योगी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और अखिलेश के ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ नारों के बीच अब मायावती की भी एंट्री हो गई है। उन्होंने शनिवार को कहा- उपचुनाव में बसपा के उतरने से सपा-भाजपा की नींद उड़ गई है। जनता का ध्यान भटकाने के लिए दोनों दल पोस्टरबाजी कर रहे हैं। भाजपा के बंटेंगे तो कटेंगे और सपा के जुड़ेंगे तो जीतेंगे के नारों की बजाय वास्तव में होना यह चाहिए कि बसपा से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे और सुरक्षित रहेंगे। मायावती ने कहा- बसपा इस बार उपचुनाव में सभी 9 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इससे भाजपा और सपा दोनों की नींद उड़ी हुई है। क्योंकि, बसपा ने एकाध चुनाव को छोड़कर यहां काफी समय से उपचुनाव में हिस्सा नहीं लिया था। इसलिए दोनों पार्टियों (सपा और भाजपा) अभी तक जो उपचुनाव हो रहे थे, उनमें अंदर ही अंदर आपस में मिल-बांटकर चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन, इस बार उपचुनाव में जब बसपा भी मैदान में डटी है। इससे इन दोनों पार्टियों और उनके गठबंधन दलों की परेशानी बढ़ गई है। इससे जनता का ध्यान बांटने के लिए भाजपा बटेंगे तो कटेंगे और सपा कह रही है कि जुड़ेंगे तो जीतेंगे। इन नारों को प्रचारित करने और पोस्टरबाजी करने में दोनों दल लगे हैं। वास्तव में होना यह चाहिए कि बसपा से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे और सुरक्षित भी रहेंगे। मायावती ने आगे कहा- मतदाताओं को इन नारों से सावधान रहना चाहिए। सपा के शासन में गुंडे माफिया ही सरकार चलाते रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि सपा अपने गुंडों को उपचुनाव जीतने के हथकंडे अपना रही है। भाजपा और सपा के गठबंधन से दूर रहोगे तो आगे बढ़ोगे। लोगों को विरोधी पार्टियों के बहकावे में नहीं आना चाहिए। अखिलेश ने कहा- भाजपा का ‘नकारात्मक-नारा’ उनकी नाकामी का प्रतीक
शनिवार सुबह सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने X पर पोस्ट कर बंटेंगे तो कटेंगे नारे पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा- उनका (बीजेपी) ‘नकारात्मक-नारा’ उनकी निराशा-नाकामी का प्रतीक है। इस नारे ने साबित कर दिया है कि उनके जो गिनती के 10% मतदाता बचे हैं, अब वो भी खिसकने की कगार पर हैं। इसीलिए ये उनको डराकर एक करने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। अखिलेश यादव ने कहा- ‘नकारात्मक-नारे’ का असर भी होता है। दरअसल इस ‘निराश-नारे’ के आने के बाद उनके बचे-खुचे समर्थक ये सोचकर और भी निराश हैं कि जिन्हें हम ताकतवर समझ रहे थे, वो तो सत्ता में रहकर भी कमजोरी की ही बातें कर रहे हैं। जिस ‘आदर्श राज्य’ की कल्पना हमारे देश में की जाती है, उसके आधार में ‘अभय’ होता है, ‘भय’ नहीं। ये सच है कि ‘भयभीत’ ही ‘भय’ बेचता है, क्योंकि जिसके पास जो होगा, वो वही तो बेचेगा। देश के इतिहास में ये नारा ‘निकृष्टतम-नारे’ के रूप में दर्ज होगा। उनके राजनीतिक पतन के अंतिम अध्याय के रूप में आखिरी ‘शाब्दिक कील-सा’ साबित होगा। देश और समाज के हित में उन्हें अपनी नकारात्मक नजर और नजरिए के साथ अपने सलाहकार भी बदल लेने चाहिए। ये उनके लिए भी हितकर साबित होगा। एक अच्छी सलाह ये है कि ‘पालें तो अच्छे विचार पालें’ और आस्तीनों को खुला रखें। साथ ही बांहों को भी, इसी में उनकी भलाई है। सकारात्मक समाज कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा। अब जानते हैं कि पूरा मामला क्या है
दरअसल, भाजपा के नेता खासकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी सभाओं में नारे लगा रहे हैं कि बंटोगे तो कटोगे। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में जातीय वोटों के बंटवारे को लेकर भाजपा चिंतित है। ऐसे में हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने के लिए भाजपा अब पूरे देश में इस नारे का सहारा ले रही है। वहीं, सपा की ओर से होर्डिंग लगवाई गई कि जुड़ेंगे तो जीतेंगे। इसको लेकर सोशल मीडिया पर भी दो दिनों से घमासान मचा है। मायावती के उपचुनाव में उतरने से किसे नफा-नुकसान
लोकसभा चुनाव में मायावती का वोट शेयर कांग्रेस के वोट शेयर से भी नीचे आ गया था। कांग्रेस और सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा। 17 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस का वोट शेयर 9.46 रहा, जबकि 79 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद बसपा का वोट शेयर 9.39 रहा। बसपा को इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान इंडी गठबंधन ने किया। ऐसे में माना जा रहा है कि मायावती के दम-खम के साथ चुनाव लड़ने का नुकसान कहीं न कहीं इंडी अलायंस को हो सकता है। भाजपा चाहती है कि बसपा चुनाव लड़े
पिछले कई चुनावों में बसपा के वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा भाजपा की ओर जाता रहा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है, मायावती के दमदारी से चुनाव लड़ने से भाजपा को कम नुकसान होगा। भाजपा भी चाहती थी कि बसपा पूरी मजबूती के साथ उपचुनाव लडे़। भाजपा के लिए यह चुनाव करो या मरो का है। अभी बसपा के अलावा किसी पार्टी ने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है। बसपा ने तीन प्रत्याशियों के नाम तय कर कहीं न कहीं यह संकेत देने की कोशिश की है कि इस चुनाव में सभी वर्गों को हिस्सेदारी देगी। यूपी में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे रहेंगे भाजपा के नारे
अब भाजपा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक रहेंगे तो नेक रहेंगे’ के नारे के साथ ही हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। यूपी में विधानसभा की 9 सीटों पर होने वाले उपचुनाव, महाराष्ट्र, झारखंड चुनाव से लेकर आगे तक राष्ट्रवाद के चुनावी मुद्दे इसी लाइन के इर्द-गिर्द रहेंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 26 अगस्त, 2024 को जन्माष्टमी के अवसर पर आगरा में आयोजित कार्यक्रम में कहा था- राष्ट्र से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता। राष्ट्र तब सशक्त रहेगा, जब तक हम एक रहेंगे और नेक रहेंगे। बंटेंगे तो कटेंगे। आप बांग्लादेश में देख रहे हैं न, वो गलतियां नहीं होनी चाहिए। योगी की इन लाइनों ने भविष्य में भाजपा के लिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के एजेंडे की दिशा तय कर दी थी। ……………….. यह खबर भी पढ़ें नसीम ही नहीं…इकरा-इमरान मसूद भी जा चुके हैं मंदिर, अफजाल ने भगवान शिव को घंटा चढ़ाया था; बेटी ने भी की थी पूजा मुस्लिम नेताओं के मंदिर जाने की बात नई नहीं है। इससे पहले भी सपा के कई नेता अलग-अलग मंदिरों की चौखट पर न सिर्फ माथा टेक चुके हैं, बल्कि आरती और पूजा में भी हिस्सा ले चुके हैं। चुनाव जीतने के बाद सपा सांसद अफजाल अंसारी और इकरा हसन मंदिर पहुंचे थे। अफजाल ने तो मंदिर में घंटा भी चढ़ाया था। वहीं, लोकसभा चुनाव के वक्त अफजाल की बेटी नुसरत मंदिर गई थीं। चुनावी प्रचार के दौरान कांग्रेस सांसद इमरान मसूद भी मंदिर पहुंचे थे। इनकी चुनरी ओढ़े हुए तस्वीर सामने आई थी। हालांकि, किसी मौलाना ने इन नेताओं के खिलाफ कोई फतवा नहीं जारी किया था। यहां पढ़ें पूरी खबर योगी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और अखिलेश के ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ नारों के बीच अब मायावती की भी एंट्री हो गई है। उन्होंने शनिवार को कहा- उपचुनाव में बसपा के उतरने से सपा-भाजपा की नींद उड़ गई है। जनता का ध्यान भटकाने के लिए दोनों दल पोस्टरबाजी कर रहे हैं। भाजपा के बंटेंगे तो कटेंगे और सपा के जुड़ेंगे तो जीतेंगे के नारों की बजाय वास्तव में होना यह चाहिए कि बसपा से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे और सुरक्षित रहेंगे। मायावती ने कहा- बसपा इस बार उपचुनाव में सभी 9 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इससे भाजपा और सपा दोनों की नींद उड़ी हुई है। क्योंकि, बसपा ने एकाध चुनाव को छोड़कर यहां काफी समय से उपचुनाव में हिस्सा नहीं लिया था। इसलिए दोनों पार्टियों (सपा और भाजपा) अभी तक जो उपचुनाव हो रहे थे, उनमें अंदर ही अंदर आपस में मिल-बांटकर चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन, इस बार उपचुनाव में जब बसपा भी मैदान में डटी है। इससे इन दोनों पार्टियों और उनके गठबंधन दलों की परेशानी बढ़ गई है। इससे जनता का ध्यान बांटने के लिए भाजपा बटेंगे तो कटेंगे और सपा कह रही है कि जुड़ेंगे तो जीतेंगे। इन नारों को प्रचारित करने और पोस्टरबाजी करने में दोनों दल लगे हैं। वास्तव में होना यह चाहिए कि बसपा से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे और सुरक्षित भी रहेंगे। मायावती ने आगे कहा- मतदाताओं को इन नारों से सावधान रहना चाहिए। सपा के शासन में गुंडे माफिया ही सरकार चलाते रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि सपा अपने गुंडों को उपचुनाव जीतने के हथकंडे अपना रही है। भाजपा और सपा के गठबंधन से दूर रहोगे तो आगे बढ़ोगे। लोगों को विरोधी पार्टियों के बहकावे में नहीं आना चाहिए। अखिलेश ने कहा- भाजपा का ‘नकारात्मक-नारा’ उनकी नाकामी का प्रतीक
शनिवार सुबह सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने X पर पोस्ट कर बंटेंगे तो कटेंगे नारे पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा- उनका (बीजेपी) ‘नकारात्मक-नारा’ उनकी निराशा-नाकामी का प्रतीक है। इस नारे ने साबित कर दिया है कि उनके जो गिनती के 10% मतदाता बचे हैं, अब वो भी खिसकने की कगार पर हैं। इसीलिए ये उनको डराकर एक करने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। अखिलेश यादव ने कहा- ‘नकारात्मक-नारे’ का असर भी होता है। दरअसल इस ‘निराश-नारे’ के आने के बाद उनके बचे-खुचे समर्थक ये सोचकर और भी निराश हैं कि जिन्हें हम ताकतवर समझ रहे थे, वो तो सत्ता में रहकर भी कमजोरी की ही बातें कर रहे हैं। जिस ‘आदर्श राज्य’ की कल्पना हमारे देश में की जाती है, उसके आधार में ‘अभय’ होता है, ‘भय’ नहीं। ये सच है कि ‘भयभीत’ ही ‘भय’ बेचता है, क्योंकि जिसके पास जो होगा, वो वही तो बेचेगा। देश के इतिहास में ये नारा ‘निकृष्टतम-नारे’ के रूप में दर्ज होगा। उनके राजनीतिक पतन के अंतिम अध्याय के रूप में आखिरी ‘शाब्दिक कील-सा’ साबित होगा। देश और समाज के हित में उन्हें अपनी नकारात्मक नजर और नजरिए के साथ अपने सलाहकार भी बदल लेने चाहिए। ये उनके लिए भी हितकर साबित होगा। एक अच्छी सलाह ये है कि ‘पालें तो अच्छे विचार पालें’ और आस्तीनों को खुला रखें। साथ ही बांहों को भी, इसी में उनकी भलाई है। सकारात्मक समाज कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा। अब जानते हैं कि पूरा मामला क्या है
दरअसल, भाजपा के नेता खासकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी सभाओं में नारे लगा रहे हैं कि बंटोगे तो कटोगे। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में जातीय वोटों के बंटवारे को लेकर भाजपा चिंतित है। ऐसे में हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने के लिए भाजपा अब पूरे देश में इस नारे का सहारा ले रही है। वहीं, सपा की ओर से होर्डिंग लगवाई गई कि जुड़ेंगे तो जीतेंगे। इसको लेकर सोशल मीडिया पर भी दो दिनों से घमासान मचा है। मायावती के उपचुनाव में उतरने से किसे नफा-नुकसान
लोकसभा चुनाव में मायावती का वोट शेयर कांग्रेस के वोट शेयर से भी नीचे आ गया था। कांग्रेस और सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा। 17 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस का वोट शेयर 9.46 रहा, जबकि 79 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद बसपा का वोट शेयर 9.39 रहा। बसपा को इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान इंडी गठबंधन ने किया। ऐसे में माना जा रहा है कि मायावती के दम-खम के साथ चुनाव लड़ने का नुकसान कहीं न कहीं इंडी अलायंस को हो सकता है। भाजपा चाहती है कि बसपा चुनाव लड़े
पिछले कई चुनावों में बसपा के वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा भाजपा की ओर जाता रहा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है, मायावती के दमदारी से चुनाव लड़ने से भाजपा को कम नुकसान होगा। भाजपा भी चाहती थी कि बसपा पूरी मजबूती के साथ उपचुनाव लडे़। भाजपा के लिए यह चुनाव करो या मरो का है। अभी बसपा के अलावा किसी पार्टी ने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है। बसपा ने तीन प्रत्याशियों के नाम तय कर कहीं न कहीं यह संकेत देने की कोशिश की है कि इस चुनाव में सभी वर्गों को हिस्सेदारी देगी। यूपी में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे रहेंगे भाजपा के नारे
अब भाजपा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक रहेंगे तो नेक रहेंगे’ के नारे के साथ ही हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। यूपी में विधानसभा की 9 सीटों पर होने वाले उपचुनाव, महाराष्ट्र, झारखंड चुनाव से लेकर आगे तक राष्ट्रवाद के चुनावी मुद्दे इसी लाइन के इर्द-गिर्द रहेंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 26 अगस्त, 2024 को जन्माष्टमी के अवसर पर आगरा में आयोजित कार्यक्रम में कहा था- राष्ट्र से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता। राष्ट्र तब सशक्त रहेगा, जब तक हम एक रहेंगे और नेक रहेंगे। बंटेंगे तो कटेंगे। आप बांग्लादेश में देख रहे हैं न, वो गलतियां नहीं होनी चाहिए। योगी की इन लाइनों ने भविष्य में भाजपा के लिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के एजेंडे की दिशा तय कर दी थी। ……………….. यह खबर भी पढ़ें नसीम ही नहीं…इकरा-इमरान मसूद भी जा चुके हैं मंदिर, अफजाल ने भगवान शिव को घंटा चढ़ाया था; बेटी ने भी की थी पूजा मुस्लिम नेताओं के मंदिर जाने की बात नई नहीं है। इससे पहले भी सपा के कई नेता अलग-अलग मंदिरों की चौखट पर न सिर्फ माथा टेक चुके हैं, बल्कि आरती और पूजा में भी हिस्सा ले चुके हैं। चुनाव जीतने के बाद सपा सांसद अफजाल अंसारी और इकरा हसन मंदिर पहुंचे थे। अफजाल ने तो मंदिर में घंटा भी चढ़ाया था। वहीं, लोकसभा चुनाव के वक्त अफजाल की बेटी नुसरत मंदिर गई थीं। चुनावी प्रचार के दौरान कांग्रेस सांसद इमरान मसूद भी मंदिर पहुंचे थे। इनकी चुनरी ओढ़े हुए तस्वीर सामने आई थी। हालांकि, किसी मौलाना ने इन नेताओं के खिलाफ कोई फतवा नहीं जारी किया था। यहां पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर