मेरा पहला बच्चा था, जिंदा जल गया। हम सिर्फ देखते रहे। अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही ने मेरे सपनों को आग लगा दी। अब हमें समझ नहीं आ रहा कि किसके सामने रोएं। मैं उसे गोद में भी नहीं ले पाई।- संजना डिलीवरी के बाद बच्चा नहीं रोया, झांसी मेडिकल कॉलेज ले आए। शुक्रवार रात अचानक शोर हुआ। देखा तो आग लगी थी। सभी बच्चों को लेकर भाग रहे थे, लेकिन मेरा बेटा अब तक नहीं मिला। उसकी किलकारी भी नहीं सुन पाई।- संतोषी ये दर्द उन मांओं का है, जिन्होंने झांसी अग्निकांड में अपने बच्चों को खोया दिया। ये बच्चों को जिंदगी दिलाने के लिए अस्पताल लाई थीं। लेकिन, उन्हें क्या पता था कि वह अपने बच्चों की किलकारी नहीं सुन सकेंगी। दैनिक भास्कर टीम ने ऐसी महिलाओं से बात की, जिनके बच्चे या तो हादसे में मर चुके हैं या नहीं मिल रहे। पढ़िए उनका दर्द… अस्पताल में मेरा बच्चा नहीं रोया, यहां सब चीखें सुनाई दे रहीं जालौन की रहने वाली संतोषी अस्पताल की फर्श पर शॉल ओढ़े बैठी हैं। उनके चेहरे पर उदासी है। आंखों के आंसू सूख चुके हैं। उनकी रुंधी हुई आवाज से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके अंदर अथाह दर्द और पीड़ा है। हमने उनसे पूछा कि वो यहां कब आई थीं, तो वह कहती हैं- 5 नवंबर को डिलीवरी हुई थी। बच्चा रोया नहीं था, इसलिए उसे उरई जिला अस्पताल लेकर पहुंचे। डॉक्टरों ने उसे झांसी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। जब हमने उनसे पूछा कि आग लगी, तब आप कहां थीं? जवाब में संतोषी ने कहा- रात को अंदर सो रही थी। आवाज सुनकर बाहर आई। देखा, तो आग लगी थी। चारों तरफ भगदड़ मची थी। लोग अपने बच्चों को लेकर भाग रहे थे। हमें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? अंदर गए तो देखा कि मेरा बच्चा ही नहीं था। अब आपको क्या चाहिए? इस सवाल पर संतोषी ने कहा- मुझे सिर्फ मेरा बच्चा चाहिए। क्या आपने बच्चे को देखा? संतोषी ने जवाब दिया- नहीं। कुछ बच्चे दिखाए गए, लेकिन उनमें मेरा बेटा नहीं था। रात से सुबह हो गई, अभी तक बेटे की कोई जानकारी नहीं मिली। इतना कहते हुए संतोषी रो पड़ीं। ‘हमारा बच्चा पूरा जल गया..वो जिंदा नहीं है’ ललितपुर के फुलवारा गांव के रहने वाले सोनू और उनकी पत्नी संजना मेडिकल कॉलेज में मौजूद हैं। संजना फर्श पर बैठकर बीच-बीच में रो पड़ती हैं। वो चीखती हैं, मेरा बच्चा कहां है, मेरा पहला बच्चा था। हाय मेरा बच्चा जल गया…पूरा जल गया। अरे कोई तो दिखा दो, मेरे बच्चे को। पास बैठे पति सोनू उन्हें दिलासा देते हैं, लेकिन उनकी आंखों से भी आंसू नहीं रुक रहे। सोनू ने बताया- 7 अक्टूबर को पत्नी ने बच्चे को जन्म दिया। डिलीवरी के बाद बच्चे को झांसी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। उसे सांस लेने में दिक्कत थी, क्योंकि 7 महीने में ही पैदा हुआ था। यहां इलाज चल रहा था। 1 महीने से हम लोग यहीं हैं। शुक्रवार को ही बच्चे का सीटी स्कैन हुआ था। डॉक्टर ने बताया- बेटे के माथे में पानी भरा है। डॉक्टर ने दूध पिलाने से मना किया था, इसलिए हम लोग निश्चिंत होकर सो रहे थे। इसी बीच अचानक आग लग गई। हम दौड़कर वार्ड के पास पहुंचे, लेकिन हमें अंदर नहीं जाने दिया। बच्चा कहां है? सोनू ने जवाब दिया- पता नहीं। स्टाफ बोल रहा है कि इमरजेंसी में है, लेकिन मैंने देखा नहीं। कुछ बच्चे खो गए, मिल नहीं रहे हैं। उनकी पत्नी संजना से पूछा- आपका बच्चा कैसा है, तो वह धीमी आवाज में बोलीं- पता नहीं। हमारा बच्चा पूरा जल गया। अब वह जिंदा नहीं है। ये मेरा पहला बच्चा था। यह कहते हुए वह रो पड़ीं। मेरा पोता खत्म हो गया, वो पूरा जला हुआ था ललितपुर के सीरोनकला गांव के रहने वाले निरन बेचैन होकर मेडिकल कॉलेज में घूम रहे हैं। हमने उनसे पूछा कि आपका यहां कौन भर्ती था? उन्होंने बताया- मेरी बहू पूजा का बच्चा भर्ती था। ललितपुर में ऑपरेशन से बच्चा हुआ था। बच्चे का वजन कम था, इसलिए शुक्रवार को बच्चे को यहां लेकर आए। रात में यहां आग लग गई। बच्चे जलकर मर गए। मैंने देखा तो मेरा पोता ऊपर से लेकर नीचे तक जला हुआ था। कैसे पहचाना? जवाब में उन्होंने कहा- नाम की पट्टी लगी हुई थी, उसी से पहचाना। मेरा बच्चा खत्म हो गया। हम तो गरीब हैं, मेरे पास कुछ नहीं है। हादसा कैसे हुआ, जवाब दिया कि कर्मचारियों की लापरवाही से हुआ। हमने बच्चों को बचाया, अब धमकी मिल रही महोबा के रहने वाले कुलदीप ने बताया कि आग लगी तो मैं दौड़कर वहां पहुंचा। पीछे वाला गेट तोड़ा गया। देखा तो डॉक्टर भाग रहे थे। मैं अंदर गया। वहां बहुत धुआं था। कुछ बच्चे मरे हुए थे। लेकिन, मेरा बच्चा नहीं था। इसके बाद मैंने 4-5 बच्चों को बाहर निकाला। मीडिया में बयान देने पर अब अस्पताल प्रशासन से धमकी मिल रही है। मुझसे कहा जा रहा है कि तुम ऐसे कैसे बयान दे रहे हो। मैंने जो देखा, वही तो बोलूंगा। मैं अपने बच्चे के बारे में क्या कहूं, कोई उम्मीद नहीं है। मर ही गया, समझिए। बेटा महोबा सरकारी अस्पताल से रेफर किया गया था। 9 नवंबर को बेटे को यहां एडमिट कराया। हादसे के पीछे डॉक्टर की लापरवाही है। 8 परिजनों को नहीं मिले बच्चे ———————- झांसी अग्निकांड से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें- झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई सरकारी मेडिकल कॉलेज में स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट (SNCU) में शुक्रवार रात भीषण आग लग गई। हादसे में 10 बच्चों की मौत हो गई। वार्ड की खिड़की तोड़कर 39 बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। अभी तक 8 बच्चों की सूचना नहीं मिल पाई है। शनिवार सुबह उनके परिजन मेडिकल कॉलेज पहुंच गए और हंगामा कर दिया। पढ़ें पूरी खबर डॉक्टर 3-3 अधजले नवजात को उठाकर भागे:शरीर झुलसकर काला पड़ा, बच्चों का चेहरा देखते ही मां बेहोश हुई हाय मेरा बच्चा, एक बार चेहरा तो दिखा दो। एक बार आंचल से लगा लेने दो…यह कहते हुए प्रसूता नीलू बेहोश हो गई। पति ने उसे संभाला। नजारा झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज का है। यहां शुक्रवार रात 10.30 बजे शिशु वार्ड के SNCU (स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट) में आग लगने से 10 नवजात बच्चों की जिंदा जलने से मौत हो गई। पढ़ें पूरी खबर मेरा पहला बच्चा था, जिंदा जल गया। हम सिर्फ देखते रहे। अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही ने मेरे सपनों को आग लगा दी। अब हमें समझ नहीं आ रहा कि किसके सामने रोएं। मैं उसे गोद में भी नहीं ले पाई।- संजना डिलीवरी के बाद बच्चा नहीं रोया, झांसी मेडिकल कॉलेज ले आए। शुक्रवार रात अचानक शोर हुआ। देखा तो आग लगी थी। सभी बच्चों को लेकर भाग रहे थे, लेकिन मेरा बेटा अब तक नहीं मिला। उसकी किलकारी भी नहीं सुन पाई।- संतोषी ये दर्द उन मांओं का है, जिन्होंने झांसी अग्निकांड में अपने बच्चों को खोया दिया। ये बच्चों को जिंदगी दिलाने के लिए अस्पताल लाई थीं। लेकिन, उन्हें क्या पता था कि वह अपने बच्चों की किलकारी नहीं सुन सकेंगी। दैनिक भास्कर टीम ने ऐसी महिलाओं से बात की, जिनके बच्चे या तो हादसे में मर चुके हैं या नहीं मिल रहे। पढ़िए उनका दर्द… अस्पताल में मेरा बच्चा नहीं रोया, यहां सब चीखें सुनाई दे रहीं जालौन की रहने वाली संतोषी अस्पताल की फर्श पर शॉल ओढ़े बैठी हैं। उनके चेहरे पर उदासी है। आंखों के आंसू सूख चुके हैं। उनकी रुंधी हुई आवाज से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके अंदर अथाह दर्द और पीड़ा है। हमने उनसे पूछा कि वो यहां कब आई थीं, तो वह कहती हैं- 5 नवंबर को डिलीवरी हुई थी। बच्चा रोया नहीं था, इसलिए उसे उरई जिला अस्पताल लेकर पहुंचे। डॉक्टरों ने उसे झांसी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। जब हमने उनसे पूछा कि आग लगी, तब आप कहां थीं? जवाब में संतोषी ने कहा- रात को अंदर सो रही थी। आवाज सुनकर बाहर आई। देखा, तो आग लगी थी। चारों तरफ भगदड़ मची थी। लोग अपने बच्चों को लेकर भाग रहे थे। हमें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? अंदर गए तो देखा कि मेरा बच्चा ही नहीं था। अब आपको क्या चाहिए? इस सवाल पर संतोषी ने कहा- मुझे सिर्फ मेरा बच्चा चाहिए। क्या आपने बच्चे को देखा? संतोषी ने जवाब दिया- नहीं। कुछ बच्चे दिखाए गए, लेकिन उनमें मेरा बेटा नहीं था। रात से सुबह हो गई, अभी तक बेटे की कोई जानकारी नहीं मिली। इतना कहते हुए संतोषी रो पड़ीं। ‘हमारा बच्चा पूरा जल गया..वो जिंदा नहीं है’ ललितपुर के फुलवारा गांव के रहने वाले सोनू और उनकी पत्नी संजना मेडिकल कॉलेज में मौजूद हैं। संजना फर्श पर बैठकर बीच-बीच में रो पड़ती हैं। वो चीखती हैं, मेरा बच्चा कहां है, मेरा पहला बच्चा था। हाय मेरा बच्चा जल गया…पूरा जल गया। अरे कोई तो दिखा दो, मेरे बच्चे को। पास बैठे पति सोनू उन्हें दिलासा देते हैं, लेकिन उनकी आंखों से भी आंसू नहीं रुक रहे। सोनू ने बताया- 7 अक्टूबर को पत्नी ने बच्चे को जन्म दिया। डिलीवरी के बाद बच्चे को झांसी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। उसे सांस लेने में दिक्कत थी, क्योंकि 7 महीने में ही पैदा हुआ था। यहां इलाज चल रहा था। 1 महीने से हम लोग यहीं हैं। शुक्रवार को ही बच्चे का सीटी स्कैन हुआ था। डॉक्टर ने बताया- बेटे के माथे में पानी भरा है। डॉक्टर ने दूध पिलाने से मना किया था, इसलिए हम लोग निश्चिंत होकर सो रहे थे। इसी बीच अचानक आग लग गई। हम दौड़कर वार्ड के पास पहुंचे, लेकिन हमें अंदर नहीं जाने दिया। बच्चा कहां है? सोनू ने जवाब दिया- पता नहीं। स्टाफ बोल रहा है कि इमरजेंसी में है, लेकिन मैंने देखा नहीं। कुछ बच्चे खो गए, मिल नहीं रहे हैं। उनकी पत्नी संजना से पूछा- आपका बच्चा कैसा है, तो वह धीमी आवाज में बोलीं- पता नहीं। हमारा बच्चा पूरा जल गया। अब वह जिंदा नहीं है। ये मेरा पहला बच्चा था। यह कहते हुए वह रो पड़ीं। मेरा पोता खत्म हो गया, वो पूरा जला हुआ था ललितपुर के सीरोनकला गांव के रहने वाले निरन बेचैन होकर मेडिकल कॉलेज में घूम रहे हैं। हमने उनसे पूछा कि आपका यहां कौन भर्ती था? उन्होंने बताया- मेरी बहू पूजा का बच्चा भर्ती था। ललितपुर में ऑपरेशन से बच्चा हुआ था। बच्चे का वजन कम था, इसलिए शुक्रवार को बच्चे को यहां लेकर आए। रात में यहां आग लग गई। बच्चे जलकर मर गए। मैंने देखा तो मेरा पोता ऊपर से लेकर नीचे तक जला हुआ था। कैसे पहचाना? जवाब में उन्होंने कहा- नाम की पट्टी लगी हुई थी, उसी से पहचाना। मेरा बच्चा खत्म हो गया। हम तो गरीब हैं, मेरे पास कुछ नहीं है। हादसा कैसे हुआ, जवाब दिया कि कर्मचारियों की लापरवाही से हुआ। हमने बच्चों को बचाया, अब धमकी मिल रही महोबा के रहने वाले कुलदीप ने बताया कि आग लगी तो मैं दौड़कर वहां पहुंचा। पीछे वाला गेट तोड़ा गया। देखा तो डॉक्टर भाग रहे थे। मैं अंदर गया। वहां बहुत धुआं था। कुछ बच्चे मरे हुए थे। लेकिन, मेरा बच्चा नहीं था। इसके बाद मैंने 4-5 बच्चों को बाहर निकाला। मीडिया में बयान देने पर अब अस्पताल प्रशासन से धमकी मिल रही है। मुझसे कहा जा रहा है कि तुम ऐसे कैसे बयान दे रहे हो। मैंने जो देखा, वही तो बोलूंगा। मैं अपने बच्चे के बारे में क्या कहूं, कोई उम्मीद नहीं है। मर ही गया, समझिए। बेटा महोबा सरकारी अस्पताल से रेफर किया गया था। 9 नवंबर को बेटे को यहां एडमिट कराया। हादसे के पीछे डॉक्टर की लापरवाही है। 8 परिजनों को नहीं मिले बच्चे ———————- झांसी अग्निकांड से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें- झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई सरकारी मेडिकल कॉलेज में स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट (SNCU) में शुक्रवार रात भीषण आग लग गई। हादसे में 10 बच्चों की मौत हो गई। वार्ड की खिड़की तोड़कर 39 बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। अभी तक 8 बच्चों की सूचना नहीं मिल पाई है। शनिवार सुबह उनके परिजन मेडिकल कॉलेज पहुंच गए और हंगामा कर दिया। पढ़ें पूरी खबर डॉक्टर 3-3 अधजले नवजात को उठाकर भागे:शरीर झुलसकर काला पड़ा, बच्चों का चेहरा देखते ही मां बेहोश हुई हाय मेरा बच्चा, एक बार चेहरा तो दिखा दो। एक बार आंचल से लगा लेने दो…यह कहते हुए प्रसूता नीलू बेहोश हो गई। पति ने उसे संभाला। नजारा झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज का है। यहां शुक्रवार रात 10.30 बजे शिशु वार्ड के SNCU (स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट) में आग लगने से 10 नवजात बच्चों की जिंदा जलने से मौत हो गई। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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