झांसी में जिस स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट (SNCU) में आग लगी, उसके चारों तरफ मोटे-मोटे पाइप बिछाए गए हैं। अगर इनमें पानी होता और स्टॉफ को आग बुझाने वाले उपकरण चलाने आते, तो 10 नवजातों की जान बच जाती। लेकिन जिस वक्त आग लगी, उस वक्त इसमें पानी ही नहीं था। इसके अलावा मेडिकल स्टाफ के किसी भी व्यक्ति को इसे चलाने की जानकारी ही नहीं थी। आसपास जो फायर सिलेंडर रखे थे वह भी एक्सपायर थे। जिनके बच्चे भर्ती थे उन्होंने इसका इस्तेमाल किया। सबसे बड़ी लापरवाही ये रही कि हादसे के दिन शाम को भी शॉर्ट सर्किट हुआ था, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। दैनिक भास्कर की टीम झांसी मेडिकल कॉलेज पहुंची, तो हादसे के पीछे की कई वजह सामने आईं। एक-एक वेंटिलेटर पर 3-3 बच्चों को रखा गया था। ड्यूटी पर सिर्फ 6 स्टॉफ था। एक बार शॉर्ट सर्किट हो चुका था, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। उसके बाद अचानक हादसा हुआ और 10 माओं की गोद सूनी हो गई। मेडिकल स्टॉफ हालात को संभाल नहीं पाया
भास्कर की टीम झांसी मेडिकल कॉलेज के गेट नंबर-2 से अंदर दाखिल हुई। वहां अजीब सा सन्नाटा पसरा दिखा। 100 मीटर अंदर जाने पर सिर्फ पुलिस वाले दिखाई दिए। पहले यहां बच्चों की किलकारियां गूंजती थी। आसपास भीड़ रहती थी। अब हर तरफ सन्नाटा है। 15 नवंबर की रात साढ़े 10 बजे अचानक लगी आग से कुल 11 बच्चों की मौत हो चुकी है। हमीरपुर की बदनसीब मां नजमा की दो नवजात बच्चियां एक साथ जलकर खत्म हो गईं। डॉक्टर मेघा ने कुछ बच्चों को बचाया
जिस वक्त यह हादसा हुआ उस वक्त ड्यूटी पर मेडिकल स्टॉफ के 6 लोग थे। इसमें जूनियर रेजिडेंट डॉ. विजय कीर्ति और डॉ. मेघा थे। इसके अलावा 4 और मेडिकल स्टॉफ थे। इसके अलावा साफ-सफाई से जुड़े 3 कर्मचारी भी थे। जब हादसा हुआ तो डॉक्टर मेघा अंदर थीं। उन्होंने कुछ बच्चों को बाहर निकाल लिया, लेकिन जो स्टॉफ बाहर था उसकी अंदर जाने की हिम्मत नहीं पड़ी। वह आग और अफरातफरी देखकर मौके से भाग गया। फायर ब्रिगेड पानी डालने से बचता रहा
आग लगने के करीब 20 मिनट बाद फायर ब्रिगेड की गाड़ी पहुंची। उस वक्त तक लोगों ने ज्यादातर बच्चों को निकाल लिया था। लेकिन फायर ब्रिगेड के लोग अंदर पानी डालने से बच रहे थे। क्योंकि उनके मन में यह चल रहा था कि कहीं अंदर कोई बच्चा फंसा न हो। फायर ब्रिगेड के एक कर्मचारी बताते हैं, हम 2 इंच पानी आधी इंच पाइप के जरिए छोड़ते हैं, धार बहुत तेज होती है। अगर उसका प्रयोग करते और अंदर कोई बच्चा होता तो वह धार बच्चे का पेट तक चीर सकती थी। इसलिए नॉर्मल पाइप का इस्तेमाल किया गया। हमारे सामने दो तरह की चुनौती थी, पहली यह कि लाइट काट दी गई थी, अंदर पूरी तरह से अंधेरा था। दूसरी यह कि हॉस्पिटल के चारों तरफ आग बुझाने के लिए जो पाइप बिछाई गई थी उसमें उस दिन पानी ही नहीं था। वह बहुत पहले की बनी थी, लेकिन उसे कभी चलाया नहीं गया था। पाइप जंग खा गए। हमने भी उसे देखा तो पता चला कि यह लंबे वक्त से चला ही नहीं है। एक्सपायर सिलेंडर काम नहीं आए जिस वक्त बच्चों के वार्ड में आग लगी विशाल अहिरवाल वहीं थे। विशाल की भतीजी इसी वार्ड में भर्ती थी। वह बताते हैं- जिस वक्त आग लगी बाहर बैठे बच्चों के परिजन तेजी से अंदर की तरफ भागे। लेकिन अंदर धुआं इतना ज्यादा था कि किसी की हिम्मत नहीं हुई अंदर जाने की। मैंने दो रुमाल बांधे और फिर वहां रखे फायर सिलेंडर को लेकर अंदर गया। दोनों सिलेंडर खोल रहा था, लेकिन वह काम नहीं कर रहे थे। जालौन के चंद्रशेखर कहते हैं, मैं हॉस्पिटल के दूसरे साइड था। आग लगने की सूचना पर मौके पर पहुंचा तो देखा कुछ लोग हिम्मत करके अंदर जा रहे थे और बच्चों को बचाकर ला रहे थे। लेकिन एक वक्त के बाद इतना धुआं भर गया कि अंदर जाना संभव नहीं हो पा रहा था। फिर एक नर्स ने बताया कि पीछे खिड़की है, उसे तोड़कर बच्चों को बचाया जा सकता है। इसके बाद लोग पीछे आए और दो खिड़कियों को तोड़ दिया। वहां से बच्चों को निकाला गया लेकिन ज्यादातर बच्चों की मौत हो चुकी थी। सिफारिश के चलते ज्यादा बच्चों को भर्ती किया
जिस स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में घटना हुई उसमें कुल 18 वेंटिलेटर बेड हैं। लेकिन भर्ती किए गए बच्चों की संख्या 49 थी। आखिर ऐसा क्यों करना पड़ा, इसे जानने हम इस यूनिट के इंचार्ज ओमशंकर चौरसिया के पास पहुंचे। वह कहते हैं, SNCU की सुविधा प्राइवेट में बहुत महंगी है। आसपास किसी और सरकारी हॉस्पिटल में नहीं है। इसलिए यहां ज्यादा मरीज आते हैं। पड़ोस में बिल्डिंग तैयार, इस्तेमाल नहीं की जा रही
मेडिकल कॉलेज में जिस जगह आग लगी वह कम जगह में बना है। इसलिए बगल में ही दो फ्लोर की बिल्डिंग बनवाई गई। वह पूरी तरह से तैयार है। 6 महीने पहले तक कहा जा रहा था कि उसे 14 नवंबर यानी बाल दिवस के मौके पर शुरू किया जाएगा। लेकिन तय समय पर शुरू नहीं हो सकी। हमने बिल्डिंग के चारों तरफ जाकर देखा, इस वक्त कहीं भी काम नहीं चल रहा। अगर मेडिकल कॉलेज चाहता तो इसमें नया वार्ड शुरू कर सकता था। आखिर में बड़ा सवाल ये… कैसे तय होगा कि सबके असली बच्चे उनके पास
इस घटना के बाद सबसे बड़ा सवाल पहचान को लेकर खड़ा हुआ। SNCU में भर्ती ज्यादा बच्चे 1 महीने से कम के थे। कुछ तो एक हफ्ते के भी नहीं। पैदा होते ही उनकी तबीयत खराब हो गई, इसलिए परिवार के किसी भी व्यक्ति को अंदर नहीं जाने दिया गया। यहां तक कि स्तनपान के लिए भी मांओ को अंदर बुलाने के बजाय बाहर से ही दूध दे देने की हिदायत थी। क्योंकि बच्चों को नली के जरिए दूध पिलाया जाता था। जब घटना हुई तो अफरा-तफरी मच गई। अंदर जो लोग गए उन्हें जो बच्चा दिखा वह उठाकर भागे, सभी बच्चों को दूसरी जगह भर्ती किया गया। पहचान के इस सवाल के साथ हम मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल एसएन सेंगर से मिले। वह कहते हैं, यह सही बात है कि कुछ लोग क्लेम कर सकते हैं कि मेरे बच्चे की मौत नहीं हुई, मेरा किसी को दे दिया गया। इसलिए हमने इस चीज के लिए एक टीम बना दी। ये टीम ओम शंकर चौरसिया के नेतृत्व में काम कर रही है। सभी बच्चों का ब्लड सैंपल और फुट प्रिंट ले रही। जिनकी मौत हुई है उनका डीएनए सैंपल लिया गया है। जिन्होंने खुद ही पहचाना उनका तो क्लियर है, बाकी एक केस ऐसा है जो सस्पेक्टेड है, उसकी जांच हो रही है। हमने पूछा कि क्या उस डिपार्टमेंट में हमेशा से रात में 6 लोगों की ड्यूटी लगती है। प्रिंसिपल कहते हैं- हां, यह क्रम लंबे वक्त से चल रहा है। ————————— ये खबर भी पढ़ें… आज का एक्सप्लेनर:बच्चों को मरता छोड़ भागे, डिप्टी सीएम के स्वागत में चूना; झांसी अग्निकांड पर वो सबकुछ जो जानना जरूरी 16 नवंबर 2024 की सुबह। उत्तर प्रदेश का शहर झांसी। मेडिकल कॉलेज जाने वाली सड़क की सफाई चल रही है और दोनों तरफ चूना डाला जा रहा है। यहां कोई प्रभात फेरी नहीं होने वाली, बल्कि डिप्टी सीएम बृजेश पाठक आ रहे हैं। उस अस्पताल, जहां कुछ घंटे पहले 10 नवजात बच्चे जिंदा जल गए। जिनके मां-बाप की चीखें सुनकर किसी का भी कलेजा कांप जाए। पढ़ें पूरी खबर… झांसी में जिस स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट (SNCU) में आग लगी, उसके चारों तरफ मोटे-मोटे पाइप बिछाए गए हैं। अगर इनमें पानी होता और स्टॉफ को आग बुझाने वाले उपकरण चलाने आते, तो 10 नवजातों की जान बच जाती। लेकिन जिस वक्त आग लगी, उस वक्त इसमें पानी ही नहीं था। इसके अलावा मेडिकल स्टाफ के किसी भी व्यक्ति को इसे चलाने की जानकारी ही नहीं थी। आसपास जो फायर सिलेंडर रखे थे वह भी एक्सपायर थे। जिनके बच्चे भर्ती थे उन्होंने इसका इस्तेमाल किया। सबसे बड़ी लापरवाही ये रही कि हादसे के दिन शाम को भी शॉर्ट सर्किट हुआ था, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। दैनिक भास्कर की टीम झांसी मेडिकल कॉलेज पहुंची, तो हादसे के पीछे की कई वजह सामने आईं। एक-एक वेंटिलेटर पर 3-3 बच्चों को रखा गया था। ड्यूटी पर सिर्फ 6 स्टॉफ था। एक बार शॉर्ट सर्किट हो चुका था, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। उसके बाद अचानक हादसा हुआ और 10 माओं की गोद सूनी हो गई। मेडिकल स्टॉफ हालात को संभाल नहीं पाया
भास्कर की टीम झांसी मेडिकल कॉलेज के गेट नंबर-2 से अंदर दाखिल हुई। वहां अजीब सा सन्नाटा पसरा दिखा। 100 मीटर अंदर जाने पर सिर्फ पुलिस वाले दिखाई दिए। पहले यहां बच्चों की किलकारियां गूंजती थी। आसपास भीड़ रहती थी। अब हर तरफ सन्नाटा है। 15 नवंबर की रात साढ़े 10 बजे अचानक लगी आग से कुल 11 बच्चों की मौत हो चुकी है। हमीरपुर की बदनसीब मां नजमा की दो नवजात बच्चियां एक साथ जलकर खत्म हो गईं। डॉक्टर मेघा ने कुछ बच्चों को बचाया
जिस वक्त यह हादसा हुआ उस वक्त ड्यूटी पर मेडिकल स्टॉफ के 6 लोग थे। इसमें जूनियर रेजिडेंट डॉ. विजय कीर्ति और डॉ. मेघा थे। इसके अलावा 4 और मेडिकल स्टॉफ थे। इसके अलावा साफ-सफाई से जुड़े 3 कर्मचारी भी थे। जब हादसा हुआ तो डॉक्टर मेघा अंदर थीं। उन्होंने कुछ बच्चों को बाहर निकाल लिया, लेकिन जो स्टॉफ बाहर था उसकी अंदर जाने की हिम्मत नहीं पड़ी। वह आग और अफरातफरी देखकर मौके से भाग गया। फायर ब्रिगेड पानी डालने से बचता रहा
आग लगने के करीब 20 मिनट बाद फायर ब्रिगेड की गाड़ी पहुंची। उस वक्त तक लोगों ने ज्यादातर बच्चों को निकाल लिया था। लेकिन फायर ब्रिगेड के लोग अंदर पानी डालने से बच रहे थे। क्योंकि उनके मन में यह चल रहा था कि कहीं अंदर कोई बच्चा फंसा न हो। फायर ब्रिगेड के एक कर्मचारी बताते हैं, हम 2 इंच पानी आधी इंच पाइप के जरिए छोड़ते हैं, धार बहुत तेज होती है। अगर उसका प्रयोग करते और अंदर कोई बच्चा होता तो वह धार बच्चे का पेट तक चीर सकती थी। इसलिए नॉर्मल पाइप का इस्तेमाल किया गया। हमारे सामने दो तरह की चुनौती थी, पहली यह कि लाइट काट दी गई थी, अंदर पूरी तरह से अंधेरा था। दूसरी यह कि हॉस्पिटल के चारों तरफ आग बुझाने के लिए जो पाइप बिछाई गई थी उसमें उस दिन पानी ही नहीं था। वह बहुत पहले की बनी थी, लेकिन उसे कभी चलाया नहीं गया था। पाइप जंग खा गए। हमने भी उसे देखा तो पता चला कि यह लंबे वक्त से चला ही नहीं है। एक्सपायर सिलेंडर काम नहीं आए जिस वक्त बच्चों के वार्ड में आग लगी विशाल अहिरवाल वहीं थे। विशाल की भतीजी इसी वार्ड में भर्ती थी। वह बताते हैं- जिस वक्त आग लगी बाहर बैठे बच्चों के परिजन तेजी से अंदर की तरफ भागे। लेकिन अंदर धुआं इतना ज्यादा था कि किसी की हिम्मत नहीं हुई अंदर जाने की। मैंने दो रुमाल बांधे और फिर वहां रखे फायर सिलेंडर को लेकर अंदर गया। दोनों सिलेंडर खोल रहा था, लेकिन वह काम नहीं कर रहे थे। जालौन के चंद्रशेखर कहते हैं, मैं हॉस्पिटल के दूसरे साइड था। आग लगने की सूचना पर मौके पर पहुंचा तो देखा कुछ लोग हिम्मत करके अंदर जा रहे थे और बच्चों को बचाकर ला रहे थे। लेकिन एक वक्त के बाद इतना धुआं भर गया कि अंदर जाना संभव नहीं हो पा रहा था। फिर एक नर्स ने बताया कि पीछे खिड़की है, उसे तोड़कर बच्चों को बचाया जा सकता है। इसके बाद लोग पीछे आए और दो खिड़कियों को तोड़ दिया। वहां से बच्चों को निकाला गया लेकिन ज्यादातर बच्चों की मौत हो चुकी थी। सिफारिश के चलते ज्यादा बच्चों को भर्ती किया
जिस स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में घटना हुई उसमें कुल 18 वेंटिलेटर बेड हैं। लेकिन भर्ती किए गए बच्चों की संख्या 49 थी। आखिर ऐसा क्यों करना पड़ा, इसे जानने हम इस यूनिट के इंचार्ज ओमशंकर चौरसिया के पास पहुंचे। वह कहते हैं, SNCU की सुविधा प्राइवेट में बहुत महंगी है। आसपास किसी और सरकारी हॉस्पिटल में नहीं है। इसलिए यहां ज्यादा मरीज आते हैं। पड़ोस में बिल्डिंग तैयार, इस्तेमाल नहीं की जा रही
मेडिकल कॉलेज में जिस जगह आग लगी वह कम जगह में बना है। इसलिए बगल में ही दो फ्लोर की बिल्डिंग बनवाई गई। वह पूरी तरह से तैयार है। 6 महीने पहले तक कहा जा रहा था कि उसे 14 नवंबर यानी बाल दिवस के मौके पर शुरू किया जाएगा। लेकिन तय समय पर शुरू नहीं हो सकी। हमने बिल्डिंग के चारों तरफ जाकर देखा, इस वक्त कहीं भी काम नहीं चल रहा। अगर मेडिकल कॉलेज चाहता तो इसमें नया वार्ड शुरू कर सकता था। आखिर में बड़ा सवाल ये… कैसे तय होगा कि सबके असली बच्चे उनके पास
इस घटना के बाद सबसे बड़ा सवाल पहचान को लेकर खड़ा हुआ। SNCU में भर्ती ज्यादा बच्चे 1 महीने से कम के थे। कुछ तो एक हफ्ते के भी नहीं। पैदा होते ही उनकी तबीयत खराब हो गई, इसलिए परिवार के किसी भी व्यक्ति को अंदर नहीं जाने दिया गया। यहां तक कि स्तनपान के लिए भी मांओ को अंदर बुलाने के बजाय बाहर से ही दूध दे देने की हिदायत थी। क्योंकि बच्चों को नली के जरिए दूध पिलाया जाता था। जब घटना हुई तो अफरा-तफरी मच गई। अंदर जो लोग गए उन्हें जो बच्चा दिखा वह उठाकर भागे, सभी बच्चों को दूसरी जगह भर्ती किया गया। पहचान के इस सवाल के साथ हम मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल एसएन सेंगर से मिले। वह कहते हैं, यह सही बात है कि कुछ लोग क्लेम कर सकते हैं कि मेरे बच्चे की मौत नहीं हुई, मेरा किसी को दे दिया गया। इसलिए हमने इस चीज के लिए एक टीम बना दी। ये टीम ओम शंकर चौरसिया के नेतृत्व में काम कर रही है। सभी बच्चों का ब्लड सैंपल और फुट प्रिंट ले रही। जिनकी मौत हुई है उनका डीएनए सैंपल लिया गया है। जिन्होंने खुद ही पहचाना उनका तो क्लियर है, बाकी एक केस ऐसा है जो सस्पेक्टेड है, उसकी जांच हो रही है। हमने पूछा कि क्या उस डिपार्टमेंट में हमेशा से रात में 6 लोगों की ड्यूटी लगती है। प्रिंसिपल कहते हैं- हां, यह क्रम लंबे वक्त से चल रहा है। ————————— ये खबर भी पढ़ें… आज का एक्सप्लेनर:बच्चों को मरता छोड़ भागे, डिप्टी सीएम के स्वागत में चूना; झांसी अग्निकांड पर वो सबकुछ जो जानना जरूरी 16 नवंबर 2024 की सुबह। उत्तर प्रदेश का शहर झांसी। मेडिकल कॉलेज जाने वाली सड़क की सफाई चल रही है और दोनों तरफ चूना डाला जा रहा है। यहां कोई प्रभात फेरी नहीं होने वाली, बल्कि डिप्टी सीएम बृजेश पाठक आ रहे हैं। उस अस्पताल, जहां कुछ घंटे पहले 10 नवजात बच्चे जिंदा जल गए। जिनके मां-बाप की चीखें सुनकर किसी का भी कलेजा कांप जाए। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर