3 दिन जिसे दूध पिलाया…वो मेरा बच्चा नहीं:झांसी अग्निकांड के बीच नर्स ने थमाया, बचाने वाली लक्ष्मी बोली- अब मेरा बेटा सीरियस

3 दिन जिसे दूध पिलाया…वो मेरा बच्चा नहीं:झांसी अग्निकांड के बीच नर्स ने थमाया, बचाने वाली लक्ष्मी बोली- अब मेरा बेटा सीरियस

‘तीन दिन तक जिसे अपना बेटा समझकर दूध पिलाती रही, बाद में पता चला कि वो मेरा नहीं किसी और का है। आग लगने के बाद खौफनाक मंजर था। वार्ड के अंदर से बच्चे लाकर लोगों को दिए जा रहे थे। मुझे भी एक बच्चा मिला। इलाज के लिए उसे निजी अस्पताल में भर्ती कराया। मेरा बच्चा तो मेडिकल कॉलेज में है। जिसका बच्चा था, मैंने उनको लौटा दिया। अभी मेरे बच्चे की हालत बहुत सीरियस है।’ ये कहते-कहते लक्ष्मी देवी का गला भर आया और वो रोने लगीं। झांसी मेडिकल कॉलेज में आग लगने के बाद वो शांति देवी-कृपाराम के बेटे को ले गई थीं। आज कहानी उस मां लक्ष्मी की, जिसने 3 दिनों तक एक बच्चे को न सिर्फ अपने बेटे की तरह पाला, बल्कि उसका बेहतर इलाज भी कराया। जन्म के बाद बच्चे को लगातार हिचकी आ रही थीं
लक्ष्मी देवी झांसी के बमेर गांव की रहने वाली हैं। पति महेंद्र खेती किसानी करते हैं। दोनों की शादी करीब 5 साल पहले हुई थी। उनकी 3 साल की एक बेटी है। महेंद्र बताते हैं- पत्नी प्रेग्नेंट थीं। प्रसव पीड़ा होने पर 13 नवंबर को जिला अस्पताल में भर्ती कराया। उसी दिन लक्ष्मी ने एक बेटे को जन्म दिया। उन्होंने कहा- उसे लगातार हिचकी आ रही थी, इसलिए भर्ती कर लिया गया। हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। ऐसे में डॉक्टरों ने 15 नवंबर की रात को मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। रात करीब 9 बजे हमने बेटे को SNCU वार्ड में भर्ती करा दिया। बच्चे को भर्ती कराया, एक घंटे बाद लग गई आग
महेंद्र ने आगे बताया- बेटे को एडमिट कराने के बाद मैं और पत्नी लक्ष्मी वार्ड के बाहर लेटने के लिए कपड़े बिछा रहे थे। इतने में ही सब चिल्लाने लगे कि आग लग गई है। हमने वार्ड की तरफ जाने का प्रयास किया, जहां पर हमारा बच्चा एडमिट था। मगर लपटों के बीच बच्चे घिर चुके थे। वहां खौफनाक मंजर था। जो लोग रेस्क्यू कर रहे थे, वे बच्चों को लाकर बाहर दे रहे थे। मेरी पत्नी को एक बच्चा दिया गया। हमें लगा कि हमारा बेटा है। हम उसे प्राइवेट अस्पताल में ले गए और भर्ती करा दिया। लक्ष्मी उसकी दिन-रात सेवा करती रही। अपना दूध पिलाती। लेकिन रविवार शाम को पता चला कि जो बच्चा हम लेकर आए हैं, वो हमारा नहीं है। हमारा बच्चा मेडिकल कॉलेज में एडमिट हैं। तब हम बच्चे को लेकर मेडिकल कॉलेज पहुंचे। जिसका बच्चा था, उसे हैंडओवर कर दिया। अभी मेरे बच्चे की हालत नाजुक है। उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है। उसका इलाज चल रहा है। बच्चा बदल गया…ऐसे चला पता
अग्निकांड के बाद झांसी के गोरपुरा गांव के रहने वाले कृपाराम यादव को उनका नवजात बेटा नहीं मिल रहा था। जबकि मेडिकल कॉलेज में एक ऐसा बच्चा था, जिसके माता-पिता नहीं मिल रहे थे। पहले कृपाराम को बच्चा दिखाया गया तो उन्होंने कहा- ये मेरा बच्चा नहीं है। बच्चे पर लक्ष्मी नाम का टैग लगा था। ऐसे में लक्ष्मी की फाइल ढूंढी गई। उनको सर्च करके नंबर तलाशा गया। फिर फोन करके बताया गया कि जो बच्चा तुम ले गई हो, वो तुम्हारा नहीं, किसी और का है। लक्ष्मी बच्चे को लेकर मेडिकल कॉलेज पहुंच गई। ब्लड ग्रुप मैच हुआ और अन्य वैरिफिकेशन के बाद प्रशासन ने कृपाराम को उसका बेटा सौंप दिया। जबकि लक्ष्मी के बच्चे का इलाज चल रहा है। मां लापता, बुआ कर रही देखभाल
कृपाराम यादव ने बताया- मैं किसान हूं। डेढ़ साल पहले मेरी शादी शांतिदेवी (26) से हुई थी। 8 नवंबर को मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया, नॉर्मल डिलीवरी हुई। डॉक्टरों ने नवजात बेटे को SNCU में भर्ती कर दिया। जबकि, शांतिदेवी वार्ड में भर्ती थी। 14 नवंबर की सुबह वह अचानक लापता हो गई थी। इसके बाद 15 नवंबर की रात को SNCU में आग लग लग गई। 3 दिन बाद कृपाराम को बच्चा तो मिल गया, लेकिन अभी तक उसकी पत्नी का सुराग नहीं लगा। ऐसे में बच्चे की देखभाल उसकी बुआ यानी कृपाराम की बहन कर रही हैं। 2 स्लाइड में झांसी अग्निकांड समझें ———– ये पढ़ें : मुंह पर गीला कपड़ा बांधा, घुटनों के बल अंदर घुसे:एक-एक को बाहर निकाला, 11 बच्चों को बचाने वाले 3 डॉक्टरों की कहानी लोग चीख रहे थे, आग लग गई…शोर सुनकर मैं भी वार्ड तक पहुंचा। अंदर घुसा तो वहां का टेम्प्रेचर करीब 70°C रहा होगा। लगा कि शरीर झुलस जाएगा। कदम पीछे करना पड़ा, तभी एक अटेंडेंट से गमछा लिया। गीला करके उसे मुंह पर लपेटा। फिर अंदर गया। बच्चे लपटों से घिरे हुए थे। किसी तरह से उन्हें बचाया। पढ़िए पूरी खबर… ‘तीन दिन तक जिसे अपना बेटा समझकर दूध पिलाती रही, बाद में पता चला कि वो मेरा नहीं किसी और का है। आग लगने के बाद खौफनाक मंजर था। वार्ड के अंदर से बच्चे लाकर लोगों को दिए जा रहे थे। मुझे भी एक बच्चा मिला। इलाज के लिए उसे निजी अस्पताल में भर्ती कराया। मेरा बच्चा तो मेडिकल कॉलेज में है। जिसका बच्चा था, मैंने उनको लौटा दिया। अभी मेरे बच्चे की हालत बहुत सीरियस है।’ ये कहते-कहते लक्ष्मी देवी का गला भर आया और वो रोने लगीं। झांसी मेडिकल कॉलेज में आग लगने के बाद वो शांति देवी-कृपाराम के बेटे को ले गई थीं। आज कहानी उस मां लक्ष्मी की, जिसने 3 दिनों तक एक बच्चे को न सिर्फ अपने बेटे की तरह पाला, बल्कि उसका बेहतर इलाज भी कराया। जन्म के बाद बच्चे को लगातार हिचकी आ रही थीं
लक्ष्मी देवी झांसी के बमेर गांव की रहने वाली हैं। पति महेंद्र खेती किसानी करते हैं। दोनों की शादी करीब 5 साल पहले हुई थी। उनकी 3 साल की एक बेटी है। महेंद्र बताते हैं- पत्नी प्रेग्नेंट थीं। प्रसव पीड़ा होने पर 13 नवंबर को जिला अस्पताल में भर्ती कराया। उसी दिन लक्ष्मी ने एक बेटे को जन्म दिया। उन्होंने कहा- उसे लगातार हिचकी आ रही थी, इसलिए भर्ती कर लिया गया। हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। ऐसे में डॉक्टरों ने 15 नवंबर की रात को मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। रात करीब 9 बजे हमने बेटे को SNCU वार्ड में भर्ती करा दिया। बच्चे को भर्ती कराया, एक घंटे बाद लग गई आग
महेंद्र ने आगे बताया- बेटे को एडमिट कराने के बाद मैं और पत्नी लक्ष्मी वार्ड के बाहर लेटने के लिए कपड़े बिछा रहे थे। इतने में ही सब चिल्लाने लगे कि आग लग गई है। हमने वार्ड की तरफ जाने का प्रयास किया, जहां पर हमारा बच्चा एडमिट था। मगर लपटों के बीच बच्चे घिर चुके थे। वहां खौफनाक मंजर था। जो लोग रेस्क्यू कर रहे थे, वे बच्चों को लाकर बाहर दे रहे थे। मेरी पत्नी को एक बच्चा दिया गया। हमें लगा कि हमारा बेटा है। हम उसे प्राइवेट अस्पताल में ले गए और भर्ती करा दिया। लक्ष्मी उसकी दिन-रात सेवा करती रही। अपना दूध पिलाती। लेकिन रविवार शाम को पता चला कि जो बच्चा हम लेकर आए हैं, वो हमारा नहीं है। हमारा बच्चा मेडिकल कॉलेज में एडमिट हैं। तब हम बच्चे को लेकर मेडिकल कॉलेज पहुंचे। जिसका बच्चा था, उसे हैंडओवर कर दिया। अभी मेरे बच्चे की हालत नाजुक है। उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है। उसका इलाज चल रहा है। बच्चा बदल गया…ऐसे चला पता
अग्निकांड के बाद झांसी के गोरपुरा गांव के रहने वाले कृपाराम यादव को उनका नवजात बेटा नहीं मिल रहा था। जबकि मेडिकल कॉलेज में एक ऐसा बच्चा था, जिसके माता-पिता नहीं मिल रहे थे। पहले कृपाराम को बच्चा दिखाया गया तो उन्होंने कहा- ये मेरा बच्चा नहीं है। बच्चे पर लक्ष्मी नाम का टैग लगा था। ऐसे में लक्ष्मी की फाइल ढूंढी गई। उनको सर्च करके नंबर तलाशा गया। फिर फोन करके बताया गया कि जो बच्चा तुम ले गई हो, वो तुम्हारा नहीं, किसी और का है। लक्ष्मी बच्चे को लेकर मेडिकल कॉलेज पहुंच गई। ब्लड ग्रुप मैच हुआ और अन्य वैरिफिकेशन के बाद प्रशासन ने कृपाराम को उसका बेटा सौंप दिया। जबकि लक्ष्मी के बच्चे का इलाज चल रहा है। मां लापता, बुआ कर रही देखभाल
कृपाराम यादव ने बताया- मैं किसान हूं। डेढ़ साल पहले मेरी शादी शांतिदेवी (26) से हुई थी। 8 नवंबर को मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया, नॉर्मल डिलीवरी हुई। डॉक्टरों ने नवजात बेटे को SNCU में भर्ती कर दिया। जबकि, शांतिदेवी वार्ड में भर्ती थी। 14 नवंबर की सुबह वह अचानक लापता हो गई थी। इसके बाद 15 नवंबर की रात को SNCU में आग लग लग गई। 3 दिन बाद कृपाराम को बच्चा तो मिल गया, लेकिन अभी तक उसकी पत्नी का सुराग नहीं लगा। ऐसे में बच्चे की देखभाल उसकी बुआ यानी कृपाराम की बहन कर रही हैं। 2 स्लाइड में झांसी अग्निकांड समझें ———– ये पढ़ें : मुंह पर गीला कपड़ा बांधा, घुटनों के बल अंदर घुसे:एक-एक को बाहर निकाला, 11 बच्चों को बचाने वाले 3 डॉक्टरों की कहानी लोग चीख रहे थे, आग लग गई…शोर सुनकर मैं भी वार्ड तक पहुंचा। अंदर घुसा तो वहां का टेम्प्रेचर करीब 70°C रहा होगा। लगा कि शरीर झुलस जाएगा। कदम पीछे करना पड़ा, तभी एक अटेंडेंट से गमछा लिया। गीला करके उसे मुंह पर लपेटा। फिर अंदर गया। बच्चे लपटों से घिरे हुए थे। किसी तरह से उन्हें बचाया। पढ़िए पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर