हिमाचल हाईकोर्ट ने टेलीफोन रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के तौर पर पेश करने को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की कोर्ट ने टेलीफोन रिकॉर्डिंग को अवैध करार देते हुए निजता के अधिकार का उलंघन बताया और कहा कि इसे साक्ष्य के तौर पर रिकॉर्ड पर नहीं लिया जा सकता। कोर्ट ने कहा, टेलिफोन रिकॉर्डिंग करके जुटाए गए साक्ष्य मान्य नहीं होते। कानून द्वारा स्थापित प्रकिया के विपरीत टेलीफोन टैपिंग कर एविडेंस जुटाना सही नहीं है। इस प्रकार अवैध रूप से जुटाए गए साक्ष्य कानूनन अमान्य है। कोर्ट ने व्यवस्था देते हुए कहा कि निजता के अधिकार को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न हिस्सा माना गया है। पारिवारिक मामले का निपटारा करते हुए दिए आदेश दरअसल, एक पारिवारिक मामले में प्रार्थी ने पत्नी और उसकी मां की आपसी बातचीत की टेलीफोन रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में रिकॉर्ड पर लेने का अदालत से आग्रह किया था। पहले ट्रायल कोर्ट ने प्रार्थी के इस आग्रह को खारिज किया। ट्रायल कोर्ट के बाद हाईकोर्ट ने भी खारिज की प्रार्थी की दलील प्रार्थी ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी और कोर्ट से पत्नी और उसकी मां (पति की सास) की रिकॉर्डिंग को रिकॉर्ड पर लेने का फिर से आग्रह किया। मगर हाईकोर्ट ने प्रार्थी की इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि टेलीफोन पर बातचीत किसी व्यक्ति के निजी जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। गोपनीयता के अधिकार के दायरे में आता है अदालत ने कहा, किसी के घर अथवा कार्यालय की गोपनीयता को देखते हुए टेलीफोन पर बातचीत करने का अधिकार निश्चित रूप से ‘गोपनीयता के अधिकार’ के दायरे में आता है। इसलिए स्थापित प्रक्रिया का पालन कर ही वैध रूप से साक्ष्य जुटाए जा सकते हैं। हिमाचल हाईकोर्ट ने टेलीफोन रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के तौर पर पेश करने को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की कोर्ट ने टेलीफोन रिकॉर्डिंग को अवैध करार देते हुए निजता के अधिकार का उलंघन बताया और कहा कि इसे साक्ष्य के तौर पर रिकॉर्ड पर नहीं लिया जा सकता। कोर्ट ने कहा, टेलिफोन रिकॉर्डिंग करके जुटाए गए साक्ष्य मान्य नहीं होते। कानून द्वारा स्थापित प्रकिया के विपरीत टेलीफोन टैपिंग कर एविडेंस जुटाना सही नहीं है। इस प्रकार अवैध रूप से जुटाए गए साक्ष्य कानूनन अमान्य है। कोर्ट ने व्यवस्था देते हुए कहा कि निजता के अधिकार को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न हिस्सा माना गया है। पारिवारिक मामले का निपटारा करते हुए दिए आदेश दरअसल, एक पारिवारिक मामले में प्रार्थी ने पत्नी और उसकी मां की आपसी बातचीत की टेलीफोन रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में रिकॉर्ड पर लेने का अदालत से आग्रह किया था। पहले ट्रायल कोर्ट ने प्रार्थी के इस आग्रह को खारिज किया। ट्रायल कोर्ट के बाद हाईकोर्ट ने भी खारिज की प्रार्थी की दलील प्रार्थी ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी और कोर्ट से पत्नी और उसकी मां (पति की सास) की रिकॉर्डिंग को रिकॉर्ड पर लेने का फिर से आग्रह किया। मगर हाईकोर्ट ने प्रार्थी की इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि टेलीफोन पर बातचीत किसी व्यक्ति के निजी जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। गोपनीयता के अधिकार के दायरे में आता है अदालत ने कहा, किसी के घर अथवा कार्यालय की गोपनीयता को देखते हुए टेलीफोन पर बातचीत करने का अधिकार निश्चित रूप से ‘गोपनीयता के अधिकार’ के दायरे में आता है। इसलिए स्थापित प्रक्रिया का पालन कर ही वैध रूप से साक्ष्य जुटाए जा सकते हैं। हिमाचल | दैनिक भास्कर
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