बचपन में ही बच्चों को घुट्टी पिला दी जाती है कि, ‘पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब।’ उस समय खेलने पर जो कुटाई होती थी, उसके वर्णन से भी शरीर में दर्द होता है। इसलिए मुझे हमेशा ही उन खेलों से नफरत रही, जिनमें शरीर को चोट पहुंचती हो। वैसे अब मैं पूरी तरह खेलों के खिलाफ हूं। मेरा विश्वास है कि खेल कटुता बढ़ाने का काम करते हैं। यदि भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट और हॉकी ना होते, तो हमारे संबंध इतने कटु नहीं होते। क्योंकि युद्ध के अतिरिक्त खेल ही हैं, जो दोनों देशों में कड़वाहट बढ़ाने का काम करते हैं। दरअसल हमने खेलों को गंभीर समस्या समझ लिया है और गंभीर समस्याओं को खेल। खेलों में व्यापार होने लगा है और व्यापार खिलवाड़ बन गया है। यदि भारत, पाक, बांग्लादेश, श्रीलंका व अफगानिस्तान की क्रिकेट टीमें आपस में लड़ने की बजाय यूएई की तरह एक साथ मिलकर एक टीम बना लें तो क्रिकेट मैदान एक ऐसा अवसर हो जाएगा, जिसमें पांचों देशों के लोग एक साथ खुश होते और एक साथ ताली बजाते।
वैसे भी खेल वैज्ञानिक आविष्कारों का अपमान है। वैज्ञानिकों ने मनुष्य के जीवन को सुविधापूर्ण बनाने के लिए कार का आविष्कार किया। हम खेलों में इस वैज्ञानिक आविष्कार की रेस लगाने लगे। एक-दूसरे को कुचलकर भी जीत हासिल करने का माध्यम बना है रेस। रेस में हम सब भूल जाते हैं। हॉकी ने कितने ही खिलाड़ियों की टांगें तोड़ीं। क्रिकेट बॉल से कितने ही खिलाड़ियों के सिर फूटे। एक खिलाड़ी घायल होता है और बाकी अपने लक्ष्य की ओर भागते रहते हैं। वे अपनी विजय के लिए उसकी कराह को अनदेखा कर रहे हैं, इससे अधिक अमानवीय क्या हो सकता है। मेरे बापू कहते थे, पहलवानों का बुढ़ापा खराब होता है। मैंने देखा है कि खिलाड़ी 40-45 की उम्र में रिटायर हो जाते हैं। जब हम अपनी जिंदगी का सबसे महत्त्वपूर्ण समय जी रहे होते हैं तब तक खिलाड़ी रिटायर होकर घर बैठ जाते हैं। इसीलिए मैं खेलों से दूर रहा।
खेल देखने में भी रुचि नहीं रखी। टेबल टेनिस खेलो तो गेंद से ज्यादा आंखें दौड़ाकर कष्ट देना पड़ता है। एक बार स्कूल में मजबूरी में क्रिकेट खेला। मैंने बैट पकड़ा, बॉलर ने बॉल फेंकी। जब तक बॉल मुझ तक पहुंची तब तक मैं बाउंड्री पार कर चुका था। बचपन में स्कूल 500 मीटर दूर होने पर भी मैं साइकिल से ही जाता था क्योंकि मैं विशेष अवतार हूं इसलिए बचपन में मेरा कद एक गज, एक फीट, एक इंच था। इसलिए वयस्क होने के बाद भी लोग मुझे बच्चा ही समझते थे। एक बार मेरी साइकिल टूट गई तो मैंने घर से ऑफिस जाने के लिए बच्चों वाली तीन पहियों की साइकिल इस्तेमाल की। बाद में इंजेक्शन लेकर मैं विराट स्वरूप में आ गया, तो ऐसी बाल-लीलाएं करनी छोड़ दीं। लेकिन अभी भी मैं पैदल नहीं चलता। मैं एयरपोर्ट जैसी जगह पर अपनी उम्र का बहाना बनाकर व्हीलचेयर का इस्तेमाल करता हूं और पैदल चलने से बच निकलता हूं। वैसे भी घोड़ा दौड़ता है, बीस साल जिंदा रहता है। अजगर पड़ा रहे, तो हजार साल जिंदा रहता है। भगवान ने जितनी सांसें दी हैं, उतनी ही लोगे। जब आप दौड़ोगे तो जल्दी-जल्दी सांस लोगे, जल्दी-जल्दी छोड़ोगे। कम उम्र तक जीवित रहोगे। घर में पड़े रहोगे, धीरे-धीरे सांस लोगे, धीरे-धीरे छोड़ोगे, लंबी उम्र जियोगे। सुरेंद्र शर्मा का ये राजनीतिक कॉलम भी पढ़ें… सुबह का भूला शाम को घर लौटे तो नेता!, एकरसता से बचने के लिए नेता दूसरी पार्टी के साथ लिव-इन में रहकर मन बहला लेता है शास्त्रों के अनुसार जो आत्मा मर नहीं सकती वह चुनाव के समय पर्यटन पर निकलती है। जिस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, वह आत्मा टाइम काटने के लिए इधर-उधर विचरने लगती है। आप ही सोचिए, यदि कभी न मरने वाली आत्मा थोड़ा-बहुत चलेगी-फिरेगी नहीं, तो उसका स्वास्थ्य खराब हो जाएगा। पूरी खबर पढ़ें बचपन में ही बच्चों को घुट्टी पिला दी जाती है कि, ‘पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब।’ उस समय खेलने पर जो कुटाई होती थी, उसके वर्णन से भी शरीर में दर्द होता है। इसलिए मुझे हमेशा ही उन खेलों से नफरत रही, जिनमें शरीर को चोट पहुंचती हो। वैसे अब मैं पूरी तरह खेलों के खिलाफ हूं। मेरा विश्वास है कि खेल कटुता बढ़ाने का काम करते हैं। यदि भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट और हॉकी ना होते, तो हमारे संबंध इतने कटु नहीं होते। क्योंकि युद्ध के अतिरिक्त खेल ही हैं, जो दोनों देशों में कड़वाहट बढ़ाने का काम करते हैं। दरअसल हमने खेलों को गंभीर समस्या समझ लिया है और गंभीर समस्याओं को खेल। खेलों में व्यापार होने लगा है और व्यापार खिलवाड़ बन गया है। यदि भारत, पाक, बांग्लादेश, श्रीलंका व अफगानिस्तान की क्रिकेट टीमें आपस में लड़ने की बजाय यूएई की तरह एक साथ मिलकर एक टीम बना लें तो क्रिकेट मैदान एक ऐसा अवसर हो जाएगा, जिसमें पांचों देशों के लोग एक साथ खुश होते और एक साथ ताली बजाते।
वैसे भी खेल वैज्ञानिक आविष्कारों का अपमान है। वैज्ञानिकों ने मनुष्य के जीवन को सुविधापूर्ण बनाने के लिए कार का आविष्कार किया। हम खेलों में इस वैज्ञानिक आविष्कार की रेस लगाने लगे। एक-दूसरे को कुचलकर भी जीत हासिल करने का माध्यम बना है रेस। रेस में हम सब भूल जाते हैं। हॉकी ने कितने ही खिलाड़ियों की टांगें तोड़ीं। क्रिकेट बॉल से कितने ही खिलाड़ियों के सिर फूटे। एक खिलाड़ी घायल होता है और बाकी अपने लक्ष्य की ओर भागते रहते हैं। वे अपनी विजय के लिए उसकी कराह को अनदेखा कर रहे हैं, इससे अधिक अमानवीय क्या हो सकता है। मेरे बापू कहते थे, पहलवानों का बुढ़ापा खराब होता है। मैंने देखा है कि खिलाड़ी 40-45 की उम्र में रिटायर हो जाते हैं। जब हम अपनी जिंदगी का सबसे महत्त्वपूर्ण समय जी रहे होते हैं तब तक खिलाड़ी रिटायर होकर घर बैठ जाते हैं। इसीलिए मैं खेलों से दूर रहा।
खेल देखने में भी रुचि नहीं रखी। टेबल टेनिस खेलो तो गेंद से ज्यादा आंखें दौड़ाकर कष्ट देना पड़ता है। एक बार स्कूल में मजबूरी में क्रिकेट खेला। मैंने बैट पकड़ा, बॉलर ने बॉल फेंकी। जब तक बॉल मुझ तक पहुंची तब तक मैं बाउंड्री पार कर चुका था। बचपन में स्कूल 500 मीटर दूर होने पर भी मैं साइकिल से ही जाता था क्योंकि मैं विशेष अवतार हूं इसलिए बचपन में मेरा कद एक गज, एक फीट, एक इंच था। इसलिए वयस्क होने के बाद भी लोग मुझे बच्चा ही समझते थे। एक बार मेरी साइकिल टूट गई तो मैंने घर से ऑफिस जाने के लिए बच्चों वाली तीन पहियों की साइकिल इस्तेमाल की। बाद में इंजेक्शन लेकर मैं विराट स्वरूप में आ गया, तो ऐसी बाल-लीलाएं करनी छोड़ दीं। लेकिन अभी भी मैं पैदल नहीं चलता। मैं एयरपोर्ट जैसी जगह पर अपनी उम्र का बहाना बनाकर व्हीलचेयर का इस्तेमाल करता हूं और पैदल चलने से बच निकलता हूं। वैसे भी घोड़ा दौड़ता है, बीस साल जिंदा रहता है। अजगर पड़ा रहे, तो हजार साल जिंदा रहता है। भगवान ने जितनी सांसें दी हैं, उतनी ही लोगे। जब आप दौड़ोगे तो जल्दी-जल्दी सांस लोगे, जल्दी-जल्दी छोड़ोगे। कम उम्र तक जीवित रहोगे। घर में पड़े रहोगे, धीरे-धीरे सांस लोगे, धीरे-धीरे छोड़ोगे, लंबी उम्र जियोगे। सुरेंद्र शर्मा का ये राजनीतिक कॉलम भी पढ़ें… सुबह का भूला शाम को घर लौटे तो नेता!, एकरसता से बचने के लिए नेता दूसरी पार्टी के साथ लिव-इन में रहकर मन बहला लेता है शास्त्रों के अनुसार जो आत्मा मर नहीं सकती वह चुनाव के समय पर्यटन पर निकलती है। जिस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, वह आत्मा टाइम काटने के लिए इधर-उधर विचरने लगती है। आप ही सोचिए, यदि कभी न मरने वाली आत्मा थोड़ा-बहुत चलेगी-फिरेगी नहीं, तो उसका स्वास्थ्य खराब हो जाएगा। पूरी खबर पढ़ें उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर