अब जानते हैं वो समीकरण जो हवा का रुख बदल सकते हैं 1. सपा ने यहां दलित कार्ड खेला है। सिंह राज जाटव पुराने बसपाई हैं और अब सपा से चुनाव लड़ रहे हैं। गाजियाबाद के लाइनपार क्षेत्र के रहने वाले हैं, जहां दलित वोटरों की बड़ी तादाद है। इस सीट पर दलित और मुस्लिम वोटरों की संख्या सामान्य से भी ज्यादा है। यदि दलित-मुस्लिम समीकरण काम किया तो स्थितियां चौंकाने वाली हो सकती हैं। 2. सदर सीट पर 2022 चुनाव में सपा को दलित-मुस्लिम वोटर का पूरा समर्थन मिला। पार्टी दूसरे नंबर पर रही। इस बार अगर बसपा जनरल वोट काटती है, तब सपा को फायदा पहुंच सकता है। 3. सपा के लिए यह सीट सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। यहां कांग्रेस का अपना जनाधार है। ऐसे में गठबंधन की मजबूती मायने रखती है। इसके अलावा सपा लोकसभा चुनाव जैसे मुद्दों पर धार लगाने में कामयाब होती है, तब माहौल सपा के पक्ष में आ सकता है। चुनावी माहौल समझने के लिए हम गोविंदपुरम पहुंचे। यहां A-ब्लॉक में मंदिर के पास अलग-अलग क्षेत्रों से आए लोग मौजूद थे, जो चाय पर चर्चा कर रहे थे। कारोबारी प्रदीप राघव ने कहा- भाजपा प्रत्याशी संजीव शर्मा कम से कम एक लाख वोटों से जीतेंगे। क्योंकि वो लोकप्रिय हैं। पिंकी कुमार ने कहा- इस बार गाजियाबाद से बसपा कैंडिडेट पीएन गर्ग जीत रहे हैं। यहां मुस्लिम, वैश्य और एससी वोटर काफी अधिक हैं। इसलिए उनकी जीत पक्की दिखाई दे रही है। पीएन गर्ग इस सीट पर एकमात्र वैश्य प्रत्याशी हैं। बिरादरी के नाते वैश्य वोटर उन्हीं के पास जाएगा। इसके अलावा बसपा का दलित कोर वोटर उस पार्टी के अलावा कहीं और न के बराबर ही छिटकेगा। यही दो समीकरण पीएन गर्ग को जीत दिलाने के लिए काफी नजर आ रहे हैं। नीरज कुमार सिंह ने कहा- गाजियाबाद सीट से सपा प्रत्याशी सिंह राज जाटव जीत रहे हैं। क्योंकि यूपी में जितना काम अखिलेश यादव ने किया, उतना किसी सरकार में नहीं हुआ। उदाहरण के तौर पर हम कह सकते हैं कि जिस तरह सामान्य सीट अयोध्या से एक दलित नेता की जीत हुई थी, उसी तरह से गाजियाबाद सामान्य सीट से एक दलित व्यक्ति चुनाव जीतकर दिखाएगा। लोगों से बातचीत के आधार पर जो माहौल दिखाई दिया, अब उसे जानते हैं…. शहर विधानसभा सीट में तीन प्रमुख इलाके आते हैं। कैला भट्टा, विजयनगर और क्रॉसिंग रिपब्लिक। कैला भट्टा और विजयनगर इलाके में मुस्लिम और दलित बड़ी संख्या में रहते हैं। कैला भट्टा का पोलिंग पर्सेंट 70 से भी ऊपर जाता है। सपा प्रत्याशी सिंह राज जाटव का पूरा फोकस इसी एरिया पर है। वो खुद क्रॉसिंग रिपब्लिक एरिया के रहने वाले हैं। लोग ऐसा मान रहे हैं कि स्थानीय व्यक्ति होने की वजह से क्रॉसिंग का वोट सपा प्रत्याशी को ही मिलेगा। वहीं, कैला भट्टा का मुस्लिम वोट भी उसी तरफ जाएगा, जो भाजपा के सामने मजबूत स्थिति में खड़ा होगा। पिछले लोकसभा-विधानसभा चुनावों में कैला भट्टा एरिया का मुस्लिम वोट एकतरफा भाजपा के विपक्ष प्रत्याशी को मिलता रहा है। दूसरे शहरों की तरह गाजियाबाद में ‘डवलपमेंट’ कोई खास मुद्दा नहीं है। उसकी वजह है कि गाजियाबाद एनसीआर का प्रमुख शहर है। यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर सबसे टॉप पब्लिक ट्रांसपोर्ट मौजूद हैं। ऐसे में यहां का इलेक्शन सिर्फ चेहरे और जातिगत समीकरणों पर निर्भर करेगा। उसी को ध्यान में रखकर सभी दलों ने अपने प्रत्याशी उतारे हैं। अब जानते हैं क्या बोले पॉलिटिकल एक्सपर्ट गाजियाबाद का चुनावी माहौल समझने के लिए हमने सीनियर जर्नलिस्ट अशोक ओझा से बात की। उन्होंने कहा – गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट में 14 प्रत्याशी मैदान में हैं, जो वर्तमान के हालात हैं, उसे देखकर ऐसा लगता है कि भाजपा के संजीव शर्मा, बसपा के पीएन गर्ग और सपा के सिंह राज जाटव के बीच मुकाबला होगा। हालांकि, आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी सत्यपाल चौधरी इस मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अशोक ओझा ने कहा- बसपा, भाजपा के वैश्य मतदाता में सेंधमारी लगाने की भरसक कोशिश कर रही है। सपा के जाटव कैंडिडेट बसपा के जाटव वोटर और मुस्लिमों को प्रभावित करने में जुटे हैं। ये तो वक्त बताएगा कि चुनाव कैसा होता है, लेकिन पलड़ा भाजपा का भारी नजर आ रहा है। …………………………………………………. यह खबर भी पढ़ें कुंदरकी में भाजपा, मीरापुर में रालोद मजबूत:मायावती, चंद्रशेखर और ओवैसी की पार्टी बिगाड़ रहीं सपा के समीकरण, ध्रुवीकरण से बदलेगा माहौल मुरादाबाद की कुंदरकी और मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट मुस्लिम बहुल हैं। दोनों सीटों पर भाजपा-सपा के बीच टक्कर है। कुंदरकी में भाजपा ने रामवीर सिंह को प्रत्याशी बनाया है, जबकि सपा ने तीन बार के विधायक रह चुके हाजी रिजवान को। लेकिन, यहां बसपा और AIMIM प्रत्याशी सपा का समीकरण बिगाड़ रहे हैं। माहौल भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहा है। पढ़ें पूरी ग्राउंड रिपोर्ट… अलीगढ़ की खैर और गाजियाबाद की सदर सीट पर माहौल पूरी तरह चुनावी है। जातिगत समीकरण बनाए जा रहे हैं। प्रत्याशी त्योहार के बहाने लोगों से मिल रहे हैं। दिवाली की बधाई देते हुए कह रहे हैं- ‘याद रखिएगा’। जाट लैंड कही जाने वाली खैर सीट पर 6 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। यहां भाजपा ने पूर्व सांसद राजवीर सिंह दिलेर के बेटे सुरेंद्र दिलेर को प्रत्याशी बनाया है। सपा ने बसपा और कांग्रेस में रह चुकीं डॉक्टर चारू कैन को टिकट दिया है। बसपा से पहल सिंह और आजाद समाज पार्टी से नितिन कुमार चोटेल मैदान में हैं। मौजूदा स्थिति में यहां भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है। हालांकि, अखिलेश यादव ने एससी कैंडिडेट उतारकर जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है। दरअसल, चारू कैन एससी वर्ग से आती हैं, उनके पति जाट हैं। ऐसे में जाट बिरादरी में उनकी चर्चा तेज है। गाजियाबाद की सदर सीट पर भाजपा ने संजीव शर्मा को कैंडिडेट बनाया है। सपा की ओर से सिंह राज चुनावी मैदान में हैं। बसपा-आजाद समाज पार्टी और एआईएमआईएम ने भी अपने प्रत्याशी उतारे हैं। यहां चुनावी हवा अभी भाजपा के पक्ष में चल रही है। खैर और गाजियाबाद सदर सीट पर क्या राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं? अभी हवा का रुख क्या है? क्या यहां बड़ा उलटफेर होगा? ये जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ग्राउंड पर पहुंची। सबसे पहले चलते हैं खैर… इस सीट पर भाजपा और सपा ने नामांकन के आखिरी समय पर प्रत्याशियों का ऐलान किया। सपा ने कैंडिडेट का ऐलान करने में सबसे ज्यादा टाइम लिया, क्योंकि कांग्रेस से सीट शेयरिंग पर मंथन पर चल रहा था। मुहर लगी चारू कैन पर। 25 अक्टूबर को नामांकन से पहले और बाद में, भाजपा और सपा दोनों ने यहां अपनी ताकत दिखाई। जमकर प्रचार शुरू कर दिया। अलीगढ़ मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर खैर सीट ग्रामीण इलाका है। यहां हमने करीब 100 लोगों से बात की। पता चला कि यहां भाजपा और सपा के बीच मुकाबला है। बसपा और आजाद समाज पार्टी का प्रभाव ज्यादा नहीं दिख रहा। हम सबसे पहले गोमत चौराहे पहुंचे। प्राचीन शिव मंदिर पर कुछ बुजुर्ग मंदिर के पुजारी से चर्चा करते दिखे। चर्चा चुनाव पर थी। यहां हमने सबसे पहले चौधरी भरत सिंह से बात की। उन्होंने कहा- मैं आर्मी से रिटायर हूं। फिर मैं बिजली विभाग में रहा। अब खेतीबाड़ी कर रहा हूं। मुझे ऐसा लगता है कि भाजपा जीतेगी। ऐसा क्यों लग रहा है? जवाब में भरत सिंह ने कहा- पहले चेन स्नेचिंग होती थी। लूट होती थी। अब लॉ एंड ऑर्डर अच्छा है। भरत सिंह के साथ खड़े मंदिर के पुजारी राम शरण शर्मा ने कहा- हमारे यहां भाजपा का ही प्रत्याशी जीतेगा। जाट भी भाजपा की तरफ जाएंगे। सभी सुविधाएं मिल रही हैं। कुछ आगे बढ़ने पर हमें जूता-चप्पल कारोबारी ओमकार सिंह मिले। उन्होंने कहा- इस बार कांग्रेस गठबंधन जीतेगा। हम कांग्रेस को जानते हैं। महंगाई के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही है। गैस के दाम बढ़ गए हैं। किसानों के लिए कुछ नहीं हो रहा है। मार्बल व्यापारी ओम प्रकाश चौधरी मिले। उन्होंने कहा- अभी माहौल भाजपा की तरफ ही दिख रहा है। जो सांसद बनकर गए हैं, उन्होंने भी अच्छा काम किया था। इसी तरह अंकित चौहान ने भी भाजपा का सपोर्ट किया। हम खैर के अलग-अलग एरिया में गए। चौधरी हरवीर सिंह ने कहा- हमारा जाट समाज अभी तक भाजपा के समर्थन में रहा। लेकिन इस बार हमारा रुझान चारू कैन की तरफ है। क्योंकि सपा ने जाट समाज का ख्याल रखा है। किसान उपेंद्र ने कहा- अभी हम कुछ नहीं कह सकते। हम तो कांग्रेस वाले हैं। हम सिर्फ गठबंधन को देख रहे हैं। लोगों से बातचीत के आधार पर हमें यहां का जो सियासी समीकरण दिखा, उसे 3 पॉइंट में समझिए… 1. खैर सीट से भाजपा लगातार दो बार बड़े मार्जिन से चुनाव जीत रही है। इस बार रालोद गठबंधन का फायदा मिलता दिख रहा है। भाजपा प्रत्याशी पूर्व सांसद स्व. राजवीर दिलेर के बेटे हैं। उनके साथ लोगों की सहानुभूति भी जुड़ी है। 2. खैर विधानसभा सीट से सपा कभी नहीं जीती है, जबकि बसपा ने एक बार ही जीत दर्ज की है। खैर में जनरल कैटेगरी में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समाज के वोट 29% हैं। जिन्हें भाजपा अपना वोटर मानती है। 3. खैर में दलित वोटर 27% है। बसपा इन्हें अपना कोर वोटर मानती है। दलित वोटर में चंद्रशेखर का भी प्रभाव है। ऐसे में इसका सीधा नुकसान सपा को पहुंच सकता है और फायदा भाजपा को। अब उन समीकरणों को समझिए, जो हवा के रुख को बदल सकते हैं… 1. सपा ने एक तीर से तीन निशाने साधे हैं। पहला- महिला कैंडिडेट, दूसरा-दलित, तीसरा- जाट वर्ग की बहू। अगर पार्टी जाट और दलित वोटर को अपने पक्ष में लाने में कामयाब होती है, तब भाजपा के लिए मुश्किल होगी। 2. 2022 विधानसभा चुनाव में भी चारू कैन बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ीं। वह दूसरे नंबर पर रहीं। अब सपा-कांग्रेस की संयुक्त प्रत्याशी हैं। मुस्लिम वोटर उनके फेवर में दिखाई दे रहा है। अगर सपा यहां किसानों के मुद्दे और पीडीए फॉर्मूले को धार देने में कामयाब होती है, तब मुकाबला रोमांचक हो सकता है। 3. खैर में ओबीसी वर्ग में जाट, लोधी राजपूत और यादव आते हैं, जो 36% प्रतिशत हैं, जबकि 27% एससी में जाटव और वाल्मीकि हैं। ओबीसी वोट- भाजपा-बसपा और आजाद समाज पार्टी में बंट रहा है। यही सपा के लिए चुनौती है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट ने क्या कहा, जानिए… खैर की राजनीति को करीब से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक चौधरी सुनील रोरिया ने कहा- अभी खैर में भाजपा मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है। उपचुनाव सरकार का चुनाव होता है। इस बार तो उसे रालोद का भी साथ मिल रहा है। यह भाजपा के लिए प्लस पॉइंट है। सुनील रोरिया ने कहा- भाजपा ने सुरेंद्र दिलेर को टिकट दिया है। उनके पिता का स्वर्गवास हो चुका है। तो साहनुभूति वोट भी उनके पक्ष में जा सकता है। मुकाबला तो भाजपा और सपा के बीच ही दिखाई दे रहा है। बशर्ते सपा अगर जाट वोटर को एकजुट कर ले, तब स्थिति बदल सकती है। ……………………………………………… अब चलते हैं गाजियाबाद… गेटवे ऑफ यूपी यानी गाजियाबाद… भाजपा इसे अपना गढ़ मानती है। पार्टी यहां सभी चुनावों में मजबूत रहती है। मेयर, पाचों विधायक, सांसद से लेकर अन्य जनप्रतिनिधियों के पदों पर BJP ही काबिज है। इसलिए यहां ये मायने नहीं रखता कि भाजपा ने किसे टिकट दिया है। उपचुनाव में पार्टी ने संगठन के महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा पर भरोसा जताया और वह पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं। गाजियाबाद सामान्य सीट है, लेकिन दलित वोटर की संख्या ज्यादा है। यही समीकरण साधते हुए सपा ने जाटव और बसपा ने वैश्य कैंडिडेट को मैदान में उतारा है। इसलिए समीकरण थोड़ा-बहुत प्रभावित जरूर हुए हैं। यहां सामान्य चुनाव में 50% तक वोटिंग होती है। अगर चुनाव प्रतिशत में गिरावट आती है, तब सभी दलों की माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ सकती हैं। गाजियाबाद में हमने करीब 100 लोगों से बात की। इनसे बातचीत के आधार पर फिलहाल, यहां अभी मुकाबला भाजपा और सपा के बीच दिखाई दे रहा है। बसपा ने वैश्य कैंडिडेट उतार भाजपा के सामने मुश्किलें जरूर खड़ी की हैं। गाजियाबाद में मौजूदा समीकरण 2 पॉइंट में समझिए… 1. संजीव शर्मा ब्राह्मण हैं, संगठन में रहते हुए उन्होंने कई चुनाव लड़ाए हैं। इसलिए अच्छा अनुभव है। संगठन अध्यक्ष होने की वजह से संजीव शर्मा, सांसद और सभी विधायकों के खास हैं। भाजपा यहां सिर्फ योगी-मोदी के फेस पर इलेक्शन लड़ रही है। 2. इस सीट पर प्रमुख रूप से दो दलित प्रत्याशी सपा और एआईएमआईएम के हैं। भाजपा मान रही है कि सामान्य वोटर तो मिलेगा ही। इसके अलावा दलित वोटर आपस में बंट सकता है। इसका फायदा भाजपा को हो सकता है। अब जानते हैं वो समीकरण जो हवा का रुख बदल सकते हैं 1. सपा ने यहां दलित कार्ड खेला है। सिंह राज जाटव पुराने बसपाई हैं और अब सपा से चुनाव लड़ रहे हैं। गाजियाबाद के लाइनपार क्षेत्र के रहने वाले हैं, जहां दलित वोटरों की बड़ी तादाद है। इस सीट पर दलित और मुस्लिम वोटरों की संख्या सामान्य से भी ज्यादा है। यदि दलित-मुस्लिम समीकरण काम किया तो स्थितियां चौंकाने वाली हो सकती हैं। 2. सदर सीट पर 2022 चुनाव में सपा को दलित-मुस्लिम वोटर का पूरा समर्थन मिला। पार्टी दूसरे नंबर पर रही। इस बार अगर बसपा जनरल वोट काटती है, तब सपा को फायदा पहुंच सकता है। 3. सपा के लिए यह सीट सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। यहां कांग्रेस का अपना जनाधार है। ऐसे में गठबंधन की मजबूती मायने रखती है। इसके अलावा सपा लोकसभा चुनाव जैसे मुद्दों पर धार लगाने में कामयाब होती है, तब माहौल सपा के पक्ष में आ सकता है। चुनावी माहौल समझने के लिए हम गोविंदपुरम पहुंचे। यहां A-ब्लॉक में मंदिर के पास अलग-अलग क्षेत्रों से आए लोग मौजूद थे, जो चाय पर चर्चा कर रहे थे। कारोबारी प्रदीप राघव ने कहा- भाजपा प्रत्याशी संजीव शर्मा कम से कम एक लाख वोटों से जीतेंगे। क्योंकि वो लोकप्रिय हैं। पिंकी कुमार ने कहा- इस बार गाजियाबाद से बसपा कैंडिडेट पीएन गर्ग जीत रहे हैं। यहां मुस्लिम, वैश्य और एससी वोटर काफी अधिक हैं। इसलिए उनकी जीत पक्की दिखाई दे रही है। पीएन गर्ग इस सीट पर एकमात्र वैश्य प्रत्याशी हैं। बिरादरी के नाते वैश्य वोटर उन्हीं के पास जाएगा। इसके अलावा बसपा का दलित कोर वोटर उस पार्टी के अलावा कहीं और न के बराबर ही छिटकेगा। यही दो समीकरण पीएन गर्ग को जीत दिलाने के लिए काफी नजर आ रहे हैं। नीरज कुमार सिंह ने कहा- गाजियाबाद सीट से सपा प्रत्याशी सिंह राज जाटव जीत रहे हैं। क्योंकि यूपी में जितना काम अखिलेश यादव ने किया, उतना किसी सरकार में नहीं हुआ। उदाहरण के तौर पर हम कह सकते हैं कि जिस तरह सामान्य सीट अयोध्या से एक दलित नेता की जीत हुई थी, उसी तरह से गाजियाबाद सामान्य सीट से एक दलित व्यक्ति चुनाव जीतकर दिखाएगा। लोगों से बातचीत के आधार पर जो माहौल दिखाई दिया, अब उसे जानते हैं…. शहर विधानसभा सीट में तीन प्रमुख इलाके आते हैं। कैला भट्टा, विजयनगर और क्रॉसिंग रिपब्लिक। कैला भट्टा और विजयनगर इलाके में मुस्लिम और दलित बड़ी संख्या में रहते हैं। कैला भट्टा का पोलिंग पर्सेंट 70 से भी ऊपर जाता है। सपा प्रत्याशी सिंह राज जाटव का पूरा फोकस इसी एरिया पर है। वो खुद क्रॉसिंग रिपब्लिक एरिया के रहने वाले हैं। लोग ऐसा मान रहे हैं कि स्थानीय व्यक्ति होने की वजह से क्रॉसिंग का वोट सपा प्रत्याशी को ही मिलेगा। वहीं, कैला भट्टा का मुस्लिम वोट भी उसी तरफ जाएगा, जो भाजपा के सामने मजबूत स्थिति में खड़ा होगा। पिछले लोकसभा-विधानसभा चुनावों में कैला भट्टा एरिया का मुस्लिम वोट एकतरफा भाजपा के विपक्ष प्रत्याशी को मिलता रहा है। दूसरे शहरों की तरह गाजियाबाद में ‘डवलपमेंट’ कोई खास मुद्दा नहीं है। उसकी वजह है कि गाजियाबाद एनसीआर का प्रमुख शहर है। यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर सबसे टॉप पब्लिक ट्रांसपोर्ट मौजूद हैं। ऐसे में यहां का इलेक्शन सिर्फ चेहरे और जातिगत समीकरणों पर निर्भर करेगा। उसी को ध्यान में रखकर सभी दलों ने अपने प्रत्याशी उतारे हैं। अब जानते हैं क्या बोले पॉलिटिकल एक्सपर्ट गाजियाबाद का चुनावी माहौल समझने के लिए हमने सीनियर जर्नलिस्ट अशोक ओझा से बात की। उन्होंने कहा – गाजियाबाद शहर विधानसभा सीट में 14 प्रत्याशी मैदान में हैं, जो वर्तमान के हालात हैं, उसे देखकर ऐसा लगता है कि भाजपा के संजीव शर्मा, बसपा के पीएन गर्ग और सपा के सिंह राज जाटव के बीच मुकाबला होगा। हालांकि, आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी सत्यपाल चौधरी इस मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अशोक ओझा ने कहा- बसपा, भाजपा के वैश्य मतदाता में सेंधमारी लगाने की भरसक कोशिश कर रही है। सपा के जाटव कैंडिडेट बसपा के जाटव वोटर और मुस्लिमों को प्रभावित करने में जुटे हैं। ये तो वक्त बताएगा कि चुनाव कैसा होता है, लेकिन पलड़ा भाजपा का भारी नजर आ रहा है। …………………………………………………. यह खबर भी पढ़ें कुंदरकी में भाजपा, मीरापुर में रालोद मजबूत:मायावती, चंद्रशेखर और ओवैसी की पार्टी बिगाड़ रहीं सपा के समीकरण, ध्रुवीकरण से बदलेगा माहौल मुरादाबाद की कुंदरकी और मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट मुस्लिम बहुल हैं। दोनों सीटों पर भाजपा-सपा के बीच टक्कर है। कुंदरकी में भाजपा ने रामवीर सिंह को प्रत्याशी बनाया है, जबकि सपा ने तीन बार के विधायक रह चुके हाजी रिजवान को। लेकिन, यहां बसपा और AIMIM प्रत्याशी सपा का समीकरण बिगाड़ रहे हैं। माहौल भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहा है। पढ़ें पूरी ग्राउंड रिपोर्ट… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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खालिस्तानी पन्नू भारतीय राजनयिकों के खिलाफ कराएगा प्रदर्शन:कनाडा में 16-17 को मंदिरों के बाहर कराएगा रैली; पीएम मोदी समर्थकों को चेतावनी खालिस्तान समर्थक संस्था सिख्स फॉर जस्टिस (SFJ) कनाडा में हिंदू मंदिरों के बाहर प्रदर्शन करने की तैयारी में है। कनाडा के ब्रैंपटन स्थित हिंदू मंदिरों के बाहर 16 और 17 नवंबर को भारतीय राजनयिकों और मोदी सरकार के समर्थकों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करेंगे। इस रैली में, विशेष रूप से 16 नवंबर को मिसिसॉगा के कालीबाड़ी मंदिर और 17 नवंबर को ब्रैंपटन के त्रिवेणी मंदिर के बाहर विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई गई है। इस विरोध को लेकर खालिस्तान समर्थक गुरपतवंत पन्नू ने वीडियो संदेश भेजा है। उसका कहना है कि अगर भारतीय हिंदू संगठनों और राजनयिकों ने कनाडा में अपने प्रयास जारी रखे, तो खालिस्तान समर्थक “अयोध्या की नींव हिला देंगे”। जो 1992 से “हिंदुत्व वादी विचारधारा” का प्रतीक स्थल है। पन्नू ने आरोप लगाया कि मोदी और अमित शाह की सरकार द्वारा समर्थित संगठनों जैसे आरएसएस, बजरंग दल, और शिवसेना ने कनाडा में गुरुद्वारों पर हमले करने की कोशिश की है। खालिस्तान समर्थकों की मांगें और संदेश पन्नू का कहना है कि कनाडा में भारतीय राजनयिकों का विरोध जारी रहेगा, खासकर जहां ‘लाइफ सर्टिफिकेट कैंप्स’ का आयोजन किया जा रहा है। SFJ ने भारतीय राजनयिकों पर कनाडा के सिख समुदाय की जासूसी करने का आरोप लगाया है, और दावा किया है कि कनाडा के प्रधानमंत्री और रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) ने इसे स्वीकार किया है। कनाडा में बसे हिंदू समर्थकों को चेतावनी इस विरोध प्रदर्शन में SFJ ने कनाडा में रहने वाले मोदी समर्थकों और हिंदू समुदाय के लोगों को चेतावनी दी है कि वे कनाडा के प्रति लॉयल रहें। यदि वे भारतीय राष्ट्रवादी विचारधारा का समर्थन जारी रखते हैं, तो उन्हें कनाडा छोड़ देना चाहिए। SFJ ने हिंदू सभा मंदिर के समर्थकों पर भी आरोप लगाया है कि उन्होंने “घर में घुस के मारेंगे” जैसे नारे लगाए थे, और खालिस्तान समर्थकों के विरोध में हिंसा भड़काई थी। SFJ ने हिंदू समुदाय के लोगों को चेताया है कि अगर वे भारतीय झंडे के साथ नजर आए, तो उन्हें “सिखों और कनाडा के दुश्मन” के रूप में देखा जाएगा। इस बयान के जरिए SFJ ने स्पष्ट किया है कि यह संघर्ष भारत की मोदी सरकार और खालिस्तान समर्थकों के बीच का है, और भारतीय-कनाडाई समुदाय के लोगों को इस टकराव से दूर रहने की सलाह दी गई है। कनाडा में पहले भी मंदिरों पर हो चुके हमले कनाडा के ब्रैम्पटन शहर में उच्चायोग ने हिंदू सभा मंदिर के बाहर कॉन्सुलर कैंप लगाया था। यह कैंप भारतीय नागरिकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए लगा था। इसमें जीवन प्रमाण पत्र जारी किए जा रहे थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के 40 साल पूरे होने को लेकर प्रोटेस्ट कर रहे खालिस्तानी वहां पहुंचे और उन्होंने लोगों पर हमला कर दिया। कनाडा में पिछले कुछ समय से हिंदू मंदिरों और समुदाय के लोगों को निशाना बनाए जाने से भारतीय समुदाय चिंतित है। पिछले कुछ सालों में ग्रेटर टोरंटो एरिया, ब्रिटिश कोलंबिया और कनाडा में बाकी जगहों पर हिंदू मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया है। कनाडाई पीएम ने भी घटना की निंदा की थी इस बारे में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भी निंदा की थी। जिसमें उन्होंने ब्रैम्पटन में हिंदू सभा मंदिर में हुई हिंसा को स्वीकार नहीं किया जा सकता। हर कनाडाई को अपने धर्म का स्वतंत्र और सुरक्षित तरीके से पालन करने का अधिकार है। घटना के बाद से इलाके में तनाव है। भारी संख्या में पुलिस की तैनाती की गई है। पील रीजनल पुलिस चीफ निशान दुरईप्पा ने लोगों से संयम बरतने की अपील की है। भारत का आरोप- वोट बैंक के लिए भारत विरोधी राजनीति कर रहे PM ट्रूडो भारत और कनाडा के बीच संबंधों में एक साल से भी ज्यादा समय से गिरावट देखी गई है। इसकी शुरुआत जून 2020 में खालिस्तानी समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद हुई। पिछले साल सितंबर में PM ट्रूडो ने संसद में आरोप लगाया कि निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंसी का हाथ है। इसके बाद ट्रूडो ने पिछले महीने 13 अक्टूबर निज्जर हत्याकांड में भारतीय राजनयिकों के शामिल होने का आरोप लगाया था। इसके बाद भारत ने संजय वर्मा समेत अपने 6 राजनयिकों को वापस बुला लिया। भारत का कहना है कि कनाडा सरकार के आरोप बेबुनियाद हैं। कनाडा ने भारत सरकार के साथ एक भी सबूत साझा नहीं किया है। वे बिना तथ्य के दावे कर रहे हैं। ट्रूडो सरकार राजनीतिक लाभ उठाने के लिए जानबूझकर भारत को बदनाम करने की कोशिश में जुटी है। भारत के विदेश मंत्रालय ने पिछले महीने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि PM ट्रूडो की भारत से दुश्मनी लंबे समय से जारी है। उनके मंत्रिमंडल में ऐसे लोग शामिल हैं जो खुले तौर पर चरमपंथी संगठनों से जुड़े हुए हैं।
प्रयागराज में 25Km में 1.5 लाख लोग पानी में घिरे:2 श्मशान घाट डूबे, सड़क पर जल रही लाशें; यहां भी 3 घंटे की वेटिंग
प्रयागराज में 25Km में 1.5 लाख लोग पानी में घिरे:2 श्मशान घाट डूबे, सड़क पर जल रही लाशें; यहां भी 3 घंटे की वेटिंग प्रयागराज में गंगा नदी उफान पर है। 25 Km के इलाके में करीब 1.5 लाख लोग पानी में फंसे हैं। बुनियादी सुविधाओं के लिए उन्हें जूझना पड़ रहा है। गंगा-यमुना का वाटर लेवल बढ़ने के बाद घाट डूब गए हैं। 10-10 फीट पानी भरा हुआ हैं, जोकि हर घंटे बढ़ रहा है। बिगड़े हुए हालात के बीच हम श्मशान घाटों पर हालात देखने पहुंचे। अब जगह नहीं बची हैं, 1 साथ सिर्फ 8-10 लाख जलाई जा रही है। सड़क पर भी लाशें जलती हुई मिलीं। संगम नगरी में दाह संस्कार के लिए 3 घंटे तक की वेटिंग चल रही है। बारिश से लकड़ी भीग चुकी हैं, ऐसे में शवदाह में दिक्कत हो रही है। आने वाले 48 घंटे में क्या हालात हो सकते हैं? बाढ़ जैसे हालात कब तक काबू में आएंगे? यह जानने के लिए हम दारागंज और रसूलाबाद श्मशान घाट पहुंचे। पढ़िए ये रिपोर्ट… पैर रखने तक की जगह नहीं
जब हम दारागंज घाट पहुंचे, तब एक साथ 6 अर्थियां लाई गईं। एक गमगीन परिवार से पूछा तो सुमित ने बताया-जौनपुर से आए हैं। एक रिश्तेदार की अर्थी है। लेकिन, यहां पैर रखने तक की जगह नहीं दिख रही। अभी तो घाट तक पहुंचने में मशक्कत करनी पड़ रही है। वहीं कुछ लोग दाह संस्कार वाली जगह से नीचे उतरते दिखे। पूछने पर बोले- अभी दाह संस्कार हुआ नहीं है। श्रद्धांजलि देकर लौट रहे हैं। हमारे परिवार में मिट्टी हुई थी। इसके बाद हम उस जगह पर पहुंचे, जहां अब चिता जलाई जा रही है। यहां जगह सिर्फ इतनी है कि एक बार में 10 लाशें ही जल सकती हैं। इनके बीच ही अर्थियां रखी हुई हैं। हालत यह है कि 2 मिनट में जिंदा आदमी का शरीर तपने लगता है। आशीष बोले – मेरे घर का ग्राउंड फ्लोर डूबा नागवासुकि के पास रहने वाले आशीष त्रिपाठी बताते हैं कि दशाश्वमेघ घाट के पास उनका घर है, जो पहला तल पानी में डूब गया है। यहां पर हालत इस समय इतने खराब हैं कि लोग घर के सामने अंतिम संस्कार करते जा रहे हैं। इससे परिवार वालों को दिक्कत हो रही है। मना करने पर कुछ लोग लड़ने लगते हैं। 3 से 4 घंटे की वेटिंग के बाद दाह संस्कार
अल्लापुर से अपने रिश्तेदार का अंतिम संस्कार करने आए अंकित ने बताया-हम लोग करीब 3 घंटे से लाश लेकर यहां बैठे रहे। इसके बाद जगह मिल पाई। फिर अंतिम संस्कार किया गया। पानी होने की वजह से लकड़ी भी गीली है। लोग लाश लेकर सड़क पर ही बैठे रहते हैं, चिता लगाने के लिए जगह मिलते ही वह अंत्येष्टि करते हैं। दारागंज घाट पर सिर्फ प्रयागराज ही नहीं बल्कि जौनपुर, प्रतापगढ़ समेत अन्य पड़ोसी शहरों से भी लोग डेड बॉडी लेकर अंत्येष्टि के लिए आते हैं। पहले जब गंगा किनारे अंत्येष्टि हो रही थी, तो वहां पर जगह ज्यादा होने से तत्काल स्थान मिल जाता था। लेकिन, पिछले दिनों से पूरा घाट ही पानी में डूब गया, तो लोगों की मुश्किलें बढ़ गई। ज्यादातर लोग घर छोड़कर जा रहे हैं सनी निषाद कहते हैं कि हमारे घर तक पानी आ गया है। ज्यादातर छात्र यहां रहते हैं वह यहां से कहीं चले गए हैं। जलस्तर बढ़ने से(84.36 मीटर) गंगा किनारे बसे दारागंज, छोटा बघाड़ा, सलोरी, बेली कछार व अन्य कुछ कछारी इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। नागवासुकि मंदिर के आसपास की स्थिति यह है कि यहां सैकड़ों घरों का पहला मंजिला पूरा पानी में डूब गया है। ज्यादा लोग घर खाली करके सुरक्षित स्थानों पर गए हैं, या तो घर के दूसरे या तीसरे मंजिले पर ठिकाना बना लिए हैं। जो जहां जगह पा रहा, वहीं जला दे रहा
कोरांव क्षेत्र से आए जयहिंद पटेल ने बताया-अपने परिवार के ही एक सदस्य की मौत के बाद परिवार हम लोग दारागंज घाट पर पहुंचे, तो यहां भयावह स्थिति दिखी। अव्यवस्थाओं के बीच हम लोगों को लकड़ी तो मिल गई है। लेकिन, शव को जलाने के लिए स्थान नहीं मिला। सड़क पर लाशें जल रही थीं और कोई विकल्प न होने की वजह से हम लोग भी शव लेकर कतार में लग गए। तीन घंटे बाद जब पहले से जल रही लाश पूरी तरह जल गई तो हम लोगों को स्थान मिल पाया। कई कुछ ऐसे हैं, जिनको जहां जगह मिली रही है। वहीं पर वो जला रहे हैं। रसूलाबाद घाट से वापस किए जा रहे शव
रसूलाबाद घाट का संचालन महराजिन बुआ सेवा समिति की ओर से किया जा रहा है। समिति के अध्यक्ष जगदीश त्रिपाठी ने बताया-रसूलाबाद घाट पूरी तरह से पानी में डूब गया है। यही कारण है कि सोमवार को यहां एक भी शव नहीं जलाया जा सका। यहां आने वाले शवों को शंकरघाट पर स्थित विद्युत शवदाह गृह भेजा जा रहा है। सामान्य दिनों में यहां प्रतिदिन 20 से 30 शव जलाए जा रही थे। लेकिन, अब एक भी शव नहीं जल रहे हैं। यही कारण है कि अब ज्यादातर शव लेकर दारागंज जा रहे हैं। यहां भी घाट डूबने की वजह से सड़क पर शवों को जलाया जा रहा है। टॉयलेट और साफ-सफाई की व्यवस्था ठप
लकड़ी व्यापारी धनीराम ने बताया-प्रशासन और सरकार क्या एक टॉयलेट तक नहीं बनवा सकती? यहां आने-जाने वाले विदेशी पर्यटक भी काफी निराश हो जाते हैं। दाह संस्कार में इस्तेमाल होने वाली लकड़ियों को भी छतों और गलियों में शिफ्ट किया गया है। नीचे जो लकड़ी है, वो गीली हाे रही है। इससे जलने में दिक्कत आ रही है। पहले 3 घंटे में लकड़ियां जलती थीं, अब 4 घंटे तक लग जा रहे हैं। इसलिए भी दाह संस्कार में देरी हो रही है। बाढ़ शरणालय भेजे गए 1640 लोग
एडीएम विनय कुमार सिंह ने बताया कि बाढ़ को देखते हुए कुल 7 बाढ़ शरणालय बनाए गए हैं। इसमें बाढ़ से पीड़ित 374 परिवारों को सुरक्षित शिफ्ट कराया गया है जिसमें करीब 1700 से ज्यादा लोग ठहरे हुए हैं। 4 घंटे में तीन सेमी. बढ़ रहीं गंगा
रविवार रात गंगा का जलस्तर 83.95 मीटर तक पहुंचा था, जबकि डेंजर लेवल 84.734 मीटर पर निर्धारित है। उम्मीद है कि आज (16 सिंतबर) जलस्तर डेंजर लेवल को पार कर जाएगा। यहां प्रति चार घंटे में तीन सेंटीमीटर जलस्तर बढ़ रहा है। पश्चिमी यूपी व उत्तराखंड में हो रही तेज बारिश का असर यहां दिख रहा है। अभी एक या दो दिन इसी तरह से जलस्तर में वृद्धि होने की उम्मीद है।
सीएम योगी आज मंत्रियों के साथ करेंगे बैठक:उपचुनाव की तैयारी की होगी समीक्षा, सरकार के 16 मंत्रियों को दी गई जिम्मेदारी
सीएम योगी आज मंत्रियों के साथ करेंगे बैठक:उपचुनाव की तैयारी की होगी समीक्षा, सरकार के 16 मंत्रियों को दी गई जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को मंत्रियों के साथ बैठक करेंगे। इस बैठक में उन मंत्रियों को बुलाया गया है जिनकी ड्यूटी इन सीटों पर लगाई गई है। मुख्यमंत्री सभी मंत्रियों से चुनावी तैयारी की समीक्षा करेंगे। 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में मंत्रियों और संगठन के नेताओं की ड्यूटी बता दे की लोकसभा चुनाव में सांसद बने 9 विधायकों की सीटों के साथ ही सिसामऊ सीट पर भी उपचुनाव होना है यह सीट सपा विधायक के अयोग्य घोषित होने के बाद रिक्त हुई थी। वहीं जिन सीटों पर उपचुनाव होना है उनमें मिल्कीपुर, कटेहरी, फूलपुर, मंझवा, गाजियाबाद सदर, मीरापुर, खैर और कुंदरकी शामिल है। बता दें कि भाजपा के संगठन के द्वारा इन सभी सीटों पर चुनावी तैयारी के लिए प्रदेश सरकार के मंत्रियों और संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी की ड्यूटी लगाई गई है। बता दें की 10 सीटो पर होने वाले उपचुनाव के लिए संगठन के पदाधिकारियों के साथ ही यूपी सरकार के 16 मंत्रियों की टीम का गठन कर सभी को अपनी-अपनी सीटों पर जीत दर्ज करने की जिम्मेदारी दी गई। मंत्रियों की टीम में भाजपा के अलावा सहयोगी दलों के मंत्रियों को भी शामिल किया गया है । कुछ सीटों पर दो तो कुछ एक मंत्री को जिम्मेदारी दी गई है। इनके साथ संगठन के भी पदाधिकारियों को लगाया जाएगा। अब आपको बताते हैं 10 विधानसभा सीटों पर 16 मंत्रियों के नाम जिनका मिली है कमान… •करहल-जयवीर सिंह •मिल्कीपुर- सूर्य प्रताप शाही व मयंकेश्वर शरण सिंह •कटेहरी- स्वतंत्र देव सिंह व आशीष पटेल •सीसामऊ- सुरेश खन्ना व संजय निषाद •फूलपुर- दयाशंकर सिंह व राकेश सचान •मझवां-अनिल राजभर •ग़ाज़ियाबाद सदर- सुनील शर्मा •मीरापुर- अनिल कुमार व सोमेन्द्र तोमर •खैर- लक्ष्मी नारायण चौधरी •कुंदरकी- धर्मपाल सिंह व जेपीएस राठौर दरअसल उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में जीत हासिल करना भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल होने के साथ ही लोकसभा चुनाव में मिली हार के लिए मरहम का भी काम करेगा। इसलिए मंत्रियों को हर हाल में जीत दर्ज करने के अभी से क्षेत्रों में डटे रहने को कहा गया है। वहीं, उप चुनाव की तारीखों की घोषणा जल्द होने की संभावना को देखते हुए भाजपा में टिकट के लिए भी भागदौड़ शुरू हो गई है। विधायक से सांसद बनने वाले नेता जहां अपने परिवार के किसी सदस्य को टिकट दिलाने में जुटे हैं। वहीं कई पूर्व सांसद और विधायक भी टिकट के दौड़ में शामिल हैं।